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डिप्थीरिया के मामलों में वृद्धि

  • 23 Mar 2021
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में किये गए अध्ययन में पाया गया है कि डिप्थीरिया जो कि अपेक्षाकृत आसानी से रोका जा सकने वाला संक्रमण है, एक बड़ा वैश्विक खतरा बन सकता है।

प्रमुख बिंदु:

आँकड़े:

  • वैश्विक वृद्धि: विश्व स्तर पर डिप्थीरिया के मामलों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। वर्ष 2018 में 16,651 मामले रिपोर्ट किये गए थे, जो कि वर्ष 1996-2017 (8,105 मामले) के दौरान दर्ज मामलों के वार्षिक औसत के दोगुने से अधिक हैं।
  • भारतीय परिदृश्य: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत में वर्ष 2015 के दौरान 2,365 मामले दर्ज किये गए। हालाँकि वर्ष 2016, 2017 और 2018 में यह संख्या क्रमिक रूप से बढ़कर 3,380, 5,293 और 8,788 हो गई।
    • WHO के अनुसार, भारत वर्ष 2017 में वैश्विक स्तर पर डिप्थीरिया के कुल मामलों के 60% मामलों के लिये ज़िम्मेदार था।
    • वर्ष 2018 में दिल्ली में डिप्थीरिया के कारण 50 से अधिक बच्चों की मौत हो गई।

कारण:

  • रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance-AMR): डिप्थीरिया ने एंटीबायोटिक दवाओं के कई वर्गों के लिये प्रतिरोधक क्षमता विकसित करनी शुरू कर दी है।
    • किसी भी सूक्ष्मजीव (बैक्टीरिया, वायरस, कवक, परजीवी आदि) द्वारा ऐसी रोगाणुरोधी दवाओं (एंटीबायोटिक्स, एंटीफंगल, एंटीवायरल, एंटीमाइरियल और एंटीहेलमिंट) के लिये प्रतिरोधक क्षमता विकसित करना, जिनका उपयोग  इसके संक्रमण के इलाज के लिये किया जाता है, AMR कहलाता है।
  • कोविड-19 का प्रभाव: कोविड-19 ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में टीकाकरण कार्यक्रम को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।
    • हाल ही में ‘बच्चों पर कोविड-19 के प्रभाव को लेकर जारी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट’ के अनुसार, टीकाकरण अभियानों के निलंबन से विभिन्न बीमारियों को खत्म करने के लिये किये जा रहे दशकों पुराने प्रयासों में कमी आएगी।
  • बीमारी के संबंध में गलतफहमी: माता-पिता अक्सर इस बीमारी को सामान्य खाँसी और सर्दी समझ लेते हैं तथा चिकित्सक से दवा लेते हैं। चूँकि बच्चे को डिप्थीरिया की दवा नहीं दी जाती है, अतः समय बीतने के साथ बैक्टीरिया से निकलने वाला विष गुर्दे, हृदय और तंत्रिका तंत्र की कार्यशैली में बाधा उत्पन्न करने लगता है।
  • आमतौर पर देखा गया है कि डिप्थीरिया अथवा अन्य संक्रामक रोगों की वैक्सीन को लेकर लोगों में असमंजस की स्थिति पाई जाती है, जिससे टीकाकरण संबंधी प्रक्रिया में बाधा आने के साथ-साथ इन रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने की तीव्रता में भी कमी आती है। वर्तमान में कोविड-19 वैक्सीन के संबंध में भी ऐसी धारणा देखने को मिली है।

डिप्थीरिया:

डिप्थीरिया मुख्य रूप से कोरिनेबैक्टेरियम डिप्थीरिया (Corynebacterium Diphtheriae) नामक बैक्टीरिया के कारण होता है।

लक्षण:

  • सामान्य जुकाम, बुखार, ठंड लगना, गले में सूजन ग्रंथि, गले में खराश, त्वचा नीली होना आदि।

प्रभाव:

  • इसका प्राथमिक संक्रमण गले और ऊपरी श्वसन मार्ग में होता है। यह अन्य अंगों को प्रभावित करने वाले टॉक्सिन का उत्पादन करता है।
  • डिप्थीरिया गले और कभी-कभी टॉन्सिल को भी प्रभावित करता है।
  • इसका एक अन्य प्रकार त्वचा पर अल्सर का कारण बनता है।

संक्रमण:

  • यह मुख्य रूप से खाँसी और छींक या संक्रमित व्यक्ति के साथ निकट संपर्क के माध्यम से फैलता है।

संक्रमित जनसंख्या:

  • डिप्थीरिया विशेष रूप से 1 से 5 वर्ष की आयु के बच्चों को प्रभावित करता है।
    • पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में डिप्थीरिया के मामलों की घटना प्राथमिक डिप्थीरिया टीकाकरण के कम कवरेज को दर्शाती है

मृत्यु दर:

  • केवल 5-10% मामलों में डिप्थीरिया मृत्यु का कारण बन सकता है।

उपचार:

  • टॉक्सिन के प्रभावों को बेअसर करने के लिये ‘डिप्थीरिया एंटीटॉक्सिन’, साथ ही बैक्टीरिया को मारने के लिये ‘एंटीबायोटिक्स’ का प्रयोग किया जाता है।
  • डिप्थीरिया को एंटीबायोटिक दवाओं और टीकों के उपयोग से रोका जा सकता है।

टीकाकरण:

  • डिप्थीरिया का टीका भारत के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत सबसे पुराने टीकों में से एक है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के आँकड़ों के अनुसार, डिप्थीरिया वैक्सीन का कवरेज 78.4% है।
  • वर्ष 1978 में भारत ने टीकाकरण पर विस्तारित कार्यक्रम शुरू किया।
    • इस कार्यक्रम के अंतर्गत पहले तीन टीके BCG (टीबी के खिलाफ), DPT (डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टिटनेस) और हैजा के थे।
  • वर्ष 1985 में इस कार्यक्रम को ‘सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम’ (Universal Immunisation Programme- UIP) में बदल दिया गया। DPT का टीका अभी भी सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा बना हुआ है, इस कार्यक्रम में अब 12 टीके शामिल हैं।
  • अब इसे एक ‘पेंटावैलेंट वैक्सीन’ (डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टिटनेस, हेपेटाइटिस बी और हीमोफिलस इन्फ्लुएंज़ा टाइप बी के खिलाफ टीका) के रूप में शामिल किया गया है ।
    • इसे उन आठ वैक्सीन खुराक के संयोजन में भी शामिल किया गया है जो जीवन के प्रथम वर्ष में पूर्ण टीकाकरण कार्यक्रम के तहत लगाई जाती हैं।
  • हाल ही में कोविड-19 महामारी के दौरान नियमित टीकाकरण से चूक गए बच्चों और गर्भवती महिलाओं को कवर करने के लिये सघन मिशन इन्द्रधनुष 3.0 (Intensified Mission Indradhanush- IMI 3.0) योजना शुरू की गई है।

स्रोत- डाउन टू अर्थ

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