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डेली न्यूज़

  • 23 May, 2024
  • 77 min read
इन्फोग्राफिक्स

पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA)

Environmental-Impact-Assessment

और पढ़ें: पर्यावरणीय प्रभाव आकलन


जैव विविधता और पर्यावरण

अवक्रमित (बंजर) भूमि पर बायोमास की खेती

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार, राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, राष्ट्रीय बायोमास एटलस, भुवन पोर्टल, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन

मेन्स के लिये:

बायोमास की खेती का महत्त्व, जैव ऊर्जा उत्पादन, नवीकरणीय ऊर्जा के लिये सरकार की पहल

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों? 

भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (Principal Scientific Adviser- PSA) ने हाल ही में हरित बायोहाइड्रोजन और जैव ऊर्जा (बायोएनर्जी) उत्पादन हेतु अवक्रमित भूमि पर बायोमास खेती करने हेतु चर्चा के लिये बैठक बुलाई।

  • इस महत्त्वपूर्ण बैठक में बायोमास खेती के लिये अवक्रमित भूमि (बंजर) का उपयोग करने की क्षमता का पता लगाने हेतु प्रमुख हितधारकों और अनुसंधान संस्थानों को एक साथ लाया गया। 
  • बैठक में बायोमास खेती के लिये अवक्रमित भूमि के उपयोग का पता लगाने हेतु प्रमुख हितधारक सरकारी मंत्रालयों, ज्ञान भागीदारों एवं अनुसंधान संस्थानों को एक साथ लाया गया। 

नोट: भारत में वर्ष 1999 से एक प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (PSA) है। डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम वर्ष 1999-2001 तक देश के पहले PSA रहे थे।

  • PSA के कार्यालय का उद्देश्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के मामलों में प्रधानमंत्री तथा कैबिनेट को व्यावहारिक और उद्देश्यपूर्ण सलाह प्रदान करना है।
  • PSA कार्यालय को वर्ष 2018 में कैबिनेट सचिवालय के अधीन रखा गया था।

बैठक के प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • बायोमास खेती की संभावनाएँ:
    • समुद्री शैवाल की खेती: बायोएनर्जी उत्पादन और समुद्री जैव विनिर्माण स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिये बायोमास के रूप में समुद्री शैवाल की खेती की संभावनाओं पर प्रकाश डाला गया।
    • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने शैवाल, शीरा (Molasses) और गन्ने आदि का उपयोग करके हरित ऊर्जा के लिये बायोमास उत्पादन पर एक प्रस्तुति दी।
  • सरकारी कार्यक्रम और डेटा उपयोग:
    • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन का एक उद्देश्य बायोमास-आधारित हरित बायोहाइड्रोजन उत्पादन के लिये केंद्रित पायलट (Focused Pilots) योजना शुरू करना है। 
    • नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New & Renewable Energy- MNRE) ने बायोएनर्जी के लिये मंत्रालय में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों पर प्रकाश डाला तथा अतिरिक्त कृषि-अवशेष अधिशेष संबंधी डेटा के लिये राष्ट्रीय बायोमास एटलस पर भी चर्चा की।
  • आर्थिक और सामरिक रूपरेखा:

नोट:

  • भारत का राष्ट्रीय बायोमास एटलस वह टूल है जो लोगों को देश की बायोमास उपलब्धता के विश्लेषण में सहायता करता है।
    • नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) के तहत सरदार स्वर्ण सिंह राष्ट्रीय जैव-ऊर्जा संस्थान (SSS-NIBE) के बायोमास एवं ऊर्जा प्रबंधन प्रभाग ने एक एटलस विकसित किया।
  • यह एटलस राज्य-वार और फसल-वार प्रति फसल उपलब्ध विभिन्न अवशेषों के अंशों के साथ-साथ फसलों की छवियों तथा उनके फसल अवशेषों के अनुपात को भी दर्शाता है।

अवक्रमित भूमि पर बायोमास खेती क्या है?

  • परिचय: अवक्रमित भूमि पर बायोमास खेती से तात्पर्य ऐसी भूमि पर फसल या कार्बनिक पोधों को उगाने की प्रथा से है, जो मृदा के अपरदन, लवणीकरण अथवा वनों की कटाई जैसे कारकों के कारण पारंपरिक कृषि के लिये अनुपयुक्त हो गई है।
    • बायोमास नवीकरणीय कार्बनिक पदार्थ है जो पादपों और जानवरों से प्राप्त होता है। बायोमास में सूर्य से संग्रहीत रासायनिक ऊर्जा होती है जो पादपों द्वारा प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से उत्पन्न होती है।

लाभ:

  • मृदा पुनर्स्थापन और अपरदन की रोकथाम:
    • अवक्रमित भूमि पर जैव ऊर्जा फसलों की खेती मृदा के पुनर्निर्माण में सहायता करती है और मृदा की उर्वरता, गुणवत्ता एवं संरचना को बढ़ाती है।
    • यह मृदा के अपरदन को रोकती है और देशी पादपों की प्रजातियों के लिये एक निवास स्थान निर्मित करता है।
    • यह पुनर्स्थापना प्रक्रिया समग्र जैवविविधता में सुधार करती है और अतिरिक्त कार्बन सिंक प्रदान करती है, जिससे जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध निपटने में सहायता मिलती है।
  • कार्बन पृथक्करण: बायोमास पौधे प्रकाश संश्लेषण के दौरान वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं, जो जलवायु परिवर्तन शमन में योगदान देते हैं।
  • सतत् बायोहाइड्रोजन उत्पादन: बायोमास का उपयोग थर्मोकेमिकल अथवा जैव रासायनिक रूपांतरण नामक प्रक्रिया के माध्यम से हरित बायोहाइड्रोजन उत्पादन के लिये फीडस्टॉक के रूप में किया जा सकता है।
    • ग्रीन बायोहाइड्रोजन एक स्वच्छ जलने वाला ईंधन है जो उत्सर्जन के रूप में जलवाष्प का उत्पादन करता है।
  • बायोएनर्जी उत्पादन: पहले से अवक्रमित अथवा बंजर भूमि पर विशिष्ट जैव ऊर्जा फसलें उगाकर, हम ऊर्जा उत्पादन के लिये उनके बायोमास का उपयोग कर सकते हैं।
    • इन फसलों में तेज़ी से बढ़ने वाले वृक्ष, घास और अन्य पादप शामिल हैं जिनमें ऊर्जा की मात्रा अधिक होती है।
    • बायोमास को ऊर्जा के विभिन्न रूपों जैसे कि जैव ईंधन, बायोगैस अथवा ठोस बायोमास में परिवर्तित किया जा सकता है। 
  • खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देना: अवक्रमित या बंजर भूमि पर बायोमास खेती पर ध्यान केंद्रित करके यह उपजाऊ कृषि भूमि का उपयोग करने से बचता है, जो खाद्य फसलों के लिये अधिक उपयुक्त है।
    • यह दृष्टिकोण खाद्यान्नों के विचलन को रोकने में सहायता करता है और कृषि-निर्यात को बढ़ावा देने के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा में भी सुधार करता है।

भारत बायोमास ऊर्जा क्षमता:

  • भारत में एक व्यापक कृषि और उससे संबद्ध क्षेत्र है जो देश के सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) (~20%) में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है तथा आजीविका का सबसे बड़ा स्रोत (जनसंख्या का>50%) भी है।
    • यह देश के लिये एक बड़ी और व्यापक रूप से उपलब्ध बायोमास की उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
  • बायोमास कई लाभ प्रदान करता है क्योंकि यह नवीकरणीय, कार्बन-तटस्थ है तथा इसमें महत्त्वपूर्ण आजीविका सृजन के अवसर प्रदान करने की क्षमता है।
  • नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy- MNRE) के एक हालिया अध्ययन में कृषि अवशेषों से प्रतिवर्ष (2017-18) लगभग 230 मिलियन मीट्रिक टन की अधिशेष बायोमास उपलब्धता एवं देश के लिये लगभग 28 गीगावॉट की बायोमास विद्युत् क्षमता का अनुमान लगाया गया है।
  • बायोमास उत्पादन क्षमता: भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है, जिस कारण यह बायोमास उत्पादन हेतु एक उत्तम वातावरण प्रदान करता है।
    • इसके अलावा, विशाल कृषि क्षमता, ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये बड़े स्तर पर कृषि-अवशेष भी उपलब्ध कराती है।
      • प्रतिवर्ष लगभग 460 मिलियन टन कृषि अपशिष्ट के अनुमानित उत्पादन के साथ, बायोमास लगभग 260 मिलियन टन कोयले की पूर्ति करने में सक्षम है।
    • इससे प्रत्येक वर्ष लगभग 250 अरब रुपए की बचत हो सकती है।

अवक्रमित (बंजर) भूमि पर बायोमास खेती के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • मृदा की गुणवत्ता: बंजर भूमि में अक्सर आवश्यक पोषक तत्त्वों और कार्बनिक पदार्थों की कमी होती है। सफल बायोमास खेती के लिये मृदा की गुणवत्ता का पुनर्वास महत्त्वपूर्ण है।
  • प्रजातियों का चयन एवं अनुकूलन: उपयुक्त बायोमास फसलों का चयन करना कठिन हो सकता है जो विषम वातावरण में जीवित रह सकें। जलवायु अनुकूल किस्मों और उनकी अनुकूलनशीलता बढ़ाने के लिये शोध की आवश्यकता है।
    • अवक्रमित भूमि के कारण अत्यधिक तापमान, सूखा या बाढ़ का संकट उत्पन्न हो सकता है। 
  • जल उपलब्धता एवं प्रबंधन: अवक्रमित भूमि में अक्सर पर्याप्त जल संसाधनों का अभाव होता है। बायोमास फसलों के लिये कुशल सिंचाई पद्धति विकसित करना आवश्यक है।
  • आर्थिक व्यवहार्यता एवं बाज़ार की मांग: भूमि तैयार करने, रोपण करने और बुनियादी ढाँचे में प्रारंभिक निवेश अधिक हो सकता है।
    • बायोमास फसलों को बायोएनर्जी या अन्य उत्पादों की बाज़ार मांग के अनुरूप होना चाहिये।
    • सरकारें वित्तीय प्रोत्साहन के माध्यम से किसानों को प्रोत्साहित कर सकती हैं। भूमि का पुनर्वास करते समय आर्थिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करना जटिल है।
  • जैवविविधता एवं पारिस्थितिक प्रभाव: बायोमास फसलों की शुरुआत से जैवविविधता और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो सकते हैं। कुछ बायोमास फसलें तेज़ी से फैल सकती हैं और देशी वनस्पतियों व जीवों को बाधित कर सकती हैं।
    • पारिस्थितिक प्रभाव को न्यूनतम करने वाली खेती की विधियों को अपनाना आवश्यक है।

आगे की राह 

  • खेती करने की तकनीकें: मृदा की निम्न उर्वरता में सुधार के लिये रणनीतियों को लागू करना चाहियेI इसमें मृदा के स्वास्थ्य में सुधार के लिये खाद और बायोचार जैसे कार्बनिक पदार्थों को शामिल करना या बायोफ्लोक्यूलेशन (Biofloculation) (माइक्रोबियल प्रक्रियाओं का दोहन) जैसी तकनीकों का उपयोग करना शामिल हो सकता है।
  • कृषि वानिकी के साथ बायोमास खेती: अवक्रमित भूमि पर एक बहु-स्तरीय फसल प्रणाली लागू करना चाहिये, जिसमें तेज़ी से बढ़ने वाली वृक्ष की प्रजातियों को देशी घास और फलियुक्त पाैधों के साथ एकीकृत किया जाए।
    • पोंगामिया पिनाटा (Pongamia pinnata) (करंज) जैसे वृक्ष मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा को स्थिर कर सकते हैं, जिससे जैव ईंधन (बायोफ्यूल) उत्पादन के लिये उपयुक्त सूखा-प्रतिरोधी घास जैसी सहवर्ती फसलों की उर्वरता में सुधार हो सकता है।
    • यह रणनीति न केवल जैव ईंधन उत्पादन में सहायता करती है बल्कि जैवविविधता को बढ़ावा देते हुए देशी जीवों के लिये आवास का भी प्रबंध करती है।
  • निम्नीकृत भूमि निदान के लिये ड्रोन: निम्नीकृत भूमि के बड़े क्षेत्रों का त्वरित आकलन करने, मृदा मानचित्रण करने, संभावित बायोमास खेती करने हेतु उपयुक्त क्षेत्रों की पहचान करने और मौज़ूदा जैवविविधता का मूल्यांकन करने के लिये मल्टीस्पेक्ट्रल सेंसर वाले ड्रोन का उपयोग करना।
  • बाज़ार विकास: आर्थिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने और ग्रामीण आजीविका का समर्थन करने वाली मूल्य शृंखला बनाने के लिये बायोमास तथा इसके उप-उत्पादों के लिये बाज़ार तंत्र विकसित करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत की बायोमास ऊर्जा क्षमता और एक सतत् ऊर्जा मिश्रण की दिशा में देश के परिवर्तन के लिये इसके द्वारा प्रस्तुत अवसरों का आकलन कीजिये। इस क्षमता का प्रभावी ढंग से दोहन करने के लिये आवश्यक नीतिगत ढाँचे पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. शर्करा उद्योग के उपोत्पाद की उपयोगिता के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2013)

  1. खोई को, ऊर्जा उत्पादन के  लिये जैव मात्रा ईंधन के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है।
  2. शीरे को, कृत्रिम रासायनिक उर्वरकों के उत्पादन के लिये एक भरण-स्टॉक की तरह प्रयुक्त किया जा सकता है।
  3. शीरे को, एथनॉल उत्पादन के लिये प्रयुक्त किया जा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय विनिर्माण में उत्पाद परिष्कृतता की आवश्यकता

प्रिलिम्स लिये:

सकल घरेलू उत्पाद (GDP), मेक इन इंडिया, इंडस्ट्री 4.0, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI), PM गति शक्ति-नेशनल मास्टर प्लान, भारतमाला प्रोजेक्ट, सागरमाला परियोजना

मेन्स के लिये:

भारत में विनिर्माण क्षेत्र के विकास चालक, भारत के विनिर्माण क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ, भारत में औद्योगिक क्षेत्र के विकास के लिये सरकार की हालिया पहल।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वित्तमंत्री ने कहा कि भारतीय विनिर्माण क्षेत्र को अधिक परिष्कृत उत्पाद विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये और सरकार इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये नीतिगत सहायता प्रदान करने के लिये तैयार है।

भारत के विनिर्माण क्षेत्र की स्थिति क्या है?

  • विनिर्माण क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 17% योगदान देता है और 27.3 मिलियन से अधिक श्रमिकों को रोज़गार प्रदान करता है, जो देश की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • भारत सरकार का लक्ष्य (मेक इन इंडिया का लक्ष्य) वर्ष 2025 तक अर्थव्यवस्था के उत्पादन में विनिर्माण क्षेत्र के योगदान को 25% तक बढ़ाना है।
  • विनिर्माण का बढ़ता महत्त्व ऑटोमोटिव, इंजीनियरिंग, रसायन, फार्मास्यूटिकल्स और उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के मज़बूत प्रदर्शन से प्रेरित है।
  • वित्त वर्ष 2023 में विनिर्माण निर्यात 447.46 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच गया, जो पिछले वर्ष (FY22) की तुलना में 6.03% की वृद्धि दर्शाता है जब निर्यात 422 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
  • भारत के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों (8 प्रमुख उद्योग) में जनवरी 2024 के दौरान मंदी देखी गई, जोकि अंतिम 15 महीनों में सबसे धीमी थी। देश में विकास दर घटकर 3.6% रह गई, जो दिसंबर 2023 (4.9%) और जनवरी 2023 (9.7%) से काफी कम है।
  • अप्रैल-अक्तूबर, 2023 तक औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) 143.5 रहा, जो आधार वर्ष (2011-12) की तुलना में 43.5% की वृद्धि दर्शाता है।
    • IIP अर्थव्यवस्था में औद्योगिक गतिविधि के सामान्य स्तर का एक समग्र संकेतक है। इसकी गणना और प्रकाशन हर महीने केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (CSO) द्वारा किया जाता है।
  • कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर में मंदी के कारण विनिर्माण क्षेत्र के लिये क्षमता उपयोग पिछली तिमाही के 60.0% से बढ़कर दूसरी तिमाही (2021-22) में 68.3% हो गया।
    • क्षमता उपयोग से तात्पर्य उन विनिर्माण और उत्पादन क्षमताओं से है जिनका उपयोग किसी देश या उद्यम द्वारा किसी भी समय किया जा रहा है।
  • ड्रग्स और फार्मास्यूटिकल्स (+46%), खाद्य प्रसंस्करण उद्योग (+26%), और मेडिकल उपकरण (+91%) जैसे क्षेत्रों में FDI अंतर्वाह में वृद्धि देखी गई।
  • आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 के अनुसार, कोविड-संबंधित व्यवधानों के बावजूद, विनिर्माण क्षेत्र से संबंधित सकल मूल्य संवर्धन (GVA) में समग्र रूप से सकारात्मक वृद्धि देखी गई है।
    • इस क्षेत्र में कुल रोज़गार वर्ष 2017-18 में 57 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2019-20 में 62.4 मिलियन हो गया है।

भारत में विनिर्माण क्षेत्र की क्या संभावनाएँ हैं?

  • व्यापक घरेलू बाज़ार और मांग: भारत में विनिर्माण क्षेत्र ने अपने उत्पादों के लिये स्थानीय और विदेशी दोनों ग्राहकों द्वारा अत्यधिक मांग देखी है।
    • मई 2024 में PMI (58.8), भारत के विनिर्माण क्षेत्र में विस्तार को दर्शाता है।
  • क्षेत्रीय लाभ: भारत में रसायन, फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोटिव, इलेक्ट्रॉनिक्स, औद्योगिक मशीनरी और कपड़ा जैसे प्रमुख विनिर्माण क्षेत्रों ने हाल के वर्षों में महत्त्वपूर्ण वृद्धि का अनुभव किया है।
    • भारत में फार्मास्युटिकल विनिर्माण लागत अमेरिका और यूरोप की तुलना में लगभग 30%-35% कम है।
  • ग्लोबल साउथ के बाज़ार तक पहुँच: संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, भारतीय विनिर्माण वैश्विक मूल्य शृंखला (Global Value Chains- GVC) में यूरोप से एशिया की ओर स्थानांतरित हो रहा है। ग्लोबल साउदर्न पार्टनर्स से भारत की घरेलू मांग में विदेशी मूल्य वर्द्धित (Foreign Value-added- FVA) की हिस्सेदारी वर्ष 2005 में 27% से बढ़कर वर्ष 2015 में 45% तक पहुँची।
    • यह परिवर्तन भारतीय कंपनियों के लिये अपने स्वयं के GVC स्थापित करने और भारत को क्षेत्रीय विकास का मुख्य केंद्र बनने का अवसर प्रदान करता है।
  • MSME का उदय: वर्तमान में देश के सकल घरेलू उत्पाद में MSME का लगभग 30% योगदान है और आर्थिक विकास को गति देने में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होने के साथ भारत के कुल निर्यात में लगभग 45% की हिस्सेदारी है।
  • मांग में वृद्धि: भारत के विनिर्माण उत्पादों की घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मांग में वृद्धि हो रही है।
    • भारत के विनिर्माण क्षेत्र में वर्ष 2025 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की क्षमता है।
  • प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ: बढ़ती उत्पादन क्षमता, लागत लाभ, निजी निवेश और सरकारी नीतियों को प्रोत्साहित करना, भारत के विनिर्माण क्षेत्र के विकास को गति दे रहे हैं, जो आने वाले वर्षों में दीर्घकालिक आर्थिक विस्तार का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।

भारत में विनिर्माण क्षेत्र की चुनौतियाँ क्या हैं?

  • पुरानी तकनीकें और अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे पर निर्भरता से भारतीय निर्माताओं की वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने तथा अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों को पूरा करने की क्षमता में बाधा उत्पन्न होती है।
  • कुशल कार्यबल की कमी: विश्व बैंक के अनुसार, भारत के केवल 24% कार्यबल के पास जटिल विनिर्माण रोज़गारों के लिये आवश्यक कौशल है, जबकि अमेरिका में 52% और दक्षिण कोरिया में 96% कार्यबल के पास यह कौशल है।
  • उच्च इनपुट लागत: भारतीय रिज़र्व बैंक [Reserve Bank Of India- RBI (2022)] के अनुसार, भारत में लॉजिस्टिक्स लागत वैश्विक औसत की तुलना में 14% अधिक है जो भारतीय विनिर्माण उद्योग की समग्र प्रतिस्पर्द्धात्मकता को प्रभावित करती है।
  • जटिल विनियामक वातावरण: यह भारत में विनिर्माण इकाइयाँ स्थापित करने के इच्छुक व्यवसायों के लिये निवारक के रूप में कार्य करता है।
    • भारत में भूमि अधिग्रहण एक जटिल प्रक्रिया है, नीति आयोग ने सुझाव दिया है कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम को वर्तमान तक विधायिका द्वारा पारित नहीं किया गया है।
  • चीन से प्रतिस्पर्द्धा और आयात निर्भरता: चीन ने वर्ष 2023-2024 में भारत के परिधान और वस्त्रों के कुल आयात के लगभग 42%, मशीनरी के 40% तथा इलेक्ट्रॉनिक्स के 38.4% से अधिक की आपूर्ति की।

आगे की राह

  • भारतीय विनिर्माण में उद्योग 4.0 की आवश्यकता: रिपोर्ट के अनुसार, विनिर्माण क्षेत्र उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकियों (Industry 4.0 Technologies) के माध्यम से सकल घरेलू उत्पाद में 25% हिस्सेदारी प्रदान कर सकता है।
    • भारतीय निर्माता प्रौद्योगिकी में अपने परिचालन बजट का 35% निवेश करके डिजिटल परिवर्तन को तेज़ी से अपना रहे हैं तथा भविष्य में इसका और अधिक विस्तार करने की आवश्यकता है।
  • बुनियादी ढाँचे में निवेशः बुनियादी ढाँचे के मानक और पहुँच को बढ़ाने तथा लॉजिस्टिक्स में कमी से विनिर्माण उद्योग में निवेश एवं व्यावसायिक रुचि बढ़ सकती है।
  • निर्यातोन्मुख विनिर्माण को बढ़ावा देना: निर्यात-उन्मुख विनिर्माण के विकास को प्रोत्साहित करने से भारतीय व्यवसायों को नए बाज़ारों में प्रवेश करने और उनकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने में सहायता मिल सकती है।
  • वित्तीय सहायता: अधिकांश MSME को निर्यात-संबंधित गतिविधियों हेतु ऋण प्राप्त करने के लिये अत्यधिक संघर्ष करना पड़ता है। विनिर्माण क्षेत्र में SME की वित्त तक पहुँच बढ़ाने से उनकी वृद्धि और विकास में सहायता मिल सकती है।
  • विनियमों को सुव्यवस्थित करना: विनियमों को सरल एवं सुव्यवस्थित करने से व्यवसायों पर बोझ कम करने और विनिर्माण क्षेत्र में अधिक निवेश को प्रोत्साहित करने में सहायता मिल सकती है।
  • कौशल विकास को प्रोत्साहन: प्रशिक्षण और कौशल विकास के लिये अधिक अवसर प्रदान करने से विनिर्माण क्षेत्र में कुशल श्रम के अभाव को दूर करके, इसकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने में सहायता मिल सकती है।
    • वियतनाम अपनी अपेक्षाकृत विस्तृत, सुशिक्षित और कुशल श्रम शक्ति के कारण वर्तमान में एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र में बदल गया है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

'मेक इन इंडिया' पहल के तहत हुई प्रगति के साथ-साथ भारत के विनिर्माण क्षेत्र की वर्तमान स्थिति का आकलन कीजिये। भारत के विनिर्माण क्षेत्र में होने वाली वृद्धि में बाधा उत्पन्न करने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'आठ प्रमुख उद्योगों के सूचकांक' (इंडेक्स ऑफ एट कोर इंडस्ट्रीज़) में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है? (2015)

(a) कोयला उत्पादन
(b) विद्युत उत्पादन
(c) उर्वरक उत्पादन
(d) इस्पात उत्पादन

उत्तर: (b)


प्रश्न. हाल ही में भारत में प्रथम 'राष्ट्रीय निवेश और विनिर्माण क्षेत्र' का गठन कहाँ किये जाने के लिये प्रस्ताव दिया गया था? (2016) 

(a) आंध्र प्रदेश
(b) गुजरात
(c) महाराष्ट्र
(d) उत्तर प्रदेश

उत्तर: (a)


प्रश्न. विनिर्माण क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित करने के लिये भारत सरकार ने कौन-सी नई नीतिगत पहल/पहलें की है/हैं? (2012)

  1. राष्ट्रीय निवेश एवं विनिर्माण क्षेत्रों की स्थापना
  2. 'एकल खिड़की मंज़ूरी’ (सिंगल विंडो क्लीयरेंस) की सुविधा प्रदान करना
  3. प्रौद्योगिकी अधिग्रहण तथा विकास कोष की स्थापना

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न.1 "सुधारोत्तर अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (जी.डी.पी.) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती  गई है।" कारण बताइये। औद्योगिक नीति में हाल में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017)

प्रश्न. 2 सामान्यतः देश कृषि से उद्योग और बाद में सेवाओं को अंतरित होते हैं पर भारत सीधे ही कृषि से सेवाओं को  अंतरित हो गया। देश में उद्योग के मुकाबले सेवाओं की विशाल संवृद्धि के क्या कारण हैं? क्या भारत सशक्त औद्योगिक आधार के बिना एक विकसित देश बन सकता है? (2014)


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत-चीन उपभोग

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF), सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) अनुपात, प्रजनन दर।

मेन्स के लिये:

भारत और चीन की अर्थव्यवस्थाओं के बीच अंतर, भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार के लिये उठाए जा सकने वाले कदम 

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भारत वर्ष 2023 में लगभग 1.44 बिलियन की जनसंख्या के साथ चीन को पीछे छोड़ते हुए विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन गया। इससे दोनों देशों में घरेलू खपत पर व्यापक प्रभाव पड़ा है।

  • यह चीन की घटती जन्मदर (प्रति 1,000 लोगों पर 6.4 जन्म) और कुल प्रजनन दर (~1%) के कारण हुआ, जिससे छह दशकों में पहली बार नकारात्मक जनसंख्या वृद्धि दर हुई। इसके परिणामस्वरूप चीन को निर्भरता अनुपात में वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है।
  • इसके विपरीत 2.1 की कुल प्रजनन दर के साथ प्रतिस्थापन स्तर तक पहुँचने के बावजूद, भारत की जनसंख्या में वृद्धि जारी रहने और 2060 के आसपास अपने चरम पर पहुँचने की उम्मीद है।

संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक मामलों का विभाग (United Nations Department of Economic and Social Affairs-UNDESA)

  • इसका गठन वर्ष 1948 में किया गया था। यह विभाग सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals-SDG) के संबंध में अग्रणी है।
  • यह विश्व की गंभीर समस्याओं के सामान्य समाधान की दिशा में काम करने के लिये वैश्विक समुदायों को एक साथ लाता है।
  • यह राष्ट्रों को आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय क्षेत्रों में अपनी वैश्विक प्रतिबद्धताओं को राष्ट्रीय कार्रवाई में परिवर्तित करने में सहायता करता है।

प्रमुख शर्तें:

  • जन्मदर: यह एक जनसांख्यिकीय माप है जो किसी दिये गए वर्ष के दौरान, किसी जनसंख्या में प्रति 1,000 लोगों पर होने वाले जीवित जन्मों की संख्या को इंगित करता है।
  • कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate- TFR): यह वर्तमान आयु-विशिष्ट प्रजनन दर को देखते हुए एक महिला से उसके जीवनकाल में होने वाले बच्चों की औसत संख्या है।
    • TFR जन्मदर की तुलना में प्रजनन व्यवहार और संभावित जनसंख्या वृद्धि का अधिक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जिसे प्रतिवर्ष जनसंख्या में प्रति 1,000 व्यक्तियों पर जन्म की संख्या के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • निर्भरता अनुपात: यह उन व्यक्तियों के अनुपात की तुलना करता है जो सामान्यतः श्रम बल (आश्रितों) में नहीं होते हैं लेकिन श्रम बल (कार्य-आयु जनसंख्या) में होते हैं।
  • प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता: इसका आशय प्रवासन को शामिल किये बिना किसी महिला द्वारा जन्में उन बच्चों की संख्या से है जिससे पीढ़ी-दर-पीढ़ी जनसंख्या का आकार स्थिर रह सके। 
    • प्रति महिला लगभग 2.1 बच्चों की कुल प्रजनन दर (TFR) को प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता कहा जाता है। 

भारत और चीन के बीच उपभोग की तुलना क्या है?

  • उपभोक्ता आकार:
    • भारत और चीन दोनों के पास एक बड़ा उपभोक्ता आधार है। क्रय शक्ति समता (Purchasing Power Parity- PPP) के अनुसार, उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो प्रतिदिन USD12 से अधिक खर्च करता है।

  • उपभोक्ता आधार में वृद्धि:
    • विश्व डेटा बैंक के अनुसार, 2024 में चीन के उपभोक्ता आधार में 31 मिलियन की वृद्धि हुई, जबकि भारत में 33 मिलियन उपभोक्ताओं की वृद्धि देखी गई।
    • विश्व डेटा बैंक के अनुसार, 2024 में चीन के उपभोक्ता आधार में 31 मिलियन की वृद्धि हुई, जबकि भारत में 33 मिलियन उपभोक्ताओं की वृद्धि देखी गई।
  • निजी अंतिम उपभोग व्यय (PFCE): यह भारत की GDP में 58% से अधिक का योगदान देता है, जबकि चीन की अर्थव्यवस्था में इसका योगदान केवल 38% है।
    • PFCE भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का एक प्रमुख घटक है और उपभोक्ता खर्च को दर्शाता है, जो आर्थिक गतिविधि का एक महत्त्वपूर्ण चालक है।
    • PFCE एक प्रमुख आर्थिक संकेतक है जो एक विशिष्ट अवधि के दौरान देश के भीतर परिवारों (NPISH) की सेवा करने वाले परिवारों और गैर-लाभकारी संस्थानों द्वारा उपभोग की जाने वाली सभी वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य को मापता है।
      • NPISH ऐसे संगठन हैं जो व्यक्तियों और परिवारों को गैर-व्यावसायिक सेवाएँ प्रदान करते हैं। उदाहरणों में धार्मिक संस्थान, दान और सामाजिक सभा शामिल हैं।
    • सरकारी उपभोग व्यय सहित अंतिम उपभोग, भारत की GDP का 68% और चीन की GDP का 53% है।
      • इसका तात्पर्य यह है कि सरकार भारत की तुलना में चीन में बहुत बड़ी उपभोक्ता है।
      • अंतिम उपभोग व्यय (FCE) सरकारी व्यय और निजी अंतिम उपभोग व्यय (PFCE) को जोड़कर प्राप्त किया जाता है।
    • भारत में उपभोग व्यय का प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है, जबकि चीन में इसमें गिरावट आ रही है।

  • उपभोग पैटर्न और आर्थिक विकास में अंतर: भारत अपनी आय का अधिक हिस्सा उपभोग पर खर्च करता है।
    • चीन का आर्थिक आकार (USD17.8 ट्रिलियन) नाममात्र और PPP शर्तों में भारत के (USD 3.5 ट्रिलियन) से लगभग 5 गुना है, चीन की GDP भारत से लगभग 2.5 गुना है।
    • नाममात्र के संदर्भ में चीन का PFCE (6.6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) भारत के (2.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) से केवल 3.5 गुना अधिक है और PPP के संदर्भ में, चीन का PFCE भारत से लगभग 1.5 गुना अधिक है।
    • इस प्रकार चीन की तुलना में भारत की GDP में खपत अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • भारत बहुत कम GDP आँकड़े (नाममात्र के संदर्भ में चीन के लिये 17 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारत हेतु लगभग 10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) पर चीन के समान उपभोग स्तर पर पहुँच जाएगा ।
  • 2018 और 2022 के बीच PFCE रुझान:
    • चिंताओं के बावजूद, पिछले चार वर्षों  (2018 में 5.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से 2022 में 6.6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) में चीन का उपभोक्ता खर्च काफी बढ़ गया है।
      • दूसरी ओर भारत का आँकड़ा 2018 में 1.64 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से लगातार बढ़कर 2022 में 2.10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
    • वर्ष 2022 में चीन के व्यय में कमी देखी गई जिसमें कुल मिलाकर 6.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से 6.6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक और प्रतिव्यक्ति वार्षिक व्यय में 4,809 अमेरिकी डॉलर से 4,730 अमेरिकी डॉलर तक की कमी देखी गई। इस दौरान भारत के व्यय में दोनों ही श्रेणियों में वृद्धि देखी गई।
    • दोनों देशों के बीच व्यय का अंतर वर्ष 2018 में 3.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2022 में 4.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया है।
  • श्रेणियों के अनुसार व्यय:
    • भारतीय उपभोक्ता अपने व्यय का एक बड़ा हिस्सा भोजन, कपड़े, जूते और परिवहन जैसी बुनियादी आवश्यकताओं के लिये आवंटित करते हैं।
      • यह व्यय पद्धति एक विकासशील अर्थव्यवस्था को दर्शाता है जहाँ परिवार विवेकगत व्यय के स्थान पर आवश्यकताओं को अधिक प्राथमिकता देते हैं।
  • इसके विपरीत, चीन की उपभोग बास्केट एक ऐसे बाज़ार को दर्शाती है जो अपेक्षाकृत अधिक उन्नत है।
    • जबकि खाद्य और पेय पदार्थ चीन के उपभोग का सबसे बड़ा हिस्सा हैं, कुल उपभोग व्यय में उनकी हिस्सेदारी घट रही है, जो एक ऐसे बाज़ार का संकेत देता है जो अधिक विकसित हो रहा है।
    • इसके अलावा, यह भारत की तुलना में अपने बजट का एक बड़ा हिस्सा आवास, घरेलू वस्तुओं, मनोरंजन, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल पर व्यय करता है। 
    • अमेरिका, जापान, यूरोपीय संघ, जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाओं में खाद्य व्यय, व्यय की सबसे बड़ी श्रेणी नहीं है।
  • भारत भोजन, परिवहन, संचार और परिधान पर चीन की तुलना में लगभग आधा व्यय करता है। भले ही भारत की अर्थव्यवस्था चीन के आकार का केवल पाँचवाँ हिस्सा है, इन क्षेत्रों में कुल व्यय उनकी संबंधित अर्थव्यवस्थाओं का समान प्रतिशत दर्शाता है।

 

भारत और चीन के मध्य उपभोग पद्धति में अंतर हेतु ज़िम्मेदार कारक क्या हैं?

  • जनसांख्यिकीय विभाजन:
    • विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2022 तक भारत में औसत आयु 28.4 वर्ष है, जबकि चीन की औसत आयु 38.4 वर्ष है।
      • युवा आबादी के कॅरियर के शुरुआती चरण में आय बढ़ने (आवास, टिकाऊ वस्तुएँ, परिवहन) स्थापित करने पर खर्च करने की अधिक संभावना होती है।
  • आय स्तर और प्रयोज्य आय:
    • चीन में उच्च प्रयोज्य आय वाला एक बड़ा और अधिक स्थापित मध्यम वर्ग है, जो आवश्यक चीजों से परे अधिक व्यय करने में सक्षम बनाता है।
    • इसके विपरीत, भारत का मध्यम वर्ग छोटा है, जिसकी अधिक आय खाद्य और परिवहन जैसी बुनियादी आवश्यकताओं पर केंद्रित होती है, जिसके परिणामस्वरूप कम विवेकगत व्यय होता है।
    • वर्ष 2022 के लिये चीन में प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (Gross National Income- GNI) 12,8501 अमेरिकी डॉलर और भारत में 2,5473 अमेरिकी डॉलर थी।
  • आर्थिक विकास का चरण:
    • विश्व बैंक के अनुसार, भारत को निम्न-मध्यम-आय वाले देश और चीन को उच्च-मध्यम-आय वाले देश के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
    • तीव्र औद्योगीकरण, निर्यात-उन्मुख विकास एवं बुनियादी ढाँचे में निवेश के कारण चीन की अर्थव्यवस्था कृषि से विनिर्माण और फिर सेवाओं में परिवर्तित हो गई है।
    • IT, वित्त और पेशेवर सेवाओं में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ भारत प्रत्यक्ष रूप से कृषि से सेवाओं की ओर बढ़ गया है, जबकि इसका विनिर्माण क्षेत्र अभी भी विकसित हो रहा है।
  • ऋण तक पहुँच:
    • विश्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार, भारत की तुलना में चीन में ऋण तक पहुँच रखने वाले नागरिकों की संख्या अधिक है।
      • चीन में लगभग आधी वयस्क जनसंख्या के पास क्रेडिट कार्ड है, जबकि भारत में केवल लगभग 12% लोगों के पास ही यह सुविधा उपलब्ध है।
    • भारत (लगभग 57%) की तुलना में चीनी जनसंख्या के एक बड़े हिस्से (85% से अधिक) के पास वित्तीय संस्थानों से ऋण तक पहुँच उपलब्ध है।
  • शहरीकरण:
    • वर्तमान में भारत में शहरीकरण बढ़ रहा है, जबकि चीन इसमें काफी पीछे है। यह विवेकाधीन उत्पादों की पहुँच को सीमित करता है तथा उपभोग पैटर्न को आवश्यकताओं के अनुसार, केंद्रित रखता है।
    • विश्व बैंक के अनुसार, वर्ष 2020 में चीन की 63.8% जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में निवास करती थी, जबकि भारत की केवल 34.5% जनसंख्या शहरी थी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

भारत और चीन के बीच उपभोग पैटर्न का विश्लेषण कीजिये। उन कारकों पर चर्चा कीजिये जिन्होंने इन पैटर्न को प्रभावित किया है और भारत के आर्थिक विकास के लिये उनके निहितार्थ का आकलन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. एन.एस.एस.ओ. के 70वें चक्र द्वारा संचालित "कृषक-कुटुंबों की स्थिति आकलन सर्वेक्षण" के अनुसार, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. राजस्थान में ग्रामीण कुटुंबों में कृषि कुटुंबों का प्रतिशत सर्वाधिक है।
  2. देश के कुल कृषि कुटुंबों में 60% से कुछ अधिक ओ.बी.सी. के हैं। 
  3. केरल में 60% से कुछ अधिक कृषि कुटुंबों ने यह सूचना दी कि उन्होंने अधिकतम आय गैर कृषि स्रोतों से प्राप्त की है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ?

(a) केवल 2 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1,2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न 2. किसी दिये गए वर्ष में भारत में कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखाएँ अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर हैं, क्योंकि- (2019)

(a) गरीबी की दर अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होती है,
(b) कीमत-स्तर अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होता है,
(c) सकल राज्य उत्पाद अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होता है,
(d) सार्वजनिक वितरण की गुणता अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होती है।

उत्तर: (b)


भूगोल

लैंड स्क्वीज़ का वैश्विक प्रभाव

प्रिलिम्स के लिये:

सतत् खाद्य प्रणालियों पर विशेषज्ञों का अंतर्राष्ट्रीय पैनल (IPES-खाद्य), राष्ट्रीय भूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम (NLRMP), राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA)  2013, सतत् कृषि पर राष्ट्रीय मिशन (NMSA)

मेन्स के लिये:

सतत् खाद्य प्रणालियों पर विशेषज्ञों के अंतर्राष्ट्रीय पैनल (IPES-खाद्य) की रिपोर्ट, भारत में भूमि उपयोग, लैंड स्क्वीज़ और खाद्य असुरक्षा के मुद्दे से निपटने के लिये भारत की पहल से लैंड स्क्वीज़ के संबंध में मुख्य बातें

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

सतत् खाद्य प्रणालियों पर विशेषज्ञों के अंतर्राष्ट्रीय पैनल (IPES-फूड) द्वारा हाल ही में किये गए एक अध्ययन में अभूतपूर्व 'लैंड स्क्वीज़' पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिससे किसानों और खाद्य उत्पादन को खतरा है।

  • भूमि संकुचन से तात्पर्य उस स्थिति से है, जहाँ विभिन्न प्रयोजनों (कृषि, शहरीकरण, बुनियादी ढाँचे आदि) के लिये भूमि की मांग उपलब्ध कृषि योग्य भूमि से अधिक हो जाती है।

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • इस रिपोर्ट में भूमि की बढ़ती कीमतों, भूमि पर कब्ज़ा करने और कार्बन योजनाओं के कारण प्रचलित "लैंड स्क्वीज़" की चेतावनी दी गई है, जिससे किसानों एवं खाद्य उत्पादन को जोखिम हो सकता है।
  • वैश्विक स्तर पर, विश्व के सबसे बड़े फार्मों में से शीर्ष 1% अब विश्व की 70% कृषि योग्य भूमि को नियंत्रित करते हैं।
    • जैसे-जैसे भूमि दुर्लभ हो जाती है, वैसे इसे कृषि भूमि से अन्य उपयोगों में परिवर्तित किया जा सकता है, जिससे खाद्य उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
  • वर्ष 2008-2022 के मध्य वैश्विक स्तर पर भूमि की कीमतें दोगुनी हो गई हैं।
    • इस दौरान सर्वाधिक वृद्धि विशेष रूप से मध्य-पूर्वी यूरोप में देखी गई है, जहाँ कीमतों में तीन गुना तक वृद्धि हुई।
  • पर्यावरण को आधार बनाकर "ग्रीन ग्रैब्स" के रूप में भूमि अधिग्रहण हो रहा है, अब बड़े स्तर पर होने वाले भूमि अधिग्रहण में इसकी लगभग 20% हिस्सेदारी है।
    • ग्रीन ग्रैबिंग का तात्पर्य पर्यावरणीय उद्देश्यों के लिये भूमि और संसाधनों के बड़े पैमाने पर अधिग्रहण या नियंत्रण से है, जिसके अक्सर नकारात्मक सामाजिक तथा आर्थिक परिणाम होते हैं। यह मूलतः पर्यावरण संरक्षण को आधार बनाकर भूमि पर किये गए कब्ज़े से संबंधित है।
  • कार्बन पृथक्करण परियोजनाओं के लिये सरकारों द्वारा नामित कुल भूमि में से आधी से अधिक से छोटे स्तर के किसानों एवं स्थानीय लोगों की आजीविका के संबंध में संभावित जोखिम बना हुआ है।
    • अगले 7 वर्षों में कार्बन ऑफसेट बाज़ार के चार गुना होने की उम्मीद है।

Global_State_of_Land_Inequality

Reasons_of_Land_Squeeze

भूमि अधिग्रहण के पीछे मुख्य कारण क्या हैं?

  • अवैध अधिग्रहण: 
    • सरकारों, निगमों और सट्टेबाजों द्वारा बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण से किसान और मूलनिवासी समुदाय विस्थापित हो रहे हैं।
    • ये अधिग्रहण मुख्यतः संसाधन निष्कर्षण (खनन, लकड़ी कटाई) या निर्यातोन्मुख कृषि के लिये होते हैं।
  • बढ़ती जनसंख्या और मांगें:
    • बढ़ती वैश्विक जनसंख्या के साथ-साथ भोजन, चारा, फाइबर और ईंधन की भारी मांग के कारण भूमि की उपलब्धता पर व्यापक दबाव पड़ रहा है।
  • वैश्विक खाद्य उत्पादन प्रणालियों में बदलाव:
    • इसमें भूमि के बड़े क्षेत्रों को औद्योगिक कृषि जैसे कि संकेन्द्रित पशु आहार प्रचालन (Concentrated Animal Feeding Operations- CAFO) और एकल कृषि पद्धतियों के लिये स्थानांतरित करना शामिल है।
      • औद्योगिक कृषि फसलों और पशुओं का बड़े पैमाने पर, गहन उत्पादन है, जिसमें अक्सर फसलों पर रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग और पशुओं पर एंटीबायोटिक दवाओं का हानिकारक प्रयोग शामिल होता है।
    • इसके अलावा, जैव ईंधन और अन्य गैर-खाद्य उपयोगों के लिये भूमि की मांग में वृद्धि हुई है।

भारत में भूमि उपयोग की क्या स्थिति है?

Land use in India

लैंड स्क्वीज़ और खाद्य असुरक्षा के मुद्दे से निपटने के लिये भारत की पहल:

लैंड स्क्वीज़ के प्रमुख प्रभाव क्या हैं? 

  • किसानों एवं ग्रामीण समुदायों के लिये पहुँच और नियंत्रण में कमी:
    • विस्थापन और निर्वासन: भूमि कब्ज़ा और अन्य दबाव छोटे स्तर के किसानों तथा स्वदेशी समुदायों को उनकी भूमि से वंचित कर देते हैं, जिससे उनकी आजीविका व जीवन के पारंपरिक तौर-तरीके बाधित होते हैं।
    • खाद्य सुरक्षा को खतरा: खाद्य उत्पादन के लिये कम भूमि उपलब्ध होने से, समग्र खाद्य सुरक्षा, (खासकर स्थानीय समुदायों के लिये) खतरे में पड़ जाती है।
    • मोलभाव करने की शक्ति: भूमि स्वामित्व का नुकसान किसानों को शक्तिशाली कृषि व्यवसायों से अपने उत्पादों के लिये उचित कीमतों पर मोलभाव करने में असमर्थ बनाता है।
    • निर्धनता में वृद्धि: भूमि तक सीमित पहुँच ग्रामीण जनसंख्या के लिये अवसरों को प्रतिबंधित करती है, जिससे वे निर्धनता के दुष्चक्र में फँस जाते हैं।
  • पर्यावरण क्षरण:
    • अस्थिर प्रथाएँ: बड़े स्तर पर, निर्यात-उन्मुख कृषि पर ध्यान केंद्रित करने से अक्सर भूमि उपयोग की प्रथाएँ जैसे; वनों की कटाई, मृदा का ह्रास और जल संसाधनों के अत्यधिक उपयोग से अस्थिर हो जाती हैं।
    • जैवविविधता हानि: खनन, बुनियादी ढाँचे और औद्योगिक कृषि के लिये भूमि के रूपांतरण के फलस्वरूप प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाते हैं तथा जैवविविधता को खतरा होता है।
    • जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता में वृद्धि: मृदा के स्वास्थ्य में गिरावट और प्राकृतिक वनस्पति की हानि पारिस्थितिक तंत्र को कमज़ोर करती है, जिससे वे जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
  • सामाजिक अशांति और संघर्ष:
    • संसाधनों के लिये प्रतिस्पर्द्धा: स्थानीय आबादी और निवेशकों के बीच सामाजिक अशांति एवं संघर्ष भूमि संसाधनों की सीमित मात्रा के लिये प्रतिस्पर्द्धा के परिणामस्वरूप उत्पन्न हो सकते हैं।
      • IPES-फूड द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकारों ने कार्बन पृथक्करण की परियोजनाओं के लिये जो भूमि आवंटित की है, उसका आधे से अधिक भाग छोटे किसानों और स्थानीय समुदायों की आजीविका में हस्तक्षेप का खतरा उत्पन्न करता है।
    • अस्थिरता और प्रवासन: 
      • भूमि और आजीविका के अवसरों की हानि से ग्रामीण-शहरी प्रवासन शुरू हो जाता है, जिससे शहरी संसाधनों एवं सामाजिक सेवाओं पर दबाव पड़ता है।

रिपोर्ट की क्या सिफारिशें हैं? 

  • भूमि कब्ज़ा पर नियंत्रण: भूमि कब्ज़े को नियंत्रित करने एवं स्थानीय समुदायों और खाद्य सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए भूमि उपयोग निर्णय सुनिश्चित करने के लिये नीतियों एवं विनियमों की आवश्यकता है।
  • छोटे किसानों का समर्थन: छोटे किसानो को सशक्त बनाने के लिये ग्रामीण बुनियादी ढाँचे में निवेश, सुरक्षित भूमि स्वामित्व और वित्तपोषण तक पहुँच महत्त्वपूर्ण है।
  • सतत् भूमि प्रबंधन: उन प्रथाओं को बढ़ावा देना जो मृदा के स्वास्थ्य की रक्षा करती हैं, जैवविविधता का संरक्षण करती हैं और दीर्घकालिक खाद्य उत्पादन सुनिश्चित करती हैं।
  • निष्पक्ष व्यापार नीतियाँ: सतत् कृषि को बढ़ावा देने और छोटे किसानों की आजीविका की रक्षा के लिये व्यापार समझौतों में सुधार किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष:

भूमि अधिग्रहण एक जटिल मुद्दा है जिसके लिये बहुआयामी समाधान की आवश्यकता है। अंतर्निहित कारणों को संबोधित करके और छोटे पैमाने के खाद्य उत्पादकों का समर्थन करके, हम भूमि तक समान पहुँच सुनिश्चित कर हम अपने पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं जिससे भविष्य के लिये अधिक सतत् खाद्य प्रणाली का निर्माण कर संभव हो सकेगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. लैंड स्क्वीज़ के खतरों पर प्रकाश डालते हुए भारत के भूमि उपयोग पैटर्न और इससे जुड़ी चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के अधीन बनाए गए उपबंधों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. केवल वे ही परिवार सहायता प्राप्त खाद्यान्न लेने की पात्रता रखते हैं जो "गरीबी रेखा से नीचे"(बी.पी.एल.) की श्रेणी में आते हैं।
  2. परिवार में 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र की सबसे अधिक उम्र वाली महिला ही राशन कार्ड निर्गत किये जाने के प्रयोजन से परिवार का मुखिया होगी।
  3. गर्भवती महिलाएँ एवं दुग्ध पिलाने वाली माताएँ गर्भावस्था के दौरान और उसके छः महीने बाद तक प्रतिदिन 1600 कैलोरी वाला राशन घर ले जाने की हकदार हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ?

(a) 1 और 2
(b) केवल 2
(c) 1 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (b)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

आतंकवाद-रोधी प्रयासों में भारत का योगदान

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र काउंटर-टेररिज़्म ट्रस्ट फंड (CTTF), संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद-निरोध कार्यालय, ग्लोबल काउंटर-टेररिज़्म स्ट्रैटेजी, काउंटरिंग फाइनेंसिंग ऑफ टेररिज़्म (CFT), काउंटरिंग टेररिस्ट ट्रैवल प्रोग्राम (CTTP), संयुक्त राष्ट्र काउंटर- आतंकवाद कार्यान्वयन कार्य बल (CTITF), संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद रोधी केंद्र (UNCCT), आतंकवाद वित्तपोषण

मेन्स के लिये:

आतंकवाद वित्तपोषण, सीमा सुरक्षा, क्षेत्रीय स्थिरता, आतंकवाद का मुकाबला करने में भारत का प्रयास 

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने संयुक्त राष्ट्र काउंटर-टेररिज़्म ट्रस्ट फंड (CTTF) में एक महत्त्वपूर्ण वित्तीय योगदान दिया है, जो वैश्विक स्तर पर आतंकवाद से निपटने के लिये अपनी चल रही प्रतिबद्धता में एक महत्त्वपूर्ण क्षण है।

  • अपने वर्तमान योगदान के साथ, ट्रस्ट फंड को भारत की संचयी वित्तीय सहायता अब 2.55 मिलियन डॉलर हो गई है।

संयुक्त राष्ट्र काउंटर-टेररिज़्म ट्रस्ट फंड क्या है?

  • परिचय:
    • संयुक्त राष्ट्र काउंटर-टेररिज़्म ट्रस्ट फंड (UNCTTF) का उद्देश्य आतंकवाद का मुकाबला करने में वैश्विक प्रयासों का समर्थन करना है।
      • इसकी स्थापना वर्ष 2009 में हुई थी और वर्ष 2017 में इसे संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद-निरोध कार्यालय (UNOCT) में शामिल किया गया था।
    • यह फंड आतंकवाद के वित्तपोषण और आतंकवादियों की आवाजाही तथा यात्रा पर अंकुश लगाने जैसी महत्त्वपूर्ण चुनौतियों से निपटने के लिये, विशेष रूप से पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में सदस्य देशों की क्षमता बढ़ाने पर केंद्रित है।
  • UNCTTF द्वारा समर्थित वैश्विक कार्यक्रम:
    • क्षमता निर्माण: ट्रस्ट फंड सदस्य देशों को आतंकवाद से प्रभावी ढंग से लड़ने की उनकी क्षमता को मज़बूत करने में सहायता करता है।
      • इस सहायता में कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिये प्रशिक्षण, कानूनी संरचनाओं में सुधार और आतंकवाद विरोधी कर्मियों की तकनीकी विशेषज्ञता को बढ़ाना शामिल है।
    • काउंटरिंग फाइनेंसिंग ऑफ टेररिज़्म (CFT): नियामक ढाँचे को मज़बूत करने, वित्तीय ट्रैकिंग क्षमताओं को बढ़ाने और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देकर आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने और मुकाबला करने के लिये ट्रस्ट फंड महत्त्वपूर्ण है।
    • काउंटरिंग टेररिस्ट ट्रैवल प्रोग्राम (CTTP): यह कार्यक्रम सीमा सुरक्षा को बढ़ाकर, उन्नत यात्री जानकारी का उपयोग करके और अंतर्राष्ट्रीय सूचना विनिमय तथा सर्वोत्तम प्रथाओं को बढ़ावा देकर आतंकवादी गतिविधियों को रोकना चाहता है।
    • ट्रस्ट फंड संयुक्त राष्ट्र वैश्विक आतंकवाद-विरोधी रणनीति के चार स्तंभों के संतुलित कार्यान्वयन का भी समर्थन करता है, आतंकवाद के मूल कारणों को संबोधित करना, आतंकवाद से लड़ना, राज्य क्षमता का निर्माण करना और मानवाधिकारों का सम्मान सुनिश्चित करना।

संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद-निरोध कार्यालय (UNOCT): 

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2017 में संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद-निरोध कार्यालय (United Nations Office of Counter Terrorism- UNOCT) की स्थापना की।
  • इसे महासभा के आतंकवाद-रोधी अधिदेशों पर नेतृत्व प्रदान करने और संयुक्त राष्ट्र प्रणाली की आतंकवाद-विरोधी गतिविधियों में समन्वय तथा सामंजस्य बढ़ाने के लिये बनाया गया था।
  • UNOCT संयुक्त राष्ट्र वैश्विक आतंकवाद विरोधी रणनीति को लागू करने में सदस्य राज्यों का समर्थन करता है।

वैश्विक आतंकवाद विरोधी प्रयासों में भारत का योगदान क्या है?

  • द्विपक्षीय:
    • भारत आतंकवाद-निरोध पर यूनाइटेड किंगडम, फ्राँस और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संयुक्त कार्य समूहों की बैठकें आयोजित करता है।
    • बहुपक्षीय:
      • आतंकवादी वित्तपोषण का मुकाबला करने के लिये प्रभावी और निरंतर प्रयास।
      • संयुक्त राष्ट्र के नियामक प्रयासों को वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force- FATF) जैसे अन्य मंचों के साथ समन्वयित करने की आवश्यकता है।
      • यह सुनिश्चित करना कि सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध व्यवस्था राजनीतिक कारणों से अप्रभावी न हो।
      • आतंकवादियों और उनके प्रायोजकों के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और ठोस कार्रवाई जिसमें आतंकवादियों के सुरक्षित ठिकानों को नष्ट करना आदि महत्त्वपूर्ण अनिवार्यताएँ शामिल हैं।
      • इन संबंधों को पहचानें और हथियारों और अवैध मादक पदार्थों की तस्करी जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध के साथ आतंकवाद के गठजोड़ को तोड़ने के लिये बहुपक्षीय प्रयासों को मज़बूत करना।
      • ब्रिक्स: भारत ब्रिक्स सहित बहुपक्षीय मंचों पर आतंकवाद के मुद्दे को सक्रिय रूप से उठा रहा है, जिसके सकारात्मक परिणाम मिले हैं, जिसमें ब्रिक्स के तहत पाँच उप-कार्य समूहों का गठन शामिल है, जो आतंकवादी वित्तपोषण, ऑनलाइन आतंकवाद, कट्टरपंथ, विदेशी आतंकवादी लड़ाकों और क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
      • UNSC CTC: वर्ष 2022 में भारत ने क्रिप्टोकरेंसी के माध्यम से आतंकवादी वित्तपोषण और नए युग के आतंकवाद में ड्रोन के उपयोग पर चर्चा करने के लिये UNSC की काउंटर टेररिज़्म कमेटी (Counter Terrorism Committee- CTC) की एक विशेष बैठक की मेजबानी की।  
      • भारत ने CTC पर विचार के लिये पाँच बिंदु सूचीबद्ध किये:
      • UNCTTF में भारत का योगदान:  भारत आतंकवाद के खतरे से निपटने के उद्देश्य से सक्रिय रूप से कार्यक्रमों का समर्थन कर रहा है और इस प्रकार आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में बहुपक्षीय प्रयासों का समर्थन करने के प्रति अपने समर्पण को रेखांकित करता है।
    • वित्तीय सहायता का उद्देश्य काउंटरिंग टेररिस्ट ट्रैवल प्रोग्राम (CTTP) और काउंटरिंग फाइनेंसिंग ऑफ टेररिज़्म (CFT) जैसे UNOCT कार्यक्रमों का समर्थन करना है।
    • महत्त्व:
      • ये कदम ग्लोबल साउथ के नेतृत्वकर्त्ता के रूप में भारत के उदय और आतंकवाद के लिये ज़ीरो टॉलरेंस की भारत की प्राथमिकता के अनुरूप हैं।
      • भारत के सहयोगात्मक प्रयास आतंकवाद के वित्तपोषण से निपटने और सीमाओं के पार आतंकवादियों की आवाजाही को रोकने के लिये देशों की क्षमताओं को बढ़ाने में सहायता करते हैं।
      • अफ्रीका में आतंकवाद के बढ़ते खतरे को संबोधित करके (UNCTTF के माध्यम से) भारत का उद्देश्य अफ्रीकी देशों को आतंकवाद का मुकाबला करने और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने के उनके प्रयासों में सहायता करना है। 

    आतंकवाद से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

    • आतंकवाद की कोई वैश्विक परिभाषा नहीं: आतंकवाद के लिये सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषाओं की अनुपस्थिति विशिष्ट गतिविधियों के वर्गीकरण को जटिल बनाती है, जिससे आतंकवादियों को लाभ मिलता है और यह कुछ देशों को वैश्विक संस्थानों में कार्रवाई को अवरुद्ध करने में सक्षम बनाता है।
    • आतंकवाद के जाल का विस्तार: इंटरनेट आतंकवादियों को नए सदस्यों की भर्ती करने और कई वेबसाइटों तथा सोशल मीडिया प्लेटफाॅर्मों पर अपने उद्देश्य का विस्तार करने हेतु संदेशों को पहुँचाने और उनका प्रचार करने के लिये एक अनियमित मंच प्रदान करता है।
    • आतंकवाद का वित्तपोषणः IMF और विश्व बैंक के अनुसार, अपराधी प्रतिवर्ष अनुमानित 2 से 4 ट्रिलियन डॉलर का धनशोधन करते हैं, जबकि आतंकवादी दान और वैकल्पिक प्रेषण प्रणालियों के माध्यम से संबंधित आर्थिक गतिविधियों को छिपाते हैं।
    • साइबर हमला: विश्व एक मूल्यवान संसाधन के रूप में डेटा के साथ डिजिटल रूप से आपस में जुड़ रहा है, जहाँ आतंकवादी अपने लक्ष्यों की पूर्ति के लिये सरकारों और समाजों को डराने या मजबूर करने के लिये साइबर हमलों का उपयोग करते हैं।

    आगे की राह 

    • आतंकवाद के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को वैश्विक स्तर पर आतंकवाद से लड़ने के लिये राजनीतिक मतभेदों को दूर करना होगा, आतंकवाद की एक वैश्विक परिभाषा स्थापित करनी होगी और वैश्विक सुरक्षा एवं शांति सुनिश्चित करने के लिये राज्य प्रायोजकों पर प्रतिबंध लगाना होगा।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ाना: सैन्य विशेषज्ञता और खुफिया जानकारी के स्रोतों को मज़बूत करने से राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ाने के साथ-साथ सीम-पार आतंकवादी गतिविधियों से सुरक्षा को बेहतर किया जा सकता है।
    • आतंकवादी वित्तपोषण पर अंकुश लगाना: आतंकवादी वित्तपोषण के खिलाफ प्रभावी लड़ाई के लिये  सीमा-पार लेनदेन की निगरानी, ​​नेटवर्क ट्रैकिंग और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के मध्य अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं FATF जैसे वैश्विक मानकों का पालन करना आवश्यक है।
    • मज़बूत साइबर-रक्षा तंत्र विकसित करना: एक अनुकूलनीय साइबर रक्षा रणनीति स्थापित करना आवश्यक है, जिसके लिये व्यक्तियों, संगठनों और महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को लक्षित करने वाले दुर्भावनापूर्ण खतरों से निपटने हेतु बहुस्तरीय दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।

    दृष्टि मेन्स प्रश्न:

    प्रश्न 1. 21वीं सदी में आतंकवाद की उभरती प्रकृति एवं वैश्विक शांति और सुरक्षा पर इसके प्रभाव की जाँच कीजियेI 

    प्रश्न 2. आंतरिक और बाह्य दोनों आयामों पर विचार करते हुए, आतंकवाद के संबंध में भारत की हालिया चिंताओं पर चर्चा कीजिये। इन चुनौतियों से निपटने में भारत की वर्तमान आतंकवाद विरोधी रणनीतियों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजियेI 

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

    मेन्स: 

    प्रश्न. आतंकवाद की महाविपत्ति राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये एक गम्भीर चुनौती है। इस बढ़ते हुए संकट का नियंत्रण करने के लिये आप क्या-क्या हल सुझाते हैं? आतंकी निधीयन के प्रमुख स्रोत क्या हैं? (2017)

    प्रश्न. डिजिटल मीडिया के माध्यम से धार्मिक मतारोपण का परिणाम भारतीय युवकों का आई.एस.आई.एस. में शामिल हो जाना रहा है। आई.एस.आई.एस. क्या है और उसका ध्येय (लक्ष्य) क्या है? आई.एस.आई.एस. हमारे देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये किस प्रकार खतरनाक हो सकता है? (2015)

    प्रश्न. कुछ रक्षा विश्लेषक इलेक्ट्रॉनिकी संचार माध्यम द्वारा युद्ध को अलकायदा और आतंकवाद से भी बड़ा खतरा मानते हैं। आप 'इलेक्ट्रॉनिकी संचार माध्यम युद्ध' (Cyber Warfare) से क्या समझते हैं? भारत ऐसे जिन खतरों के प्रति संवेदनशील है उनकी रूपरेखा खींचिये और देश की उनसे निपटने की तैयारी को भी स्पष्ट कीजिये। (2013)


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