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Sambhav-2023

  • 11 Nov 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस-3 भारत के संविधान की मूलभूत संरचना के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण

    • मूलभूत संरचना के सिद्धांत के बारे में एक संक्षिप्त जानकारी देकर उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • संविधानवाद को मज़बूत करने में बुनियादी ढाँचे के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
    • उपयुक निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय

    'मूलभूत संरचना का सिद्धांत': यह सिद्धांत केशवानंद भारती मामले में 24 अप्रैल 1973 को भारतीय न्यायपालिका द्वारा संसद की संशोधन शक्तियों पर अंकुश लगाने के लिये प्रतिपादित किया गया था ताकि अनुच्छेद 368 के अंतर्गत निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए 'देश के मूल कानून की ‘मूलभूत संरचना' में संशोधन न किया जा सके।

    • हालांकि मूलभूत संरचना को परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन न्यायपालिका द्वारा प्रदान किये इससे सम्बन्धित आयामों के माध्यम से संविधान की मूलभूत संरचना स्पष्ट होती है।
    • इसके कुछ घटक कानून का शासन, संप्रभुता, स्वतंत्रता और भारतीय राजनीति की गणतंत्र प्रकृति, न्यायिक समीक्षा, शक्ति का पृथक्करण, धर्मनिरपेक्षता आदि हैं।

    मुख्य बिंदु

    संविधानवाद को मज़बूत करने में भूमिका :

    • सत्तावादी शासन से संरक्षण: मूलभूत ढाँचे ने निश्चित रूप से भारतीय लोकतंत्र को एक अधिनायकवादी शासन (देश के मौलिक कानूनों को फलने-फूलने में मदद) में बदलने से बचाया।
    • स्वतंत्र न्यायपालिका : यह शक्ति के सच्चे पृथक्करण को परिभाषित करके हमारे लोकतंत्र को मज़बूत करता है जहाँ न्यायपालिका अन्य दो अंगों से स्वतंत्र है। इसने उच्चतम न्यायालय को अपार शक्तियाँ दी हैं और न्यायपालिका को दुनिया की सबसे शक्तिशाली अदालत बना दिया है।
    • नागरिकों के अधिकार: यह, राज्य के विधायी अंग की संशोधन शक्तियों पर अंकुश लगाकर , नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान करता है जिसे राज्य का कोई भी अंग खारिज नहीं कर सकता है। इन अधिकारों को ही मौलिक अधिकार कहा जाता है।
    • प्रकृति में गतिशील होने के नाते, यह कठोर प्रकृति वाले प्रावधानों के विपरीत अधिक प्रगतिशील और समय के साथ परिवर्तन के लिये खुला है|
    • यह कार्यपालिका को कानून की सीमाओं के भीतर बांधकर संविधान की सर्वोच्चता बनाए रखने में मदद करता है।

    निष्कर्ष

    भले ही न्यायपालिका ने कभी मूलभूत ढाँचे को परिभाषित न किया हो , लेकिन इसने संसद की विधायी शक्तियों निरकुंश प्रयोग के रास्ते में बाधा के रूप में काम किया है, जिससे संविधान निर्माताओं द्वारा परिकल्पित मूल आदर्शों का संरक्षण हुआ है और लोकतंत्र मज़बूत हुआ है।

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