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भारतीय अर्थव्यवस्था

कृषि-विपणन से जुड़े संरचनात्मक मुद्दे

  • 23 May 2020
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये:

कृषि विपणन 

मेन्स के लिये:

कृषि विपणन में सुधार 

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री द्वारा 12 मई, 2020 को भारत की जीडीपी के 10% के बराबर, 20 लाख करोड़ रुपए के विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की गई थी। इसी दिशा में वित्त मंत्री द्वारा कृषि विपणन सुधारों की दिशा में एक केंद्रीय कानून लाने की घोषणा की गई।

प्रमुख बिंदु:

  • ‘कृषि विपणन सुधार’ (Agricultural Marketing Reform) की दिशा में किसान को लाभकारी मूल्य पर अपनी उपज को बेचने के लिये पर्याप्त विकल्प उपलब्ध कराने; निर्बाध अंतर्राज्यीय  व्यापार; कृषि उत्पादों की ई-ट्रेडिंग के लिये एक रूपरेखा बनाने की दिशा में केंद्रीय विपणन कानून का निर्माण किया जाएगा।
  • नवीन केंद्रीय कानून के निर्माण के बाद मौजूदा राज्य कृषि विनियमन कानून समाप्त हो जाएंगे। 

कृषि विपणन (Agricultural marketing):

  • कृषि विपणन के अंतर्गत वे सभी सेवाएँ सम्मिलित की जातीं हैं जो कृषि उपज को खेत से लेकर उपभोक्ता तक पहुँचाने के दौरान करनी पड़ती हैं।

कृषि विपणन सुधारों की आवश्यकता:

  • अनुभव से सीखने की आवश्यकता:
    • ये कानून किसान को स्थानीय 'कृषि उपज विपणन समिति' (Agricultural Produce Marketing Committee- APMC) द्वारा लाइसेंस प्राप्त खरीदार के अलावा किसी अन्य कृषि उत्पाद बेचने से रोकते हैं।
    • वर्तमान केंद्रीय कानून निर्माण का निर्णय दो दशकों से अधिक समय के बाद विभिन्न राज्यों द्वारा अपनाए गए असमान सुधारों के बाद उपजे असंतोष को ध्यान में रखकर लिया गया है।
    • नवीन कानून का निर्माण करते समय पुराने कृषि विपणन सुधारों से संबंधित अब तक प्राप्त अनुभव से सीखने की आवश्यकता है तथा कृषि क्षेत्र से जुड़ी वास्तविकताओं की पहचान करते हुए सुधारों को अपनाना चाहिये।
  • संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता:
    • वर्तमान में किसानों को कृषि विपणन में जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, वे सिर्फ कृषि की एकाधिकारवादी प्रणाली में निहित नहीं है अपितु वे संरचनात्मक समस्याओं में निहित होती हैं। जो कृषि बाज़ारों से किसानों को जुडने में प्रमुख बाधा बनता है।
    • ऐसा इसलिये होता है क्योंकि भारत में अभी भी पर्याप्त मंडियाँ नहीं हैं। इन मंडियों में आवश्यक बुनियादी ढाँचे में बहुत कम निवेश किया गया है तथा मंडियों की अवसंरचना बहुत खराब स्थिति में है।
    • वर्ष 2017 की 'डबलिंग फार्मर्स इनकम रिपोर्ट' के अनुसार APMC के तहत मौजूदा 6,676 प्रमुख बाज़ारो तथा उप-बाज़ारो में बुनियादी अवसंरचनों की कमी है तथा भारत में अभी भी 3,500 से अधिक अतिरिक्त थोक बाज़ारों की आवश्यकता है। 23,000 ग्रामीण आवधिक बाज़ार (या हाट) भी लंबे समय से उपेक्षा का सामना कर रहे हैं।
    • इसलिये कृषि बाज़ारों के बुनियादी ढाँचे के लिये आवंटित राशि का उपयोग पूरी तरह से भौतिक विपणन पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के लिये किया जाना चाहिये।
  • कृषि प्रतिस्पर्द्धा में भी वृद्धि: 
    • एकाधिकारवादी समस्या का समाधान विनियामक हस्तक्षेप द्वारा किया जा सकता है परंतु किसानों को बाज़ारो जोड़ने की भी उतनी ही आवश्यकता है। अत: कृषि विपणन में सुधारों की दिशा में राज्यों को एक प्रमुख भूमिका निभानी होगी।
    • APMC कानून के तहत किसानों को अपनी उपज केवल लाइसेंस प्राप्त APMC व्यापारियों को बेचने को मज़बूर किया जाता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि अधिकांश भारतीय किसान, विशेष रूप से छोटे एवं सीमांत कृषक अपनी उपज को बिचौलियों को गाँव में या विनियमित बाज़ार के बाहर स्थानीय बाज़ारों में बेचते हैं।
    • यह ज़रूरी नहीं है कि APMC अधिनियम के सभी प्रतिबंधों को हटाने के बाद भी बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा देखने को मिले।
    • प्रत्येक बाज़ार स्थान पर किसानों तथा व्यापारियों के मध्य संपर्क स्थापित करना चाहिये।

कृषि विपणन सुधारों में राज्यों द्वारा अपनाए गए मॉडल:

  • बिहार राज्य में APMC अधिनियम के तहत सभी प्रतिबंधों को हटा देने के बावजूद राज्य में औपचारिक माध्यमों द्वारा बहुत कम खरीद देखने को मिली है। जब प्रतिबंधों को हटाने के बाद निगमों ने खरीद प्रक्रिया में प्रवेश किया तो निगमों द्वारा अधिकतर खरीद बड़े व्यापारियों से ही की गई जबकि किसानों से प्रत्यक्ष क्रय बहुत कम किया गया। 
  • मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों ने APMC कानूनों के निरसन के बजाय विनियामक उपायों को अपनाया है, तथा इसके परिणाम काफी अच्छे रहे हैं।
  • इससे कृषि मंडियों के तुलनात्मक लाभ को बढ़ावा मिला है। सीमित विनियमन से सभी स्थानीय बाज़ारों में  अनेक खरीदारों (Multi-Buyer) की उपलब्धता तथा बाज़ारों में व्यापक वस्तुओं (Multi-Commodity) की उपलब्धता संभव हो पाई तथा परिणाम सकारात्मक रहे।

आगे की राह:

  • नवीन तकनीक आधारित कृषि विपणन प्रणाली सफल होगी यदि नवीन विपणन प्रणाली उत्पादकों को अधिक विपणन विकल्प उपलब्ध कराए तथा उत्पादकों से जुड़ी वास्तविक बाधाओं को दूर करने का प्रबंधन करे। 
  • ये विपणन प्रणालियाँ जमीनी स्तर पर किसानों द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं का समाधान यथा ऋण उपलब्धता, आगत आपूर्ति, भंडारण सुविधा, तथा परिवहन सुविधाओं का विस्तार करने में सक्षम हो।

निष्कर्ष: 

  • कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार है अत: कृषि क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने के लिये विनियामक सुधार के लिये वर्तमान विनियमन संस्थाओं तथा कानूनों को बदलने के स्थान पर आवश्यक सुधार करने चाहिये। कृषि-व्यवसाय में ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम’ (Micro- Small and Medium Enterprises- MSMEs) के प्रवेश के लिये आवश्यक उपाय अपनाने होंगे। हमें भारत के कृषि बाज़ारों की विविधता, गतिशीलता, उद्यमशीलता को मज़बूत करना होगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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