भारतीय इतिहास
सिंधु घाटी सभ्यता का आहार
- 12 Dec 2020
- 8 min read
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजिकल साइंस (Journal of Archaeological Science) में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों के आहार में मांस का प्रभुत्व था, जिसमें गोमांस व्यापक रूप में शामिल था।
प्रमुख बिंदु
- सिंधु घाटी सभ्यता के बर्तनों पर पाए गए चर्बी के अवशेषों पर यह शोध किया गया। इनमें सुअरों, मवेशियों, भैंसों, भेड़ों और बकरियों के मांस की अधिकता मिली। प्राचीन उत्तर-पश्चिमी भारत के शहरी और ग्रामीण इलाकों में मिले पुरातन बर्तनों में दूध से बनी कई चीज़ों के अवशेष भी पाए गए। वर्तमान में यह इलाका हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पड़ता है।
- आलमगीरपुर (मेरठ), उत्तर प्रदेश
- हरियाणा:
- मसूदपुर, लोहारीराघो, राखीगढ़ी शहर (हिसार)
- खानक (भिवानी), फरमाना शहर (रोहतक)
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निष्कर्ष:
- अध्ययन में सिंधु घाटी सभ्यता के ग्रामीण और शहरी बस्तियों से पशु उत्पाद जैसे कि सूअर का मांस, मवेशी, भैंस, भेड़ और बकरी के साथ-साथ डेयरी उत्पादों का प्रभुत्व पाया गया है।
- घरेलू पशुओं में मवेशी/भैंस प्रचुर मात्रा में पाई जाती थीं क्योंकि इस समय के प्राप्त कुल जानवरों की हड्डियों में से 50-60% इन्ही के हैं और शेष 10% हड्डियाँ भेड़/बकरी से संबंधित हैं।
- सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त मवेशी की हड्डियों का उच्च अनुपात भोजन के रूप में गोमांस का इस्तेमाल किये जाने की पुष्टि करता है।
- हड़प्पा में 90% मवेशियों को तब तक जीवित रखा जाता था जब तक कि वे तीन या साढ़े तीन साल के नहीं हो जाते थे। मादा का उपयोग डेयरी उत्पादन के लिये किया जाता था, जबकि नर का इस्तेमाल गाड़ी खीचने के लिये किया जाता था।
- सिंधु घाटी सभ्यता में भोजन की आदत पर पहले भी कई अध्ययन हुए हैं लेकिन इन अध्ययनों का मुख्य ध्यान फसलों पर केंद्रित था।
सिंधु घाटी सभ्यता
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समयसीमा:
- हड़प्पाई लिपि का प्रथम उदाहरण लगभग 3000 ई.पू के समय का मिलता है। 2600 ई.पू. तक सिंधु घाटी सभ्यता अपनी परिपक्व अवस्था में प्रवेश कर चुकी थी। सिंधु घाटी सभ्यता के क्रमिक पतन का आरंभ 1800 ई.पू. से माना जाता है,1700 ई.पू. तक आते-आते हड़प्पा सभ्यता के कई शहर समाप्त हो चुके थे।
- हड़प्पा नामक स्थान पर पहली बार यह संस्कृति खोजी गई थी, इसलिये इसका नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया है।
- हड़प्पाई लिपि का प्रथम उदाहरण लगभग 3000 ई.पू के समय का मिलता है। 2600 ई.पू. तक सिंधु घाटी सभ्यता अपनी परिपक्व अवस्था में प्रवेश कर चुकी थी। सिंधु घाटी सभ्यता के क्रमिक पतन का आरंभ 1800 ई.पू. से माना जाता है,1700 ई.पू. तक आते-आते हड़प्पा सभ्यता के कई शहर समाप्त हो चुके थे।
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भौगोलिक विस्तार:
- भौगोलिक रूप से यह सभ्यता पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, राजस्थान, गुजरात और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक फैली थी।
- इनमें सुत्काग्गोर (बलूचिस्तान में) से पूर्व में आलमगीरपुर (पश्चिमी यूपी) तक तथा उत्तर में मांडू (जम्मू) से दक्षिण में दायमाबाद (अहमदनगर, महाराष्ट्र) तक के क्षेत्र शामिल थे।
- कुछ सिंधु घाटी स्थल अफगानिस्तान में भी पाए गए हैं।
- भौगोलिक रूप से यह सभ्यता पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, राजस्थान, गुजरात और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक फैली थी।
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महत्त्वपूर्ण स्थल:
- भारत में: कालीबंगा (राजस्थान), लोथल, धोलावीरा, रंगपुर, सुरकोटदा (गुजरात), बनावली (हरियाणा), रोपड़ (पंजाब)।
- पाकिस्तान में: हड़प्पा (रावी नदी के तट पर), मोहनजोदड़ो (सिंध में सिंधु नदी के तट पर), चन्हुदड़ो (सिंध में)।
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कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ:
- सिंधु घाटी के शहरों में परिष्करण और उन्नति का स्तर देखा जा सकता है जो उसके समकालीन अन्य सभ्यताओं में नहीं देखा जाता।
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नगर योजना:
- अधिकांश शहरों का स्वरूप समान था। इसमें दो भाग थे: एक गढ़ और एक निचला शहर जो समाज में पदानुक्रम की उपस्थिति को दर्शाता है।
- अधिकांश नगरों में एक महान स्नानागार था।
- यहाँ से पकी ईंटों से बने 2-मंजिला घर, बंद जल निकासी नालियाँ, अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली, माप के लिये वज़न, खिलौने, बर्तन आदि के भी साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
- इसके अलावा बड़ी संख्या में मुहरों की खोज भी की गई है।
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कृषि:
- यह कपास की खेती करने वाली पहली सभ्यता थी।
- हड़प्पाई लोग बहुत सारे पशु पालते थे, वे भेड़, बकरी और सूअर आदि से परिचित थे।
- यहाँ की प्रमुख फसलें गेहूँ, जौ, कपास, रागी, खजूर और मटर थीं।
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व्यापार तथा वाणिज्य:
- सिंधु सभ्यता के लोगों के जीवन में व्यापार और वाणिज्य का बड़ा महत्त्व था इसकी पुष्टि हड़प्पा, लोथल और मोहनजोदड़ों से हुई है।
- सिंधु और मेसोपोटामिया के मध्य व्यापार उन्नत अवस्था में था।
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धातु उत्पाद:
- इन्हें तांबा, काँसा, टिन और सीसा का ज्ञान था इसके अलावा सोने और चाँदी से भी परिचित थे।
- इन्हें लोहे का ज्ञान नहीं था।
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धार्मिक आस्था:
- मंदिरों या महलों जैसी कोई संरचना नहीं पाई गई है।
- पुरुष और महिला देवताओं की पूजा की जाती थी।
- यहाँ से प्राप्त 'पशुपति शिव की मुहर’ विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इस मुहर में एक त्रिमुखी पुरुष को एक चौकी पर पद्मासन मुद्रा में बैठे हुए दिखाया गया है।
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मृद्भांड:
- यहाँ पाए गए मृद्भांड अधिकांशतः लाल अथवा गुलाबी रंग के हैं, इन पर प्राय: काले रंग से अलंकरण किया गया है।
- काँचली मृदा (फायंस) का उपयोग मनकों, चूड़ियों, बालियों और जहाज़ों के निर्माण में किया जाता था।
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कला के रूप:
- मोहनजोदड़ो से 'नर्तकी’ की एक लघु प्रतिमा मिली है, माना जाता है कि यह 4000 वर्ष पुरानी है।
- मोहनजोदड़ो से एक दाढ़ी वाले पुरोहित- राजा की मूर्ति भी मिली है।
- लोथल एक डॉकयार्ड (जहाज़ बनाने का स्थान) था।
- मृतकों को लकड़ी के ताबूतों में दफनाया जाता था।
- सिंधु घाटी लिपि को अभी तक नहीं पढ़ा जा सका है।