यूक्रेन के विद्रोही इलाकों को स्वतंत्र क्षेत्रों के रूप में मान्यता
प्रिलिम्स के लिये:यूक्रेन और उसके पड़ोसी, यूक्रेन संकट, रूस, डोनेट्स्क ( Donetsk), लुहान्स्क (Luhansk), मिन्स्क (Minsk) समझौते, ओएससीई (OSCE), नाटो। मेन्स के लिये:द्विपक्षीय समूह और समझौते, भारत के हित पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव, यूक्रेन संकट तथा इसके भू-राजनीतिक प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले की आशंका से उत्पन्न तनाव को समाप्त करने के लिये पश्चिम देशों की ओर से किये गए आह्वान के बावजूद रूस ने पूर्वी यूक्रेन के अलगाववादी क्षेत्रों- डोनेट्स्क और लुहान्स्क को स्वतंत्र क्षेत्रों के रूप में मान्यता दी है।
- इसने उन्हें सैन्य सहायता प्रदान करने का मार्ग प्रशस्त किया, यह पश्चिम को एक सीधी चुनौती है जो यह आशंका पैदा करता है कि रूस यूक्रेन पर आक्रमण कर सकता है।
- पिछले कुछ हफ्तों में तनाव चरम पर है क्योंकि रूस ने शीत युद्ध के बाद से सबसे खराब संकटों में से एक के रूप में यूक्रेन की सीमाओं पर 1,50,000 से अधिक सैनिकों को तैनात किया है।
- इस घोषणा ने मिन्स्क में हस्ताक्षरित वर्ष 2015 के शांति समझौते को तोड़ दिया, जिसमें यूक्रेनी अधिकारियों को विद्रोही क्षेत्रों में व्यापक स्व-शासन की पेशकश करने की आवश्यकता थी।
रूस का रुख:
- इसने मौज़ूदा संकट के लिये उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) को ज़िम्मेदार ठहराया और अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन को रूस के लिये एक संभावित खतरा बताया।
- आरोप लगाया कि यूक्रेन को रूस की ऐतिहासिक भूमि विरासत में मिली थी और सोवियत संघ के पतन के बाद पश्चिम द्वारा रूस को शामिल करने के लिये इस्तेमाल किया गया था।
- वह चाहता है कि पश्चिमी देश यह गारंटी दें कि नाटो यूक्रेन और अन्य पूर्व सोवियत देशों को सदस्य के रूप में शामिल होने की अनुमति नहीं देगा।
- इसने गठबंधन से यूक्रेन में हथियारों की तैनाती रोकने और पूर्वी यूरोप से अपनी सेना वापस लेने की भी मांग की है।
- पश्चिमी देशों ने इस मांग को खारिज कर दिया है।
संकट की पृष्ठभूमि:
- यूक्रेन और रूस सैकड़ों वर्षों के सांस्कृतिक, भाषायी और पारिवारिक संबंध साझा करते हैं।
- रूस और यूक्रेन में कई समूहों के लिये देशों की साझा विरासत एक भावनात्मक मुद्दा है जिसका चुनावी और सैन्य उद्देश्यों के लिये प्रयोग किया जाता है।
- सोवियत संघ के हिस्से के रूप में यूक्रेन रूस के बाद दूसरा सबसे शक्तिशाली सोवियत गणराज्य था और रणनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक रूप से काफी महत्त्वपूर्ण था।
- पूर्वी यूक्रेन का डोनबास क्षेत्र (डोनेट्स्क और लुहान्स्क क्षेत्र) वर्ष 2014 से रूसी समर्थक अलगाववादी आंदोलन का सामना कर रहा है। यह आंदोलन क्रीमिया में रूसी सैन्य हस्तक्षेप के बाद तब शुरू हुआ जब यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप (Crimean Peninsula) पर कब्ज़ा कर लिया गया।
- अप्रैल माह में रूस समर्थक विद्रोहियों ने पूर्वी यूक्रेन क्षेत्र पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया (रूस ने उन्हें हाइब्रिड युद्ध के माध्यम से समर्थन दिया) और मई 2014 में, डोनेट्स्क और लुहान्स्क क्षेत्रों में विद्रोहियों ने यूक्रेन से स्वतंत्रता की घोषणा करने हेतु एक जनमत संग्रह आयोजित किया।
- तब से यूक्रेन के भीतर मुख्य रूप से रूसी भाषी क्षेत्रों (जहाँ 70% से अधिक लोग रूसी बोलते हैं) में विद्रोहियों और यूक्रेनी बलों के बीच गोलाबारी और संघर्ष जारी है, जिसमें लगभग 14,000 से अधिक लोगों की जान चली गई, साथ ही इसके कारण लगभग 1.5 मिलियन लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
- अक्तूबर 2021 के बाद तब से गोलाबारी काफी तेज़ हो गई है, जब रूस ने यूक्रेन के साथ सीमाओं पर सैनिकों को तैनात करना शुरू किया था।
- यदि डोनबास क्षेत्र में स्थिति बिगड़ती है, तो युद्ध की संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता है। युद्ध के प्रकोप को रोकने का एक तरीका यह होगा कि ‘मिन्स्क समझौतों’ को तुरंत लागू किया जाए, जैसा कि रूस ने सुझाव दिया है।
मिन्स्क समझौते:
- दो मिन्स्क समझौते हैं- मिन्स्क-1 और मिन्स्क-2, जिसका नाम बेलारूस की राजधानी मिन्स्क के नाम पर रखा गया है, जहाँ इस संबंध में वार्ता आयोजित हुई थी।
- मिन्स्क-1:
- मिन्स्क-1 को सितंबर 2014 में यूक्रेन त्रिपक्षीय संपर्क समूह [यानी यूक्रेन, रूस और यूरोप सुरक्षा एवं सहयोग संगठन (OSCE)] द्वारा तथाकथित ‘नॉरमैंडी प्रारूप’ में फ्राँस और जर्मनी की मध्यस्थता के साथ लिखा गया था।
- मिन्स्क-1 के तहत यूक्रेन और रूस समर्थित विद्रोहियों ने 12-सूत्रीय युद्धविराम समझौते पर सहमति व्यक्त की, जिसमें कैदियों का आदान-प्रदान, मानवीय सहायता और भारी हथियारों की वापसी शामिल थी।
- हालाँकि दोनों पक्षों द्वारा किये गए उल्लंघन के कारण समझौता लंबे समय तक नहीं चल सका।
- मिन्स्क-2
- जैसे ही विद्रोही यूक्रेन में आगे बढ़े, फरवरी 2015 में, रूस, यूक्रेन, OSCE के प्रतिनिधियों और डोनेट्स्क एवं लुहान्स्क के नेताओं ने एक नए 13-सूत्रीय समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसे अब मिन्स्क-2 समझौते के रूप में जाना जाता है।
- इस नए समझौते में यूक्रेनी कानून के अनुसार तत्काल युद्धविराम, भारी हथियारों की वापसी, OSCE निगरानी, डोनेट्स्क और लुहान्स्क हेतु अंतरिम स्वशासन पर वार्ता के प्रावधान थे।
- इसमें संसद द्वारा विशेष दर्जे की स्वीकृति, लड़ाकों के लिये क्षमा एवं माफी, बंधकों एवं कैदियों के आदान-प्रदान, मानवीय सहायता आदि से संबंधित प्रावधान भी थे।
- हालाँकि इन प्रावधानों को लागू नहीं किया गया है, क्योंकि लोकप्रिय रूप से इस 'मिन्स्क’ समझौते को एक ‘पहेली' के रूप में जाना जाता है। इसका अर्थ है कि यूक्रेन और रूस के बीच समझौते की विरोधाभासी व्याख्याएँ हैं।
इस मुद्दे पर विभिन्न राष्ट्रों का रुख:
- संयुक्त राज्य अमेरिका पहले ही दो अलग-अलग क्षेत्रों में अमेरिकी व्यक्तियों द्वारा "नए निवेश, व्यापार, और वित्तपोषण’’ पर प्रतिबंधों की घोषणा कर चुका है।
- जापान के अमेरिका के नेतृत्व वाले प्रतिबंधों में शामिल होने की संभावना है, जबकि फ्रांँसीसी अधिकारियों के हवाले से रिपोर्टों में कहा गया है कि यूरोपीय संघ (European Union- EU) भी रूस के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई को लेकर चर्चा में है।
- यूरोपीय संघ ने "अंतर्राष्ट्रीय कानून के साथ-साथ मिन्स्क समझौतों के घोर उल्लंघन" पर रूस की निंदा की है।
- यूनाइटेड किंगडम ने और अधिक प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दी है। ऑस्ट्रेलिया ने भी रूस के कार्यों को अस्वीकार्य तथा अनुचित बताया है।
भारत का रुख:
- भारत पश्चिमी शक्तियों द्वारा क्रीमिया में रूस के हस्तक्षेप की निंदा में शामिल नहीं हुआ और इस मुद्दे पर अपना तटस्थ रुख रखा।
- नवंबर 2020 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र (UN) में यूक्रेन द्वारा प्रायोजित एक प्रस्ताव के खिलाफ मतदान करके रूस का समर्थन किया, जिसमें क्रीमिया में कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन की निंदा की गई थी।
- हाल ही में भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यह भी सुझाव दिया कि "शांत और रचनात्मक कूटनीति" समय की आवश्यकता है और तनाव को बढ़ाने वाले किसी भी कदम से बचना चाहिये।
- रूस ने भारत के रुख का स्वागत किया है।
आगे की राह
- स्थिति का एक व्यावहारिक समाधान मिन्स्क शांति प्रक्रिया को पुनर्जीवित करना है, अत: पश्चिम (अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों) को दोनों पक्षों से बातचीत फिर से शुरू करने और सीमा पर सापेक्ष शांति बहाल करने हेतु मिन्स्क शांति समझौते (Minsk Peace Process) के अनुसार अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिये प्रेरित करना चाहिये।
- व्यवहार में मिन्स्क समझौता आदर्श स्थिति से काफी दूर की बात है। यह एक आधार रेखा हो सकती है जिससे मौजूदा संकट का एक राजनयिक समाधान खोजा जा सकता है तथा इसे पुनर्जीवित करना 'एकमात्र मार्ग हो सकता है जिसका पालन करके शांति को स्थापित किया जा सकता है' जैसा कि फ्रांँसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने कहा है।
- यूक्रेन के लिये यह अपनी सीमाओं पर नियंत्रण हासिल करने तथा रूसी आक्रमण के खतरे को प्रतिसंतुलित करने में मदद कर सकता है, जबकि रूस के लिये यह सुनिश्चित करने का एक तरीका हो सकता है कि यूक्रेन कभी नाटो का हिस्सा न बने और यह सुनिश्चित करे कि रूसी भाषा व संस्कृति यूक्रेन में एक नए संघीय संविधान के तहत संरक्षित हैं।