अंतर्राष्ट्रीय संबंध
पोलियो-मुक्त होने के बावजूद भारत में पल्स पोलियो अभियान की आवश्यकता क्यों?
- 05 Feb 2018
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चर्चा में क्यों?
- 28 जनवरी को भारत ने अपने पल्स पोलिओ अभियान- 2018 के दो राष्ट्रीय चरणों में से पहले चरण को कार्यान्वित किया। दूसरे चरण का क्रियान्वयन 11 मार्च को किया जाएगा।
- इन दो अभियानों के तहत 5 वर्ष से कम आयु वाले लगभग 17 करोड़ बच्चों तक ओरल पोलियो वैक्सीन (Oral Polio Vaccine-OPV ) की पहुँच सुनिश्चित करने के प्रयास किये जाएंगे।
पोलियो (पोलियोमाइलिटिस)
- यह एक संक्रामक रोग है जो एक ऐसे वायरस से उत्पन्न होता है, जो गले तथा आंत में रहता है। पोलियोमाइलिटिस एक ग्रीक शब्द पोलियो से आया है जिसका अर्थ है ''भूरा'', माइलियोस का अर्थ है मेरु रज्जु और आइटिस का अर्थ है प्रज्जवलन।
- यह आम तौर पर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संक्रमित व्यक्ति के मल के माध्यम से फैलता है। यह नाक और मुंह के स्राव से भी फैलता है।
- हालाँकि, यह मुख्यतः एक से पाँच वर्ष की आयु के बच्चों को ही प्रभावित करता है, क्योंकि उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता पूरी तरह विकसित नहीं हुई होती है।
- पोलियो का पहला टीका जोनास सौल्क द्वारा विकसित किया गया था।
- गौरतलब है कि दक्षिण-पूर्व एशिया सहित भारत को वर्ष 2014 में पोलियो-मुक्त घोषित किया गया था।
- पोलियो-मुक्त होने के बावजूद भारतीय नीति-निर्माताओं द्वारा पोलियो पर इतना ध्यान इसलिये दिया जा रहा है क्योंकि पोलियो वायरस के भारत में वापस आने का खतरा है।
भारत में पल्स पोलियो अभियान की आवश्यकता
- प्रमुखतया इसकी आवश्यकता इसलिये है क्योंकि पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अभी भी पोलियो वायरस सक्रिय है। यह पोलियो वायरस इन देशों से आने वाले वयस्कों के माध्यम से आसानी से भारत में प्रवेश कर सकता है।
- WHO के मुताबिक, 2016 में पाकिस्तान ने 20 वन्य पोलियो वायरस के मामले दर्ज किये जबकि अफगानिस्तान में 13 मामले सामने आए थे। WHO ने यह भी कहा है कि अंतरराष्ट्रीय यात्रियों से वायरस फैलने का खतरा अधिक रहता है।
- चीन के पोलियो मुक्त होने के 10 साल बाद 2011 में झिंजियांग प्रांत में लकवाग्रस्त पोलियो के 21 मामले और दो मौतों की खबरें सामने आई थी। अनुसंधान करने पर चीन में इस वायरस का प्रवेश पाकिस्तान से पाया गया।
- 2009 में भारत से ताजिकिस्तान में इस वायरस के प्रवेश के कारण वहाँ पर पोलियो के 587 मामले सामने आए।
- वर्तमान में अन्य देशों से पोलियो वायरस के खिलाफ भारत का एकमात्र बचाव इसका सशक्त और सुस्पष्ट टीकाकरण कार्यक्रम है। नवजात शिशुओं के बीच टीकाकरण का अल्प अंतराल भी भारत में इस विषाणु के प्रवेश के लिये पर्याप्त हो सकता है।
- इसके अतिरिक्त पोलियो वायरस के वापस आने का दूसरा खतरा स्वयं OPV है। इस वैक्सीन में दुर्बल लेकिन जीवित पोलियो वायरस का प्रयोग किया जाता है जो दुर्लभ मामलों में लकवाग्रस्त पोलियो (Paralytic Polio) का कारण बन सकता है।
- चूँकि टीका-जनित वायरस प्रतिरक्षित (Immunized) बच्चों द्वारा उत्सर्जित किया जाता है इसलिये यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भी फैल सकता है। इससे टीका-व्युत्पन्न पोलियोवायरस (vaccine-derived poliovirus-VDPV) का खतरा बढ़ जाता है।
- बाह्य कारणों से होने वाले वन्य पोलियो (Wild Polio) की तरह ही VPDV भी कम प्रतिरक्षित (Under-Immunised) बच्चो को प्रभावित कर सकता है।
- इसी कारण दुनिया भर में पोलियो का उन्मूलन करने के लिये ओपीवी को निष्क्रिय पोलियो वैक्सीन (Inactivated Polio Vaccine-IPV) से प्रतिस्थापित करना आवश्यक है।
- IPV के कारण VPDV की समस्या नहीं होती और यह पोलियो वायरस के विरूद्ध बच्चों की समान रूप से प्रतिरक्षा करता है।
पल्स पोलियो अभियान की पृष्ठभूमि
- भारतीय शोधकर्ताओं ने 1980 के दशक में 'पल्स' प्रतिरक्षण की रणनीति के साथ प्रयोग करना शुरू कर दिया था। उस समय OPV भारत के टीकाकरण पर विस्तारित कार्यक्रम का एक हिस्सा था, लेकिन प्रतिदिन लगभग 1,000 बच्चों के विकलांग होने के साथ ही पोलियो के बोझ में कमी नहीं हुई।
- इसी पृष्ठभूमि में वेल्लोर स्थित वाइरोलोजिस्ट टी. जैकब जॉन के नेतृत्व में शोधकर्ताओं के एक समूह ने पल्स अभियान चलाने की संभावनाओं पर विचार किया गया।
- नियमित टीकाकरण में माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को क्लिनिक पर लाने का इंतजार करना पड़ता है और कुछ माता-पिता प्राय: इसकी उपेक्षा भी कर देते हैं।
- पल्स अभियान एक ही बार में पूरी आबादी को वैक्सीन की एक 'पल्स' देने का प्रयास करता है। डॉ. जॉन के अनुसार, नियमित टीकाकरण विकसित देशों में सफल रहा क्योंकि वहा के लोगो में टीकाकरण को लेकर जागरूकता का उच्च स्तर रहा है। लेकिन भारत की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुए यहाँ एक अलग रणनीति की जरूरत थी।
अभियान की शुरुआत
- 1978 में वेल्लोर में एक प्रारंभिक प्रयोग से पता चला है कि टीके के अधिक प्रभावी नहीं होने के बावजूद इसने बच्चो की एक बड़ी संख्या को मज़बूत प्रतिरक्षा प्रदान की।
- इसका प्रमुख कारण यह था कि वैक्सीन पल्सेज़ ने समुदाय में व्याप्त वन्य पोलियो वायरस को वैक्सीन-वायरस ने प्रतिस्थापित कर दिया।
- वेल्लोर, पल्स रणनीति के ज़रिये पोलियो मुक्त बनने वाला पहला भारतीय शहर था और शेष भारत में इस रणनीति को 1995 में अपनाया गया।
पल्स पोलियो प्रतिरक्षण अभियान
- भारत ने विश्व स्वास्थ्य संगठन वैश्विक पोलियो उन्मूलन प्रयास के परिणामस्वरूप 1995 में पल्स पोलियो टीकाकरण (PPI) कार्यक्रम आरंभ किया।
- इस कार्यक्रम के तहत 5 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों को पोलियो समाप्त होने तक हर वर्ष दिसम्बर और जनवरी माह में ओरल पोलियो टीके (OPV) की दो खुराकें दी जाती हैं।
- यह अभियान सफल सिद्ध हुआ है और भारत में पोलियोमाइलिटिस की दर में काफी कमी आई है।
- भारत के स्वास्थ्य मंत्रलय, विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ और रोटरी इंटरनेशनल जैसी संस्थाओं ने इसकी सफलता में अहम भूमिका निभायीं।
आगे की राह
- वन्य पोलियो वायरस के तीन प्रकारों में से एक – वन्य पोलियो वायरस प्रकार 2 (Wild Poliovirus 2 –WPV 2) दुनिया भर से समाप्त कर दिया गया है।
- WPV 2 का अंतिम मामला अक्तूबर, 1999 में अलीगढ़ (भारत) में देखा गया था।
- पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सक्रिय दो अन्य वायरस WPV-1 और WPV-3 हैं। एक बार इन दो वायरसों की रोकथाम कर लेने के बाद OPV को चरणबद्ध तरीके से IPV से प्रतिस्थापित किया जाएगा।