नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़


जैव विविधता और पर्यावरण

बदलते मौसम में वनाग्नि का प्रबंधन

  • 09 Apr 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वनाग्नि, जलवायु परिवर्तन, जंगल की आग पर राष्ट्रीय कार्य योजना, ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद, एनडीएमए, वन सर्वेक्षण रिपोर्ट।

मेन्स के लिये:

वनाग्नि और इससे संबंधित चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?

ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW)  द्वारा जारी एक अध्ययन (मैनेजिंग फॉरेस्ट फायर इन ए चेंजिंग क्लाइमेट) के अनुसार, पिछले दो दशकों में वनाग्नि की आवृत्ति और तीव्रता के साथ-साथ इस तरह की वनाग्नि वाले महीनों की संख्या में वृद्धि हुई है।

  • CEEW एक स्वतंत्र, गैर-पक्षपातपूर्ण, एशिया के अग्रणी गैर-लाभकारी नीति अनुसंधान संस्थानों में से एक है, जो संसाधनों के उपयोग, पुन: उपयोग और दुरुपयोग को प्रभावित करने वाले सभी मामलों पर शोध हेतु समर्पित है।

वनाग्नि क्या है?

  • इसे बुशफायर (Bushfire) या जंगल की आग भी कहा जाता है। इसे किसी भी जंगल, घास के मैदान या टुंड्रा जैसे प्राकृतिक संसाधनों को अनियंत्रित तरीके से जलाने के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जो पर्यावरणीय परिस्थितियों जैसे- हवा, स्थलाकृति आदि के आधार पर फैलता है।
  • वनाग्नि की घटनाएँ वन क्षेत्र की सफाई जैसे- मानवीय कार्यों, अत्यधिक सूखा या दुर्लभ मामलों में आकाशीय बिजली गिरने के कारण प्रेरित हो सकती हैं।
  • वनाग्नि को प्रेरित करने के लिये तीन स्थितियों की आवश्यकता होती है: ईंधन, ऑक्सीजन और ऊष्मा/ऊर्जा/गर्मी का स्रोत

अध्ययन के निष्कर्ष:

  • वनाग्नि की घटनाओं में वृद्धि:
    • पिछले दो दशकों के दौरान वनाग्नि की घटनाओं में दस गुना वृद्धि हुई है और 62% से अधिक भारतीय राज्य उच्च तीव्रता वाली वनाग्नि के लिये प्रवण हैं।
    • तेज़ी से हो रहे जलवायु परिवर्तन के कारण आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र जैसे राज्य उच्च तीव्रता वाली वनाग्नि की घटनाओं के लिये सबसे अधिक प्रवण हैं।
    • पिछले दो दशकों में वनाग्नि की सर्वाधिक घटनाएँ मिज़ोरम में घटित हुई हैं, इसके 95% से अधिक ज़िले वनाग्नि के लिये हॉटस्पॉट हैं।
    • जो ज़िले पहले बाढ़ प्रवण थे, अब जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप ‘स्वैपिंग ट्रेंड’ के कारण सूखा प्रवण बन गए हैं।
    • 75% से अधिक भारतीय ज़िले चरम जलवायु घटना के प्रति ‘हॉटस्पॉट’ के रूप में विकसित हुए हैं, और 30% से अधिक ज़िले अत्यधिक वनाग्नि वाले ‘हॉटस्पॉट’ हैं।

वनाग्नि हॉटस्पॉट राज्य और ज़िले 

दशक

हॉटस्पॉट राज्य

हॉटस्पॉट ज़िले 

2000-19

आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, मणिपुर, मिज़ोरम, नगालैंड, उत्तराखंड

दीमा हसाओ, लुंगलेई, लवंगतलाई, ममित, हरदा, जबलपुर, होशंगाबाद, नारायणपुर, उधम सिंह नगर, कंधमाल, गढ़चिरौली

  • पूर्वोत्तर में वनाग्नि की अधिक घटनाएँ:
    • पूर्वोत्तर क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में हाल के दशकों में वनाग्नि की घटनाओं में वृद्धि हुई है।
    • वर्षा सिंचित क्षेत्र होने के बावजूद पूर्वोत्तर भारत में मार्च-मई माह के बीच शुष्क मौसम में वृद्धि के दौरान और खराब वर्षा वितरण पैटर्न के कारण वनाग्नि की अधिक घटनाएँ देखी जा रही हैं।
  • दुर्घटना की लंबी अवधि:
    • इससे पहले वनाग्नि की घटनाएँ प्रायः गर्मी के महीनों के दौरान यानी मई और जून माह के बीच होती थी। अब वसंत के दौरान यानी मार्च एवं मई माह के बीच भी जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसी घटनाएँ देखी जा रही हैं।
    • पहले जंगल में आग लगने की अवधि दो से तीन महीने तक होती थी, लेकिन अब यह अवधि लगभग छह महीने तक बढ़ गई है।
      • वर्ष 2019 में भारतीय वन सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट में पाया गया था कि भारत में 36% वन क्षेत्र उन क्षेत्रों में आते हैं जो वनाग्नि से ग्रस्त हैं।

India

वनाग्नि पर हालिया डेटा: 

  • भारतीय वन सर्वेक्षण के अनुसार, 30 मार्च, 2022 तक भारत में वनाग्नि की कुल 381 घटनाओं की सूचना मिली है। वनाग्नि की सर्वाधिक (133) घटनाएँ मध्य प्रदेश में दर्ज की गई हैं।
    • मार्च 2022 में वनाग्नि की अधिकांश घटनाएँ उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में दर्ज की गई थीं।
  • राजस्थान के सरिस्का टाइगर रिज़र्व में हाल ही में लगी आग को भी बेमौसम माना गया था, यहाँ उच्च तापमान के कारण वनाग्नि का प्रसार देखा गया।
  • जनवरी 2021 में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश (कुल्लू घाटी) और नगालैंड-मणिपुर सीमा (ज़ुकू घाटी) में लंबे समय तक आग लगी रही।
  • हाल की वनाग्नि की घटनाओं में मध्य प्रदेश के बाँधवगढ़ वन अभ्यारण्य में हुई घटना भी शामिल हैं।

CEEW की सिफारिशें:

  • आपदा के रूप में पहचानना:
    • वनाग्नि को "प्राकृतिक आपदा" माना जाना चाहिये और इसे राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधीन लाया जाना चाहिये।
    • इसके अलावा वनाग्नि को प्राकृतिक आपदा नामित कर उसके प्रबंधन हेतु वित्तीय आवंटन भी किया जाना चाहिये।
  •  चेतावनी प्रणाली/अलर्ट सिस्टम विकसित करना:
    • वनाग्नि के लिये केवल एक चेतावनी प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है जो वास्तविक समय प्रभाव-आधारित अलर्ट जारी कर सके।
  • अनुकूलनीय क्षमताओं को बढ़ाना: 
    • ज़िला प्रशासन और वनों पर आश्रित समुदायों के लक्षित क्षमता-निर्माण पहलों से वनाग्नि के कारण होने वाले नुकसान एवं क्षति को रोका जा सकता है।
  • स्वच्छ वायु युक्त आश्रय प्रदान करना:
    • राज्य सरकार/राज्य वन विभागों (एसएफडी) को सरकारी स्कूलों और सामुदायिक हॉल जैसे सार्वजनिक भवनों को निर्मित करना चाहिये जिनमें स्वच्छ हवा हेतु उपाय जैसे- एयर फिल्टर की व्यवस्था हो, ताकि वनाग्नि के कारण उत्पन्न धुएँ से प्रभावित होने वाले समुदायों को स्वच्छ वायु प्रदान की जा सके।

वनाग्नि की घटनाओं में कमी के प्रयास:

  • वर्ष 2004 में FSI (भारतीय वन सर्वेक्षण) ने वनाग्नि की रियल टाइम निगरानी हेतु फॉरेस्ट फायर अलर्ट सिस्टम विकसित किया।
    • जनवरी 2019 में इस सिस्टम का उन्नत संस्करण लॉन्च किया गया जो अब नासा और इसरो से एकत्रित उपग्रह आधारित जानकारी का उपयोग करता है।
  • वनाग्नि पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPFF) 2018 और वनाग्नि रोकथाम एवं  प्रबंधन योजना।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow