भारतीय राजनीति
एस.आर.बोम्मई बनाम भारत संघ मामला 1994
प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 356, भारत का सर्वोच्च न्यायालय, संघवाद, न्यायिक समीक्षा मेन्स के लिये:एस.आर.बोम्मई बनाम भारत संघ मामले का महत्त्व, राष्ट्रपति शासन, अनुच्छेद 356 का अनुचित उपयोग |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
एस.आर.बोम्मई बनाम भारत संघ मामले पर वर्ष 1994 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय की नौ-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा निर्णय किया गया जो अनुच्छेद 356 के तहत राज्य सरकारों की मनमाना रूप से बर्खास्तगी को प्रतिबंधित करता है। इस निर्णय के 30 वर्ष बाद भी भारत के संवैधानिक ढाँचे को आकार देने में इसकी भूमिका बनी हुई है।
एस.आर.बोम्मई बनाम भारत संघ मामला क्या है?
- एस.आर.बोम्मई बनाम भारत संघ मामले की पृष्ठभूमि:
- वर्ष 1985 में जनता पार्टी ने कर्नाटक में विधानसभा चुनाव जीत कर सरकार बनाई और मुख्यमंत्री के रूप में रामकृष्ण हेगड़े को चयनित किया। वर्ष 1988 में हेगड़े के स्थान पर एस.आर.बोम्मई ने मुख्यमंत्री का पद ग्रहण किया।
- सितंबर 1988 में जनता दल के एक विधायक ने विधानसभा के 19 अन्य सदस्यों के साथ पार्टी छोड़ दी और बोम्मई के नेतृत्व वाली सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया।
- सदस्यों द्वारा दलबदल करने से पार्टी का बहुमत प्रभावित हुआ जिसके कारण अनुच्छेद 356 का उपयोग कर राज्य सरकार को बर्खास्त कर दिया गया। बोम्मई द्वारा बहुमत परीक्षण का अनुरोध किया गया जिसे राज्यपाल ने अस्वीकार कर दिया।
- बोम्मई ने उच्च न्यायालय का रुख किया जिसमें बोम्मई के विरुद्ध निर्णय सुनाया गया, जिसके बाद उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की।
- वर्ष 1985 में जनता पार्टी ने कर्नाटक में विधानसभा चुनाव जीत कर सरकार बनाई और मुख्यमंत्री के रूप में रामकृष्ण हेगड़े को चयनित किया। वर्ष 1988 में हेगड़े के स्थान पर एस.आर.बोम्मई ने मुख्यमंत्री का पद ग्रहण किया।
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- सर्वोच्च न्यायालय की नौ न्यायाधीशों की पीठ ने इस तथ्य पर बल दिया कि अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति द्वारा आपात की उद्घोषणा का सावधानी से प्रयोग किया जाना चाहिये, जैसा कि डॉ. बी.आर. अंबेडकर और सरकारिया आयोग द्वारा अनुशंसा की गई थी।
- संसद के दोनों सदनों को अनुच्छेद 356(3) के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा आपात की उद्घोषणा का गहन विश्लेषण करना चाहिये।
- यदि उद्घोषणा दोनों सदनों की मंज़ूरी के बिना जारी की जाती है तो यह दो माह के भीतर समाप्त हो जाती है और राज्य विधानसभा अपना संचालन पुनः प्रारंभ कर सकती है।
- सर्वोच्च न्यायालय उद्घोषणा की न्यायिक समीक्षा कर सकती है और इसकी वैधता को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं पर विचार कर सकती है यदि याचिका में तर्कपूर्ण प्रश्न उठाए गए हैं।
- निर्णय में यह स्पष्ट किया कि किसी राज्य सरकार को बर्खास्त करने की राष्ट्रपति की शक्ति पूर्ण/आत्यंतिक नहीं है अपितु सीमाओं के अधीन है।
- यह माना गया कि हालाँकि अनुच्छेद 356 विधानमंडल के विघटन को स्पष्ट रूप से संबोधित नहीं करता है, फिर भी इससे ऐसी शक्तियों का अनुमान लगाया जा सकता है।
- अनुच्छेद 174(2) जो राज्यपाल को विधान सभा को भंग करने की अनुमति देता है तथा अनुच्छेद 356(1)(A), जो राष्ट्रपति को राज्यपाल एवं राज्य सरकार की शक्तियों को प्रदान करने में सक्षम बनाता है,जो विधान मंडल को भंग करने की शक्ति प्रदान करता है।
- एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ मामले का महत्त्व:
- एस.आर. बोम्मई मामला मूल संरचना सिद्धांत के साथ-साथ अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग को दर्ज करने के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णयों में से एक है।
- निर्णय द्वारा अनुच्छेद 356 के दायरे तथा सीमाओं पर स्पष्टता प्रदान की और साथ ही केवल असाधारण परिस्थितियों में इसके उपयोग पर ज़ोर दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित सिद्धांत सरकारिया आयोग की सिफारिशों के अनुरूप थे।
- इस मामले ने संघवाद के सिद्धांतों की पुष्टि की, जिसमें कहा गया कि राज्य सरकारें केंद्र के अधीन नहीं हैं और साथ ही यह सहकारी संघवाद की वकालत भी करती हैं।
- निर्णय में अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति के कार्यों की जाँच करने, संवैधानिक सिद्धांतों का पालन सुनिश्चित करने तथा शक्ति के दुरुपयोग को रोकने में न्यायपालिका की भूमिका पर ज़ोर दिया गया।
- इसने पुष्टि की कि विधानसभा का पटल सरकार के बहुमत का परीक्षण करने का एकमात्र अधिकार है, न कि राज्यपाल की व्यक्तिपरक राय का।
नोट:
- सरकारिया आयोग ने कुछ मामलों में अनुच्छेद 356(1) को लागू करने से पहले राज्य को सूचित करने की अनुशंसा की।
- इसमें कहा गया है कि समस्या को हल करने के लिये पहले अन्य सभी विकल्पों पर विचार किया जाना चाहिये और साथ ही अनुच्छेद 365 का उपयोग केवल तभी किया जाना चाहिये जब कोई अन्य विकल्प उपलब्ध न हो जो समस्या को हल करने के लिये लागू किया जा सके।
- सहकारी संघवाद एवं प्रतिस्पर्द्धी संघवाद:
- सहकारी संघवाद में केंद्र तथा राज्य एक क्षैतिज संबंध साझा करते हैं, जहाँ वे व्यापक सार्वजनिक हित में "सहयोग" प्रदान करते हैं।
- यह राष्ट्रीय नीतियों के निर्माण एवं कार्यान्वयन में राज्यों की भागीदारी को सक्षम करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है।
- संघ तथा राज्य संविधान की अनुसूची VII में निर्दिष्ट मामलों पर एक दूसरे के साथ सहयोग करने के लिये संवैधानिक रूप से बाध्य हैं।
- प्रतिस्पर्द्धी संघवाद में केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच संबंध लंबवत् एवं राज्य सरकारों के बीच क्षैतिज होता है।
- प्रतिस्पर्द्धी संघवाद में राज्यों को लाभ के लिये आपस में और केंद्र के साथ भी प्रतिस्पर्द्धा करने की आवश्यकता होती है।
- राज्य धन और निवेश आकर्षित करने के लिये एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्द्धा करते हैं, जिससे प्रशासन में दक्षता आती है तथा विकासात्मक गतिविधियों में वृद्धि होती है।
- सहकारी संघवाद में केंद्र तथा राज्य एक क्षैतिज संबंध साझा करते हैं, जहाँ वे व्यापक सार्वजनिक हित में "सहयोग" प्रदान करते हैं।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 356 क्या है?
- अनुच्छेद 356 की पृष्ठभूमि:
- संविधान सभा में प्रारंभिक चर्चा में इस बात पर विचार किया गया कि क्या भारत को संघीय या एकात्मक सरकार प्रणाली अपनानी चाहिये।
- विचार के दो मत उभरे, जिनमें संघवाद के समर्थक विकेंद्रीकृत शक्तियों के लिये तर्क दे रहे थे और अन्य अधिक केंद्रीकृत एकात्मक राज्य का समर्थन कर रहे थे।
- डॉ. अंबेडकर ने स्पष्ट किया कि भारत संघीय और एकात्मक दोनों सिद्धांतों के तहत कार्य करता है, सामान्य परिस्थितियों में संघवाद प्रचलित होता है तथा आपात स्थिति के दौरान एकात्मक नियंत्रण होता है।
- दुरुपयोग के खिलाफ चेतावनियों के बावजूद, परवर्ती सरकारों ने राजनीतिक कारणों से अनुच्छेद 356 को बार-बार लागू किया, जिसके परिणामस्वरूप इसे 132 बार लागू किया गया।
- संविधान सभा में प्रारंभिक चर्चा में इस बात पर विचार किया गया कि क्या भारत को संघीय या एकात्मक सरकार प्रणाली अपनानी चाहिये।
- अनुच्छेद 356:
- भारत के संविधान का अनुच्छेद 356 भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 93 पर आधारित है।
- अनुच्छेद 356 के अनुसार, संवैधानिक प्रशासन की विफलता के आधार पर भारत के किसी भी राज्य पर राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
- राष्ट्रपति शासन दो स्थितियों में लगाया जा सकता है: जब राष्ट्रपति को राज्य के राज्यपाल से एक रिपोर्ट प्राप्त होती है या अन्यथा वह आश्वस्त होता है कि राज्य सरकार संविधान के अनुसार कार्य नहीं कर पाती है (अनुच्छेद 356) तथा जब कोई राज्य केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन करने में विफल रहता है (अनुच्छेद 365)।
- राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य सरकार निलंबित हो जाती है और केंद्र सरकार सीधे राज्यपाल के माध्यम से राज्य का प्रशासन चलाती है।
- राष्ट्रपति शासन लगाने के लिये संसदीय अनुमोदन आवश्यक है और इसे दो महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों में साधारण बहुमत से अनुमोदित किया जाना चाहिये।
- प्रारंभ में, राष्ट्रपति शासन छह महीने के लिये लागू होता है और इसे हर छह महीने में संसदीय मंज़ूरी के साथ तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
- संविधान में 44वें संशोधन (1978) ने राष्ट्रपति शासन को एक वर्ष से अधिक बढ़ाने पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे केवल राष्ट्रीय आपातकाल के मामले में विस्तार की अनुमति मिलती है या यदि निर्वाचन आयोग राज्य विधानसभा चुनाव आयोजित करने में कठिनाइयों के कारण आवश्यकता को प्रामाणित करता है।
- केंद्र-राज्य संबंधों पर सरकारिया आयोग (1988) की रिपोर्ट के आधार पर, बोम्मई मामले, 1994 में सर्वोच्च न्यायालय ने उन स्थितियों को सूचीबद्ध किया जहाँ अनुच्छेद 356 के तहत शक्ति का प्रयोग उचित या अनुचित हो सकता है।
अनुच्छेद 356 का उचित उपयोग |
अनुच्छेद 356 का अनुचित उपयोग |
त्रिशंकु विधानसभा: चुनाव के बाद किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता। |
वैकल्पिक मंत्रालय गठन की खोज किये बिना मंत्रिमंडलों ने त्याग-पत्र दे दिया। |
बहुमत दल ने मंत्रालय बनाने से इनकार कर दिया, और बहुमत वाला कोई गठबंधन मंत्रालय उपलब्ध नहीं है। |
राज्यपाल ने बहुमत परीक्षण की अनुमति दिये बिना राष्ट्रपति शासन लगा दिया। |
विधानसभा में हार के बाद मंत्रिमंडल ने त्याग-पत्र दे देता है और कोई भी पार्टी बहुमत के साथ नया मंत्रालय नहीं बना सकती है। |
लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी पार्टी की बड़ी हार हुई है। |
संविधान का आंतरिक तोड़फोड़ या जानबूझकर उल्लंघन। |
आंतरिक अशांति तोड़फोड़ या विघटन की श्रेणी में नहीं आती। |
राज्य सरकार केंद्र सरकार के संवैधानिक निर्देश की अवहेलना करती है। |
उचित चेतावनी के बिना कुप्रशासन या भ्रष्टाचार के आरोप। |
शारीरिक विच्छेद, राज्य सुरक्षा को खतरे में डालना। |
अंतर्पक्षीय मुद्दों या अप्रासंगिक उद्देश्यों के लिये दुरुपयोग। |
आपातकालीन स्थिति को छोड़कर राज्य सरकार को पूर्व चेतावनी नहीं दी जाती है। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा के निम्नलिखित में से कौन-से परिणामों का होना आवश्यक नहीं है? (2017)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. यद्यपि परिसंघीय सिद्धांत हमारे संविधान में प्रबल है और वह सिद्धांत संविधान के आधारित अभिलक्षणों में से एक है, परंतु यह भी इतना ही सत्य है कि भारतीय संविधान के अधीन परिसंघवाद सशक्त केंद्र के पक्ष में झुका हुआ है, यह एक ऐसा लक्षण है जपो प्रबल परिसंघवाद की संकल्पना के विरोध में है। चर्चा कीजिये। (2014) |
सामाजिक न्याय
लैंगिक समानता में भारत की प्रगति
प्रिलिम्स के लिये:मानव विकास रिपोर्ट 2023-24, लैंगिक असमानता सूचकांक 2022, प्रजनन स्वास्थ्य, मातृ मृत्यु अनुपात, लैंगिक वेतन अंतर, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 रिपोर्ट, विश्व असमानता रिपोर्ट 2022, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, महिला शक्ति केंद्र, राष्ट्रीय क्रेच योजना, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, वन स्टॉप सेंटर, संविधान (106वाँ संशोधन) अधिनियम, 2023। मेन्स के लिये:भारत में महिलाओं से संबंधित मुद्दे, लैंगिक असमानता सूचकांक 2022 के आयाम। |
स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया
चर्चा में क्यों?
हाल ही में UNDP द्वारा अपनी मानव विकास रिपोर्ट 2023-24 में लैंगिक असमानता सूचकांक (Gender Inequality Index- GII), 2022 जारी किया गया है।
- GII में, भारत 0.437 स्कोर के साथ 193 देशों में से 108वें स्थान पर है।
लैंगिक असमानता सूचकांक क्या है?
- परिचय: GII तीन आयामों का उपयोग करते हुए लैंगिक असमानता का एक समग्र मीट्रिक है: प्रजनन स्वास्थ्य, सशक्तीकरण और श्रम बाज़ार।
- यह इन क्षेत्रों में महिला और पुरुष उपलब्धियों के बीच असमानता के कारण मानव विकास क्षमता में अंतर को दर्शाता है।
- GII मान 0 (समानता) से 1 (अत्यधिक असमानता) तक होता है।
- कम GII मान महिलाओं और पुरुषों के बीच कम असमानता तथा अधिक GII मान महिलाओं एवं पुरुषों के बीच अधिक असमानता को को इंगित करता है।
आयाम और संकेतक:
- भारत की प्रगति:
- लैंगिक असमानता सूचकांक- 2021 में भारत 0.490 स्कोर के साथ 191 देशों में से 122वें स्थान पर रहा।
- वर्तमान डेटा GII वर्ष 2021 की तुलना में GII वर्ष 2022 पर 14 रैंक का उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
- पिछले 10 वर्षों में, GII में भारत की रैंक लगातार बेहतर हुई है, जो देश में लैंगिक समानता हासिल करने में प्रगतिशील सुधार का संकेत देती है।
नोट:
- मातृ मृत्यु अनुपात: प्रति 100,000 जीवित शिशुओं के जन्म पर गर्भावस्था से संबंधित कारणों से होने वाली मृत्यु की संख्या।
- किशोर जन्म दर: संबंधित आयु वर्ग में प्रति 1,000 महिलाओं पर 10-14 अथवा 15-19 वर्ष की महिलाओं में जन्म की वार्षिक संख्या।
- श्रम बल भागीदारी दर: कामकाजी उम्र की आबादी (15 वर्ष और उससे अधिक उम्र) का अनुपात, जो या तो काम करके या सक्रिय रूप से काम की तलाश हेतु श्रम बाज़ार से जुड़े हुए है, कामकाजी उम्र की आबादी के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।
भारत में लैंगिक असमानता से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- लैंगिक हिंसा: भारत में महिलाओं और लड़कियों को अमूमन घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, बलात्कार, दहेज़ संबंधी हिंसा तथा ऑनर किलिंग सहित विभिन्न प्रकार की हिंसा का सामना करना पड़ता है।
- ये मुद्दे लैंगिक असमानता परिदृश्य में प्रमुख रूप से योगदान देते हैं।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग एक-तिहाई महिलाओं को शारीरिक अथवा यौन हिंसा का सामना करना पड़ा।
- शिक्षा तक असमान पहुँच: शिक्षा पहुँच में सुधार के प्रयासों के बावजूद, नामांकन, प्रतिधारण और शिक्षा पूर्णता दर के मामले में लड़कों तथा लड़कियों के बीच असमानताएँ अभी भी मौजूद हैं।
- सांस्कृतिक मानदंड, आर्थिक बाधाएँ और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ अमूमन लड़कियों की शिक्षा को बाधित करती हैं।
- अवैतनिक श्रम: भारत में महिलाएँ अमूमन घरेलु काम, बच्चों की देखभाल और बुजुर्गों की देखभाल करने जैसे कई अवैतनिक देखभाल कार्य करती हैं जिसे अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है तथा अन्य कार्यों की तुलना में कम महत्त्व दिया जाता है जो उनकी आर्थिक निर्भरता एवं समय की गरीबी (Time Poverty) में योगदान देता है।
- लैंगिक वेतन अंतराल: भारत में महिलाओं को सामान्यतः पुरुषों की भाँति समान कार्य के लिये पुरुषों की तुलना में कम वेतन दिया जाता है जो एक गंभीर लैंगिक वेतन अंतराल को दर्शाता है।
- यह वेतन अंतराल विभिन्न क्षेत्रों और रोज़गार के स्तरों पर प्रचलित है।
- विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुसार भारत में पुरुष श्रम आय का 82% अर्जित करते हैं जबकि महिलाओं को इसका मात्र 18% प्राप्त होता है।
- बाल विवाह: बाल विवाह लड़कियों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है, उन्हें शैक्षिक और आर्थिक अवसरों से वंचित करता है तथा उनके स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों के प्रति सुभेद्य बनाता है।
- UNESCO के अनुसार विश्व की तीन में से एक बालिका वधु का संबंध भारत से है।
- बाल वधुओं में 18 वर्ष से कम आयु की लड़कियाँ शामिल हैं जिनकी पहले से ही शादी हो चुकी है और साथ ही इसमें वे सभी उम्र की महिलाएँ भी शामिल हैं जिनका पहला विवाह बचपन में हुआ था।
- बाल विवाह का प्रचलन वर्ष 2006 में 47% था जो वर्ष 2019-21 (NFHS-5) के दौरान घटकर लगभग आधा, 23.3% हो गया।
- हालाँकि आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, झारखंड, राजस्थान, तेलंगाना, त्रिपुरा एवं पश्चिम बंगाल जैसे कुछ राज्यों में बाल विवाह का प्रचलन राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
- UNESCO के अनुसार विश्व की तीन में से एक बालिका वधु का संबंध भारत से है।
लैंगिक समानता को बढ़ावा देने हेतु भारत सरकार की पहल क्या हैं?
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ बालिकाओं की सुरक्षा, अस्तित्व एवं शिक्षा सुनिश्चित करता है।
- महिला शक्ति केंद्र का लक्ष्य ग्रामीण महिलाओं को कौशल विकास और रोज़गार के अवसरों के माध्यम से सशक्त बनाना है।
- राष्ट्रीय क्रेच (शिशुगृह) योजना बच्चों के लिये सुरक्षित वातावरण प्रदान करती है, जिससे महिलाओं को रोज़गार प्राप्त करने में सक्षम बनाया जाता है।
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को मातृत्व लाभ प्रदान करती है।
- प्रधानमंत्री आवास योजना महिलाओं के नाम के तहत आवास सुनिश्चित करती है।
- सुकन्या समृद्धि योजना बैंक खातों के माध्यम से लड़कियों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाती है।
- वर्ष 2005 से जेंडर बजट को भारत के केंद्रीय बजट का हिस्सा बना दिया गया है और साथ ही इसमें महिला समर्पित कार्यक्रमों एवं योजनाओं के लिये धन आवंटन भी शामिल है।
निर्भया फंड फ्रेमवर्क देश में महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से पहल के कार्यान्वयन के लिये एक गैर-व्यपगत कॉर्पस फंड प्रदान करता है।
वन स्टॉप सेंटर हिंसा की शिकार महिलाओं के लिये चिकित्सा एवं कानूनी सहायता तथा परामर्श सहित एकीकृत सेवाएँ प्रदान करते हैं।
संविधान (106वाँ संशोधन) अधिनियम, 2023 लोकसभा, राज्य विधानसभाओं तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में महिलाओं के लिये सभी सीटों में से एक तिहाई सीटें आरक्षित करता है, जिसमें SC और ST के लिये आरक्षित सीटें भी शामिल हैं।
महिलाओं के लिये पंचायती राज संस्थाओं में 33% सीटें पहले से ही आरक्षित हैं।
विज्ञान ज्योति कार्यक्रम का उद्देश्य लड़कियों को STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग एवं गणित) में उच्च शिक्षा के साथ-साथ करियर बनाने के लिये प्रोत्साहित करना है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ महिलाओं की भागीदारी कम है ताकि सभी क्षेत्रों में लिंग अनुपात को संतुलित किया जा सके।
स्टैंड-अप इंडिया, महिला ई-हाट, उद्यमिता एवं कौशल विकास कार्यक्रम (ESSDP) तथा प्रधानमंत्री मुद्रा योजना जैसी अन्य पहल महिला उद्यमियों को बढ़ावा देती हैं।
ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट (विश्व आर्थिक मंच):
- ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स सालाना चार प्रमुख आयामों (आर्थिक भागीदारी एवं अवसर, शैक्षिक प्राप्ति, स्वास्थ्य एवं अस्तित्व, तथा राजनीतिक सशक्तीकरण) में लैंगिक समानता की वर्तमान स्थिति और विकास को मापता है।
- यह सबसे लंबे समय तक चलने वाला सूचकांक है, जो वर्ष 2006 में अपनी स्थापना के बाद से समय के साथ इन अंतरालों को कम करने की दिशा में प्रगति की निगरानी करता है।
- जेंडर गैप रिपोर्ट, 2023 में भारत 146 देशों में से 127वें स्थान पर था।
आगे की राह
- व्यापक कानूनी सुधार: लिंग आधारित हिंसा, बाल विवाह और कार्यस्थल भेदभाव से संबंधित मौजूदा कानूनों को मज़बूत करना तथा लागू करना।
- न्यायमूर्ति वर्मा समिति (2013) की सिफारिशों के अनुसार भारतीय न्याय संहिता में वैवाहिक बलात्कार से संबंधित प्रावधानों का परिचय।
- लिंग-संवेदनशील शिक्षा: लैंगिक समानता को बढ़ावा देने, रूढ़िवादिता को चुनौती देने और लड़कियों के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुँच सुनिश्चित करने हेतु स्कूलों तथा कॉलेजों में लिंग-संवेदनशील पाठ्यक्रम एवं नीतियाँ लागू करना।
- फ्रीलांसिंग प्लेटफॉर्म: फ्रीलांसिंग प्लेटफॉर्म और ऑनलाइन मार्केटप्लेस तक पहुँच को बढ़ावा देना तथा सुविधा प्रदान करना जहाँ गृहिणियाँ सामग्री लेखन, ग्राफिक डिज़ाइन, वर्चुअल सहायता, सोशल मीडिया प्रबंधन एवं ऑनलाइन ट्यूशन जैसे क्षेत्रों में अपने कौशल व सेवाएँ प्रदान कर सकती हैं।
- अवैतनिक देखभाल कार्य के लिये सहायता: महिलाओं द्वारा किये जाने वाले अवैतनिक देखभाल कार्यों को पहचानने और महत्त्व देने तथा घरों के भीतर साझा ज़िम्मेदारियों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। देखभाल और घरेलू ज़िम्मेदारियों में पुरुषों की भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
- समान वेतन और कार्यस्थल नीतियाँ: समान कार्य नीतियों के लिये समान वेतन लागू करना, नेतृत्व पदों में लिंग विविधता को बढ़ावा देना और कार्यस्थल नीतियों को लागू करना जो कार्य-जीवन संतुलन तथा उत्पीड़न एवं भेदभाव से मुक्त सुरक्षित कार्य वातावरण का समर्थन करते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन विश्व के देशों को 'ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स' रैंकिंग देता है? (2017) (a) विश्व आर्थिक मंच उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न.1 "महिला सशक्तीकरण जनसंख्या संवृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है"। चर्चा कीजिये। (2019) प्रश्न.2 भारत में महिलाओं पर वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों पर चर्चा कीजिये? (2015) प्रश्न.3 महिला संगठनों को लिंग-भेद से मुक्त करने के लिये पुरुषों की सदस्यता को बढ़ावा मिलना चाहिये। टिप्पणी कीजिये। (2013) प्रश्न. 4 'देखभाल अर्थव्यवस्था' और 'मुद्रीकृत अर्थव्यवस्था' के बीच अंतर कीजिये। महिला सशक्तीकरण के द्वारा देखभाल अर्थव्यवस्था को मुद्रीकृत अर्थव्यवस्था में कैसे लाया जा सकता है? (2023) |
जैव विविधता और पर्यावरण
वनाग्नि
प्रिलिम्स के लिये:वनाग्नि, बांबी बकेट, भारत में वनों की स्थिति रिपोर्ट, भारतीय वन सर्वेक्षण, वनाग्नि रोकथाम और प्रबंधन योजना। मेन्स के लिये:वनाग्नि, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में तमिलनाडु के नीलगिरी में कुन्नूर वन क्षेत्र में वनाग्नि की घटनाएँ बढ़ रही हैं।
- राज्य वन विभाग के चल रहे अग्निशमन प्रयासों में भाग लेते हुए भारतीय वायु सेना ने "बांबी बकेट" ऑपरेशन करने के लिये कई Mi-17 V5 हेलीकॉप्टर तैनात किये।
नोट:
बांबी बकेट, जिसे हेलीकॉप्टर बकेट या हेलीबकेट भी कहा जाता है, एक विशेष कंटेनर है जिसे एक हेलिकॉप्टर के नीचे केबल द्वारा लटकाया जाता है और जिसे आग के ऊपर प्रवाहित करने से पहले नदी या तालाब में उतारा जा सकता है तथा बकेट के नीचे एक वाल्व खोलकर हवा में छोड़ा जा सकता है।
- बांबी बकेट विशेष रूप से वनाग्नि से बचने या उसका सामना करने में सहायक है, जहाँ ज़मीन से पहुँचना मुश्किल या असंभव है। विश्व भर में वनाग्नि का सामना करने के लिये अक्सर हेलीकॉप्टरों का प्रयोग किया जाता है।
वनाग्नि क्या है?
- परिचय:
- इसे बुश फायर/वेजिटेशन फायर या वनाग्नि भी कहा जाता है, इसे किसी भी अनियंत्रित और गैर-निर्धारित दहन या प्राकृतिक स्थिति जैसे कि जंगल, घास के मैदान, क्षुपभूमि (Shrubland) अथवा टुंड्रा में पौधों/वनस्पतियों के जलने के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जो प्राकृतिक ईंधन का उपयोग करती है तथा पर्यावरणीय स्थितियों (जैसे- हवा तथा स्थलाकृति आदि) के आधार पर इसका प्रसार होता है।
- वनाग्नि के लिये तीन कारकों की उपस्थिति आवश्यक है और वे हैं- ईंधन, ऑक्सीजन एवं गर्मी अथवा ताप का स्रोत।
- वर्गीकरण:
- सतही आग: वनाग्नि अथवा दावानल की शुरुआत सतही आग (Surface Fire) के रूप में होती है जिसमें वन भूमि पर पड़ी सूखी पत्तियाँ, छोटी-छोटी झाड़ियाँ और लकड़ियाँ जल जाती हैं तथा धीरे-धीरे इनकी लपटें फैलने लगती हैं।
- भूमिगत आग: कम तीव्रता की आग, जो भूमि की सतह के नीचे मौजूद कार्बनिक पदार्थों और वन भूमि की सतह पर मौजूद अपशिष्टों का उपयोग करती है, को भूमिगत आग के रूप में उप-वर्गीकृत किया जाता है। अधिकांश घने जंगलों में खनिज मृदा के ऊपर कार्बनिक पदार्थों का एक मोटा आवरण पाया जाता है।
- इस प्रकार की आग आमतौर पर पूरी तरह से भूमिगत रूप में फैलती है और यह सतह से कुछ मीटर नीचे तक जलती है।
- यह आग बहुत धीमी गति से फैलती है और अधिकांश मामलों में इस तरह की आग का पता लगाना तथा उस पर काबू पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।
- ये कई महीनों तक जलते रह सकते हैं और मृदा से वनस्पति तक के आवरण को नष्ट कर सकते हैं।
- कैनोपी या क्राउन फायर: ये तब होता है जब वनाग्नि पेड़ों की ऊपरी आवरण/वितान के माध्यम से फैलती है, जो प्रायः तेज़ हवाओं और शुष्क परिस्थितियों के कारण भड़कती है। ये विशेष रूप से तीव्र और नियंत्रित करने में कठिन हो सकती हैं।
- कंट्रोल्ड डेलीबरेट फायर: कुछ मामलों में, कंट्रोल्ड डेलीबरेट फायर, जिसे निर्धारित वनाग्नि या झाड़ियों की आगजनी के रूप में भी जाना जाता है, इच्छित तौर पर या जानबूझकर वन प्रबंधन एजेंसियों द्वारा ईंधन भार को कम करने, अनियंत्रित वनाग्नि के जोखिम को कम करने और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिये लगाई जाती है।
- जोखिमों को कम करने और वन पारिस्थितिकी तंत्र को अधिकतम लाभ पहुँचाने के लिये इन नियंत्रित अग्नि की सावधानीपूर्वक योजना बनाई जाती है तथा विशिष्ट परिस्थितियों में निष्पादित किया जाता है।
- सरकारी पहल:
- वनाग्नि हेतु राष्ट्रीय कार्य योजना, 2018 में वन सीमांत समुदायों को सूचित करने, उन्हें सक्षम करने और सशक्त बनाने व राज्य वन विभागों के साथ सहयोग करने के लिये प्रोत्साहित कर वनाग्नि को कम करने के लक्ष्य के साथ शुरू की गई थी।
- वनाग्नि रोकथाम और प्रबंधन योजना एकमात्र सरकार प्रायोजित कार्यक्रम है जो वनाग्नि से निपटने में राज्यों की सहायता के लिये समर्पित है।
भारत में वनाग्नि कितनी आम है?
- वनाग्नि का मौसम:
- नवंबर से जून को भारत में वनाग्नि का मौसम माना जाता है, जिसमें प्रत्येक वर्ष विशेषकर फरवरी से गर्मी के आते ही सैकड़ों-हज़ारों छोटी और बड़ी वनाग्नि की घटना होती है।
- देश भर में आमतौर पर अप्रैल-मई आगजनी के सबसे भीषण महीने होते हैं।
- भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा अपनी वर्ष 2021 की रिपोर्ट में प्रकाशित द्वि-वार्षिक भारत में वनों की स्थिति रिपोर्ट (ISFR) से पता चलता है कि कुल अग्नि-प्रवण वन क्षेत्र वन आवरण का 35.47% है।
- नवंबर से जून को भारत में वनाग्नि का मौसम माना जाता है, जिसमें प्रत्येक वर्ष विशेषकर फरवरी से गर्मी के आते ही सैकड़ों-हज़ारों छोटी और बड़ी वनाग्नि की घटना होती है।
- क्षेत्र:
- शुष्क पर्णपाती वनों में भीषण आग लगती है, जबकि सदाबहार, अर्द्ध-सदाबहार और पर्वतीय समशीतोष्ण वनों में आग लगने का खतरा अपेक्षाकृत कम होता है।
- नवंबर से जून की अवधि के दौरान पूर्वोत्तर भारत, ओडिशा, महाराष्ट्र, झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड के वन आग के प्रति सबसे अधिक सुभेद्य होते हैं।
- वर्ष 2021 में, वन्यजीव अभयारण्यों सहित उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, नगालैंड- मणिपुर सीमा, ओडिशा, मध्य प्रदेश और गुजरात में वनाग्नि की कई घटनाएँ दर्ज की गई।
- वर्तमान परिदृश्य (2024):
- FSI आँकड़ों के अनुसार, वनाग्नि की सबसे अधिक घटनाएँ मिज़ोरम (3,738), मणिपुर (1,702), असम (1,652), मेघालय (1,252) और महाराष्ट्र (1,215) में हुई हैं।
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के उपग्रह डेटा से जानकारी प्राप्त हुई है कि मार्च 2024 की शुरुआत से महाराष्ट्र में कोंकण बेल्ट, गिर सोमनाथ एवं पोरबंदर के साथ दक्षिण-तटीय गुजरात, दक्षिणी राजस्थान एवं मध्य प्रदेश, तटीय और आंतरिक ओडिशा एवं निकटवर्ती झारखंड आसपास के दक्षिण-पश्चिमी ज़िलों में वनाग्नि बढ़ रही है।
- दक्षिण भारत में, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक एवं तमिलनाडु के अधिकांश वन-आच्छादित क्षेत्रों में पिछले सप्ताह आग लगने की घटनाएँ देखी गई हैं।
वनाग्नि के कारण क्या हैं?
- मानवीय लापरवाही:
- वनाग्नि की अधिकांश घटनाएँ मानवीय गतिविधियों; जैसे- फेंकी गई सिगरेट, कैम्पफायर, मलबा जलाने एवं इसी तरह की अन्य प्रक्रियाओं के कारण होती है।
- बढ़ते शहरीकरण एवं वन क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियों के कारण आकस्मिक वनाग्नि का खतरा भी बढ़ गया है।
- आमतौर पर, शिकारी तथा अवैध तस्कर या तो वन अधिकारियों का ध्यान भटकाने के लिये अथवा अपने अपराधों के सबूत मिटाने के लिये भी आग लगाते हैं।
- मौसम की स्थितियाँ:
- दक्षिणी भारत में विशेष रूप से गर्मी के मौसम के शुरुआती चरण के दौरान अनुभव की जाने वाली असाधारण गर्म तथा शुष्क मौसम स्थितियाँ वनाग्नि के लिये अनुकूल वातावरण तैयार करती हैं।
- उच्च तापमान, कम आर्द्रता एवं शांत हवाओं से आग लगने के साथ इसके तेज़ी से फैलने की संभावना बढ़ जाती है।
- शुष्कता:
- दक्षिणी भारत में सामान्य से अधिक तापमान, स्वच्छ आसमान एवं वर्षा की कमी के कारण शुष्कता में वृद्धि हुई है।
- सूखी वनस्पतियाँ दहन के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं और जिससे आग के तेज़ी से फैलने की संभावना बढ़ जाती है।
- शुष्क बायोमास की प्रारंभिक उपलब्धता:
- गर्मी के मौसम से पहले के महीनों में अनुभव किये गए सामान्य से अधिक तापमान के परिणामस्वरूप जंगलों में शुष्क बायोमास की शीघ्र उपलब्धता हुई है।
- इन सूखी वनस्पतियों में, जिसमें चीड़ की पत्तियाँ भी शामिल हैं, विशेष रूप से आग लगने और फैलने का खतरा होता है।
- चीड़ की पत्तियों की उच्च ज्वलनशीलता वनाग्नि की संभावना को बढ़ाती है और उनकी तीव्रता को भी अधिक बढ़ाती है।
वनाग्नि को कम करने के लिये क्या किया जा सकता है?
- जन जागरूकता एवं शिक्षा:
- वनाग्नि के कारणों एवं परिणामों के बारे में जनता को शिक्षित करने के साथ-साथ जंगलों में ज़िम्मेदारीपूर्ण व्यवहार को बढ़ावा देने से मानव-जनित आग की घटनाओं को कम करने में मदद मिल सकती है।
- अग्नि सुरक्षा, सिगरेट के उचित निपटान और कैम्पफायर को बिना निगरानी के छोड़ने के खतरों पर अभियान जागरूकता बढ़ा सकते हैं और साथ ही ज़िम्मेदारीपूर्ण व्यवहार को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
- विनियमों का कड़ाई से प्रवर्तन:
- वनाग्नि की रोकथाम से संबंधित कानूनों एवं विनियमों को लागू करने से, जैसे कि मलबे को जलाने पर प्रतिबंध तथा शुष्क अवधि के दौरान कैम्प फायर पर प्रतिबंध, आकस्मिक आग के जोखिम को कम करने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
- गैर-उत्तरदायीपूर्ण व्यवहार की रोकथाम करने हेतु अग्नि सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करने की दशा में दंड के प्रावधान का सख्ती से कार्यान्वन किया जाना चाहिये।
- वनाग्नि की रोकथाम से संबंधित कानूनों एवं विनियमों को लागू करने से, जैसे कि मलबे को जलाने पर प्रतिबंध तथा शुष्क अवधि के दौरान कैम्प फायर पर प्रतिबंध, आकस्मिक आग के जोखिम को कम करने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
- अग्निरोधक एवं ईंधन प्रबंधन:
- अतिरिक्त वनस्पति का नाश करने के लिये नियंत्रित तरीके से दहन करने और अग्निरोधक/फायरब्रेक बनाने से अन्य उपयोगी वनस्पति के दहन की रोकथाम हेतु अवरोध उत्पन्न होता है और ईंधन भार कम होता है जिससे अग्नि के संचरण को कम करने में मदद मिल सकती है।
- उचित ईंधन प्रबंधन प्रथाएँ, जैसे घनी वनस्पतियों का विरलन करना और निर्जीव काष्ठ को साफ करना, वनों की अग्नि के प्रति संवेदनशीलता को कम सकता है।
- अतिरिक्त वनस्पति का नाश करने के लिये नियंत्रित तरीके से दहन करने और अग्निरोधक/फायरब्रेक बनाने से अन्य उपयोगी वनस्पति के दहन की रोकथाम हेतु अवरोध उत्पन्न होता है और ईंधन भार कम होता है जिससे अग्नि के संचरण को कम करने में मदद मिल सकती है।
- त्वरित जाँच प्रणाली:
- अनुवीक्षण कैमरे, उपग्रह निगरानी और लुकआउट टावरों जैसे त्वरित जाँच प्रणालियों के कार्यान्वन से अग्नि का शुरुआती चरण में ही पता लगाने में मदद मिल सकती है जिससे उसका शमन करना आसान हो जाता है।
- अग्नि का त्वरित रूप से पता लगाने से इसकी व्यापकता और प्रभाव को कम करते हुए त्वरित कार्रवाई करने में सहायता मिलती है।
- अनुवीक्षण कैमरे, उपग्रह निगरानी और लुकआउट टावरों जैसे त्वरित जाँच प्रणालियों के कार्यान्वन से अग्नि का शुरुआती चरण में ही पता लगाने में मदद मिल सकती है जिससे उसका शमन करना आसान हो जाता है।
निष्कर्ष
- मानवीय गतिविधियों, मौसम की स्थिति और शुष्कता जैसे प्राकृतिक कारकों तथा ड्राय बायोमास की प्रारंभिक उपलब्धता के संयोजन ने इस वर्ष 2024 में दक्षिणी भारत में वनाग्नि के जोखिम एवं घटनाओं को बढ़ाने में योगदान दिया है।
- शमन रणनीतियों को कार्यान्वित करने और अग्नि सुरक्षा तथा अनुकूलन की संस्कृति को बढ़ावा देकर संबद्ध समुदाय वनाग्नि के जोखिम एवं प्रभाव को कम करने के लिये मिलकर कार्य कर सकते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2019)
फसल/जैव मात्रा के अवशेषों के दहन के कारण वायुमंडल में उपर्युक्त में से कौन-से निर्मुक्त होते हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d)
मेन्स:प्रश्न. असामान्य जलवायवी घटनाओं में से अधिकांश अल-नीनो प्रभाव के परिणाम के तौर पर स्पष्ट की जाती है। क्या आप सहमत हैं? (2014) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
MSME के माध्यम से निर्यात को बढ़ाना: नीति आयोग
प्रिलिम्स के लिये:MSME से निर्यात को बढ़ावा देना: नीति आयोग, रिकॉर्ड पर निर्यातक (EOR) और रिकॉर्ड पर विक्रेता (SOR), MSME प्रदर्शन को बेहतर और तेज़ करने की योजना। मेन्स के लिये:MSME से निर्यात को बढ़ावा देना: नीति आयोग, भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना, संसाधन जुटाने, वृद्धि, विकास और रोज़गार से संबंधित मुद्दे। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नीति आयोग ने MSME से निर्यात को बढ़ावा देने शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें सिफारिश की गई है कि सरकार को छोटी कंपनियों के लिये ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों के माध्यम से अपने माल का निर्यात करना आसान बनाना चाहिये।
रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें क्या हैं?
- निर्यातकों के लिये एकल सूचना पोर्टल:
- नीति आयोग निर्यातकों के लिये एक एकल सूचना पोर्टल के निर्माण की सिफारिश करता है, जो बाज़ार शुल्क, कागज़ी कार्रवाई आवश्यकताओं, वित्त स्रोतों, सेवा प्रदाताओं, प्रोत्साहनों और संभावित ग्राहकों पर व्यापक तथा अद्यतन जानकारी प्रदान करने के लिये AI-आधारित इंटरफेस का लाभ उठाता है।
- इसने MSME के लिये निर्यात प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने, निर्बाध संचालन और प्रतिस्पर्द्धी लाभ की सुविधा हेतु एक व्यापक राष्ट्रीय व्यापार पोर्टल (NTN) स्थापित करने की सिफारिश की।
- नीति आयोग निर्यातकों के लिये एक एकल सूचना पोर्टल के निर्माण की सिफारिश करता है, जो बाज़ार शुल्क, कागज़ी कार्रवाई आवश्यकताओं, वित्त स्रोतों, सेवा प्रदाताओं, प्रोत्साहनों और संभावित ग्राहकों पर व्यापक तथा अद्यतन जानकारी प्रदान करने के लिये AI-आधारित इंटरफेस का लाभ उठाता है।
- वार्षिक वित्तीय समाधान प्रक्रिया:
- रिपोर्ट में ई-कॉमर्स निर्यातकों हेतु वार्षिक वित्तीय समाधान प्रक्रिया शुरू करने और अस्वीकार या रिटर्न के लिये आयात शुल्क पर छूट देने का सुझाव दिया गया है। इसमें ई-कॉमर्स निर्यात के लिये ग्रीन चैनल क्लीयरेंस बनाने का भी प्रस्ताव है।
- रिकॉर्ड पर निर्यातक (EOR) और रिकॉर्ड पर विक्रेता (SOR) के बीच अंतर:
- ई-कॉमर्स निर्यात को बढ़ावा देने के लिये रिपोर्ट EOR और SOR के बीच अंतर करने तथा सभी ई-कॉमर्स निर्यातों हेतु प्रतिशत सीमा के बिना चालान मूल्य में कमी की अनुमति देने का सुझाव देती है।
- EOR उस पार्टी या इकाई को संदर्भित करता है जिसे आधिकारिक तौर पर अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन में वस्तु के निर्यातक के रूप में मान्यता प्राप्त है। EOR निर्यातक देश के सभी निर्यात नियमों, दस्तावेज़ीकरण और सीमा शुल्क आवश्यकताओं के अनुपालन के लिये ज़िम्मेदार है।
- SOR उस पार्टी या इकाई को संदर्भित करता है जिसे कानूनी तौर पर वाणिज्यिक लेन-देन में विक्रेता के रूप में मान्यता प्राप्त है। SOR खरीदार को सामान बेचने के लिये ज़िम्मेदार है और बिक्री की शर्तों पर बातचीत करने, चालान तैयार करने, शिपिंग तथा डिलीवरी की व्यवस्था करने एवं यह सुनिश्चित करने जैसे कार्यों को संभाल सकता है कि सामान सहमत विनिर्देशों को पूरा करता है।
- ई-कॉमर्स निर्यात को बढ़ावा देने के लिये रिपोर्ट EOR और SOR के बीच अंतर करने तथा सभी ई-कॉमर्स निर्यातों हेतु प्रतिशत सीमा के बिना चालान मूल्य में कमी की अनुमति देने का सुझाव देती है।
- निर्यात ऋण गारंटी को बढ़ावा देना:
- वित्त तक पहुँच को MSME के लिये एक महत्त्वपूर्ण बाधा के रूप में उजागर किया गया है। रिपोर्ट में कार्यशील पूंजी की उपलब्धता में सुधार हेतु निर्यात ऋण गारंटी को बढ़ावा देने की सिफारिश की गई है, जिसमें सुझाव दिया गया है कि सरकार मौजूदा 10% से 50% या अधिक तक बढ़ाने के लिये एक प्रोत्साहन पैकेज बनाए।
- MSME के लिये व्यापारिक वस्तुओं के निर्यात को आसान बनाना:
- सुझावों में सीमित अवधि के लिये MSME हेतु अनुपालन आवश्यकताओं में छूट और कार्यशील पूंजी के अवरोध को रोकने के लिये प्रोत्साहन हेतु समयबद्ध संवितरण प्रक्रिया लागू करना शामिल है।
- विशिष्ट क्षेत्रों में निर्यात अवसरों की पहचान:
- रिपोर्ट विभिन्न क्षेत्रों का अभिनिर्धारण करती है जहाँ भारतीय MSME निर्यात बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा कर सकते हैं, जैसे– हस्तशिल्प, हैंडलूम वस्त्र, आयुर्वेद, हर्बल सप्लीमेंट, चमड़े के सामान, नकली आभूषण और लकड़ी के उत्पाद। यह इन क्षेत्रों के लिये 340 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की पर्याप्त वैश्विक बाज़ार क्षमता पर ज़ोर देता है।
भारत में MSME क्षेत्र का वर्तमान परिदृश्य क्या है?
- अर्थव्यवस्था में MSME का योगदान:
- रिपोर्ट भारत की अर्थव्यवस्था में MSME के महत्त्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डालती है, जो 11 करोड़ से अधिक नौकरियों और सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 27% है।
- MSME स्थापना में तेज़ी से विकास:
- वित्तीय वर्ष (FY) 2019 और FY 2021 के बीच, भारत में नई MSME इकाइयों की स्थापना में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, लगभग 40 लाख नए MSME स्थापित किये गए। यह वृद्धि सूक्ष्म उद्यमों में विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
- वर्तमान में, कुल 54 लाख MSME इकाइयों में से लगभग 38% विनिर्माण क्षेत्र में लगी हुई हैं, जिनमें छोटे और मध्यम उद्यम बड़े पैमाने पर निर्यात के लिये उपयुक्त विनिर्माण गतिविधि में योगदान दे रहे हैं।
- विनिर्माण MSME की उच्चतम सांद्रता वाले शीर्ष 5 राज्य उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और गुजरात हैं।
- निर्यात क्षमता:
- भारतीय MSME के विकास क्षमता को अनलॉक करने के लिये निर्यात महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि बड़ी कामकाजी उम्र की आबादी और विनिर्माण MSME में अधिक रोज़गार होने के बावजूद, कम-कुशल विनिर्माण उत्पादों के वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी केवल 5% है।
- निर्यात की संभावना के बावजूद, MSME का केवल एक छोटा प्रतिशत ही इसमें संलग्न है, जिनमें से कई का निर्यात से वार्षिक कारोबार 1 करोड़ रुपए से कम है।
- भारतीय MSME के विकास क्षमता को अनलॉक करने के लिये निर्यात महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि बड़ी कामकाजी उम्र की आबादी और विनिर्माण MSME में अधिक रोज़गार होने के बावजूद, कम-कुशल विनिर्माण उत्पादों के वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी केवल 5% है।
MSME क्या है?
- MSME भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, जो रोज़गार सृजन, औद्योगिक उत्पादन और समग्र आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
- ये उद्यम वस्तुओं और मदों के उत्पादन, विनिर्माण, प्रसंस्करण या संरक्षण में लगे हुए हैं।
- इनका देश के कुल विनिर्माण उत्पादन में हिस्सा 38.4% और देश के कुल निर्यात में 45.03% का योगदान है।
भारत में MSME क्षेत्र से संबंधित वर्तमान चुनौतियाँ क्या हैं?
- वित्तीय बाधा:
- भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु फर्मों और व्यवसायों के लिये वित्तपोषण हमेशा एक मुद्दा रहा है। यह व्यवसायों के साथ-साथ MSME क्षेत्र के लिये एक बड़ी बाधा है।
- हालाँकि इसके संबंध में सबसे चिंतनीय तथ्य यह है कि केवल 16% SME को ही समय पर वित्तीय सहायता प्राप्त होती है जिसके परिणामस्वरूप लघु और मध्यम कंपनियों को अपने स्वयं के संसाधनों पर निर्भर रहने के लिये विवश होना पड़ता है।
- नवाचार का अभाव:
- भारतीय MSME में नवाचार की कमी है और उनके द्वारा उत्पादित अधिकांश उत्पाद पूर्व की प्रौद्योगिकियों पर आधारित हैं। इस क्षेत्र में उद्यमियों की भारी कमी है जिससे इसमें नई तकनीकों और उपकरणों को अपनाने में बाधा उत्पन्न होती है।
- अतः MSME को पुरातन प्रौद्योगिकी और कम उत्पादकता स्तर, विशेषकर बड़ी कंपनियों की तुलना में, से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
- अधिकांश लघु कंपनियाँ:
- MSME में सूक्ष्म और लघु व्यवसायों की हिस्सेदारी 80% से अधिक है। इसलिये संचार अंतराल और जागरूकता की कमी के कारण वे सरकार की आपातकालीन ऋण व्यवस्था, दबावग्रस्त परिसंपत्ति राहत, इक्विटी सहभागिता तथा फंड ऑपरेशन की निधि का लाभ अर्जित करने में असफल रहते हैं।
- MSME के बीच औपचारिकता का अभाव:
- MSME में औपचारिकता का अभाव है और यह ऋण अंतराल में योगदान देता है।
- देश में लगभग 86% विनिर्माण MSME अपंजीकृत हैं। वर्तमान में लगभग 1.1 करोड़ MSME ने ही वस्तु एवं सेवा कर हेतु पंजीकरण कराया है।
MSME से संबंधित सरकारी पहल क्या हैं?
निष्कर्ष:
भारत में MSME क्षेत्र रोज़गार सृजन और आर्थिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है किंतु सीमित निर्यात भागीदारी तथा नियामक बाधाओं जैसी चुनौतियाँ भी हैं जिन्हें इसकी क्षमता का पूरा उपयोग करने के लिये संबोधित करने की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. विनिर्माण क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार की हाल की नीतिगत पहल क्या है/हैं? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन समावेशी विकास के सरकार के उद्देश्य को आगे बढ़ाने में सहायता कर सकता है? (2011)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न."सुधारोत्तर अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (जी.डी.पी.) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है।" कारण बताइए। औद्योगिक-नीति में हाल में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017) प्रश्न.सामान्तय: देश कृषि से उद्योग और बाद में सेवाओं की ओर आंतरिक होते हैं, पर भारत सीधे कृषि से सेवाओं की ओर आंतरिक हो गया। देश में उद्योग की तुलना में सेवाओं की भारी वृद्धि के क्या कारण हैं? क्या सशक्त औद्योगिक आधार के बिना भारत एक विकसित देश बन सकता है? (2014) |