अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन द्वारा निर्मित नवीन बाँध
- 30 Nov 2020
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीनी अधिकारियों ने एक चीनी पनविद्युत कंपनी को ब्रह्मपुत्र नदी (जो तिब्बत में यारलुंग ज़ान्गबो के नाम से जानी जाती है) के निम्न-प्रवाह में प्रथम ‘अनुप्रवाह पनविद्युत परियोजना’ (Downstream Hydropower Project) के निर्माण की अनुमति दे दी है।
प्रमुख बिंदु:
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ब्रह्मपुत्र:
- इसे उत्पत्ति स्थल पर सियांग या दिहांग के नाम से जाना जाता है, जिसका उद्गम मानसरोवर झील के पास कैलाश पर्वत के चेमायुंगडुंग (Chemayungdung) ग्लेशियर से है। यह अरुणाचल प्रदेश के सदिया शहर के पश्चिम में भारत में प्रवेश करती है।
- सहायक नदियाँ:
- इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ दिबांग, लोहित, सियांग, बुढ़ी दिहिंग, तीस्ता और धनसरी हैं।
- यह एक बारहमासी नदी है, जो अपने भूगोल और विशिष्ट जलवायु परिस्थितियों के कारण अनेक विलक्षण विशेषताओं से युक्त है।
- इसमें वर्ष में दो बार बाढ़ की स्थिति रहती है। पहली, गर्मियों में हिमालयी हिम के पिघलने के कारण और दूसरी मानसून के प्रवाह के कारण उत्पन्न होती है।
- हाल ही में इन बाढ़ों की आवृत्ति बढ़ गई है। जलवायु परिवर्तन तथा उच्च एवं निम्न प्रवाह के प्रभाव के कारण इन बाढ़ों की विनाशकता बढ़ गई है।
- यह भारत और बांग्लादेश के निचले राज्यों में जनसंख्या और खाद्य सुरक्षा के दृष्टिकोण से चिंता का विषय है।
- नदी की गतिशील भूस्खलन और भूगर्भीय गतिविधियों के कारण प्राय: नदी मार्ग में परिवर्तन देखने को मिलता है।
परियोजना के बारे में:
- चीनी राज्य के स्वामित्व वाली पनविद्युत कंपनी 'पॉवरचाइना' (POWERCHINA) द्वारा नवीन 'पंचवर्षीय योजना' (अवधि 2021-2025) के हिस्से के रूप में यारलुंग ज़ान्गबो नदी के अनुप्रवाह में पनविद्युत के दोहन के लिये 'तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र' (Tibet Autonomous Region- TAR) सरकार के साथ एक रणनीतिक सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
- यह पहली बार होगा जब नदी के अनुप्रवाह क्षेत्र का दोहन किया जाएगा। हालाँकि नियोजित परियोजना के स्थान का कहीं भी उल्लेख नहीं है।
- ब्रह्मपुत्र नदी का ‘महान अक्षसंघीय वलन’ (ग्रेट बेंड) और मेडोग काउंटी में यारलुंग ज़ान्गबो नदी पर स्थित 'ग्रैंड कैनियन' क्षेत्र- जहाँ नदी का बहाव बहुत तेज़ है तथा यह अरुणाचल प्रदेश में भारतीय सीमा में प्रवेश करती है, इस परियोजना के लिये संभावित स्थान हो सकता है।
- इस 50 किमी. लंबाई के अकेले खंड में 70 'मिलियन किलोवाट घंटे' (Kwh) की पनविद्युत विकसित करने की क्षमता है।
चीन की पूर्ववर्ती परियोजनाएँ:
- वर्ष 2015 में चीन द्वारा तिब्बत के ज़ान्ग्मु (Zangmu) में अपनी पहली पनविद्युत परियोजना का संचालन किया गया था, जबकि डागू (Dagu), जिएक्सु (Jiexu) और जियाचा (Jiacha) में तीन अन्य बाँध निर्मित किये जा रहे हैं, जो नदी के ऊपरी और मध्य प्रवाह में हैं।
चीन के लिये परियोजना का महत्त्व:
- 60 मिलियन kWh पनविद्युत के दोहन से प्रतिवर्ष 300 बिलियन kWh स्वच्छ, नवीकरणीय और शून्य-कार्बन उत्सर्जन युक्त विद्युत प्रदान की जा सकती है।
- परियोजना वर्ष 2030 से पहले 'कार्बन उत्सर्जन' के शिखर पर पहुँचने और वर्ष 2060 तक कार्बन तटस्थता (शुद्ध कार्बन उत्सर्जन शून्य) की स्थिति प्राप्त करने के चीन के लक्ष्य को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
भारत के लिये चिंता का विषय:
- भारत वर्ष 2015 से- जब चीन ने ज़ान्ग्मु पर अपनी परियोजना का संचालन शुरू किया था, पर चिंता व्यक्त कर रहा है।
- अगर ग्रेट बेंड में एक बाँध के निर्माण को मंज़ूरी दे दी जाती है, तो इसके स्थान को लेकर (जो नदी के अनुप्रवाह और अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर स्थित होगा) भारत द्वारा नई चिंताओं को उठाया जाएगा।
- इस परियोजना में भारत के लिये जल की मात्रा एक मुद्दा नहीं है क्योंकि ये बाँध 'रन-ऑफ-द-रिवर' प्रकार के हैं और ब्रह्मपुत्र के प्रवाह को प्रभावित नहीं करेंगे।
- इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ब्रह्मपुत्र पूरी तरह से ऊपरी-प्रवाह (Upstream) पर निर्भर नहीं है। इसके बेसिन का अनुमानित 35% हिस्सा भारत में है।
- हालाँकि भारत, चीनी गतिविधियों के कारण प्रभावित होने वाली जल की गुणवत्ता, पारिस्थितिक संतुलन और बाढ़ प्रबंधन को लेकर चिंतित है।
- भारत और चीन के बीच कोई जल साझाकरण समझौता नहीं हैं, दोनों देश हाइड्रोलॉजिकल डेटा साझा करते हैं। इसलिये वास्तविक डेटा साझा करना और सूखे, बाढ़ तथा भारी मात्रा में जल के निर्वहन की चेतावनी जैसे मुद्दों पर निरंतर संवाद करना महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
आगे की राह:
- भारत को हाइड्रोलॉजिकल डेटा के आदान-प्रदान से आगे बढ़कर चीन से पूरे बेसिन की स्थलाकृतिक स्थिति के बारे में जानकारी के आदान-प्रदान की मांग करनी चाहिये।
- ब्रह्मपुत्र बेसिन में जल सुरक्षा सुनिश्चित करने वाले किसी भी कदम के लिये दोनों देशों के बीच दीर्घकालिक समझ की आवश्यकता होगी। भारत के लिये चीन को निरंतर वार्ता में शामिल करना एवं जल-साझाकरण संधि को अपनाना दोनों देशों के हितों की रक्षा के दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।