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हू इज़ टिपिंग द स्केल रिपोर्ट: IPES

  • 02 May 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

फूड गवर्नेंस, ब्लूवॉशिंग, CGIAR, खाद्य एवं कृषि संगठन, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, संयुक्त राष्ट्र

मेन्स के लिये:

हू इज़ टिपिंग द स्केल रिपोर्ट: IPES

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इंटरनेशनल पैनल ऑफ एक्सपर्ट्स ऑन सस्टेनेबल फूड सिस्टम्स (IPES) द्वारा "हू इज़ टिपिंग द स्केल" शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की गई है, जिसमें बताया गया है कि कैसे वैश्विक खाद्य प्रशासन पर कॉर्पोरेट वर्चस्व बढ़ता जा रहा है एवं यह ब्लूवॉशिंग के बारे में चिंताएँ बढ़ा रहा है।

ब्लूवाशिंग:

  • ब्लूवॉशिंग उपभोक्ताओं को यह विश्वास दिलाने के लिये गलत सूचना का उपयोग कर रहा है कि एक कंपनी वास्तव में डिजिटल रूप से अधिक नैतिक एवं सुरक्षित है।
    • यह बिल्कुल ग्रीनवाशिंग की तरह है लेकिन यह पर्यावरण के बजाय सामाजिक और आर्थिक ज़िम्मेदारी पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है।
    • ग्रीनवाशिंग भ्रामक विपणन का एक रूप है जिसमें एक कंपनी झूठा दावा करती है कि उसके उत्पाद, नीतियाँ या कार्यक्रम पर्यावरण के अनुकूल या लाभकारी हैं, जबकि ये व्यवहार में पर्यावरण की सहायता हेतु बहुत कम या कुछ भी नहीं करते हैं।
  • 'ब्लूवॉशिंग' शब्द का इस्तेमाल पहली बार उन कंपनियों हेतु किया गया था जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र ग्लोबल कॉम्पेक्ट एवं इसके सिद्धांतों पर हस्ताक्षर किये थे लेकिन कोई वास्तविक नीतिगत सुधार नहीं किया था।
  • यह कार्य प्रायः कंपनियों द्वारा अपने डेटा गोपनीयता और सुरक्षा के बारे में अस्पष्ट या निराधार दावा या कृत्रिम बुद्धिमत्ता की रक्षा एवं सुरक्षा के बारे में दावा कर किया जाता है।

प्रमुख बिंदु

  • खाद्य प्रशासन पर निगम का प्रभाव:
    • प्रशासन के क्षेत्र में वैध अभिनेता होने का दावा करने वाली फर्मों की संख्या में वृद्धि हुई है।
    • हाल के दशकों में निगम सरकारों को यह विश्वास दिलाने में सफल रहे हैं कि खाद्य प्रणालियों के भविष्य पर होने वाली किसी भी चर्चा में उनकी केंद्रीय भूमिका होनी चाहिये।
    • निगम भागीदारी ने निर्णय लेने पर अधिक प्रभाव वाले वैश्विक खाद्य प्रशासन संस्थानों और निगमों हेतु धन का एक प्रमुख स्रोत प्रदान किया है।
  • खाद्य प्रशासन में कॉर्पोरेट भूमिका का सामान्यीकरण:
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी और बहु-हितधारक गोलमेज़ (राउंडटेबल्स) द्वारा खाद्य प्रशासन एवं निर्णय लेने में निजी निगमों की भूमिका को सामान्य कर दिया गया है, जबकि सार्वजनिक प्रशासन की पहल निजी वित्तपोषण पर बहुत अधिक निर्भर हो गई है।
  • कॉर्पोरेट प्रभाव पर चिंता:
    • नागरिक सामाजिक संगठनों, खाद्य वैज्ञानिकों ने यह चिंता व्यक्त की है कि खाद्य प्रशासन में निगमों की बढ़ती भागीदारी से जनता की भलाई और लोगों तथा समुदायों के अधिकारों पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कॉर्पोरेट प्रभाव:
    • निगमों ने प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से वैश्विक खाद्य प्रशासन को प्रभावित किया है।
    • बेहतर पोषण हेतु वैश्विक गठबंधन, खाद्य एवं भूमि उपयोग गठबंधन और पोषण गतिविधियों में वृद्धि करने से वैश्विक खाद्य प्रणालियों के प्लेटफॉर्म में कॉर्पोरेट प्रभाव देखा जा सकता है।
    • निजी क्षेत्र के उद्यमों द्वारा राजनैतिक और संस्थागत अनुदान, व्यापार और निवेश नियमों एवं अनुसंधान रणनीतियों का नियमन और वैश्विक खाद्य प्रणालियों के विविध संरचनात्मक पहलू अन्य न्यून प्रभावी तरीके थे जिनमें खाद्य प्रणाली शासन में कॉर्पोरेट प्रभाव देखा गया था।
  • कॉर्पोरेट भागीदारी बढ़ने का कारण:
  • कॉर्पोरेट भागीदारी की घटनाएँ:
    • अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान पर सलाहकार समूह (CGIAR) खाद्य उद्योग से जुड़े निजी फर्मों और निजी परोपकारी संस्थानों के वित्तपोषण पर निर्भर था।
    • बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, जो वर्ष 2020 में CGIAR का दूसरा सबसे बड़ा दानकर्त्ता था, ने लगभग 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान दिया, जो संयुक्त राज्य अमेरिका सहित सरकारों द्वारा व्यक्तिगत रूप से दिये गए योगदान से कहीं अधिक था।
    • FAO को अपने पूरे इतिहास में उद्योग साझेदारी के माध्यम से निगमों के साथ घनिष्ठ सहयोग करने के लिये भी जाना जाता है। हालाँकि इन योगदानों के बारे में विवरण आसानी से उपलब्ध नहीं थे।

वैश्विक खाद्य प्रशासन में अत्यधिक कॉर्पोरेट भागीदारी से संबंधित चुनौतियाँ?

  • सीमित जवाबदेही:
    • खाद्य प्रणाली में निजी अभिकर्त्ता जनता या नियामक निकायों के प्रति जवाबदेह नहीं हो सकते हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा, गुणवत्ता और स्थिरता को लेकर अपर्याप्त निगरानी की आशंका उत्पन्न हो सकती है।
    • निजी अभिकर्त्ता भी सार्वजनिक भलाई पर अपने मुनाफे को प्राथमिकता दे सकते हैं, जिससे हितों का टकराव हो सकता है जो खाद्य सुरक्षा, गुणवत्ता और स्थिरता से समझौता कर सकता है।
  • हाइपर नजिंग:
    • अत्यधिक कॉर्पोरेट भागीदारी से दैनिक लेन-देन डेटा (स्वचालित खाद्य सेवाओं के लिये डिजिटल वॉलेट) को पुनः प्राप्त किया जा सकता है, जिसे वे लोगों की खाने की आदतों में हेर-फेर करने हेतु इसे ऑनलाइन प्राप्त जानकारी के साथ जोड़ सकते हैं।
  • लाभों का असमान वितरण:
    • निजी अभिकर्त्ता लघु किसानों और उपभोक्ताओं की बजाय बड़े पैमाने पर उत्पादनकर्त्ताओं और खुदरा विक्रेताओं को प्राथमिकता प्रदान कर सकते हैं जिससे खाद्य प्रणाली से होने वाले लाभ का वितरण असमान हो सकता है।
  • सीमित पारदर्शिता:
    • निजी अभिकर्त्ताओं द्वारा उपयोग किये जाने वाले तरीकों, उत्पादों और नीतियों को स्पष्ट रूप से उजागर नहीं किये जाने से हितधारकों को उनके द्वारा उठाए गए कदमों का खाद्य प्रणाली पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करना कठिन हो सकता है।
  • खाद्य सुरक्षा की गंभीर स्थिति:
    • खाद्य प्रणाली का नियंत्रण बिग डेटा टेक्नोलॉजीज़ और ई-कॉमर्स प्लेटफाॅर्म के हाथों में चले जाने से इससे खाद्य असुरक्षा की स्थिति और गंभीर हो सकती है, साथ ही पर्यावरणीय क्षरण में भी वृद्धि हो सकती है।
    • कृत्रिम बुद्धिमता खाद्य पारिस्थितिकी तंत्र की पुनर्संरचना करने की दिशा में अग्रसर है, डिजिटल अवसंरचना के रूप में रोबोटिक ट्रैक्टर्स और ड्रोन्स के आगमन के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लाखों लोग शहरी क्षेत्रों की ओर जाने हेतु बाध्य हो जाएंगे।

सुझाव:

  • मानवाधिकारों पर आधारित एक ठोस शिकायत नीति और नए कार्यतंत्र की स्थापना की जानी चाहिये जो जन संगठनों, सामाजिक आंदोलनों और अन्य नागरिक समाज अभिकर्त्ताओं को अपनी शर्तों पर खाद्य प्रशासन में भाग लेने की अनुमति प्रदान करता हो।
  • जन संगठनों और सामाजिक आंदोलनों के दावों एवं प्रस्तावों के लिये स्वायत्त प्रक्रियाओं का निर्धारण किया जाना चाहिये, विशेष रूप से उनके लिये जो हाशिये के समुदायों के लिये एजेंसी का निर्माण करते हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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