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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-यूरोपीय संघ संबंध

  • 15 May 2021
  • 10 min read

यह एडिटोरियल दिनाँक 12/05/2021 को ‘द हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित लेख “Can India and the EU operationalise their natural partnership?” पर आधारित है। इसमें भारत और यूरोपीय संघ के बीच सहयोग के क्षेत्रों के बारे में जानकारी दी गई है।

हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री और यूरोपीय संघ के 27 नेताओं के बीच एक वर्चुअल वार्ता आयोजित की गई। बदलती भू-राजनीतिक परिस्थितियों के कारण भारत के प्रति यूरोप के दृष्टिकोण में बदलाव आ रहा है जो कि इस वर्चुअल वार्ता में परिलक्षित हुआ।

इसके अलावा वर्ष 2018 में यूरोपीय संघ ने भारत के साथ सहयोग के लिये एक नई रणनीति जारी की जिसे बहुध्रुवीय एशिया में एक भू-राजनीतिक स्तंभ कहा गया जो कि इस क्षेत्र में शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है।

भारतीय दृष्टिकोण से यूरोपीय संघ के साथ सहयोग शांति को बढ़ावा दे सकता है, रोज़गार सृजित कर सकता है, रोज़गार उन्मुख आर्थिक विकास और सतत् विकास को बढ़ावा दे सकता है। इसलिये यूरोपीय संघ और भारत स्वाभाविक भागीदार प्रतीत होते हैं तथा उन्हें मौजूदा अवसरों का लाभ उठाने की आवश्यकता है।

वर्चुअल शिखर सम्मेलन की मुख्य विशेषताएँ 

  • FTA वार्ता की बहाली: शिखर सम्मेलन का सबसे महत्त्वपूर्ण परिणाम यह रहा कि आठ वर्षों के बाद भारत और यूरोपीय संघ ने पुनः एक व्यापक व्यापार समझौते के लिये बातचीत  शुरू करने का फैसला किया है।
    • इन वार्ताओं को वर्ष 2013 में निलंबित कर दिया गया था क्योंकि दोनों पक्ष टैरिफ में कटौती, पेटेंट संरक्षण, डेटा सुरक्षा और भारतीय पेशेवरों के यूरोप में काम करने के अधिकार जैसे कुछ प्रमुख मुद्दों पर अपने मतभेदों को दूर करने में विफल रहे थे।
  • BIT वार्ता की बहाली: दोनों पक्ष एक स्टैंडअलोन निवेश संरक्षण समझौते और भौगोलिक संकेतों पर  समझौते के लिये बातचीत शुरू करने पर भी सहमत हुए हैं।
  • कनेक्टिविटी पार्टनरशिप: वर्चुअल शिखर सम्मेलन में भारत और यूरोपीय संघ ने डिजिटल, ऊर्जा, परिवहन और लोगों से लोगों के बीच एक महत्त्वाकांक्षी "कनेक्टिविटी साझेदारी" शुरू की, जिससे दोनों अफ्रीका, मध्य एशिया से लेकर हिंद-प्रशांत  तक फैले क्षेत्रों में स्थायी संयुक्त परियोजनाओं को आगे बढ़ाने में सक्षम होंगे।  

यूरोपीय संघ और भारत : स्वाभाविक भागीदार

  • यूरोपीय संघ को चीन से दूरी बनाने की आवश्यकता: यूरोपीय संघ ने हाल ही में चीन के साथ निवेश को लेकर एक व्यापक समझौते पर हस्ताक्षर किये जिसे राजनयिक तनाव के कारण अब निलंबित कर दिया गया है।
    • झिंजियांग क्षेत्र में उइगर मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सहायता के लिये यूरोपीय संघ द्वारा चीन के खिलाफ प्रतिबंध लगाया गया जिसके जवाब में चीन द्वारा EU के कुछ सदस्यों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसके चलते यूरोपीय संसद इस सौदे का भारी विरोध कर रही है।
  • आर्थिक तर्क: यूरोपीय संघ भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार और दूसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य  है जिससे मज़बूत भारत-यूरोपीय संघ के आर्थिक संबंधों का तर्क स्वयं स्पष्ट हों जाता है।
    • इसके अलावा, भारत घरेलू विनिर्माण आधार विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करने के क्रम में खुले व्यापार के लिये अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करना चाहता है।
  • वैश्विक स्वास्थ्य में सहयोग: वर्तमान स्थिति को देखते हुए स्वास्थ्य सहयोग ने एक नया महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है।
    • यूरोपीय संघ के सदस्य-राज्यों ने पिछले कुछ हफ्तों में महत्त्वपूर्ण चिकित्सा आपूर्ति भेजकर भारत का समर्थन करने की पहल की है, जो भारत द्वारा पिछले वर्ष  दूसरे देशों के लिये किया जा रहा था।
    • चूँकि दोनों पक्ष वैश्विक स्वास्थ्य पर एक साथ काम करने के लिये प्रतिबद्ध हैं अतः लचीली चिकित्सा आपूर्ति श्रृंखला पर ध्यान केंद्रित करने अधिक आवश्यकता है।
  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समन्वय: यूरोपीय संघ को अपनी विदेश नीति की अनिवार्यता के भू-राजनीतिक निहितार्थों के लिये मजबूर किया जा रहा है और भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समन्वय स्थापित करने के लिये समान विचारधारा वाले देशों के साथ महत्त्वपूर्ण साझेदारी की तलाश कर रहा है।
    • इसके अलावा, भारत अमेरिका और चीन के बीच द्विध्रुवी भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा से परे देख रहा है और एक बहुध्रुवीय विश्व की स्थापना की दिशा में काम कर रहा है।
  • जलवायु परिवर्तन का मुकाबला: भारत वर्ष 2050 तक अपने कार्बन-उत्सर्जन को तटस्थ बनाने के लिये यूरोपीय संघ की ग्रीन डील नामक एक नई औद्योगिक रणनीति को अपना सकता है।
  • यूरोपीय संघ और भारत स्वच्छ ऊर्जा में निवेश करके खुद को वर्ष 2050 तक कार्बन-तटस्थ अर्थव्यवस्थाओं में बदलने का प्रयास कर सकते हैं।
  • भारत में नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाने के भारत के प्रयासों में यूरोप का निवेश और प्रौद्योगिकी सर्वोपरि है।

आगे की राह 

  • भू-आर्थिक सहयोग: भारत सुरक्षा की दृष्टि से नहीं तो भू-आर्थिक रूप से, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संलग्न होने के लिये यूरोपीय संघ के देशों को लक्षित कर सकता है।
    • यह क्षेत्रीय बुनियादी ढाँचे के सतत् विकास के लिये बड़े पैमाने पर आर्थिक संसाधन जुटा सकता है, राजनीतिक प्रभाव को नियंत्रित कर सकता है और हिंद-प्रशांत वार्ता को आकार देने के लिये अपनी महत्त्वपूर्ण सॉफ्ट पावर का लाभ उठा सकता है।
  • भारत-यूरोपीय संघ BIT संधि को अंतिम रूप देना: भारत और यूरोपीय संघ एक मुक्त व्यापार सौदे पर बातचीत कर रहे हैं जो कि वर्ष 2007 से लंबित है।
    • इसलिये भारत और यूरोपीय संघ के बीच घनिष्ठ समन्वय के लिये दोनों को व्यापार समझौते को जल्द से जल्द अंतिम रूप देने में संलग्न होना चाहिये।
  • महत्त्वपूर्ण नेताओं के साथ सहयोग: वर्ष 2018 की शुरुआत में  फ्राँस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन की भारत यात्रा ने रणनीतिक साझेदारी को पुनर्जीवित करने के लिये एक विस्तृत ढाँचे का अनावरण किया।
    • फ्राँस के साथ भारत की साझेदारी अब हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक मज़बूत क्षेत्रीय सहयोग है।
    • इसके अलावा भारत को भारत-ऑस्ट्रेलिया-जापान मंच और फ्राँस तथा ऑस्ट्रेलिया के साथ त्रिपक्षीय वार्ता एवं अन्य मध्य शक्तियों के साथ बहुपक्षीय समूहों के नेटवर्क के अलावा अमेरिका के साथ अपनी साझेदारी को पूरक बनाना चाहिये।

निष्कर्ष

  • जैसा कि कोविड -19 और उसके बाद के समय में रणनीतिक वास्तविकताएँ तेज़ी से विकसित होने की संभावना है, भारत और यूरोपीय संघ के पास अपने सहयोग के मूल सिद्धांतों का पुनर्मूल्यांकन करने के लिये एक नया अवसर है।
  • क्या दो "स्वाभाविक साझेदार" इस ​​अद्वितीय तालमेल का अधिकतम लाभ उठा पाएंगे, यह देखा जाना अभी बाकी है।

मेंस अभ्यास प्रश्न : वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य में, यूरोपीय संघ तथा भारत स्वाभाविक भागीदार प्रतीत होते हैं और उन्हें मौजूदा अवसरों का लाभ उठाने की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये।

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