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सामाजिक न्याय

प्रवासी श्रमिक: चुनौती और संभावना

  • 29 May 2020
  • 10 min read

प्रीलिम्स के लिये

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, प्रवासी श्रमिक

मेन्स के लिये

भारत में प्रवासी श्रमिकों की स्थिति, प्रवासी श्रमिकों से संबंधित चुनौतियाँ, प्रवासियों श्रमिकों से संबंधित कानूनी प्रावधान

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission-NHRC) ने गृह मंत्रालय समेत रेलवे बोर्ड और बिहार तथा गुजरात सरकार को ‘श्रमिक स्पेशल ट्रेनों’ में यात्रा कर रहे कुछ प्रवासी श्रमिकों की कथित मौत और भोजन तथा पानी के अनुचित प्रबंधन को लेकर नोटिस जारी किया है।

प्रमुख बिंदु

  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपने नोटिस में ‘श्रमिक स्पेशल ट्रेनों’ के देर से शुरू होने के साथ-साथ उनके अपने गंतव्य स्थान तक कई दिनों में पहुँचने जैसी बातों का उल्लेख किया है। 
  • NHRC ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि कई रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि प्रवासी मज़दूर लंबी अवधि और पीने के पानी तथा भोजन की व्यवस्था के अभाव में अपनी यात्रा के दौरान अपनी जान गंवा रहे हैं।
  • उल्लेखनीय है कि बीते कुछ दिनों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनसे ‘श्रमिक स्पेशल ट्रेनों’ की छवि धूमिल हुई है। उदाहरण के लिये देश के कई क्षेत्रों में कथित तौर पर भूख के कारण ‘श्रमिक स्पेशल ट्रेनों’ में लोगों की मौत की खबरें सामने आए हैं।
    • एक अन्य घटना में एक ‘श्रमिक स्पेशल ट्रेन’ को अपने गंतव्य स्थान तक पहुँचने के लिये 9 दिनों का समय लगा।
  • मानवाधिकार आयोग का मानना है कि यदि इस प्रकार की घटनाएँ सत्य हैं तो इनसे देश के भीतर काफी व्यापक स्तर पर श्रमिकों के मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।

श्रमिक स्पेशल ट्रेन

  • केंद्र सरकार ने COVID-19 महामारी के मद्देनज़र लागू किये गए देशव्यापी लॉकडाउन को देखते हुए 1 मई (मज़दूर दिवस) को देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे श्रमिकों को अपने गृह राज्यों तक वापस पहुँचाने के लिये ‘श्रमिक स्पेशल ट्रेनों की शुरुआत की थी।
  • इस प्रकार की पहली विशेष ट्रेन हैदराबाद से हटिया, झारखंड के लिये रवाना की गई थी। 
  • रेल मंत्रालय के अनुसार, 28 मई, 2020 तक देश भर के विभिन्न राज्यों से 3736 ‘श्रमिक स्पेशल’ ट्रेनें चलाई गई हैं और इन विशेष ट्रेनों के माध्यम से अब तक 50 लाख से अधिक लोगों को उनके गृह राज्य तक पहुँचाया गया है।

प्रवासी श्रमिक- एक बार पुनः चर्चा में 

  • कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण लागू किये गए देशव्यापी लॉकडाउन ने बीते कुछ दिनों में भारत के उस वर्ग विशिष्ट को एक बार पुनः चर्चा में ला दिया है, जो कार्य और आजीविका की तलाश में अपने गृह राज्य से बाहर रहते हैं।
  • हालाँकि देश में अंतर-राज्य प्रवासियों (Inter-State Migrants) का कोई आधिकारिक आँकड़ा नहीं है, किंतु वर्ष 2011 की जनगणना, NSSO के सर्वेक्षण और आर्थिक सर्वेक्षण पर आधारित अनुमान के अनुसार, देश में कुल 65 मिलियन अंतर-राज्य प्रवासी हैं, जिसमें से 33 प्रतिशत प्रवासी श्रमिक हैं।
  • सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (CSDS) और अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी द्वारा संयुक्त रूप से वर्ष 2019 में किये गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत के बड़े शहरों में 29 प्रतिशत आबादी दैनिक वेतनभोगी है।
    • यह उन्ही लोगों की संख्या है जो अपने गृह राज्य वापस जाना चाहते हैं, क्योंकि दैनिक वेतनभोगी होने के कारण मौजूदा लॉकडाउन के कारण इनकी आजीविका के सभी साधन बंद हो गए हैं और ऐसे में इन लोगों के लिये बड़े शहरों में रहना और अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है।
  • अनुमान के अनुसार, उत्तर प्रदेश और बिहार में देश के कुल अंतर-राज्य प्रवासियों का क्रमशः 25 प्रतिशत और 14 प्रतिशत हिस्सा है, इसके बाद राजस्थान (6 प्रतिशत) और मध्य प्रदेश (5 प्रतिशत) का स्थान है। इसका अर्थ है कि तकरीबन 4-6 मिलियन लोग उत्तर प्रदेश में और 1.8-2.8 मिलियन बिहार में वापस लौटेंगे। 

प्रवासियों की आजीविका

  • वर्ष 2017 से वर्ष 2019 के मध्य CSDS द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, 22 प्रतिशत प्रवासियों की मासिक घरेलू आय 2,000 रुपए है।
  • वहीं 32 प्रतिशत प्रवासियों की आय 2,000 रुपए से 5,000 रुपए के मध्य, 25 प्रतिशत प्रवासियों की आय 5000 रुपए से 10000 रुपए के मध्य, 13 प्रतिशत प्रवासियों की आय 10000 रुपए से 20000 रुपए के मध्य और केवल 8 प्रतिशत प्रवासियों की आय 20000 से अधिक है।

अर्थव्यवस्था में प्रवासी श्रमिकों की भूमिका

  • भारत में रह रहे लाखों प्रवासी कामगार हैं जो मुख्य रूप से निर्माण उद्योग, घरेलू सहायक और सड़क विक्रेताओं (Street Vendors) के रूप में कार्य करते हैं। अनुमान के अनुसार, तकरीबन एक तिहाई प्रवासी निर्माण क्षेत्र में कार्यरत हैं। 
  • अधिकांश प्रवासी श्रमिक निर्माण क्षेत्र, ईंट निर्माण उद्योग, खनन और उत्खनन उद्योग, होटल तथा रेस्तरां आदि में कार्यरत हैं।
  • विदित हो कि ये सभी क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के अभिन्न अंग हैं, और देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में उल्लेखनीय योगदान देते हैं।
  • देश में अधिकांश प्रवासी श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं, जिसके कारण इनके संबंध में किसी भी प्रकार के आधिकारिक आँकड़े का अभाव है।

प्रवासी मज़दूरों की समस्या

  • भारत जैसे विशाल देश में अभी तक प्रवासी समुदाय के आकार और महत्त्व को सही ढंग से पहचाना नहीं जा सका है। इस समुदाय के संबंध में आधिकारिक आँकड़े का अभाव इनके विकास में एक बड़ी बाधा के रूप में सामने आया है।
  • अधिकांश शहरी क्षेत्रों में प्रवासियों को पीने के पानी, बिजली, सुरक्षित घरों जैसी सुविधाओं के अभाव में प्रवासी मज़दूरों को छोटी और गंदी बस्तियों में रहना पड़ता है, जिसके कारण उनके लिये सोशल डिस्टेंसिंग जैसे सामाजिक मानकों का पालन करना काफी मुश्किल होता है।
  • दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में प्रवासी श्रमिकों की संख्या इतनी अधिक है कि उन्हें अपनी आवश्यकता के अनुसार कार्य ही नहीं मिल पाता है और यदि कार्य मिलता भी है तो काफी कम वेतन पर, जिससे वे शोषण के प्रति भी काफी संवेदनशील होते हैं।
  • रोज़गार की अस्थायी प्रकृति के कारण प्रवासी मज़दूरों को अक्सर अपराधी के रूप में देखा जाता है और सोशल मीडिया ने इस मानसिकता को और अधिक बढ़ावा दिया है।

आगे की राह

  • सर्वप्रथम आवश्यक है कि प्रवासियों को भी भारतीय समाज के एक विशिष्ट हिस्से के रूप में मान्यता दी जाए और नीति निर्माण के समय प्रवासियों के मुद्दों पर भी विचार किया जाए।
  • उन प्रतिबंधों को शिथिल किया जाना चाहिये जो प्रवासियों को उनके गंतव्य शहरों में राशन जैसे महत्त्वपूर्ण लाभ प्राप्त करने से रोकते हैं। 
  • प्रवासी मज़दूरों के लिये देश के हर राज्य में  मनरेगा, उज्ज्वला, सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसी योजनाओं को उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जानी चाहिये।

स्रोत: द हिंदू 

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