भारतीय अर्थव्यवस्था
भारतीय अर्थव्यवस्था में संकुचन का अनुमान
- 09 Oct 2020
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प्रिलिम्स के लियेविश्व बैंक, सकल घरेलू उत्पाद मेन्स के लियेभारत और दक्षिण एशिया की अर्थव्यवस्था पर कोरोना वायरस महामारी का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व बैंक ने कोरोना वायरस महामारी और उसके कारण लागू किये गए देशव्यापी लॉकडाउन का उल्लेख करते हुए अपनी ‘साउथ एशिया इकोनाॅमिक फोकस रिपोर्ट’ में कहा कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 9.6 प्रतिशत का संकुचन हो सकता है।
प्रमुख बिंदु
भारत की स्थिति
- ध्यातव्य है कि इससे पूर्व जून माह में विश्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था के 3.2 प्रतिशत संकुचन का अनुमान लगाया था, जिसे अब बढ़ा दिया गया है।
- विनिर्माण और निर्यात उद्योग को लंबे समय तक तनाव का सामना करना पड़ेगा, वहीं निर्माण उद्योग में विकास की संभावना भी न के बराबर है।
- इसका मुख्य कारण यह है कि ये उद्योग काफी हद तक प्रवासी श्रमिकों पर निर्भर हैं और प्रवासी श्रमिक अब तक वापस शहर नहीं लौटे हैं।
- कारण
- सर्वप्रथम तो भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना वायरस महामारी की शुरुआत से पूर्व ही काफी धीमी गति से विकास कर रही थी।
- राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (NSO) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2019-20 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर गिरकर 4.5 फीसदी पर जा पहुँची थी, जो कि बीती 26 तिमाहियों का सबसे निचला स्तर था।
- इसके पश्चात् कोरोना वायरस महामारी की शुरुआत और इस महामारी की रोकथाम के लिये सरकार द्वारा किये गए उपायों के चलते मांग व आपूर्ति दोनों पर गंभीर प्रभाव पड़ा।
- महामारी को नियंत्रित करने के लिये जो देशव्यापी लॉकडाउन लागू किया गया, उसके प्रभाव से देश में सभी आर्थिक गतिविधियाँ आंशिक अथवा पूर्ण रूप से रुक गईं और उत्पादन बंद हो गया, ऐसे में अर्थव्यवस्था की स्थिति और भी अधिक खराब हो गई।
- वर्तमान में भारत सरकार और अर्थव्यवस्था के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती राजस्व को लेकर है, जहाँ एक ओर आर्थिक गतिविधियों के कम होने के कारण सरकार के राजस्व में कमी आई है, वहीं दूसरी ओर सरकार से स्वास्थ्य क्षेत्र पर अधिक-से-अधिक खर्च करने की उम्मीद की जा रही है, ऐसे में सरकार के समक्ष सीमित संसाधनों के इष्टतम प्रयोग की एक बड़ी चुनौती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति
- तकरीबन चार माह तक के देशव्यापी लॉकडाउन के बावजूद भारत कोरोना वायरस (COVID-19) संक्रमण के मामले में विश्व में दूसरे स्थान पर बना हुआ है, किंतु इस महामारी तथा लॉकडाउन के परिणामस्वरूप आर्थिक गतिविधियाँ रुक गई हैं, जिससे सरकार को राजस्व के भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
- हालिया आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में रिकॉर्ड 23.9 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया गया है, जो कि बीते एक दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे खराब प्रदर्शन है।
- भारत का विकास मुख्य तौर पर निजी खपत पर निर्भर करता है। आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2008-09 से 2017-18 तक भारतीय अर्थव्यवस्था ने 6.7 प्रतिशत की औसत दर से विकास किया, किंतु इसके बाद अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में कमी आने लगी, वित्तीय वर्ष 2019-20 में भारतीय अर्थव्यवस्था की GDP वृद्धि दर 4.2 प्रतिशत थी।
- अर्थव्यवस्था की ऐसी स्थिति के मुख्यतः दो कारण हैं-
- गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का कमज़ोर होना, जो कि भारतीय अर्थव्यवस्था में ऋण का एक बड़ा स्रोत है।
- निजी उपभोग वृद्धि दर में कमी
- आँकड़े बताते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण माने जाने वाले निजी उपभोग में अब तक कुल 27 प्रतिशत की कमी देखने को मिली है, इसके अलावा अर्थव्यवस्था के दूसरे सबसे बड़े कारक निजी व्यवसाइयों द्वारा किये गए निवेश में कुल 47 प्रतिशत की कमी देखने को मिली है।
दक्षिण एशिया क्षेत्र की स्थिति
- रिपोर्ट में कहा गया है कि संपूर्ण दक्षिण एशिया क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाओं पर महामारी का गंभीर प्रभाव पड़ सकता है और ये अर्थव्यवस्थाएँ गंभीर मंदी की चपेट में आ सकती हैं।
- विश्व बैंक का अनुमान है कि वर्ष 2020 में दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में तकरीबन 7.7 प्रतिशत का संकुचन हो सकता है।
- दक्षिण एशिया में भी महामारी का सबसे आर्थिक प्रभाव मालदीव पर देखने को मिल सकता है और मालदीव की अर्थव्यवस्था में तकरीबन 19.5 प्रतिशत का संकुचन हो सकता है।
- कारण: ध्यातव्य है कि पर्यटन मालदीव की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है, किंतु विश्व भर का पर्यटन उद्योग महामारी के कारण काफी अधिक प्रभावित हुआ है और इसके मालदीव की अर्थव्यवस्था को भी खासा नुकसान झेलना पड़ा है।
- जानकर मानते हैं कि दक्षिण एशिया समेत विश्व भर में उत्पन्न हो रही आर्थिक मंदी, पिछली आर्थिक मंदी से काफी अलग है, क्योंकि पूर्व की आर्थिक मंदी मुख्यतः निवेश और निर्यात में कमी से प्रेरित थी, जबकि मौजूदा मंदी निजी खपत में कमी से प्रेरित है।
- निजी खपत जो कि पारंपरिक रूप से दक्षिण एशिया क्षेत्र के विकास हेतु काफी महत्त्वपूर्ण है, में 10 प्रतिशत से अधिक की गिरावट हो सकती है।
- रिपोर्ट के अनुसार, जहाँ एक ओर भारत, मालदीव और श्रीलंका आदि देशों की अर्थव्यवस्था में संकुचन देखने को मिलेगा, वहीं पाकिस्तान, बांग्लादेश और भूटान जैसे देशों की अर्थव्यवस्था में काफी धीमी गति से वृद्धि होगी।
आगे की राह
- विश्व बैंक ने भारत समेत दक्षिण एशिया के तमाम देशों की सरकारों से सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ अधिक उत्पादकता, कौशल विकास और मानव पूंजी में बढ़ोतरी करने वाली नीतियों के निर्माण का आग्रह किया।
- महामारी के गंभीर आर्थिक प्रभावों के बीच दक्षिण एशियाई देशों की सरकारों ने मौद्रिक नीति, आर्थिक प्रोत्साहन और वित्तीय विनियमन के माध्यम से अपनी-अपनी अर्थव्यवस्थाओं को स्थिरता प्रदान करने का प्रयास किया है, किंतु स्थिति अभी भी काफी नाज़ुक बनी हुई है।
- ऐसे में नीतिगत हस्तक्षेप और संसाधनों के इष्टतम आवंटन के माध्यम से अर्थव्यवस्था के औपचारिक क्षेत्रों के साथ-साथ अनौपचारिक क्षेत्रों को भी लक्षित करने की आवश्यकता है।