भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत पर FATF की पारस्परिक मूल्यांकन रिपोर्ट
प्रारंभिक परीक्षा:वित्तीय कार्रवाई कार्य बल, रत्न और आभूषण निर्यात संवर्द्धन परिषद, जन धन-आधार-मोबाइल (JAM) पहल, वस्तु एवं सेवा कर, राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड द लेवेंट, प्रवर्तन निदेशालय मुख्य परीक्षा:अवैध वित्त, धन शोधन और आतंकवाद के वित्तपोषण से निपटने में भारत की प्रगति |
स्रोत: पीआईबी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) ने भारत पर अपनी पारस्परिक मूल्यांकन रिपोर्ट जारी की, जिसमें अवैध वित्त से निपटने में देश की महत्त्वपूर्ण प्रगति पर प्रकाश डाला गया।
- नोट: जून 2024 में सिंगापुर में आयोजित FATF प्लेनरी ने भारत के लिये पारस्परिक मूल्यांकन रिपोर्ट को अपनाया, जिसमें कहा गया कि उसने वैश्विक धन शोधन निगरानी संस्था की आवश्यकताओं के साथ "उच्च स्तर का तकनीकी अनुपालन" हासिल किया है।
- FATF ने भारत को "नियमित अनुवर्त्ती" श्रेणी में रखा है, जो FATF द्वारा दी गई सर्वोच्च रेटिंग श्रेणी है और इस प्रकार यह दर्जा प्राप्त करने वाला भारत संघीय ढाँचे वाला एकमात्र प्रमुख अर्थव्यवस्था बन गया।
- भारत के अतिरिक्त ब्रिटेन, फ्राँस और इटली ही ऐसे जी-20 देश हैं जिन्हें इस श्रेणी में रखा गया है।
भारत पर FATF पारस्परिक मूल्यांकन रिपोर्ट की मुख्य बातें क्या हैं?
- सुधार की आवश्यकता वाले क्षेत्र: भारत तीन क्षेत्रों में आंशिक रूप से अनुपालन करता पाया गया।
- गैर-लाभकारी संगठन (NPO): धर्मार्थ संगठनों के रूप में पंजीकृत और कर छूट का लाभ उठाने वाले NPO आतंकवादी वित्तपोषण के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं।
- इन संगठनों से संबंधित जोखिमों से निपटने के लिये प्रणाली को बेहतर उपायों की आवश्यकता है।
- राजनीतिक पकड़ वाले लोग (PEP): घरेलू PEP के लिये धन के स्रोत, धन के स्रोत और लाभकारी स्वामित्व के बारे में अस्पष्टता मौज़ूद हैं। सरकार को इन अस्पष्टताओं को दूर करने की आवश्यकता है।
- नामित गैर-वित्तीय व्यवसायों और पेशा (DNFBP): DNFBP के विनियमन और पर्यवेक्षण में खामियाँ मौज़ूद हैं, विशेष रूप से धन शोधन और आतंकवाद के वित्तपोषण के संबंध में।
- DNFBP भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं, जिसमें बहुमूल्य धातुओं और पत्थरों का योगदान 7% तथा रियल एस्टेट का योगदान 5% है।
- धन शोधन संबंधी जोखिम: भारत में अवैध गतिविधियाँ धन शोधन संबंधी जोखिम के प्राथमिक स्रोत हैं, जिसमें धोखाधड़ी, साइबर धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार और मादक पदार्थों की तस्करी शामिल हैं।
- PMS मनी लॉन्ड्रिंग के प्रति संवेदनशील: बहुमूल्य धातुओं और पत्थरों (PMS) का उपयोग स्वामित्व का कोई निशान छोड़े बिना बड़ी मात्रा में धन हस्तांतरित करने के लिये किया जा सकता है।
- भारत के PMS बाज़ार का आकार मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण के प्रति इसकी संवेदनशीलता में योगदान देता है। इस क्षेत्र में लगभग 1,75,000 डीलर शामिल हैं, लेकिन केवल 9,500 ही रत्न और आभूषण निर्यात संवर्द्धन परिषद (GJEPC) के साथ पंजीकृत हैं।
- FATF की रिपोर्ट में कहा गया है कि PMS क्षेत्र में सीमा पार से संचालित आपराधिक नेटवर्क की कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा न्यूनतम जाँच की जा सकती है।
- परिष्कृत हीरे और रत्नों के एक प्रमुख उपभोक्ता और उत्पादक के रूप में भारत की वैश्विक भूमिका को देखते हुए, धन शोधन संबंधी गतिविधियों को रोकने के लिये धोखाधड़ी और तस्करी तकनीकों पर निरंतर निगरानी रखने की आवश्यकता है।
- सोने और हीरे की तस्करी से संबंधित ML/TF जोखिमों पर बेहतर जोखिम की समझ और गहन गुणात्मक और मात्रात्मक डेटा की आवश्यकता है।
- आतंकवादी वित्तपोषण का संकट: भारत को गंभीर आतंकवादी संकटों का सामना करना पड़ रहा है, विशेष रूप से इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड द लेवेंट (ISIL) और अल-कायदा से संबंधित समूहों से, जो जम्मू एवं कश्मीर में और उसके आसपास सक्रिय हैं।
- पूर्वोत्तर में क्षेत्रीय विद्रोह और वामपंथी उग्रवादी समूह भी आतंकवाद का संकट उत्पन्न करते हैं।
- यद्यपि देश आतंकवादी वित्तपोषण की रोकथाम और उसे बाधित करने पर बल देता है, फिर भी अभियोजन को समाप्त करने और आतंकवादी वित्तपोषणकर्त्ताओं को दोषी ठहराने के लिये और अधिक प्रयास की आवश्यकता है।
- वित्तीय समावेशन: भारत ने वित्तीय समावेशन को काफी हद तक बढ़ाया है, बैंक खाताधारकों की संख्या में तीव्र वृद्धि हुई है और डिजिटल भुगतान प्रणालियों के उपयोग में वृद्धि हुई है।
- छोटे खातों के लिये सरलीकृत प्रक्रिया से वित्तीय पारदर्शिता को बढ़ावा मिला है जिसने AML/CFT के प्रयासों में योगदान दिया है।
- डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिये जन धन-आधार-मोबाइल (JAM) पहल की सराहना की गई।
- आपूर्ति शृंखला पारदर्शिता बढ़ाने के लिये वस्तु एवं सेवा कर (GST), ई-चालान और ई-बिल के कार्यान्वयन की सराहना की गई ।
- आतंकवादी वित्तपोषण का संकट: भारत को गंभीर आतंकवादी संकटों का सामना करना पड़ रहा है, विशेष रूप से इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड द लेवेंट (ISIL) और अल-कायदा से संबंधित समूहों से, जो जम्मू एवं कश्मीर में और उसके आसपास सक्रिय हैं।
- आतंकवाद के वित्तपोषण के विरुद्ध कार्रवाई: राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा आतंकवाद के वित्तपोषण के विरुद्ध प्रभावी कार्रवाई की सराहना की गई।
- FATF की सिफारिशें:
- लंबित मुकदमे: भारत को लंबित धन शोधन के मुकदमों को शीघ्र निपटाने तथा मानव तस्करी और मादक पदार्थों से संबंधित अपराधों से निपटने की अपनी प्रणाली में सुधार करने की आवश्यकता है।
- लक्षित वित्तीय प्रतिबंध: भारत को बिना किसी विलंब के धन और परिसंपत्तियों को फ्रीज करने के लिये अपने ढाँचे में सुधार करना चाहिये तथा प्रतिबंधों के संबंध में संचार को सुव्यवस्थित करना चाहिये।
- घरेलू PEP: भारत को अपने धन शोधन विरोधी कानूनों के तहत घरेलू PEP को परिभाषित करने और उनके लिये जोखिम-आधारित उन्नत उपायों को लागू करने की आवश्यकता है।
भारत के लिये FATF के पारस्परिक मूल्यांकन के क्या निहितार्थ हैं?
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और परिसंपत्ति वसूली: FATF से भारत को मिली मान्यता से विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे भगोड़े आर्थिक अपराधियों से संबंधित अवैध परिसंपत्तियों का पता लगाने और वसूली में अन्य देशों के साथ सहयोग करने की इसकी क्षमता में वृद्धि होती है।
- वैश्विक वित्तीय निगरानी संस्थाओं के साथ बेहतर सहयोग से आतंकवाद के वित्तपोषण विरोधी प्रयासों में सहायता मिलती है।
- वैश्विक वित्तीय प्रणालियों तक बेहतर पहुँच: FATF रेटिंग से वैश्विक वित्तीय बाज़ारों तक भारत की पहुँच में सुधार होगा, जिससे अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से ऋण लेना और निवेश करना आसान हो जाएगा।
- यह मान्यता भारत के एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) के वैश्विक विस्तार का समर्थन करती है,जिससे यह सीमा पार डिजिटल भुगतान के लिये पसंदीदा विकल्प बन जाता है।
- निवेशकों का विश्वास सुदृढ़ करना: सकारात्मक मूल्यांकन भारत की विश्वसनीयता बढ़ाता है और वित्तीय बाज़ारों में विदेशी निवेशकों का विश्वास बढ़ाता है, जिससे भारत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लिये अधिक आकर्षक गंतव्य बन जाता है।
निष्कर्ष
FATF की पारस्परिक मूल्यांकन रिपोर्ट अवैध वित्त के विरुद्ध संघर्ष में भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है। धन शोधन विरोधी और आतंकवाद विरोधी वित्तपोषण में अग्रणी के रूप में मान्यता अन्य देशों के लिये एक बेंचमार्क स्थापित करती है, जबकि NPO और PEP जैसे क्षेत्रों में निरंतर सुधार की आवश्यकता महत्त्वपूर्ण बनी हुई है। यह मूल्यांकन भारत को भविष्य के आर्थिक विकास और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये अनुकूल स्थिति में रखता है।
और पढ़ें: भारत पर FATF की पारस्परिक मूल्यांकन रिपोर्ट
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत की वित्तीय अखंडता हेतु FATF पारस्परिक मूल्यांकन रिपोर्ट के महत्त्व और भारत पर इसके प्रभावों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)Q. चर्चा कीजिये कि किस प्रकार उभरती प्रौद्योगिकियाँ और वैश्वीकरण मनी लॉन्ड्रिंग में योगदान करते हैं। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर मनी लॉन्ड्रिंग की समस्या से निपटने के लिये किये जाने वाले उपायों को विस्तार से समझाइये। (2021) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
अमेरिकी फेडरल रिज़र्व द्वारा ब्याज दर में कटौती और इसके निहितार्थ
प्रिलिम्स के लिये:मुद्रास्फीति, रूस-यूक्रेन संघर्ष, बेरोज़गारी, मंदी, कैरी ट्रेड्स, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, भारतीय रिज़र्व बैंक, मुद्रास्फीति लक्ष्य, फिलिप्स वक्र मेन्स के लिये:भारत जैसे उभरते बाज़ारों पर अमेरिकी फेडरल रिज़र्व की नीतियों का प्रभाव, मुद्रास्फीति बनाम रोज़गार, वैश्विक आर्थिक रुझानों पर भारत की मौद्रिक नीति प्रतिक्रिया |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में यूनाइटेड स्टेट्स (US) फेडरल रिज़र्व ने अपनी बेंचमार्क ब्याज दरों में 50 आधार अंकों की कटौती की है जो कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से पहली प्रमुख कटौती है। यह कदम आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हुए मुद्रास्फीति से निपटने के लिये एक रणनीतिक दृष्टिकोण का संकेत है।
- नोट: अमेरिकी फेडरल रिज़र्व अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अधिकतम रोज़गार, स्थिर कीमतों और मध्यम दीर्घकालिक ब्याज दरों को बढ़ावा देने के लिये देश की मौद्रिक नीति का प्रबंधन करता है।
अमेरिकी फेडरल रिज़र्व ने ब्याज दरों में कटौती क्यों की?
- महामारी के बाद आर्थिक सुधार: कोविड-19 महामारी के बाद फेडरल रिज़र्व ने अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिये ब्याज दरों में कटौती की। हालाँकि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों (रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण) सहित विभिन्न कारकों के कारण मुद्रास्फीति बढ़ने पर फेडरल रिज़र्व ने बढ़ती कीमतों की प्रतिक्रया में दरें बढ़ा दीं।
- मुद्रास्फीति में कमी: वर्ष 2023 के मध्य तक मुद्रास्फीति स्थिर (फेडरल रिज़र्व के 2% के लक्ष्य की ओर अग्रसर) होने लगी।
- हाल के रोज़गार आँकड़ों से पता चला है कि उच्च ब्याज दरें रोज़गार पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही हैं, अगस्त 2024 में अमेरिका में बेरोज़गारी दर 4.2% तक बढ़ गई। इससे संभावित मंदी के बारे में चिंताएँ बढ़ गईं जिससे फेडरल रिज़र्व को मूल्य स्थिरता के साथ-साथ रोज़गार सृजन को प्राथमिकता देने की प्रेरणा मिली।
- दोहरा अधिदेश: फेडरल रिज़र्व स्थिर कीमतें बनाए रखने और अधिकतम रोज़गार प्राप्त करने के दोहरे अधिदेश के तहत कार्य करता है। जैसे-जैसे आर्थिक परिदृश्य विकसित हुआ, यह स्पष्ट हो गया कि ब्याज दरों में कटौती से इन उद्देश्यों को संतुलित करने में मदद मिलेगी।
- अमेरिका के लिये निहितार्थ:
- दरों में कटौती करके अमेरिका मुद्रास्फीति के दबाव को संतुलित किया जा सकता है। हालाँकि मुद्रास्फीति में कमी आई है लेकिन केंद्रीय बैंक अपनी लक्षित दर को 2% के आसपास बनाए रखने पर केंद्रित है ताकि अर्थव्यवस्था के लिये "सॉफ्ट लैंडिंग" की कोशिश की जा सके।
- कम ब्याज दरें आमतौर पर व्यक्तियों और व्यवसायों दोनों के लिये ऋण को सस्ता बनाती हैं। बेरोज़गारी बढ़ने के आलोक में फेड, मूल्य स्थिरता के साथ-साथ रोज़गार सृजन को प्राथमिकता दे रहा है।
- ब्याज दरों में कटौती से व्यवसायों की उधारी लागत कम करने में मदद मिल सकती है, जिससे संभावित रूप से आर्थिक संवृद्धि हो सकती है।
मुद्रास्फीति और बेरोज़गारी किस प्रकार संबंधित हैं?
- व्युत्क्रम सहसंबंध: सामान्यतः मुद्रास्फीति और बेरोज़गारी विपरीत रूप से संबंधित हैं- एक के बढ़ने पर दूसरे में कमी आती है।
- कम बेरोज़गारी की अवधि के दौरान मजदूरी में वृद्धि होती है क्योंकि नियोक्ता श्रमिकों को आकर्षित करने के लिये उच्च मजदूरी देते हैं, जिससे अंततः कीमतें बढ़ जाती हैं।
- इसके विपरीत उच्च बेरोज़गारी के समय में मजदूरी में वृद्धि नहीं होती है जिससे मुद्रास्फीति में कमी आती है।
- कम बेरोज़गारी की अवधि के दौरान मजदूरी में वृद्धि होती है क्योंकि नियोक्ता श्रमिकों को आकर्षित करने के लिये उच्च मजदूरी देते हैं, जिससे अंततः कीमतें बढ़ जाती हैं।
- फिलिप्स वक्र: फिलिप्स वक्र (सर्वप्रथम 1950 के दशक में ए.डब्लू. फिलिप्स द्वारा सुझाया गया था) किसी अर्थव्यवस्था की बेरोज़गारी दर और मुद्रास्फीति दर के बीच विपरीत संबंध को दर्शाता है।
- फिलिप्स वक्र से पता चलता है कि कम बेरोज़गारी अवधि के दौरान श्रम की उच्च मांग से मजदूरी में वृद्धि होने से मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है।
- इस मॉडल का व्यापक रूप से मौद्रिक नीति में उपयोग किया जाता है (विशेष रूप से मुद्रास्फीति और रोज़गार के स्तर को संतुलित करने में)।
- फिलिप्स वक्र से पता चलता है कि कम बेरोज़गारी अवधि के दौरान श्रम की उच्च मांग से मजदूरी में वृद्धि होने से मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है।
फेडरल रिज़र्व की ब्याज दर में कटौती से भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
- उभरते बाज़ारों पर प्रभाव: वैश्विक अर्थव्यवस्था में अमेरिका की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। अमेरिका में न्यून ब्याज दर के कारण कैरी ट्रेड के माध्यम से भारत जैसे देशों में निवेश करना अधिक आकर्षक हो गया है।
- कैरी ट्रेड एक ऐसी रणनीति है जिसमें निवेशक (विदेशी संस्थागत निवेशक) अमेरिका (जहाँ ब्याज दरें कम हैं) से पैसा ऋण के रूप में लेते हैं और उसे वहाँ निवेश करते हैं जहाँ दरें अधिक होती हैं, जिससे अंतर पर लाभ मिलता है।
- सीमित प्रभाव: भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा कि ब्याज दरों में कटौती से पूंजी की डॉलर लागत कम हो सकती है और तरलता में वृद्धि हो सकती है, लेकिन इसे वैश्विक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये एकमात्र समाधान के रूप में नहीं देखा जा सकता है।
- विदेशी निवेश में वृद्धि: अमेरिका में कम ब्याज दरें वैश्विक निवेशकों को अमेरिका में ऋण लेने और भारत में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित कर सकती हैं। यह प्रवाह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) या अमेरिका से ऋण के रूप में हो सकता है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये अति आवश्यक पूंजी प्रदान करेगा।
- शेयर बाज़ार की धारणा: ब्याज दरों में कटौती ने भारतीय शेयर बाज़ार में निवेशकों के ध्यान को आकर्षित किया है, जो वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद निवेशकों के बीच सकारात्मक अवधारणा को दर्शाता है।
- कच्चे तेल की कीमतें: जब अमेरिकी डॉलर कमज़ोर होता है, तो अन्य मुद्राओं के धारकों के लिये तेल सस्ता हो जाता है, जिससे मांग में वृद्धि होने के साथ ही कीमतों में भी वृद्धि देखने को मिल सकती है।
- तेल की बढ़ी हुई कीमतों से भारत की ऊर्जा आयात लागत बढ़ सकती है और संभवतः भारत में मुद्रास्फीति में पुनः वृद्धि देखी जा सकती है।
- मुद्रा विनिमय दरों पर प्रभाव : भारतीय रुपए समेत अन्य मुद्राओं की तुलना में अमेरिकी डॉलर के कमज़ोर होने से भारतीय निर्यातकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, जबकि आयातकों को लाभ हो सकता है।
- RBI की प्रतिक्रिया: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) पर ब्याज दरों में कटौती करने का दबाव है, हालाँकि यह फेडरल रिज़र्व की तुलना में अलग मुद्रास्फीति लक्ष्यों और आर्थिक अधिदेशों के तहत कार्य करता है।
- RBI का ध्यान सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि पर अधिक है और वह अमेरिकी बेरोज़गारी आँकड़ों से उतना प्रभावित नहीं होता है।
संघीय टेपरिंग
- फेडरल टेपरिंग से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा फेडरल रिज़र्व धीरे-धीरे अपनी वृहद् स्तरीय परिसंपत्ति क्रय को कम करता है, यह एक मौद्रिक नीति उपकरण है जिसका उपयोग प्रायः आर्थिक संकटों के दौरान किया जाता है।
- इस रणनीति, जो आमतौर पर मात्रात्मक सहजता (QE) से संबंधित है, का उद्देश्य ब्याज दरों को कम करके और वित्तीय बाज़ारों में तरलता बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करना है।
- टेपरिंग का उद्देश्य संकट के दौरान प्रदान किये गए कुछ आर्थिक प्रोत्साहन को वापस लेना है, तथा अधिक सामान्यीकृत मौद्रिक नीति की ओर संक्रमण करना है।
भारत की रेपो दर
- RBI ने 50 वीं मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक में नीतिगत रेपो दर को 6.50% पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया है।
- यह निर्णय आर्थिक विकास को समर्थन देते हुए मुद्रास्फीति को प्रबंधित करने के प्रति समिति के दृष्टिकोण को दर्शाता है।
- MPC का प्राथमिक उद्देश्य मुद्रास्फीति को +/- 2% अंकों की सहनशीलता सीमा के साथ 4.0% की लक्ष्य दर के अनुरूप लाना है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: अमेरिकी फेडरल रिज़र्व की ब्याज दर में कटौती के भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारतीय सरकारी बॉन्ड प्रतिफल निम्नलिखित में से किससे/किनसे प्रभावित होता है? (2021)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये। (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) |
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
लेबनान में पेजर, वॉकी-टॉकी विस्फोट
प्रिलिम्स के लिये:पेजर, वॉकी-टॉकी, लेबनान, हिज़बुल्लाह, मध्य पूर्व, इज़रायल, फिलिस्तीन, मध्य-पूर्व, अरब विश्व मेन्स के लिये:युद्धों में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों एवं आधुनिक युद्ध प्रणालियों का प्रयोग और इसके निहितार्थ, भारत पर इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष का प्रभाव और अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीतिक परिदृश्य। |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में लेबनान में हिज़बुल्लाह द्वारा विभिन्न स्थानों पर प्रयोग किये जाने वाले वॉकी-टॉकी और पेजर (हैंडहेल्ड रेडियो) के विस्फोटों के परिणामस्वरूप कई लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए।
- हिजबुल्लाह ने इन पेजरों का चयन मोबाइल फोन के माध्यम से पकड़े जाने से बचने के लिये किया था, तथा इन्हें पेंटाएरिथ्रिटोल टेट्रानाइट्रेट (PETN) के साथ गुप्त रूप से संशोधित किया गया था।
वॉकी-टॉकी क्या हैं?
- परिचय:
- इसे माइक्रोफोन और स्पीकर वाले हैंडहेल्ड टू-वे रेडियो के रूप में भी जाना जाता है।
- ये पोर्टेबल संचार उपकरण हैं जो विशिष्ट आवृत्ति बैंड पर संदेश भेजने और प्राप्त करने के लिये रेडियो तरंगों का उपयोग पर आधारित हैं।
- इतिहास और आविष्कार:
- पेजरों का पहली बार प्रयोग 1930 के दशक में सेना द्वारा किया गया था और 20वीं सदी के युद्धों में इन उपकरणों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।
- इसके आविष्कार का श्रेय वर्ष 1937 में डॉन हिंग्स को दिया गया था, जिसे प्रारंभ में पायलटों के लिये बनाया गया था और इसे वायरलेस सेट, पैक सेट एवं टू-वे फील्ड रेडियो के रूप में जाना जाता था।
- घटक और संचालन:
- इसमें एक ट्रांसमीटर-रिसीवर यूनिट, एक एंटीना, एक लाउडस्पीकर-माइक्रोफोन संयोजन और एक पुश-टू-टॉक बटन शामिल है।
- यह उपकरण एकल आवृत्ति बैंड पर काम करता है, जिससे यह सिग्नल को प्रेषित और प्राप्त कर सकता है।
- संवाद करने के लिये, उपयोगकर्त्ता पुश-टू-टॉक बटन दबाते हैं, जिससे उनकी आवाज़ रेडियो तरंगों में परिवर्तित हो जाती है, जो उसी चैनल पर अन्य उपकरणों द्वारा प्रेषित और प्राप्त की जाती हैं।
- अनुप्रयोग:
- वॉकी-टॉकी का प्रयोग आपातकालीन सेवाओं, सुरक्षा, सैन्य अभियानों और निर्माण एवं आतिथ्य/हॉस्पिटैलिटी जैसे विभिन्न उद्योगों में बड़े पैमाने पर किया जाता है।
- ये विशेष तौर पर कमज़ोर सिग्नल वाले स्थानों में महत्त्वपूर्ण सिद्ध होते हैं, क्योंकि ये मोबाइल नेटवर्क के बिना भी काम कर सकते हैं।
- आधुनिक वॉकी-टॉकी बहुत अधिक उन्नत हैं और अब इनमें बुनियादी संचार के अलावा फ्लैशलाइट, हैंड्स-फ्री तकनीक, SOS सिग्नल और मौसम संबंधी अलर्ट जैसी विशेषताएँ भी शामिल हैं।
सीमाएँ:
वॉकी-टॉकी से जुड़ी आम समस्याओं में बैटरी खत्म होने के कारण कवरेज का खोना, बैकग्राउंड में अत्यधिक शोर, गोपनीयता संबंधी चिंताएँ और ट्रांसमिशन के दौरान स्थिरता/स्थैतिकता शामिल हैं।
ट्रांसमिशन प्रकार:
- सिंप्लेक्स: संचार एकतरफा होता है; एक समय में केवल एक ही पक्ष संचारित कर सकता है। उदाहरण: कंप्यूटर से प्रिंटर, पेजर।
- हाफ डुप्लेक्स: द्विदिशात्मक होने के बावजूद, संचार एक साथ नहीं होता; एक समय में केवल एक ही पक्ष संवाद कर सकता है। उदाहरण: वॉकी टॉकी।
- फुल डुप्लेक्स: संचार द्विदिशात्मक और एक साथ होता है; एक ही समय में दोनों पक्ष संवाद कर सकते हैं और सुन सकते हैं। उदाहरण: टेलीफोन।
पेजर क्या हैं?
- परिचय:
- पेजर, जिन्हें बीपर्स भी कहा जाता है, वायरलेस उपकरण हैं जो संदेश प्राप्त करते हैं और प्रदर्शित करते हैं।
- 1980 के दशक में इनका व्यापक रूप से उपयोग किया गया था, लेकिन कमज़ोर सिग्नल वाले क्षेत्रों में इनकी विश्वसनीयता के कारण स्वास्थ्य सेवा और आपातकालीन सेवाओं जैसे विशिष्ट समूह अभी भी इन पर निर्भर हैं।
- कार्यरत:
- पेजर टावरों द्वारा प्रेषित रेडियो सिग्नल का उपयोग करते हुए काम करते हैं जो उन क्षेत्रों में प्रवेश कर सकते हैं जहाँ सेलुलर सिग्नल कमज़ोर हो सकते हैं।
- पेजर के प्रकार:
- वन-वे पेजर: सेंट्रल ट्रांसमीटर से संदेश प्राप्त करते हैं, लेकिन उत्तर नहीं दे सकते। वे बीप या कंपन के माध्यम से यूज़र्स को सचेत करते हैं।
- दो-तरफ़ा पेजर: ये यूज़र्स को संदेश भेजने और प्राप्त करने की अनुमति देते हैं, हालाँकि ये अभी भी स्मार्टफोन की तुलना में कम कार्यात्मक हैं।
- गुप्त ऑपरेशन में पेजर का अनुप्रयोग:
- निगरानी के प्रति कम सुग्राह्यता: इंटरनेट कनेक्टिविटी और ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (GPS) की कमी के कारण इसके लोकेशन ट्रैकिंग की संभावना कम हो जाती है।
- इंटरसेप्ट/अवरोधन में असाध्य: रेडियो फ्रीक्वेंसी के प्रयोग के कारण, सेलुलर या इंटरनेट आधारित उपकरणों की तुलना में उनकी निगरानी करना अधिक कठिन होता है।
- गुप्त-प्रयोग हेतु संशोधन योग्य: पेजर्स को गुप्त अधिसूचना या दूरस्थ विस्फोट के लिये सिग्नल भेजने हेतु प्रोग्राम करना संभव है।
- पेजर और अन्य उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स सहित रिमोट डेटोनेटर का प्रयोग कई युद्ध/संघर्षों में किया गया है।
- सशस्त्र समूहों ने पुलिस स्टेशनों और सरकारी भवनों को निशाना बनाने के लिये रेडियो नियंत्रित उन्नत विस्फोटक उपकरणों (RCIED) का इस्तेमाल किया है, जिसमें ऐसे उपकरण लगाए गए हैं जो डिटेक्ट होने से बचने के लिये कमज़ोर सिग्नल छोड़ते/उत्सर्जित करते हैं।
- RCIED एक विस्फोटक पदार्थ है जिसे वायरलेस रेडियो या डिवाइस के साथ एकीकृत किया जाता है, जो दूसरे वायरलेस हैंडहेल्ड डिवाइस से सिग्नल प्राप्त होने पर सक्रिय हो जाता है।
हिज़बुल्लाह क्या है?
- सामरिक एवं अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन केंद्र (CSIS) के अनुसार, हिज़बुल्लाह का अर्थ है ‘Party of God’ अर्थात् ‘ईश्वर की पार्टी’, लेबनान में एक शिया मिलिशिया-सह-राजनीतिक पार्टी है और विश्व के सबसे भारी हथियारों से लैस गैर-राष्ट्रीय अभिकर्त्ताओं में से एक है।
- इसका गठन लेबनानी गृहयुद्ध (वर्ष 1975-1990) के दौरान हुआ था, जो मुख्यतः वर्ष 1978 और 1982 में दक्षिणी लेबनान पर इज़रायल के आक्रमणों के बदले में किया गया था।
- ईरान की (वर्ष 1979 की) इस्लामी क्रांति से प्रेरित होकर, इसे ईरान और इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) से पर्याप्त समर्थन प्राप्त हुआ है।
- अमेरिका और इज़रायल जैसे देशों ने इसे आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया है।
लेबनान
- लेबनान पश्चिम एशिया के लेवेंट क्षेत्र (पूर्वी भूमध्य सागर बेसिन का एक क्षेत्र) में स्थित एक देश है।
- इसकी राजधानी और सबसे बड़ा शहर बेरूत है।
- इसकी सीमा उत्तर और पूर्व में सीरिया , दक्षिण में इज़रायल तथा पश्चिम में भूमध्य सागर से लगती है।
- साइप्रस द्वीप देश के समुद्र तट से थोड़ी दूरी पर स्थित है।
दृष्टि मुख्य प्रश्न: विश्लेषण कीजिये कि आधुनिक युद्ध में मोबाइल फोन और पेजर जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का किस प्रकार उपयोग किया गया है। इसके क्या निहितार्थ हैं और इन्हें कम करने की क्या रणनीति है? |
संघ लोकसेवा आयोग परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. हाल ही में समाचारों में आने वाले 'LiFi' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये। (a) केवल 1 प्रश्न. ब्लूटूथ (Bluetooth) तथा वाई-फाई (Wi-Fi) के बीच क्या अंतर है ? (a) ब्लूटूथ 2.4 GHz रेडियो-आवृत्ति पट्ट प्रयुक्त करता है जबकि वाई-फाई 2-4 GHz अथवा 5 GHz आवृत्ति पट्ट प्रयुक्त कर सकता है। उत्तर: (a) प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये :
इन में से कौन से, 2.4 और 2.5 GHz रेडियो आवृत्ति बैन्ड पर प्रचालन कर सकते हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (D) प्रश्न. भूमध्य सागर निम्नलिखित में से किस देश की सीमा है? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 प्रश्न. दक्षिण-पश्चिम एशिया का निम्नलिखित में से कौन-सा देश भूमध्य सागर से साझा नहीं करता है? (2015) (a) सीरिया प्रश्न. "टू स्टेट सोल्यूशन" शब्द का उल्लेख कभी-कभी समाचारों में किसके संदर्भ में किया जाता है? (2018) (a) चीन मेन्स:प्रश्न. “भारत के इज़रायल के साथ संबंधों ने हाल ही में एक ऐसी गहराई और विविधता हासिल की है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।” विवेचना कीजिये। ( 2018) |
भारतीय राजनीति
दिल्ली विधानसभा हेतु समयपूर्व चुनाव की मांग
प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 239AA, NCT, अनुसूची VII, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम 2021 के तहत दिल्ली के लिये विशेष प्रावधान। मेन्स के लिये:अनुच्छेद 239AA के तहत दिल्ली के लिये विशेष प्रावधान, केंद्रशासित प्रदेशों का प्रशासन। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, दिल्ली के मुख्यमंत्री ने दिल्ली में शीघ्र विधानसभा चुनाव कराने का आह्वान किया है, तथा उन्होंने महाराष्ट्र के साथ ही दिल्ली में भी चुनाव कराए जाने का अनुरोध किया, जहाँ 26 नवंबर 2024 से पहले नई विधानसभा के लिये चुनाव होना है।
- दिल्ली विधानसभा का वर्तमान कार्यकाल 23 फरवरी 2025 को समाप्त होगा।
चुनाव संबंधी नियम और प्रावधान क्या हैं?
- संवैधानिक ढाँचा:
- भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) को संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार चुनावों की देखरेख और संचालन का अधिकार है।
- अनुच्छेद 324 भारत के निर्वाचन आयोग को चुनावी प्रक्रिया के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति प्रदान करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने से पहले चुनाव पूरे हो जाएँ।
- जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम (RPA अधिनियम), 1951:
- जन प्रतिनिधि कानून, 1951 की धारा 15(2) के अनुसार, विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने से कम-से-कम 6 महीने पहले चुनावों की अधिसूचना नहीं दी जा सकती, जब तक कि विधानसभा समय से पहले भंग न हो जाए।
- यह प्रावधान चुनावी प्रक्रियाओं के लिये निर्धारित समय-सीमा का पालन करने के महत्त्व पर बल देता है।
- विधानसभा का विघटन:
- राज्यपाल की भूमिका:
- संविधान का अनुच्छेद 174(2)(b) राज्यपाल को "समय-समय पर" विधान सभा को भंग करने का अधिकार प्रदान करता है।
- मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने से पहले उसे भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं।
- एक बार विधानसभा भंग हो जाने पर, भारत निर्वाचन आयोग को छह महीने के भीतर चुनाव कराने का दायित्व सौंपा जाता है।
- दिल्ली का विशेष मामला:
- दिल्ली विधानसभा का विघटन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली शासन अधिनियम, 1991 द्वारा अभिप्रेत है।
- धारा 6(2)(b) में कहा गया है कि उपराज्यपाल (LG) विधानसभा को भंग कर सकते हैं, लेकिन अंतिम निर्णय केंद्र के पास है।
- इसलिये, भले ही मुख्यमंत्री विघटन की सिफारिश करते हैं, यह अंततः उपराज्यपाल और केंद्र सरकार की मंजूरी पर निर्भर है।
- राज्यपाल की भूमिका:
चुनाव कार्यक्रम तय करने से पहले भारत निर्वाचन आयोग किन कारकों पर विचार करता है?
- कार्यकाल समाप्ति तिथि: वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने से पहले नई विधानसभा का गठन हो जाना चाहिये।
- तार्किक विचार: ECI वर्तमान स्थिति, सुरक्षा बलों की उपलब्धता एवं चुनाव अधिकारियों के प्रशिक्षण की आवश्यकता पर विचार करता है।
- प्रशासनिक इनपुट: भारत निर्वाचन आयोग, स्थानीय प्रशासनिक और पुलिस तंत्र से इनपुट एकत्र करता है।
- चुनावों का एक साथ आयोजन: निर्वाचन आयोग का उद्देश्य (जहाँ तक संभव हो) चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिये राज्यों में चुनावों को एक साथ आयोजन करना होता है।
दिल्ली का शासन मॉडल क्या है?
- संवैधानिक प्रावधान:
- दिल्ली को संविधान की अनुसूची 1 के तहत केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा प्राप्त है लेकिन अनुच्छेद 239AA के तहत इसे ' राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT)' के रूप में नामित किया गया है।
- अनुच्छेद 239AA:
- दिल्ली के लिये राज्य के दर्जा की मांगों पर विचार करने के लिये गठित एस बालाकृष्णन समिति की सिफारिशों के बाद दिल्ली को विशेष दर्जा देने के लिये संविधान (69वें) संशोधन अधिनियम, 1991 द्वारा अनुच्छेद 239AA को संविधान में शामिल किया गया था।
- अनुच्छेद 239AA के प्रावधान:
- इसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में एक प्रशासक और एक विधानसभा होगी।
- संविधान के प्रावधानों के अधीन विधानसभा को "पुलिस, लोक व्यवस्था और भूमि को छोड़कर, राज्य सूची या समवर्ती सूची के किसी भी विषय के संबंध में पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र या उसके किसी भी भाग के लिये विधि निर्माण की शक्ति होगी, जहाँ तक ऐसा कोई मामला केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू होता है।"
- इसके अलावा LG को या तो मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना होगा या वह राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए संदर्भ पर लिये गए निर्णय को लागू करने के लिये बाध्य है।
- इससे उपराज्यपाल को मंत्रिपरिषद के साथ 'किसी भी मामले' पर मतभेद के संदर्भ में राष्ट्रपति को सूचित करने का अधिकार मिलता है।
- इस प्रकार LG और निर्वाचित सरकार के बीच इस दोहरे नियंत्रण से सत्ता संघर्ष को बढ़ावा मिलता है।
- अनुच्छेद 239AB (जिसे संविधान (69वाँ) संशोधन अधिनियम, 1991 द्वारा शामिल किया गया) में प्रावधान है कि राष्ट्रपति के आदेश द्वारा अनुच्छेद 239AA के किसी प्रावधान या उस अनुच्छेद के अनुसरण में बनाए गए किसी कानून के सभी या किसी प्रावधान के क्रियान्वयन को निलंबित किया जा सकता है।
भारत निर्वाचन आयोग क्या है?
- परिचय:
- भारतीय निर्वाचन आयोग, एक स्वायत्त सांविधानिक प्राधिकरण है जो भारत में संघ और राज्य निर्वाचन प्रक्रियाओं के प्रशासन के लिये ज़िम्मेदार है।
- इसका राज्यों में पंचायतों एवं नगर पालिकाओं के निर्वाचन से कोई सरोकार नहीं है। इसके लिये भारत का संविधान एक अलग राज्य चुनाव आयोग का प्रावधान करता है।
- संवैधानिक प्रावधान:
- भाग XV (अनुच्छेद 324-329): यह निर्वाचन से संबंधित है और इन मामलों के लिये एक आयोग की स्थापना करता है।
- अनुच्छेद 324: निर्वाचन हेतु अधीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण एक चुनाव आयोग में निहित किया जाएगा।
- अनुच्छेद 325: कोई भी व्यक्ति धर्म, नस्ल, जाति अथवा लिंग के आधार पर किसी विशेष मतदाता सूची में शामिल होने या शामिल होने का दावा करने के लिये अयोग्य नहीं होगा।
- अनुच्छेद 326: लोक सभा एवं राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचन वयस्क मताधिकार पर आधारित होंगे।
- अनुच्छेद 327: विधायिकाओं के चुनाव के संबंध में प्रावधान करने की संसद की शक्ति।
- अनुच्छेद 328: किसी राज्य के विधानमंडल की ऐसे विधानमंडल के लिये निर्वाचन के संबंध में प्रावधान करने की शक्ति।
- अनुच्छेद 329: निर्वाचन के मामलों में न्यायालयों द्वारा हस्तक्षेप पर रोक।
- आयुक्तों की नियुक्ति एवं कार्यकाल:
- राष्ट्रपति CEC और अन्य EC (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) अधिनियम, 2023 के अनुसार CEC और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करता है।
- उनका छह साल का एक निश्चित कार्यकाल होता है या 65 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले हो)।
- CEC और EC का वेतन तथा सेवा शर्तें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होंगी।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: चुनावी प्रक्रिया की अखंडता बनाए रखने में भारत के चुनाव आयोग की भूमिका का परीक्षण कीजिये। चुनावी कदाचार से निपटने में भारत के चुनाव आयोग के सामने कौन-सी प्रमुख चुनौतियाँ हैं और इनका समाधान कैसे किया जा सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न: आदर्श आचार-संहिता के उद्भव के आलोक में, भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका का विवेचन कीजिये। (2022) |