शासन व्यवस्था
जन शिक्षण संस्थान
प्रिलिम्स के लियेजन शिक्षण संस्थान, गैर-सरकारी संगठन मेन्स के लियेजन शिक्षण संस्थान का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जन शिक्षण संस्थान (JSS) ने केरल के नीलांबुर जंगल क्षेत्र के भीतर कुछ दूर-दराज़ की आदिवासी बस्तियों में हाई-स्पीड इंटरनेट की व्यवस्था की है।
प्रमुख बिंदु
परिचय:
- JSS की योजना को पूर्व में श्रमिक विद्यापीठ के नाम से जाना जाता था, यह भारत सरकार की एक अनूठी योजना थी और इसे वर्ष 1967 से देश में गैर-सरकारी संगठनों (NGO) के माध्यम से लागू किया गया था।
- वर्ष 2000 में इस योजना का नाम बदलकर जन शिक्षण संस्थान (JSS) कर दिया गया।
- इसे जुलाई 2018 में शिक्षा मंत्रालय (तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्रालय) से कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया था।
- JSS न्यूनतम लागत और बुनियादी ढाँचे के साथ लाभार्थियों को उनके दरवाज़े पर व्यावसायिक कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान कर लाभान्वित कर रहे हैं।
- JSS इस अर्थ में अद्वितीय हैं कि वे न केवल व्यावसायिक कौशल प्रदान करते हैं बल्कि इसमी जीवन कौशल को भी शामिल करते हैं जो लाभार्थी को दैनिक जीवन में मदद कर सकता है।
- वे अलग-अलग क्षेत्रों में कार्य नहीं कर रहे हैं बल्कि विभिन्न विभागों के साथ कन्वर्जेंस प्रोग्राम भी चला रहे हैं।
- वर्तमान में 25 राज्यों और 3 केंद्रशासित प्रदेशों में 233 जन शिक्षण संस्थान कार्य कर रहे हैं।
- लाभार्थियों का वार्षिक कवरेज लगभग 4 लाख है जिसमें 85% महिलाएँ हैं।
शासनादेश:
- गैर-साक्षर, नव-साक्षर, 8वीं तक की प्राथमिक शिक्षा और 15-45 वर्ष के आयु वर्ग में 12वीं कक्षा तक स्कूल छोड़ने वाले व्यक्तियों को अनौपचारिक मोड में व्यावसायिक कौशल प्रदान करना।
- प्राथमिकता समूह में महिलाएँ, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यक और समाज के अन्य पिछड़े वर्ग शामिल हैं।
कार्यान्वयन:
- इसे भारत सरकार के 100% अनुदान के साथ गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है। JSS सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के अंतर्गत पंजीकृत हैं।
- जन शिक्षण संस्थान के मामलों का प्रबंधन भारत सरकार द्वारा अनुमोदित संबंधित प्रबंधन बोर्ड द्वारा किया जाता है।
JSS का कार्य-क्षेत्र:
- व्यावसायिक तत्त्वों, सामान्य जागरूकता और जीवन संवर्द्धन घटकों को शामिल करते हुए उपयुक्त पाठ्यक्रम एवं प्रशिक्षण मॉड्यूल विकसित करना।
- JSS को प्रौढ़ शिक्षा निदेशालय, राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान और महानिदेशक, रोज़गार एवं प्रशिक्षण द्वारा डिज़ाइन किये गए पाठ्यक्रमों के समकक्ष प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु प्रोत्साहित किया जाता है।
- प्रशिक्षण आयोजित करने के लिये संसाधन संपन्न व्यक्तियों और मास्टर प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण प्रदान करना।
- सरल परीक्षण और पुरस्कार प्रमाण-पत्र प्रशासित करना।
- प्रशिक्षुओं के लिये उपयुक्त प्लेसमेंट हेतु नियोक्ताओं और उद्योगों के साथ नेटवर्क स्थापित करना।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
नैतिक पुलिसिंग
प्रिलिम्स के लियेनैतिक पुलिसिंग मेन्स के लियेनैतिक पुलिसिंग क्या है, इसके विभिन्न पक्षों पर चर्चा कीजिये |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केरल में एक 23 वर्षीय व्यक्ति पर हमले के मामले में पुलिस ने पाँच किशोरों को गिरफ्तार किया। यह हमला भारत में नैतिक पुलिसिंग के बढ़ते उदाहरणों में से एक है।
प्रमुख बिंदु
- परिभाषा: नैतिक पुलिसिंग का सामान्यतः अर्थ एक ऐसी प्रणाली से है जहाँ हमारे समाज के बुनियादी मानकों का उल्लंघन करने वालों पर कड़ी निगरानी और प्रतिबंध लगाया जाता है।
- हमारे समाज का बुनियादी स्तर इसकी संस्कृतियों, सदियों पुराने रीति-रिवाजों और धार्मिक सिद्धांतों में पाया जा सकता है।
- यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ इस घटना की वकालत करने वाले व्यक्ति के नैतिक चरित्र पर सवाल उठाए जाते हैं।
नैतिक पुलिसिंग की अभिव्यक्तियाँ:
- मॉब लिंचिंग: लिंचिंग, हिंसा का एक रूप है जिसमें भीड़ बिना मुकदमे के न्याय के बहाने अपराधी को अक्सर यातना देने और शारीरिक अंग-भंग करने के बाद मार देती है।
- गोरक्षा: गोरक्षा के नाम पर लिंचिंग राष्ट्र की धर्मनिरपेक्षता के लिये गंभीर खतरा है।
- सिर्फ बीफ के शक में लोगों की हत्या करना असहिष्णुता को दर्शाता है।
- सांस्कृतिक आतंकवाद: एंटी रोमियो स्क्वॉड जैसे कार्यकर्त्ता शारीरिक हिंसा के माध्यम से अपने व्यक्तिपरक विश्वास को थोपते हैं।
- ऑनर किलिंग: यह नैतिक पुलिसिंग के चरम मामलों में से एक है जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अतिक्रमण करके पश्चिमी प्रभावों को कम करता है।
- मौलिक अधिकारों पर प्रभाव: कई बार ऐसा होता है जब ‘नैतिक पुलिसिंग’ संविधान में निहित नागरिक के मौलिक अधिकारों जैसे- भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, निजता का अधिकार, गरिमा के साथ जीने का अधिकार आदि में बाधा डालती है।
- उदाहरण के लिये नैतिक पुलिसिंग के कारण LGBT समुदाय को अत्यधिक दुष्परिणामों का सामना करना पड़ता है और इससे उनके जीवन एवं स्वतंत्रता के मूल अधिकार पर खतरा उत्पन्न होता है।
‘नैतिक पुलिसिंग’ को बढ़ावा देने वाले कारक:
- धार्मिक मूल्य: हिंदू धर्म में गायों की पूजा की जाती है, उन्हें जीवन के प्रतीक के रूप में देखा जाता हैऔर इस प्रकार उन्हें पूजा जाता है।
- यह प्रायः गो-सतर्कता को बढ़ावा देता है, जो अल्पसंख्यकों के प्रति बहुसंख्यकों के बीच इस तथाकथित भावना को बढ़ावा देती है कि अल्पसंख्यक नियमित रूप से गोजातीय मांस का सेवन करते हैं।
- सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म: व्हाट्सएप और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म नैतिक पुलिसिंग के लिये उत्प्रेरक का काम करते हैं, क्योंकि यह फर्जी खबरों के प्रसार को बढ़ा सकता है।
- फेक न्यूज़ से लिंचिंग, सांप्रदायिक झड़प जैसी घटनाएँ बढ़ सकती हैं।
- पितृसत्ता: पितृसत्तात्मक मानसिकता वाले लोग महिलाओं की सुरक्षा को अपना कर्तव्य मानते हैं, क्योंकि उन्हें कमज़ोर के रूप में देखा जाता है।
- इसके कारण प्रायः महिलाओं पर भाषण, कपड़े और सार्वजनिक व्यवहार आदि के मामले में प्रतिबंध लगाए जाते हैं।
- पुलिस द्वारा अतिक्रमण: पुलिस एक सार्वजनिक संगठन है जिसे बल प्रयोग करने के लिये असाधारण शक्तियाँ दी जाती हैं। इससे पुलिस कभी-कभी अपनी शक्तियों का अतिक्रमण कर लेती है। उदाहरण के लिये:
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 292 अगर अश्लील मानी जाती है तो किताबों और पेंटिंग जैसी सामग्री को अपराध घोषित कर दिया जाता है। हालाँकि अश्लीलता शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है।
- हालाँकि पुलिसकर्मी धारा 292 का उपयोग फिल्म पोस्टर और विज्ञापन होर्डिंग्स के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिये करते हैं जिन्हें अश्लील माना जाता है। यह कलात्मक रचनात्मकता को कमज़ोर करता है तथा कलाकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कम करता है।
- अनैतिक यातायात (रोकथाम) अधिनियम (PITA) मूल रूप से मानव तस्करी को रोकने के लिये पारित किया गया था।
- इसका उपयोग पुलिस द्वारा उचित सबूत के बिना होटलों पर छापे मारने के लिये किया जाता है यदि उन्हें संदेह है कि वहाँ सेक्स रैकेट चलाया जा रहा है, जिससे कानूनी जोड़ों (Legal Couples) और युवाओं को शर्मिंदगी होती है।
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 292 अगर अश्लील मानी जाती है तो किताबों और पेंटिंग जैसी सामग्री को अपराध घोषित कर दिया जाता है। हालाँकि अश्लीलता शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है।
आगे की राह
- आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार: आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार करने की आवश्यकता है, ताकि प्रशासन में संवैधानिक मूल्यों के बारे में संवेदनशीलता और जागरूकता पैदा हो सके।
- आपराधिक न्याय प्रणाली सुधारों में आमतौर पर सुधारों के तीन सेट शामिल हैं जैसे- न्यायिक सुधार, जेल सुधार, पुलिस सुधार।
- सार्वजनिक चर्चा: विभिन्न नैतिक पुलिसिंग के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता पैदा करने के लिये स्कूलों तथा कॉलेजों में सार्वजनिक चर्चा व वाद-विवाद को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
पोलियो
प्रिलिम्स के लियेपोलियो वायरस, पोलियो उन्मूलन संबंधी उपाय मेन्स के लियेभारत में पोलियो की स्थिति और रोकथाम संबंधी उपाय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ने वाइल्ड पोलियो वायरस के खिलाफ एक निवारक उपाय के रूप में अफगानिस्तान से लौटने वाले लोगों का मुफ्त में टीकाकरण करने का निर्णय लिया है।
- अफगानिस्तान और पाकिस्तान दुनिया के केवल दो ऐसे देश हैं, जहाँ पोलियो अभी भी स्थानिक है।
प्रमुख बिंदु
पोलियो
- पोलियो अपंगता का कारक और एक संभावित घातक वायरल संक्रामक रोग है जो तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है।
- प्रतिरक्षात्मक रूप से मुख्यतः तीन अलग-अलग पोलियो वायरस उपभेद हैं:
- वाइल्ड पोलियो वायरस 1 (WPV1)
- वाइल्ड पोलियो वायरस 2 (WPV2)
- वाइल्ड पोलियो वायरस 3 (WPV3)
- लक्षणात्मक रूप से तीनों उपभेद समान होते हैं और पक्षाघात तथा मृत्यु का कारण बन सकते हैं। हालाँकि इनमें आनुवंशिक और वायरोलॉजिकल अंतर पाया जाता है, जो इन तीन उपभेदों के अलग-अलग वायरस बनाते हैं, जिन्हें प्रत्येक को व्यक्तिगत रूप से समाप्त किया जाना आवश्यक होता है।
प्रसार
- यह वायरस मुख्य रूप से ‘मलाशय-मुख मार्ग’ (Faecal-Oral Route) के माध्यम से या दूषित पानी या भोजन के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में प्रेषित होता है।
- यह मुख्यतः 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है। आंत में वायरस की संख्या में बढ़ोतरी होती, जहाँ से यह तंत्रिका तंत्र पर आक्रमण कर सकता है और पक्षाघात का कारण बन सकता है।
लक्षण:
- पोलियो से पीड़ित अधिकांश लोग बीमार महसूस नहीं करते हैं। कुछ लोगों में केवल मामूली लक्षण पाए जाते हैं, जैसे- बुखार, थकान, जी मिचलाना, सिरदर्द, हाथ-पैर में दर्द आदि।
- दुर्लभ मामलों में पोलियो संक्रमण के कारण मांसपेशियों के कार्य का स्थायी नुकसान (पक्षाघात) होता है।
- यदि साँस लेने के लिये उपयोग की जाने वाली मांसपेशियाँ लकवाग्रस्त हो जाएं या मस्तिष्क में कोई संक्रमण हो जाए तो पोलियो घातक हो सकता है।
रोकथाम और इलाज:
- इसका कोई इलाज नहीं है लेकिन टीकाकरण से इसे रोका जा सकता है।
टीकाकरण:
- ओरल पोलियो वैक्सीन (OPV): यह संस्थागत प्रसव के दौरान जन्म के समय ही दी जाती है, उसके बाद प्राथमिक तीन खुराक 6, 10 और 14 सप्ताह में और एक बूस्टर खुराक 16-24 महीने की उम्र में दी जाती है।
- इंजेक्टेबल पोलियो वैक्सीन (IPV): इसे सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (UIP) के तहत DPT (डिप्थीरिया, पर्टुसिस और टेटनस) की तीसरी खुराक के साथ एक अतिरिक्त खुराक के रूप में दिया जाता है।
हाल के प्रकोप:
- वर्ष 2019 में पोलियो का प्रकोप फिलीपींस, मलेशिया, घाना, म्याँमार, चीन, कैमरून, इंडोनेशिया और ईरान में दर्ज किया गया था, जो ज़्यादातर वैक्सीन-व्युत्पन्न थे, जिसमें वायरस का एक दुर्लभ स्ट्रेन आनुवंशिक रूप से वैक्सीन में स्ट्रेन से उत्परिवर्तित होता था।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, यदि वायरस को उत्सर्जित किया जाता है और कम-से-कम 12 महीनों के लिये एक अप्रतिरक्षित या कम-प्रतिरक्षित आबादी में प्रसारित होने दिया जाता है तो यह यह संक्रमण का कारण बन सकता है।
भारत और पोलियो:
- तीन वर्ष के दौरान शून्य मामलों के बाद भारत को वर्ष 2014 में WHO द्वारा पोलियो-मुक्त प्रमाणन प्राप्त हुआ।
- यह उपलब्धि उस सफल पल्स पोलियो अभियान से प्रेरित है जिसमें सभी बच्चों को पोलियो की दवा पिलाई गई थी।
- देश में वाइल्ड पोलियो वायरस के कारण अंतिम मामला 13 जनवरी, 2011 को पता चला था।
पोलियो उन्मूलन उपाय
वैश्विक:
- वैश्विक पोलियो उन्मूलन पहल:
- इसे वर्ष 1988 में वैश्विक पोलियो उन्मूलन पहल (GPEI) के तहत राष्ट्रीय सरकारों और WHO द्वारा शुरू किया गया था। वर्तमान में विश्व की 80% आबादी पोलियो मुक्त क्षेत्रों में रह रही है।
- पोलियो टीकाकरण गतिविधियों के दौरान विटामिन ए के व्यवस्थित प्रबंधन के माध्यम से अनुमानित 1.5 मिलियन नवजातों की मौतों को रोका गया है।
- इसे वर्ष 1988 में वैश्विक पोलियो उन्मूलन पहल (GPEI) के तहत राष्ट्रीय सरकारों और WHO द्वारा शुरू किया गया था। वर्तमान में विश्व की 80% आबादी पोलियो मुक्त क्षेत्रों में रह रही है।
- विश्व पोलियो दिवस:
- यह प्रत्येक वर्ष 24 अक्तूबर को मनाया जाता है ताकि देशों को बीमारी के खिलाफ अपनी लड़ाई में सतर्क रहने का आह्वान किया जा सके।
भारत:
- पल्स पोलियो कार्यक्रम:
- इसे ओरल पोलियो वैक्सीन के अंतर्गत शत्-प्रतिशत कवरेज प्राप्त करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
- सघन मिशन इंद्रधनुष 2.0:
- यह पल्स पोलियो कार्यक्रम (वर्ष 2019-20) के 25 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में शुरू किया गया एक राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान था।
- सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम:
- इसे वर्ष 1985 में 'प्रतिरक्षण के विस्तारित कार्यक्रम’ (Expanded Programme of Immunization) में संशोधन के साथ शुरू किया गया था।
- इस कार्यक्रम के उद्देश्यों में टीकाकरण कवरेज में तेज़ी से वृद्धि, सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार, स्वास्थ्य सुविधा स्तर पर एक विश्वसनीय कोल्ड चेन सिस्टम की स्थापना, वैक्सीन उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना आदि शामिल हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय इतिहास
सिंधु घाटी की भाषायी संस्कृति
प्रिलिम्स के लिये:सिंधु घाटी सभ्यता, बाल्कन प्रायद्वीप, अक्कादियन, यूनेस्को मेन्स के लिये:सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएँ एवं पतन के कारण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही के एक नए शोध पत्र ने सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization- IVC) की भाषायी संस्कृति पर कुछ नई अंतर्दृष्टि प्रदान की है।
- इससे पहले एक अध्ययन में पाया गया था कि आईवीसी के लोगों के आहार में मांस का प्रभुत्व था, जिसमें बीफ का व्यापक तौर पर सेवन भी शामिल था।
- जुलाई 2021 में यूनेस्को (UNESCO) ने गुजरात के धोलावीरा शहर को भारत की 40वीं विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया।
प्रमुख बिंदु
आईवीसी और द्रविड़ भाषा:
- आईवीसी की भाषा की जड़ें प्रोटो-द्रविड़ियन (Proto-Dravidian) में हैं, जो सभी आधुनिक द्रविड़ भाषाओं की पैतृक भाषा है।
- आईवीसी की एक विशेष आबादी की बुनियादी शब्दावली प्रोटो-द्रविड़ियन रही होगी या सिंधु घाटी क्षेत्र में पैतृक द्रविड़ भाषाएँ बोली जाती रही होंगी।
- पैतृक द्रविड़ भाषाओं के बोलने वालों की सिंधु घाटी क्षेत्र सहित उत्तरी भारत में अधिक ऐतिहासिक उपस्थिति थी, जहाँ से ये प्रवास करते थे।
- प्रोटो-द्रविड़ियन सिंधु घाटी क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषाओं में से एक थी।
- इस नए शोध का दावा है कि आईवीसी के दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषाओं के एक या एक से अधिक समूह थे।
आईवीसी और अन्य सभ्यताएँ:
- अक्कादियन (Akkadian- प्राचीन मेसोपोटामिया में बोली जाने वाली भाषा) के कुछ शब्दों की जड़ें सिंधु घाटी में थीं।
- अध्ययन ने आईवीसी और फारस की खाड़ी के साथ-साथ मेसोपोटामिया के बीच संपन्न व्यापार संबंधों को ध्यान में रखा।
- मेसोपोटामिया की सभ्यताएँ जो वर्तमान इराक और कुवैत की टाइग्रिस तथा यूफ्रेट्स नदियों के तट पर बसी थीं।
- हाथी दाँत विलासिता के सामानों में से एक था और पुरातात्विक तथा प्राणीशास्त्रीय साक्ष्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि सिंधु घाटी मध्य-तीसरी से दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में हाथी दाँत का एकमात्र आपूर्तिकर्त्ता था।
- आमतौर पर भूमध्य सागर के पूर्वी तटों के आसपास की भूमि, जिसमें उत्तर-पूर्वी अफ्रीका, दक्षिण-पश्चिमी एशिया और कुछ बाल्कन प्रायद्वीप (Balkan Peninsula) शामिल हैं।
- चूँकि प्राचीन फारस के लोग मेसोपोटामिया और IVC व्यापारियों के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य करते थे, आईवीसी के हाथी दाँत का निर्यात करते समय इन्होंने यकीनन मेसोपोटामिया में भी भारतीय शब्दों का प्रसार किया था।
सिंधु घाटी सभ्यता
सिंधु घाटी सभ्यता के विषय में:
- सिंधु सभ्यता जिसे सिंधु घाटी सभ्यता भी कहा जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे पुरानी ज्ञात शहरी संस्कृति है।
- हड़प्पा नामक स्थान पर पहली बार यह संस्कृति खोजी गई थी, इसलिये इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है।
- विश्व की तीन सबसे शुरुआती सभ्यताओं यथा- मेसोपोटामिया और मिस्र से सिंधु सभ्यता व्यापक थी।
समय-सीमा:
- इसकी स्थापना लगभग 3300 ईसा पूर्व में हुई थी। यह 2600 ईसा पूर्व और 1900 ईसा पूर्व के बीच अपनी परिपक्व अवस्था में प्रवेश कर चुकी थी। 1900 ईसा पूर्व के आसपास इसका पतन होना शुरू हो गया तथा 1400 ईसा पूर्व के आसपास यह सभ्यता समाप्त हो गई।
भौगोलिक विस्तार:
- भौगोलिक रूप से यह सभ्यता पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, राजस्थान, गुजरात और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक फैली थी।
- इनमें सुत्काग्गोर (बलूचिस्तान में) से पूर्व में आलमगीरपुर (पश्चिमी यूपी) तक तथा उत्तर में मांडू (जम्मू) से दक्षिण में दायमाबाद (अहमदनगर, महाराष्ट्र) तक के क्षेत्र शामिल थे। कुछ सिंधु घाटी स्थल अफगानिस्तान में भी पाए गए हैं।
महत्त्वपूर्ण साइट:
- कालीबंगा (राजस्थान), लोथल, धोलावीरा, रंगपुर, सुरकोटडा (गुजरात), बनवाली (हरियाणा), रोपड़ (पंजाब)।
- पाकिस्तान में: हड़प्पा (रावी नदी के तट पर), मोहनजोदड़ो (सिंध में सिंधु नदी के तट पर), चन्हुदड़ो (सिंध में)।
कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ:
- सिंधु घाटी के शहर इतने परिष्कृत और उन्नति का स्तर प्रदर्शित करते हैं जो अन्य समकालीन सभ्यताओं में नहीं देखा गया।
- अधिकांश शहर समान पैटर्न पर बने थे।
- इनके दो भाग थे: गढ़ और निचला शहर जो कि समाज में पदानुक्रम की उपस्थिति को दर्शाता है।
- अधिकांश शहरों में एक बड़ा स्नानागार था।
- अन्न भंडार, पकी हुई ईंटों से बने दो मंजिला घर, बंद जल निकासी लाइनें और अपशिष्ट जल प्रबंधन की बेहतर प्रणाली के साथ ही यहाँ खिलौने, बर्तन आदि भी मिले।
- यहाँ बड़ी संख्या में मुहरें पाई गई है।
कृषि:
- कपास की खेती करने वाली पहली सभ्यता।
- पशुपालन के तहत भेड़, बकरी और सूअर को भी पाला जाता था।
- फसलें गेहूँ, जौ, कपास, रागी, खजूर और मटर थीं।
- सुमेरियों (मेसोपोटामिया) के साथ व्यापार किया जाता था।
धातु उत्पाद:
- जिनका उत्पादन किया जाता था उनमें तांबा, कांस्य, टिन और सीसा शामिल थे। सोना-चाँदी भी ज्ञात थे।
- लोहे का ज्ञान उन्हें नहीं था।
धार्मिक विश्वास:
- मंदिर या महल जैसी कोई संरचना नहीं मिली है।
- लोग नर और मादा देवताओं की पूजा करते थे।
- खुदाई में एक ऐसी मुहर प्राप्त हुई जिसे 'पशुपति सील (Pashupati Seal) नाम दिया गया था और यह तीन आँखों वाली आकृति की छवि जैसी दिखती है।
मिट्टी के बर्तन:
- खुदाई में काले रंग में डिज़ाइन किये गए लाल मिट्टी के उत्कृष्ट बर्तनों के टुकड़े पाए गए हैं।
- फेएन्स (Faience) का उपयोग मोतियों, चूड़ियों, झुमके और बर्तन बनाने के लिये किया जाता था।
आर्ट फार्म:
- मोहनजोदड़ो से 'डांसिंग गर्ल (Dancing Girl) की एक मूर्ति मिली है और माना जाता है कि यह 4000 वर्ष पुरानी है।
- मोहनजोदड़ो से एक दाढ़ी वाले पुजारी-राजा की आकृति भी मिली है।
अन्य तथ्य:
- लोथल एक पोतगाह (Dockyard- जहाज़ बनाने का स्थान) था।
- मृत लोगों को लकड़ी के ताबूतों में दफन किया जाता था।
- सिंधु घाटी की लिपि का अभी तक स्पष्टीकरण नहीं हो पाया है।
प्रोटो-द्रविड़ भाषा
- यह द्रविड़ भाषाओं की जननी मानी जाती है। प्रोटो-द्रविड़ियन ने 21 द्रविड़ भाषाओं को जन्म दिया।
द्रविड़ भाषाएँ
- द्रविड़ भाषाएँ लगभग 70 भाषाओं का एक परिवार है जो मुख्य रूप से दक्षिण एशिया में बोली जाती हैं। ये भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका में 215 मिलियन से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती हैं।
- सबसे अधिक बोली जाने वाली द्रविड़ भाषाएँ (बोलने वालों की संख्या के अवरोही क्रम में) तेलुगू, तमिल, कन्नड़ और मलयालम हैं, जिनमें से सभी की लंबी साहित्यिक परंपराएँ हैं। छोटी साहित्यिक भाषाएँ तुलु और कोडवा हैं।
- कई द्रविड़-भाषी अनुसूचित जनजातियाँ भी हैं जैसे-पूर्वी भारत में कुरुख और मध्य भारत में गोंडी।
- अरब सागर के तटों के साथ द्रविड़ में स्थानों के नाम और द्रविड़ व्याकरणिक प्रभाव जैसे कि इंडो-आर्यन भाषाओं की विशिष्टता, अर्थात् मराठी, गुजराती, मारवाड़ी और सिंधी से पता चलता है कि द्रविड़ भाषाएँ भारतीय उपमहाद्वीप में अधिक व्यापक रूप से बोली जाती थीं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भूगोल
पूर्वोत्तर में भू-पर्यटन
प्रिलिम्स के लियेभारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, भू-विरासत स्थल मेन्स के लियेपूर्वोत्तर क्षेत्र में भू-पर्यटन का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण’ (GSI) ने भू-पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये पूर्वोत्तर में कुछ भूवैज्ञानिक स्थलों की पहचान की है।
- देश में स्वीकृत 32 भू-पर्यटन या भू-विरासत स्थलों में पूर्वोत्तर के 12 स्थानों को शामिल किया गया है।
प्रमुख बिंदु
भू-विरासत स्थल:
- भू-विरासत का तात्पर्य ऐसी भूवैज्ञानिक मुखाकृतियों या स्थानों से है, जो स्वाभाविक रूप से या सांस्कृतिक रूप से महत्त्वपूर्ण हैं और पृथ्वी के विकास या पृथ्वी विज्ञान के इतिहास के लिये अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं अथवा इनका उपयोग शैक्षिक उद्देश्यों के लिये किया जा सकता है।
- भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) वह मूल निकाय है, जो देश में भू-विरासत स्थलों/राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक स्मारकों की पहचान और संरक्षण की दिशा में प्रयास कर रहा है।
- इनमें शामिल कुल स्थल: छत्तीसगढ़ में समुद्री गोंडवाना जीवाश्म पार्क; हिमाचल प्रदेश में शिवालिक कशेरुकी जीवाश्म पार्क; राजस्थान में स्ट्रोमेटोलाइट पार्क; कर्नाटक में पिलो लावा, आंध्र प्रदेश में एपार्चियन अनकंफॉरमेटी और तिरुमाला पहाड़ियाँ, महाराष्ट्र में लोनार झील आदि।
भू-पर्यटन
- भू-पर्यटन को एक ऐसे पर्यटन के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो किसी स्थान के भौगोलिक चरित्र जैसे- इसका पर्यावरण, संस्कृति, सौंदर्यशास्त्र, विरासत और इसके निवासियों की भलाई आदि को बढ़ावा देने में मदद करता है।
- यह सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देगा, स्थानीय अर्थव्यवस्था में सुधार करेगा और स्थानीय संस्कृति एवं परंपरा के प्रति सम्मान पैदा करेगा।
- भारत विविध भौतिक विशेषताओं, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और घटनापूर्ण प्राचीन इतिहास वाला देश है तथा यह उपमहाद्वीप युगों से विभिन्न भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं की छाप प्रदर्शित करता रहा है और दिलचस्प भूवैज्ञानिक विशेषताओं का भंडार है।
पूर्वोत्तर में भू-विरासत स्थल:
- माजुली (असम):
- यह ब्रह्मपुत्र नदी में स्थित विश्व के बड़े द्वीपों में से एक नदी "द्वीप"।
- 15वीं-16वीं शताब्दी के संत-सुधारक श्रीमंत शंकरदेव और उनके शिष्यों द्वारा स्थापित कई 'सत्रों' या वैष्णव मठों के कारण यह द्वीप असम में अध्यात्म का केंद्र भी है।
- संगेस्तर त्सो (अरुणाचल प्रदेश):
- इसे माधुरी झील के नाम से जाना जाता है।
- यह तिब्बत की सीमा के नज़दीक है और वर्ष 1950 में एक बड़े भूकंप के कारण इसका गठन हुआ।
- लोकटक झील (मणिपुर):
- यह पूर्वोत्तर की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील है।
- इस झील के मुख्य आकर्षण 'फुमडीस' या तैरते हुए बायोमास और 'फुमसंग' या उन पर मछुआरों की झोपड़ियाँ हैं।
- केइबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान, पृथ्वी पर एकमात्र तैरता हुआ वन्यजीव निवास स्थान है, जो झील के दक्षिण-पश्चिमी भाग पर स्थित है और संगाई या भौंह-मृग, नृत्य करने वाले हिरण का अंतिम प्राकृतिक आवास है।
- अन्य:
- मावमलुह केव, मौबलेई या गॉड्स रॉक, थेरियाघाट (मेघालय); उमानंद (असम), चबीमुरा, उनाकोटी (त्रिपुरा); संगीतसर त्सो (अरुणाचल प्रदेश); रीक तलंग (मिज़ोरम); नगा हिल ओफियोलाइट (नगालैंड); स्ट्रोमेटोलाइट पार्क (सिक्किम)।
संबंधित वैश्विक अवधारणा:
- यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्क्स:
- ये एकल, एकीकृत भौगोलिक क्षेत्र हैं जहाँ अंतर्राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक महत्त्व के स्थलों और परिदृश्यों को सुरक्षा, शिक्षा और सतत् विकास की समग्र अवधारणा के साथ प्रबंधित किया जाता है।
- जबकि 44 देशों में फैले 169 यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्क हैं, भारत के पास अभी तक अपना एक भी नहीं है।
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण
- इसकी स्थापना वर्ष 1851 में मुख्य रूप से रेलवे के लिये कोयला भंडार की खोज के लिये की गई थी। वर्तमान में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) खान मंत्रालय से संबद्ध कार्यालय है।
- GSI के मुख्य कार्य राष्ट्रीय भू-वैज्ञानिक सूचना और खनिज संसाधन मूल्यांकन के निर्माण व अद्यतन से संबंधित हैं।
- इसका मुख्यालय कोलकाता में है।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
हिंदुस्तान-228 सिविल एयरक्राफ्ट
प्रिलिम्स के लियेहिंदुस्तान-228, उड़ान योजना, सारस एमके-2 मेन्स के लियेपरिवहन क्षेत्र के विकास में वायुमार्ग की भूमिका एवं सरकार द्वारा इस दिशा में किये जा रहे प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने एक वाणिज्यिक विमान "हिंदुस्तान-228" (Do-228) का सफल ग्राउंड रन (Ground Run) और लो स्पीड टैक्सी (Low Speed Taxi) परीक्षण किया।
- एचएएल, उड़ान (UDAN- उड़े देश का आम नागरिक) योजना को बढ़ावा देने के लिये नागरिक विमानों का निर्माण कर रहा है। केंद्र सरकार का लक्ष्य उड़ान योजना के अंतर्गत 1,000 नए हवाई मार्ग एवं 100 नए हवाई अड्डे स्थापित करना है।
- एचएएल सार्वजनिक क्षेत्र की विमान निर्माण कंपनी है। इसने भारतीय वायु सेना (IAF) के लिये हल्के लड़ाकू विमान (LCA) का भी निर्माण किया है।
प्रमुख बिंदु
हिंदुस्तान-228 के विषय में:
- राष्ट्रीय वैमानिकी प्रयोगशाला (NAL) में 14 सीटर सारस विमान विकास कार्यक्रम को वर्ष 2009 में स्थगित किये जाने के बाद यह भारत में छोटा नागरिक परिवहन विमान विकसित करने की दिशा में पहला बड़ा प्रयास है।
- हालाँकि राष्ट्रीय वैमानिकी प्रयोगशाला उड़ान के लिये सारस एमके-2 (19-सीटर विमान) विमान को विकसित कर रहा है, क्योंकि इसमें "अकुशल", "अर्द्ध-निर्मित" और "बिना पक्की हवाई पट्टियों" में कार्य करने की क्षमता है।
- यह रक्षा बलों द्वारा उपयोग किये जाने वाले जर्मन डोर्नियर 228 रक्षा परिवहन विमान के मौजूदा फ्रेम पर बनाया गया है।
- उड़ान योजना के अंतर्गत लॉन्च एचएएल द्वारा निर्मित दो सिविल डीओ-228 का अधिकतम वज़न 6200 किलोग्राम है।
- यह एक डिजिटल कॉकपिट (वायुयान में चालक-कक्ष) से लैस है जो अधिक सटीक रीडिंग, सटीक जानकारी और फीडबैक के साथ आवश्यक डेटा प्रदर्शन तथा आपात स्थिति में पायलटों को सतर्क करने के लिये स्वतः जाँच क्षमता सुनिश्चित करेगा।
- यह एक बहुउद्देश्यीय उपयोगिता वाला विमान माना जाता है जो वीआईपी परिवहन, यात्री परिवहन, एयर एम्बुलेंस, निरीक्षण, क्लाउड सीडिंग, पैरा जंपिंग, हवाई निगरानी, फोटोग्राफी, रिमोट सेंसिंग और कार्गो परिवहन जैसी मनोरंजक गतिविधियों के लिये उपयोग किया जा सकता है।
- यह विमान 428 किमी. प्रति घंटे की अधिकतम क्रूज़ गति और 700 किमी. प्रति घंटे की रेंज के साथ रात में उड़ान भरने में सक्षम है।
- एचएएल इस विमान को नेपाल जैसे देशों को निर्यात करने पर भी विचार कर रहा है।
उड़ान योजना:
- 'उड़े देश का आम नागरिक' (उड़ान) योजना को वर्ष 2016 में नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत एक क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना के रूप में लॉन्च किया गया था। उड़ान योजना देश में क्षेत्रीय विमानन बाज़ार विकसित करने की दिशा में एक नवोन्मेषी कदम है।
- छोटे नागरिक विमानों को ‘उड़ान योजना’ का एक अनिवार्य घटक माना जाता है।
- इस योजना का उद्देश्य क्षेत्रीय मार्गों पर किफायती तथा आर्थिक रूप से व्यवहार्य और लाभदायक उड़ानों की शुरुआत करना है, ताकि छोटे शहरों में भी आम आदमी के लिये सस्ती उड़ानें शुरू की जा सकें।
- इस योजना के तहत मौजूदा हवाई-पट्टी और हवाई अड्डों के पुनरुद्धार के माध्यम से देश के गैर-सेवारत एवं कम उपयोग होने वाले हवाई अड्डों को कनेक्टिविटी प्रदान करने की परिकल्पना की गई है। यह योजना 10 वर्षों की अवधि के लिये संचालित की जाएगी।
- कम उपयोग होने वाले हवाई अड्डे वे हैं, जहाँ एक दिन में एक से अधिक उड़ान नहीं भरी जाती, जबकि गैर-सेवारत हवाई अड्डे वे हैं जहाँ से कोई भी उड़ान नहीं भारी जाती है।
- चयनित एयरलाइनों को केंद्र, राज्य सरकारों और हवाई अड्डा संचालकों द्वारा वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है, ताकि वे गैर-सेवारत और कम उपयोग होने वाले हवाई अड्डों पर सस्ती उड़ानें उपलब्ध करा सकें।
- अब तक उड़ान योजना के तहत 5 हेलीपोर्ट्स और 2 वाटर एयरोड्रोम सहित 325 मार्गों एवं 56 हवाई अड्डों का परिचालन सुनिश्चित किया गया है।
- नागरिक उड्डयन मंत्रालय (MoCA) ने ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ (भारत@75) की शुरुआत के अवसर पर ‘उड़ान 4.1’ योजना के तहत लगभग 392 मार्गों को प्रस्तावित किया था।
- ‘उड़ान 4.1’ विशेष हेलीकॉप्टर और सीप्लेन मार्गों के साथ छोटे हवाई अड्डों को जोड़ने पर केंद्रित है। सागरमाला सीप्लेन सेवाओं के तहत कुछ नए मार्ग प्रस्तावित किये गए हैं।
- सागरमाला सी-प्लेन सेवा संभावित एयरलाइन ऑपरेटरों के साथ पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के तहत एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है।
- ‘उड़ान 4.1’ विशेष हेलीकॉप्टर और सीप्लेन मार्गों के साथ छोटे हवाई अड्डों को जोड़ने पर केंद्रित है। सागरमाला सीप्लेन सेवाओं के तहत कुछ नए मार्ग प्रस्तावित किये गए हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
ग्रीष्म लहर की घटनाओं में वृद्धि
प्रिलिम्स के लियेग्रीष्म लहर, ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, हीट डोम मेन्स के लियेग्रीष्म लहर की अवधारणा एवं प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल के एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2019 में अत्यधिक गर्मी के कारण 3,56,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई और भविष्य में यह संख्या बढ़ने की संभावना है।
- हाल की ग्रीष्म लहर (Heat Wave) की घटनाओं में हुई बढ़ोतरी ने विश्व को बढ़ रहे ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) और इससे होने वाले जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के प्रति सतर्क किया है।
प्रमुख बिंदु
ग्रीष्म लहर:
- ग्रीष्म लहर हवा के तापमान की एक स्थिति है जो मानव शरीर के लिये नुकसानदायक होती है।
- भारत में ग्रीष्म लहर सामान्यतः मार्च-जून के बीच चलती है परंतु कभी-कभी जुलाई तक भी चला करती है।।
- ग्रीष्म लहर असामान्य रूप से उच्च तापमान की वह स्थिति है, जिसमें तापमान सामान्य से अधिक रहता है और यह मुख्यतः देश के उत्तर-पश्चिमी भागों को प्रभावित करती है।
- भारत मौसम विज्ञान विभाग ने मैदानी क्षेत्रों में 40 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में 30 डिग्री सेल्सियस तापमान को ग्रीष्म लहर के मानक के रूप में निर्धारित किया है। जहाँ सामान्य तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से कम रहता है वहाँ 5 से 6 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर सामान्य तथा 7 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान बढ़ने पर गंभीर ग्रीष्म लहर की घटनाएँ होती हैं।
ग्रीष्म लहर का प्रभाव:
- हीट स्ट्रोक: बहुत अधिक तापमान या आर्द्र स्थितियाँ हीट स्ट्रोक का जोखिम पैदा करती हैं।
- वृद्ध लोग और पुरानी बीमारी जैसे- हृदय रोग, श्वसन रोग तथा मधुमेह वाले लोग हीट स्ट्रोक के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, क्योंकि शरीर की गर्मी को नियंत्रित करने की क्षमता उम्र के साथ कम हो जाती है।
- स्वास्थ्य देखभाल की लागत में वृद्धि: अत्यधिक गर्मी के प्रभाव अस्पताल में भर्ती होने, कार्डियो-रेसपिरेटरी (Cardio-respiratory) एवं अन्य बीमारियों से होने वाली मौतों में वृद्धि, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों, प्रतिकूल गर्भावस्था तथा जन्म आदि जैसे परिणामों से भी जुड़े हैं।
- श्रमिकों की उत्पादकता में कमी: अत्यधिक गर्मी श्रमिक उत्पादकता को कम करती है, विशेष रूप से उन 1 अरब से अधिक श्रमिकों की जो नियमित रूप से उच्च गर्मी के संपर्क में आते रहते हैं। ये कर्मचारी अक्सर गर्मी के तनाव के कारण कम काम करते हैं।
- वनाग्नि का खतरा: हीट डोम (Heat Dome) वनाग्नि के लिये ईंधन का काम करते हैं, जो प्रत्येक वर्ष अमेरिका जैसे देशों में काफी अधिक भूमि क्षेत्र को नष्ट कर देता है।
- बादल निर्माण में बाधा: यह स्थिति बादलों के निर्माण में बाधा उत्पन्न करती है, जिससे सूर्य विकिरण अधिक मात्रा में पृथ्वी तक पहुँच जाता है।
- वनस्पतियों पर प्रभाव: गर्मी के कारण फसलों को भी नुकसान हो सकता है, वनस्पति सूख सकती है और इसके परिणामस्वरूप सूखा पड़ सकता है।
- ऊर्जा मांग में वृद्धि: हीट वेव्स के कारण ऊर्जा की मांग में भी वृद्धि होगी, विशेष रूप से बिजली की खपत जिससे इसकी मूल्य दरों में वृद्धि होगी।
- बिजली से संबंधित मुद्दे: हीट वेव्स प्रायः उच्च मृत्यु दर वाली आपदाएँ होती हैं।
- इस आपदा से बचना प्रायः विद्युत ग्रिड के लचीलेपन पर निर्भर करता है, जो बिजली के अधिक उपयोग होने के कारण विफल हो सकते हैं।
- नतीजतन, बुनियादी अवसंरचना की विफलता और स्वास्थ्य प्रभावों का दोहरा जोखिम उत्पन्न हो सकता है।
सिफारिशें:
- शीतलन उपाय:
- प्रभावी एवं पर्यावरणीय रूप से सतत् शीतलन उपाय गर्मी के सबसे खराब स्वास्थ्य प्रभावों से बचा सकते हैं।
- इसमें शहरों में हरियाली को बढ़ावा देना, इमारतों में गर्मी को प्रतिबिंबित करने वाली दीवारों की कोटिंग्स और बिजली के पंखे एवं अन्य व्यापक रूप से उपलब्ध व्यक्तिगत शीतलन तकनीक शामिल हैं।
- जलवायु परिवर्तन शमन:
- कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये जलवायु परिवर्तन शमन एवं पृथ्वी को और अधिक गर्म होने से रोकने में भी काफी मदद मिल सकती है।
- प्रभावी रोकथाम उपाय:
- समयबद्ध एवं प्रभावी रोकथाम तथा प्रतिक्रिया उपायों की पहचान करना, विशेष रूप से अल्प-संसाधनों की स्थिति में ये उपाय समस्या को कम करने हेतु महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं।
संबंधित पहलें
- वैश्विक
- जलवायु परिवर्तन के मुद्दों से निपटने वाले वैश्विक मंच जैसे- ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’, ‘विश्व आर्थिक मंच’, ‘फर्स्ट ग्लोबल फोरम ऑन हीट एंड हेल्थ’ और ‘ग्लोबल फोरम फॉर एन्वायरनमेंट’ आदि भी अत्यधिक गर्मी की स्थिति में जलवायु एवं मौसम की जानकारी हेतु स्वास्थ्य जोखिमों पर अनुसंधान में निवेश करके ‘हीट वेव’ पर ध्यान केंद्रित करते हैं, साथ ही ‘हीट वेव’ से बचने के लिये साझेदारी एवं क्षमता निर्माण तथा संचार और आउटरीच पर सलाह भी प्रदान करते हैं।
- भारत
- ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ (NDMA) ने ‘लू’ की स्थिति से निपटने के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
- हालाँकि भारत ‘आपदा प्रबंधन अधिनियम’ (2005) के तहत हीटवेव को एक आपदा के रूप में मान्यता नहीं देता है।
- ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ (NDMA) ने ‘लू’ की स्थिति से निपटने के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
आगे की राह
- पेरिस समझौते के अनुरूप इस अध्ययन में ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का आह्वान किया गया है, ताकि भविष्य में गर्मी से होने वाली मौतों को रोका जा सके। अत्यधिक गर्मी के कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों में कमी लाना एक तत्काल प्राथमिकता है और इसमें गर्मी से संबंधित मौतों को रोकने के लिये बुनियादी अवसंरचना, शहरी पर्यावरण और व्यक्तिगत व्यवहार में तत्काल परिवर्तन जैसे उपाय शामिल होने चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
उभरते सितारे अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड
प्रिलिम्स के लिये:उभरते सितारे अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड, वैकल्पिक निवेश कोष, ग्रीन-शू ऑप्शन मेन्स के लिये:MSME क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार की अन्य पहलें |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वित्त मंत्रालय ने निर्यात-उन्मुख सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs) को ऋण और इक्विटी फंडिंग की सुविधा के लिये 'उभरते सितारे' वैकल्पिक निवेश कोष (AIF) लॉन्च किया है।
- इस फंड से संभावित लाभ वाले उन भारतीय उद्यमों को चिह्नित करने की उम्मीद है, जो वर्तमान में खराब प्रदर्शन कर रहे हैं या विकास की अपनी छिपी क्षमता का दोहन करने में असमर्थ हैं।
वैकल्पिक निवेश कोष
- निवेश के पारंपरिक रूपों के विकल्प को वैकल्पिक निवेश के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
- भारत में AIFs को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (वैकल्पिक निवेश निधि) विनियम, 2012 के विनियम 2(1)(बी) में परिभाषित किया गया है।
- यह किसी ट्रस्ट या कंपनी या निकाय, कॉर्पोरेट या लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप (LLP) के तौर पर किसी भी निजी रूप से जमा किये गए निवेश फंड (चाहे भारतीय या विदेशी स्रोतों से) को संदर्भित करता है, जो वर्तमान में सेबी के किसी भी विनियमन द्वारा कवर नहीं किया गया है। इस प्रकार AIF की परिभाषा में वेंचर कैपिटल फंड, हेज फंड, प्राइवेट इक्विटी फंड, कमोडिटी फंड, डेट फंड, इंफ्रास्ट्रक्चर फंड आदि शामिल हैं।
प्रमुख बिंदु:
संदर्भ:
- इस योजना के तहत चिह्नित एक ऐसी कंपनी को सहायता प्रदान की जाती है, जो भले ही वर्तमान में खराब प्रदर्शन कर रही हो या विकास हेतु अपनी छिपी क्षमता का दोहन करने में असमर्थ हो।
- यह योजना ऐसी चुनौतियों का निदान करती है और इक्विटी, ऋण तथा तकनीकी सहायता को कवर करते हुए संरचित समर्थन के माध्यम से सहायता प्रदान करती है। इसमें 250 करोड़ रुपए का ग्रीन-शू ऑप्शन भी होगा।
- ग्रीन-शू विकल्प एक अति-आवंटन विकल्प है, यह एक ऐसा शब्द है जो आमतौर पर एक शेयर की पेशकश में विशेष व्यवस्था का वर्णन करने के लिये उपयोग किया जाता है, उदाहरण के लिये एक इनिशियल पब्लिक ऑफर (IPO) जो अपनी पूंजी को जोखिम में डाले बिना, निवेश करने वाले बैंक को पेशकश के बाद शेयर की कीमत का समर्थन करने में सक्षम बनाएगा।
- फंड की स्थापना एक्ज़िम बैंक और सिडबी (भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक) द्वारा संयुक्त रूप से की गई है, जो विनिर्माण एवं सेवा दोनों क्षेत्रों में निर्यात-उन्मुख इकाइयों में इक्विटी व इक्विटी जैसे उत्पादों के माध्यम से फंड में निवेश करेगा।
कंपनियों के चयन के लिये मानदंड:
- अद्वितीय मूल्य:
- वैश्विक आवश्यकताओं से मेल खाने वाली प्रौद्योगिकी, उत्पादों या प्रक्रियाओं में उनके अद्वितीय मूल्य प्रस्ताव के आधार पर समर्थन के लिये कंपनियों का चयन किया जाएगा।
- वित्तीय सामर्थ्य:
- स्वीकार्य वित्तीय और बाहरी अभिविन्यास वाली मौलिक रूप से मज़बूत कंपनियाँ; वैश्विक बाज़ारों में प्रवेश करने की क्षमता वाली छोटी और लगभग 500 करोड़ रुपए वार्षिक कारोबार के साथ मध्यम आकार की कंपनियाँ।
- व्यापार मॉडल:
- एक अच्छा व्यवसाय मॉडल, जो मज़बूत प्रबंधन क्षमता वाली कंपनियों और उत्पाद की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
सहायता
- पात्र कंपनियों को इक्विटी/इक्विटी जैसे इंस्ट्रूमेंट, आधुनिकीकरण के लिये सावधि ऋण, प्रौद्योगिकी या क्षमता उन्नयन के माध्यम से वित्तीय तथा सलाहकार सेवाओं द्वारा समर्थन के साथ ही उत्पाद अनुकूलन, बाज़ार विकास गतिविधियों और व्यवहार्यता अध्ययन के लिये तकनीकी सहायता प्रदान की जा सकती है।
उद्देश्य:
- वित्त और व्यापक सहयोग के माध्यम से चुनिंदा क्षेत्रों में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाना।
- विभेदित प्रौद्योगिकी, उत्पादों या प्रक्रियाओं वाली कंपनियों की पहचान करना और उनका पोषण करना तथा उनके निर्यात व्यवसाय को बढ़ाना; निर्यात क्षमता वाली ऐसी इकाइयों की सहायता करना, जो वित्त के अभाव में अपने परिचालन को बढ़ाने में असमर्थ हैं।
- सफल कंपनियों के सामने आने वाली चुनौतियों की पहचान कर और उनका समाधान करना जो उनके निर्यात में बाधा डालती हैं।
- एक रणनीतिक और संरचित निर्यात बाज़ार विकास पहल के माध्यम से मौजूदा निर्यातकों को अपने उत्पादों की टोकरी को विस्तारित करने तथा नए बाज़ारों को लक्षित करने में सहायता करना।
MSME क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये अन्य पहलें
|