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जैव विविधता और पर्यावरण

कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में गैंडों को लाने से संबंधित प्रस्ताव

  • 21 Dec 2019
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

भारतीय वन्यजीव संस्थान, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व

मेन्स के लिये:

उत्तराखंड पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये उठाए गए कदम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उत्तराखंड राज्य वन्यजीव बोर्ड (Uttarakhand State Wildlife Board) द्वारा कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व (Corbett Tiger Reserve) में गैंडों को लाने से संबंधित प्रस्ताव को मंज़ूरी दी गई है।

मुख्य बिंदु:

  • उत्तराखंड वन्यजीव बोर्ड ने भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India) द्वारा दिये गए प्रस्ताव को मानते हुए कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में गैंडों को पुनर्स्थापित करने की मंज़ूरी दी है इसका उद्देश्य पर्यटन को बढ़ावा देना और निम्न ऊँचाई वाले घास-भूमि क्षेत्र में रहने वाली प्रजातियों को प्रोत्साहित करना है।
  • पहले चरण में लगभग 10 गैंडों को कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में लाया जाएगा, तत्पश्चात् 10 गैंडों को और लाया जाएगा।
  • उत्तराखंड राज्य वन्यजीव बोर्ड के अनुसार, असम या पश्चिम बंगाल या दोनों राज्यों से गैंडों को लाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा।
  • विशेषज्ञों का दावा है कि इन गैंडों को अवैध शिकार से बचाना राज्य के वन विभाग के कर्मचारियों के लिये एकमात्र चुनौती होगी।
  • उत्तराखंड वन्यजीव बोर्ड के अनुसार, कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व का भौगोलिक भू-भाग और यहाँ के पर्यावरण की स्थिति गैंडों के लिये उपयुक्त है।
  • कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में गैंडों के आवास के लिये चुने गए आदर्श स्थल उत्तर में निम्न हिमालय, दक्षिण में शिवालिक पहाड़ियों और पूर्व में रामगंगा कुंड द्वारा घिरे हुए हैं, जो इन क्षेत्रों से गैंडों की आवाजाही को रोकने के लिये प्राकृतिक बाधाओं के रूप में कार्य करेंगे, जिससे जानवरों और मानव के बीच संघर्ष की घटनाओं में कमी आएगी।
  • हालाँकि कुछ समय पहले उत्तराखंड राज्य और आस-पास के तराई-क्षेत्र में गैंडे पाए जाते थे, परंतु अवैध शिकार के कारण ये धीरे-धीरे समाप्त हो गए।
  • गैंडों का अवैध शिकार इसलिये किया जाता है क्योंकि गैंडे के सींग का प्रयोग कामोत्तेजक औषधियों के निर्माण में किया जाता है।
  • यहाँ प्रत्येक जानवर को जीपीएस रेडियो कॉलर (GPS Radio-Collar) के साथ संबंधित किया जाएगा।
  • शोधकर्त्ताओं का एक दल इनके प्रतिमानों, भोजन संबंधी आदतों, जनसांख्यिकी और उपयोग किये जाने वाले आवास की निगरानी करेगा।
  • वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, गैंडे हाथी-घास को खाकर इसके आकार को कम कर देते हैं। इससे कम ऊँचाई वाले घास-भूमि क्षेत्रों में रहने वाली प्रजातियाँ जैसे- हॉग डियर (Hog Deer), चीतल, सांभर और दलदली हिरण आदि प्रजातियों को भी प्रोत्साहित किया जा सकेगा।
  • वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, एक समय सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र के अपवाह मैदानों में गैंडों की उपस्थिति थी, लेकिन वर्तमान में मानवजनित दबाव के परिणामस्वरूप ये केवल भारत और नेपाल के छोटे से भू-भाग तक ही सीमित रह गए हैं।
  • गैंडों को उनकी ऐतिहासिक सीमा में पुनः स्थापित करने से न केवल इस प्रजाति की आबादी सुरक्षित रहेगी बल्कि इन दुर्गम इलाकों में उनकी पारिस्थितिक भूमिका भी पुनर्स्थापित होगी।

एक सींग वाला गैंडा (भारतीय गैंडा)

The Great one-horned Rhinoceros (Indian Rhinoceros):

  • यह IUCN (International Union for Conservation of Nature) की रेड लिस्ट में सुभेद्य (Vulnerable) श्रेणी में शामिल है।
  • भारत में गैंडे मुख्य रूप से काजीरंगा व मानस राष्ट्रीय उद्यान, पबितोरा वन्यजीव अभयारण्य में पाए जाते हैं। ये हिमालय की तलहटी में लंबी घास भूमियों वाले प्रदेशों में भी पाए जाते हैं।
  • गैंडे की सभी प्रजातियों में यह सबसे बड़ा होता है।
  • गैंडों की संख्या में वृद्धि के लिये ‘इंडियन राइनो विज़न’ 2020 ( Indian Rhino Vision 2020) कार्यक्रम चलाया जा रहा है।

कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व

(Corbett Tiger Reserve):

  • यह उत्तराखंड के नैनीताल ज़िले में स्थित है।
  • वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर को कॉर्बेट नेशनल पार्क में लॉन्च किया गया था, जो कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व का हिस्सा है।
  • कॉर्बेट नेशनल पार्क के मध्य बहने वाली प्रमुख नदियाँ रामगंगा, सोननदी, मंडल, पलायन और कोसी हैं।
  • अगस्त 2019 तक भारत में 50 टाइगर रिज़र्व हैं।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस

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