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भारतीय राजनीति
विधेयकों को धन विधेयक घोषित करने की चुनौती पर उच्चतम न्यायालय की सुनवाई
प्रिलिम्स के लिये:भारत का सर्वोच्च न्यायालय, धन विधेयक, भारत की समेकित निधि, विधेयकों के प्रकार मेन्स के लिये:भारतीय संविधान, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान, न्यायिक समीक्षा |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में भारत के सर्वोच्च न्यायालय की सात-न्यायाधीशों की खंडपीठ ने केंद्र द्वारा संसद में धन विधेयक के रूप में महत्त्वपूर्ण संशोधनों को पारित करने के तरीके से संबंधित एक संदर्भ को प्राथमिकता देने के अनुरोध को संबोधित किया।
धन विधेयक के रूप में पारित चुनौतीपूर्ण संशोधन:
- धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) संशोधन:
- वर्ष 2015 के बाद से धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) में किये गए संशोधनों ने प्रवर्तन निदेशालय को व्यापक शक्तियाँ प्रदान कीं, जिसमें गिरफ्तारी करने और छापेमारी का अधिकार भी शामिल है।
- प्राथमिक चिंता इन संशोधनों को धन विधेयक के रूप में पारित करना है, जिससे उनकी वैधता और संवैधानिकता पर सवाल उठ रहे हैं।
- कानूनी विशेषज्ञ और याचिकाकर्त्ता सवाल करते हैं कि क्या इन महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों को संसद के दोनों सदनों से जुड़ी मानक विधायी प्रक्रिया का पालन करना चाहिये था।
- वर्ष 2015 के बाद से धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) में किये गए संशोधनों ने प्रवर्तन निदेशालय को व्यापक शक्तियाँ प्रदान कीं, जिसमें गिरफ्तारी करने और छापेमारी का अधिकार भी शामिल है।
- वित्त अधिनियम, 2017:
- वित्त अधिनियम, 2017 को धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत एवं पारित किया गया, जिससे इस विधायी प्रक्रिया के उचित उपयोग के विषय में चिंताएँ बढ़ गईं।
- आरोप है कि अधिनियम का उद्देश्य राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण और केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण सहित 19 प्रमुख न्यायिक न्यायाधिकरणों में नियुक्तियों में बदलाव करना है।
- आरोप है कि वर्ष 2017 अधिनियम को धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत करना इन न्यायाधिकरणों पर कार्यकारी नियंत्रण बढ़ाने को लेकर जानबूझकर किया गया एक प्रयास था।
- अधिनियम के पारित होने के साथ-साथ ऐसे बदलाव भी हुए जिनसे इन प्रमुख न्यायिक निकायों में कर्मचारियों के लिये आवश्यक योग्यता और अनुभव को कम कर दिया गया।
- आधार अधिनियम, 2016:
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में सरकार के पक्ष में निर्णय सुनाया था और आधार अधिनियम को संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत वैध धन विधेयक के रूप में मंज़ूरी दे दी थी।
- सरकार ने तर्क दिया था, चूँकि आधार के माध्यम से वितरित सब्सिडी भारत के समेकित कोष से आती है, इसलिये कानून को वैधानिक तौर पर धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत किया गया जिसने कानूनी और कार्यविधि संबंधी प्रश्न उठाए।
- धन विधेयक केवल लोकसभा के लिये होते हैं और राज्यसभा के प्रभाव को सीमित करते हैं।
- हाल ही में CJI ने अधिक व्यापक समीक्षा के लिये कहा।
- सरकार ने तर्क दिया था, चूँकि आधार के माध्यम से वितरित सब्सिडी भारत के समेकित कोष से आती है, इसलिये कानून को वैधानिक तौर पर धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत किया गया जिसने कानूनी और कार्यविधि संबंधी प्रश्न उठाए।
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में सरकार के पक्ष में निर्णय सुनाया था और आधार अधिनियम को संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत वैध धन विधेयक के रूप में मंज़ूरी दे दी थी।
वृहद् पीठ (Larger Bench) के निहितार्थ:
- PMLA, आधार अधिनियम और ट्रिब्यूनल सुधारों की संवैधानिकता पर स्पष्टता।
- यह निर्धारित करना कि क्या इन कानूनों को सही तरीके से धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत किया गया था अथवा राज्यसभा की जाँच को रोकने के लिये इनका प्रयोग किया गया था।
- इस बात का समाधान करना कि क्या ये वर्गीकरण कानूनी रूप से सही थे या निगरानी से बचने के लिये रणनीतिक चालें थीं।
- वृहद् पीठ के बीच बहस से इस बारे में अधिक जानकारी मिल सकती है कि न्यायपालिका धन विधेयक के रूप में उपायों को नामित करने के संबंध में अध्यक्ष के निर्णयों पर किस हद तक जाँच कर सकती है।
धन विधेयक:
- परिभाषा:
- धन विधेयक एक वित्तीय कानून है जिसमें विशेष रूप से राजस्व, कराधान, सरकारी व्यय और उधार से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।
- संवैधानिक आधार:
- अनुच्छेद 110 (1) किसी विधेयक को धन विधेयक समझा जाता है यदि वह अनुच्छेद 110 (1) (a) से (g) में निर्दिष्ट मामलों, विशेषकर कराधान, सरकार द्वारा उधार लेना और भारत की संचित निधि से धन के विनियोग, से संबंधित है।
- अनुच्छेद 110(1)(g) के अनुसार "अनुच्छेद 110(1)(a)(f) में निर्दिष्ट किसी भी गतिविधि से जुड़ा कोई भी मामला" धन विधेयक हो सकता है।
- संविधान के अनुच्छेद 110 (3) के अनुसार, “यदि कोई प्रश्न उठता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं”, तो उस पर लोक सभा के अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होगा।
- अनुच्छेद 110 (1) किसी विधेयक को धन विधेयक समझा जाता है यदि वह अनुच्छेद 110 (1) (a) से (g) में निर्दिष्ट मामलों, विशेषकर कराधान, सरकार द्वारा उधार लेना और भारत की संचित निधि से धन के विनियोग, से संबंधित है।
- प्रक्रिया:
- धन विधेयक को लोकसभा में प्रस्तुत किया जाना चाहिये किंतु राज्यसभा (उच्च सदन) में यह प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है।
- राज्य सभा किसी धन विधेयक पर केवल सिफारिशें कर सकती है लेकिन उसमें संशोधन करने या उसे अस्वीकार करने की शक्ति उसके पास नहीं है।
- राष्ट्रपति किसी धन विधेयक को स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है लेकिन उसे पुनर्विचार के लिये वापस नहीं कर सकता।
- इसमें संयुक्त बैठक का कोई प्रावधान नहीं है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. धन विधेयक के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है? (2018) (a) किसी बिल (विधेयक) को धन विधेयक तब माना जाएगा जब इसमें केवल किसी कर के अधिरोपण, उन्मूलन, माफी,परिवर्तन या विनियमन से संबंधित प्रावधान हों। उत्तर: (C) प्रश्न. यदि किसी धन विधेयक में राज्य सभा द्वारा पर्याप्त संशोधन किया जाए तो क्या होगा ? (2013) (a) लोकसभा अभी भी राज्यसभा की सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार करते हुए विधेयक पर आगे बढ़ सकती है। उत्तर: (A) |
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
चीन की ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ परियोजना
प्रिलिम्स के लिये:बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा मेन्स के लिये:चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा और भारत पर इसका प्रभाव |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
महत्त्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के दस वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में चीन इसकी 10वीं वर्षगांठ मना रहा है। इस विशाल परियोजना की शुरुआत वर्ष 2013 में की गई थी, जिसका लक्ष्य वैश्विक व्यापार और बुनियादी ढाँचे के विकास को नया आकार देना है।
बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव:
- परिचय:
- यह वैश्विक कनेक्टिविटी और सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू की गई एक बहुआयामी विकास रणनीति है।
- इसे वर्ष 2013 में लॉन्च किया गया था और इसका उद्देश्य दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य एशिया, खाड़ी क्षेत्र, अफ्रीका एवं यूरोप को स्थल तथा समुद्री मार्गों के नेटवर्क से जोड़ना है।
- इस परियोजना को पहले 'वन बेल्ट, वन रोड' नाम दिया गया था, किंतु चीनी प्रभुत्त्व के बजाय अधिक खुले और समावेशी दृष्टिकोण को दर्शाने करने के लिये इसका नाम बदलकर ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) कर दिया गया।
- इस पहल में दो प्रमुख घटक शामिल हैं: सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट और समुद्री सिल्क रोड।
- बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत मार्ग:
- सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट:
- यह घटक भूमि परिवहन मार्गों के नेटवर्क के माध्यम से पूरे यूरेशिया में कनेक्टिविटी, बुनियादी ढाँचे और व्यापार संबंधों को बेहतर बनाने पर केंद्रित है।
- समुद्री सिल्क रोड:
- यह बंदरगाहों, शिपिंग मार्गों और समुद्री बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के रूप में समुद्री कनेक्टिविटी एवं सहयोग पर बल देता है।
- यह दक्षिण चीन सागर से शुरू होकर भारत-चीन, दक्षिण-पूर्व एशिया और फिर हिंद महासागर के आसपास होते हुए अफ्रीका तथा यूरोप तक पहुँचता है।
- यह बंदरगाहों, शिपिंग मार्गों और समुद्री बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के रूप में समुद्री कनेक्टिविटी एवं सहयोग पर बल देता है।
- सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट:
- उद्देश्य:
- BRI का प्राथमिक लक्ष्य बुनियादी ढाँचे, व्यापार और आर्थिक सहयोग को बढ़ाकर अंतर्राष्ट्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है।
- इस पहल में रेलवे, बंदरगाह, राजमार्ग और ऊर्जा बुनियादी ढाँचे सहित परियोजनाओं की एक विस्तृत शृंखला शामिल है।
- BRI का प्राथमिक लक्ष्य बुनियादी ढाँचे, व्यापार और आर्थिक सहयोग को बढ़ाकर अंतर्राष्ट्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है।
- भौगोलिक गलियारे:
- भूमि आधारित सिल्क रोड आर्थिक बेल्ट विकास के लिये छह प्रमुख गलियारों की कल्पना करता है:
- चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा(China-Pakistan Economic Corridor- CPEC)।
- न्यू यूरेशियन लैंड ब्रिज आर्थिक गलियारा।
- चीन-इंडोचाइना प्रायद्वीप आर्थिक गलियारा।
- चीन-मंगोलिया-रूस आर्थिक गलियारा।
- चीन-मध्य एशिया-पश्चिम एशिया आर्थिक गलियारा।
- चीन-म्याँमार आर्थिक गलियारा।
- भूमि आधारित सिल्क रोड आर्थिक बेल्ट विकास के लिये छह प्रमुख गलियारों की कल्पना करता है:
नोट: प्रारंभ में BRI में बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार (BCIM) आर्थिक गलियारा शामिल था। बाद में भारत ने चीन के पश्चिम में शिनजियांग से पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर (PoK) के माध्यम से ग्वादर के अरब सागर बंदरगाह तक चलने वाले CPEC पर अपना विरोध जताते हुए BRI में शामिल होने से परहेज़ किया। भारत के भाग न लेने से BCIM गलियारे का निर्माण रुक गया और इसकी जगह बाद में लॉन्च किये गए चीन-म्याँमार आर्थिक गलियारे ने ले ली है
- आर्थिक प्रभाव:
- BRI से जुड़े देशों के व्यापार और निवेश में वृद्धि दर्ज की गई है, जिसके परिणामस्वरूप आपसी सहयोग में प्राथमिकता तथा नीतिगत लाभ प्राप्त हुए हैं।
- BRI भागीदारों के साथ व्यापार में 6.4% की वार्षिक वृद्धि दर दर्ज की गई, जो वर्ष 2013 और 2022 के बीच 19.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गई।
BRI पर भारत का रुख:
- भारत संप्रभुता और पारदर्शिता के आधार पर इस परियोजना का विरोध करता है। भारत ने वर्ष 2017 और वर्ष 2019 में चीन द्वारा आयोजित BRI शिखर सम्मेलन का बहिष्कार किया है तथा शंघाई सहयोग संगठन (SCO) द्वारा जारी BRI संयुक्त बयानों का समर्थन नहीं किया है।
- BRI पर भारत की मुख्य आपत्ति यह है कि इसमें चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) शामिल है, जो पाकिस्तान के अधिकार वाले कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है जिस पर भारत अपना दावा करता है।
- भारत का यह भी तर्क है कि BRI परियोजनाओं को अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों, कानून के शासन और वित्तीय स्थिरता का सम्मान करना चाहिये तथा मेज़बान देशों के लिये ऋण जाल या पर्यावरणीय एवं सामाजिक जोखिम उत्पन्न नहीं करना चाहिये।
- इसके बजाय भारत ने अन्य कनेक्टिविटी पहलों को बढ़ावा दिया है, जैसे वैश्विक अवसंरचना और निवेश के लिये साझेदारी (Partnership for Global Infrastructure Investment- PGII), विकासशील देशों में बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को वित्तपोषित करने हेतु G-7 पहल।
BRI से संबंधित मुद्दे:
- ऋण बोझ:
- BRI परियोजनाओं की ऋण स्थिरता और पारदर्शिता विशेष रूप से कमज़ोर शासन, अधिक भ्रष्टाचार तथा कम क्रेडिट रेटिंग वाले देशों में।
- कुछ आलोचकों ने चीन पर श्रीलंका और ज़ाम्बिया जैसे देशों को धन उधार देकर "ऋण-जाल कूटनीति" में उन्हें शामिल करने का आरोप लगाया है जो अंततः ऋण चुकाने में असमर्थ होते हैं और फिर चीन उन देशों की रणनीतिक संपत्तियों को ज़ब्त कर लेता हैं या बदले में उनसे राजनीतिक रियायतों की मांग करता है।
- BRI परियोजनाओं की ऋण स्थिरता और पारदर्शिता विशेष रूप से कमज़ोर शासन, अधिक भ्रष्टाचार तथा कम क्रेडिट रेटिंग वाले देशों में।
- बहुपक्षीय शासन:
- BRI बहुपक्षीय पहल नहीं है, बल्कि अधिकतर द्विपक्षीय परियोजनाओं का एक संग्रह है। यह विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण समन्वय और शासन संबंधी चुनौतियों को उत्पन्न कर सकता है।
- एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (AIIB) जैसी पहलों के विपरीत, BRI में एक केंद्रीकृत शासकीय संरचना का अभाव है, जिससे मुद्दों को सामूहिक रूप से संबोधित करना मुश्किल हो जाता है।
- BRI बहुपक्षीय पहल नहीं है, बल्कि अधिकतर द्विपक्षीय परियोजनाओं का एक संग्रह है। यह विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण समन्वय और शासन संबंधी चुनौतियों को उत्पन्न कर सकता है।
- राजनीतिक तनाव:
- भारत-चीन सीमा विवाद जैसे भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और विवादों ने कुछ क्षेत्रों में BRI परियोजनाओं के कार्यान्वयन को प्रभावित किया है। ये राजनीतिक तनाव पहल की प्रगति को कमज़ोर कर सकते हैं।
- पर्यावरण और सामाजिक चिंताएँ:
- BRI के तहत बुनियादी ढाँचा विकास परियोजनाओं को उनके संभावित पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों के लिये आलोचना का सामना करना पड़ा है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि BRI परियोजनाएँ पर्यावरण की दृष्टि से धारणीय हैं और स्थानीय समुदायों की भलाई पर विचार करना चुनौतीपूर्ण है।
- भू-रणनीतिक चिंताएँ:
- BRI ने विशेष रूप से साझेदार देशों में महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे पर चीन के बढ़ते प्रभाव और नियंत्रण के संबंध में भू-राजनीतिक चिंताओं को बढ़ा दिया है। इन चिंताओं ने कुछ देशों को इस पहल में अपनी भागीदारी का पुनर्मूल्यांकन करने के लिये प्रेरित किया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का उल्लेख किसके संदर्भ में किया जाता है? (2016) (a) अफ्रीकी संघ उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) को चीन की बड़ी 'वन बेल्ट वन रोड' पहल के मुख्य उपसमुच्चय के रूप में देखा जाता है। CPEC का संक्षिप्त विवरण दीजिये और उन कारणों का उल्लेख कीजिये जिनकी वज़ह से भारत ने खुद को इससे दूर किया है। (2018) प्रश्न. "चीन एशिया में संभावित सैन्य शक्ति की स्थिति विकसित करने के लिये अपने आर्थिक संबंधों और सकारात्मक व्यापार अधिशेष का उपयोग उपकरण के रूप में कर रहा है"। इस कथन के आलोक में भारत पर पड़ोसी देश के रूप में इसके प्रभाव की चर्चा कीजिये। (2017) |
सामाजिक न्याय
दिव्यांग जनसंख्या को आपदा से बचाने की तैयारी
प्रिलिम्स के लिये:आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNDRR), आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस, दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर अभिसमय, आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क 2015-2030, भूकंप, ज्वालामुखी मेन्स के लिये:आपदा जोखिम न्यूनीकरण और प्रबंधन में दिव्यांगों की समावेशिता को बढ़ावा देने की आवश्यकता। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
13 अक्तूबर को मनाए जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण दिवस से ठीक पहले संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (UNDRR) द्वारा हाल ही में जारी एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि पिछले दशक से प्राकृतिक आपदाओं के दौरान दिव्यांग व्यक्तियों की सुरक्षा के लिये सरकारी नीतियों की प्रगति में कमी आई है।
UNDRR सर्वेक्षण के निष्कर्ष:
- सर्वेक्षण के निष्कर्ष:
- 132 देशों के 6,000 उत्तरदाताओं को शामिल करते हुए वर्ष 2023 सर्वेक्षण से पता चलता है कि 84% दिव्यांग व्यक्तियों को निकासी मार्गों, आश्रय घरों या व्यक्तिगत तैयारी योजनाओं के बारे में जानकारी नहीं है, जबकि वर्ष 2013 में यह आँकड़ा 71% था।
- वर्तमान में केवल 11% उत्तरदाता अपने स्थानीय क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन योजनाओं के बारे में जानते हैं, वर्ष 2013 में 17% से कम व्यक्ति आपदा जोखिम जानकारी के बारे में जानते थे।
- दिव्यांग व्यक्तियों की चिंताएँ:
- आपदाओं के दौरान दिव्यांग व्यक्ति को अधिक खतरा होता है, वैश्विक आबादी के लगभग 16% लोग दिव्यांग है और इनकी आपदाओं के दौरान मृत्यु होने की संभावना भी अधिक है।
- समुदाय-स्तरीय आपदा योजना में भाग लेने में बढ़ती रुचि के बावजूद, 86% उत्तरदाताओं को अभी भी बहिष्कृत महसूस होता है, जो समावेशन की आवश्यकता पर बल देते हैं।
- सर्वेक्षण के सुझाव:
- यह रिपोर्ट आपदाओं और असमानता के अंतर्संबंध पर ज़ोर देती है तथा सेवाओं तक असमान पहुँच से सर्वाधिक जोखिम वाले समूहों की भेद्यता बढ़ जाती है।
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क 2015-2030 दिव्यांगता समावेशन, सुलभ आपदा जोखिम जानकारी और समावेशी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का आह्वान करता है।
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को सुदृढ़ करना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि आधे देशों में इन तंत्रों का अभाव है और समय पर चेतावनी से निकासी दर में काफी सुधार हो सकता है।
- इन चुनौतियों का समाधान करने और सामुदायिक आपदा जोखिम न्यूनीकरण योजना में दिव्यांग जनों का सार्थक समावेश सुनिश्चित करने के लिये तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
आपदा जोखिम न्यूनीकरण (2015-30) के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क:
- परिचय:
- इसे जापान के सेंदाई में आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर तीसरे संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन, 2015 में अपनाया गया था।
- वर्तमान रूपरेखा प्राकृतिक या मानव निर्मित खतरों के कारण छोटे और बड़े पैमाने पर तीव्र या धीमी गति से घटित होने वाली आपदाओं के साथ-साथ संबंधित पर्यावरणीय एवं तकनीकी जैविक खतरों और जोखिमों पर लागू होती है।
- इसका उद्देश्य सभी क्षेत्रों के भीतर और बाहर विकास में आपदा जोखिम के बहु-जोखिम प्रबंधन का मार्गदर्शन करना है।
- यह ह्योगो फ्रेमवर्क फॉर एक्शन (HFA), 2005-2015: आपदाओं के प्रति राष्ट्रों और समुदायों की समुत्थानशक्ति के निर्माण’ का उत्तरोत्तर उपकरण है।
- चार प्राथमिक क्षेत्रों में की जाने वाली कार्रवाइयाँ:
- आपदा जोखिम को समझना:
- प्रासंगिक डेटा और व्यावहारिक जानकारी के संग्रह, विश्लेषण, प्रबंधन एवं उपयोग को बढ़ावा देना तथा इसका प्रसार सुनिश्चित करना।
- आपदा से होने वाले नुकसान का व्यवस्थित रूप से मूल्यांकन करना, उसे रिकॉर्ड करना, साझा करना व सार्वजनिक रूप से हिसाब देना और इसके आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्यप्रद, शैक्षिक एवं पर्यावरणीय प्रभावों को समझना।
- आपदा जोखिम के प्रबंधन हेतु आपदा जोखिम प्रशासन का सुदृढ़ीकरण:
- स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर चिह्नित जोखिमों से निपटने के लिये तकनीकी, वित्तीय एवं प्रशासनिक आपदा जोखिम प्रबंधन क्षमता का आकलन करना।
- क्षेत्रीय कानूनों और विनियमों के मौजूदा सुरक्षा-बढ़ाने वाले प्रावधानों के उच्च स्तर के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक तंत्र एवं प्रोत्साहन की स्थापना को प्रोत्साहित करना।
- समुत्थानशक्ति के लिये आपदा जोखिम न्यूनीकरण में निवेश:
- सभी प्रासंगिक क्षेत्रों में आपदा जोखिम न्यूनीकरण रणनीतियों, नीतियों, योजनाओं, कानूनों तथा विनियमों के विकास और कार्यान्वयन के लिये प्रशासन के सभी स्तरों पर वित्त एवं रसद सहित आवश्यक संसाधनों को उचित रूप से आवंटित करना।
- पुनर्प्राप्ति, पुनर्वास और पुनर्निर्माण:
- बचाव और राहत कार्यों को लागू करने के लिये लोगों के बीच जागरूकता को बढ़ावा देना तथा आवश्यक सामग्रियों के भंडारण के लिये सामुदायिक केंद्र की स्थापना।
- मौजूदा कार्यबल और स्वैच्छिक कार्यकर्त्ताओं को आपदा प्रतिक्रिया के बारे में प्रशिक्षित करना तथा आपात की स्थिति में बेहतर प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिये तकनीकी व तार्किक क्षमताओं में वृद्धि करना।
- आपदा जोखिम को समझना:
दिव्यांगजनो के सशक्तीकरण के लिये पहलें:
- वैश्विक स्तर पर:
- दिव्यांगजनो के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय:
- PwD के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UN Convention on the Rights of PwD- UNCRPD) को वर्ष 2006 में अपनाया गया था, यह दिव्यांगजनों को ऐसे लोगों के रूप में परिभाषित करता है जो दीर्घकालिक शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक अथवा संवेदी दुर्बलताओं से ग्रस्त हैं और अपनी विशेष सीमितताओं के कारण अन्य लोगों की तुलना में समाज में समान भागीदारी करने में सक्षम नहीं हैं।
- भारत ने वर्ष 2007 में इस अभिसमय की पुष्टि की।
- भारतीय संसद ने UNCRPD के तहत दायित्त्वों को पूरा करने की दृष्टि से दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 को अधिनियमित किया।
- दिव्यांगजनो के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय:
- भारत द्वारा किये गए प्रयास:
- संवैधानिक प्रावधान:
- राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों (Directive Principles of State Policy- DPSP) के अनुच्छेद 41 में वर्णित है कि राज्य अपनी आर्थिक क्षमता एवं विकास को ध्यान में रखते हुए कार्य करने, शिक्षा पाने और बेरोज़गारी, बुढ़ापा, बीमारी व दिव्यांगता के मामलों में सार्वजनिक सहायता का अधिकार सुरक्षित करने के लिये प्रभावी प्रावधान लागू करेगा।
- संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची में ‘दिव्यांगजनों और बेरोज़गारों के लिये राहत’ का विषय निर्दिष्ट है।
- दिव्यांगजनों के लिये कानून:
- दिव्यांगजन (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 को दिव्यांगजनों का अधिकार अधिनियम, 2016 से प्रतिस्थापित किया गया है।
- दिव्यांगता के प्रकारों को 7 से बढ़ाकर 21 कर दिया गया है। इस अधिनियम में मानसिक बीमारी, ऑटिज़्म, स्पेक्ट्रम विकार, सेरेब्रल पाल्सी, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल स्थितियाँ, बोलने में असमर्थता (जिसमें व्यक्ति के बोलने की क्षमता और भाषा का कौशल दोनों प्रभावित हों), थैलेसीमिया, हीमोफिलिया, सिकल सेल रोग, डेफब्लाइंडनेस, एसिड अटैक पीड़ितों और पार्किंसंस रोग सहित कई दिव्यांगताएँ शामिल की गईं हैं। ये कुछ ऐसी दिव्यांगताएँ हैं जिन्हें पहले के अधिनियम में नज़रअंदाज कर दिया गया था।
- यह दिव्यांगता से पीड़ित लोगों के लिये सरकारी नौकरियों में आरक्षण को 3% से बढ़ाकर 4% और उच्च शिक्षा संस्थानों में 3% से बढ़ाकर 5% कर देता है।
- 6 से 18 वर्ष की आयु के बीच बेंचमार्क दिव्यांगता वाले प्रत्येक बच्चे को मुफ्त शिक्षा का अधिकार प्राप्त होगा।
- सुगम्य भारत अभियान (PwD के लिये सुगम्य वातावरण का निर्माण):
- सार्वभौमिक पहुँच प्राप्त करने के लिये यह सार्वभौमिक राष्ट्रव्यापी अभियान दिव्यांग लोगों को समान अवसर, स्वतंत्र रूप से जीने और समाज के सभी क्षेत्रों में पूर्ण रूप से शामिल होने की क्षमता प्रदान करेगा।
- अभियान का लक्ष्य दिव्यांगों तक पर्यावरण, परिवहन प्रणाली और सूचना एवं संचार पारिस्थितिकी तंत्र की पहुँच को बढ़ाना है।
- संवैधानिक प्रावधान:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. भारत सरकार द्वारा पहले के प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण से हटकर आपदा प्रबंधन हेतु शुरू किये गए हालिया उपायों की चर्चा कीजिये। (2020) प्रश्न. आपदा प्रभावों और लोगों के लिये उसके खतरे को परिभाषित करने के लिये भेद्यता एक अत्यावश्यक तत्त्व है। आपदाओं के प्रति भेद्यता का किस प्रकार और किन-किन तरीकों के साथ चरित्र-चित्रण किया जा सकता है? आपदाओं के संदर्भ में भेद्यता के विभिन्न प्रकारों पर चर्चा कीजिये। (2019) प्रश्न. भारत में आपदा जोखिम न्यूनीकरण (डी.आर.आर.) के लिये ‘सेंदाई’ आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रारूप (2015-30)' हस्ताक्षरित करने से पूर्व एवं उसके पश्चात किये गए विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिये। यह प्रारूप 'ह्योगो कार्यवाई प्रारूप, 2005' से किस प्रकार भिन्न है?(2018) |
शासन व्यवस्था
चुनावी बॉण्ड
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने चुनावी बॉण्ड- 2018 योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं को पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को सौंप दिया है।
- केंद्र ने इस योजना को "चुनावी सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम" करार दिया है जो "पारदर्शिता” और "उत्तरदायित्व" सुनिश्चित करेगी, याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया है कि यह राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता को प्रभावित करती है।
नोट:
न्यायालय मुख्य रूप से चुनावी बॉण्ड योजना से संबंधित दो महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिये सहमत हुआ है:
- राजनीतिक दलों को गुप्त दान की वैधानिकता और राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के बारे में जानकारी के नागरिकों के अधिकार का उल्लंघन, संभावित रूप से भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है।
- ये मुद्दे संवैधानिक अनुच्छेद 19, 14 और 21 के उल्लंघन से संबंधित हैं।
चुनावी बॉण्ड:
- परिचय:
- चुनावी बॉण्ड प्रणाली को वर्ष 2017 में एक वित्त विधेयक के माध्यम से पेश किया गया था और इसे वर्ष 2018 में लागू किया गया था।
- बॉण्ड दानदाता की गुमनामी बनाए रखते हुए पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिये व्यक्तियों और संस्थाओं के लिये एक साधन के रूप में कार्य करते हैं।
- विशेषताएँ:
- भारतीय स्टेट बैंक 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के बॉण्ड जारी करता है।
- यह ब्याज मुक्त होता है और धारक द्वारा मांगे जाने पर देय होता है।
- भारतीय नागरिक अथवा भारत में स्थापित संस्थाएँ इसे खरीद सकती हैं।
- इसे व्यक्तिगत रूप से या संयुक्त रूप से खरीदा जा सकता है।
- यह जारी होने की तारीख से 15 कैलेंडर दिवसों के लिये वैध होता है।
- अधिकृत जारीकर्त्ता:
- भारतीय स्टेट बैंक इसका अधिकृत जारीकर्त्ता है।
- चुनावी बॉण्ड नामित भारतीय स्टेट बैंक शाखाओं के माध्यम से जारी किये जाते हैं।
- राजनीतिक दलों की पात्रता:
- केवल जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत पंजीकृत राजनीतिक दल, जिन्होंने पिछले आम चुनाव में लोकसभा अथवा विधानसभा के लिये डाले गए वोटों में से कम-से- कम 1% वोट हासिल किये हों, चुनावी बॉण्ड खरीदने हेतु पात्र हैं।
- खरीद और नकदीकरण:
- चुनावी बॉण्ड डिजिटल अथवा चेक के माध्यम से खरीदे जा सकते हैं।
- नकदीकरण केवल राजनीतिक दल के अधिकृत बैंक खाते के माध्यम से किया जा सकता है।
- पारदर्शिता और जवाबदेही:
- राजनीतिक दलों को भारतीय निर्वाचन आयोग के साथ अपने बैंक खाते के विवरणों का खुलासा करना अनिवार्य है।
- पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये बैंकिंग चैनलों के माध्यम से दान दिया जाता है।
- राजनीतिक दलों को प्राप्त धन के उपयोग का विवरण देना अनिवार्य है।
- लाभ:
- राजनीतिक दलों की फंडिंग में पारदर्शिता में वृद्धि।
- धन के रूप में प्राप्त दान के उपयोग का खुलासा करने की जवाबदेही।
- नकदी लेन-देन में कमी।
- दाता की गोपनीयता का संरक्षण।
चुनावी बॉण्ड योजना से संबंधित चिंताएँ:
- अपने मूल विचार के विपरीत:
- चुनावी बॉण्ड योजना की आलोचना का मुख्य कारण यह है कि यह अपने मूल विचार अथवा उद्देश्य, चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने, के बिल्कुल विपरीत काम करती है।
- उदाहरण के लिये आलोचकों का तर्क है कि चुनावी बॉण्ड की गोपनीयता केवल जनता और विपक्षी दलों के लिये है, दान प्राप्त करने वाले दल के लिये नहीं।
- चुनावी बॉण्ड योजना की आलोचना का मुख्य कारण यह है कि यह अपने मूल विचार अथवा उद्देश्य, चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने, के बिल्कुल विपरीत काम करती है।
- ज़बरन वसूली की संभावना:
- तथ्य यह है कि ऐसे बॉण्ड सरकारी स्वामित्व वाले बैंक (SBI) के माध्यम से बेचे जाते हैं, जिससे सरकार को यह पता चल जाता है कि उसके विरोधियों को कौन फंडिंग कर रहा है।
- यह बदले में वर्तमान सरकार को विशेष रूप से बड़ी कंपनियों से पैसे निकालने की सुविधा देता है या सत्ताधारी पार्टी को धन न देने के लिये उन्हें परेशान करता है- किसी भी तरह से सत्ताधारी पार्टी को अनुचित लाभ प्रदान करता है।
- तथ्य यह है कि ऐसे बॉण्ड सरकारी स्वामित्व वाले बैंक (SBI) के माध्यम से बेचे जाते हैं, जिससे सरकार को यह पता चल जाता है कि उसके विरोधियों को कौन फंडिंग कर रहा है।
- लोकतंत्र पर आघात:
- वित्त अधिनियम 2017 में संशोधन के माध्यम से केंद्र सरकार ने राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त दान का खुलासा करने से छूट दी है।
- इसका अर्थ यह है कि मतदाताओं को यह नहीं पता होगा कि किस व्यक्ति, कंपनी या संगठन ने किस पार्टी को कितनी मात्रा में फंड दिया है।
- हालाँकि एक प्रतिनिधि लोकतंत्र में नागरिक उन लोगों को अपना वोट देते हैं जो संसद में उनका प्रतिनिधित्व करेंगे।
- वित्त अधिनियम 2017 में संशोधन के माध्यम से केंद्र सरकार ने राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त दान का खुलासा करने से छूट दी है।
- बड़े व्यवसाइयों के लाभ पर केंद्रित:
- चुनावी बॉण्ड योजना ने राजनीतिक दलों को असीमित कॉर्पोरेट चंदा और भारतीय तथा विदेशी कंपनियों द्वारा गुप्त वित्तपोषण के द्वार खोल दिये हैं, जिसका भारतीय लोकतंत्र पर गंभीर असर हो सकता है।
- इस योजना के तहत कॉर्पोरेट और यहाँ तक कि विदेशी संस्थाओं द्वारा किये गए दान पर कर में 100% छूट से बड़े व्यवसाइयों को लाभ हुआ।
- चुनावी बॉण्ड योजना ने राजनीतिक दलों को असीमित कॉर्पोरेट चंदा और भारतीय तथा विदेशी कंपनियों द्वारा गुप्त वित्तपोषण के द्वार खोल दिये हैं, जिसका भारतीय लोकतंत्र पर गंभीर असर हो सकता है।
- सूचना के अधिकार से समझौता:
- भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने लंबे समय से माना है कि "सूचना का अधिकार", विशेष रूप से चुनावों के संदर्भ में, भारतीय संविधान के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 19) का एक अभिन्न अंग है।
- केंद्र ने दो वित्त अधिनियमों- वित्त अधिनियम, 2017 और वित्त अधिनियम, 2016 के माध्यम से कई संशोधन किये थे, दोनों को धन विधेयक के रूप में पारित किया गया।
- याचिकाकर्त्ताओं ने संशोधनों को "असंवैधानिक", "शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांतों" और मौलिक अधिकारों की एक शृंखला का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी है।
- केंद्र ने दो वित्त अधिनियमों- वित्त अधिनियम, 2017 और वित्त अधिनियम, 2016 के माध्यम से कई संशोधन किये थे, दोनों को धन विधेयक के रूप में पारित किया गया।
- भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने लंबे समय से माना है कि "सूचना का अधिकार", विशेष रूप से चुनावों के संदर्भ में, भारतीय संविधान के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 19) का एक अभिन्न अंग है।
- स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के खिलाफ:
- चुनावी बॉण्ड नागरिकों को कोई विवरण नहीं देते हैं।
- उक्त गुमनामी तत्कालीन सरकार पर लागू नहीं होती है, जो हमेशा भारतीय स्टेट बैंक (SBI) से डेटा की मांग करके दाता के विवरण तक पहुँच सकती है।
- इसका तात्पर्य यह है कि सत्ता में मौजूद सरकार इस जानकारी का लाभ उठा सकती है और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों को बाधित कर सकती है।
- क्रोनी कैपिटलिज़्म :
- चुनावी बॉण्ड योजना राजनीतिक डोनेशन पर सभी पूर्व-मौजूदा सीमाओं को हटा देती है और प्रभावी संसाधन वाले निगमों को चुनावों को वित्तपोषित करने की अनुमति देती है, जिससे बाद में क्रोनी कैपिटलिज़्म का मार्ग प्रशस्त होता है।
- क्रोनी कैपिटलिज़्म: यह व्यापारियों और सरकारी अधिकारियों के बीच घनिष्ठ, पारस्परिक रूप से लाभप्रद आर्थिक प्रणाली है।
आगे की राह
- भ्रष्टाचार के दुष्चक्र और लोकतांत्रिक राजनीति की गुणवत्ता में गिरावट को रोकने के लिये साहसिक सुधारों के साथ-साथ राजनीतिक वित्तपोषण के प्रभावी विनियमन की आवश्यकता है।
- संपूर्ण शासन तंत्र को अधिक जवाबदेह और पारदर्शी बनाने के लिये मौजूदा कानूनों की खामियों को दूर करना महत्त्वपूर्ण है।
- मतदाता जागरूकता अभियानों की मांग करके भी महत्त्वपूर्ण बदलाव लाने में मदद कर सकते हैं।
- यदि मतदाता उन उम्मीदवारों और दलों को अस्वीकार कर देते हैं जो अधिक खर्च करते हैं या उन्हें रिश्वत देते हैं, तो लोकतंत्र एक कदम आगे बढ़ जाएगा।
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
श्रीलंका को चीन की सहायता
प्रीलिम्स के लिये:निर्यात-आयात (EXIM) बैंक ऑफ चाइना, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), क्रेडिट लाइन (LoC), विस्तारित फंड सुविधा (EFF), हेयरकट, मुद्रास्फीति, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) ऋण-जाल कूटनीति मेन्स के लिये:श्रीलंका को चीन की सहायता और द्वीप देश के साथ भारत के संबंधों पर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का प्रभाव। |
स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों ?
श्रीलंका के आर्थिक संकट में फँसने के एक वर्ष से अधिक समय बाद, उसने अपने बकाया ऋण के लगभग 4.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर को कवर करने के लिये चीन के निर्यात-आयात (EXIM) बैंक के साथ एक समझौता किया है।
- भारत के लिये श्रीलंका को चीन की सहायता को एक अन्य साधन के रूप में देखा जाएगा जिसके माध्यम से वह द्वीप राष्ट्र के साथ अपने संबंधों को बेहतर करने में निवेश कर रहा है।
श्रीलंका को चीन की वर्तमान सहायता का संदर्भ:
- श्रीलंका के आर्थिक संकट के कारण और उसकी प्रतिक्रिया:
- श्रीलंका के 83 बिलियन अमरीकी डालर के आधे से अधिक ऋण विदेशी ऋणदाताओं के कारण थे, जब श्रीलंका ने अप्रैल 2022 में कहा था कि इसे चुकाना असंभव होगा।
- संकट में योगदान देने वाले कारकों में वर्ष 2019 में बड़ी कर कटौती, पर्यटन उद्योग पर कोविड-19 महामारी का प्रभाव और यूक्रेन में युद्ध के कारण ईंधन की कमी शामिल है।
- श्रीलंका ने चीन और भारत से सहायता मांगी, जहाँ भारत ने ईंधन के लिये 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर तथा आवश्यक वस्तुओं के आयात के लिये 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की क्रेडिट लाइन दी।
- ऋण वार्ता में चिंताएँ एवं चुनौतियाँ: IMF की शर्तों को पूरा करने के लिये श्रीलंका ने चीन, जापान और भारत सहित बॉण्डधारकों तथा प्रमुख द्विपक्षीय ऋणदाताओं के साथ चर्चा शुरू की।
- श्रीलंका को 2.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर की IMF विस्तारित निधि सुविधा प्राप्त हुई, लेकिन ऋण पुनर्गठन के माध्यम से अपने लेनदारों से ऋण स्थिरता के लिये वित्तपोषण आश्वासन सुरक्षित करना पड़ा।
- उदाहरण के लिये, श्रीलंका ने विदेशी निवेशकों से बकाया ऋण में 30% की कमी करने के लिये कहा, जिससे उसे कुल ऋण में 16.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कमी का अनुमान है।
- पेरिस समूह ने चीन और भारत को यह सुनिश्चित करते हुए समग्र रूप से समझौते में लाने का प्रयास किया है कि किसी भी देश को पक्षपातपूर्ण शर्तें न प्राप्त हों।
- चीन परंपरागत रूप से गोपनीय शर्तों के साथ द्विपक्षीय वार्ता करता रहा है, जबकि भारत को एक साझा मंच में शामिल होने को लेकर चिंता थी क्योंकि इसका हिंद महासागर क्षेत्र में सैन्य और रणनीतिक हितों पर प्रभाव पड़ सकता है।
- श्रीलंका को 2.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर की IMF विस्तारित निधि सुविधा प्राप्त हुई, लेकिन ऋण पुनर्गठन के माध्यम से अपने लेनदारों से ऋण स्थिरता के लिये वित्तपोषण आश्वासन सुरक्षित करना पड़ा।
चीन-श्रीलंका संबंध की प्रगाढ़ता:
- श्रीलंका का सबसे बड़ा ऋणदाता:
- चीन श्रीलंका का सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋणदाता है।
- श्रीलंका अपने विदेशी ऋण के बोझ से निपटने के लिये चीनी ऋण पर बहुत अधिक निर्भर है।
- बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में निवेश:
- चीन ने वर्ष 2006-19 के बीच श्रीलंका की बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में लगभग 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है।
- हिंद महासागर में चीन की स्थिति:
- दक्षिण-पूर्व एशिया और प्रशांत महासागर की तुलना में चीन को दक्षिण एशिया एवं हिंद महासागर में मित्रतापूर्ण जल क्षेत्र प्राप्त है।
- चीन को ताइवान के विरोध, दक्षिण चीन सागर और पूर्वी एशिया में क्षेत्रीय विवादों के अतिरिक्त अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया के साथ असंख्य मतभेदों का सामना करना पड़ता है।
- छोटे राष्ट्रों के बदलते हित:
- श्रीलंका का आर्थिक संकट उसे अपनी नीतियों को चीन के हितों के अनुरूप बनाने के लिये और प्रेरित कर सकता है।
- भारत की चिंताएँ:
- SAGAR पहल का विरोध: चीन द्वारा प्रस्तावित "हिंद महासागर द्वीप देशों के विकास पर फोरम" भारत की SAGAR (क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास) पहल के विरोध में था।
- विकास के मुद्दे: 99 वर्षों की लीज़ के तहत श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन का औपचारिक नियंत्रण है।
- श्रीलंका ने कोलंबो बंदरगाह के चारों ओर एक विशेष आर्थिक क्षेत्र और एक नया आर्थिक आयोग स्थापित करने का निर्णय लिया है, जिसे चीन द्वारा वित्तपोषित किया जाएगा।
- हंबनटोटा और कोलंबो पोर्ट सिटी परियोजना को पट्टे पर दिये जाने से चीनी नौसेना के लिये हिंद महासागर में स्थायी उपस्थिति लगभग-लगभग तय है, यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये चिंता का विषय है।
- भारत को घेरने की चीन की इस रणनीति को स्ट्रिंग्स ऑफ पर्ल्स रणनीति कहा जाता है।
- भारत के पड़ोसी देशों पर प्रभाव: बांग्लादेश, नेपाल और मालदीव जैसे अन्य दक्षिण एशियाई देश भी बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये चीन की ओर रुख कर रहे हैं।
भारत और श्रीलंका के बीच संबंध:
- ऐतिहासिक संबंध: भारत और श्रीलंका के बीच सांस्कृतिक, धार्मिक एवं व्यापारिक संबंधों का एक लंबा इतिहास रहा है।
- दोनों देशों के बीच मज़बूत सांस्कृतिक संबंध हैं, कई श्रीलंकाई लोगों का मानना है कि उनकी विरासत भारत से संबंधित है। बौद्ध धर्म, जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई, श्रीलंका में भी एक प्रमुख धर्म है।
- भारत द्वारा वित्तीय सहायता: भारत ने श्रीलंका में अभूतपूर्व आर्थिक संकट के दौरान श्रीलंका को लगभग 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता प्रदान की थी।
- भारत श्रीलंका के वित्तपोषण और ऋण पुनर्गठन के लिये अपना समर्थन पत्र सौंपने वाला पहला देश बन गया।
- क्षेत्रीय और हिंद महासागरीय संदर्भ: दोनों देश हिंद महासागर क्षेत्र में बसे महत्त्वपूर्ण देश हैं और इन दोनों के बीच के संबंधों को व्यापक क्षेत्रीय तथा हिंद महासागरीय संदर्भ में देखा जाता है।
- आर्थिक और प्रौद्योगिकी सहयोग समझौता (Economic and Technology Cooperation Agreement- ETCA): दोनों देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं को एकीकृत करने तथा विकास को बढ़ावा देने के लिये आर्थिक और प्रौद्योगिकी सहयोग समझौते की संभावनाओं पर विचार कर रहे हैं।
- बहु-परियोजना पेट्रोलियम पाइपलाइन पर समझौता: भारत और श्रीलंका दोनों ने भारत के दक्षिणी भाग से श्रीलंका तक एक बहु-उत्पाद पेट्रोलियम पाइपलाइन की स्थापना पर सहमति जताई है।
- भारत की UPI को अपनाना: श्रीलंका ने भारत की UPI सेवा को अपनाया है, जो दोनों देशों के बीच फिनटेक कनेक्टिविटी को बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
- व्यापार निपटान, अर्थात् व्यापारिक लेन-देन के लिये रुपए के उपयोग से श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को काफी मदद मिली है। यह श्रीलंका की आर्थिक सुधार तथा वृद्धि में मदद करने की दिशा में एक ठोस कदम हैं।
- आर्थिक संबंध: अमेरिका और ब्रिटेन के बाद भारत श्रीलंका का तीसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है। श्रीलंका के 60% से अधिक निर्यात भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौते का लाभ उठाते हैं। भारत श्रीलंका में एक प्रमुख निवेशक भी है।
- रक्षा: भारत और श्रीलंका संयुक्त सैन्य (मित्र शक्ति) और नौसेना अभ्यास (SLINEX) आयोजित करते हैं।
- समूहों में भागीदारी: श्रीलंका बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल (BIMSTEC) तथा दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) सार्क जैसे समूहों का भी सदस्य है जिसमें भारत अग्रणी भूमिका निभाता है।
नोट: भारतीय प्रधानमंत्री और श्रीलंकाई राष्ट्रपति ने हाल ही में श्रीलंका में गृहयुद्ध के कारण रद्द की गई नौका सेवा को लगभग चार दशक बाद फिर से शुरू किया।
- यह नौका तमिलनाडु (भारत) में नागापट्टिनम को श्रीलंका के जाफना में कांकेसंथुराई से जोड़ती है, जिसका लक्ष्य बढ़ी हुई कनेक्टिविटी और साझा सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक संबंधों के माध्यम से दोनों देशों को करीब लाना है।
- यह 60 समुद्री मील की यात्रा लगभग 3.5 घंटे में तय करेगी।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला एलीफेंट पास का उल्लेख निम्नलिखित में से किस मामले के संदर्भ में किया जाता है? (2009) (a) बांग्लादेश उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. भारत-श्रीलंका संबंधों के संदर्भ में विवेचना कीजिये कि किस प्रकार आतंरिक (देशीय) कारक विदेश नीति को प्रभावित करते हैं। (2013) |