डेली न्यूज़ (16 Oct, 2024)



यूक्रेन युद्ध में वन विनाश

प्रिलिम्स के लिये:

स्वियाती होरी राष्ट्रीय उद्यान , देवदार के जंगल , प्रजेवालस्की घोड़े , कार्बन कैप्चर , विश्व बैंक , मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड , सल्फर डाइऑक्साइड , क्लोरोफ्लोरोकार्बन , मृदा अपरदन , पोषक चक्र , ओरांगुटान , पर्यावरण संशोधन सम्मेलन (ENMOD) , जैवविविधता , संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) , वन प्रबंधन परिषद (FSC) , अमेज़न के मुंडुरुकु लोग , लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर सम्मेलन (CITES) , जैविविविधता पर सम्मेलन , जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन , बॉन चैलेंज , पारिस्थितिकी तंत्र बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक (2021-2030)

मेन्स के लिये:

वनों और पर्यावरण पर युद्ध का प्रभाव।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, पूर्वी यूक्रेन के स्वियाती होरी राष्ट्रीय उद्यान में विस्फोट के कारण लगी आग से 80 वर्ष पुराने तीन हेक्टेयर देवदार के वृक्ष नष्ट हो गए।

यूक्रेन युद्ध से वन विनाश कैसे हुआ?

  • व्यापक वन विनाश: पूर्वी यूक्रेन के चीड़ के जंगलों , जिनमें दुर्लभ चाक चीड़ भी शामिल है, को भारी क्षति पहुँची है,लुहांस्क (रूस के द्वारा अधिग्रहित क्षेत्र) क्षेत्र के लगभग 80% चीड़ के जंगल नष्ट हो गए हैं।
    • यूक्रेन में लगभग 425,000 हेक्टेयर वन क्षेत्र खदानों और अप्रयुक्त आयुध से प्रदूषित हो गया है
  • वन्य जीवन पर प्रभाव: इस संघर्ष के कारण विशाल क्षेत्र में वन्यजीव पर्यावास नष्ट हो गए हैं , जिससे हिरण,बोअर, कठफोड़वा और लुप्तप्राय प्रेज़वाल्स्की घोड़े जैसी प्रजातियाँ प्रभावित हुई हैं ।
  • पर्यावरणीय क्षति : युद्ध के कारण लगी वनाग्नि से 6.75 मिलियन मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ , जो आर्मेनिया के वार्षिक उत्सर्जन के बराबर है । 
    • वृक्षों के विनाश के कारण वनों की कार्बन अवशोषण क्षमता नष्ट हो गई है, जिससे पर्यावरणीय क्षति में और वृद्धि हुई
  • मृदा और जल प्रदूषण: युद्ध ने यूक्रेन में मृदा और नदियों को जहरीला बना दिया है , जिससे दीर्घकालिक पर्यावरणीय संकट उत्पन्न हुए हैं। 
    • इससे भूमि निवास और पुनर्जनन के लिये अनुपयुक्त हो गई है।
  • दीर्घकालिक परिणाम: विशेषज्ञों का अनुमान है कि बारूदी सुरंगों को हटाने के प्रयासों में 70 वर्ष लग सकते हैं , तथा इसके बाद वनों के पुनर्जनन में और भी अधिक समय लग सकता है।
  • आर्थिक लागत : विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि वनों और प्राकृतिक संरक्षित क्षेत्रों (जिसमें आर्द्रभूमि भी शामिल है) को कुल क्षति 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है । 
    • इसमें 3.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की प्रत्यक्ष क्षति, 26.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर की व्यापक आर्थिक और पर्यावरणीय लागत तथा 2.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का पुनर्वनीकरण लागत शामिल है।

वन विनाश के परिणाम क्या हैं?

  • वैश्विक तापन : वनों की कटाई वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 11% के लिये ज़िम्मेदार है , जिसमें CO2 ,CH4 (मीथेन) , N2O (नाइट्रस ऑक्साइड) , SO2 (सल्फर डाइऑक्साइड) और क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs) जैसी गैसें शामिल हैं
    • वर्ष 1990 के बाद से, बढ़ती वैश्विक जनसंख्या के भरण-पोषण हेतु कृषि, औद्योगिक उपयोग आदि के लिये परिवर्तन के कारण 420 मिलियन हेक्टेयर वन नष्ट हो चुके हैं ।
  • जलवायु और वर्षा पर प्रभाव : वृक्ष वाष्पोत्सर्जन के माध्यम से वायुमंडल में जल उत्सर्जित करते हैं, जिससे वर्षण होता है। 
    • वनों की कटाई से यह प्रक्रिया कम हो जाती है, जिससे वर्षा कम होती है और जल चक्र में बाधा उत्पन्न होती है, जिससे जलवायु और कृषि पर दोहरे प्रभाव में वृद्धि होती है।
  • स्वच्छ जल स्रोतों का ह्रास : विशेषज्ञों के अनुसार, वनों की कटाई में 1% की वृद्धि के परिणामस्वरूप कुओं और बहती जल धाराओं पर निर्भर ग्रामीण समुदायों में स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता में 0.93% की कमी आती है।
  • संक्रामक रोगों में वृद्धि : वनों की कटाई से मलेरिया और डेंगू जैसी संक्रामक बीमारियों में वृद्धि होती है , क्योंकि यह पारिस्थितिक तंत्र को बाधित करती है और रोग पैदा करने वाले कीटाणुओं के प्रसार को बढ़ावा देती है।
  • मृदा क्षरण: वनों के विनाश से मृदा क्षरण होता है, जिससे कृषि और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को और अधिक नुकसान पहुँचता है
  • जैवविविधता की हानि : वनों की कटाई लाखों वन्यजीवों, पादपों और की कीटों के आवास को नष्ट करने के लिये ज़िम्मेदार है , जिससे प्रजातियाँ सामूहिक विलुप्ति की कगार पर हैं । 
    •  अमेज़न में लगभग 10,000 प्रजातियाँ संकट में हैं, जिनमें 2,800 पशु प्रजातियाँ शामिल हैं । 
    • विशेषकर पाम ऑयल उत्पादन ने ओरांगुटान जैसी प्रजातियों को विलुप्ति के कगार पर पहुँचा दिया है।

वन संरक्षण के लिये क्या पहल की जा सकती है?

  • अंतर्राष्ट्रीय संधियों को सुदृढ़ बनाना: पर्यावरण संशोधन सम्मेलन (ENMOD) जैसी पहलों का समर्थन करना , जो पर्यावरणीय क्षरण को युद्ध की एक विधि के रूप में उपयोग करने  पर प्रतिबंध लगाता है ।
    • युद्ध अपराधों की तरह, शत्रुता के दौरान वृक्षों को जानबूझकर नष्ट करने पर भी अंतर्राष्ट्रीय कानून का विस्तार करके रोक लगायी जानी चाहिये।
  • युद्ध-मुक्त संरक्षण क्षेत्र : संघर्ष क्षेत्रों में शांति पार्क या संरक्षण क्षेत्र स्थापित करना, जहाँ वनों और जैवविविधता को युद्ध के प्रत्यक्ष प्रभावों से संरक्षित किया जा सके।
  • युद्धोत्तर वनरोपण: युद्ध के कारण वनों की क्षति वाले क्षेत्रों में  बड़े पैमाने पर वनरोपण परियोजनाएँ क्रियान्वित करना।
  • युद्ध के दौरान संसाधनों के दोहन को सीमित करना : पर्यावरणीय क्षरण के माध्यम से युद्ध को वित्तपोषित होने से रोकने के लिये, कॉन्फ्लिक्ट डायमंड के व्यापार की तरह ही संघर्षरत लकड़ी के व्यापार पर भी निगरानी रखी जानी चाहिये तथा उसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिये। 
  • शून्य वनोन्मूलन नीतियाँ : "शून्य वनोन्मूलन" नीतियों को लागू करके, कंपनियाँ अपनी आपूर्ति शृंखलाओं को साफ कर सकती हैं , यह सुनिश्चित करते हुए कि लकड़ी, गोमांस, सोया, ताड़ के तेल और कागज जैसी वस्तुओं का उत्पादन ऐसे तरीकों से किया जाता है जो वनोन्मूलन को बढ़ावा न दें।
  • तृतीय-पक्ष प्रमाणन: फॉरेस्ट स्टीवर्डशिप काउंसिल (FSC), एक तृतीय-पक्ष प्रमाणन निकाय, यह गारंटी देने में सहायक साधन हो सकता है कि उपयोग किया जाने वाला कोई भी शुद्ध फाइबर कानूनी, जिम्मेदारीपूर्ण और सामाजिक रूप से प्राप्त किया गया हो।
    • फॉरेस्ट स्टीवर्डशिप काउंसिल (FSC) एक अंतर्राष्ट्रीय, गैर-सरकारी संगठन है जो लकड़ी प्रमाणन के माध्यम से विश्व के वनों के उत्तरदायित्वपूर्ण प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिये समर्पित है ।
  • स्थानीय निवासियों का समर्थन : वनों के संरक्षण में स्थानीय निवासियों का सहयोग महत्त्वपूर्ण है।
    • उदाहरण के लिये, अमेज़न के मुंडुरुकु लोग स्थानीय वनों को कटाई और बांध निर्माण जैसी विनाशकारी परियोजनाओं से बचाने के लिये संघर्ष कर रहे हैं।
  • सतत उपभोग विकल्प : दैनिक रूप से सोचे-समझे विकल्प, जैसे एकल-उपयोग पैकेजिंग से बचना तथा उत्तरदायित्वपूर्वक उत्पादित लकड़ी के उत्पाद का चयन करना, वनों की कटाई को कम करने में सहायता कर सकता है।
    • वनों के संरक्षण के लिये पौधों पर आधारित आहार को कम करने या अपनाने को भी प्रोत्साहित किया जाता है।
  • सरकारी नीतियाँ : लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर सम्मेलन (CITES) , जैविविविधता पर अभिसमय औरजलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन जैसी संधियाँ विश्व स्तर पर वनों के संरक्षण में सहायता कर सकती हैं।

विभिन्न वैश्विक वनरोपण पहल क्या हैं?

निष्कर्ष

यूक्रेन युद्ध ने वनों, वन्यजीवों और पर्यावरण के लिये संकट उत्पन्न किया है, जिससे वैश्विक तापन, पर्यावास और मृदा का क्षरण में वृद्धि हुई है । वनों केविनाश को संबोधित करने के लिये मजबूत अंतर्राष्ट्रीय संधियों, युद्ध के बाद वनीकरण, युद्ध-मुक्त संरक्षण क्षेत्र, शून्य वनोन्मूलन  नीतियों, टिकाऊ उपभोग और वैश्विक स्तर पर वनों के संरक्षण करने के लिये स्थानीय समुदायों के समर्थन की आवश्यकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: वन पारिस्थितिकी तंत्र पर युद्धों के प्रभाव पर चर्चा कीजिये। ऐसे वनों के विनाश के दीर्घकालिक पर्यावरणीय परिणाम क्या हैं?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

UN-REDD+ प्रोग्राम की समुचित अभिकल्पना और प्रभावी कार्यान्वयन महत्त्वपूर्ण रूप से योगदान दे सकते हैं

  1. जैव विविधता का संरक्षण करने में
  2. वन्य पारिस्थितिकी की समुत्थानशीलता में
  3. गरीबी कम करने में

नीचे दिये  गए क्रूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न: 'वन कार्बन भागीदारी सुविधा (फॉरेस्ट कार्बन पार्टनरशिप फेसिलिटि)' के सन्दर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

  1. यह सरकारों, व्यवसायों, नागरिक समाज और देशी जनों (इंडिजिनस पीपल्स) की एक वैश्विक भागीदारी है।
  2. यह धारणीय (सस्टेनेबल) वन प्रबन्धन हेतु पर्यावरण-अनुकूली (ईको-फ्रेंड्ली) और जलवायु अनुकूलन (क्लाइमेट ऐडेप्टेशन) प्रौद्योगिकियों (टेक्नोलॉजीज़) के विकास के लिये वैज्ञानिक वानिकी अनुसंधान में लगे विश्वविद्यालयों, विशेष (इंडिविज़ुअल) वैज्ञानिकों तथा संस्थाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  3. यह देशों की, उनके 'बनोन्मूलन और बन- निम्नीकरण उत्सर्जन कम करने+ [(रिड्यूसिंग एमिसन्स फ्रॉम डीफॉरेस्टेशन ऐंड फॉरेस्ट डिग्रेडेशन+) (REDD+)।' प्रयासों में वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान कर, मदद करती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न. बायोकार्बन फंड इनिशिएटिव फॉर सस्टेनेबल फॉरेस्ट लैंडस्केप्स (BioCarbon Fund Initiative for Sustainable Forest Landscapes)' का प्रबंधन निम्नलिखित में से कौन करता है?

(a) एशिया विकास बैंक
(b) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
(c) संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम
(d) विश्व बैंक

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न: मरुस्थलीकरण के प्रक्रम की जलवायविक सीमाएँ नहीं होती हैं। उदाहरणों सहित औचित्य सिद्ध कीजिये। (2020)

प्रश्न: पर्यटन की प्रोन्नति के कारण जम्मू और काश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के राज्य अपनी पारिस्थितिक वहन क्षमता की सीमाओं तक पहुँच रहे हैं ? समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (2015)


मीथेन के उत्सर्जन और अवशोषण में व्यवधान

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन, मीथेन चक्र, अमेज़न वर्षावन, आर्द्रभूमि , मीथेनोट्रोफिक सूक्ष्मजीव, लैंडफिल, पशुधन, मीथेन हाइड्रेट , ग्लोबल वार्मिंग क्षमता , ग्लोबल वार्मिंग, ट्रोपोस्फेरिक ओज़ोन, एरोबिक डाइज़ेशन, मैंग्रोव, साल्ट मार्श

मेन्स के लिये:

मीथेन चक्र पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव और इसके विपरीत, मीथेन चक्र को संतुलित करने के लिये कदम।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, नए शोध के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण अमेज़न वर्षावन में मीथेन चक्र (मीथेन उत्सर्जन और अवशोषण) बाधित हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप महत्त्वपूर्ण वैश्विक परिणाम होंगे।

  • मीथेन चक्र प्रक्रियाओं की शृंखला को संदर्भित करता है जो पर्यावरण में मीथेन (CH4) के उत्पादन, खपत और उत्सर्जन को नियंत्रित करता है।

मीथेन पर शोध की मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • बाढ़ के मैदान पारिस्थितिकी तंत्र: अमेज़न में बाढ़ के मैदान (जलभराव वाले क्षेत्र) वैश्विक आर्द्रभूमि मीथेन उत्सर्जन में 29% तक का योगदान करते हैं। जलवायु परिवर्तन से मीथेन उत्पादक सूक्ष्मजीवों का खतरा बढ़ जाता है।
  • ऊँचे स्थान वाले वन: अमेज़न में ऊँचे स्थान वाले वन मीथेन सिंक के रूप में कार्य करते हैं। 
    • अध्ययन में पाया गया कि उच्चभूमि वाले वनों की मिट्टी में मीथेन का अवशोषण उष्ण एवं शुष्क परिस्थितियों में 70% तक कम हो गया है, जो मीथेन उत्सर्जन की कमी को प्रदर्शित करता है।
  • मीथेन चक्र: शोध में मीथेनोट्रोफिक सूक्ष्मजीवों की भूमिका पर भी गहनता से अध्ययन किया गया, जो मीथेन का उपभोग करते हैं। 
    • अध्ययन से पता चला कि एरोबिक और एनारोबिक दोनों प्रकार के मीथेन उपभोग करने वाले सूक्ष्मजीव बाढ़ के मैदानों में सक्रिय थे, जिससे अमेज़न में मीथेन चक्र की अंतःक्रियाएँ प्रभावित हुई।

मीथेन चक्र क्या है?

  • आर्द्रभूमि जैसे कई स्रोत हैं जो वायुमंडल में मीथेन (CH4) उत्सर्जित करते हैं। इसके अलावा, ऐसे सिंक या विधियाँ भी हैं जिसके द्वारा मीथेन उत्सर्जन को कम या समाप्त किया जाता है। 
  • मीथेन चक्र की प्रक्रिया मृदा में शुरू होती है जहाँ सूक्ष्मजीवों द्वारा मीथेन गैस का निर्माण होता है ।
  • मृदा द्वारा उत्पादित मीथेन का उपभोग मीथेनोट्रोफ्स  (मीथेन पर निर्भर रहने वाले सूक्ष्मजीव) के द्वारा किया जाता है।
  • मीथेनोजेन्स अधिक मीथेन का निर्माण करते हैं जिनका उपभोग मीथेनोट्रोफ्स द्वारा किया जाता है। 
    • मीथेनोट्रोफ्स शुष्क ऑक्सीजन युक्त मृदा की ऊपरी परतों में रहते हैं, क्योंकि उनकी अंतःक्रिया के लिये ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।
    • उनके भोजन का बुलबुले के रूप में सतह पर उठने के साथ ही वायुमंडल में मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है। 
    • यह अन्य स्रोतों से प्राप्त मीथेन जैसे लैंडफिल, पशुधन और जीवाश्म ईंधन के दोहन से प्राप्त मीथेन में शामिल हो जाती है।
  • पृथ्वी के वायुमंडल से मीथेन को निष्कासित करने का मुख्य तंत्र हाइड्रॉक्सिल रेडिकल (OH) द्वारा क्षोभमंडल के भीतर ऑक्सीकरण है
    • हाइड्रॉक्सिल रेडिकल्स सिंक का एक रूप हैं जो पर्यावरण को प्रदूषक अणुओं से साफ तथा उनका अपघटन करते हैं। इस कारण से OH को 'वायुमंडल का क्लीनर‘ भी कहा जाता है।
  • OH के साथ प्रतिक्रिया करने के बाद, वायुमंडलीय मीथेन रासायनिक प्रतिक्रियाओं की एक लंबी शृंखला द्वारा CO2 में परिवर्तित हो जाती है।
  • क्षोभमंडल में मौजूद कुछ मीथेन समतापमंडल में पहुँच जाती है, जहाँ एक समान प्रक्रिया द्वारा इसे वायुमंडल से बाहर उत्सर्जित कर दिया जाता है।

Methane_Cycle

ग्लोबल वार्मिंग मीथेन चक्र को कैसे प्रभावित कर सकती है?

  • स्रोतों और सिंक में असंतुलन: आदर्श रूप से विश्व में मीथेन के स्रोत और अवशिष्ट कार्बन डाइऑक्साइड की तरह संतुलन स्थापित करते हैं, जबकि मानवीय गतिविधियों के कारण वायुमंडल में मीथेन की सांद्रता वैश्विक स्तर पर बढ़ रही है।
    • वैज्ञानिक चिंतित हैं, क्योंकि जैसे-जैसे ग्रह के तापमान में वृद्धि होगी, मृदा या अन्य स्थानों से और अधिक मीथेन उत्सर्जित होगी, जिससे ग्लोबल वार्मिंग की समस्या और बढ़ेगी।
  • मीथेन क्लैथ्रेट: मीथेन क्रिस्टलों का निर्माण ठंडे, ऑक्सीजन-रहित समुद्री तलछट में होता हैं। क्लैथ्रेट आर्कटिक और उप-आर्कटिक अक्षांशों में स्थायी रूप से जमी हुई मृदा, पर्माफ्रॉस्ट में भी फंस जाते हैं। 
    • क्लैथ्रेट आइस, जिसे मीथेन हाइड्रेट भी कहा जाता है, पानी की बर्फ के समान ठोस और सफेद रंग की होती है। हालाँकि, इस बर्फ में पानी के अणु होते हैं जो मीथेन के अणुओं के चारों ओर जमे होते हैं।
  • क्लैथ्रेट डिपॉज़िट्स (निक्षेपण) की भूमिका: क्लैथ्रेट डिपॉज़िट्स कभी सिंक के रूप में कार्य करते थे जो मीथेन पृथक करते थे। 
    • हालाँकि, जिस प्रकार ग्रह के तापमान में वृद्धि हो रही है, इनमें से कुछ गहरे, ठंडे तलछट पिघल रहे हैं, जिससे मीथेन का उत्सर्जन सतह पर होने लगा है। 
    • क्योंकि CH4 एक ग्रीनहाउस गैस है, जो वायुमंडल में तापमान का अवशोषण कर ग्रह के तामपान में और वृद्धि कर देती है

मीथेन चक्र में व्यवधान के वैश्विक परिणाम क्या हो सकते हैं?

  • ग्लोबल वार्मिंग में योगदानकर्त्ता: कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) के बाद मीथेन जलवायु परिवर्तन के लिये ज़िम्मेदार दूसरी सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस है। 
    • अपनी उच्च ग्लोबल वार्मिंग क्षमता (100 वर्ष की अवधि में कार्बन डाइऑक्साइड से 28 गुना अधिक) के कारण, मीथेन की छोटी मात्रा भी ग्लोबल वार्मिंग में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती है ।
  • ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के प्रयासों पर रोक: संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020 में  कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आने के बावजूद , वायुमंडलीय मीथेन में वृद्धि हुई थी।
  • स्वास्थ्य पर प्रभाव: मीथेन हानिकारक वायु प्रदूषक, ट्रोपोस्फेरिक (क्षोभमण्डलीय) ओज़ोन  की एक प्रमुख पूर्ववर्ती गैस है। 
    • ओजोन विश्व भर में लगभग 1 मिलियन असामयिक श्वसन मृत्यु के लिये ज़िम्मेदार है। 
    • वैश्विक स्तर पर, मीथेन उत्सर्जन में वृद्धि, ट्रोपोस्फेरिक ओज़ोन स्तर में देखी गई वृद्धि के आधे भाग के लिये ज़िम्मेदार है।
  • वायु गुणवत्ता पर प्रभाव: मीथेन उत्सर्जन में वृद्धि से हाइड्रॉक्सिल रेडिकल्स (OH) कम हो जाते हैं, जो वायुमंडलीय प्रदूषकों के लिये एक प्राकृतिक डिटर्जेंट के रूप में कार्य करते हैं। यह कमी अन्य वायु प्रदूषकों को लंबे समय तक बने रहने देती है, जिससे वायु की गुणवत्ता खराब हो जाती है।
  • कृषि पर प्रभाव: मीथेन वायुमंडलीय तापमान में वृद्धि करके तथा ट्रोपोस्फेरिक ओज़ोन का निर्माण कर प्रतिवर्ष 15% तक मुख्य फसलों की हानि में योगदान प्रदान करती है।
  • आर्थिक प्रभाव: जलवायु परिवर्तन और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर मीथेन के प्रभाव के कारण अत्यधिक गर्मी के कारण वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष लगभग 400 मिलियन घंटों का कार्य प्रभावित होता है ।
  • जैव विविधता के लिये खतरा: मीथेन से प्रेरित जलवायु परिवर्तन से पारिस्थितिकी तंत्र बाधित होता है, जिससे प्रजातियों के वितरण में बदलाव होता है, जैव विविधता की हानि को दर्शाता है, साथ ही पारिस्थितिकी तंत्र में अस्थिरता आती है, जिससे पौधों और पशुओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

हम मीथेन चक्र को कैसे संतुलित कर सकते हैं?

  • उन्नत लैंडफिल डिज़ाइन: लैंडफिल में लाइनिंग प्रणालियों और गैस संग्रहण कुओं का उपयोग ऊर्जा उपयोग हेतु मीथेन संग्रहण के लिये किया जा सकता है, बजाय इसके कि उसे वायुमंडल में उत्सर्जित होने दिया जाए।
  • पशुधन प्रबंधन: यह प्रदर्शित किया गया है कि कुछ एंज़ाइम या समुद्री शैवाल जुगाली करने वाले पशुओं से होने वाले मीथेन उत्सर्जन को कम कर सकते हैं, जिससे पशुओं से होने वाले उत्सर्जन को कम करने में सहायता मिल सकती है।
  • एरोबिक उपचार विधियाँ:  एरोबिक डाइज़ेशन जैसी प्रक्रिया द्वारा मीथेन उत्पन्न किये बिना अपशिष्ट जल से कार्बनिक पदार्थों को प्रभावी ढंग से समाप्त किया जा सकता है।
  • चावल के उत्पादन से संबंधित तकनीक: खेतों में जलमग्नता के समय को कम करके, वैकल्पिक रूप से गीला करने और सुखाने (alternative wetting and drying practices) की तकनीकों से चावल उत्पादन में मीथेन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
  • मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन : जैविक उर्वरकों और फसल चक्र के उपयोग के माध्यम से मृदा स्वास्थ्य को बढ़ाने से मृदा में एरोबिक स्थितियों को बढ़ावा देकर मीथेन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है, जो मीथेन उत्पादन के लिये कम अनुकूल हैं।
  • कीट नियंत्रण: जिन क्षेत्रों में दीमक उत्सर्जन काफी अधिक है, वहाँ पर्यावरण अनुकूल कीट नियंत्रण तकनीकों पर शोध से दीमकों की आबादी को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।
  • तटीय पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली: तटीय पारिस्थितिकी तंत्रों, जैसे मैंग्रोव और साल्ट मार्श की सुरक्षा और पुनर्स्थापना से कार्बन को अवशोषित करने की उनकी क्षमता में वृद्धि हो सकती है तथा तलछट से मीथेन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
  • सुरक्षित निष्कर्षण पद्धतियाँ: यदि ऊर्जा के लिये मीथेन हाइड्रेट्स का निष्कर्षण किया जाना है, तो सुरक्षित निष्कर्षण प्रौद्योगिकियों का विकास करना महत्त्वपूर्ण है, जो मीथेन उत्सर्जन को न्यूनतम कर सकें।
  • जीवाश्म ईंधन के उपयोग में कमी: जीवाश्म ईंधन के खनन और उपयोग से जुड़े मीथेन उत्सर्जन को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर स्विच करके समग्र रूप से कम किया जा सकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में मीथेन चक्र के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। मीथेन के प्रमुख स्रोत और सिंक क्या हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के निक्षेपों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन से सही हैं? 

  1. भूमंडलीय तापन के कारण इन निक्षेपों से मीथेन गैस का निर्मुक्त होना प्रेरित हो सकता है।  
  2. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के विशाल निक्षेप उत्तरी ध्रुवीय टुंड्रा में तथा समुद्र अधस्तल के नीचे पाए जाते हैं।   
  3. वायुमंडल में मीथेन एक या दो दशक के बाद कार्बन डाइऑक्साइड में ऑक्सीकृत हो जाती है। 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (d) 

Q. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2019)

  1. कार्बन मोनोऑक्साइड  
  2. मीथेन 
  3. ओज़ोन  
  4. सल्फर  डाइऑक्साइड 

उपर्युक्त में से कौन-से फसल/बायोमास अवशेषों को जलाने के कारण वातावरण में छोड़े जाते हैं?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2, 3 और 4 
(c) केवल 1 और 4 
(d) 1, 2, 3 और 4 

उत्तर: (d) 

मेन्स

प्रश्न. आर्कटिक की बर्फ और अंटार्कटिक के ग्लेशियरों का पिघलना किस तरह अलग-अलग ढंग से पृथ्वी पर मौसम के स्वरुप और मानवीय गतिविधियों पर प्रभाव डालते हैं? स्पष्ट कीजिये। (250 शब्द) (2021)

प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। जलवायु परिवर्तन से भारत कैसे प्रभावित होगा? भारत के हिमालयी और तटीय राज्य जलवायु परिवर्तन से कैसे प्रभावित होंगे? (2017)


पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान के 3 वर्ष पूर्ण

प्रिलिम्स के लिये:

पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी), पर्वतमाला रोपवे, आकांक्षी ब्लॉक कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

पीएम गतिशक्ति योजना के कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दे , भारतीय लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में चुनौतियाँ

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान के तीन वर्ष सफलतापूर्वक पूर्ण होने पर इसे भारत के बुनियादी अवसंरचना के विकास में  एक परिवर्तनकारी कदम बताया।

  • प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि गतिशक्ति मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी और विभिन्न क्षेत्रों में दक्षता को बढ़ावा दे रही है, जिससे लॉजिस्टिक्स, रोज़गार सृजन और नवाचार को लाभ मिल रहा है।

पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान क्या है?

चर्चा में क्यों:

  • इसे वर्ष 2021 में भारत सरकार ने लॉजिस्टिक्स लागत को कम करने के लिये समन्वित और बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं के निष्पादन हेतु महत्त्वाकांक्षी गति शक्ति योजना या ‘नेशनल मास्टर प्लान फॉर मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी प्लान’ लॉन्च किया। यह 100 लाख करोड़ रुपए की एक परिवर्तनकारी पहल है जिसका उद्देश्य अगले पाँच वर्षों में भारत के बुनियादी अवसंरचना में क्रांतिकारी बदलाव लाना है।
  • इसे BISAG-N (भास्कराचार्य राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुप्रयोग एवं भूसूचना विज्ञान संस्थान) द्वारा डिजिटल मास्टर प्लानिंग टूल के रूप में विकसित किया गया है।
    • इसे गतिशील भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) प्लेटफॉर्म पर तैयार किया गया है , जिसमें सभी मंत्रालयों/विभागों की विशिष्ट कार्य योजनाओं के आँकड़ों को एक व्यापक डेटाबेस में शामिल किया गया है।
  • इस योजना का उद्देश्य ज़मीनी स्तर पर कार्य में तेज़ी लाने, लागत को कम करने और रोज़गार सृजन पर ध्यान देने के साथ-साथ आगामी चार वर्षों में बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं की एकीकृत योजना और कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।

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प्रमुख विशेषताएँ:

  • डिजिटल एकीकरण : इसे एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है जिसे 16 मंत्रालयों के प्रयासों को एकीकृत करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, ताकि सभी क्षेत्रों में निर्बाध बुनियादी अवसंरचना परियोजना और कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सके। 
  • बहु-क्षेत्रीय सहयोग : इसमें सागरमाला परियोजना, भारतमाला परियोजना,अंतर्देशीय जलमार्ग, शुष्क बंदरगाह और उड़ान सहित कई प्रमुख कार्यक्रमों से बुनियादी अवसंरचनात्मक पहलों को शामिल किया गया है ।
  • आर्थिक क्षेत्र : आर्थिक उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिये टेक्सटाइल क्लस्टर , फार्मास्युटिकल हब, रक्षा गलियारे और कृषि क्षेत्र जैसे प्रमुख आर्थिक क्षेत्रों को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है ।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: BiSAG-N द्वारा विकसित उन्नत स्थानिक नियोजन उपकरण और इसरो सैटेलाइट मानचित्रण , नियोजन और प्रबंधन के लिये डेटा-संचालित अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।

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पीएम गतिशक्ति को संचालित करने वाले प्रमुख आयाम:

  • राष्ट्रीय मास्टर प्लान सात प्राथमिक आयामों के इर्द-गिर्द घूमता है जो आर्थिक विकास और कनेक्टिविटी को बढ़ावा देते हैं:
  • इन प्रमुख आयामों को ऊर्जा संचरण, आईटी संचार, थोक जल संग्रहण और सीवरेज़, और सामाजिक बुनियादी अवसंरचना जैसे  पूरक क्षेत्रों द्वारा भी समर्थन मिलता है।
  • इन आयामों को एक साथ मिलकर काम करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जिससे पूरे देश में निर्बाध लॉजिस्टिक्स और कनेक्टिविटी सुनिश्चित हो सके ।

पीएम गतिशक्ति के 6 स्तंभ:

  • व्यापकता : यह योजना एक केंद्रीकृत पोर्टल के माध्यम से सभी मंत्रालयों में विद्यमान और नियोजित पहलों को एकीकृत करती है, जिससे महत्त्वपूर्ण आँकड़ों की दृश्यता बनी रहती है और कुशल नियोजन संभव हो पाता है।
  • प्राथमिकता निर्धारण : मंत्रालय अंतर-क्षेत्रीय संपर्क का लाभ उठाकर परियोजनाओं को अधिक प्रभावी ढंग से प्राथमिकता दे सकते हैं, तथा यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के आधार पर संसाधनों का इष्टतम आवंटन किया जाए।
  • अनुकूलन : योजना बुनियादी अवसंरचना में प्रमुख अंतराल की पहचान करती है, परिवहन के लिये सबसे कुशल मार्गों का चयन करने, लागत कम करने और देरी को न्यूनतम करने में मदद करती है।
  • समन्वयन : मंत्रालयों के बीच समन्वय सुनिश्चित करता है कि परियोजनाएँ संरेखित हों और सामंजस्य के साथ काम करें, जिससे अलगाव और असमन्वित प्रयासों के कारण होने वाली देरी से बचा जा सके।
  • विश्लेषणात्मक क्षमताएँ : GIS-आधारित प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध 200 से अधिक डेटा परतों के साथ, पीएम गतिशक्ति बेहतर निर्णय लेने और बुनियादी अवसंरचना की दृश्यता के लिये व्यापक स्थानिक नियोजन उपकरण प्रदान करती है।
  • गतिशील निगरानी : उपग्रह चित्रों के माध्यम से वास्तविक समय पर परियोजना की निगरानी सुनिश्चित करती है कि मंत्रालय प्रगति पर नज़र रख सकें और परियोजनाओं को समय पर पूरा करने के लिये आवश्यक समायोजन कर सकें।

पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान की उपलब्धियाँ क्या हैं?

  • ज़िला-स्तरीय विस्तार: पीएम गतिशक्ति ने अपने प्लेटफॉर्म को 27 आकांक्षी ज़िलों तक विस्तारित किया है, आने वाले महीनों में 750 जिलों तक पहुँचने की योजना है।
  • तकनीकी एकीकरण: भू-स्थानिक उपकरणों और गतिशील डेटा परतों के उपयोग से वास्तविक समय की बुनियादी अवसंरचना नियोजन और निर्णय लेने में काफी सुधार हुआ है।
  • वैश्विक प्रदर्शन: गतिशक्ति आयाम को मध्य एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के 30 देशों में प्रदर्शित किया गया है, और हाल ही में इसे हॉन्गकॉन्ग में UNESCAP सम्मेलन और एशिया प्रशांत व्यापार मंच में प्रदर्शित किया गया था।
  • सामाजिक क्षेत्र एकीकरण: स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय जैसे मंत्रालयों ने MNP का उपयोग करके नए स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं के लिये इंटरनेट-शो क्षेत्रों की पहचान की है और साइटों का मानचित्रण किया है।
    • उत्तर प्रदेश ने नए अस्पतालों और गेहूँ खरीद केंद्रों के लिये स्थल का चयन करने के लिये इस मंच का उपयोग किया है।
  • ग्रामीण और शहरी प्रभाव: गुजरात के दाहोद ज़िले ने कम लागत वाली ड्रिप सिंचाई प्रणाली की योजना बनाने के लिये उपग्रह मानचित्रण का उपयोग किया है, जबकि अरुणाचल प्रदेश ने बिचोम बांध के आसपास  पर्यटन क्षमता विकसित करने के लिये डेटा विज़ुअलाइज़ेशन का लाभ उठाया है।
    • कानपुर, बेंगलुरु और श्रीनगर जैसे शहरों में प्रथम और अंतिम मील कनेक्टिविटी में सुधार के लिये शहरी लॉजिस्टिक्स योजनाएँ विकसित की गई हैं।
  • रोजगार और व्यावसायिक प्रशिक्षण: कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय औद्योगिक क्लस्टरों और विशेष आर्थिक क्षेत्रों के निकट प्रशिक्षण संस्थान स्थापित करने के लिये स्थानों की पहचान करने हेतु गति शक्ति दृष्टिकोण का उपयोग कर रहा है।

पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान की चुनौतियाँ क्या हैं?

  • डेटा एकीकरण और सटीकता: कई मंत्रालयों से वास्तविक समय के डेटा को संयोजित करना कठिन है क्योंकि कुछ डेटा पुराने या अधूरे हैं, जिससे योजना कम प्रभावी हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिये, 13 राज्यों में भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण हो चुका है, जबकि शेष राज्य इस मामले में पीछे हैं, जिससे परियोजना क्रियान्वयन निरंतर नहीं हो पा रहा है।
  • अंतर-मंत्रालयी समन्वय: मंत्रालय प्रायः अलग-अलग पद्वति से कार्य करते हैं, जिससे सड़क और रेलवे जैसी प्रमुख परियोजनाओं में विलंब एवं  संसाधनो के लिये संघर्ष होता है।
    • सागरमाला और भारतमाला परियोजनाओं के क्रियान्वयन में पाया गया कि राज्यों और मंत्रालयों के बीच उचित समन्वय की कमी के कारण प्रगति धीमी हो रही है।
  • विनियामक संबंधी व्यवधान: परियोजनाओं को विशेषतः पर्यावरणीय एवं  भूमि संबंधी  मंजूरी के लिये अनुमोदन प्राप्त करने में विलंब का सामना करना पड़ता है। 
    • मार्ग अनुकूलन के लिये उपकरणों के बावजूद , पहाड़ी क्षेत्रों में विद्युत पारेषण परियोजनाओं को मंजूरी मिलने में समय लगता है, जिससे समग्र प्रगति धीमी हो जाती है।
    • पहाड़ी क्षेत्रों में बिजली एवं सड़क परियोजनाएँ प्राय: पर्यावरण संबंधी चिंताओं, विस्थापन के मुद्दों के साथ-साथ स्थानीय विरोधों के कारण विलंब का सामना करती हैं, जिससे अनुमोदन और प्रगति धीमी हो जाती है।
  • वित्तपोषण एवं संसाधन आवंटन: बड़ी परियोजनाओं के लिये, विशेष रूप से स्थानीय स्तर पर पर्याप्त वित्तपोषण सुनिश्चित करना एक चुनौती है। 
    • कई क्षेत्रों में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) सीमित है, जिससे वित्तीय भार सरकार पर पड़ता है, जिससे परियोजना पूर्ण होने में देरी होती है।
  • कुशल जनशक्ति का अभाव: उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों के विपरीत, सभी राज्यों के पास गतिशक्ति प्लेटफॉर्म का पूर्ण उपयोग करने के लिये आवश्यक तकनीक या कुशल कर्मचारी नहीं हैं, जो इसका प्रभावी ढंग से उपयोग करते हैं।
  • परियोजना निगरानी एवं जवाबदेही: यद्यपि यह प्लेटफॉर्म वास्तविक समय पर ट्रैकिंग की अनुमति देता है, किंतु परियोजना अद्यतन हमेशा नियमित नहीं होते, जिससे पूर्ण होने में देरी होती है। 
    • उदाहरण के लिये, कई ज़िलों में ग्रामीण सड़क परियोजनाओं पर उचित तरीके से नज़र नहीं रखी जाती परिणामस्वरूप प्रगति धीमी हो जाती है।

पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान के कार्यान्वयन को कैसे बढ़ाया जा सकता है?

  • वास्तविक समय डेटा में सुधार: मंत्रालयों को परियोजना डेटा को सटीक एवं अद्यतन रखने के लिये उपग्रह मानचित्रण के साथ भू-स्थानिक डेटा के अपने उपयोग का विस्तार करना चाहिये।
    • सभी राज्यों में भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण में तेज़ी लाने से परियोजना का सुचारू कार्यान्वयन सुनिश्चित होगा और साथ ही पुरानी जानकारी के कारण होने वाली देरी में कमी भी आएगी।
  • अंतर-मंत्रालयी समन्वय को बढ़ाना: मंत्रालयों के बीच संचार एवं समन्वय को बेहतर बनाने के लिये  अंतर-मंत्रालयी कार्य बल का गठन करना ।
    • गतिशक्ति प्लेटफॉर्म का उपयोग यह सुनिश्चित करने के लिये किया जाएगा कि सभी मंत्रालय वास्तविक समय में एक-दूसरे की गतिविधियों पर नज़र रख सकें, जिससे बड़ी परियोजनाओं के लिये देरी और संसाधन के लिये संघर्ष कम हो सके।
  • प्रौद्योगिकी अपनाने के लिये प्रशिक्षण एवं सहायता प्रदान करना: गतिशक्ति विश्वविद्यालय का विस्तार करना और साथ ही बुनियादी अवसंरचना संबंधी योजनाओं एवं परियोनाओं के प्रबंधन में प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये क्षेत्रीय केंद्र स्थापित करना, यह सुनिश्चित करना कि राज्य गतिशक्ति उपकरणों का पूर्ण उपयोग कर सकें।
  • विनियामक अनुमोदन को सरल बनाना: पर्यावरणीय एवं भूमि मंजूरी प्रक्रियाओं को  तीव्र करने के लिये GIS-आधारित उपकरणों का उपयोग करना ।
    • विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये अनुमोदन में तेज़ी लाने से परियोजनाओं की गति धीमी करने वाली नियामक बाधाओं को कम करने में सहायता प्राप्त होगी।
  • निजी निवेश को आकर्षित करना: बड़े पैमाने की परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये इन्फ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट ट्रस्ट (InvIT), रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स (Reits) एवं सॉवरेन वेल्थ फंड्स का उपयोग करना।
    • इससे सरकार पर वित्तीय भार कम करने, संसाधन आवंटन में सुधार करने के साथ-साथ अधिक निजी एवं अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों को आकर्षित करने में सहायता प्राप्त होगी।
  • सतत प्रथाओं को बढ़ावा देना: सभी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को शामिल करना। 
    • पर्यावरण एवं सामाजिक चिंताओं को दूर करने, प्रतिरोध को कम करने के साथ विशेष रूप से हिमालय जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में सुचारू निष्पादन सुनिश्चित करने के लिये योजना प्रक्रिया में स्थानीय समुदायों को शामिल करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

Q. पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा,विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. 'राष्ट्रीय निवेश और बुनियादी ढाँचा कोष' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. यह नीति आयोग का अंग है।  
  2. वर्तमान में इसके पास 4,00,000 करोड़ रुपए का कोष है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)


प्रश्न. भारत में ‘पब्लिक की इंफ्रास्ट्रक्चर’ पदबंध किसके प्रसंग में प्रयुक्त किया जाता है? (2020)

(a) डिजिटल सुरक्षा अवसंरचना
(b) खाद्य सुरक्षा अवसंरचना
(c) स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा अवसंरचना
(d) दूरसंचार और परिवहन अवसंरचना

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. अधिक तीव्र और समावेशी आर्थिक विकास के लिये बुनियादी अवसंरचना में निवेश आवश्यक है।” भारत के अनुभव के आलोक में चर्चा कीजिये। (2021)