शासन व्यवस्था
वन प्रमाणन
- 06 Mar 2023
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प्रिलिम्स के लिये:वन प्रमाणन, वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन, वन प्रबंधन परिषद। मेन्स के लिये:वन प्रमाणन और मानक। |
चर्चा में क्यों?
हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन के साथ वनों की कटाई विश्व स्तर पर एक गंभीर रूप से संवेदनशील मुद्दा बन गया है, जिससे वन-आधारित उत्पादों के प्रवेश और बिक्री को विनियमित करने हेतु वन प्रमाणन अनिवार्य हो गया है।
- वर्ष 2021 में ग्लासगो जलवायु बैठक में 100 से अधिक देशों ने वर्ष 2030 तक वनों की कटाई को रोकने का संकल्प लिया।
वन प्रमाणन:
- आवश्यकता:
- ग्लोबल वार्मिंग पर नियंत्रण हेतु वन बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं जो विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के माध्यम से उत्सर्जित होती है।
- विश्व के अनेक देश ऐसे किसी भी उत्पाद के उपभोग से बचना चाहते हैं जो वनों की कटाई या अवैध कटाई का परिणाम हो।
- नतीजतन, यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने संबंधित बाज़ारों में वन-आधारित उत्पादों के प्रवेश और बिक्री को नियंत्रित करने वाले कानून पारित किये हैं, जिसके लिये वन प्रमाणन की आवश्यकता है।
- वन स्वीकृति:
- यह वन की निगरानी, लकड़ी और लुगदी उत्पादों तथा गैर-इमारती वन उत्पादों को पहचानने एवं चिह्नित करने का एक तंत्र है।
- यह विभिन्न प्रकार के उचित मानदंडों के विपरीत सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से पर्यावरण प्रबंधन की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने की एक प्रक्रिया है।
- वनों और उन पर आधारित उत्पादों के सतत् प्रबंधन के लिये दो प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मानक हैं:
- फॉरेस्ट स्टीवर्डशिप काउंसिल (FSC) द्वारा विकसित
- वन प्रमाणन समर्थन कार्यक्रम (PEFC) द्वारा विकसित
- FSC प्रमाणीकरण अधिक महँगा होने के साथ-साथ लोकप्रिय भी है।
- दो प्रकार के प्रमाणपत्र:
- वन प्रबंधन (Forest management-FM) एवं अभिरक्षा की शृंखला (Chain of Custody- CoC)
- CoC प्रमाणन का अभिप्राय प्रारंभिक दौर से लेकर बाज़ार आपूर्ति तक संपूर्ण शृंखला में लकड़ी, जैसे- वन उत्पाद की ट्रेसबिलिटी की गारंटी देना है।
- वन प्रबंधन (Forest management-FM) एवं अभिरक्षा की शृंखला (Chain of Custody- CoC)
- भारत में वन प्रमाणन:
- भारत में वन प्रमाणन उद्योग पिछले 15 वर्षों से कार्यरत है।
- वर्तमान में केवल उत्तर प्रदेश में वन प्रमाणित हैं।
- उत्तर प्रदेश वन निगम (UP Forest Corporation- UPFC) के 41 डिवीज़न वन प्रमाणन समर्थन कार्यक्रम (Programme for the Endorsement of Forest Certification-PEFC) द्वारा प्रमाणित हैं, जिसका अर्थ है कि PEFC द्वारा समर्थित मानकों के अनुसार उनका प्रबंधन किया जा रहा है।
- कुछ अन्य राज्यों ने भी प्रमाणपत्र प्राप्त किये, लेकिन बाद में उन सभी ने सदस्यता वापस ले ली।
- भारत में वन प्रमाणन अभी भी प्रारंभिक चरण में है, इसलिये देश वन प्रमाणन के लाभों का उपयोग करने में सक्षम नहीं हो पाया है।
भारत के विशिष्ट मानक क्या हैं?
- भारत केवल प्रसंस्कृत लकड़ी के निर्यात की अनुमति देता है, प्रकाष्ठ (Timber) की नहीं। वास्तव में भारतीय वनों से काटी गई लकड़ी आवास, फर्नीचर और अन्य उत्पादों की घरेलू मांग को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं है।
- भारत के वन प्रत्येक वर्ष लगभग 50 लाख क्यूबिक मीटर लकड़ी का योगदान करते हैं। लकड़ी और लकड़ी के उत्पादों की लगभग 85% मांग वन क्षेत्र के बाहर के पेड़ों (Outside Forests- ToF) से पूरी होती है, जबकि लगभग 10% का आयात किया जाता है।
- भारत की लकड़ी आयात लागत प्रतिवर्ष 50,000-60,000 करोड़ रुपए है।
- चूँकि ToF इतना महत्त्वपूर्ण है कि उनके स्थायी प्रबंधन हेतु नए प्रमाणन मानक विकसित किये जा रहे हैं।
- PEFC के पास पहले से ही TOF प्रमाणन/सर्टिफिकेशन है और वर्ष 2022 में FSC ने भारत-विशिष्ट मानकों को जारी किया जिसमें ToF प्रमाणन शामिल था।