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शासन व्यवस्था

भारत में श्रम सुधार

  • 26 Jul 2019
  • 13 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण शामिल है। इस आलेख में भारत में श्रम सुधारों के विभिन्न आयामों की चर्चा की गई है, साथ ही इसकी उपयोगिता एवं चिंताओं को भी रेखांकित किया गया है तथा आवश्यकतानुसार यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

भारत में कई वर्षों से श्रम क्षेत्र में सुधारों की मांग की जाती रही है, ये मांग न सिर्फ उद्योगों की ओर से बल्कि समय-समय पर श्रमिक संगठनों की ओर से भी की जाती रही है। किंतु विभिन्न हित समूहों के हितों को एक साथ स्थापित करना संभव नहीं हो पाने के कारण श्रम सुधार उपेक्षित ही रहे हैं। भारत में व्यवसाय को सुगम बनाने तथा विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिये भी श्रम सुधारों को ज़रुरी माना जाता है। भारत में श्रमिकों से संबंधित कई कानून मौजूद हैं। कानूनों की अधिक संख्या न सिर्फ श्रमिकों के लिये वरन् उद्योगों के लिये भी समस्या उत्पन्न करती है। उपर्युक्त संदर्भ में सरकार ने मौजूदा सत्र में श्रम सुधारों से जुड़े कुछ विधेयकों को प्रस्तुत किया है। सरकार की योजना 44 श्रम कानूनों को चार संहिताओं (अधिनियमों)- मज़दूरी, सामाजिक सुरक्षा, औद्योगिक संबंध तथा व्यावसायिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा में परिवर्तित करने की है।

व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता विधेयक, 2019

Code on Occupational Safety, Health and Working Conditions (OSH) Bill 2019

  • फैक्ट्री, खानों, बंदरगाह पर कार्य करने वाले मज़दूरों, संविदा मज़दूरों, घरेलू प्रवासी मज़दूरों आदि पर पहले से मौजूद 13 कानूनों को इस विधेयक में शामिल किया गया है। OSH संहिता के लागू होने के पश्चात् यह विधेयक सभी 13 कानूनों की जगह ले लेगा।
  • यह विधेयक सिनेमा, रंगमंच तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में भी विस्तारित होता है।
  • इसके अंतर्गत परिवार की परिभाषा में भी विस्तार किया गया है जिससे आश्रित दादा-दादी भी इसमें शामिल होते हैं।
  • यह विधेयक महिलाओं को रात्रि के समय में भी कार्य करने की छूट प्रदान करता है।

वेतन संहिता विधेयक, 2019

(Code on Wages Bill 2019)

  • यह विधेयक वेतन की परिभाषा को सरल बनाता है।
  • यह सभी कार्य क्षेत्रों में न्यूनतम मज़दूरी एवं समय पर वेतन भुगतान का प्रावधान करता है।
  • यह कार्यबल के 100 प्रतिशत हिस्से तक न्यूनतम वेतन के लिये वैधानिक संरक्षण प्रदान करता है।
  • विधेयक में निहित प्रावधानों के अनुसार भौगोलिक स्थान एवं कौशल के अनुसार न्यूनतम वेतन का निर्धारण किया जाएगा।

संहिताओं की उपयोगिता एवं लाभ

किसी भी देश की आर्थिक प्रगति के लिये उद्योगों का विकास होना आवश्यक है विशेषकर विनिर्माण क्षेत्र में, जो अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक श्रमिक गहन होता है। यदि श्रम कानूनों में बाज़ार और श्रमिकों के ज़रुरी हितों का ध्यान नहीं रखा जाता है तो ऐसे उद्योगों का सीमित विकास ही हो पाता है। यदि कानून अधिक श्रमिकोन्मुख होते हैं तो जहाँ एक ओर उद्योगों के कार्यकरण एवं उत्पादन के प्रभावित होने की संभावना बढ़ जाती है वहीं दूसरी ओर यदि श्रम कानूनों को निजी क्षेत्र को ध्यान में रखकर बनाया जाता है तो श्रमिकों का शोषण होने की संभावना बनी रहती है। इसी विचार को आधार बनाकर प्रायः श्रम कानूनों का निर्माण किया जाता है।

उपर्युक्त विधेयकों के निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं:

  • ऐसे कानूनों के अनुपालन से न केवल विश्व बैंक के कारोबारी सुगमता सूचकांक में भारत की रैंकिंग सुधरेगी बल्कि नए कारोबार को शुरू करना भी आसान हो जाएगा।
  • इस विधेयक में ऐसे 9 मुख्य क्षेत्रों में 10 या 10 से अधिक कर्मचारियों वाले संस्थानों में कामगारों की सुरक्षा, स्वास्थ्य, कल्याण एवं कार्यस्थल की दशाओं को उचित स्तर पर स्थापित करने का प्रावधान किया गया है। इससे अतिरिक्त शिशु गृह (Creche), कैंटीन, कल्याण अधिकारी जैसे कर्मचारी के कल्याण से संबंधित प्रावधानों के लिये अलग-अलग सीमा का प्रावधान है।
  • OSH संहिता में महिलाओं के लिये रात्रि में कार्य करने का भी प्रावधान किया गया है। साथ ही इसके लिये महिला कर्मचारी की सहमति आवश्यक होगी। यह प्रावधान कार्यस्थल को अधिक समावेशी बनाने में सहायक होगा।
  • इस संहिता में सभी क्षेत्रों के लिये न्यूनतम मज़दूरी का प्रावधान किया गया है। इससे पहले यह 40 प्रतिशत क्षेत्र को ही आच्छादित करता था। न्यूनतम मज़दूरी तथा वेतन को समय पर दिये जाने का प्रावधान लोगों के जीविका के अधिकार की पूर्ति में सहायक साबित होगा। साथ ही इसके अनुपालन से उद्योगों द्वारा कर्मचारियों पर बनाए जाने वाले अनावश्यक दबाव से भी मुक्ति मिलेगी।
  • यह कानून दुर्घटना की स्थिति में पीड़ित कर्मचारी अथवा उनके परिजनों को मुआवज़ा देने के लिये न्यायालयों को शक्ति प्रदान करता है।
  • इन विधेयकों के पारित होने के पश्चात् लगभग 50 करोड़ कामगारों के लाभान्वित होने का अनुमान है।

श्रम सुधारों को लेकर आशंकाएँ

  • इस विधेयक में कर्मचारी एवं मज़दूर की परिभाषा को स्पष्ट नहीं किया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे कंपनियों को लाभ होगा तथा वेतनभोगी श्रमिकों के अधिकारों का हनन भी हो सकता है।
  • इसमें इंस्पेक्टर के स्थान पर फैसिलिटेटर की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है। इंस्पेक्टर की भूमिका मुख्यतः कंपनियों द्वारा कानून का पालन कराने तथा नियोक्ताओं से कर्मचारियों एवं श्रमिकों के हितों की रक्षा सुनिश्चित करने में निहित होती थी। किंतु इसमें व्याप्त कुछ खामियों को ध्यान में रखते हुए इसके स्थान पर फैसिलिटेटर के पद का सृजन किया गया है। इसी के संदर्भ में श्रमिक संगठनों का मानना है कि इस प्रावधान में किया गया परिवर्तन वस्तुतः कंपनियों के हितों को ध्यान में रखकर किया गया है।
  • श्रमिक संगठन एवं सामाजिक कार्यकर्त्ता हमेशा से श्रमिकों के लिये मुआवज़े की मांग करते रहे हैं। संसद की प्रवर समिति ने भी दुर्घटना से पीड़ित श्रमिकों के लिये 10 लाख रुपए तक के मुआवज़े की सिफारिश की थी, फिर भी इस विधेयक में इस राशि को पचास हज़ार रुपए का प्रावधान किया गया है।
  • सभी क्षेत्रों के लिये न्यूनतम वेतन के प्रावधान को एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा जा रहा है। हालाँकि इसको लेकर भी कुछ आशंकाएँ व्यक्त की गई हैं। एक ओर जहाँ कैलोरी मान के सिद्धांत की उपेक्षा की गई है वहीं दूसरी ओर न्यूनतम वेतन के लिये भौगोलिक स्थिति तथा कौशल को आधार बनाया गया है, जिसको केरल जैसे राज्यों में क्रियान्वित करना एक कठिन कार्य होगा जहाँ एक भौगोलिक इकाई में 10 से ज़्यादा वेतन स्तर है।
  • न्यूनतम वेतन निर्धारण को लेकर भी कुछ लोगों का मानना है कि सरकार स्वयं ही कई क्षेत्रों में बाज़ार मूल्य से कम वेतन का निर्धारण करती है। साथ ही सरकार के वेतन गणना के मानदंड अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन (ILO) के अनुरूप न होने पर भी चिंता व्यक्त की जा रही है।
  • श्रमिक संगठन का निर्माण करना तथा हड़ताल बुलाना औद्योगिक संबंध विधेयक (Industrial Relation Bill) के कारण अत्यधिक कठिन हो गया है। अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से श्रमिक अधिकारों में वृद्धि उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। लेकिन आर्थिक विश्लेषक यह भी मानते हैं कि यदि श्रमिक अधिकार एवं उनकी समस्याओं को एक उचित मंच प्रदान नहीं किया जाएगा तो धीरे-धीरे यह नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करेगा। इसके अतिरिक्त किसी भी लोकतांत्रिक देश में प्रत्येक व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होता है, कुछ विशेष मामलों को छोड़कर औद्योगिक संस्थान भी इसके दायरे में आते हैं। इसी विचार के आधार पर श्रमिक संगठनों एवं हड़ताल को वैधानिक मान्यता दी जाती रही है। हालाँकि विधेयक के मौजूदा प्रावधान उपर्युक्त दर्शन के विपरीत हैं।

निष्कर्ष

हाल ही में प्रकाशित आर्थिक सर्वेक्षण में इंगित किया गया है कि यदि न्यूनतम वेतन में 10 प्रतिशत की वृद्धि की जाती है तो यह ग्रामीण क्षेत्रों में 6.34 प्रतिशत रोज़गार में वृद्धि होती है, किंतु शहरी क्षेत्र की स्थिति ऐसी नहीं है। हालाँकि न्यूनतम वेतन के प्रावधान के पश्चात् शहरी क्षेत्र में रोज़गार में वृद्धि होने का अनुमान व्यक्त किया गया है। इसके अतिरिक्त श्रमिक वर्ग व्यक्तिगत सामाजिक एवं आर्थिक मामलों के प्रति अधिक सशक्त भी होगा। हालाँकि यह समझना भी आवश्यक है कि सरकार न्यूनतम वेतन के निर्धारण के समय किस प्रकार के मापदंड़ो का उपयोग करती है क्योंकि निश्चित वेतन श्रमिकों के लिये तभी लाभकारी होगा जब यह उचित मापदंड एवं बाज़ार के अनुरूप तय किया जाए। अन्यथा, यह प्रावधान श्रमिकों के शोषण का माध्यम भी बन सकता है। भारत में अवस्थित बहुत से उद्योगों में श्रमिकों का वेतन भारत के अन्य प्रतिस्पर्द्धी देशों जैसे- चीन, वियतनाम, इंडोनेशिया से भी कम है, फिर भी इन देशों के निर्यात में लगातार वृद्धि हो रही है। भारत इन देशों से सबक लेकर अपने श्रम कानूनों में सुधार कर सकता है। हालाँकि इस संबंध में भारत सरकार द्वारा किये गए प्रयास सराहनीय है, सरकार द्वारा विस्तृत एवं विखंडित श्रम कानूनों को एक साथ पिरोने का प्रयास किया गया है। स्पष्ट रूप से इन श्रम सुधारों से लगभग 50 करोड़ श्रमिकों/कर्मचारियों के लाभान्वित होने की संभावना हैं।

प्रश्न: सरकार भारत में बहुप्रतीक्षित श्रम सुधारों को लागू करने जा रही है। इन सुधारों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)

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