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चुनावी बॉण्ड

  • 15 Jul 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

चुनावी बॉण्ड, राजनीतिक दल, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951

मेन्स के लिये:

चुनाव प्रक्रिया पर चुनावी बॉण्ड का प्रभाव, नीतियों के डिज़ाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे

चर्चा में क्यों?  

वर्ष 1999 में नई दिल्ली में स्थापित एक भारतीय गैर-सरकारी संगठन (NGO) एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की एक हालिया रिपोर्ट भारत में राजनीतिक दलों के लिये दान के प्राथमिक स्रोत के रूप में चुनावी बॉण्ड द्वारा निभाई गई महत्त्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालती है।

  • वर्ष 2016-17 और 2021-22 के बीच 7 राष्ट्रीय दलों और 24 क्षेत्रीय दलों को चुनावी बॉण्ड से कुल 9,188.35 करोड़ रुपए की दान राशि प्राप्त हुई। 
    • रिपोर्ट में गुमनाम चुनावी बॉण्ड, प्रत्यक्ष कॉर्पोरेट दान, सांसदों/विधायकों के योगदान, बैठकों, मोर्चों और पार्टी इकाइयों द्वारा संग्रह से प्राप्त दान का विश्लेषण किया गया। 

ADR रिपोर्ट के मुख्य तथ्य: 

  • दान और धन स्रोतों का विश्लेषण:
    • चुनावी बॉण्ड से सबसे अधिक दान, कुल 3,438.8237 करोड़ रुपए, आम चुनाव के वर्ष 2019-20 में प्राप्त हुआ। 
    • वर्ष 2021-22, जिसमें 11 विधानसभा चुनाव हुए, में चुनावी बॉण्ड के माध्यम से 2,664.2725 करोड़ रुपए का दान मिला।
    • विश्लेषण किये गए 31 राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त 16,437.635 करोड़ रुपए के कुल दान में से 55.90% चुनावी बॉण्ड से, 28.07% कॉर्पोरेट क्षेत्र से और 16.03% अन्य स्रोतों से प्राप्त हुए है।
  • राष्ट्रीय दल:  
    • वित्त वर्ष 2017-18 और वित्त वर्ष 2021-22 के बीच राष्ट्रीय दलों ने चुनावी बॉण्ड दान में 743% की वृद्धि देखी गई।
    • इसके विपरीत इसी अवधि के दौरान राष्ट्रीय दलों के कॉर्पोरेट दान में केवल 48% की वृद्धि हुई।
  • क्षेत्रीय दल और चुनावी बॉण्ड योगदान: 
    • क्षेत्रीय दलों को भी अपने चंदे का एक बड़ा हिस्सा चुनावी बॉण्ड से प्राप्त हुआ।
  • चुनावी  बॉण्ड  का सत्ता-पक्षपाती दान: 
    • सत्ता में रहने वाली पार्टी के रूप में भाजपा को राष्ट्रीय राजनीतिक दलों में सबसे अधिक दान मिलता है। भाजपा के कुल दान का 52% से अधिक हिस्सा चुनावी बॉण्ड से प्राप्त हुआ, जिसकी राशि 5,271.9751 करोड़ रुपए थी।
    • कॉन्ग्रेस ने 952.2955 करोड़ रुपए (कुल दान का 61.54%) के साथ दूसरा सबसे बड़ा चुनावी बॉण्ड दान हासिल किया, इसके बाद तृणमूल कॉन्ग्रेस 767.8876 करोड़ रुपए (93.27%) के साथ दूसरे स्थान पर रही।

चुनावी बॉण्ड:  

  • परिचय: 
    • चुनावी बॉण्ड प्रणाली को वर्ष 2017 में एक वित्त विधेयक के माध्यम से पेश किया गया था और इसे वर्ष 2018 में लागू किया गया था।
    • वे दाता की गुमनामी बनाए रखते हुए पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिये व्यक्तियों और संस्थाओं हेतु एक साधन के रूप में काम करते हैं।
  • विशेषताएँ:
    • भारतीय स्टेट बैंक (SBI) 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए तथा 1 करोड़ रुपए मूल्यवर्ग में बॉण्ड जारी करता है।
    • धारक की मांग पर देय और ब्याज मुक्त।
    • भारतीय नागरिकों या भारत में स्थापित संस्थाओं द्वारा क्रय योग्य।
    • व्यक्तिगत रूप से या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से क्रय योग्य।
    • जारी होने की तारीख से 15 दिनों के लिये वैध।
  • अधिकृत जारीकर्त्ता:
    • भारतीय स्टेट बैंक (SBI) अधिकृत जारीकर्त्ता है।
    • चुनावी बॉण्ड नामित SBI शाखाओं के माध्यम से जारी किये जाते हैं।
  • राजनीतिक दलों की पात्रता:
    • केवल वे राजनीतिक दल जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हैं, जिन्होंने पिछले आम चुनाव में लोकसभा या विधानसभा के लिये डाले गए वोटों में से कम-से-कम 1% वोट हासिल किये हों, वे ही चुनावी बॉण्ड हासिल करने के पात्र हैं।
  • क्रय एवं नकदीकरण:
    • चुनावी बॉण्ड डिजिटल या चेक के माध्यम से क्रय किये जा सकते हैं।
    • जबकि नकदीकरण केवल राजनीतिक दल के अधिकृत बैंक खाते के माध्यम से।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही:
    • दलों को भारत निर्वाचन आयोग (ECI) के साथ अपने बैंक खाते का खुलासा करना होगा।
    • पारदर्शिता सुनिश्चित करते हुए दान बैंकिंग चैनलों के माध्यम से किया जाता है।
    • राजनीतिक दल प्राप्त धनराशि के उपयोग के बारे में बताने के लिये बाध्य हैं।
  • लाभ:
    • राजनीतिक दलों की फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ी।
    • दान राशि के उपयोग को बताने की जवाबदेही।
    • नकद लेन-देन को हतोत्साहित करना।
    • दान दाता गुमनामी का संरक्षण।
  • चुनौतियाँ:
    • चुनावी बॉण्ड राजनीतिक दलों को दी जाने वाली दान राशि है जो दानदाताओं और प्राप्तकर्ताओं की पहचान को गुमनाम रखती है। वे जानने के अधिकार से समझौता कर सकते हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 19 के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा है।
    • दान दाता के डेटा तक सरकारी पहुँच के चलते गुमनामी से समझौता किया जा सकता है। इसका तात्पर्य यह है कि सत्ता में मौजूद सरकार इस जानकारी का लाभ उठा सकती है जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को बाधित कर सकता है।
    • अनधिकृत दान की संभावना का उल्लंघन।
    • घोर पूंजीवाद और काले धन के उपयोग का खतरा।
    • घोर पूंजीवाद एक आर्थिक प्रणाली है जो व्यापारियों और सरकारी अधिकारियों के बीच घनिष्ठ, पारस्परिक रूप से लाभप्रद संबंधों की विशेषता है।
    • कॉर्पोरेट संस्थाओं के लिये पारदर्शिता और दान सीमा के संबंध में खामियाँ।
      • कंपनी अधिनियम 2013 के अनुसार, कोई कंपनी तभी राजनीतिक योगदान दे सकती है जब उसका पिछले तीन वित्तीय वर्षों का शुद्ध औसत लाभ 7.5% हो। इस धारा के हटने से शेल कंपनियों के ज़रिये राजनीतिक फंडिंग में काले धन के योगदान को लेकर चिंता बढ़ गई है।

आगे की राह

  • चुनावी बॉण्ड योजना में पारदर्शिता बढ़ाने के उपाय लागू करना।
  • राजनीतिक दलों के लिये स्पष्टीकरण संबंधी सख्त नियम लागू करना और भारत निर्वाचन आयोग को किसी भी प्रकार के दान की जाँच करने तथा बॉण्ड एवं व्यय दोनों के संबंध में अवलोकन करने का प्रावधान किया जाना।
  • संभावित दुरुपयोग, दान सीमा के उल्लंघन और क्रोनी पूंजीवाद तथा काले धन के प्रवाह जैसे जोखिमों को रोकने के लिये चुनावी बॉण्ड में खामियों की पहचान करके उसका हल निकालना।
  • उभरती चिंताओं को दूर करने, बदलते परिदृश्यों के अनुकूल ढलने और अधिक समावेशी निर्णय लेने की प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिये न्यायिक जाँच, आवधिक समीक्षा तथा सार्वजनिक भागीदारी के माध्यम से चुनावी बॉण्ड योजना की समयबद्ध निगरानी करना। 

स्रोत: द हिंदू

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