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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत और अफ्रीकी स्थिरता संबंधी चुनौतियाँ

  • 28 Aug 2023
  • 22 min read

यह एडिटोरियल 25/08/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘India’s G-20 opportunity for an African Renaissance’’ लेख पर आधारित है। इसमें अफ्रीका महाद्वीप के समक्ष विद्यमान मुद्दों एवं चुनौतियों पर विचार किया गया है और चर्चा की गई है कि भारत इस महाद्वीप में स्थिरता बनाए रखने के लिये अपनी स्थिति का लाभ किस प्रकार उठा सकता है।

प्रिलिम्स के लिये:

पश्चिम अफ्रीकी राज्यों का आर्थिक समुदाय (ECOWAS), बेल्ट और रोड पहल, स्वेज नहर, हॉर्न ऑफ अफ्रीका क्षेत्र, भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन (IAFS), अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA), राष्ट्रमंडल, अफ्रीकी संघ (AU), BRICS, G-20, JAM ट्रिनिटी (जन धन-आधार-मोबाइल), DBT (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर), UPI (यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस), आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम, अफ्रीकन कॉन्टिनेंटल फ्री ट्रेड एरिया (AfCFTA)

मेन्स के लिये:

अफ्रीकी महाद्वीप से संबंधित चुनौतियाँ और भारत पर उनका प्रभाव, भारत किस प्रकार अफ्रीका की मदद कर सकता है।

इन दिनों अफ्रीका किसी दूरवासी ज़मींदार की तरह ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका), G-20 और संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) जैसे विभिन्न बहुपक्षीय मंचों पर अपनी मांगों को प्रकट कर रहा है। 54 देशों वाले इस महाद्वीप (जिसमें ‘ग्लोबल साउथ’ के लगभग एक-चौथाई देश भी शामिल हैं) का दक्षिण अफ्रीका द्वारा ब्रिक्स और G-20 जैसे मंचों पर प्रतिनिधित्व किया जा रहा है जिसने अफ्रीका महाद्वीप के लिये लगभग अप्रतिनिधिक प्रतिनिधि (an atypical representative) की हैसियत प्राप्त कर ली है।  

अफ्रीकी देशों के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ और व्यवधान:  

  • कुशासन: कई अफ्रीकी देश कुशासन, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और जवाबदेही की कमी जैसी समस्याओं से ग्रस्त हैं। ये समस्याएँ राज्य संस्थानों की वैधता एवं प्रभावशीलता को कमज़ोर करती हैं और जनता में असंतोष एवं अविश्वास की भावना पैदा करती हैं। 
  • अनियोजित विकास: कई अफ्रीकी देश तीव्र जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण, पर्यावरण क्षरण और संसाधनों की कमी की चुनौतियों का सामना करते हैं। इन मुद्दों को सतत विकास एवं सामाजिक कल्याण सुनिश्चित करने के लिये सतर्क योजना-निर्माण और प्रबंधन की आवश्यकता है। 
  • शासक जनजातियों का प्रभुत्व: कई अफ्रीकी देश जातीय और जनजातीय विविधता की विशेषता रखते हैं, जो समृद्धि और बहुलवाद का स्रोत हो सकते हैं, लेकिन ये संघर्ष और हिंसा का कारण भी बनते हैं। कुछ शासक जनजातियाँ या कुलीन वर्ग सत्ता और संसाधनों पर एकाधिकार जमाने की प्रवृत्ति रखते हैं, अन्य समूहों को हाशिए की ओर धकेल देते हैं या उनका दमन करते हैं और इस प्रकार आक्रोश एवं विद्रोह को बढ़ावा देते हैं। 
    • अंतर-जनजातीय संघर्ष: कई अफ्रीकी देशों में भूमि, जल, मवेशी या अन्य संसाधनों को लेकर विभिन्न जनजातियों या समुदायों के बीच प्रायः झड़पें होती रहती हैं। जलवायु परिवर्तन, सूखा, अकाल या विस्थापन जैसे परिदृश्यों के कारण ये संघर्ष और बढ़ जाते हैं। 
      • इनके परिणामस्वरूप जीवन की हानि, संपत्ति के विनाश और मानवीय संकट की स्थिति उत्पन्न होती है। 
  • आतंकवाद: कई अफ्रीकी देश इस्लामी चरमपंथ और आतंकवाद (जो प्रायः अल-क़ायदा या ईसीस जैसे वैश्विक नेटवर्क से जुड़े होते हैं) के खतरे से प्रभावित हैं। ये चरमपंथी समूह स्थानीय आबादी की शिकायतों एवं कमज़ोरियों का लाभ उठाते हैं, लड़ाकों की भर्ती करते हैं, हमले करते हैं और क्षेत्र की सुरक्षा एवं स्थिरता को प्रभावित करते हैं। 
  • जलवायु परिवर्तन: कई अफ्रीकी देश बढ़ते तापमान, अनियमित वर्षा, बाढ़, सूखा, मरुस्थलीकरण और बीमारियों जैसे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं। ये प्रभाव लोगों की आजीविका, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं प्रत्यास्थता के लिये और पारिस्थितिक तंत्रों के लिये गंभीर चुनौतियाँ पैदा करते हैं । 
  • अनियंत्रित खाद्य मुद्रास्फीति: कई अफ्रीकी देश उच्च खाद्य कीमतों की समस्या का सामना कर रहे हैं, जो आपूर्ति झटकों, मांग दबाव, बाज़ार विकृतियों, सट्टेबाजी या मुद्रा मूल्यह्रास जैसे विभिन्न कारकों से प्रेरित होती हैं। ये कारक लाखों लोगों, विशेषकर गरीबों और कमज़ोर तबकों के लिये क्रय शक्ति और खाद्य तक पहुँच को कम करते हैं। 
  • शहरीकरण और युवा बेरोज़गारी: कई अफ्रीकी देशों में तीव्र शहरीकरण हो रहा है, जो प्रायः अनियोजित और अप्रबंधित है। इससे मलिन बस्तियों, भीड़भाड़, प्रदूषण, अपराध और सामाजिक अपवर्जन जैसे परिदृश्य का उभार हो रहा है। 
  • इसके अलावा, कई अफ्रीकी देशों में एक बड़ी और वृद्धिशील युवा आबादी पाई जाती है जो बेरोज़गारी, अल्प-रोज़गार या अनौपचारिक रोज़गार की उच्च दर का सामना कर रही है। ये स्थितियाँ हताशा, निराशा और सामाजिक अशांति की संभावना उत्पन्न करती हैं। 
  • बाह्य हस्तक्षेप: उग्रवाद पर अंकुश के लिये फ्राँस, संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस (वैगनर समूह) के सैन्य हस्तक्षेप से उजागर हुआ है कि वे प्रायः स्थिति को और बिगाड़ते ही हैं। इन हस्तक्षेपों की अपनी लागत भी है, जैसे कि अपने आर्थिक हितों (उदाहरण के लिये नाइजर में यूरेनियम, मध्य अफ्रीकी गणराज्य में सोना और लीबिया में तेल) की रक्षा के लिये तानाशाही को सत्ता में बनाए रखना। 
  • सैन्य जनरलों की वापसी: पिछले दशक में मिस्र, बुर्किना फासो, माली और नाइजर जैसे देशों में सैन्य नेताओं ने सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया है। इधर दूसरी ओर, लीबिया और सूडान में सशस्त्र बल दो पक्षों में बंट गए हैं और नियंत्रण के लिये प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं। 
  • क्षेत्रीय और महाद्वीपीय गतिशीलता: क्षेत्रीय संगठन स्थिरता बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालाँकि, जब सदस्य देशों में स्वयं सैन्य सरकारें हों तो लोकतांत्रिक मानदंडों और स्थिरता को लागू करना अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाता है। 
  • चीन की बदलती भूमिका: अफ्रीका में चीन के बड़े निवेश ने महाद्वीप की आर्थिक वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि, चीन को कच्चे माल के निर्यात पर अफ्रीका की भारी निर्भरता ने इसे चीन की आर्थिक प्राथमिकताओं में किसी भी बदलाव के प्रति संवेदनशील बना दिया है। चीन की अर्थव्यवस्था में मंदी और उसके फोकस शिफ्ट के साथ कमोडिटी निर्यात पर अत्यधिक निर्भर अफ्रीकी देशों को आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। 
    • ऋण संबंधी चिंताएँ: यद्यपि चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) ने कई अफ्रीकी देशों में बुनियादी ढाँचे का विकास किया है, इसने कुछ देशों के लिये ऋण के उच्च स्तर का निर्माण भी किया है। 
  • भू-राजनीतिक तनाव: अफ्रीका में विभिन्न वैश्विक शक्तियों की संलग्नता के ऐतिहासिक, आर्थिक और भू-राजनीतिक आयाम हैं। फ्राँस और ब्रिटेन जैसी पूर्व औपनिवेशिक शक्तियों के साथ-साथ अमेरिका के भी इस महाद्वीप से आर्थिक हित और ऐतिहासिक संबंध रहे हैं। इन शक्तियों के बीच भू-राजनीतिक तनाव अफ्रीका की स्थिरता और विकास को प्रभावित कर सकता है। 
  • आर्थिक चुनौतियाँ: यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसी प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक मंदी अफ्रीका के साथ संलग्नता की उनकी क्षमता को सीमित कर सकती है। इससे विकास सहायता, निवेश और व्यापार संबंध प्रभावित हो सकते हैं। 
    • अफ्रीकी तटों से अवैध प्रवासन को रोकने पर यूरोप के विशेष ध्यान ने अफ्रीकी देशों के साथ उसकी संलग्नता को प्रभावित किया है। हालाँकि प्रवासन की समस्या को संबोधित करना महत्त्वपूर्ण है, लेकिन इस मुद्दे पर अत्यधिक संकीर्ण दृष्टिकोण व्यापक विकास और स्थिरता संबंधी चिंताओं को प्रभावित कर सकता है।

अफ्रीका में अशांति और अस्थिरता का भारत पर प्रभाव: 

  • आर्थिक प्रभाव: भारत के अफ्रीका के साथ महत्त्वपूर्ण व्यापार और निवेश संबंध हैं, जो महाद्वीप में अस्थिरता और असुरक्षा से प्रभावित होते हैं। 
    • वर्ष 2022-23 में भारत-अफ्रीका व्यापार 98 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया और भारत अफ्रीका में पाँचवाँ सबसे बड़ा निवेशक है। 
    • भारत अफ्रीका में विकास परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये रियायती ऋण सुविधा भी प्रदान करता है; इसने 12.37 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का रियायती ऋण प्रदान किया है। 
    • भारत ने वर्ष 2015 से अब तक 197 परियोजनाओं का कार्य पूरा किया है और 42,000 छात्रवृत्तियाँ प्रदान की है। 
  • सुरक्षा प्रभाव: अफ्रीका में, विशेष रूप से ‘हॉर्न ऑफ अफ्रीका’ क्षेत्र में (जो एक आवश्यक शिपिंग लेन है और हिंद महासागर को स्वेज नहर से जोड़ता है) शांति और स्थिरता बनाये रखने से भारत के रणनीतिक हित जुड़े हुए हैं। 
    • भारत अफ्रीका में शांति स्थापना मिशनों और आतंकवाद विरोधी प्रयासों में भागीदारी रखता है, साथ ही अफ्रीकी सुरक्षा बलों को प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण भी प्रदान करता है। 
    • अफ्रीका में अशांति भारत के सुरक्षा हितों और उद्देश्यों के लिये खतरा पैदा करती है, क्योंकि वह आतंकवाद, समुद्री डकैती, संगठित अपराध और मानव तस्करी के लिये प्रजनन आधार का निर्माण करती है। 

  • राजनयिक प्रभाव: भारत की अफ्रीका के साथ दीर्घकालिक साझेदारी रही है, जो परस्पर सम्मान, एकजुटता और सहयोग पर आधारित है। भारत आत्मनिर्भरता, लोकतंत्र और विकास की अफ्रीकी देशों की आकांक्षाओं का समर्थन करता है। 
  • मानवीय प्रभाव: अफ्रीका में लगभग 30 लाख भारतीय आप्रवासी निवास करते हैं जो प्रायः व्यापार, वाणिज्य और पेशेवर सेवाओं से संलग्न हैं। 
    • भारत संघर्षों, आपदाओं या महामारी से प्रभावित अफ्रीकी देशों को खाद्य, दवा, उपकरण और कर्मियों के रूप में मानवीय सहायता भी प्रदान करता है। 

भारत अफ्रीका की मदद करने के लिये अपनी स्थिति का लाभ कैसे उठा सकता है? 

  • राजनीतिक समर्थन: भारत शांति, लोकतंत्र और विकास की तलाश करते अफ्रीकी देशों का समर्थन करने के लिये अपने राजनयिक प्रभाव एवं सद्भावना का उपयोग कर सकता है। 
  • आर्थिक साझेदारी: भारत अधिक बाज़ार पहुँच, तरजीही टैरिफ (preferential tariffs) और गुणवत्तापूर्ण उत्पाद एवं सेवाएँ प्रदान कर अफ्रीका के साथ अपने व्यापार और निवेश संबंधों को संवृद्ध कर सकता है। 
    • भारत और अधिक रियायती ऋण, अनुदान एवं तकनीकी सहयोग की पेशकश कर अफ्रीका को अपनी विकास सहायता में वृद्धि कर सकता है। 
    • भारत कृषि, ग्रामीण विकास, सूक्ष्म वित्त, लघु एवं मध्यम उद्यम और डिजिटल अर्थव्यवस्था जैसे क्षेत्रों में अपने सर्वोत्तम अभ्यासों एवं अनुभवों को अफ्रीका के साथ साझा कर सकता है। 
    • भारत अफ्रीका के लिये लक्षित निवेश और प्रासंगिक एवं उपयुक्त भारतीय नवाचारों [जैसे JAM ट्रिनिटी (जन धन-आधार- मोबाइल), DBT (प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण), UPI (Unified Payments Interface), आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम आदि] जैसे बल गुणकों की पेशकश कर सकता है। 
  • सुरक्षा सहयोग: अफ्रीकी सुरक्षा बलों को अधिक प्रशिक्षण, उपकरण और खुफिया जानकारी प्रदान करने के रूप में भारत अफ्रीका के साथ अपने सुरक्षा सहयोग को सुदृढ़ कर सकता है। 
    • भारत और अधिक संख्या में सैनिकों, विशेषज्ञों एवं संसाधनों की तैनाती करने के रूप में अफ्रीका में क्रियान्वित शांति मिशनों और अभियानों में और अधिक योगदान कर सकता है। 
    • भारत आतंकवाद, समुद्री डकैती, संगठित अपराध और मानव तस्करी जैसे साझा खतरों का मुक़ाबला करने के विषय में भी अफ्रीका के साथ सहयोग कर सकता है। 
  • विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सहयोग: भारत अफ्रीका में अधिकाधिक वैज्ञानिक अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं का समर्थन करने के रूप में अफ्रीका के साथ अपने विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सहयोग को बढ़ावा दे सकता है। 
    • भारत अफ्रीकी चुनौतियों और अवसरों के लिये वहनीय/किफायती एवं उचित समाधान प्रदान करने के रूप में अफ्रीका में और अधिक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एवं अनुकूलन की सुविधा भी प्रदान कर सकता है। 
    • भारत संपूर्ण अफ्रीका में सहयोग का निर्माण करने के लिये स्टार्ट-अप्स, इंक्यूबेटर्स और हब्स को प्रोत्साहित करने के रूप में अफ्रीका के साथ और अधिक नवाचार आदान-प्रदान एवं सहयोग को बढ़ावा दे सकता है। 

अभ्यास प्रश्न: वर्तमान में अफ्रीका महाद्वीप विभिन्न राजनीतिक संकटों से जूझ रहा है। इस संदर्भ में भारत पर इन संकटों के संभावित प्रभावों की चर्चा कीजिये और उन रणनीतियों पर प्रकाश डालिये जिन्हें भारत इस क्षेत्र में स्थिरता बनाये रखने में योगदान हेतु अपना सकता है। 

 यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

  1. वर्ष 2015 में होने वाला आयोजन तीसरा शिखर सम्मेलन था। 
  2. वास्तव में यह वर्ष 1951 में जवाहरलाल नेहरू द्वारा शुरू किया गया था।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन भारत और अफ्रीकी देशों के बीच संबंधों को फिर से शुरू करने का एक मंच है।
  • इसकी शुरुआत वर्ष 2008 में नई दिल्ली में हुई थी। तब से शिखर सम्मेलन प्रत्येक तीन वर्ष पर बारी-बारी से भारत और अफ्रीका में आयोजित किया जाता है। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • दूसरा शिखर सम्मेलन वर्ष 2011 में अदीस अबाबा में आयोजित किया गया था। तीसरा शिखर सम्मेलन वर्ष 2014 में होने वाला था लेकिन इबोला के प्रकोप के कारण स्थगित कर दिया गया था तथा अक्तूबर 2015 में नई दिल्ली में आयोजित हुआ था। अत: कथन 1 सही है।
  • अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।

मेन्स:

प्रश्न. उभरते प्राकृतिक संसाधन समृद्ध अफ्रीका के आर्थिक क्षेत्र में भारत अपना क्या स्थान देखता है? (2014)

प्रश्न. अफ्रीका में भारत की बढ़ती रुचि के अपने सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष हैं। समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2015)

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