भारतीय राजव्यवस्था
राइट टू बी फॉरगॉटन
प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 21, सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन मेन्स के लिये:राइट टू बी फॉरगॉटन से संबद्ध विभिन्न पहलू |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक रियलिटी शो के प्रतियोगी ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है जिसमें उसके "राइट टू बी फॉरगॉटन (RTBF)" का हवाला देते हुए अपने वीडियो, फोटो और लेख आदि को इंटरनेट से हटाने की मांग की गई है।
- याचिकाकर्त्ता द्वारा दायर याचिका में यह भी कहा गया कि "राइट टू बी फॉरगॉटन” "निजता के अधिकार" के अनुरूप है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का एक अभिन्न अंग है।
प्रमुख बिंदु
परिचय:
- राइट टू बी फॉरगॉटन (RTBF): यह इंटरनेट, सर्च , डेटाबेस, वेबसाइटों या किसी अन्य सार्वजनिक प्लेटफॉर्म से सार्वजनिक रूप से उपलब्ध व्यक्तिगत जानकारी को उस स्थिति में हटाने का अधिकार है जब यह व्यक्तिगत जानकारी आवश्यक या प्रासंगिक नहीं रह जाती है।
- उत्पत्ति: गूगल स्पेन मामले में यूरोपीय संघ के न्यायालय ("CJEU") के वर्ष 2014 के निर्णय के बाद RTBF प्रचलन में आया।
- RTBF को सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (General Data Protection Regulation- GDPR) के तहत यूरोपीय संघ में एक वैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है।
- यूनाइटेड किंगडम और यूरोप में कई न्यायालयों द्वारा इसे बरकरार रखा गया है।
- भारत में स्थिति: भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो विशेष रूप से भूल जाने के अधिकार का प्रावधान करता हो। हालाँकि निजी डेटा संरक्षण विधेयक (Personal Data Protection Bill) 2019 इस अधिकार को मान्यता देता है।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (Information Technology Act), 2000 कंप्यूटर सिस्टम से डेटा के संबंध में कुछ उल्लंघनों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।
- इसमें कंप्यूटर, कंप्यूटर सिस्टम और उसमें संग्रहीत डेटा के अनधिकृत उपयोग को रोकने के प्रावधान हैं।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (Information Technology Act), 2000 कंप्यूटर सिस्टम से डेटा के संबंध में कुछ उल्लंघनों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।
व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक और RTBF:
- दिसंबर, 2019 में व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक लोकसभा में पेश किया गया था। इसका उद्देश्य व्यक्तियों के व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के लिये प्रावधान करना है।
- "डेटा प्रिंसिपल के अधिकार" शीर्षक वाले इस मसौदा विधेयक के अध्याय V के खंड 20 में ‘राइट टू बी फॉरगॉटन’ का उल्लेख है।
- इसमें कहा गया है कि "डेटा प्रिंसिपल (जिस व्यक्ति से डेटा संबंधित है) को ‘डेटा फिड्यूशरी’ द्वारा अपने व्यक्तिगत डेटा के निरंतर प्रकटीकरण को प्रतिबंधित करने या रोकने का अधिकार होगा।"
- इसलिये मोटे तौर पर ‘राइट टू बी फॉरगॉटन’ के तहत उपयोगकर्त्ता डेटा न्यासियों द्वारा रखी गई अपनी व्यक्तिगत जानकारी के प्रकटीकरण को डी-लिंक कर सकते हैं, सीमित कर सकते हैं, हटा सकते हैं या सही कर सकते हैं।
- डेटा फिड्यूशरी का अर्थ है कोई भी व्यक्ति, जिसमें राज्य, कंपनी, कोई कानूनी संस्था या कोई भी व्यक्ति शामिल है, जो अकेले या दूसरों के साथ मिलकर व्यक्तिगत डेटा प्रसंस्करण के उद्देश्य और साधनों को निर्धारित करता है।
- डेटा सुरक्षा प्राधिकरण (DPA): यद्यपि व्यक्तिगत डेटा और जानकारी की संवेदनशीलता को संबंधित व्यक्ति द्वारा स्वतंत्र रूप से निर्धारित नहीं किया जा सकता है, लेकिन डेटा सुरक्षा प्राधिकरण (DPA) द्वारा इसकी निगरानी की जाएगी।
- इसका मतलब यह है कि ड्राफ्ट बिल कुछ प्रावधान करता है जिसके तहत एक डेटा प्रिंसिपल अपने डेटा को हटाने की मांग कर सकता है, उसके अधिकार DPA के लिये काम करने वाले एडज़ुडिकेटिंग ऑफिसर द्वारा प्राधिकरण के अधीन हैं।
- डेटा प्रिंसिपल के अनुरोध का आकलन करते समय इस अधिकारी को व्यक्तिगत डेटा की संवेदनशीलता, प्रकटीकरण के पैमाने, प्रतिबंधित होने की मांग की डिग्री, सार्वजनिक जीवन में डेटा प्रिंसिपल की भूमिका और कुछ अन्य के बीच प्रकटीकरण की प्रकृति की जाँच करने की आवश्यकता होगी।
निजता का अधिकार और ‘राइट टू बी फॉरगॉटन’:
- ‘राइट टू बी फॉरगॉटन’ किसी व्यक्ति के निजता के अधिकार के दायरे में आता है, जिसे प्रायः व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 द्वारा विनियमित किया जाता है।
- वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक पुट्टस्वामी मामले में अपने निर्माण में ‘निजता के अधिकार’ को मौलिक अधिकार घोषित किया था।
- न्यायलय ने अपने निर्माण में स्पष्ट किया था कि ‘निजता का अधिकार अनुच्छेद-21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के आंतरिक हिस्से के रूप में और संविधान के भाग-III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के एक हिस्से के रूप में संरक्षित है।’
चुनौतियाँ
- सार्वजनिक रिकॉर्ड के साथ टकराव: ‘राइट टू बी फॉरगॉटन’ अथवा भूल जाने का अधिकार सार्वजनिक रिकॉर्ड से जुड़े मामलों के विरुद्ध हो सकता है।
- उदाहरण के लिये न्यायालयों के निर्णयों को हमेशा सार्वजनिक रिकॉर्ड के रूप में माना जाता है और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा-74 के अनुसार इन्हें सार्वजनिक दस्तावेज़ की परिभाषा के अंतर्गत शामिल किया जाता है।
- आधिकारिक सार्वजनिक रिकॉर्ड, विशेष रूप से न्यायिक रिकॉर्ड को ‘राइट टू बी फॉरगॉटन’ के दायरे में शामिल नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह दीर्घकाल में न्यायिक प्रणाली में आम जनता के विश्वास को कमज़ोर करेगा।
- व्यक्ति बनाम समाज: ‘राइट टू बी फॉरगॉटन’ व्यक्तियों की निजता के अधिकार और समाज के सूचना के अधिकार तथा प्रेस की स्वतंत्रता के बीच दुविधा पैदा करता है।
आगे की राह
- गोपनीयता के अधिकार और व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा (अनुच्छेद-21) तथा इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं की सूचना की स्वतंत्रता (अनुच्छेद-19) के बीच संतुलन स्थापित किया जाना आवश्यक है।
- डेटा संरक्षण कानून के माध्यम से इन मुद्दों को संबोधित किया जाना आवश्यक है और दो मौलिक अधिकारों के बीच संघर्ष को कम किया जाना चाहिये जो भारतीय संविधान के स्वर्ण त्रिमूर्ति (अनुच्छेद-14,19 और 21) का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2019-20
प्रिलिम्स के लियेराष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण मेन्स के लियेबेरोज़गारी से निपटने के लिये सरकार द्वारा की गई पहलें |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने जुलाई 2019 और जून 2020 के बीच आयोजित ‘आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण’ (PLFS) पर तीसरी वार्षिक रिपोर्ट जारी की है।
- श्रम संकेतकों में पिछले दो वर्षों यानी वर्ष 2017-18 और वर्ष 2018-19 की तुलना में वर्ष 2019-20 में सुधार दर्ज किया गया है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय
- यह सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत ‘सांख्यिकीय सेवा अधिनियम 1980’ के तहत स्थापित सरकार की केंद्रीय सांख्यिकीय एजेंसी है।
- यह सरकार और अन्य उपयोगकर्त्ताओं की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये सांख्यिकीय सूचना सेवाएँ प्रदान करने हेतु उत्तरदायी है, जिसके आधार पर नीति-निर्माण, नियोजन, निगरानी और प्रबंधन संबंधी निर्णय लिये जा सकें।
- इसमें आधिकारिक सांख्यिकीय सूचना एकत्र करना, संकलित करना और प्रसारित करना शामिल है।
- NSO द्वारा संकलित अन्य रिपोर्ट और सूचकांक:
- औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP)
- उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI)
- सतत् विकास लक्ष्य राष्ट्रीय संकेतक रूपरेखा प्रगति रिपोर्ट
प्रमुख बिंदु
बेरोज़गारी दर:
- वित्तीय वर्ष 2019-20 में बेरोज़गारी दर गिरकर 4.8% तक पहुँच गई है, जबकि वर्ष 2018-19 में यह 5.8% और वर्ष 2017-18 में 6.1% पर थी।
कामगार जनसंख्या दर:
- इसमें वर्ष 2018-19 में 35.3% और वर्ष 2017-18 में 34.7% की तुलना में वर्ष 2019-20 में सुधार हुआ है तथा यह 38.2% पर पहुँच गई है।
श्रम बल भागीदारी अनुपात:
- वर्ष 2019-20 में यह पिछले दो वर्षों में क्रमशः 37.5% और 36.9% की तुलना में बढ़कर 40.1% हो गया है। अर्थव्यवस्था में ‘श्रम बल भागीदारी अनुपात’ जितना अधिक होता है यह अर्थव्यवस्था के लिये उतना ही बेहतर होता है।
लिंग आधारित बेरोज़गारी दर:
- आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि वर्ष 2019-20 में पुरुष और महिला दोनों के लिये बेरोज़गारी दर गिरकर क्रमशः 5.1% और 4.2% पर पहुँच गई है, जो कि वर्ष 2018-19 में क्रमशः 6% और 5.2% पर थी।
- वर्ष के दौरान ‘कामगार जनसंख्या दर’ और ‘श्रम बल भागीदारी अनुपात’ में भी तुलनात्मक रूप से सुधार हुआ है।
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS):
- परिचय:
- यह वर्ष 2017 में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा शुरू किया गया भारत का पहला कंप्यूटर-आधारित सर्वेक्षण है।
- इसका गठन अमिताभ कुंडू (Amitabh Kundu) की अध्यक्षता वाली एक समिति की सिफारिश के आधार पर किया गया है।
- यह अनिवार्य रूप से देश में रोज़गार की स्थिति का मानचित्रण के साथ -साथ कई चरणों पर डेटा एकत्र करता है जैसे- बेरोज़गारी का स्तर, रोज़गारी के प्रकार और संबंधित भागीदार, विभिन्न प्रकार की नौकरियों से अर्जित मज़दूरी, किये गए कार्य के घंटों की संख्या आदि।
- PLFS से पूर्व राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) - इसे पूर्व में NSO के नाम से जाना जाता था। यह अपने पंचवर्षीय (प्रत्येक 5 वर्ष) घरेलू सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण कार्यक्रम के आधार पर रोज़गार और बेरोज़गारी से संबंधित डेटा एकत्रित करता था।
- उद्देश्य:
- वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS) में केवल शहरी क्षेत्रों के लिये तीन माह के अल्पकालिक अंतराल पर प्रमुख रोज़गार और बेरोज़गारी संकेतकों (अर्थात् श्रमिक-जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर, बेरोज़गारी दर) का अनुमान लगाना।
- प्रतिवर्ष ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में सामान्य स्थिति तथा सीडब्ल्यूएस दोनों में रोज़गार एवं बेरोज़गारी संकेतकों का अनुमान लगाना।
बेरोज़गारी से निपटने के लिये सरकार द्वारा की गई पहलें:
- केंद्र सरकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था का समर्थन और रोज़गार सृजित करने के लिये आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत एक आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज प्रस्तुत किया है।
- पीएम स्वनिधि (Pradhan Mantri Street Vendor's Atma Nirbhar Nidhi- PM SVANidhi) के तहत केंद्र सरकार स्ट्रीट वेंडर्स को किफायती ऋण उपलब्ध करा रही है।
- वर्ष 2020 में सरकार ने प्रोत्साहन पैकेज के हिस्से के रूप में मनरेगा के लिये 40,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त निधि आवंटित की।
- सरकार सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिये क्रेडिट गारंटी की पेशकश कर रही है जो उन्हें आसानी से ऋण प्राप्त करने तथा उनके कामकाज को बढ़ावा देने में मदद करेगी।
- लघु उद्यम शुरू करने के लिये उद्यमियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु प्रधानमंत्री मुद्रा योजना।
- सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को समर्थन देने के लिये कई अन्य पहलें भी की गई हैं जिनमें कंपनी अधिनियम और दिवाला कार्यवाही में छूट, कृषि-विपणन में सुधार आदि शामिल हैं।
- सरकार ने मज़दूरी, भर्ती और रोज़गार की शर्तों में लिंग आधारित भेदभाव को कम करने के लिये नई श्रम संहिता 2019 जैसी पहल भी की है।
- राज्य सरकारें भी अपनी अर्थव्यवस्था को सहारा देने और नौकरियों में वृद्धि हेतु विभिन्न पहलों के साथ आगे आई हैं। उदाहरण के लिये:
- राज्य में MSME क्षेत्र का समर्थन करने के लिये आंध्र प्रदेश सरकार ने 'रीस्टार्ट' कार्यक्रम शुरू किया है।
- झारखंड ने ग्रामीण क्षेत्रों में श्रमिकों के लिये मज़दूरी व रोज़गार सृजित करने हेतु तीन रोज़गार योजनाएँ शुरू की हैं।
महत्त्वपूर्ण मामले
बेरोज़गारी दर (UR):
- बेरोज़गारी दर की गणना श्रम बल से बेरोज़गारों की संख्या को विभाजित करके की जाती है।
श्रम बल भागीदारी दर (LFPR):
- इसे आबादी में श्रम बल (अर्थात् जो या तो कार्य कर रहे हैं या काम की तलाश कर रहे हैं अथवा काम के लिये उपलब्ध हैं) के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है।
कामगार जनसंख्या अनुपात (WPR):
- WPR को कुल जनसंख्या में नियोजित व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है।
गतिविधि की स्थिति:
- किसी भी व्यक्ति के कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण निर्दिष्ट संदर्भ अवधि के दौरान उस व्यक्ति द्वारा किये गए कार्यों के आधार पर किया जाता है।
- सामान्य स्थिति: सर्वेक्षण की तारीख से ठीक पहले के 365 दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण किया जाता है तो इसे उस व्यक्ति के सामान्य कार्यकलाप की स्थिति के तौर पर जाना जाता है।
- वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS): सर्वेक्षण की तारीख से ठीक पहले के सात दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर कार्यकलाप की स्थिति का निर्धारण किया जाता है तो इसे उस व्यक्ति की वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS) के रूप में जाना जाता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
डिजिटल और सतत् व्यापार सुविधा पर संयुक्त राष्ट्र का सर्वेक्षण 2021
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक आयोग, विश्व व्यापार संगठन, यूरोपीय संघ मेन्स के लिये:डिजिटल और सतत् व्यापार सुविधा पर संयुक्त राष्ट्र के सर्वेक्षण का भारत के लिये महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ने एशिया-प्रशांत के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक आयोग (United Nations Economic and Social Commission for Asia Pacific's- UNESCAP) के डिजिटल एवं सतत् व्यापार सुविधा पर वैश्विक सर्वेक्षण (Survey on Digital and Sustainable Trade Facilitation) में 90.32 प्रतिशत अंक हासिल किये हैं।
- इसमें वर्ष 2019 के 78.49% अंकों की तुलना में उल्लेखनीय उछाल आया है।
प्रमुख बिंदु
सर्वेक्षण के विषय में:
- यह सर्वेक्षण प्रत्येक दो वर्ष में UNESCAP द्वारा आयोजित किया जाता है और इसमें विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization) के व्यापार सुविधा समझौते में शामिल 58 व्यापार सुविधा उपायों का आकलन करना शामिल है।
- 58 उपायों में इंटरनेट पर मौजूदा आयात-निर्यात नियमों का प्रकाशन, जोखिम प्रबंधन, टैरिफ वर्गीकरण पर अग्रिम निर्णय, आगमन पूर्व प्रसंस्करण, स्वतंत्र अपील तंत्र, शीघ्र शिपमेंट, स्वचालित सीमा शुल्क प्रणाली आदि शामिल हैं।
- किसी देश का उच्च स्कोर कारोबारियों को निवेश संबंधी निर्णय लेने में भी मदद करता है।
- संयुक्त राष्ट्र क्षेत्रीय आयोग (UN Regional Commission) संयुक्त रूप से डिजिटल और सतत् व्यापार सुविधा पर संयुक्त राष्ट्र वैश्विक सर्वेक्षण आयोजित करते हैं।
- सर्वेक्षण में वर्तमान में पूरे विश्व की 143 अर्थव्यवस्थाओं को शामिल किया गया है। एशिया प्रशांत के लिये यह UNESCAP द्वारा आयोजित किया जाता है।
भारत का आकलन:
- इस स्कोर ने सभी पाँच प्रमुख संकेतकों पर भारत में सुधार की ओर इशारा किया।
- पारदर्शिता: 2021 में 100% (2019 के 93.33% से)।
- औपचारिकताएँ: 2021 में 95.83% (2019 के 87.5% से)।
- संस्थागत समझौते और सहयोग: 2021 में 88.89% (2019 के 66.67% से)।
- पेपरलेस ट्रेड: 2021 में 96.3% (2019 के 81.48% से)।
- क्रॉस-बॉर्डर पेपरलेस ट्रेड: 2021 में 66.67% (2019 के 55.56% से)।
- अन्य देशों के साथ तुलना:
- दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम एशिया क्षेत्र (63.12%) और एशिया प्रशांत क्षेत्र (65.85%) की तुलना में भारत सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला देश है।
- भारत का समग्र स्कोर फ्राँस, यूके, कनाडा, नॉर्वे, फिनलैंड आदि सहित कई आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) देशों से भी अधिक है और समग्र स्कोर यूरोपीय संघ (EU) के औसत स्कोर से अधिक है।
- सुधार का कारण:
- CBIC सुधारों की एक शृंखला के माध्यम से व्यक्ति रहित, कागज़ रहित और संपर्क रहित सीमा शुल्क की शुरुआत करने के लिये ‘तुरंत कस्टम्स' (Turant Customs) की छत्रछाया में उल्लेखनीय सुधार करने में अग्रणी रहा है।
- कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान सीमा शुल्क ढांँचे के तहत कोविड से संबंधित आयातों जैसे- ऑक्सीजन से संबंधित उपकरण, जीवन रक्षक दवाएंँ, टीके आदि में तेजी लाने हेतु सभी प्रयास किये गए।
एशिया और प्रशांत के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक आयोग
- एशिया और प्रशांत के लिये संयुक्त राष्ट्र का आर्थिक एवं सामाजिक आयोग (Economic and Social Commission for Asia and the Pacific- ESCAP) एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिये संयुक्त राष्ट्र की एक क्षेत्रीय विकास शाखा है।
- यह 53 सदस्य देशों और 9 एसोसिएट सदस्यों से बना एक आयोग है। भारत भी इसका सदस्य है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1947 में की गई थी।
- इसका मुख्यालय थाईलैंड के बैंकॉक शहर में है।
- उद्देश्य: यह सदस्य राज्यों हेतु परिणामोन्मुखी परियोजनाओं के विकास, तकनीकी सहायता प्रदान करने और क्षमता निर्माण जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य करता है।
- हालिया रिपोर्ट: एशिया एवं प्रशांत का आर्थिक व सामाजिक सर्वेक्षण (Economic and Social Survey of Asia and the Pacific), 2021.
स्रोत: पी.आई.बी.
जैव विविधता और पर्यावरण
ऊर्जा एवं जलवायु पर G20 की बैठक
प्रिलिम्स के लियेG20, ग्रीनहाउस गैस, COP 26 , पेरिस समझौता मेन्स के लियेG20 की जलवायु बैठक की प्रमुख विशेषताएँ, शहरी जलवायु कार्रवाई के अंतर्गत भारत की पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में G20 की जलवायु बैठक में भारत ने 20 विकसित देशों (G20) के समूह से विश्व औसत से प्रति व्यक्ति ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन स्तर को कम करने की अपील की है जिसका उद्देश्य विकासशील देशों के लिये कुछ कार्बन स्पेस/रिक्तिकरण प्रदान करना है।
- इससे विकासशील देशों की विकासात्मक आकांक्षाओं को बढ़ावा और समर्थन मिलेगा।
- वर्तमान में इटली G20 की अध्यक्षता कर रहा है तथा जलवायु बैठक को नवंबर 2021 में स्कॉटलैंड के ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन' के COP 26 बैठक की प्रस्तावना के रूप में देखा जा रहा है।
जी-20 (G20)
- G-20 समूह विश्व बैंक एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का प्रतिनिधि, यूरोपियन संघ एवं 19 देशों का एक अनौपचारिक समूह है।
- G-20 समूह विश्व की प्रमुख उन्नत और उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों को एक साथ लाता है। यह वैश्विक व्यापार का 75%, वैश्विक निवेश का 85%, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 85% तथा विश्व की दो-तिहाई जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है।
- G-20 के सदस्य देशों में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, यूरोपियन यूनियन, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, कोरिया गणराज्य, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
- इसका कोई स्थायी सचिवालय या मुख्यालय नहीं है।
प्रमुख बिंदु
भारत का रुख:
- पेरिस समझौते को ध्यान में रखते हुए पूर्ण उत्सर्जन में तेज़ी से कटौती करने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया:
- संबंधित ऐतिहासिक ज़िम्मेदारियाँ।
- प्रति व्यक्ति उत्सर्जन को ध्यान में रखते हुए वादे के अनुरूप कम लागत वाली प्रौद्योगिकियों की सुपुर्दगी पर ज़ोर।
- प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में अंतर और सतत् विकास के अधूरे एजेंडे को ध्यान में रखना।
- भारत ने मध्य शताब्दी तक या उसके आसपास शुद्ध शून्य GHG उत्सर्जन या कार्बन तटस्थता हासिल करने के लिये कुछ देशों द्वारा की गई प्रतिज्ञाओं को अपनाया है।
- हालाँकि तेज़ी से घटते कार्बन स्पेस या रिक्तिकरण को देखते हुए यह पर्याप्त नहीं हो सकता है।
- विकासशील देशों की वृद्धि एवं विकास संबंधी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए भारत ने G20 देशों से वर्ष 2030 तक प्रति व्यक्ति उत्सर्जन को वैश्विक औसत पर लाने के लिये प्रतिबद्ध होने का आग्रह किया।
- कार्बन तटस्थता का अर्थ है कार्बन सिंक हेतु कार्बन उत्सर्जन और वातावरण से कार्बन को अवशोषित करने के बीच संतुलन होना।
- कार्बन रिक्तिकरण का आशय कार्बन (या CO2) की उस मात्रा से है जिसे वार्मिंग के स्तर या CO2 की अंतर्निहित सांद्रता को प्रभावित किये बिना वातावरण में उत्सर्जित किया जा सकता है।
- जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये साझा लेकिन विभेदित उत्तरदायित्व (CBDR) पर बल दिया गया।
- 2030 तक 450 गीगावाट क्षमता की नवीकरणीय ऊर्जा प्रणाली की स्थापना, जैव-ईंधन के क्षेत्र में उन्नत आकांक्षा, भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) और शहरी जलवायु से जुड़ी कार्रवाई के संबंध में भारत द्वारा की गई अन्य विभिन्न पहलों का उल्लेख किया गया।
समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्व (CBDR)
- ‘समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्व’ (CBDR) ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन’ (UNFCCC) के अंतर्गत एक सिद्धांत है।
- यह जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने में अलग-अलग देशों की विभिन्न क्षमताओं और अलग-अलग दायित्वों को स्वीकार करता है।
- ‘समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्व’ का सिद्धांत 'मानव जाति की साझी विरासत' की अवधारणा से विकसित हुआ है।
- यह सिद्धांत रियो डी जनेरियो, ब्राज़ील में आयोजित ‘अर्थ समिट (1992) में प्रतिष्ठापित किया गया था।
- CBDR उत्तरदायित्वों के दो तत्त्वों पर आधारित है:
- पहला- पर्यावरण संरक्षण और सतत् विकास की चिंताओं के संबोधन में सभी राज्यों का साझा एवं समान दायित्व।
- दूसरा: विभेदित उत्तरदायित्व, जो राज्यों को पर्यावरण संरक्षण के लिये उनकी राष्ट्रीय क्षमता और प्राथमिकता के अनुसार कार्य करने में सक्षम बनाता है।
- यह सिद्धांत वैश्विक पर्यावरणीय समस्याओं की स्थिति में विकसित और विकासशील राज्यों के योगदान में ऐतिहासिक अंतर और इन समस्याओं से निपटने के लिये उनकी संबंधित आर्थिक एवं तकनीकी क्षमता में अंतर को मान्यता प्रदान करता है।
शहरी जलवायु कार्रवाई के अंतर्गत भारत की पहलें:
- जलवायु स्मार्ट शहरों का आकलन ढाँचा: इस पहल का उद्देश्य भारत में शहरी नियोजन एवं विकास के लिये जलवायु-संवेदनशील दृष्टिकोण विकसित करना है।
- निवेश सहित उनके कार्यों की योजना और कार्यान्वयन करते समय जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने की दिशा में शहरों के लिये स्पष्ट रोडमैप प्रदान करना।
- नेशनल मिशन ऑन सस्टेनेबल हैबिटेट: यह जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (National Climate Change Action Plan) के अंतर्गत आठ मिशनों में से एक है। इसका उद्देश्य इमारतों में ऊर्जा दक्षता में सुधार, ठोस कचरे के प्रबंधन और सार्वजनिक परिवहन में बदलाव के माध्यम से शहरों को धारणीय बनाना है।
- क्लाइमेट प्रैक्टिशनर्स इंडिया नेटवर्क: यह क्लाइमेट सेंटर फॉर सिटीज़ (सी-क्यूब) द्वारा विकसित अपनी तरह का पहला नेटवर्क है, जो पूरे भारत में शहरों और प्रैक्टिशनर्स को सपोर्ट करता है।
- सी-क्यूब भारत के सभी शहरों में जलवायु प्रैक्टिशनर्स के लिये एक मंच बनाना चाहता है ताकि जलवायु क्रियाओं को लागू करने में सहयोग और योगदान दिया जा सके।
- शहरी वानिकी: भारत सरकार ने वर्ष 2020 में नगर वन योजना (Nagar Van Scheme) की शुरुआत की। इसका लक्ष्य अगले पाँच वर्षों में देश भर में 200 शहरी वन विकसित करना है।
- शहरी वानिकी को शहरी क्षेत्रों में वृक्षों के रोपण, रखरखाव, देखभाल और संरक्षण के रूप में परिभाषित किया गया है।
- भारत ने जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिये वैश्विक सहयोग का नेतृत्व किया:
आगे की राह
- विकास-जलवायु परिवर्तन की दुविधा का समाधान: वर्तमान दुविधा भारत जैसे विकासशील देश के विकास लक्ष्यों को पूरा करते हुए कार्बन को कम करने की है।
- इसलिये महत्त्वपूर्ण बात यह है कि नए निवेश कार्बनीकरण की दिशा में किये जाएँ लेकिन इसके लिये अन्य विकास उद्देश्यों के साथ संभावित तालमेल और ट्रेड-ऑफ को भी ध्यान में रखा जाना चाहिये।
- जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक सामूहिक कार्रवाई समस्या: वैश्विक समुदाय को गोलपोस्ट (Goalposts) को स्थानांतरित नहीं करना चाहिये और वैश्विक जलवायु महत्त्वाकांक्षा के लिये नए मानक स्थापित नहीं करने चाहिये।
- जलवायु परिवर्तन को वैश्विक सामूहिक कार्रवाई समस्या के रूप में मान्यता देने की आवश्यकता है और इसे 'संबंधित क्षमताओं व राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुसार' पूरा किया जाना चाहिये।
- आपदा से निपटने की तैयारी: आपदाओं को रोका नहीं जा सकता है लेकिन अच्छी तैयारी और मज़बूत जलवायु परिवर्तन शमन नीतियाँ निश्चित रूप से भारी मात्रा में नुकसान को रोकने में मदद कर सकती हैं।
- अभिसरण दृष्टिकोण: सतत् विकास समय पर की गई जलवायु कार्रवाई पर निर्भर करता है और ऐसा होने के लिये नीति निर्माण में कार्बन उत्सर्जन, वायुमंडलीय वार्मिंग, ग्लेशियरों के पिघलने, अत्यधिक बाढ़ व तूफान के संबंध में एक अभिसरण दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
सकल पर्यावरण उत्पाद (GEP)
प्रिलिम्स के लिये:सकल घरेलू उत्पाद, सकल पर्यावरण उत्पाद, कॉर्बेट और राजाजी टाइगर रिज़र्व मेन्स के लिये:सकल पर्यावरण उत्पाद की आवश्यकता एवं इसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तराखंड सरकार ने घोषणा की है कि वह अपने प्राकृतिक संसाधनों का मूल्यांकन 'सकल पर्यावरण उत्पाद' (Gross Environment Product’- GEP) के रूप में शुरू करेगी।
- “GEP का मतलब है प्राकृतिक संसाधनों में हुई वृद्धि के आधार पर समय-समय पर पर्यावरण की स्थिति का आकलन करना।”
- यह सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) के अनुरूप है। GDP उपभोक्ताओं की आर्थिक गतिविधियों का परिणाम है। यह निजी खपत, अर्थव्यवस्था में सकल निवेश, सरकारी निवेश, सरकारी खर्च और शुद्ध विदेशी व्यापार (निर्यात व आयात के बीच का अंतर) का योग है।
प्रमुख बिंदु:
GEP के बारे में:
- वैश्विक स्तर पर इसकी स्थापना वर्ष 1997 में रॉबर्ट कोस्टांज़ा जैसे पारिस्थितिक अर्थशास्त्रियों द्वारा की गई थी।
- यह पारिस्थितिक स्थिति को मापने हेतु एक मूल्यांकन प्रणाली है।
- इसे उन उत्पाद और सेवा मूल्यों के रूप में लिया जाता है जिसमें पारिस्थितिकी तंत्र मानव कल्याण और आर्थिक एवं सामाजिक सतत् विकास को बढ़ावा मिलता है, इसमें प्रावधान, विनियमन तथा सांस्कृतिक पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएंँ शामिल हैं। हैं।
- कुल मिलाकर GEP उत्पादों और सेवाओं को प्रदान करने में पारिस्थितिकी तंत्र के आर्थिक मूल्य हेतु ज़िम्मेदार है जो हरित जीडीपी के घटकों में से एक है।
- ग्रीन GDP किसी देश की मानक GDP के साथ-साथ पर्यावरणीय कारकों को ध्यान में रखते हुए आर्थिक विकास का एक संकेतक है। यह जैव विविधता के ह्रास और जलवायु परिवर्तन हेतु ज़िम्मेदार लागतों का कारक है।
- इस पहलू की ओर शिक्षाविदों का ध्यान आकर्षित करने के लिये वर्ष 1981 में "पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ" शब्द गढ़ा गया था, इसकी परिभाषा अभी भी विकास की प्रक्रिया में है।
- जिन पारिस्थितिक तंत्रों को मापा जा सकता है उनमें प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र जैसे- वन, घास के मैदान, आर्द्रभूमि, रेगिस्तान, मीठे पानी एवं महासागर और कृत्रिम प्रणालियाँ शामिल हैं जो प्राकृतिक प्रक्रियाओं जैसे कि कृषि भूमि, चरागाह, जलीय कृषि खेतों तथा शहरी हरी भूमि आदि पर आधारित हैं।
आवश्यकता:
- उत्तराखंड अपनी जैव विविधता के माध्यम से राष्ट्र को प्रतिवर्ष 95,112 करोड़ रुपए की सेवाएँ उपलब्ध कराता है।
- राज्य में 71 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र वनों के अधीन है।
- यहाँ हिमालय का भी विस्तार है और गंगा, यमुना तथा शारदा जैसी नदियों का उद्गम स्थल भी है, साथ ही कॉर्बेट एवं राजाजी टाइगर रिज़र्व जैसे वन्यजीव अभयारण्य भी यहाँ स्थित हैं।
- उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है जो बहुत सारी पर्यावरण सेवाएँ प्रदान करता है और निरंतरता के परिणामस्वरूप उन सेवाओं में प्राकृतिक गिरावट होती है।
महत्त्व:
- पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं का मूल्य वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद से लगभग दोगुना है। इसलिये यह पर्यावरण के संरक्षण में मदद करेगा और हमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाने में भी मदद करेगा।
मुद्दे:
- यह निर्णय एक स्वागत योग्य कदम प्रतीत होता है, लेकिन शब्दजाल के साथ आगे बढ़ना सरकार की मंशा पर गंभीर संदेह पैदा करता है। यह नीति निर्माताओं को भ्रमित कर सकता है और पिछले प्रयासों को नकार सकता है।
- GEP शुरू करने का उद्देश्य पारदर्शी नहीं है।
- क्या यह किसी राज्य की पारिस्थितिक संपदा के सरल मूल्यांकन की प्रक्रिया है, या यह आकलन करने के लिये कि यह सकल घरेलू उत्पाद के किस हिस्से में योगदान देता है।
- क्या यह राज्य द्वारा देश के बाकी हिस्सों को प्रदान की जाने वाली पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं और/या अपने स्वयं के निवासियों को लाभ प्रदान करने की प्रक्रिया के खिलाफ केंद्र से बजट का दावा करने का प्रयास है।
आगे की राह
- पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की एक अच्छी तरह से परिभाषित अवधारणा को पेश करने के बजाय, बिना किसी स्पष्टता के एक नया शब्द तैयार करना सरकार की मंशा पर गंभीर संदेह को आमंत्रित करता है।
- इसलिये यह महत्त्वपूर्ण है कि राज्य को स्थिर एवं पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, जिसकी वैश्विक स्वीकृति और एक मज़बूत ज्ञान आधार हो।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
एक्सोप्लैनेट के आसपास ‘मून- फॉर्मिंग’ क्षेत्र
प्रिलिम्स के लिये:एक्सोप्लैनेट, सौरमंडल, PDS 70, ‘मून- फॉर्मिंग’ क्षेत्र मेन्स के लिये:अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में PDS 70 की खोज का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वैज्ञानिकों ने पहली बार हमारे सौरमंडल (एक्सोप्लैनेट) से परे एक ग्रह के चारों ओर एक ‘मून- फॉर्मिंग’ क्षेत्र देखा है।
एक्सोप्लैनेट:
- एक एक्सोप्लैनेट या एक्स्ट्रासोलर ग्रह सौरमंडल के बाहर स्थित एक ग्रह है। एक्सोप्लैनेट का पता लगाने की पुष्टि पहली बार वर्ष 1992 में हुई थी। अब तक 4,400 से अधिक एक्सोप्लैनेट की खोज की जा चुकी है।
- एक्सोप्लैनेट को सीधे दूरबीन से देखना बहुत कठिन है। वे उन सितारों की अत्यधिक चमक से छिपे हुए हैं जिनकी वे परिक्रमा करते हैं। इसलिये खगोलविद एक्सोप्लैनेट का पता लगाने और उनका अध्ययन करने के लिये अन्य तरीकों का उपयोग करते हैं जैसे कि ग्रहों के उन सितारों पर पड़ने वाले प्रभावों को देखना जिनकी वे परिक्रमा करते हैं।
प्रमुख बिंदु:
परीक्षण एवं निष्कर्ष:
- वैज्ञानिकों ने PDS 70 नामक एक ‘यंग स्टार’ की परिक्रमा करते हुए लगभग दो एक्सोप्लैनेट के आस-पास घूमने वाली एक डिस्क का पता लगाया।
- PDS 70 पृथ्वी की अपेक्षा करीब 370 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है।
- एक प्रकाश वर्ष वह दूरी होती है जिस प्रकाश एक वर्ष में तय करता है (लगभग 9.5 ट्रिलियन किमी.)।
- इसे एक परिग्रहीय डिस्क कहा जाता है और इन्हीं से चंद्रमाओं का जन्म होता है। PDS 70c (द एक्सोप्लैनेट) के चारों ओर की डिस्क, जिसका व्यास पृथ्वी से सूर्य की दूरी के बराबर है, में पृथ्वी के चंद्रमा के आकार के तीन चंद्रमाओं का निर्माण करने के लिये पर्याप्त द्रव्यमान मौजूद है।
- PDS 70c हमारे सौरमंडल के नेपच्यून ग्रह के समान सूर्य से पृथ्वी की 33 गुना दूरी पर अपने तारे की परिक्रमा करता है।
- नारंगी रंग का यह तारा PDS 70, लगभग हमारे सूर्य के द्रव्यमान के समान एवं लगभग 5 मिलियन वर्ष पुराना है। दोनों ग्रह और भी छोटे हैं। दोनों ग्रह एक गैस के विशालकाय बृहस्पति के समान (हालाँकि बड़े) हैं।
- दोनों ग्रह अभी अपनी युवावस्था में हैं और एक गतिशील अवस्था में हैं जिसमें वे अभी भी अपने वायुमंडल को प्राप्त कर रहे हैं।
प्रयुक्त उपकरण:
- इस दौरान चिली के अटाकामा रेगिस्तान में ‘अटाकामा लार्ज मिलीमीटर ऐरे (ALMA) वेधशाला का प्रयोग किया गया। यह पृथ्वी पर बनी अब तक की सबसे जटिल खगोलीय वेधशाला है।
- उत्तरी अमेरिका, पूर्वी एशिया और यूरोप के वैज्ञानिकों के समूहों ने इस सफल वैज्ञानिक उपकरण को विकसित करने हेतु संयुक्त तौर पर कार्य किया।
- यह खगोलीय वेधशाला दो आकारों के 66 उच्च-सटीक डिश एंटेना का उपयोग करती है: उनमें से 54 डिश एंटेना 12 मीटर के हैं, जबकि 12 डिश एंटेना 7 मीटर के हैं।
अन्य चंद्रमा बनाने वाले क्षेत्र:
- अब तक कोई भी सर्कुलेटरी डिस्क नहीं मिली थी क्योंकि पीडीएस 70 की परिक्रमा करने वाले दो गैसीय ग्रहों को छोड़कर अन्य सभी ज्ञात एक्सोप्लैनेट पूर्णतः ‘परिपक्व’ और पूरी तरह से विकसित सौर प्रणालियों में हैं।
- इसके अलावा हमारे सौरमंडल में शनि के प्रभावशाली वलय, ऐसा ग्रह जिसके चारों ओर 80 से अधिक चंद्रमा परिक्रमा करते हैं, एक मौलिक चंद्रमा बनाने वाली डिस्क के अवशेष का प्रतिनिधित्व करते हैं।
ग्रह और चंद्रमा का निर्माण:
- अंतरतारकीय गैस और आकाशगंगाओं में बिखरी धूल के बादलों के मध्य तारे में जीवन के लिये विस्फोट होता है। एक नए तारे के चारों ओर घूमने वाली बची हुई सामग्री फिर ग्रहों में समाहित हो जाती है तथा कुछ ग्रहों के चारों ओर परिक्रमा करने वाले डिस्क इसी प्रकार चंद्रमा का निर्माण करते हैं।
- ग्रह निर्माण को रेखांकित करने वाले प्रमुख तंत्र को "कोर अभिवृद्धि" (Core Accretion) कहा जाता है।
- कोर अभिवृद्धि (Core Accretion) धीरे-धीरे बड़े पिंडों में ठोस कणों के टकराव और जमाव से होती है जब तक कि एक गैसीय आवरण की वृद्धि हेतु एक विशाल पर्याप्त ग्रह के भ्रूण (10-20 पृथ्वी द्रव्यमान) का निर्माण नहीं हो जाता है।
- इस परिदृश्य में बर्फ में लिपटे छोटे धूल के कण, धीरे-धीरे और अधिक बड़े आकार में अन्य कणों के साथ टकराव के माध्यम से वृद्धि करते हैं।
- यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक कि कण एक ग्रहीय कोर के आकार में विकसित नहीं हो जाता है, इस बिंदु पर नवीन/युवा विकसित ग्रह में गैस को एकत्र करने हेतु पर्याप्त गुरुत्वाकर्षण क्षमता होती है और वह नवीन ग्रह के वातावरण का निर्माण करती है।
- कुछ नवजात ग्रह (Nascent Planets) अपने चारों ओर सामग्री की एक डिस्क (Disc of Material) को आकर्षित करते हैं, उसी प्रक्रिया के साथ जो एक तारे के चारों ओर ग्रहों को जन्म देते हैं जिससे ग्रहों के चारों ओर चंद्रमाओं का निर्माण होता है।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
आई-एसटीईएम इंटर चरण -2
प्रिलिम्स के लिये:I-STEM , प्रौद्योगिकी एवं नवाचार सलाहकार परिषद मेन्स के लिये:I-STEM के विभिन्न चरण एवं उसके उद्देश्य |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं इंजीनियरिंग सुविधाएँ मानचित्र (Indian Science Technology and Engineering facilities Map- I-STEM) परियोजना को पाँच वर्ष (वर्ष 2026 तक) के लिये विस्तार दिया गया है तथा इसने अतिरिक्त सुविधाओं के साथ अपने दूसरे चरण में प्रवेश कर लिया है।
प्रमुख बिंदु
I-STEM:
- I-STEM के विषय में:
- I-STEM अनुसंधान एवं विकास (Research and Development- R&D) सुविधाओं को साझा करने के लिये एक राष्ट्रीय वेब पोर्टल है।
- यह पोर्टल शोधकर्त्ताओं को उपकरणों के उपयोग के लिये स्लॉट तक पहुँचने के साथ-साथ परिणामों के विवरण जैसे- पेटेंट, प्रकाशन और प्रौद्योगिकियों को साझा करने की सुविधा प्रदान करता है।
- लॉन्च:
- PM-STIAC: यह एक व्यापक परिषद है जो प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय को विशिष्ट विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में स्थिति का आकलन करने, भविष्य का रोडमैप विकसित करने, चुनौतियों को समझने आदि विषय पर प्रधानमंत्री को सलाह देने की सुविधा प्रदान करती है।
- इस पोर्टल को जनवरी 2020 में लॉन्च किया गया। यह प्रधानमंत्री विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद (Prime Minister’s Science, Technology & Innovation Advisory Council- PM-STIAC) के तत्त्वावधान में भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय की एक पहल है।
- लक्ष्य:
- I-STEM का लक्ष्य शोधकर्त्ताओं को संसाधनों से जोड़कर देश के R&D पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करना है।
- स्वदेशी प्रौद्योगिकियों एवं वैज्ञानिक उपकरणों के विकास को बढ़ावा देना और I-STEM वेब पोर्टल के माध्यम से देश में मौजूदा सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित अनुसंधान तथा विकास सुविधाओं तक पहुँच को सक्षम करके शोधकर्त्ताओं को आवश्यक आपूर्ति व सहायता प्रदान करना।
- चरण-I:
- पहले चरण में पोर्टल को देश भर के 1050 संस्थानों के 20,000 से अधिक उपकरणों के साथ सूचीबद्ध किया गया है जिसमें 20,000 से अधिक भारतीय शोधकर्त्ता शामिल हैं।
- चरण-II:
- पोर्टल एक डिजिटल कैटलॉग के माध्यम से सूचीबद्ध स्वदेशी प्रौद्योगिकी के तहत उत्पादों की मेज़बानी करेगा। यह छात्रों और वैज्ञानिकों द्वारा अनुसंधान परियोजनाओं को शुरू करने हेतु आवश्यक चयनित R&D (अनुसंधान और विकास) सॉफ्टवेयर की मेज़बानी और पहुंँच प्रदान करेगा।
- यह पोर्टल विभिन्न सिटी नॉलेज और इनोवेशन क्लस्टर्स के लिये विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार (Science Technology and Innovation- STI) पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्मित सहयोग और साझेदारी के माध्यम से R&D बुनियादी ढांँचे के प्रभावी उपयोग को बढ़ाने हेतु एक मंच भी प्रदान करेगा।
- नए चरण को एक गतिशील डिजिटल प्लेटफॉर्म के रूप में डिज़ाइन किया जाएगा जो विशेष रूप से टायर 2 और टायर 3 शहरों के लिये तथा उभरते स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र हेतु अनुसंधान एवं नवाचार को बढ़ावा देगा।
स्रोत पी.आई.बी.
भारतीय विरासत और संस्कृति
आषाढ़ पूर्णिमा- धम्म चक्र दिवस
प्रिलिम्स के लियेआषाढ़ पूर्णिमा- धम्म चक्र दिवस, गुरु पूर्णिमा, अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ, चार आर्य सत्य, अष्टांगिक मार्ग मेन्स के लियेभारतीय संस्कृति में बौद्ध धर्म का योगदान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ने ‘अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ’ (IBC) के साथ साझेदारी में 24 जुलाई, 2021 को ‘आषाढ़ पूर्णिमा- धम्म चक्र दिवस 2021’ का आयोजन किया।
- इस दिवस को बौद्धों और हिंदुओं द्वारा अपने गुरुओं के प्रति श्रद्धा को चिह्नित करने हेतु गुरु पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है।
गुरु पूर्णिमा
- हिंदू कैलेंडर के अनुसार, गुरु पूर्णिमा आमतौर पर आषाढ़ में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है।
- यह दिवस महर्षि वेदव्यास को समर्पित है, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने पवित्र हिंदू पाठ, वेदों का संपादन किया और 18 पुराणों, महाभारत और श्रीमद् भागवत की रचना की।
- बौद्धों के लिये यह त्योहार भगवान बुद्ध के पहले उपदेश का प्रतीक है, जो उन्होंने उत्तर प्रदेश के सारनाथ में इसी दिन दिया था।
- साथ ही इसे मानसून की शुरुआत का प्रतीक भी माना जाता है।
प्रमुख बिंदु
आषाढ़ पूर्णिमा- धम्म चक्र दिवस
- यह दिवस बुद्ध द्वारा अपने पाँच पहले तपस्वी शिष्यों को दिये गए उपदेश का प्रतीक है। उन्होंने ज्ञान प्राप्ति के बाद दुनिया को अपना पहला उपदेश दिया था।
- यह दिन वाराणसी के पास वर्तमान सारनाथ में 'हिरण पार्क', शिपटाना में भारतीय सूर्य कैलेंडर में आषाढ़ महीने की पूर्णिमा के दिन, संघ की स्थापना का प्रतीक है।
- इसे श्रीलंका में एसाला पोया तथा थाईलैंड में असान्हा बुचा के नाम से भी जाना जाता है।
- बुद्ध पूर्णिमा या वेसाक के बाद बौद्धों के लिये यह दूसरा सबसे पवित्र दिवस है।
- धम्म चक्र-पवट्टनसुता (पाली) या धर्म चक्र प्रवर्तन सूत्र (संस्कृत) का यह उपदेश धर्म के प्रथम चक्र के घूमने के नाम से भी विख्यात है और चार आर्य सत्य तथा अष्टांगिक मार्ग से निर्मित है।
- चार आर्य सत्य:
- दुख संसार का सार है।
- हर दुख का एक कारण होता है- समुद्य
- दुख का नाश हो सकता है-निरोध।
- इसे ‘अथंगा मग्गा’ (अष्टांगिक मार्ग) का पालन करके प्राप्त किया जा सकता है।
- अष्टांगिक मार्ग:
- चार आर्य सत्य:
- भिक्षुओं के लिये वर्षा ऋतु प्रवास (वर्षा वास) भी इस दिन से ही शुरू होता है जो जुलाई से अक्तूबर तक तीन चंद्र महीनों तक चलती थी, इसके दौरान वे एक ही स्थान पर रहते थे, आमतौर पर उनके विहार/चैत्य गहन ध्यान के लिये समर्पित होते थे। .
गौतम बुद्ध
- उन्हें भगवान विष्णु (दशावतार) के दस अवतारों में से आठवाँ अवतार माना जाता है।
- उनका जन्म सिद्धार्थ के रूप में लगभग 563 ईसा पूर्व लुंबिनी में हुआ था और वे शाक्य वंश के थे।
- गौतम बुद्ध ने बिहार के बोधगया में एक पीपल के पेड़ के नीचे बोधि (निर्वाण) प्राप्त किया।
- बुद्ध ने अपना पहला उपदेश उत्तर प्रदेश में वाराणसी के पास सारनाथ गाँव में दिया था।
- उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में 80 वर्ष की आयु में 483 ईसा पूर्व में उनका निधन हो गया। इस घटना को महापरिनिर्वाण के नाम से जाना जाता है।
भारतीय संस्कृति में बौद्ध धर्म का योगदान:
- अहिंसा की अवधारणा बौद्ध धर्म का प्रमुख योगदान है। बाद के समय में यह हमारे राष्ट्र के पोषित मूल्यों में से एक बन गई।
- भारत की कला एवं वास्तुकला में इसका योगदान उल्लेखनीय है। सांची, भरहुत और गया के स्तूप वास्तुकला के अद्भुत नमूने हैं।
- इसने तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे आवासीय विश्वविद्यालयों के माध्यम से शिक्षा को बढ़ावा दिया।
- पाली और अन्य स्थानीय भाषाएंँ बौद्ध धर्म की शिक्षाओं के माध्यम से विकसित हुईं।
- इसने एशिया के अन्य हिस्सों में भारतीय संस्कृति के प्रसार को भी बढ़ावा दिया था।
कोविड-19 के दौरान बौद्ध धर्म की प्रासंगिकता:
- बुद्ध की शिक्षा आज भी प्रासंगिक है, आज मानवता कोविड-19 महामारी के रूप में सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रही है। बुद्ध के सिद्धांत मानवता को मज़बूत करते हुए देशों को एक साथ जोड़ते हैं।
- आज विश्व के सभी राष्ट्र बुद्ध द्वारा दिखाए गए मानवता की सेवा के मार्ग का अनुसरण करते हुए महामारी के समय में एक-दूसरे का हाथ थामे हुए हैं और एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं।
- बुद्ध के चार महान सत्य और अष्टांग मार्ग कर्म के सिद्धांत को समझने, विश्व को आरोग्य बनाने तथा इस संसार को एक श्रेष्ठ स्थान बनाने में मदद कर सकते हैं।
बौद्ध धर्म से संबंधित यूनेस्को के विरासत स्थल
- नालंदा, बिहार में नालंदा महाविहार का पुरातात्त्विक स्थल
- साँची, मध्य प्रदेश में बौद्ध स्मारक
- बोधगया, बिहार में महाबोधि विहार परिसर
- अजंता गुफाएँ, औरंगाबाद (महाराष्ट्र)