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शासन व्यवस्था

भारत में टीकाकरण अभियान

  • 09 Sep 2020
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, एक्सपेंडेड प्रोग्राम ऑफ इम्यूनाइज़ेशन, यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम

मेन्स के लिये

टीकाकरण कार्यक्रमों का महत्त्व और उनकी आवश्यकता, भारत में टीकाकरण कार्यक्रमों का इतिहास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistics Office-NSO) द्वारा प्रकाशित ‘हेल्थ इन इंडिया’ रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पाँच में से दो बच्चे अपना टीकाकरण कार्यक्रम पूरा नहीं करते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट के अनुसार, अपना टीकाकरण अभियान पूरा न करने वाले अधिकांश बच्चे खसरे के विरुद्ध और आंशिक रूप से अन्य बीमारियों के विरुद्ध असुरक्षित हैं।
  • देश की राजधानी में आधे से भी कम बच्चों को सभी आठ आवश्यक टीके दिये गए हैं, हालाँकि  भारत में लगभग सभी बच्चों को तपेदिक और पोलियो का टीका प्राप्त हो रहा है।
  • देश में पाँच वर्ष से कम आयु के केवल 59.2 प्रतिशत बच्चे ही पूरी तरह से प्रतिरक्षित हैं, यह आँकड़ा केंद्र सरकार के स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली के पोर्टल पर उपलब्ध डेटा से बिल्कुल अलग स्थिति प्रदर्शित करता है, जिसमें दावा किया गया है कि वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिये पूर्ण टीकाकरण कवरेज 86.7 प्रतिशत था।

पूर्ण टीकाकरण का अर्थ

  • पूर्ण टीकाकरण का मतलब है कि एक बच्चा अपने जीवन के पहले वर्ष में कुल आठ टीकों की खुराक का एक समूह प्राप्त करे, इस समूह में शामिल हैं-
    • जन्म के कुछ समय बाद ही एकल खुराक के रूप में तपेदिक का बीसीजी टीका,
    • पोलियो टीका जिसकी पहली खुराक जन्म के समय दी जाती है,
    • चार सप्ताह के अंतराल पर दो और पोलियो टीके,
    • डिफ्थीरिया (Diphtheria), काली-खाँसी (Pertussis) और टेटनस (Tetanus) को रोकने के लिये टीके की तीन खुराकें
    • खसरे के टीके की एक खुराक

  • रिपोर्ट के अनुसार, देश भर में लगभग 97 प्रतिशत बच्चों को कम-से-कम एक टीका की खुराक प्राप्त हुई, जिसमें अधिकतर तपेदिक का बीसीजी टीका या जन्म के समय पोलियो का पहला टीका होता है, वहीं केवल 67 प्रतिशत बच्चों को ही खसरे का टीका प्राप्त होता है। 
    • केवल 58 प्रतिशत लोगों को ही पोलियो के टीके की दो अन्य खुराकें और मात्र 54 प्रतिशत को डिफ्थीरिया (Diphtheria), काली-खाँसी (Pertussis) और टेटनस (Tetanus) से बचने के लिये टीके की खुराक प्राप्त होती है।
  • राज्यों में, मणिपुर (75 प्रतिशत), आंध्रप्रदेश (73.6 प्रतिशत) और मिज़ोरम (73.4 प्रतिशत) ने पूर्ण टीकाकरण के मामले में शीर्ष स्थान प्राप्त किया है।
  • पूर्ण टीकाकरण के मामले में नगालैंड का प्रदर्शन सबसे खराब रहा, जहाँ केवल 12 प्रतिशत बच्चों को ही सभी टीकों की खुराक प्राप्त हुईं।
  • ग्रामीण भारत में करीब 95 प्रतिशत नागरिक भारत में लगभग 86 प्रतिशत बच्चों का टीकाकरण सरकार/सार्वजनिक अस्पताल में हुआ है। 

टीकाकरण का महत्त्व

  • टीकाकरण को उन सबसे अच्छे तरीकों में से एक के रूप में जाना जाता है जिससे हम आम लोगों, बच्चों और आने वाली पीढ़ियों को संक्रामक रोगों से बचाया जा सकता हैं।
  • टीकाकरण अभियानों को सही ढंग से कार्यान्वित करने से उन सभी बीमारियों समाप्त करने में मदद मिल सकती है, जो वर्तमान में प्रसारित है अथवा भविष्य में फैल सकती है।
  • टीकाकरण न केवल बच्चों को पोलियो और टेटनस जैसी घातक बीमारियों से बचाता है, बल्कि इसके माध्यम से खतरनाक बीमारियों को समाप्त कर अन्य बच्चों को भी इन बिमारियों से सुरक्षित रखता है।

भारत में टीकाकरण कार्यक्रम

  • भारत में टीकाकरण कार्यक्रम सर्वप्रथम वर्ष 1978 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा ‘एक्सपेंडेड प्रोग्राम ऑफ इम्यूनाइज़ेशन’ (Expanded Programme of Immunization-EPI) के रूप में पेश किया गया था।
  • वर्ष 1985 में इस कार्यक्रम का नाम बदलकर यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम (Universal Immunization Programme) कर दिया गया। इस कार्यक्रम के घोषित उद्देश्यों में शामिल है-
    • टीकाकरण कवरेज को तेज़ी से बढ़ाना। 
    • सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करना। 
    • प्रदर्शन की निगरानी के लिये एक ज़िलेवार प्रणाली का निर्माण,
    • वैक्सीन के निर्माण में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना। 
  • भारत का यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम (UPI) सबसे बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में से एक है, जो कि प्रति वर्ष 2.67 करोड़ नवजात शिशुओं और 2.9 करोड़ गर्भवती महिलाओं को लक्षित करता है।
  • पूर्व टीकाकरण के कवरेज को 90 प्रतिशत तक बढाने के लिये मिशन इंद्रधनुष (Mission Indradhanush) को लागू किया गया।

स्रोत: द हिंदू

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