पीएम जनजातीय उन्नत ग्राम अभियान
प्रिलिम्स लिये:प्रधानमंत्री जनजातीय उन्नत ग्राम अभियान (PMJUGA), जनजातीय समुदाय, अनुसूचित जनजातियों के लिये विकास कार्य योजना (DAPST), पोषण अभियान, वन अधिकार अधिनियम, 2006 (FRA), टीकाकरण, स्वदेश दर्शन योजना, सिकल सेल रोग, प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना मेन्स के लिये:जनजातीय समुदायों के कल्याण हेतु सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप। |
स्रोत: पीआईबी
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जनजातीय समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार के लिये प्रधानमंत्री जनजातीय उन्नत ग्राम अभियान (PMJUGA ) को मंजूरी दी ।
PMJUGA के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय: यह जनजातीय बहुल गाँवों और आकांक्षी ज़िलों में जनजातीय परिवारों के कल्याण के लिये एक केंद्र प्रायोजित योजना है ।
- लक्षित क्षेत्र और कवरेज: यह 30 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के सभी आदिवासी बाहुल्य गाँवों के 549 ज़िलों और 2,740 ब्लॉकों को कवर करेगा ।
- इससे लगभग 63,000 गाँव और 5 करोड़ से अधिक जनजातीय लोग लाभान्वित होंगे।
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में अनुसूचित जनजाति (एसटी) की आबादी 10.42 करोड़ (8.6%) है, जिसमें 705 से अधिक जनजातीय समुदाय शामिल हैं ।
- उद्देश्य: इसका उद्देश्य भारत सरकार की विभिन्न योजनाओं के माध्यम से इनके बीच स्वास्थ्य, शिक्षा, आजीविका जैसे सामाजिक बुनियादी ढाँचे के संदर्भ में अंतराल को कम करना है।
- मिशन के लक्ष्य: इसमें 25 हस्तक्षेप शामिल हैं, जिन्हें अनुसूचित जनजातियों के लिये विकास कार्य योजना (DAPST) के तहत आवंटित धनराशि के माध्यम से 17 मंत्रालयों द्वारा अगले 5 वर्षों में कार्यान्वित किया जाएगा ताकि निम्नलिखित लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।
- सक्षम बुनियादी ढाँचे का विकास:
- पात्र परिवारों के लिये पक्का आवास: पात्र एसटी परिवारों को PMAY (ग्रामीण) के तहत पक्का आवास मिलेगा, जिसमें नल का जल ( जल जीवन मिशन ) और विद्युत् की आपूर्ति शामिल है। पात्र एसटी परिवारों को आयुष्मान भारत कार्ड (PMJAY) का भी लाभ मिलेगा ।
- गाँव के बुनियादी ढाँचे में सुधार: अनुसूचित जनजाति बाहुल्य गाँवों में सभी मौसम के लिये सड़क संपर्क सुनिश्चित करना (PMGSY), मोबाइल कनेक्टिविटी ( भारत नेट ) और इंटरनेट तक पहुँच प्रदान करना, स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा में सुधार के लिये बुनियादी ढाँचे ( राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, समग्र शिक्षा और पोषण अभियान ) को बढ़ावा देना।
- आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा: यह प्रशिक्षण ( कौशल भारत मिशन ) तक पहुँच प्रदान करके, जनजातीय बहुउद्देशीय विपणन केंद्र (TMMC) से विपणन सहायता के साथ वन अधिकार अधिनियम, 2006 (FRA) पट्टा धारकों के लिये कृषि, पशुपालन और मत्स्य पालन क्षेत्रों में सहायता के माध्यम से कौशल विकास, उद्यमिता संवर्द्धन और उन्नत आजीविका (स्वरोज़गार) पर केंद्रित है।
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच का सार्वभौमिकरण: स्कूल और उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात (GER) को बढ़ाने और ज़िला/ब्लॉक स्तर पर स्कूलों में आदिवासी छात्रावासों की स्थापना करके अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को सस्ती और सुलभ बनाने के प्रयास किये जाएंगे (समग्र शिक्षा अभियान) ।
- स्वस्थ जीवन और सम्मानजनक वृद्धावस्था: इसका उद्देश्य उन क्षेत्रों में मोबाइल मेडिकल इकाइयों के माध्यम से IMR, MMR और टीकाकरण कवरेज के राष्ट्रीय मानकों तक पहुँचना है, जो उप केंद्र मैदानी क्षेत्रों में 10 किलोमीटर से अधिक और पहाड़ी क्षेत्रों में 5 किलोमीटर से अधिक दूर हैं ।
- सक्षम बुनियादी ढाँचे का विकास:
- मानचित्रण और निगरानी: इस मिशन के अंतर्गत शामिल जनजातीय गाँवों को पीएम गति शक्ति पोर्टल पर अंकित किया जाएगा, जिसमें संबंधित मंत्रालय द्वारा योजना विशिष्ट आवश्यकताओं के लिये पहचाने गए अंतरालों को शामिल करने के साथ सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले ज़िलों को पुरस्कृत किया जाएगा।
नोट:
- DAPST भारत में जनजातीय विकास के लिये एक रणनीति है। जनजातीय मामलों का मंत्रालय और 41 अन्य मंत्रालय एवं विभाग DAPST के तहत जनजातीय विकास परियोजनाओं के लिये धन आवंटित करते हैं ।
- इन परियोजनाओं में शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, सिंचाई, सड़क, आवास, विद्युतीकरण और रोज़गार शामिल हैं ।
PMJUGA के तहत आदिवासियों के बीच आजीविका को बढ़ावा देने हेतु अभिनव योजनाएँ क्या हैं?
- जनजातीय गृह प्रवास: जनजातीय क्षेत्रों में पर्यटन को बढ़ावा देने और वैकल्पिक आजीविका प्रदान करने के लिये, पर्यटन मंत्रालय द्वारा स्वदेश दर्शन योजना के तहत 1,000 गृह प्रवासों को बढ़ावा दिया जाएगा।
- पर्यटन की संभावना वाले गाँवों को 5-10 होमस्टे के लिये वित्त पोषण मिलेगा, जिसमें प्रत्येक परिवार को दो नए कमरे बनाने के लिये 5 लाख रुपये, मौजूदा कमरों के नवीनीकरण के लिये 3 लाख रुपये और ग्राम समुदाय की आवश्यकता के लिये 5 लाख रुपये तक का अनुदान मिलेगा।
- वन अधिकार धारकों के लिये सतत् आजीविका: इस मिशन का विशेष ध्यान वन क्षेत्रों में वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत 22 लाख पट्टा धारकों पर है। इसका उद्देश्य वन अधिकारों की मान्यता में तेजी लाना, आदिवासी समुदायों को सशक्त बनाना और विभिन्न सरकारी योजनाओं के माध्यम से इन्हें सतत् आजीविका प्रदान करना है।
- सरकारी आवासीय विद्यालयों और छात्रावासों के बुनियादी ढाँचे में सुधार: इस पहल में स्थानीय शैक्षिक संसाधनों को उन्नत बनाने, नामांकन को बढ़ावा देने और इन संस्थानों में छात्रों को बनाए रखने के लिये आदिवासी आवासीय विद्यालयों, छात्रावासों एवं आश्रम विद्यालयों के बुनियादी ढाँचे में सुधार करना शामिल है ।
- सिकल सेल रोग के निदान हेतु उन्नत सुविधाएँ: एम्स और उन राज्यों के प्रमुख संस्थानों में सक्षमता केंद्र (CoC) स्थापित किये जाएंगे जहाँ सिकल सेल रोग प्रचलित है।
- CoC के पास प्रसवपूर्व निदान हेतु नवीनतम सुविधाएँ, प्रौद्योगिकी, कार्मिक और अनुसंधान क्षमताएँ होंगी, जिसकी लागत 6 करोड़ रुपये/CoC होगी।
- जनजातीय बहुउद्देशीय विपणन केंद्र (TMMCs): जनजातीय उत्पादों के प्रभावी विपणन तथा विपणन अवसंरचना, जागरूकता, ब्रांडिंग, पैकेजिंग और परिवहन सुविधाओं में सुधार के लिये 100 TMMC स्थापित किये जाएंगे ।
PMJUGA की आवश्यकता क्या है?
- निर्धनता: जनजातीय समुदाय अक्सर निर्धन होने के साथ संसाधनों तक इनकी पहुँच सीमित होती है। पूर्ववर्ती योजना आयोग ने अनुमान लगाया था कि ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों का प्रतिशत 45.3% (2011-12) और शहरी क्षेत्रों में 24.1% (2011-12 ) था।
- PMJUGA के तहत रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने और गरीबी में कमी लाने के लिये आदिवासी ज़िलों में कौशल केंद्र खोले जाएंगे ।
- भूमि अधिकार और विस्थापन: कई आदिवासी समुदायों को विकास परियोजनाओं, खनन एवं वनों की कटाई के कारण विस्थापित होना पड़ता है । आदिवासियों के पास अक्सर औपचारिक भूमि नहीं होती है, जिससे असुरक्षित स्वामित्व के साथ इनके शोषण को बढ़ावा मिलता है।
- PMJUGA के तहत अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वन निवासियों (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के तहत उनके भूमि अधिकारों को मान्यता देते हुए 22 लाख FRA पट्टे जारी होंगे ।
- निम्न साक्षरता दर: जनजातीय आबादी में साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से काफी कम है।
- जनगणना 2011 के अनुसार अनुसूचित जनजातियों (ST) की साक्षरता दर 59% थी जबकि अखिल भारतीय स्तर पर समग्र साक्षरता दर 73% थी ।
- किफायती शिक्षा के लिये समग्र शिक्षा अभियान (SSA) के तहत 1000 छात्रावासों का निर्माण किया जाएगा ।
- स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे : राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) 2019-21 की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, आदिवासी बच्चों में स्टंटिंग, वेस्टिंग और कम वज़न की व्यापकता क्रमशः 40.9%, 23.2% और 39.5% है। यह राष्ट्रीय औसत 35.5%, 19.3% और 32.1% से काफी अधिक है ।
- जनजातीय लोगों में सिकल सेल रोग (SCD) का प्रकोप भी अधिक देखा जाता है।
- स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत मोबाइल चिकित्सा इकाइयाँ उपलब्ध कराएगा।
- सांस्कृतिक क्षरण और पहचान : कई जनजातीय समुदाय तीव्र शहरीकरण और वैश्वीकरण जैसे बाहरी दबावों के बीच अपनी पारंपरिक प्रथाओं को बनाए रखने के लिये संघर्ष करते हैं ।
- प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना के तहत सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित रखते हुए आदर्श गाँव बनाए जाएंगे।
- सरकारी योजनाओं के बारे में जागरूकता की कमी: अपनी निर्धनता के बावजूद कई आदिवासी लोग बीपीएल कार्ड, राशन कार्ड या 100 दिन की रोज़गार योजनाओं के लिये जॉब कार्ड के बारे में काफी हद तक अनभिज्ञ हैं। नतीजतन, वे ऐसे लाभों से वंचित रह जाते हैं।
- इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय जागरूकता सृजन के लिये विभिन्न डिजिटल इंडिया पहलों को बढ़ावा देगा।
अनुसूचित जनजातियों के लिये सरकार की अन्य पहल क्या हैं?
- प्रधानमंत्री-जनजाति आदिवासी न्याय महा अभियान (पीएम-जनमन)
- ट्राइफेड
- जनजातीय स्कूलों का डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन
- विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों का विकास
- प्रधानमंत्री वन धन योजना
- एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय
निष्कर्ष:
प्रधानमंत्री जनजातीय उन्नत ग्राम अभियान (PMJUGA) का उद्देश्य सतत् विकास, बुनियादी ढाँचे, आजीविका और सेवाओं तक पहुँच को बढ़ाकर आदिवासी समुदायों का उत्थान करना है । कौशल विकास एवं आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के क्रम में यह शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार करने, विकास अंतराल को कम करने तथा भारत में आदिवासियों को सशक्त बनाने पर केंद्रित है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में आदिवासी समुदायों के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। इन चुनौतियों से निपटने हेतु विभिन्न सरकारी योजनाएँ एवं नीतियाँ बताइये? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स प्रश्न: भारतीय संविधान की किस अनुसूची के तहत खनन के लिये आदिवासी भूमि को निजी पक्षों को हस्तांतरित करना शून्य और अमान्य घोषित किया जा सकता है? (2019) (a) तीसरी अनुसूची उत्तर: (b) प्रश्न. सरकार ने अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत विस्तार (PESA) अधिनियम को 1996 में अधिनियमित किया। निम्नलिखित में से कौन-सा एक उसके उद्देश्य के रूप में अभिज्ञात नहीं है? (2013) (a) स्वशासन प्रदान करना उत्तर: (c) मेन्सप्र. आप उन आँकड़ों की व्याख्या कैसे करते हैं जो दिखाते हैं कि भारत में जनजातियों में लिंगानुपात अनुसूचित जातियों के लिंगानुपात की तुलना में महिलाओं के लिये अधिक अनुकूल है? (2015) |
हीरा क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता
प्रिलिम्स के लिये:हीरा (डायमंड), अपरिष्कृत हीरे (रफ डायमंड), सकल घरेलू उत्पाद (GDP), रोज़गार, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), मुद्रास्फीति, लैब-ग्रो या प्रयोगशाला में निर्मित हीरे, ब्याज दर, निगम कर (कॉर्पोरेट टैक्स), विशेष अधिसूचित क्षेत्र (SNZ), भारत-यूएई व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता (CEPA) । मेन्स के लिये:भारत के लिये रत्न और आभूषण उद्योग का महत्त्व, संबंधित चुनौतियाँ और आगे की राह। |
स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड
चर्चा में क्यों?
थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अनुसार, भारत का हीरा क्षेत्र भारी मंदी का सामना कर रहा है, जो पिछले तीन वर्षों में आयात और निर्यात में उल्लेखनीय गिरावट के कारण चिह्नित है।
- हीरा उद्योग में सुधार आवश्यक है क्योंकि इसके परिणामस्वरूप भुगतान में चूक, संयंत्रों के बंद होने तथा बड़े पैमाने पर रोज़गार समाप्त होने जैसी समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।
भारत के हीरा उद्योग में संकट का वर्तमान परिदृश्य क्या है?
- हीरे के आयात और निर्यात में तीव्र गिरावट: अपरिष्कृत हीरे का आयात 24.5% घटकर वित्त वर्ष 2021-22 में 18.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से वित्त वर्ष 2023-24 में 14 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया।
- कटे और पॉलिश किये गए हीरों का निर्यात 34.6% घटकर वित्त वर्ष 2022 में 24.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर से वित्त वर्ष 2024 में 13.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया है।
- अप्रसंस्कृत और अपरिष्कृत हीरों का उच्च भंडार: अपरिष्कृत हीरों के शुद्ध आयात और कटे तथा पॉलिश किये गए हीरों के शुद्ध निर्यात के बीच का अंतर काफी बढ़ गया है, जो वित्त वर्ष 2022 में 1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 4.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
- अपरिष्कृत हीरे से तात्पर्य उन हीरों से है जो धरती से निकाले जाने के बाद तथा आकार देने एवं पॉलिश करने से पहले अपनी प्राकृतिक अवस्था में होते हैं।
- बिना बिके हीरों के रिटर्न में वृद्धि: वित्त वर्ष 2022 से वित्त वर्ष 2024 की अवधि के दौरान भारत में हीरों का प्रतिशत 35% से बढ़कर 45.6% हो गया।
- रोज़गार और कारखानों के बंद होने पर प्रभाव: यह उद्योग, जो 1.3 मिलियन श्रमिकों को प्रत्यक्ष रूप से रोज़गार प्रदान करता है, बुरी तरह प्रभावित हुआ है, जिससे बेरोज़गारी और आत्महत्याएँ में वृद्धि हुई हैं।
भारत में रत्न एवं आभूषण उद्योग का क्या महत्त्व है?
- भारत की अर्थव्यवस्था में योगदान: जनवरी 2022 तक, सोने और हीरे के व्यापार का भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 7% हिस्सा था, जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।
- रोज़गार: रत्न एवं आभूषण क्षेत्र लगभग 5 मिलियन लोगों को रोज़गार प्रदान करते है, जिससे यह भारत में रोज़गार सृजन के लिये एक महत्त्वपूर्ण उद्योग बन गया है।
- भारतीय हीरा उद्योग में 7,000 से अधिक कंपनियाँ शामिल हैं, जिनमें मुख्य रूप से लघु और मध्यम उद्यम (SME) शामिल हैं, जो गुजरात के सूरत और महाराष्ट्र के मुंबई में केंद्रित हैं।
- सूरत, मुंबई, जयपुर, त्रिचूर, नेल्लोर, दिल्ली, हैदराबाद और कोलकाता भारत में रत्न और आभूषण के प्रमुख केंद्र हैं।
- अकेले सूरत में हीरे की कटाई और पॉलिशिंग के कार्य में लगभग 800,000 श्रमिक कार्यरत हैं।
- FDI नीति: सरकार ने स्वचालित मार्ग के अंतर्गत रत्न एवं आभूषण क्षेत्र में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति प्रदान की है ।
- अप्रैल 2000 और मार्च 2024 के बीच, भारत के हीरा और सोने के आभूषण क्षेत्र में संचयी FDI प्रवाह 1,276.52 मिलियन अमेरिकी डॉलर था ।
- विकास और निर्यात प्रदर्शन: वित्त वर्ष 2021 में भारत के रत्न और आभूषण बाज़ार का आकार 78.50 बिलियन अमरीकी डॉलर था।
- वित्त वर्ष 24 में भारत का रत्न और आभूषण निर्यात 22.27 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो वैश्विक चुनौतियों के बावजूद इस क्षेत्र के लचीलेपन को दर्शाता है।
भारत के हीरा उद्योग में संकट के क्या कारण हैं?
- आर्थिक अनिश्चितता: आर्थिक अनिश्चितता, मुद्रास्फीति और भू-राजनीतिक तनाव के कारण अमेरिका, चीन और यूरोप जैसे प्रमुख बाज़ारों में पॉलिश किये गए हीरे की मांग में तेजी से गिरावट आई है, जिसके कारण हीरे सहित विलासिता की वस्तुओं पर उपभोक्ता व्यय में कमी आई है।
- रूस-यूक्रेन संघर्ष: रूस -यूक्रेन संघर्ष ने वैश्विक हीरा आपूर्ति शृंखला को भी बाधित कर दिया है, तथा प्रमुख अपरिष्कृत हीरा उत्पादक रूस पर भी प्रतिबंध लगा दिये गए हैं।
- इससे व्यापार संबंधी गतिविधियाँ बाधित हुई हैं, जिससे वैश्विक हीरा व्यापार धीमा पड़ गया।
- कीमतों में उतार-चढ़ाव: वैश्विक हीरे की कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण अनिश्चितता की स्थिति पैदा हो गई है, खरीदार कीमतों में और गिरावट की आशंका के कारण अपरिष्कृत हीरे खरीदने से कतरा रहे हैं ।
- प्रयोगशाला में निर्मित हीरों को प्राथमिकता: उपभोक्ताओं की प्राथमिकताएँ प्रयोगशाला में निर्मित हीरों की ओर बढ़ रही हैं, जो अधिक किफायती, नीतिपरक और सतत् हैं। यह प्राकृतिक हीरों की मांग को भी प्रभावित कर रहा है ।
- प्रयोगशाला में निर्मित हीरे मानव निर्मित हीरे होते हैं, जो रासायनिक और प्राकृतिक रूप से खनन किये गए हीरों के समान होते हैं।
- परिचालन लागत में वृद्धि: वैश्विक हीरा व्यापार में बढ़ती परिचालन लागत (उच्च श्रम, ऊर्जा और सामग्री लागत) और कम लाभ मार्जिन ने कई पॉलिशिंग इकाइयों के लिये बाधा उत्पन्न कर कर दी है।
- इसके कारण विशेष रूप से सूरत में कई दुकानें बंद कर दी गई।
- सख्त ऋण संबंधी शर्तें: हीरा उद्योग वित्तपोषण पर बहुत अधिक निर्भर है, लेकिन उच्च ब्याज दरों और बैंकों से कम ऋण जैसी सख्त ऋण शर्तों ने कंपनियों के लिये अपरिष्कृत हीरे खरीदना मुश्किल बना दिया है, जिससे उत्पादन और भी बाधित हो गया है।
- विनियामक मुद्दे: अपरिष्कृत हीरों के विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं पर भारत की उच्च निगम कर व्यवस्था के कारण भारत के बजाय संयुक्त अरब अमीरात से अधिक अपरिष्कृत हीरों का पुनः निर्यात किया जा रहा है, जिससे मुंबई और सूरत में भारत के विशेष अधिसूचित क्षेत्र (SNZ) प्रभावित हो रहे हैं।
- संयुक्त अरब अमीरात बोत्सवाना, अंगोला, दक्षिण अफ्रीका, रूस से अपरिष्कृत हीरे आयात करता है और इन्हें भारत में पुनः निर्यात करता है।
- परिणामस्वरूप, भारत के अपरिष्कृत हीरे के आयात में UAE की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2020 में 36.3% से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 की पहली तिमाही में 64.5% हो गई है, जबकि इसी अवधि के दौरान बेल्जियम की हिस्सेदारी 37.9% से घटकर 17.6% हो गई है।
- भारत-यूएई व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) के तहत भारत को निर्यात किये जाने वाले कटे और पॉलिश किये गए हीरों पर UAE को कोई टैरिफ नहीं देना पड़ता है।
- जटिल सीमा शुल्क प्रक्रियाएँ: भारत से निर्यात किये गए कटे और पॉलिश किये गए हीरों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा गुणवत्ता संबंधी मुद्दों, खरीदारों द्वारा अधिक स्टॉक रखने आदि के कारण वापस किया जा रहा है।
- जटिल सीमा शुल्क प्रक्रियाओं के कारण इन रिटर्नों को नियंत्रित करना महँगा और अधिक समय वाला , जिससे निर्यातकों पर और अधिक दबाव पड़ता है।
भारत के हीरा उद्योग में संकट को दूर करने के लिये क्या किया जा सकता है?
- निर्यात ऋण की शर्तें में वृद्धि: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) कटे और पॉलिश किये गए हीरे के निर्यातकों के लिये निर्यात ऋण की अवधि 6 महीने से बढ़ाकर 12 महीने कर सकता है, क्योंकि खरीदार लंबी ऋण अवधि की मांग कर रहे हैं।
- निर्यात ऋण अवधि से तात्पर्य उस अवधि से है जिसके लिये निर्यातकों को उनके निर्यात कार्यों के वित्तपोषण के लिये ऋण प्रदान किया जाता है।
- विदेशी हीरा विक्रेताओं को निगम कर से छूट: GTRI ने भारत में अपरिष्कृत हीरों के विदेशी विक्रेताओं को निगम कर से छूट देने का सुझाव दिया है, क्योंकि वर्तमान कर संरचना के कारण विक्रेताओं को अपना आयात संयुक्त अरब अमीरात के माध्यम से करना पड़ता है।
- प्रयोगशाला में विकसित हीरा उद्योग को विनियमित करना: प्रयोगशाला में विकसित हीरों की बढ़ती मांग को देखते हुए प्राकृतिक हीरों के लिये उचित और सतत् बाज़ार सुनिश्चित करने के लिये विनियमन की आवश्यकता है।
- दुबई से ‘ज़ीरो-टैरिफ’ आयात पर पुनर्विचार: भारत-UAE व्यापार समझौते के तहत UAE से आयातित कटे और पॉलिश किये गए हीरों पर ज़ीरो-टैरिफ पर घरेलू हीरा उद्योग के संरक्षण हेतु पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
- संगठित अभिनेताओं की ओर झुकाव: बड़े खुदरा विक्रेता और संगठित अभिनेताओं डिज़ाइनों और उत्पादों की व्यापक विविधता की पेशकश कर सकते हैं और घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के रत्न बाज़ार का विस्तार करने में मदद कर सकते हैं।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये रत्न एवं आभूषण उद्योग के महत्त्व का परीक्षण कीजिये। साथ ही हाल ही के समय में इसके समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से किस विदेशी यात्री ने भारत के हीरों और हीरे की खदानों के बारे में विस्तार से चर्चा की? (2018) (a) फ्रैंकोइस बर्नियर उत्तर: (b) |
श्वेत क्रांति 2.0
प्रारंभिक परीक्षा के लिये:श्वेत क्रांति 2.0, कुपोषण, ऑपरेशन फ्लड, नाबार्ड, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB), राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (NPDD), प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ (PACS), ET प्रौद्योगिकी, कुल मिश्रित राशन (TMR)। मुख्य परीक्षा के लिये:श्वेत क्रांति 2.0 की आवश्यकता और इसके उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये प्रौद्योगिकियाँ। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सहकारिता मंत्रालय ने श्वेत क्रांति 2.0 के लिये मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) का अनावरण किया, जिसका उद्देश्य महिला किसानों को सशक्त बनाना तथा रोज़गार के अवसर सृजित करना है।
श्वेत क्रांति 2.0 के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय: यह महिला सशक्तीकरण और कुपोषण के खिलाफ संघर्ष के साथ-साथ दुग्ध उत्पादन बढ़ाने की एक पहल है।
- यह वर्ष 1970 में डॉ. वर्गीज कुरियन द्वारा शुरू की गई श्वेत क्रांति के अनुरूप है, जो डेयरी की कमी वाले देश को दुग्ध उत्पादन में वैश्विक स्तर पर अग्रणी बनाने पर केंद्रित है।
- श्वेत क्रांति को 'ऑपरेशन फ्लड' के नाम से भी जाना जाता है।
- श्वेत क्रांति 2.0 के अंतर्गत लक्ष्य: डेयरी सहकारी समितियों द्वारा पहल के 5वें वर्ष के अंत तक प्रतिदिन 100 मिलियन किलोग्राम दुग्ध की खरीद को सक्षम बनाना।
- इसका उद्देश्य सहकारी समितियों द्वारा खरीद को वर्तमान 660 लाख लीटर प्रतिदिन से बढ़ाकर 1,000 लाख लीटर करना है।
- मार्गदर्शिका की शुरुआत (SOP): 200,000 नई बहुउद्देशीय प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों (MPAC) के गठन के लिये मार्गदर्शिका (SOP) की शुरुआत की गई है।
- इससे उन पंचायतों में नई सहकारी समितियों को बढ़ावा मिलेगा जहाँ कृषि, मत्स्य पालन और डेयरी से संबंधित गतिविधियों के लिये सहकारी समितियाँ नहीं हैं।
- इसे सहकारिता मंत्रालय ने नाबार्ड और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) के सहयोग से तैयार किया है।
- महिला सशक्तीकरण: डेयरी क्षेत्र में काफी संख्या में महिलाएँ कार्यरत हैं, अकेले गुजरात में इसका 60,000 करोड़ रुपए का कारोबार है।
- इस पहल से महिलाओं को औपचारिक रोज़गार में शामिल करके सशक्त बनाया जाएगा।
- कुपोषण से निपटना: दुग्ध की उपलब्धता बढ़ने से सबसे बड़ा लाभ गरीब और कुपोषित बच्चों को मिलेगा।
- इससे बच्चों के लिये पर्याप्त पोषण सुनिश्चित करके कुपोषण के खिलाफ संघर्ष को मज़बूती मिलेगी।
- मौजूदा और आगामी योजनाओं के साथ एकीकरण: यह योजना डेयरी प्रसंस्करण और अवसंरचना विकास निधि (DIDF) और राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (NPDD) जैसी मौजूदा सरकारी योजनाओं पर आधारित होगी।
- सहकारी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिये पशुपालन और डेयरी विभाग के तहत एक नया चरण, NPDD 2.0 भी प्रस्तावित है।
- 'सहकारी समितियों के बीच सहयोग' पहल का विस्तार: सरकार ने 'सहकारी समितियों के बीच सहयोग' पहल का देशव्यापी विस्तार शुरू किया, जिसे गुजरात में सफलतापूर्वक चलाया गया।
- यह डेयरी किसानों को रुपे किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से ब्याज मुक्त नकद ऋण तक पहुँच प्रदान करने के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय सेवाएँ पहुँचाने के लिये माइक्रो-एटीएम वितरित करने पर केंद्रित है।
- PACS कम्प्यूटरीकरण: प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) के कम्प्यूटरीकरण के लिये मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) शुरू की गई है ताकि PACS का आधुनिकीकरण किया जा सके, जिससे इनका अधिक कुशल और पारदर्शी संचालन सुनिश्चित हो सके।
भारत में दुग्ध उत्पादन की वर्तमान स्थिति क्या है?
- वैश्विक रैंकिंग: भारत विश्व का शीर्ष दुग्ध उत्पादक है, जिसका उत्पादन वर्ष 2022-23 के दौरान 231 मिलियन टन तक पहुँच गया।
- वर्ष 1951-52 में देश में सिर्फ 17 मिलियन टन दुग्ध का उत्पादन होता था।
- शीर्ष दुग्ध उत्पादक राज्य: बुनियादी पशुपालन सांख्यिकी (BAHS) 2023 के अनुसार, शीर्ष पाँच दुग्ध उत्पादक राज्य यूपी (15.72%), राजस्थान (14.44%), मध्य प्रदेश (8.73%), गुजरात (7.49%), और आंध्र प्रदेश (6.70%) हैं जो देश के कुल दुग्ध उत्पादन में 53.08% का योगदान करते हैं।
- प्रति व्यक्ति दुग्ध की उपलब्धता: राष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति दुग्ध की उपलब्धता 459 ग्राम/दिन है, जो वैश्विक औसत 323 ग्राम/दिन से अधिक है।
- हालाँकि इसमें महाराष्ट्र के 329 ग्राम से लेकर पंजाब में 1,283 ग्राम तक के रूप में भिन्नता देखने को मिलती है।
- पशुधन के अनुसार दुग्ध उत्पादन: कुल दुग्ध उत्पादन में से लगभग 31.94% की हिस्सेदारी देशी भैंसों की है उसके बाद 29.81% संकर नस्ल के मवेशियों की है। बकरी के दुग्ध का हिस्सा 3.30% और विदेशी गायों का हिस्सा 1.86% है।
- कृषि और पशुधन क्षेत्र में डेयरी का योगदान: दुग्ध उत्पाद (दुग्ध, घी, मक्खन और लस्सी) ने वर्ष 2022-23 में कृषि, पशुधन, वानिकी और मत्स्य पालन क्षेत्रों के कुल उत्पादन मूल्य के लगभग 40% में योगदान दिया।
- इसका मूल्य 11.16 लाख करोड़ रुपए था, जो कृषि क्षेत्र में अनाज की तुलना में व्यापक योगदानकर्त्ता है।
श्वेत क्रांति 2.0 की आवश्यकता क्या है?
- दुग्ध उत्पादकता में वृद्धि करना: विदेशी/संकरित पशुओं का औसत उत्पादन केवल 8.55 किलोग्राम/पशु/दिन है और देशी पशुओं के लिये यह 3.44 किलोग्राम/पशु/दिन है।
- पंजाब में उत्पादन 13.49 किलोग्राम/पशु/दिन (विदेशी/संकर नस्ल) है लेकिन पश्चिम बंगाल में केवल 6.30 किलोग्राम/पशु/दिन है।
- दुग्ध उत्पादन की वार्षिक वृद्धि दर में गिरावट को रोकना: इसकी वृद्धि दर वर्ष 2018-19 के 6.47% से घटकर वर्ष 2022-23 में 3.83% हो गई, जो दुग्ध उत्पादन में वृद्धि दर में मंदी का संकेत है।
- दुग्ध उपभोग पैटर्न का औपचारिकीकरण: कुल दुग्ध उत्पादन का लगभग 63% बाज़ार में आता है; शेष उत्पादकों द्वारा अपने उपभोग के लिये रखा जाता है।
- बाज़ार में बिकने वाले दुग्ध का लगभग दो तिहाई हिस्सा असंगठित क्षेत्र से संबंधित है।
- संगठित क्षेत्र में सहकारी समितियों की हिस्सेदारी काफी अधिक है।
- भारत में दुग्ध सबसे अधिक खाद्य व्यय वाला उत्पाद है: ग्रामीण भारत में प्रति व्यक्ति दुग्ध पर औसत मासिक व्यय 314 रुपए है जो सब्जियों, अनाज और अंडों जैसे अन्य खाद्य पदार्थों से अधिक है।
- इसी प्रकार शहरी भारत में दुग्ध पर व्यय 466 रुपए था जो फलों, सब्जियों, अनाज और माँस पर व्यय से अधिक था।
- दुग्ध की बढ़ती कीमतों पर रोक: चारा और आहार सहित बढ़ती इनपुट लागत के कारण पिछले पाँच वर्षों में दुग्ध की अखिल भारतीय कीमत 42 रुपए से बढ़कर 60 रुपए प्रति लीटर हो गई है।
- इस बात की चिंता है कि कीमतों में और वृद्धि से मांग में कमी आ सकती है क्योंकि उपभोक्ताओं के लिये दुग्ध खरीदना महंगा हो सकता है।
- मीथेन उत्सर्जन: पशुओं के गोबर और जठरांत्रीय उत्सर्जन से होने वाले उत्सर्जन की मानव-जनित मीथेन उत्सर्जन में लगभग 32% हिस्सेदारी है, जो ग्लोबल वार्मिंग का एक प्रमुख कारण है।
श्वेत क्रांति 2.0 के तहत दुग्ध उत्पादन किस प्रकार बढ़ाया जा सकता है?
- आनुवंशिक सुधार: सेक्स-सॉर्टेड (SS) वीर्य के प्रयोग से उच्च दुग्ध उत्पादकता वाली मादा बछड़ियों (जैसे कि कांकरेज और गिर) के जन्म की संभावना 90% तक बढ़ सकती है, जिससे भविष्य में दुग्ध उत्पादक गायों की संख्या में वृद्धि हो सकती है।
- सेक्स-सॉर्टेड (एसएस) वीर्य से वांछित लिंग की संतानों का उत्पादन संभव होता है, उदाहरण के लिये केवल मादा बछड़े।
- भ्रूण स्थानांतरण (ET) प्रौद्योगिकी: ET प्रौद्योगिकी उच्च आनुवंशिक गुणवत्ता (HGM) वाली गायों की उत्पादकता को और बढ़ा सकती है क्योंकि इससे कई भ्रूणों का उत्पादन किया जा सकता है और उन्हें विभिन्न सरोगेट गायों में प्रत्यारोपित किया जा सकता है।
- इस विधि के माध्यम से एकल HGM गाय प्रति वर्ष संभावित रूप से 12 बछड़े पैदा कर सकती है, जबकि सामान्य प्रजनन के माध्यम से पूरे जीवनकाल में 5-7 बछड़े पैदा होते हैं।
- इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) तकनीक: आईवीएफ तकनीक में अपरिपक्व अंडों को निकाला जाता है, प्रयोगशाला में निषेचित किया जाता है और फिर सरोगेट गायों में प्रत्यारोपित किया जाता है।
- इससे प्रति वर्ष प्रति दाता गाय 33-35 बछड़े पैदा कर सकती है जिससे उच्च दुग्ध उत्पादन के साथ गाय की आबादी में तेजी से वृद्धि हो सकती है।
- कम लागत पर पोषण और आहार: आनुवंशिक सुधार के साथ-साथ, पशु पोषण में हस्तक्षेप, आहार लागत को कम करने के लिये आवश्यक है।
- अमूल गुजरात में एक संपूर्ण मिश्रित राशन (TMR) संयंत्र स्थापित कर रहा है, जो पशुओं के लिये मक्का, ज्वार और जई घास से बने किफायती तैयार चारा मिश्रण का उत्पादन करेगा।
- TMR ऐसी आहार विधि है जिसमें गायों के लिये चारे, अनाज, प्रोटीन, खनिज और विटामिन को एक पोषक तत्व युक्त आहार में मिलाया जाता है।
- आहार की गुणवत्ता में सुधार: फलियाँ और अनाज जैसे आसानी से पचने वाले चारे उपलब्ध कराने से किण्वन का समय कम हो जाता है, जिससे मीथेन का उत्पादन कम होता है।
- विशिष्ट फीड योजक मीथेन उत्पादन के लिये ज़िम्मेदार सूक्ष्मजीवों को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
- उत्सर्जित मीथेन का उपयोग बायोगैस उत्पादन के लिये किया जा सकता है।
पशुधन से संबंधित योजनाएँ कौन सी हैं?
- पशुपालन अवसंरचना विकास कोष (AHIDF)
- राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम
- राष्ट्रीय गोकुल मिशन
- राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम
- राष्ट्रीय पशुधन मिशन
निष्कर्ष:
श्वेत क्रांति 2.0 का उद्देश्य दुग्ध उत्पादन को बढ़ाकर, महिला किसानों को सशक्त बनाकर और आनुवंशिक सुधार, भ्रूण स्थानांतरण (ET) एवं इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) के माध्यम से उत्पादन लागत को कम करके भारत के डेयरी क्षेत्र को परिवर्तित करना है। फीड खर्च को कम करने और दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के साथ यह वहनीयता बनाए रखते हुए, किसानों की आय को बढ़ावा देते हुए और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूत करते हुए टिकाऊ विकास सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: श्वेत क्रांति 2.0 के तहत भारत में डेयरी उत्पादन बढ़ाने में प्रौद्योगिकी क्या भूमिका निभा सकती है? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्सप्रश्न: भारत में स्वतंत्रता के बाद कृषि क्षेत्र में हुई विभिन्न प्रकार की क्रांतियों की व्याख्या कीजिये। इन क्रांतियों ने भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में किस प्रकार मदद की है? (2017) |
IVC की खोज के 100 वर्ष
प्रिलिम्स के लिये:हड़प्पा सभ्यता, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI), सिंधु घाटी सभ्यता (IVC) , आर्य मेन्स के लिये:सिंधु घाटी सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ, नगर नियोजन, सिंधु घाटी सभ्यता का पतन, समकालीन सभ्यताएँ और इसकी प्रमुख विशेषताएँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
20 सितंबर 2024 को सिंधु घाटी सभ्यता की खोज के 100 वर्ष पूरे हो गए, जिसकी खोज पुरातत्वविद् सर जॉन मार्शल ने 20 सितंबर 1924 की थी।
- यह सभ्यता भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में 1.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर में 2,000 से अधिक स्थलों तक फैली हुई है और अपनी उन्नत शहरी योजना और वास्तुकला के लिये प्रसिद्ध है।
हड़प्पा सभ्यता क्या थी?
- परिचय:
- हड़प्पा सभ्यता , जिसे सिंधु घाटी सभ्यता (IVC) के रूप में भी जाना जाता है, सिंधु नदी के किनारे लगभग 2500 ईसा पूर्व में विकसित हुई थी ।
- यह मिस्र, मेसोपोटामिया और चीन के साथ चार प्राचीन शहरी सभ्यताओं में सबसे बड़ी थी ।
- तांबा आधारित मिश्रधातुओं से बनी अनेक कलाकृतियों की खोज के कारण सिंधु घाटी सभ्यता को कांस्य युगीन सभ्यता के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- दया राम साहनी ने सबसे पहले वर्ष 1921-22 में हड़प्पा की खोज की और राखल दास बनर्जी ने वर्ष 1922 में मोहनजोदड़ो की खोज की।
- ASI के महानिदेशक सर जॉन मार्शल उस उत्खनन के लिये जिम्मेदार थे जिससे सिंधु घाटी सभ्यता के हड़प्पा और मोहनजोदड़ो स्थलों की खोज हुई ।
- चरण:
- प्रारंभिक चरण (3200 ईसा पूर्व से 2600 ईसा पूर्व): यह चरण हकरा चरण से संबंधित है, जिसे घग्गर-हकरा नदी घाटी में खोजा गया था। सबसे पुरानी सिंधु लिपि 3000 ईसा पूर्व की है।
- परिपक्व काल (2600 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व): 2600 ईसा पूर्व तक, IVC परिपक्व अवस्था में पहुँच चुका था। इस दौरान पाकिस्तान में हड़प्पा और मोहनजोदड़ो तथा भारत में लोथल जैसे प्रारंभिक हड़प्पा शहर प्रमुख शहरी केंद्रों के रूप में विकसित हो रहे थे।
- परवर्ती चरण (1900 ईसा पूर्व से 1500 ईसा पूर्व): इस चरण में हड़प्पा सभ्यता का पतन हो गया और वह नष्ट हो गयी।
हड़प्पा सभ्यता के महत्त्वपूर्ण स्थल कौन-कौन से थे?
IVC के महत्त्वपूर्ण स्थल |
|||
स्थल |
खोजकर्त्ता |
अवस्थिति |
महत्त्वपूर्ण खोज |
हड़प्पा |
दयाराम साहनी (1921) |
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में मोंटगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर स्थित है। |
|
मोहनजोदड़ो (मृतकों का टीला) |
राखलदास बनर्जी (1922) |
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के लरकाना जिले में सिंधु नदी के तट पर स्थित है। |
|
सुत्कान्गेडोर |
स्टीन (1929) |
पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी राज्य बलूचिस्तान में दाश्त नदी के किनारे पर स्थित है। |
|
चन्हुदड़ो |
एन .जी. मजूमदार (1931) |
सिंधु नदी के तट पर सिंध प्रांत में। |
|
आमरी |
एन .जी . मजूमदार (1935) |
सिंधु नदी के तट पर। |
|
कालीबंगन |
घोष (1953) |
राजस्थान में घग्गर नदी के किनारे। |
|
लोथल |
आर. राव (1953) |
गुजरात में कैम्बे की कड़ी के नजदीक भोगवा नदी के किनारे पर स्थित। |
|
सुरकोतदा |
जे.पी. जोशी (1964) |
गुजरात। |
|
बनावली |
आर.एस. विष्ट (1974) |
हरियाणा के हिसार जिले में स्थित। |
|
धौलावीरा |
आर.एस.विष्ट (1985) |
गुजरात में कच्छ के रण में स्थित। |
|
हड़प्पा सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ क्या थीं?
- नगर नियोजन:
- हड़प्पाई सभ्यता अपनी नगरीय योजना प्रणाली के लिये जानी जाती है।
- मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के नगरों में अपने- अपने दुर्ग थे जो नगर से कुछ ऊँचाई पर स्थित होते थे जिसमें अनुमानतः उच्च वर्ग के लोग निवास करते थे ।
- दुर्ग से नीचे सामान्यतः ईंटों से निर्मित नगर होते थे,जिनमें सामान्य लोग निवास करते थे।
- हड़प्पा सभ्यता की एक ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि इस सभ्यता में ग्रिड प्रणाली मौजूद थी जिसके अंतर्गत सडकें एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं ।
- अन्न भंडारों का निर्माण हड़प्पा सभ्यता के नगरों की प्रमुख विशेषता थी।
- पकी हुई ईंटों का प्रयोग हड़प्पा सभ्यता की एक प्रमुख विशेषता थी क्योंकि समकालीन मिस्र में मकानों के निर्माण के लिये शुष्क ईंटों का प्रयोग होता था।
- हड़प्पा सभ्यता में जल निकासी प्रणाली बहुत प्रभावी थी।
- हर छोटे और बड़े घर के अंदर स्वंय का स्नानघर और आँगन होता था।
- कालीबंगा के बहुत से घरों में कुएँ नही पाए जाते थे।
- कुछ स्थान जैसे लोथल और धौलावीरा में संपूर्ण विन्यास मज़बूत और नगर दीवारों द्वारा भागों में विभाजित थे।
- कृषि:
- हड़प्पाई गाँव मुख्यतः प्लावन मैदानों के पास स्थित थे,जो पर्याप्त मात्रा में अनाज का उत्पादन करते थे।
- गेहूँ, जौ, सरसों, तिल, मसूर आदि का उत्पादन होता था। गुजरात के कुछ स्थानों से बाजरा उत्पादन के संकेत भी मिले हैं,जबकि यहाँ चावल के प्रयोग के संकेत तुलनात्मक रूप से बहुत ही दुर्लभ मिलते हैं।
- सिंधु सभ्यता के मनुष्यों ने सर्वप्रथम कपास की खेती प्रारंभ की थी।
- वास्तविक कृषि परंपराओं को पुनर्निर्मित करना कठिन होता है क्योंकि कृषि की प्रधानता का मापन इसके अनाज उत्पादन क्षमता के आधार पर किया जाता है।
- मुहरों और टेराकोटा की मूर्तियों पर सांड के चित्र मिले हैं तथा पुरातात्त्विक खुदाई से बैलों से जुते हुए खेत के साक्ष्य मिले हैं।
- हड़प्पाई लोग कृषि के साथ -साथ बड़े पैमाने पर पशुपालन भी करते थे ।
- घोड़े के साक्ष्य सूक्ष्म रूप में मोहनजोदड़ो और लोथल की एक संशययुक्त टेराकोटा की मूर्ति से मिले हैं।हड़प्पाई संस्कृति किसी भी स्थिति में अश्व केंद्रित नहीं थी।
- अर्थव्यवस्था:
- अनगिनत संख्या में मिली मुहरें ,एकसमान लिपि,वजन और मापन की विधियों से सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों के जीवन में व्यापार के महत्त्व के बारे में पता चलता है।
- हड़प्पाई लोग पत्थर ,धातुओं, सीप या शंख का व्यापर करते थे।
- धातु मुद्रा का प्रयोग नहीं होता था। व्यापार की वस्तु विनिमय प्रणाली मौजूद थी।
- अरब सागर के तट पर उनके पास कुशल नौवहन प्रणाली भी मौजूद थी।
- उन्होंने उत्तरी अफगानिस्तान में अपनी व्यापारिक बस्तियाँ स्थापित की थीं जहाँ से प्रमाणिक रूप से मध्य एशिया से सुगम व्यापार होता था।
- दजला -फरात नदियों की भूमि वाले क्षेत्र से हड़प्पा वासियों के वाणिज्यिक संबंध थे।
- हड़प्पाई प्राचीन ‘लैपिस लाजुली’ मार्ग से व्यापार करते थे जो संभवतः उच्च लोगों की सामाजिक पृष्ठभूमि से संबधित था ।
- शिल्प:
- हड़प्पाई कांस्य की वस्तुएँ निर्मित करने की विधि ,उसके उपयोग से भली भाँति परिचित थे।
- तांबा राजस्थान की खेतड़ी खान से प्राप्त किया जाता था और टिन अनुमानतः अफगानिस्तान से लाया जाता था ।
- बुनाई उद्योग में प्रयोग किये जाने वाले ठप्पे बहुत सी वस्तुओं पर पाए गए हैं।
- हड़प्पाई नाव बनाने की विधि,मनका बनाने की विधि,मुहरें बनाने की विधि से भली- भाँति परिचित थे। टेराकोटा की मूर्तियों का निर्माण हड़प्पा सभ्यता की महत्त्वपूर्ण शिल्प विशेषता थी।
- जौहरी वर्ग सोने ,चांदी और कीमती पत्थरों से आभूषणों का निर्माण करते थे ।
- मिट्टी के बर्तन बनाने की विधि पूर्णतः प्रचलन में थी,हड़प्पा वासियों की स्वयं की विशेष बर्तन बनाने की विधियाँ थीं, हड़प्पाई लोग चमकदार बर्तनों का निर्माण करते थे ।
- धर्म:
- टेराकोटा की लघुमूर्तियों पर एक महिला का चित्र पाया गया है, इनमें से एक लघुमूर्ति में महिला के गर्भ से उगते हुए पौधे को दर्शाया गया है।
- हड़प्पाई पृथ्वी को उर्वरता की देवी मानते थे और पृथ्वी की पूजा उसी तरह करते थे, जिस प्रकार मिस्र के लोग नील नदी की पूजा देवी के रूप में करते थे ।
- पुरुष देवता के रूप में मुहरों पर तीन शृंगी चित्र पाए गए हैं जो कि योगी की मुद्रा में बैठे हुए हैं ।
- देवता के एक तरफ हाथी, एक तरफ बाघ, एक तरफ गैंडा तथा उनके सिंहासन के पीछे भैंसा का चित्र बनाया गया है। उनके पैरों के पास दो हिरनों के चित्र है। चित्रित भगवान की मूर्ति को पशुपतिनाथ महादेव की संज्ञा दी गई है।
- अनेक पत्थरों पर लिंग तथा स्त्री जनन अंगों के चित्र पाए गए हैं।
- सिंधु घाटी सभ्यता के लोग वृक्षों तथा पशुओं की पूजा किया करते थे।
- सिंधु घाटी सभ्यता में सबसे महत्त्वपूर्ण पशु एक सींग वाला गैंडा था तथा दूसरा महत्त्वपूर्ण पशु कूबड़ वाला सांड था।
- अत्यधिक मात्रा में ताबीज भी प्राप्त किये गए हैं।
हड़प्पा सभ्यता के पतन के संभावित कारण क्या थे?
- आक्रमण सिद्धांत: कुछ विद्वानों का सुझाव है कि आर्यों के नाम से जानी जाने वाली इंडो-यूरोपीय जनजातियों ने आक्रमण किया और IVC को ध्वस्त कर दिया। हालाँकि, बाद के समाजों में सांस्कृतिक निरंतरता के साक्ष्य इस अचानक आक्रमण के विवरण को चुनौती देते हैं।
- प्राकृतिक पर्यावरणीय परिवर्तन: पर्यावरणीय कारकों का प्रभाव अधिक व्यापक रूप से स्वीकार्य है।
- टेक्टोनिक गतिविधि: भूकंपों के कारण नदियों के मार्ग बदल गए होंगे, जिससे आवश्यक जल स्रोत सूख गए होंगे।
- वर्षा पैटर्न में परिवर्तन: मानसून पैटर्न में परिवर्तन से कृषि उत्पादकता कम होने के साथ खाद्यान्न की कमी हो गई होगी।
- बाढ़: नदी के मार्ग में परिवर्तन के कारण प्रमुख कृषि क्षेत्रों में बाढ़ आ गई होगी, जिससे सभ्यता की स्थिरता को और अधिक खतरा पैदा हो गया होगा।
IVC साइटों से संबंधित हालिया पहल
- राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (NMHC) : सागरमाला कार्यक्रम के तहत , पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय (MoPSW) लोथल में एक NMHC विकसित कर रहा है । इसमें भारत के समुद्री इतिहास और विरासत को प्रदर्शित करने और पर्यटकों को आकर्षित करने के लिये एक संग्रहालय, थीम पार्क, एक शोध संस्थान और बहुत कुछ शामिल है।
- धोलावीरा को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल करना: जुलाई 2021 में धोलावीरा को यूनेस्को द्वारा भारत का 40वाँ विश्व धरोहर स्थल नामित किया गया ।
- राखीगढ़ी को एक प्रतिष्ठित स्थल के रूप में विकसित करना: केंद्रीय बजट (2020-21) में राखीगढ़ी (हिसार ज़िला, हरियाणा) को एक प्रतिष्ठित स्थल के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव किया गया है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न: सिंधु घाटी सभ्यता के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-सी विशेषता/एँ सिंधु सभ्यता के लोगों की थी? (2013)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (B) मेन्सप्रश्न 1: भारतीय उपमहाद्वीप की प्राचीन सभ्यता मिस्र, मेसोपोटामिया और ग्रीस की सभ्यताओं से इस मायने में भिन्न थी कि इसकी संस्कृति और परंपराएँ आज भी बिना किसी व्यवधान के संरक्षित हैं। टिप्पणी कीजिये। (2015) प्रश्न 2: सिंधु घाटी सभ्यता की शहरी योजना और संस्कृति ने वर्तमान शहरीकरण को किस हद तक इनपुट प्रदान किया है? चर्चा कीजिये। (2014) |