भारतीय राजनीति
निजता का अधिकार और वैध राजकीय हित
- 08 Feb 2021
- 9 min read
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने कहा है कि यद्यपि निजता के अधिकार को एक अक्षय मौलिक अधिकार माना जाता है, परंतु वैध राजकीय हितों के लिये लोगों को इस अधिकार से वंचित किया जा सकता है।
- केंद्र सरकार की यह प्रतिक्रिया एक याचिका के जवाब के दौरान आई है जिसमें केंद्र की निगरानी परियोजनाओं- सेंट्रलाइज़्ड मॉनीटरिंग सिस्टम (CMS), नेटवर्क ट्रैफिक एनालिसिस (NETRA) और नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (NATGRID) को स्थायी रूप से बंद करने की मांग की गई थी।
केंद्र की निगरानी परियोजनाएँ
- केंद्रीकृत निगरानी प्रणाली (Centralized Monitoring System):
- सरकार द्वारा मोबाइल नेटवर्क के माध्यम से मोबाइल फोन, लैंडलाइन और इंटरनेट ट्रैफिक की निगरानी के लिये एक केंद्रीकृत निगरानी प्रणाली (CMS) की स्थापना की गई है।
- नेटवर्क ट्रैफिक एनालिसिस (Network Traffic Analysis):
- नेत्र (Network Traffic Analysis- NETRA) एक ऐसा ही प्रयास है जो भारत सरकार द्वारा नेटवर्क में भेजे जा रहे संदेशों में से संदेहास्पद शब्दों को फिल्टर करने के लिये संचालित किया जा रहा है।
- राष्ट्रीय आसूचना ग्रिड (National Intelligence Grid):
- नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (NATGRID) की अवधारणा सबसे पहले वर्ष 2009 में प्रस्तुत की गई थी।
- इसका उद्देश्य किसी संदिग्ध के टेलीफोन विवरण, बैंकिंग एवं आव्रजन प्रवेश तथा निकास से संबंधित डेटाबेस तक पहुँचने हेतु सुरक्षा और आसूचना एजेंसियों के लिये एकल बिंदु समाधान की स्थापना करना है।
प्रमुख बिंदु:
याचिकाकर्त्ता का तर्क:
- सरकार की निगरानी परियोजनाएँ सरकारी अधिकारियों को गोपनीयता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करते हुए टेलीफोन और इंटरनेट संचार डेटा को इंटरसेप्ट, स्टोर, विश्लेषण तथा अपने पास सुरक्षित रखे रहने हेतु सक्षम बनाती हैं।
- यह प्रणाली सरकार को सभी नागरिकों की व्यापक (360 डिग्री) निगरानी की अनुमति देती है, जिसमें न्यायाधीश भी शामिल हैं।
- इस याचिका में टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 और आईटी अधिनियम, 2000 के तहत जारी इंटरसेप्टशन तथा निगरानी आदेशों या वारंटों को अधिकृत करने एवं उनकी समीक्षा हेतु एक स्थायी व स्वतंत्र निरीक्षण प्राधिकरण (न्यायिक या संसदीय) के गठन की मांग की गई है।
सरकार का तर्क:
- एक कंप्यूटर में संग्रहीत किसी भी संदेश या सूचना के वैध इंटरसेप्टशन, निगरानी या डिक्रिप्शन को प्राधिकृत एजेंसियों द्वारा प्रत्येक मामले में सक्षम अधिकारी के उचित अनुमोदन के बाद संचालित किया जाता है।
- इंटरसेप्टशन, निगरानी या डिक्रिप्शन के लिये किसी भी एजेंसी को पूरी तरह से छूट नहीं है; और इसके लिये सक्षम अधिकारी (केंद्रीय गृह सचिव) से अनुमति लेना आवश्यक है।
- सरकार ने यह तर्क दिया गया कि केंद्र स्तर पर कैबिनेट सचिव और राज्य स्तर पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक समीक्षा समिति के रूप में निरीक्षण की पर्याप्त व्यवस्था है, जो यह जाँच करती है कि इंटरसेप्टशन व निगरानी की स्वीकृति कानून के अनुसार दी गई है या नहीं।
- यदि किसी मामले में समीक्षा समिति यह पाती है कि निर्देश निर्धारित प्रावधानों के अनुसार नहीं हैं, तो यह निर्देश को रद्द करते हुए इंटरसेप्ट किये गए संदेश या संदेशों के वर्ग की प्रतियों को नष्ट करने का आदेश दे सकती है।
- सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि आतंकवाद, कट्टरता, सीमा पार आतंकवाद, साइबर अपराध, संगठित अपराध, ड्रग तस्करों के समूह से देश को होने वाले गंभीर खतरे को अनदेखा नहीं किया जा सकता है और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े खतरों से निपटने हेतु डिजिटल इंटेलिजेंस सहित कार्रवाई के साथ आसूचना का समय पर एवं त्वरित संग्रह करने हेतु एक मज़बूत तंत्र का होना बहुत आवश्यक है।
निजता का अधिकार:
परिचय:
- आमतौर पर यह समझा जाता है कि गोपनीयता अकेला छोड़ दिये जाने के अधिकार (Right to Be Left Alone) का पर्याय है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 में के.एस. पुत्तास्वामी बनाम भारतीय संघ ऐतिहासिक निर्णय में गोपनीयता और उसके महत्त्व को वर्णित किया। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, निजता का अधिकार एक मौलिक और अविच्छेद्य अधिकार है और इसके तहत व्यक्ति से जुड़ी सभी सूचनाओं के साथ उसके द्वारा लिये गए निर्णय शामिल हैं।
- निजता के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार के आंतरिक भाग के रूप में तथा संविधान के भाग-III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के हिस्से के रूप में संरक्षित किया गया है।
प्रतिबंध (निर्णय में वर्णित):
- इस अधिकार को केवल राज्य कार्रवाई के तहत तभी प्रतिबंधित किया जा सकता है, जब वे निम्नलिखित तीन परीक्षणों को पास करते हों :
- पहला, ऐसी राजकीय कार्रवाई के लिये एक विधायी जनादेश होना चाहिये;
- दूसरा, इसे एक वैध राजकीय उद्देश्य का पालन करना चाहिये;
- तीसरा, यह यथोचित होनी चाहिये, अर्थात् ऐसी राजकीय कार्रवाई- प्रकृति और सीमा में समानुपाती होनी चाहिये, एक लोकतांत्रिक समाज के लिये आवश्यक होनी चाहिये तथा किसी लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु उपलब्ध विकल्पों में से सबसे कम अंतर्वेधी होनी चाहिये।
निजता की सुरक्षा हेतु सरकार द्वारा उठाए गए कदम
मसौदा व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019:
- विधेयक भारत और विदेश में सरकार तथा निजी एंटिटीज़ (डेटा फिड्यूशरीज़) द्वारा लोगों के निजी डेटा की प्रोसेसिंग को विनियमित करता है। व्यक्ति की सहमति पर या आपात स्थिति में अथवा सरकार द्वारा लाभ वितरण हेतु प्रोसेसिंग की अनुमति है।
बी.एन. श्रीकृष्ण समिति:
- डिजिटल दुनिया में व्यक्तिगत डेटा को सुरक्षित करने के लिये एक फ्रेमवर्क की सिफारिश किये जाने हेतु जुलाई 2017 में न्यायमूर्ति बी.एन. श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में 10 सदस्यीय समिति की स्थापना की गई थी। इस समिति ने जुलाई 2018 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000:
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम कंप्यूटर सिस्टम के ज़रिये होने वाले कुछ डेटा उल्लंघनों के खिलाफ सुरक्षा का प्रावधान करता है। इसमें कंप्यूटर, कंप्यूटर सिस्टम और उसमें संग्रहीत डेटा के अनधिकृत उपयोग को रोकने से संबंधित प्रावधान हैं।