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‘क्रू-2’ मिशन

  • 26 Apr 2021
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘वाणिज्यिक क्रू कार्यक्रम’ के तहत नासा और ‘स्पेसएक्स’ (SpaceX) के बीच सहयोग के हिस्से के रूप में चार अंतरिक्ष यात्रियों को फ्लोरिडा (अमेरिका) से अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) में भेजा गया है। इस मिशन को ‘क्रू-2’ (Crew-2) नाम दिया गया है।

प्रमुख बिंदु:

‘वाणिज्यिक क्रू कार्यक्रम’ (CCP)

  • नासा द्वारा शुरू किया गया ‘वाणिज्यिक क्रू कार्यक्रम’ (CCP) नासा और निजी उद्योग के बीच अंतरिक्ष यात्रियों को ‘अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन’ (ISS) तक ले जाने और वहाँ से वापस लाने से संबंधित एक साझेदारी है।
  • पूर्ववर्ती मानवीय अंतरिक्ष यान कार्यक्रमों के विपरीत, इस कार्यक्रम के तहत नासा एक ग्राहक के तौर पर वाणिज्यिक प्रदाताओं से उड़ानें खरीदता है और इसके तहत एजेंसी के पास अंतरिक्ष यान का स्वामित्व या संचालन नहीं होता है।
  • यह कार्यक्रम नासा के लिये अंतरिक्ष यान की लागत को कम करने और अंतरिक्ष में मनुष्यों के लिये एक नया वाणिज्यिक बाज़ार स्थापित करने में सहायता कर रहा है।
  • इस तरह निजी कंपनियों को ‘लो-अर्थ ऑर्बिट’ के लिये चालक दल परिवहन सेवाएँ प्रदान करने हेतु प्रोत्साहित करके, नासा गहरे अंतरिक्ष अन्वेषण मिशनों के लिये अंतरिक्ष यान और रॉकेट बनाने पर ध्यान केंद्रित कर सकता है।
  • नासा ने सितंबर 2014 में अंतरिक्ष यात्रियों को अमेरिका से अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) तक ले जाने हेतु एक परिवहन प्रणाली विकसित करने के उद्देश्य से ‘बोइंग’ और ‘स्पेसएक्स’ कंपनियों के साथ समझौता किया था।

नोट:

स्पेसएक्स के साथ नासा की साझेदारी

  • मई 2020 में नासा की स्पेसएक्स डेमो-2 परीक्षण उड़ान दो अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर ‘अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन’ (ISS) के लिये रवाना हुई थी।
    • इस उड़ान का उद्देश्य इस तथ्य का परीक्षण करना था कि क्या स्पेसएक्स द्वारा निर्मित कैप्सूल का उपयोग नियमित रूप से अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस स्टेशन तक ले जाने और वहाँ से लाने के लिये किया जा सकता है या नहीं। 
  • ‘डेमो-2’ परीक्षण के पश्चात् नवंबर 2020 में ‘क्रू-1’ का आयोजन किया गया, जो कि नासा और स्पेसएक्स के बीच छ: ‘क्रू’ मिशनों में से पहला था। ये मिशन अंतरिक्ष यात्रा के लिये एक नए युग की शुरुआत करेंगे।
  • ‘क्रू-1’, ‘अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन’ के लिये एक ‘फाल्कन-9’ रॉकेट पर ‘स्पेसएक्स क्रू ड्रैगन’ अंतरिक्ष यान की पहली परिचालन उड़ान थी।
  • ‘क्रू-1’ टीम के सदस्य ‘एक्सपीडिशन-64’ के सदस्यों में शामिल हो गए और उन्होंने स्पेस स्टेशन में माइक्रोग्रैविटी का अध्ययन किया।

‘क्रू-2’ मिशन

  • यह ‘स्पेसएक्स क्रू ड्रैगन’ का दूसरा क्रू रोटेशन मिशन और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के साथ पहला मिशन है।
  • कुल चार अंतरिक्ष यात्रियों में से दो नासा से हैं, जबकि दो यात्री ‘जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी’ (JAXA) और ‘यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी’ (ESA) से हैं।
  • ‘क्रू-2’ मिशन में शामिल अंतरिक्ष यात्री, ‘एक्सपीडिशन-65’ (इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में 65वाँ दीर्घावधि अभियान) के सदस्यों में शामिल हो जाएंगे।
    • सभी सदस्य कुल छ: माह तक स्पेस स्टेशन में रहेंगे, जिस दौरान वे ‘लो-अर्थ ऑर्बिट’ में वैज्ञानिक परीक्षण करेंगे।
  • इस दौरान अंतरिक्ष यात्रियों का प्राथमिक उद्देश्य ‘टिश्यू चिप्स’ अध्ययन शृंखला को जारी रखना होगा।

टिश्यू चिप्स

  • ‘टिश्यू चिप्स’ मानव अंगों के छोटे मॉडल होते हैं, जिनमें कई प्रकार की कोशिकाएँ शामिल होती हैं, जो मानव शरीर में समान व्यवहार करती हैं।
  • नासा के मुताबिक, ये ‘टिश्यू चिप्स’ संभावित रूप से सुरक्षित और प्रभावी दवाओं और टीकों की पहचान करने की प्रक्रिया को तेज़ कर सकते हैं।
  • वैज्ञानिक अंतरिक्ष में इन ‘टिश्यू चिप्स’ का उपयोग उन रोगों का अध्ययन करने के लिये कर सकते हैं, जो विशिष्ट मानव अंगों को प्रभावित करते हैं और जिन मानव अंगों को पृथ्वी पर विकसित होने में महीने अथवा वर्षभर से भी अधिक समय लग सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS)

  • यह एक रहने योग्य कृत्रिम उपग्रह है, जिसे ‘लो-अर्थ ऑर्बिट’ में मानव निर्मित सबसे बड़ा ढाँचा माना जाता है। इसका पहला हिस्सा वर्ष 1998 में ‘लो-अर्थ ऑर्बिट’ में लॉन्च किया गया था।
  • यह लगभग 92 मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर लगाता है और प्रतिदिन पृथ्वी की 15.5 परिक्रमाएँ पूरी करता है।
  • ‘अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन’ कार्यक्रम पाँच प्रतिभागी अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच एक संयुक्त परियोजना है: नासा (अमेरिका), रॉसकॉसमॉस (रूस), जाक्सा (जापान), ESA (यूरोप) और CSA (कनाडा)। हालाँकि इसके स्वामित्व और उपयोग को अंतर-सरकारी संधियों और समझौतों के माध्यम से शासित किया जाता है।
  • यह एक माइक्रोग्रैविटी और अंतरिक्ष पर्यावरण अनुसंधान प्रयोगशाला के रूप में कार्य करता है जिसमें चालक दल के सदस्य जीव विज्ञान, मानव जीव विज्ञान, भौतिकी, खगोल विज्ञान, मौसम विज्ञान और अन्य विषयों से संबंधित प्रयोग करते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) के कारण ही ‘लो-अर्थ ऑर्बिट’ में निरंतर मानवीय उपस्थिति संभव हो पाई है।
  • इसके वर्ष 2030 तक संचालित रहने की उम्मीद है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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