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नमामि गंगे मिशन के अंतर्गत उत्तराखंड में छह मेगा परियोजनाएँ

  • 29 Sep 2020
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये 

हाइब्रिड एन्युटी मॉडल 

मेन्स के लिये 

नमामि गंगे कार्यक्रम 

चर्चा में क्यों? 

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा आज सुबह 11 बजे ‘नमामि गंगे मिशन’ के अंतर्गत उत्तराखंड में छह मेगा परियोजनाओं का वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से उद्घाटन किया गया।

परियोजनाओं के बारे में

  • हरिद्वार के जगजीतपुर में 68 मिलियन लीटर प्रतिदिन (Millions of Liters Per Day-MLD) की क्षमता वाले ‘अपशिष्ट जल-शोधन संयत्र’ (Sewage Treatment plant-STP) का निर्माण और 27 MLD की क्षमता वाले एक अपशिष्ट जल-शोधन संयत्र का उन्नयन किया गया है। 
  • हरिद्वार के ही सराय में 12.99 करोड़ की लागत से निर्मित 18 MLD की क्षमता के  अपशिष्ट जल-शोधन संयत्र का उद्घाटन किया गया है।   

  •  चोरपानी में 5 MLD की क्षमता वाले एक  अपशिष्ट जल-शोधन संयत्र का निर्माण किया गया है।    
  • प्रधानमंत्री द्वारा बद्रीनाथ में 1 MLD तथा 0.01 MLD की क्षमता वाले दो अपशिष्ट जल-शोधन संयंत्रों का भी उद्धाटन किया गया है।
  • ऋषिकेश के लक्कड़घाट में 158 करोड़ रुपए की लागत से निर्मित 26 MLD की क्षमता वाले  अपशिष्ट जल-शोधन संयत्र का निर्माण किया गया है ।
  • चंद्रेश्वर नगर में मुनि की रेती कस्बे में 7.5 MLD की क्षमता वाले अपशिष्ट जल-शोधन संयत्र का निर्माण किया गया है, जो देश में पहला 4 मंजिला अपशिष्ट जल-शोधन संयंत्र है। यहाँ भूमि की सीमित उपलब्धता को एक अवसर के रूप में परिवर्तित किया गया है । अपशिष्ट जल-शोधन संयंत्र का निर्माण 900 वर्ग मीटर से कम क्षेत्र में किया गया है जो इतनी क्षमता वाले अपशिष्ट जल शोधन संयंत्र के निर्माण के लिये सामान्य रूप से आवश्यक क्षेत्र का केवल 30 प्रतिशत है।

नमामि गंगे परियोजना

  • गंगा नदी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्त्व होने के साथ-साथ देश की लगभग 40% जनसंख्या गंगा नदी पर आर्थिक रूप से निर्भर है। वर्ष 2014 में न्यूयॉर्क में मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए भारत के प्रधानमंत्री ने कहा था कि ‘गंगा की सफाई एक आर्थिक एजेंडा भी है’।
  • इसी दृष्टिकोण के साथ सरकार ने गंगा नदी के प्रदूषण निवारण और नदी को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से जून, 2014 में ‘नमामि गंगे’ नामक एक एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन का शुभारंभ किया। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नदी की सफाई के लिये बजट को चार गुना करते हुए वर्ष 2019-2020 तक नदी की सफाई पर 20,000 करोड़ रुपए खर्च करने की केंद्र की प्रस्तावित कार्य योजना को मंज़ूरी दे दी। 
  • गंगा नदी संरक्षण की बहु-क्षेत्रीय और बहु-आयामी चुनौतियों को देखते हुए इसमें कई हितधारकों की भूमिकाओं में वृद्धि, विभिन्न मंत्रालयों एवं केंद्र-राज्यों  के मध्य बेहतर समन्वय और कार्य योजना की तैयारी में सभी की भागीदारी सुनिश्चित करते हुए केंद्र एवं राज्य स्तर पर निगरानी तंत्र को बेहतर करने के प्रयास किये गए हैं।
  • प्रारंभिक स्तर की गतिविधियों के अंतर्गत नदी की ऊपरी सतह की सफाई से लेकर बहते हुए ठोस कचरे की समस्या को हल करना; ग्रामीण क्षेत्रों की नालियों में प्रवाहित अपशिष्ट  (ठोस एवं तरल) की समस्या को हल करना; शौचालयों के निर्माण करवाना; शवदाह गृह का आधुनिकीकरण करके आंशिक रूप से जले हुए शव को नदी में बहाने से रोकना; घाटों का निर्माण, मरम्मत और आधुनिकीकरण करना आदि सम्मिलित हैं।
  • मध्यम अवधि की गतिविधियों के अंतर्गत नदी में नगर निगम और उद्योगों से आने वाले अपशिष्ट की समस्या को हल करने पर ध्यान दिया जाएगा। नगर निगम से आने वाले कचरे की समस्या को हल करने के लिये आगामी 5 वर्षों में 2500 ML अपशिष्ट जल-शोधन की अतिरिक्त क्षमता सृजित किये जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। 
  • दीर्घावधि में इस कार्यक्रम को बेहतर और संपोषणीय (Sustainable) बनाने के लिये प्रमुख वित्तीय सुधार किये जा रहे हैं। परियोजना के कार्यान्वयन के लिये वर्तमान में हाइब्रिड एन्युटी मॉडल पर आधारित सार्वजानिक-निजी सहभागिता पर विचार किया जा रहा है। 
  • औद्योगिक प्रदूषण की समस्या के समाधान हेतु बेहतर अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये गंगा नदी के किनारे स्थित ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को गंदे पानी की मात्रा कम करने या इसे पूर्ण तरीके से समाप्त करने के निर्देश दिये गए हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board-CPCB) द्वारा इन निर्देशों के कार्यान्वयन के लिये कार्य-योजना तैयार की गई है। सभी उद्योगों को गंदे पानी के बहाव के लिये रियल टाइम ऑनलाइन निगरानी केंद्र स्थापित करना होगा।
  • नमामि गंगे कार्यक्रम में इन गतिविधियों के अलावा जैव विविधता संरक्षण, वनीकरण और पानी की गुणवत्ता की निगरानी के लिये भी कदम उठाए जा रहे हैं। पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण प्रजातियों, जैसे – गोल्डन महासीर, डॉल्फिन, घड़ियाल, कछुए, ऊदबिलाव आदि के संरक्षण के लिये कार्यक्रम पहले से ही प्रारंभ किये जा चुके हैं।
  • लंबी अवधि की गतिविधियों के अंतर्गत बेहतर जल उपयोग क्षमता और सतही सिंचाई की क्षमता को बेहतर करके नदी में जल का पर्याप्त प्रवाह सुनिश्चित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

हाइब्रिड एन्युटी मॉडल

(Hybrid Annuity Model-HAM)

  • HAM मॉडल EPC (Engineering, Procurement and Construction) एवं BOT (Build-Operate-Transfer) का एक मिश्रित रूप है। यह जोखिम का विवेकपूर्ण बंटवारा करने, वित्तपोषण संबंधी समस्याओं को हल करने एवं निजी क्षेत्र की क्षमता के पूर्ण उपयोग करने हेतु एक लचीला एवं उचित उपाय है।
  • HAM एक नए प्रकार का सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private partnership- PPP) मॉडल है।
  • इसके अंतर्गत सरकार कार्य आरंभ करने के लिये  डेवलपर (किसी भूखंड पर निर्माण कार्य में संलग्न व्यक्ति या संघ) को परियोजना लागत का 40 प्रतिशत उपलब्ध कराती है। शेष निवेश निजी डेवलपर को करना होता है। 

आगे की राह 

  • गंगा नदी के प्रदूषण निवारण और नदी को पुनर्जीवित करने का लक्ष्य इसके सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक महत्त्व के लिये इसका दोहन करने के कारण अत्यंत जटिल कार्य है। इस तरह के जटिल कार्यक्रम को सफलतापूर्वक कार्यान्वित करने के लिये समुदाय की भागीदारी आवश्यक है।
  • गंगा के पुनर्जीवन के लिये भारी मात्रा में निवेश की आवश्यकता है। सरकार द्वारा पहले ही बजट को चार गुना करने के पश्चात् भी आवश्यकताओं के हिसाब से यह पर्याप्त नहीं होगा।
  • सरकार नालियों से संबंधित आधारभूत संरचना का निर्माण कर रही है, लेकिन नागरिक कचरे और पानी के उपयोग को कम कर सकते हैं। उपयोग किये गए पानी, जैविक कचरे एवं प्लास्टिक के पुनर्चक्रण और इसके पुनः उपयोग से इस कार्यक्रम को बहुत लाभ हो सकता है।   

स्रोत: पीआईबी

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