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पाइन नीडल ऊर्जा परियोजनाएँ

  • 17 May 2024
  • 8 min read

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

वनाग्नि को शांत करने और विद्युत उत्पन्न करने के उद्देश्य से उत्तराखंड की अभिनव पाइन नीडल ऊर्जा परियोजनाएँ असफल रही हैं। इनकी विशाल क्षमता के बावजूद, तकनीकी और व्यावहारिक चुनौतियों ने उनकी सफलता में बाधा उत्पन्न की है।

पाइन नीडल ऊर्जा परियोजनाएँ क्या हैं?

  • पाइन नीडल उर्जा परियोजनाएँ: वर्ष 2021 में उत्तराखंड राज्य सरकार ने जैव-ऊर्जा परियोजनाओं के तहत विद्युत परियोजनाएँ स्थापित करने हेतु एक योजना की घोषणा की, जो विद्युत उत्पन्न करने के लिये ईंधन के रूप में पाइन नीडल का उपयोग करेगी।
    • मूल योजना का उद्देश्य राज्य में तीन चरणों के अंतर्गत 10 किलोवाट से 250 किलोवाट (लगभग 150 मेगावाट) तक की कई इकाइयाँ स्थापित करना था।
    • हालाँकि सरकार को 58 इकाइयाँ स्थापित होने की आशा थी, लेकिन अभी तक केवल 250 किलोवाट (कुल 750 किलोवाट) की केवल छह इकाइयाँ स्थापित की गई हैं।
  • शामिल एजेंसी: उत्तराखंड नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी (Uttarakhand Renewable Energy Development Agency- UREDA)।
  • एक संसाधन के रूप में पाइन नीडल्स की क्षमता: उत्तराखंड का 16.36% वन क्षेत्र पाइन (चीड़) (Pinus roxburghii) के वनों से ढका हुआ है। राज्य में प्रतिवर्ष अनुमानित 15 लाख टन चीड़ का उत्पादन होता है।
    • यदि इसका 40%, कृषि अवशेषों के साथ उपयोग किया जाए तो यह राज्य की विद्युत आवश्यकताओं में महत्त्वपूर्ण रूप से सहायता कर सकता है और बड़ी संख्या में रोज़गार उत्पन्न कर सकता है।
  • पारिस्थितिकीय प्रभाव: एक विदेशी प्रजाति के रूप में चीड़ (नीडल्स) स्थानीय प्रजातियों के पुनर्जनन को नियंत्रित करता है।
    • चीड़ की सुइयों (नीडल्स) को जलाने योग्य लकड़ी के रूप में या ईंधन के रूप में उपयोग करना अधिक सरल और कम प्रदूषणकारी है।

पाइन नीडल से नवीकरणीय ऊर्जा:

  • भारत के उप-हिमालयी क्षेत्र में पाइन नीडल वनाग्नि का जोखिम उत्पन्न करती हैं, साथ ही वे बायो-ऑयल, ब्रिकेट अथवा बायोचार जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में परिवर्तित होने का अवसर भी प्रदान करती हैं। 
    • बायो-ऑयल का उपयोग इंजन या फर्नेस ऑयल के लिये ईंधन के रूप में किया जा सकता है, जबकि ब्रिकेट का उपयोग विद्युत् उत्पादन के लिये ईंट भट्टों अथवा बॉयलर के रूप में किया जा सकता है।
  • भारत के केंद्रीय कृषि इंजीनियरिंग संस्थान के शोधकर्त्ताओं ने पाया कि पाइन नीडल की ज्वलनशीलता उन्हें संभावित रूप से प्रचुर मात्रा में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत बनाती है।
    • इन्हें उच्च कैलोरी मूल्य वाले ब्रिकेट में संकलित किया जा सकता है अथवा पायरोलिसिस के माध्यम से बायो-ऑयल में परिवर्तित किया जा सकता है।
    • बायो-ऑयल का कैलोरी मान 28.52 मेगाजूल/किलोग्राम है और इसका उपयोग इंजनों के लिये मिश्रित ईंधन अथवा फर्नेंस ऑयल के रूप में किया जा सकता है, जो इसे डीज़ल का एक व्यवहार्य विकल्प बनाता है।

पाइन नीडल परियोजनाएँ असफल क्यों रही हैं?

  • तकनीकी सीमाएँ: UREDA के अनुसार, विद्युत् उत्पादन के लिये पाइन नीडल का स्थायी उपयोग करने के लिये उपयुक्त तकनीक अभी भी उपलब्ध नहीं है।
  • संचालन संबंधी कठिनाइयाँ: खड़ी ढलानों, जानवरों के हमलों की संवेदनशीलता और पारिश्रमिक दरों पर अपर्याप्त श्रम के कारण पाइन नीडल को एकत्रित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • इसके अतिरिक्त, पाइन नीडल की नमी गैसीकरण प्रणाली के लिये कम दक्षता और उच्च रखरखाव का कारण बनती है।
    • वर्तमान में उपलब्ध पाइन नीडल का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही एकत्र किया जाता है।

चीड़ पाइन के बारे में मुख्य तथ्य:

Chir_Pine

  • परिवार का नाम: पिनेसिया | वानस्पतिक नाम: पीनस रॉक्सबर्गी।
  • भौगोलिक उत्पत्ति: भारत | पारिस्थितिकी क्षेत्र की उत्पत्तिः इंडोमलय।
  • प्राकृतिक इतिहास: यह हिमालयी क्षेत्र में सबसे महत्त्वपूर्ण शंकुधारी वृक्षों में से एक है जो क्षेत्र की विभिन्न जातियों और आश्रित समुदायों के जीवन को आकार देता है।
    • इसका नाम स्कॉटिश वनस्पतिशास्त्री विलियम रॉक्सबर्ग के नाम पर रखा गया है, जिन्हें भारतीय वनस्पति विज्ञान के संस्थापक पिता के रूप में जाना जाता है।
  • वनस्पति प्रकार: पाइन हिमालय के पर्वतीय शीतोष्ण वनों के लिये पूर्ण रूप से अनुकूलित है।
    • पाइन के वृक्षों का घना वितान (canopy) इसके नीचे अन्य पौधों के विकास को नियंत्रित करता है। हालाँकि, झाड़ियों की कुछ प्रजातियाँ जैसे; रूबस एलिप्टिकस, फ्रैगरिया वेस्का, मायरिका एस्कुलेंटा आदि इन पाइन वनों में जीवित रह सकती हैं।
  • भौगोलिक विस्तार: इनका विस्तार हिमालय पर्वतों में भारत (जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड) सहित भूटान, नेपाल, पाकिस्तान, सिक्किम, अफगानिस्तान और दक्षिणी तिब्बत में है।
  • विशेषताएँ:
    • शंकुधारी वृक्ष-उत्पादक चीड शंकु ,जिम्नोस्पर्म (नग्न बीजी) होते हैं।
    • गहरे भूरे रंग की, मोटी, दरारयुक्त छाल।
    • पतली, लचीली त्रिकोणीय पत्तियाँ जो प्रति टहनी तीन के समूह में होती हैं।
  • वृद्धि की स्थितियाँ:
    • कठोर, सूखा और उच्च तापमान प्रतिरोधी।
    • सूर्य के प्रकाश की अधिक आवश्यकता है।
    •  छोटे पौधों को साप्ताहिक, पानी की आवश्यकता होती है; परिपक्व वृक्षों को मासिक, पानी की आवश्यकता होती है।
    • उपयुक्त स्थान: अपनी विशाल जड़ प्रणाली के कारण विशाल क्षेत्रों के लिये बेहतर अनुकूलित  है।
  • IUCN लाल सूची स्थिति: कम से कम चिंता का विषय

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स

प्रश्न. यदि आप हिमालय से होकर यात्रा करेंगे तो आपको निम्नलिखित में से कौन-सा पौधा वहाँँ प्राकृतिक रूप से उगता हुआ देखने को मिलेगा? (2014)

  1. ओक 
  2. रोडोडेंड्रोन 
  3. चंदन

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: a

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