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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

IMF बेलआउट्स

  • 27 Mar 2023
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

IMF, विशेष आहरण अधिकार

मेन्स के लिये:

IMF बेलआउट्स - लाभ और हानि

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने हाल ही में श्रीलंका की संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था के लिये 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की बेलआउट योजना [विस्तारित निधि सुविधा (EFF) के तहत] की पुष्टि की।

  • गिरती मुद्रा और मूल्य वृद्धि से चिह्नित अपने गंभीर आर्थिक संकट के कारण यह पाकिस्तान के साथ 1.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की बेलआउट योजना के लिये भी बातचीत कर रहा है।

IMF बेलआउट्स:

  • बेलआउट: बेलआउट संभावित दिवालियापन के खतरे का सामना कर रही कंपनी/देश को वित्तीय सहायता देने के लिये एक सामान्य शब्द है।
    • यह ऋण, नकद, बॉण्ड या स्टॉक खरीद के रूप में हो सकता है।
    • एक बेलआउट के लिये प्रतिपूर्ति की आवश्यकता (नहीं) हो सकती है, लेकिन अक्सर अधिक निरीक्षण और नियमों के साथ होती है।
  • IMF बेलआउट्स: देशों की अर्थव्यवस्था को जब व्यापक आर्थिक ज़ोखिम होता है, अधिकांशतः मुद्रा संकट (जैसे कि श्रीलंका का सामना करना पड़ रहा है) का सामना करना पड़ता है तो वे आमतौर पर IMF से मदद मांगते हैं।
    • देश अपने बाह्य ऋण और अन्य दायित्त्वों को पूरा करने, आवश्यक आयात करने और अपनी मुद्राओं के विनिमय मूल्य को बढ़ाने के लिये IMF से ऐसी सहायता मांगते हैं।

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नोट:

  • मुद्रा संकट का सामान्य कारण है:
    • एक देश के केंद्रीय बैंक द्वारा मुद्रा का सकल कुप्रबंधन (अक्सर लोकलुभावन खर्च हेतु और मुद्रा छापने के लिये सत्ताधारी सरकार द्वारा दबाव डाला जाता है)।
    • समग्र मुद्रा आपूर्ति में तेज़ी से वृद्धि, जो बदले में मूल्यों में वृद्धि और मुद्रा के विनिमय मूल्य में गिरावट का कारण बनती है।
  • मुद्रा संकट का परिणाम है:
    • मुद्रा में विश्वास की कमी।
    • आर्थिक गतिविधि में व्यवधान (लोग वस्तुओं और सेवाओं के बदले में मुद्रा स्वीकार करने में संकोच करते हैं)।
    • ऐसी अर्थव्यवस्था में निवेश करने के लिये विदेशियों में अनिच्छा।

IMF:

  • IMF एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो वैश्विक आर्थिक विकास एवं वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा देता है, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहित करता है तथा गरीबी को कम करता है।
    • इसकी स्थापना वर्ष 1945 में ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में की गई थी।
  • मूल रूप से IMF का प्राथमिक लक्ष्य अपने स्वयं के निर्यात को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे देशों द्वारा प्रतिस्पर्द्धी मुद्रा अवमूल्यन को रोकने के लिये अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक समन्वय करना था।
    • यह उन देशों की सरकारों के लिये ऋणदाता हेतु अंतिम विकल्प है, जिन्हें गंभीर मुद्रा संकट से निपटना पड़ता है।
  • भारत ने IMF से सात बार वित्तीय सहायता मांगी है किंतु वर्ष 1993 के बाद से सहायता नहीं मांगी। IMF से लिये गए सभी ऋणों का पुनर्भुगतान मई 2000 तक कर दिया गया था।

IMF बेलआउट कैसे प्रदान करता है?

  • प्रक्रिया:
    • IMF खराब अर्थव्यवस्थाओं को अक्सर विशेष आहरण अधिकार (SDR) के रूप में धन उधार देता है।
      • SDR केवल पाँच मुद्राओं की एक बास्केट का प्रतिनिधित्त्व करते हैं, अर्थात् अमेरिकी डॉलर, यूरो, चीनी युआन, जापानी येन और ब्रिटिश पाउंड।
    • यह उधार कई ऋण कार्यक्रमों जैसे- विस्तारित ऋण सुविधा, लचीली क्रेडिट लाइन, स्टैंड-बाय समझौतों आदि द्वारा किया जाता है।
    • बेलआउट प्राप्त करने वाले देश अपनी परिस्थितियों के आधार पर विभिन्न प्रयोजनों के लिये SDR का उपयोग कर सकते हैं।
  • स्थितियाँ:
    • IMF से ऋण प्राप्त करने की शर्त के रूप में देश को कुछ संरचनात्मक सुधारों को लागू करने के लिये सहमत होना पड़ सकता है।
    • ऋण शर्तों की आलोचना:
      • जनता हेतु बहुत सख्त।
      • अक्सर अंतर्राष्ट्रीय राजनीति से प्रभावित होने का आरोप लगाया जाना।
      • मुक्त-बाज़ार समर्थक अत्यधिक हस्तक्षेपवादी होने के लिये IMF की आलोचना करते हैं।
    • समर्थन:
      • सफल ऋण कई कारकों पर निर्भर करता है; यदि किसी देश की त्रुटिपूर्ण नीतियों, जिसके कारण संकट उत्पन्न हुआ, में कोई बदलाव नहीं किया जाता है, तो IMF द्वारा उसे ऋण प्रदान करने का कोई अर्थ नहीं है।
      • खराब संस्थागत कामकाज और उच्च भ्रष्टाचार वाले देशों में बेलआउट राशि खर्च किये जाने की संभावना सबसे अधिक होती है।

IMF बेलआउट प्रदान करने के प्रभाव:

  • लाभ:
    • वे कठिन आर्थिक परिस्थितियों में देश के अस्तित्त्व को बनाए रखना सुनिश्चित करते हैं और राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय समृद्धि के लिये अधिक हानिकारक उपायों का सहारा लिये बिना भुगतान संतुलन समस्याओं को हल करने में मदद करते हैं।
    • वे उद्योग जिनके विफल होने की संभावना अत्यंत कम होती है, इस प्रकार के उद्योगों के विफल होने की स्थिति में वित्तीय प्रणाली के पूर्ण पतन से बचा जा सकता है।
    • समग्र बाज़ारों के सुचारू संचालन से आवश्यक संस्थानों को दिवालिया होने से बचाया जा सकता है।
    • वित्तीय सहायता के अतिरिक्त IMF किसी देश को आर्थिक सुधारों को लागू करने और अपने संस्थानों को मज़बूत करने में मदद के लिये तकनीकी सहायता एवं विशेषज्ञता प्रदान कर सकता है।
  • हानि:
    • आर्थिक नीतिगत सुधारों हेतु IMF की कठोर शर्तों के परिणामस्वरूप सरकार के खर्च में कमी, करों में वृद्धि आदि हो सकती है जो राजनीतिक रूप से अलोकप्रिय हो सकती है साथ ही सामाजिक अशांति का कारण बन सकती है।
    • IMF बेलआउट की मांग निवेशकों और उधारदाताओं की नज़र में देश की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा सकती है, जिससे देश के लिये अंतर्राष्ट्रीय पूंजी बाज़ार तक पहुँच बनाना और मुश्किल हो जाता है।
    • बार-बार IMF बेलआउट बाह्य वित्तीयन पर निर्भरता की स्थिति पैदा कर सकता है और देशों को अपनी आर्थिक समस्याओं को दूर करने हेतु आवश्यक दीर्घकालिक सुधारों को लागू करने से हतोत्साहित कर सकता है।
    • IMF बेलआउट को किसी सरकार की आर्थिक विफलता की स्वीकारोक्ति के रूप में देखा जा सकता है, जिससे राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति और सरकार का पतन भी हो सकता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. "त्वरित वित्तीयन प्रपत्र (Rapid Financing Instrument)" और "त्वरित ऋण सुविधा (Rapid Credit Facility)" निम्नलिखित में से किस एक के द्वारा उधार दिये जाने के उपबंधों से संबंधित हैं? (2022)

(a) एशियाई विकास बैंक
(b) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
(c) संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम वित्त पहल
(d) विश्व बैंक

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • त्वरित वित्तीयन प्रपत्र (Rapid Financing Instrument- RFI) त्वरित वित्तीय सहायता प्रदान करता है, जो भुगतान संतुलन आवश्यकता हेतु सभी सदस्य देशों के लिये उपलब्ध है। RFI को सदस्य देशों की विविध ज़रूरतों को पूरा करने तथा IMF की वित्तीय सहायता को अधिक लचीला बनाने के लिये एक व्यापक सुधार के हिस्से के रूप में निर्मित किया गया था। त्वरित वित्तीयन प्रपत्र, IMF की पूर्व आपातकालीन सहायता नीति का स्थानापन्न है और इसका उपयोग विभिन्न परिस्थितियों में किया जा सकता है।
  • त्वरित ऋण सुविधा (Rapid Credit Facility- RCF) कम आय वाले देशों को पूर्व निर्धारित शर्तों के साथ तत्काल भुगतान संतुलन (BoP) संबंधी आवश्यकता हेतु ऋण उपलब्ध कराती है, जहाँ एक पूर्ण आर्थिक कार्यक्रम न तो आवश्यक है और न ही संभव है। RCF की स्थापना फंड की वित्तीय सहायता को अधिक लचीला बनाने और संकट के समय कम आय वाले देशों की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एक व्यापक सुधार के हिस्से के रूप में की गई थी।
  • RCF के तहत तीन क्षेत्र हैं: (i) घरेलू अस्थिरता, आपात स्थिति जैसे स्रोतों की एक विस्तृत शृंखला के कारण तत्काल भुगतान संतुलन की ज़रूरतों के लिये एक "नियमित विंडो" (ii) अचानक बाह्य कारकों जैसे कि प्राकृतिक आपदाओं के कारण तत्काल भुगतान संतुलन संबंधी आवश्यकताओं हेतु "बहिर्जात शॉक विंडो" और (iii) एक "बड़ी प्राकृतिक आपदा विंडो" जहाँ क्षति सदस्य देशों के सकल घरेलू उत्पाद के 20% के बराबर या उससे अधिक होने का अनुमान है।
  • अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: द हिंदू

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