लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

जैव विविधता और पर्यावरण

पेरिस जलवायु समझौते के पाँच वर्ष

  • 12 Dec 2020
  • 11 min read

चर्चा में क्यों?

12 दिसंबर, 2020 से ग्लासगो, स्कॉटलैंड में शुरू होने वाले जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन से पहले भारत ने पेरिस जलवायु समझौते के लिये अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है।

  • क्लाइमेट एंबिशन समिट 2020 पेरिस समझौते की पाँचवीं वर्षगाँठ को चिह्नित करेगा और पेरिस समझौते तथा बहुपक्षीय प्रक्रिया के लिये अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करने हेतु सरकारी और गैर-सरकारी नेताओं के लिये एक मंच प्रदान करेगा।

CO2-Emissions

प्रमुख बिंदु:

  • उद्देश्य: पेरिस समझौते के तीन स्तंभों- शमन, अनुकूलन और वित्त व्यवस्था हैं, के तहत नई और महत्त्वाकांक्षी प्रतिबद्धताएँ निर्धारित करना।
  • व्यापकता: यह शिखर सम्मेलन उन व्यवसायों, शहरों और अन्य गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं को एक सार्थक मंच प्रदान करेगा जो एक साथ जलवायु परिवर्तन से निपटने का प्रयास कर रहे हैं और सरकारों का समर्थन करने एवं उत्सर्जन को कम करने तथा लचीलेपन में वृद्धि के लिये आवश्यक प्रणालीगत परिवर्तन में तेज़ी ला रहे हैं।
  • मेज़बान देश: चिली और इटली की साझेदारी में संयुक्त राष्ट्र, यूनाइटेड किंगडम और फ्राँस।

उत्सर्जन का इतिहास:

  • हमारे वायुमंडल में सबसे प्रचुर मात्रा में पाई जाने वाली ग्रीनहाउस गैस (GHG) कार्बन डाइऑक्साइड (Co2), जलवायु परिवर्तन को मापने के लिये प्रत्यक्ष स्रोत बन गई है। पृथ्वी के 4.54 बिलियन वर्ष के इतिहास के दौरान इसका स्तर व्यापक रूप से बढ़ा है।
  • ऐतिहासिक रूप से कार्बन उत्सर्जन में विकसित देशों का प्रमुख योगदान रहा है।

प्रमुख उत्सर्जनकर्त्ता:

  • यह उत्सर्जन संयुक्त राज्य (US) में सबसे अधिक 25%, उसके बाद यूरोपीय संघ (EU) में 22% और चीन में 13% है।
  • कार्बन उत्सर्जन में भारत की हिस्सेदारी केवल 3% है।

पेरिस जलवायु समझौता:

  • कानूनी स्थिति: यह जलवायु परिवर्तन पर कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय संधि है।
  • अंगीकरण: इसे दिसंबर 2015 में पेरिस में आयोजित COP 21 सम्मेलन के दौरान 196 देशों द्वारा अपनाया गया था।
  • लक्ष्य: पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से कम करना और अधिमानतः इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना।
  • उद्देश्य: वर्ष 2050 से 2100 के बीच मानव गतिविधियों द्वारा उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को उस स्तर तक लाना ताकि वृक्षों, महासागरों और मृदा द्वारा इसे स्वाभाविक रूप से अवशोषित किया जा सके।

वैश्विक उत्सर्जन की वर्तमान स्थिति:

  • पेरिस समझौते के 5 वर्ष बाद सभी राज्यों ने जलवायु परिवर्तन को कम करने और इसके शमन के लिये अपना राष्ट्रीय योगदान प्रस्तुत किया है।
  • यह योगदान मौलिक रूप से 2 डिग्री सेल्सियस की सीमा से नीचे पहुँचने के लिये अपर्याप्त हैं और पेरिस समझौते में निर्धारित 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान की सीमा से भी अधिक है।
  • भारत के अलावा केवल भूटान, फिलीपींस, कोस्टा रिका, इथियोपिया, मोरक्को और गाम्बिया इस समझौते का अनुपालन कर रहे हैं।
  • चीन में GHG उत्सर्जन उच्चतम (30%) है, जबकि अमेरिका उत्सर्जन में 13.5% और यूरोपीय संघ 8.7% का योगदान देते है।

भारत में उत्सर्जन की वर्तमान स्थिति:

  • इस वर्ष की शुरुआत में जारी संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन वास्तव में वैश्विक औसत से 60% कम है।
  • वर्ष 2019 में देश में उत्सर्जन 1.4% बढ़ा है, जो पिछले एक दशक के प्रतिवर्ष 3.3% के औसत से बहुत कम है।

भारत द्वारा उत्सर्जन पर नियंत्रण के लिये किये गए कुछ उपाय:

  • भारत स्टेज (बीएस) VI मानदंड: यह वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिये सरकार द्वारा लगाए गए उत्सर्जन नियंत्रण मानक हैं।
  • राष्ट्रीय सौर मिशन: यह भारत की केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की एक प्रमुख पहल है जिसका उद्देश्य भारत की ऊर्जा सुरक्षा से संबंधित चुनौती को संबोधित करते हुए पारिस्थितिक रूप से स्थायी विकास को बढ़ावा देना है।
  • राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति 2018: इस नीति का मुख्य उद्देश्य पवन तथा सौर संसाधनों, ट्रांसमिशन इंफ्रास्ट्रक्चर और भूमि के कुशल उपयोग के लिये बड़े ग्रिड से जुड़े पवन-सौर पीवी हाइब्रिड सिस्टम को बढ़ावा देने के लिये एक रूपरेखा प्रदान करना है।
  • इन सभी पहलों ने भारत को CO2 उत्सर्जन में 164 मिलियन किलोग्राम की कटौती करने में मदद की।

प्रस्तावित लक्ष्य प्राप्त करने में समस्याएँ:

  • अधिकांश राष्ट्र वर्ष 2025-2030 के बीच उत्सर्जन को कम करने के लिये अपने राष्ट्रीय योगदान को बहुत देर से प्रस्तुत कर रहे हैं, हालाँकि कई देशों ने हाल के दिनों में शुद्ध शून्य उत्सर्जन/नेट ज़ीरो उत्सर्जन लक्ष्यों की घोषणा की है।
  • शुद्ध शून्य उत्सर्जन का तात्पर्य है कि सभी मानव निर्मित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को विभिन्न उपायों के माध्यम से वायुमंडल से हटाया जाना चाहिये, जिससे पृथ्वी के शुद्ध जलवायु संतुलन को कायम रखा जा सके।
  • शुद्ध शून्य लक्ष्य विश्वसनीयता, जवाबदेही और निष्पक्षता जाँच के अधीन हैं।
    • विश्वसनीयता: राष्ट्रों की योजनाएँ और नीतियाँ दीर्घकालिक शून्य लक्ष्य की प्राप्ति के लिये विश्वसनीय नहीं हैं:
      • जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी समिति (Inter-governmental Pannel on Climate Change-IPCC) 1.5 डिग्री सेल्सियस रिपोर्ट ने संकेत दिया है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान का लक्ष्य उचित समय-सीमा के भीतर प्राप्त करने के लिये वर्ष 2030 तक वैश्विक CO2 उत्सर्जन को वर्ष 2010 के स्तर की तुलना में 45% तक कम करना है, लेकिन वर्तमान राष्ट्रीय योगदान इस लक्ष्य से काफी दूर दिखाई दे रहे हैं।
    • जवाबदेही: कई राष्ट्रों के ‘नेट-ज़ीरो’ उत्सर्जन लक्ष्यों में या तो जवाबदेही का अभाव है या फिर उनकी जवाबदेही काफी सीमित है, जैसे-
      • कई देशों ने अपने ‘नेट-ज़ीरो’ उत्सर्जन लक्ष्यों को अभी तक पेरिस समझौते के तहत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) तथा दीर्घकालिक रणनीतियों के अनुरूप नहीं बनाया है।
      • पेरिस समझौते के तहत जवाबदेही सीमित है। राज्य अपने स्व-चयनित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये बाध्य नहीं हैं। राष्ट्रों के स्वैच्छिक योगदान की समीक्षा करने के लिये कोई तंत्र नहीं है। राज्यों को केवल अपने लक्ष्यों की निष्पक्षता और महत्त्वाकांक्षा के लिये औचित्य प्रदान करने हेतु कहा जाता है।
      • पारदर्शिता ढाँचे में एक मज़बूत समीक्षा कार्य शामिल नहीं है और पेरिस समझौते के अनुपालन हेतु उत्तरदायी समिति बाध्यकारी दायित्वों की एक छोटी सूची के साथ कार्य कर रही है जिसके कारण इसका क्षेत्राधिकार अत्यंत सीमित है।
    • न्यायोचितता/न्यायसंगतता: दो पीढ़ियों के बीच और उनके भीतर नेट-ज़ीरो’ उत्सर्जन लक्ष्यों की निष्पक्षता और न्यायोचितता का मुद्दा अपरिहार्य है।
      • किसी भी देश के पास यह जाँचने के लिये कोई व्यवस्था नहीं है कि उनके द्वारा ‘नेट-ज़ीरो’ उत्सर्जन लक्ष्य निर्धारित किये गए हैं और उन्हें प्राप्त करने का मार्ग कितना निष्पक्ष एवं न्यायोचित है अथवा अन्य देशों की तुलना में कोई देश कितना प्रयास कर रहा है तथा उसे कितना प्रयास करना चाहिये।

आगे की राह

  • पेरिस समझौते के तहत निर्धारित दीर्घकालिक तापमान लक्ष्य को प्राप्त करने और मध्य-शताब्दी तक जलवायु-तटस्थ विश्व का निर्माण करने के लिये विश्व के सभी देशों को जल्द-से-जल्द ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की चरम सीमा तक पहुँचने का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिये।
    • विदित हो कि चीन ने वर्ष 2030 से पूर्व कार्बन-डाइऑक्साइड उत्सर्जन की चरम सीमा तक पहुँचने और वर्ष 2060 से पहले कार्बन तटस्थता की स्थिति प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
  • सतत्/स्थिर जलवायु प्राप्त करने की दिशा में ‘नेट-ज़ीरो’ उत्सर्जन लक्ष्यों को और अधिक विश्वसनीय, ज़वाबदेह तथा न्यायोचित बनाना आवश्यक है। यद्यपि सभी देश अपने ‘नेट-ज़ीरो’ उत्सर्जन लक्ष्यों को प्राप्त करने की स्थिति में नहीं होंगे और न ही उनसे इस संबंध में उम्मीद की जा सकती है, किंतु यह आवश्यक है।
  • अल्पकालिक विश्वसनीय प्रतिबद्धताओं के साथ मध्यावधि अकार्बनीकरण (Decarbonise) और विकास की नीति कई देशों के लिये एक बेहतर विकल्प हो सकती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2