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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ब्रह्मपुत्र नदी और भारत तथा चीन

  • 04 Sep 2019
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीनी विदेश मंत्रालय द्वारा दिये गए आधिकारिक बयान में कहा गया है कि चीन ने यारलुंग जांग्बो नदी (Yarlung Zangbo River) पर एक जलविद्युत संयंत्र का निर्माण कर लिया है एवं 2 अन्य जलविद्युत संयंत्रों का निर्माण कार्य अभी चल रहा है, परंतु इसमें से किसी भी परियोजना में जल का भंडारण शामिल नहीं है।

  • ज्ञातव्य है कि तिब्बत की यारलुंग जांग्बो नदी भारत के असम में पहुँचकर ब्रह्मपुत्र नदी के नाम से जानी जाती है।

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि कुछ आसत्यापित मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीनी सरकार तिब्बत में यारलुंग जांग्बो नदी पर बड़ी बांध परियोजना का निर्माण कर रही है, जिसके कारण नदी का पानी भारत तक नहीं पहुँचेगा और चीन में ही भंडारित कर लिया जाएगा।
  • चीन ने इन मीडिया रिपोर्ट्स को पूरी तरह नकार दिया है और कहा है कि वह नदी के पानी का केवल कुछ ही हिस्सा प्रयोग करता है और अन्य क्षेत्रों के प्रयोग हेतु काफी पानी बचता है।

ब्रह्मपुत्र नदी विवाद

बीते वर्षों में कई बार ऐसी खबरें सामने आती रही हैं कि चीन, तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी के जल प्रवाह को रोकने के उद्देश्य से बांध का निर्माण कर रहा है और यदि ऐसा होता है तो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में जल की आपूर्ति बाधित हो सकती है, यही दोनों पक्षों के मध्य विवाद का एक बड़ा कारण बना हुआ है। हालाँकि चीन की सरकार द्वारा हर बार इस प्रकार की खबरों को सिरे से नकार दिया जाता है, परंतु चीन की विशाल आबादी को देखते हुए इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि उसे जल संसाधन की सख्त आवश्यकता है और इसकी पूर्ति हेतु वह किसी भी नीति का अनुसरण कर सकता है।

चीन को अधिक जल संसाधन की ज़रूरत

  • नवीन आँकड़ों के अनुसार, विश्व की लगभग 18 प्रतिशत आबादी चीन में निवास करती है एवं उसके पास विश्व के पीने योग्य जल संसाधनों का 7 फीसदी से भी कम हिस्सा मौजूद है।
  • चीन की जल संसाधन चुनौतियों में न सिर्फ मात्रात्मक चुनौतियाँ शामिल हैं बल्कि उसके समक्ष गुणवत्ता संबंधी चुनौतियाँ भी मौजूद हैं। स्वयं चीन के सरकारी आँकड़ों के अनुसार चीन का लगभग 60 प्रतिशत भूजल दूषित है।
  • चीन की 12वीं पंचवर्षीय योजना में माना गया था कि जल संसाधनों की कमी के कारण देश के आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
  • जल संसाधनों तक निरंतर पहुँच, आपूर्ति और नियंत्रण को बनाए रखना सदैव ही चीन के राष्ट्रीय हितों में शामिल रहा है। उपरोक्त तथ्यों को देखते हुए इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि चीन की आंतरिक चुनौतियाँ उसे अपने जल संसाधनों के भंडारण हेतु प्रेरित कर सकती हैं।

भारत के हितों पर प्रभाव

  • विशेषज्ञों के अनुसार, यारलुंग जांग्बो नदी पर चीन की जलविद्युत परियोजनाएँ ब्रह्मपुत्र नदी को एक मौसमी नदी में परिवर्तित कर देंगी, जिसका परिणाम भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में सूखे के रूप में सामने आ सकता है।
  • एक अन्य खतरा यह है कि बांधों के निर्माण के पश्चात् जब चीन मानसून में बाढ़ का पानी छोड़ेगा तो इससे ब्रह्मपुत्र नदी के जल प्रवाह में वृद्धि होने की संभावना बढ़ जाएगी।
  • नदियों के आस-पास जल संबंधी परियोजनाओं के चलते चीन ने अपनी नदियों को काफी प्रदूषित किया है और इसके कारण चीन से भारत की ओर प्रवाहित होने वाली नदियों के जल की गुणवत्ता पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया है।
  • इसके अतिरिक्त चीन के इस कदम से असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य जो कि ब्रह्मपुत्र नदी के पानी पर निर्भर हैं, में भी पानी की आपूर्ति प्रभावित होगी।

ब्रह्मपुत्र नदी से जुड़ी मुख्य बातें

  • भारत की ब्रह्मपुत्र नदी को ही तिब्बत में यारलुंग जांग्बो के नाम से जाना जाता है। चीन में इसका एक अन्य नाम यारलुंग त्संग्पो (Yarlung Tsangpo) भी है।
  • ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत की मानसरोवर झील के पूर्व तथा सिंधु एवं सतलुज के स्रोतों के काफी नज़दीक से निकलती है। इसकी लंबाई सिंधु से कुछ अधिक है, परंतु इसका अधिकतर मार्ग भारत से बाहर स्थित है। यह हिमालय के समानांतर पूर्व की ओर बहती है। नामचा बारवा शिखर (7,757 मीटर) के पास पहुँचकर यह अंग्रेजी के यू (U) अक्षर जैसा मोड़ बनाकर भारत के अरुणाचल प्रदेश में गॉर्ज के माध्यम से प्रवेश करती है।
  • यहाँ इसे दिहाँग के नाम से जाना जाता है तथा दिबांग, लोहित, केनुला एवं दूसरी सहायक नदियाँ इससे मिलकर असम में ब्रह्मपुत्र का निर्माण करती हैं।
  • तिब्बत के रागोंसांग्पो इसके दाहिने तट पर एक प्रमुख सहायक नदी है।
  • हिमालय के गिरिपद में यह सिशंग या दिशंग के नाम से निकलती है। अरुणाचल प्रदेश में सादिया कस्बे के पश्चिम में यह नदी भारत में प्रवेश करती है। दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहते हुए इसके बाएँ तट पर इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ दिबांग या सिकांग और लोहित मिलती हैं और इसके बाद यह नदी ब्रह्मपुत्र के नाम से जानी जाती है।

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स्रोत: द हिंदू

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