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भारतीय राजव्यवस्था

डेटा संरक्षण पर संसदीय समिति की कार्रवाई

  • 27 Oct 2020
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:  

डेटा संरक्षण विधेयक, संसदीय विशेषाधिकार 

मेन्स के लिये:

डेटा स्थानीयकरण का महत्त्व, डेटा संरक्षण हेतु सरकार के प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019’ (Personal Data Protection Bill, 2019) की समीक्षा के लिये गठित संसद की संयुक्त समिति द्वारा फेसबुक इंडिया (फेसबुक की भारतीय इकाई) को समिति के प्रश्नों का लिखित उत्तर देने के लिये दो सप्ताह का समय दिया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • ध्यातव्य है कि 23 अक्तूबर, 2020 को फेसबुक इंडिया की सार्वजनिक नीति निदेशक, ‘व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक’ पर गठित संसद की संयुक्त समिति के समक्ष प्रस्तुत हुईं, हालाँकि ई-काॅमर्स कंपनी अमेज़न ने 28 अक्तूबर, 2020 को समिति से समक्ष प्रस्तुत होने से मना कर दिया।
  •  अमेज़न के अनुसार, COVID-19 महामारी के कारण कंपनी के ‘विषय विशेषज्ञ’ अमेरिका से भारत आने का जोखिम नहीं उठा सकते।
  • गौरतलब है कि संसदीय समिति ने उपयोगकर्त्ताओं के डेटा की सुरक्षा और संरक्षण के संदर्भ में फेसबुक, अमेज़न, गूगल और पेटीएम आदि कंपनियों से उनके विचार मांगे थे। 
    • पिछले कुछ समय से ऑनलाइन कंपनियों पर आरोप लगते रहे हैंकि उनके द्वारा अपने व्यावसायिक लाभ के लिये उपयोगकर्त्ताओं के गोपनीय डेटा की सुरक्षा के साथ समझौता किया जाता है।

डेटा सुरक्षा पर पूछताछ:

  • समिति द्वारा फेसबुक से उसके निर्णय लेने की प्रक्रिया, राजस्व मॉडल, कर (Tax) भुगतान करने का तरीका, विज्ञापनदाताओं और इन विज्ञापनदाताओं के लिये लक्षित दर्शक चुनने की प्रक्रिया, नए उपयोगकर्त्ताओं की आयु का पता लगाने व उपयोगकर्त्ताओं की पृष्ठभूमि का सत्यापन की प्रक्रिया के संदर्भ में प्रश्न पूछे गए।
  • समिति द्वारा इसी मामले में पूछताछ के लिये अगले सप्ताह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर और पेटीएम के अधिकारियों को भी बुलाया गया है।  

समिति द्वारा अमेज़न पर कार्रवाई: 

  • समिति की अध्यक्षा और लोकसभा सदस्य मीनाक्षी लेखी ने अमेज़न की प्रतिक्रिया को संसदीय विशेषाधिकार का उल्लंघन बताया है।
  • साथ ही उन्होंने कहा कि यदि निर्धारित तिथि पर कंपनी का कोई प्रतिनिधि समिति के समक्ष नहीं उपस्थित होता है तो ऐसी स्थिति में कंपनी के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।

व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019

(Personal Data Protection Bill, 2019): 

  • व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 को केंद्रीय इलेक्ट्राॅनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री द्वारा दिसंबर 2019 में लोकसभा में प्रस्तुत किया गया था जिसके बाद लोकसभा द्वारा इसे स्थायी समिति के पास भेज दिया गया था।
  • इस विधेयक का उद्देश्य नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा को सुरक्षा प्रदान करने के साथ इसके लिये एक डेटा सुरक्षा प्राधिकरण की स्थापना करना है।
  • यह विधेयक सरकार, भारत की निजी कंपनियों और विदेशी कंपनियों द्वारा व्यक्तिगत डेटा को एकत्र करने, स्थानांतरित करने तथा इसके प्रसंस्करण की प्रक्रिया को विनियमित करने की रूपरेखा प्रस्तुत करता है।
  • यह विधेयक सरकार को कुछ विशेष प्रकार के व्यक्तिगत डेटा को विदेशों में स्थानांतरित करने की अनुमति देने का अधिकार प्रदान करता है, साथ ही यह सरकारी एजेंसियों को नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा एकत्र करने की छूट प्रदान करता है।
  • यह विधेयक सरकार के नेतृत्त्व में बने तकनीकी आधारित समाधानों को भी बढ़ावा देता है, उदाहरण के लिये इस विधेयक के तहत केंद्र सरकार को यह शक्ति प्रदान की गई है कि वह सेवाओं की आपूर्ति के बेहतर लक्ष्यीकरण और साक्ष्य आधारित नीतियों के निर्माण के लिये किसी भी इकाई या कंपनी को गैर-व्यक्तिगत डेटा या अज्ञात डेटा प्रदान करने के लिये निर्देश दे सकती है।

लाभ: 

  • डेटा स्थानीयकरण से किसी मामले की जाँच के दौरान कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिये आसानी से डेटा की पहुँच सुनिश्चित की जा सकेगी, जिससे इंटरनेट से जुड़े अपराधों को रोकने में सहायता प्राप्त होगी।
  • साथ ही डेटा स्थानीयकरण के माध्यम से इंटरनेट से जुड़ी कंपनियों के व्यापार की बेहतर निगरानी संभव होगी।
  • वर्तमान में डेटा अर्थव्यवस्था में भारतीय कंपनियों की भूमिका बहुत ही सीमित है, ऐसे में डेटा स्थानीयकरण के माध्यम से भारतीय बाज़ार में स्थानीय कंपनियों के हितों की रक्षा की जा सकेगी।  

चुनौतियाँ:    

  • कई सामाजिक कार्यकर्त्ता समूहों ने इस विधेयक के तहत सरकार को नागरिकों के डेटा के संदर्भ में दी गई छूट की आलोचना की है। उनके अनुसार, सरकार द्वारा इसका उपयोग लोगों की निगरानी और दमन के लिये किया जा सकता है। 
  • गौरतलब है कि श्रीकृष्णन समिति द्वारा तैयार किये गए मसौदे में सभी प्रकार के व्यक्तिगत डेटा को देश के अंदर ही संरक्षित किये जाने पर बल दिया गया था, जबकि वर्तमान विधेयक में सिर्फ महत्त्वपूर्ण व्यक्तिगत डेटा के संदर्भ में ही इसकी अनिवार्यता निर्धारित की गई है। 

संसदीय विशेषाधिकार: 

  • संसदीय विशेषधिकारों से आशय उन विशेष अधिकारों, उन्मुक्तियों या छूट से है जो संसद के दोनों सदनों, इनकी समितियों और इनके सदस्यों को प्राप्त होते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 में संसदीय विशेषाधिकारों का उल्लेख किया गया है।
  • संसदीय विशेषाधिकार को व्यापक रूप से दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। 
    1. व्यक्तिगत अधिकार: वे अधिकार जिनका उपयोग सदस्य व्यक्तिगत रूप से करते हैं। 
    2. सामूहिक अधिकार: वे अधिकार जिन्हें संसद के दोनों सदनों को सामूहिक रूप से प्रदान किया जाता है।
  • सामूहिक विशेषाधिकारों में सदन को अपनी रिपोर्ट, वाद-विवाद और कार्यवाही के प्रकाशन, जाँच करने, गवाह की उपस्थिति तथा संबंधित प्रपत्र या रिकार्ड को प्रस्तुत करने के लिये आदेश देने का अधिकार शामिल है। साथ ही यह सदस्यों एवं बाहरी लोगों को इसके अधिकारों के हनन या सदन की अवमानना करने पर निंदा करने, चेतावनी या कारावास का दंड (सदस्यों के मामले में बर्खास्तगी या निष्कासन) देने का अधिकार प्रदान करता है।  
    • गौरतलब है कि संविधान के तहत भारत के महान्यायवादी (Attorney General) व केंद्रीय मंत्रियों को संसदीय विशेषधिकार प्रदान किये गए हैं परंतु राष्ट्रपति को ये अधिकार नहीं प्राप्त हैं, हालाँकि राष्ट्रपति का पद संसद का एक अंतरिम भाग होता है। 

स्रोत : द हिंदू

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