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जैव विविधता और पर्यावरण

नदियों के किनारे बसे शहरों के लिये संरक्षण योजनाएँ

  • 12 Jul 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये

स्वच्छ गंगा राष्ट्रीय मिशन, राष्ट्रीय गंगा परिषद, नमामि गंगे कार्यक्रम

मेन्स के लिये

नदियों के किनारे बसे शहरों के लिये संरक्षण योजनाएँ

चर्चा में क्यों?

‘स्वच्छ गंगा राष्ट्रीय मिशन’ (NMCG) के एक नीति दस्तावेज़ में प्रस्ताव दिया गया है कि नदी तट पर स्थित शहरों को अपना मास्टर प्लान तैयार करते समय नदी संरक्षण योजनाओं को शामिल करना चाहिये।

  • यह प्रस्ताव वर्तमान में उन शहरों के लिये है जो गंगा नदी की मुख्य धारा पर मौजूद हैं, इसमें मुख्यतः पाँच राज्यों- उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के शहर शामिल हैं।
  • ‘स्वच्छ गंगा राष्ट्रीय मिशन’ राष्ट्रीय गंगा परिषद का कार्यान्वयन विंग है (इसने ‘राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण’ को प्रतिस्थापित किया था)। यह अपने राज्य समकक्ष संगठनों के साथ ‘नमामि गंगे कार्यक्रम’ को लागू करता है।

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प्रमुख बिंदु

नीतिगत दस्तावेज़ का प्रस्ताव

  • इस दस्तावेज़ में नदी-संवेदनशील योजनाओं की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है, जो कि व्यावहारिक होनी चाहिये (जैसा कि राष्ट्रीय जल नीति में परिकल्पित है)।
  • अतिक्रमण को हटाने के लिये एक उचित पुनर्वास रणनीति के साथ वैकल्पिक आजीविका विकल्पों पर ज़ोर देते हुए व्यवस्थित पुनर्वास योजना विकसित की जानी चाहिये।
  • सहानुभूतिपूर्ण और मानवीय समाधान विकसित करने हेतु नीति-निर्माताओं को हितधारकों (अतिक्रमणकर्त्ता और भूमि मालिकों) को शामिल करने का हरसंभव प्रयास करना चाहिये।
  • योजना को भूमि के स्वामित्व संबंधी पहलुओं पर भी स्पष्टता प्रदान करनी चाहिये। योजना के क्रियान्वयन के दौरान कानूनी जटिलताओं से बचने के लिये इन क्षेत्रों में भूमि के स्वामित्व का पता लगाना महत्त्वपूर्ण है।
  • नदी और नदी संसाधनों के संरक्षण के प्रमुख पहलुओं के रूप में नदी के आसपास के क्षेत्र में हरित बफर ज़ोन के निर्माण, कंक्रीट संरचनाओं को हटाना और ग्रीन अवसंरचना’ को नियोजित करना शामिल किया जा सकता है।

महत्त्व

  • नदी प्रबंधन के लिये अत्याधुनिक तकनीकों के उपयोग को सुविधाजनक बनाने हेतु मास्टर प्लान के तहत तकनीकी पारिस्थितिक तंत्र विकसित किया जा सकता है।
    • इनमें पानी की गुणवत्ता की सैटेलाइट-आधारित निगरानी; नदी के किनारे जैव विविधता मानचित्रण के लिये ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ का उपयोग; नदी-स्वास्थ्य निगरानी के लिये ‘बिग डेटा’ का उपयोग; बाढ़ के मैदानों की मैपिंग हेतु ‘मानव रहित विमान’ (UAV) आदि शामिल हो सकते हैं।
  • आने वाले वर्षों में प्रौद्योगिकियों की प्रकृति और प्रकार के अधिक परिष्कृत और प्रभावी होने की उम्मीद है। इस प्रकार शहर इन्हें पूर्णतः अपनाने के लिये तैयार होंगे। 

राष्ट्रीय जल नीति, 2012 की मुख्य विशेषताएँ:

  • एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन: इसने एक एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन दृष्टिकोण की अवधारणा को निर्धारित किया जिसने जल संसाधनों की योजना, विकास और प्रबंधन के लिये नदी बेसिन/उप-बेसिन को एक इकाई के रूप में लिया।
    • एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM) एक ऐसी प्रक्रिया है जो महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र की स्थिरता से समझौता किये बिना एक समान तरीके से अधिकतम आर्थिक और सामाजिक कल्याण के लिये जल, भूमि तथा संबंधित संसाधनों के समन्वित विकास एवं प्रबंधन को बढ़ावा देती है।
  • न्यूनतम जल प्रवाह: पारिस्थितिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये नदी के एक हिस्से के न्यूनतम प्रवाह को बनाए रखना।
    • वर्ष 2018 में इस तरह के दृष्टिकोण ने सरकार को पूरे वर्ष गंगा में न्यूनतम जल स्तर बनाए रखने की आवश्यकता का नेतृत्व किया।
    • नागरिकों को आवश्यक स्वास्थ्य और स्वच्छता बनाए रखने के लिये न्यूनतम मात्रा में पीने योग्य पानी उपलब्ध कराने पर भी ज़ोर दिया गया।
  • अंतर बेसिन स्थानांतरण: बुनियादी मानवीय ज़रूरतों को पूरा करने और समानता तथा सामाजिक न्याय प्राप्त करने के लिये पर्यावरणीय, आर्थिक एवं सामाजिक प्रभावों का मूल्यांकन करने के बाद प्रत्येक अंतर बेसिन स्थानांतरण मामले पर विचार करने की आवश्यकता है।
  • अन्य कारणों जैसे- हिमालय में स्प्रिंग सेट (spring set) का कम होना, पानी की सब्सिडी का बजट और पुनर्गठन, सिंचाई आदि में पानी के उपयोग को प्राथमिकता देने की मांग की।

स्रोत: द हिंदू

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