इन्फोग्राफिक्स
भारतीय राजनीति
केंद्र ने CAA कार्यान्वयन के लिये नियमों को अधिसूचित किया
प्रिलिम्स के लिये:नागरिकता संशोधन अधिनियम, नागरिकता अधिनियम, 1955, भारत में नागरिकता प्राप्त करने के मार्ग, विदेशी अधिनियम, 1946, छठी अनुसूची, इनर लाइन परमिट, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर, असम समझौता। मेन्स के लिये:नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 से संबंधित चिंताएँ। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के नियमों को अधिसूचित किया, जिससे दिसंबर 2019 में संसद द्वारा पारित होने के 4 वर्ष बाद इसके कार्यान्वयन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- CAA, 2019 एक भारतीय कानून है जो पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान से छह धार्मिक अल्पसंख्यकों: हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी एवं ईसाई से संबंधित प्रवासियों के लिये भारतीय नागरिकता का मार्ग प्रदान करता है।
नागरिकता संशोधन कानून को लेकर सरकार द्वारा जारी किये गए नियम क्या हैं?
- ऐतिहासिक संदर्भ: सरकार ने शरणार्थियों की दुर्दशा को दूर करने के लिये पहले भी कदम उठाए हैं, जिसमें वर्ष 2004 में नागरिकता नियमों में संशोधन तथा वर्ष 2014, वर्ष 2015, वर्ष 2016 एवं वर्ष 2018 में की गई अधिसूचनाएँ भी शामिल हैं।
- CAA नियम 2024: नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6B CAA के अंर्तगत नागरिकता के लिये आवेदन प्रक्रिया का आधार है। भारतीय नागरिकता हेतु पात्र होने के लिये आवेदक को अपनी राष्ट्रीयता, धर्म, भारत में प्रवेश की तिथि एवं भारतीय भाषाओं में से किसी एक में दक्षता का प्रमाण देना होगा।
- मूल देश का प्रमाण: लचीली आवश्यकताएँ विभिन्न दस्तावेज़ों की अनुमति देती हैं, जिनमें जन्म अथवा शैक्षणिक प्रमाण-पत्र, पहचान दस्तावेज़, लाइसेंस, भूमि रिकॉर्ड अथवा उल्लिखित देशों की नागरिकता सिद्ध करने वाला कोई भी दस्तावेज़ शामिल है।
- भारत में प्रवेश की तिथि: आवेदक भारत में प्रवेश के प्रमाण के रूप में 20 अलग-अलग दस्तावेज़ प्रदान कर सकते हैं, जिनमें वीज़ा, आवासीय परमिट, जनगणना पर्चियाँ, ड्राइविंग लाइसेंस, आधार कार्ड, राशन कार्ड, सरकारी अथवा न्यायालयी पत्र, जन्म प्रमाण-पत्र और बहुत कुछ शामिल हैं।
- नियमों के क्रियान्वयन के लिये तंत्र:
- गृह मंत्रालय (MHA) ने CAA के अंर्तगत नागरिकता आवेदनों को संसाधित करने का काम केंद्र सरकार के तहत डाक विभाग एवं जनगणना अधिकारियों को सौंपा है।
- इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) जैसी केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों द्वारा पृष्ठभूमि एवं सुरक्षा जाँच की जाएगी।
- आवेदनों पर अंतिम निर्णय प्रत्येक राज्य में निदेशक (जनगणना संचालन) के नेतृत्व वाली सशक्त समितियों द्वारा किया जाएगा।
- इन समितियों में इंटेलिजेंस ब्यूरो, पोस्ट मास्टर जनरल, राज्य अथवा राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र सहित विभिन्न विभागों के अधिकारी एवं राज्य सरकार के गृह विभाग के साथ ही मंडल रेलवे प्रबंधक के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।
- डाक विभाग के अधीक्षक की अध्यक्षता में ज़िला-स्तरीय समितियाँ आवेदनों की जाँच करेंगी, जिसमें ज़िला कलेक्टर कार्यालय का एक प्रतिनिधि आमंत्रित सदस्य होगा।
- गृह मंत्रालय (MHA) ने CAA के अंर्तगत नागरिकता आवेदनों को संसाधित करने का काम केंद्र सरकार के तहत डाक विभाग एवं जनगणना अधिकारियों को सौंपा है।
- आवेदनों का प्रसंस्करण: केंद्र द्वारा स्थापित अधिकार प्राप्त समिति एवं ज़िला स्तरीय समिति (DLC), राज्य नियंत्रण को दरकिनार करते हुए नागरिकता आवेदनों पर कार्रवाई करेगी।
- DLC आवेदन प्राप्त करेगा और अंतिम निर्णय निदेशक (जनगणना संचालन) की अध्यक्षता वाली अधिकार प्राप्त समिति द्वारा किया जाएगा।
नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 क्या है?
- भारत में नागरिकता: नागरिकता एक व्यक्ति तथा राज्य के बीच कानूनी स्थिति और संबंध है जिसमें विशिष्ट अधिकार एवं कर्त्तव्य शामिल होते हैं।
- भारत में नागरिकता संविधान के अंर्तगत संघ सूची में सूचीबद्ध है और इस प्रकार यह संसद के विशेष क्षेत्राधिकार के अंतर्गत है।
- 26 जनवरी, 1950 को भारत के संविधान द्वारा भारतीय नागरिकता के लिये पात्र लोगों की श्रेणियाँ स्थापित कीं।
- इसने संसद को नागरिकता के अतिरिक्त पहलुओं, जैसे अनुदान तथा अपरिग्रह को विनियमित करने का अधिकार भी प्रदान किया।
- इस अधिकार के अंर्तगत संसद ने नागरिकता अधिनियम, 1955, लागू किया गया।
- 26 जनवरी, 1950 को भारत के संविधान द्वारा भारतीय नागरिकता के लिये पात्र लोगों की श्रेणियाँ स्थापित कीं।
- अधिनियम निर्दिष्ट करता है कि भारत में नागरिकता पाँच तरीकों से हासिल की जा सकती है: भारत में जन्म से, वंश द्वारा, पंजीकरण के माध्यम से, प्राकृतिककरण (भारत में विस्तारित निवास) द्वारा और भारत में क्षेत्र को शामिल करके।
- राजदूतों के लिये भारत में जन्में बच्चे केवल देश में उनके जन्म के आधार पर भारतीय नागरिकता हेतु पात्र नहीं हैं।
- भारत में नागरिकता संविधान के अंर्तगत संघ सूची में सूचीबद्ध है और इस प्रकार यह संसद के विशेष क्षेत्राधिकार के अंतर्गत है।
- परिचय: पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई प्रवासियों को नागरिकता देने के लिये नागरिकता अधिनियम, 1955 में वर्ष 2019 में संशोधन किया गया था।
- संशोधन के तहत, 31 दिसंबर 2014 को भारत में आकर रहने वाले और अपने मूल देश में "धार्मिक उत्पीड़न, भय या धार्मिक उत्पीड़न" का सामना करने वाले प्रवासियों को त्वरित नागरिकता के लिये पात्र बनाया जाएगा।
- यह छह समुदायों के सदस्यों को विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट अधिनियम, 1920 के तहत किसी भी आपराधिक मामले से छूट देता है, जो अवैध रूप से देश में प्रवेश करने तथा समाप्त वीज़ा एवं परमिट पर रहने के लिये सज़ा निर्दिष्ट करता है।
- रियायत (Relaxations): नागरिकता अधिनियम, 1955 के अंतर्गत देशीकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त करने हेतु आवेदक को पिछले 12 महीनों से लगातार और साथ ही पिछले 14 वर्षों में से 11 वर्ष भारत में रहा होना चाहिये।
- वर्ष 2019 के संशोधन निर्दिष्ट छह धर्मों और उपर्युक्त तीन देशों से संबंधित आवेदकों के लिये भारत में 11 वर्ष रहने की शर्त को 6 वर्ष करता है।
- छूट (Exemptions): CAA भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत उल्लिखित क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा, जिसमें असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम राज्यों के जनजातीय क्षेत्र शामिल हैं।
- इसके अतिरिक्त, इनर लाइन परमिट सिस्टम के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों को भी CAA से छूट दी गई है।
- इनर लाइन की अवधारणा पूर्वोत्तर की आदिवासी बहुल पहाड़ियों को मैदानी इलाकों से अलग करती है। यह पहाड़ी क्षेत्रों में प्रवेश करने तथा निवास करने के लिये अन्य क्षेत्रों के भारतीय नागरिकों को इनर लाइन परमिट (ILP) की आवश्यकता होती है।
- वर्तमान में, इनर लाइन परमिट भारतीय नागरिकों सहित सभी व्यक्तियों की अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और नगालैंड की यात्रा को नियंत्रित करता है।
- इस बहिष्कार का उद्देश्य उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में आदिवासी और स्वदेशी समुदायों के हितों की रक्षा करना है, यह सुनिश्चित करना कि इन क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्ति CAA, 2019 के प्रावधानों के तहत नागरिकता नहीं मांग सकते हैं।
- इसके अतिरिक्त, इनर लाइन परमिट सिस्टम के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों को भी CAA से छूट दी गई है।
CAA, 2019 से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?
- संवैधानिक चुनौती: आलोचकों का तर्क है कि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है, जो कानून के समक्ष समानता के अधिकार की गारंटी देता है और धर्म के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है।
- CAA में धर्म के आधार पर नागरिकता देने के प्रावधान को भेदभावपूर्ण माना जाता है।
- मताधिकार से वंचित होने की संभावना: CAA को अक्सर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) से जोड़ा जाता है, जो अवैध अप्रवासियों की पहचान करने हेतु प्रस्तावित राष्ट्रव्यापी अभ्यास है।
- आलोचकों को डर है कि CAA और दोषपूर्ण NRC का संयोजन कई नागरिकों को मताधिकार से वंचित कर सकता है जो अपने दस्तावेज़ साबित करने में असमर्थ हैं।
- अगस्त 2019 में जारी असम NRC के अंतिम मसौदे से 19.06 लाख से अधिक लोगों को बाहर कर दिया गया था।
- आलोचकों को डर है कि CAA और दोषपूर्ण NRC का संयोजन कई नागरिकों को मताधिकार से वंचित कर सकता है जो अपने दस्तावेज़ साबित करने में असमर्थ हैं।
- असम समझौते पर प्रभाव: असम में, असम समझौते, 1985 के साथ CAA की अनुकूलता को लेकर एक विशेष चिंता है।
- समझौते ने असम में नागरिकता निर्धारित करने के लिये मानदंड स्थापित किये जिसमें निवास हेतु विशिष्ट कट-ऑफ तारीखें भी शामिल थीं।
- CAA में नागरिकता देने के लिये अलग समयसीमा का प्रावधान असम समझौते के प्रावधानों के साथ टकराव पैदा कर सकता है, जिससे कानूनी और राजनीतिक जटिलताएँ पैदा हो सकती हैं।
- पंथनिरपेक्षता और सामाजिक एकजुटता: CAA के तहत धर्म को नागरिकता पात्रता के मानदंड के रूप में प्रदर्शित किया गया जो भारत में पंथनिरपेक्षता और सामाजिक एकजुटता पर इसके प्रभाव के संबंध में व्यापक चिंताएँ उत्पन्न करता हैं।
- आलोचकों का तर्क है कि कुछ धार्मिक समुदायों को अन्य समुदायों की तुलना में विशेषाधिकार प्रदान करने से भारत के गठन से संबंधित पंथनिरपेक्ष सिद्धांत प्रभावित हो सकते हैं जिसके परिणामस्वरूप सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है।
- कुछ धार्मिक समुदायों का बहिष्कार: CAA और इससे संबधित बाद के नियमों में अपने मूल देशों में धार्मिक उत्पीड़न का शिकार हुए कुछ धार्मिक समुदायों जैसे श्रीलंकाई तमिल तथा तिब्बती बौद्ध का अपवर्जन (शामिल न करना) किया गया है जो एक चिंता का विषय है।
नोट: पश्चिम बंगाल के मतुआ समुदाय {पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के हिंदू शरणार्थी)} ने CAA के नियमों का स्वागत किया है। यह अधिसूचना मतुआ संप्रदाय के संस्थापक हरिचंद ठाकुर की जयंती के साथ मेल खाती है जिनका जन्म वर्ष 1812 में वर्तमान बांग्लादेश में हुआ था।
आगे की राह
- शरणार्थी हेतु समावेशी नीति: संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन के अनुरूप भारत में धर्म, जाति अथवा किसी अन्य मनमाने मानदंड के आधार रहित एक अधिक समावेशी शरणार्थी नीति विकसित करने की आवश्यकता है।
- साथ ही सभी व्यक्तियों को उनकी पृष्ठभूमि की परवाह किये बिना समान अवसर प्रदान करते हुए नागरिकता कानून में समता और भेदभाव मुक्त सिद्धांतों की प्राथमिकता सुनिश्चित की जानी चाहिये।
- प्रलेखीकरण हेतु सहायता: नागरिकता सत्यापित करने हेतु आवश्यक दस्तावेज़ प्राप्त करने में व्यक्तियों, विशेष रूप से हाशिए पर रहने वाले समुदायों की सहायता के लिये उपाय लागू करने की आवश्यकता है।
- नागरिकता सुनिश्चित करने हेतु व्यक्तियों को नागरिकता सत्यापन प्रक्रिया में मदद करने के लिये सहायता सेवाएँ और संसाधन प्रदान करना।
- हितधारक सहभागिता और संवाद: CAA से संबंधित शिकायतों और चिंताओं का समाधान करने के लिये नागरिक समाज संगठनों, धार्मिक नेताओं तथा इसका विरोध करने वाले समुदायों के साथ सार्थक वार्ता एवं परामर्श की सुविधा प्रदान करना।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अन्य देशों के साथ सहभागिता: धार्मिक उत्पीड़न और मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित चिंताओं का समाधान करने के लिये पड़ोसी देशों, विशेष रूप से पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा बांग्लादेश के साथ वार्ता करना।
- भारत को धार्मिक स्वतंत्रता और सहिष्णुता को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से क्षेत्रीय सहयोग तथा राजनयिक पहल की दिशा में भी कार्य करना चाहिये।
- शैक्षिक और जागरूकता अभियान: शैक्षिक और जागरूकता अभियान के माध्यम से नागरिकता कानूनों के संबंधी में सटीक जानकारी प्रसारित कर गलत सूचना अथवा गलत धारणाओं को दूर करने की आवश्यकता है।
- भारतीय संविधान में निहित समता, पंथनिरपेक्षता और समावेशिता के सिद्धांतों की सार्वजनिक समझ को बढ़ावा देना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
गोबर से बायोCNG का उत्पादन
प्रिलिम्स के लिये:बायोगैस, बायोCNG, गोबरधन, SATAT योजना मेन्स के लिये:बायोगैस ऊर्जा और इसका महत्त्व, बायोCNG, बायोएनर्जी, संबंधित पहल |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
बनासकांठा ज़िला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ, गुजरात गोबर द्वारा बायोCNG (संपीड़ित प्राकृतिक गैस) और उर्वरक का उत्पादन कर रहा है जिससे कृषक वर्ग की आय में वृद्धि हुई। यह पहल डेयरी किसानों के लिये नए आय स्रोत का मार्ग प्रदान करते हुए अपशिष्ट प्रबंधन को संबोधित करती है।
- गुजरात के बनासकाँठा ज़िले में दीसा-थराद राजमार्ग पर स्थित बायोCNG आउटलेट एक अग्रणी पहल को प्रदर्शित करता है जो मवेशियों और भैंसों से प्राप्त गोबर के माध्यम से संचालित भारत का पहला तथा एकमात्र गैस-फिलिंग स्टेशन है।
किसान किस प्रकार गोबर का ईष्टतम प्रयोग कर रहे हैं?
- गोबर से संबंधित तथ्य:
- एक औसत वयस्क गोजातीय पशु प्रतिदिन 15-20 किलोग्राम गोबर त्यागता है जबकि बछड़े से 5-10 किलोग्राम गोबर करते हैं।
- गोजातीय, बोस टॉरस (मवेशी) अथवा बुबैलस बुबैलिस (वॉटर बफैलो) प्रजाति के एक घरेलू पशु को संदर्भित करता है।
- ताज़े गोबर में जल की मात्रा 80-85% होती है तथा एक किलो ताज़ा गोबर शुष्क अवस्था में मात्र 200 ग्राम का हो जाता है।
- ताज़े गोबर में जल के साथ-साथ मीथेन भी होता है जो इसे अवायवीय पाचन (ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में बायोडिग्रेडेबल सामग्री को विखंडित कर बायोगैस का उत्पादन) में बायोगैस उत्पादन के लिये आवश्यक बनाता है।
- मीथेन, बायोगैस का एक प्रमुख घटक होता है जो गोजातीय पशुओं के रूमेन (गोजातीय पशुओं के आमाशय के चार भागों में से पहला) में उनके द्वारा उपभोग की जाने वाली पौधों की सामग्री के किण्वन के दौरान उत्पन्न होता है।
- रुमेन में बैक्टीरिया जैसे रोगाणु, जिन्हें आर्किया (Archaea) के नाम से जाना जाता है, मीथेन उत्पन्न करने के लिये कार्बोहाइड्रेट किण्वन के दौरान उत्पादित कार्बन डाइऑक्साइड और हाइड्रोजन का उपयोग करते हैं।
- एक औसत वयस्क गोजातीय पशु प्रतिदिन 15-20 किलोग्राम गोबर त्यागता है जबकि बछड़े से 5-10 किलोग्राम गोबर करते हैं।
- बायोगैस उत्पादन प्रक्रिया:
- बायोगैस के उत्पादन हेतु ताज़ा गोबर को समान मात्रा में जल के साथ मिश्रित कर घोल बनाया जाता है। घोल 35 दिनों में एक सीलबंद पोत रिएक्टर में अवायवीय पाचन प्रक्रिया से गुज़रता है।
- पाचन प्रक्रिया में चार क्रमिक चरण शामिल होते हैं: हाइड्रोलिसिस (कार्बनिक पदार्थों का साधारण अणुओं में विखंडन), एसिडोजेनेसिस (साधारण अणुओं का वाष्पशील वसा अम्ल में परिवर्तन), एसिटोजेनेसिस (एसिटिक अम्ल, CO2 और हाइड्रोजन का उत्पादन) और मेथनोजेनेसिस (बायोगैस उत्पादन)।
- बायोगैस संपाचित्र (Digesters) पशुओं के अपशिष्ट से मीथेन उत्सर्जन को कम करते हैं जो ग्रीनहाउस गैस के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है।
- एक गाय प्रति वर्ष 150 से 260 पाउंड मीथेन उत्सर्जित कर सकती है। मांस और दूध उत्पादन के लिये वैश्विक स्तर पर 1.5 अरब से अधिक मवेशियों को पाले जाने के साथ, यह उद्योग वैश्विक मानव-जनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के अनुमानित 14.5% के लिये ज़िम्मेदार है।
- बायोगैस के उत्पादन हेतु ताज़ा गोबर को समान मात्रा में जल के साथ मिश्रित कर घोल बनाया जाता है। घोल 35 दिनों में एक सीलबंद पोत रिएक्टर में अवायवीय पाचन प्रक्रिया से गुज़रता है।
- बायोगैस शोधन और संपीड़न:
- कच्चे बायोगैस को विभिन्न प्रक्रियाओं के माध्यम से CO2, H2S और नमी को हटाने के लिये शोधित किया जाता है।
- शुद्ध बायोगैस को 96-97% मीथेन में संपीड़ित करके संग्रहीत किया जाता है और किसान इसे बायोसीएनजी के रूप में 72 रुपए प्रति किलोग्राम पर बेचते हैं।
- उर्वरक उत्पादन के लिये घोल का उपयोग:
- बायोगैस उत्पादन के बाद, घोल को ठोस-तरल विभाजक में निर्जलित किया जाता है।
- अलग किये गए ठोस अवशेषों को एरोबिक रूप से विघटित किया जाता है और रॉक फॉस्फेट तथा फॉस्फेट-घुलनशील बैक्टीरिया को शामिल करके PROM (फॉस्फेट युक्त जैविक खाद) के रूप में बेचा जाता है।
- वैकल्पिक रूप से, विघटित ठोस अवशेषों का उपयोग नीम और अरंडी की खली, गन्ना गन्ना दबाब वाली मृदा तथा माइक्रोबियल उत्पाद मिलाकर खाद उत्पादन के लिये किया जा सकता है।
- तरल भाग को डाइज़ेस्टर में मिश्रण के लिये पुन: उपयोग किया जाता है या तरल-किण्वित जैविक खाद के रूप में बेचा जाता है।
- बायोगैस उत्पादन के बाद, घोल को ठोस-तरल विभाजक में निर्जलित किया जाता है।
- स्केलेबिलिटी और अनुकरणशीलता:
- बायोसीएनजी मॉडल ज़िला सदस्य संघों के गोबर का उपयोग करके अनुकरणीय और स्केलेबल है।
- गुजरात के कैरा संघ के विकेंद्रीकृत मॉडल में फ्लेक्सी बायोगैस संयंत्र स्थापित करना शामिल है, जिसका लक्ष्य 10,000 स्थापना करना है।
- व्यक्तिगत उपयोग के लिये छोटे फ्लेक्सी संयंत्रों से व्यक्तिगत किसानों को लाभ होता है और संभावित रूप से अतिरिक्त आय उत्पन्न होती है।
- चाहे बड़े पैमाने पर बायोसीएनजी संयंत्र हों या छोटे विकेंद्रीकृत मॉडल, गोबर के उपयोग से अतिरिक्त आय की संभावना बढ़ रही है।
बायोगैस:
- बायोगैस एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है, जो ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में कार्बनिक पदार्थ के टूटने पर उत्पन्न होता है। इस प्रक्रिया को अवायवीय पाचन कहते हैं।
- बायोगैस को नवीकरणीय प्राकृतिक गैस (RNG) या बायोमेथेन के रूप में भी जाना जाता है। यह अधिकांश मीथेन (CH4) और कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) से निर्मित है।
प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं, जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है?
- फीडस्टॉक प्रबंधन:
- पशुओं के लिये जैविक फीडस्टॉक की निरंतर आपूर्ति और गुणवत्ता सुनिश्चित करना।
- प्रभावी अपशिष्ट पृथक्करण और संग्रहण प्रणाली लागू करना।
- परिचालन दक्षता:
- व्यक्तिगत किसानों और छोटी सहकारी समितियों के पास बायोसीएनजी संयंत्रों के उचित रखरखाव तथा निगरानी के लिये ज्ञान एवं संसाधनों की कमी हो सकती है।
- प्रशिक्षण कार्यक्रम और आसानी से उपलब्ध तकनीकी सहायता तथा मानकीकृत संचालन प्रक्रियाओं एवं गुणवत्ता नियंत्रण उपायों की स्थापना महत्त्वपूर्ण है।
- व्यक्तिगत किसानों और छोटी सहकारी समितियों के पास बायोसीएनजी संयंत्रों के उचित रखरखाव तथा निगरानी के लिये ज्ञान एवं संसाधनों की कमी हो सकती है।
- तकनीकी और वित्तीय बाधाएँ:
- सब्सिडी, अनुदान, अथवा कम-ब्याज ऋण जैसे वित्तपोषण विकल्पों तक पहुँच बायोसीएनजी संयंत्रों की स्थापना के लिये प्रारंभिक पूंजी बाधाओं को दूर करने में सहायता प्रदान कर सकती है।
- तकनीकी चुनौतियों, जैसे कुशल श्रम एवं बुनियादी ढाँचे की कमी को सार्वजनिक-निजी भागीदारी, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ ही क्षमता-निर्माण कार्यक्रमों के माध्यम से संबोधित किया जा सकता है।
- बायोगैस के लिये भंडारण प्रणालियाँ:
- बायोसीएनजी को अंतिम उपयोगकर्त्ताओं तक पहुँचने के लिये कुशलतापूर्वक संग्रहीत एवं वितरित करने की आवश्यकता है, चाहे वह खाना पकाने, हीटिंग अथवा बिजली उत्पादन के लिये हो।
- बायोसीएनजी की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये गैस होल्डर अथवा सिलेंडर जैसी उचित भंडारण प्रणाली की आवश्यकता होती है।
- बायोसीएनजी को अंतिम उपयोगकर्त्ताओं तक पहुँचने के लिये कुशलतापूर्वक संग्रहीत एवं वितरित करने की आवश्यकता है, चाहे वह खाना पकाने, हीटिंग अथवा बिजली उत्पादन के लिये हो।
- सामाजिक स्वीकार्यता:
- इस गलत धारणा को नियंत्रित करना कि गोबर गैस अस्वास्थ्यकर और असुरक्षित है तथा इसके विपरीत यह व्यापक रूप से अपनाने योग्य भी है।
- ग्रामीण किसानों के बीच विकेंद्रीकृत बायोगैस मॉडल को बढ़ावा देने हेतु शैक्षणिक पहुँच एवं स्वच्छ प्रक्रिया का प्रदर्शन महत्त्वपूर्ण है।
बायोगैस से संबंधित भारत की पहल क्या हैं?
- किफायती परिवहन के लिये सतत विकल्प" योजना
- गोबरधन
- राष्ट्रीय बायोगैस कार्यक्रम:
- नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) राष्ट्रीय बायोगैस कार्यक्रम के अंर्तगत ग्रामीण क्षेत्रों सहित देश में खाना पकाने के उद्देश्यों के लिये बायोगैस संयंत्रों की स्थापना के साथ-साथ वैकल्पिक ईंधन के स्रोत के रूप में इसके उपयोग का समर्थन कर रहा है।
- इस योजना के अंर्तगत MNRE बायोगैस संयंत्रों की स्थापना के लिये संयंत्र के आकार (1-25 घन मीटर/दिन संयंत्र क्षमता) के आधार पर प्रति बायोगैस संयंत्र 9800 रुपए से लेकर 70,400 रुपए केंद्रीय वित्तीय सहायता (सीएफए) प्रदान कर रहा है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त में से कौन फसल/बायोमास अवशेषों को जलाने के कारण वायुमंडल में उत्सर्जित होता है? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्रा का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे ज़हरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
राष्ट्रीय शहरी सहकारी वित्त और विकास निगम लिमिटेड
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय शहरी सहकारी वित्त और विकास निगम लिमिटेड, शहरी सहकारी बैंक, बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002, बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949, एन.एस. विश्वनाथन समिति, लघु वित्त बैंक। मेन्स के लिये:UCB से संबंधित प्रमुख मुद्दे, भारत में बैंकिंग क्षेत्र से संबंधित मुद्दे। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय सहकारिता मंत्री ने शहरी सहकारी बैंकों के लिये एक प्रमुख संगठन, राष्ट्रीय शहरी सहकारी वित्त और विकास निगम लिमिटेड (National Urban Cooperative Finance and Development Corporation Limited- NUCFDC) का उद्घाटन किया।
- NUCFDC को गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ और शहरी सहकारी बैंकिंग क्षेत्र के लिये एक स्व-नियामक संगठन के रूप में कार्य करने हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक की मंज़ूरी मिल गई है।
शहरी सहकारी बैंक क्या हैं?
- परिचय: सहकारी बैंक वित्तीय संस्थान हैं जिनका स्वामित्व और संचालन उनके सदस्यों द्वारा किया जाता है, जो बैंक के ग्राहक भी हैं।
- किसी गाँव या विशिष्ट समुदाय जैसे समुदाय की वित्तीय ज़रूरतों का समर्थन करने के लिये लोग संसाधनों को एकत्रित करने और ऋण जैसी बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करने हेतु एक साथ आते हैं।
- भारत में, वे संबंधित राज्य के सहकारी समिति अधिनियम या बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002 के तहत पंजीकृत हैं।
- शहरी सहकारी बैंक (UCB) शहरी और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में स्थित प्राथमिक सहकारी बैंकों को संदर्भित करते हैं।
- किसी गाँव या विशिष्ट समुदाय जैसे समुदाय की वित्तीय ज़रूरतों का समर्थन करने के लिये लोग संसाधनों को एकत्रित करने और ऋण जैसी बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करने हेतु एक साथ आते हैं।
- इतिहास:
- भारत में शहरी सहकारी बैंकिंग आंदोलन की शुरुआत 19वीं सदी के अंत में हुई, जो ब्रिटेन और जर्मनी में सफल सहकारी प्रयोगों से प्रभावित था।
- बड़ौदा रियासत में "अन्योन्या सहकारी मंडली" को भारत की सबसे प्रारंभिक पारस्परिक सहायता समिति माना जाता है।
- इसके अलावा पहली शहरी सहकारी ऋण सोसायटी अक्तूबर, 1904 में तत्कालीन मद्रास प्रांत के कैनजीवरम (कांजीवरम) में पंजीकृत की गई थी।
- भारत में शहरी सहकारी बैंकिंग आंदोलन की शुरुआत 19वीं सदी के अंत में हुई, जो ब्रिटेन और जर्मनी में सफल सहकारी प्रयोगों से प्रभावित था।
- नियामक: रिज़र्व बैंक बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 22 और 23 के प्रावधानों के तहत शहरी सहकारी बैंकों के बैंकिंग कार्यों को नियंत्रित करता है।
- इसके अलावा राज्य सहकारी बैंक, ज़िला केंद्रीय सहकारी बैंक और शहरी सहकारी बैंक, जो जमा बीमा तथा क्रेडिट गारंटी निगम के साथ पंजीकृत हैं, का बीमा किया जाता है।
- चार स्तरीय संरचना:
- वर्ष 2021 में RBI ने एन.एस. विश्वनाथन समिति की नियुक्ति की जिसने UCB के लिये 4-स्तरीय संरचना का सुझाव दिया।
- टियर-1 में इकाइयों एवं वेतन अर्जक (जमा राशि की परवाह किये बिना) के लिये सभी UCB और 100 करोड़ रुपए तक की जमा राशि वाले अन्य सभी UCB शामिल हैं।
- टियर-2 100 करोड़ रुपए से 1,000 करोड़ रुपए के बीच जमा के UCB शामिल हैं।
- टियर-3 1,000 करोड़ रुपए से 10,000 करोड़ रुपए के बीच जमा राशि वाले UCB शामिल हैं।
- टियर-4 में 10,000 करोड़ रुपए से अधिक जमा वाले UCB हैं।
- वर्ष 2021 में RBI ने एन.एस. विश्वनाथन समिति की नियुक्ति की जिसने UCB के लिये 4-स्तरीय संरचना का सुझाव दिया।
- न्यूनतम पूंजी तथा RWA: एक ही ज़िले में कार्यरत टियर-1, UCB की न्यूनतम शुद्ध संपत्ति ₹2 करोड़ होनी चाहिये तथा अन्य सभी यूसीबी के लिये न्यूनतम शुद्ध संपत्ति ₹5 करोड़ होनी चाहिये।
- टियर-1, UCB को निरंतर आधार पर जोखिम भारित परिसंपत्तियों के 9% के जोखिम भारित संपत्ति अनुपात के लिये न्यूनतम पूंजी को बनाए रखना होगा।
- टियर-2 से 4 UCB को निरंतर आधार पर 12% RWA की भारित परिसंपत्तियों के जोखिम के लिये न्यूनतम पूंजी बनाए रखनी होगी।
- 500 मिलियन रुपए की न्यूनतम शुद्ध संपत्ति वाले UCB तथा 9% और उससे अधिक के जोखिम (भारित) संपत्ति अनुपात को बनाए रखने वाले UCB लघु वित्त बैंकों में स्वैच्छिक संक्रमण के लिये आवेदन करने हेतु पात्र हैं।
- वर्तमान स्थिति: वर्तमान में भारत में 1,514 UCB हैं, जो कृषि के कुल ऋण का 11% भाग हैं। UCB का कुल जमा आधार 5.26 ट्रिलियन रुपए है।
नोट: नाबार्ड को बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के तहत राज्य सहकारी बैंकों, ज़िला केंद्रीय सहकारी बैंकों एवं क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के वैधानिक निरीक्षण के संचालन की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
- विनियामक शक्तियाँ भारतीय रिज़र्व बैंक के पास निहित हैं।
यूसीबी से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- उच्च गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ: गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ UCB (2.10%) के लिये एक महत्त्वपूर्ण चिंता बनी हुई हैं। खराब क्रेडिट मूल्यांकन प्रथाएँ, अपर्याप्त जोखिम प्रबंधन ढाँचे एवं कमज़ोर क्षेत्रों में जोखिमपूर्ण NPA के उच्च स्तर में योगदान करते हैं, जिससे लाभप्रदता और स्थिरता प्रभावित होती है।
- सीमित प्रौद्योगिकी को अपनाना: सीमित तकनीकी अवसंरचना एवं डिजिटल क्षमताएँ UCB की आधुनिक बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करने के साथ बड़े वाणिज्यिक बैंकों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने की क्षमता में बाधा डालती हैं।
- प्रौद्योगिकी में अपर्याप्त निवेश से अक्षमताओं तथा परिचालन जोखिम सहित ग्राहकों की बढ़ती अपेक्षाओं को पूरा करने में कठिनाइयाँ पैदा होती हैं।
- धोखाधड़ी और कुप्रबंधन: कई UCBs (जैसे– शहरी सहकारी बैंक, सीतापुर, उत्तर प्रदेश) में धोखाधड़ी, गबन एवं कुप्रबंधन के मामले सामने आए हैं, जिससे इनमें जमाकर्त्ताओं का विश्वास कम होने के साथ इनकी प्रतिष्ठा खराब हो रही है।
- वित्त वर्ष 2022-23 में RBI ने 8 सहकारी बैंकों के लाइसेंस रद्द कर दिये।
आगे की राह
- पारदर्शिता और जवाबदेहिता: UCBs की विश्वसनीयता को बढाने हेतु इसे अपने संचालन एवं वित्तीय रिपोर्टिंग में अधिक पारदर्शिता अपनाने की आवश्यकता है। इसमें नियमित ऑडिट के साथ सदस्यों के बीच स्पष्ट संचार शामिल है।
- सक्रिय क्रेडिट जोखिम प्रबंधन: ऋण गतिविधियों से संबंधित जोखिमों की पहचान, मूल्यांकन एवं निगरानी के लिये इन्हें मज़बूत क्रेडिट जोखिम प्रबंधन प्रथाओं को लागू करना आवश्यक है।
- इसमें ऋणी का संपूर्ण क्रेडिट मूल्यांकन करना शामिल है, जिसमें उनकी वित्तीय स्थिति, पुनर्भुगतान क्षमता एवं क्रेडिट इतिहास का व्यापक विश्लेषण किया जाता है।
- इसके अतिरिक्त स्पष्ट क्रेडिट नीतियाँ, जोखिम ग्रेडिंग सिस्टम एवं प्रारंभिक चेतावनी संकेतक जैसी पहलों से UCBs को प्रारंभिक चरण में संभावित NPAs का पता लगाने तथा डिफॉल्ट को रोकने के लिये समय पर सुधारात्मक कार्रवाई करने में मदद मिल सकती है।
- क्षमता निर्माण: बैंकिंग परिचालन, जोखिम प्रबंधन और ग्राहक सेवा में अपने कौशल, ज्ञान तथा विशेषज्ञता को बढ़ाने के लिये UCBs को कर्मचारियों के प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण की दिशा में निवेश करना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में ‘शहरी सहकारी बैंकों’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर:(b) |
जैव विविधता और पर्यावरण
टाइगर रिज़र्व में टाइगर सफारी
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, पखराऊ में टाइगर सफारी, कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो, राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, टाइगर सफारी, राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड, केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण, राजाजी टाइगर रिज़र्व, नाहरगढ़ जैविक उद्यान, एशियाई शेर, रॉयल बंगाल टाइगर, पैंथर, लकड़बग्घा, भेड़िये, हिरण, मगरमच्छ, स्लॉथ बीयर, हिमालयी ब्लैक बीयर मेन्स के लिये:कार्बेट टाइगर रिज़र्व के बफर ज़ोन में टाइगर सफारी की स्थापना का महत्त्व। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व के बफर क्षेत्र में उत्तराखंड के पखराऊ में टाइगर सफारी की स्थापना को मंज़ूरी देने के प्रति झुकाव व्यक्त किया।
- न्यायालय ने रेखांकित किया, कि सफारी पार्क केवल स्थानीय रूप से संकटग्रस्त, संघर्षरत या अनाथ बाघों के लिये हैं, चिड़ियाघरों से बचाए गए बाघों के लिये नहीं।
- अदालत ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को CTR के अंदर कथित अनियमितताओं की जाँच पूरी करने के लिये तीन महीने की समय-सीमा दी गई है ।
टिप्पणी:
- वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 को चुनौती देने वाले मामले से संबंधित अपने अंतरिम आदेश में, उच्चतम न्यायालय ने कहा, कि किसी भी सरकार या प्राधिकरण द्वारा चिड़ियाघर या सफारी के निर्माण को सर्वोच्च न्यायालय से अंतिम मंजूरी लेनी होगी।
टाइगर सफारी:
- परिचय:
- टाइगर सफारी बाघों को उनके प्राकृतिक आवास में देखने के लिये चलाया जाने वाला एक अभियान है।
- ये सफारियाँ सामान्यतः राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य जैसे संरक्षित क्षेत्रों में होती हैं, विशेषतः भारत में, जिसमे विश्व की 70% से अधिक जंगली बाघों की आबादी पाई जाती है।
- परिभाषा:
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में "टाइगर सफारी" को परिभाषित नहीं किया गया है।
- इस अधिनियम में कहा गया है कि “अभयारण्य के अंदर वाणिज्यिक पर्यटक लॉज, होटल, चिड़ियाघर और सफारी पार्क का कोई भी निर्माण इस अधिनियम के तहत गठित राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड की पूर्व मंज़ूरी के बिना नहीं किया जाएगा।
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में "टाइगर सफारी" को परिभाषित नहीं किया गया है।
- स्थापना:
- बाघ सफारी की अवधारणा को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा पर्यटन के लिये वर्ष 2012 के दिशा-निर्देशों में प्रस्तुत किया गया था, जिससे बाघ अभयारण्यों के बफर क्षेत्रों में ऐसे प्रतिष्ठानों की अनुमति दी गई थी।
- वर्ष 2016 के NTCA दिशा-निर्देशों में घायल, संघर्षरत या अनाथ बाघों के लिये बाघ अभयारण्यों के बफर एवं सीमांत क्षेत्रों में "टाइगर सफारी" की स्थापना की अनुमति दी, इसमें यह शर्त रखी गई कि चिड़ियाघरों से कोई बाघ शामिल नहीं किया जाना चाहिये।
- वर्ष 2019 में NTCA ने बाघ सफारी के लिये चिड़ियाघरों से जानवरों को लाने की अनुमति दी, जिससे केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण को इन जानवरों का चयन करने का अधिकार मिल गया।
- आवश्यकताएँ:
- वर्ष 2012 NTCA दिशा-निर्देशों के तहत बाघ अभयारण्यों के अंदर पर्यटन दबाव को कम करने की रणनीति के रूप में सफारी पार्कों का समर्थन किया।
- ऐसे जानवरों को दूर के चिड़ियाघरों में स्थानांतरित करने का विरोध किया जा रहा है जो जंगल के लिये उपयुक्त नहीं हैं जैसे कि घायल, अनाथ या संघर्षरत जानवर।
- सफारी पार्क ऐसे जानवरों को उनके प्राकृतिक वातावरण में रखने का एक तरीका प्रदान करते हैं।
- स्थानीय समुदायों की आजीविका की आवश्यकताओं का समर्थन करने वाली गतिविधियों को समायोजित करने के लिये बफर क्षेत्रों को नामित किया गया था।
- सफारी पार्क आय सृजित करने के साथ बाघ संरक्षण हेतु स्थानीय समर्थन को बढ़ावा देने में योगदान करते हैं।
- चिंताएँ:
- चिड़ियाघर के बाघों अथवा बाघों के आवास के भीतर अन्य बंदी जंतुओं को रखने से वन्य बाघों और अन्य वन्यजीवों में बीमारी के संचरण का जोखिम होता है।
- बंदी जंतुओं को अलग-अलग स्थानों पर बंदी बनाकर रखने से उनकी बंदी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आता है। रिज़र्व में “संरक्षित/बचाए गए” बाघों के लिये सफारी पार्क बनाना समग्र रूप से इस प्रजाति के संरक्षण की तुलना में वैयक्तिक बाघों के कल्याण पर अधिक ध्यान केंद्रित करना दर्शाता है जिससे प्राकृतिक आवास प्रबह्वित हो सकते हैं।
- सफारी पार्कों में "संरक्षित/बचाए गए" बाघों को प्रदर्शित करने की अवधारणा संकटग्रस्त जंतुओं को सार्वजनिक दृश्य से दूर रखने के मानदंड से भिन्न है।
- वर्ष 2016 के दिशा-निर्देश में इस संबंध में उल्लिखित है कि सफारी पार्कों में प्लेसमेंट से पहले प्रत्येक "संरक्षित/उपचारित जंतु" के लिये NTCA द्वारा मूल्यांकन अनिवार्य था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय किया कि NTCA की टाइगर सफारी को अनिवार्य रूप से बाघ अभयारण्यों के भीतर चिड़ियाघर के रूप में व्याख्या करना बाघ संरक्षण के उद्देश्य के विपरीत है।
- अभयारण्यों में बाघों के समीप पर्यटकों की संख्या को कम करने के प्रयास विफल रहे हैं क्योंकि नए सफारी मार्ग और भी अधिक पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
कार्बेट टाइगर रिज़र्व:
- परिचय:
- यह उत्तराखंड के नैनीताल ज़िले में अवस्थित है। वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत कॉर्बेट नेशनल पार्क (भारत का पहला राष्ट्रीय उद्यान) में हुई थी, जो कि कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व का एक हिस्सा है।
- इस राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना वर्ष 1936 में हैली नेशनल पार्क के रूप में की गई थी जिसका उद्देश्य लुप्तप्राय बंगाल टाइगर का संरक्षण करना था।
- इसके मुख्य क्षेत्र में कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान जबकि बफर ज़ोन में आरक्षित वन और साथ ही सोन नदी वन्यजीव अभयारण्य शामिल हैं।
- रिज़र्व का पूरा क्षेत्र पहाड़ी है और यह शिवालिक तथा बाह्य हिमालय भूवैज्ञानिक प्रांतों के अंतर्गत आता है।
- रामगंगा, सोननदी, मंडल, पालेन और कोसी, रिज़र्व से होकर बहने वाली प्रमुख नदियाँ हैं।
- यह उत्तराखंड के नैनीताल ज़िले में अवस्थित है। वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत कॉर्बेट नेशनल पार्क (भारत का पहला राष्ट्रीय उद्यान) में हुई थी, जो कि कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व का एक हिस्सा है।
- उत्तराखंड के अन्य प्रमुख संरक्षित क्षेत्र:
- नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान
- फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान
- फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान और नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान एक साथ यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं।
- राजाजी राष्ट्रीय उद्यान
- गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान
राजाजी राष्ट्रीय उद्यान
- परिचय:
- पृष्ठभूमि: उत्तराखंड में तीन अभयारण्यों अर्थात् राजाजी, मोतीचूर एवं चीला को एक बड़े संरक्षित क्षेत्र में मिला दिया गया और प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी सी. राजगोपालाचारी के नाम पर वर्ष 1983 में राजाजी राष्ट्रीय उद्यान का नाम दिया गया; लोकप्रिय रूप से "राजाजी" के नाम से जाने जाते हैं।
- विशेषताएँ:
- यह क्षेत्र एशियाई हाथियों के निवास स्थान की उत्तर पश्चिमी सीमा है।
- वन प्रकारों में साल वन, नदी तटीय वन, चौड़ी पत्ती वाले मिश्रित वन, झाड़ियाँ और घास वाले वन शामिल हैं।
- वर्ष 2015 में इसे टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया था।
- यह शीतकाल में वन गुज्जर जनजातियों का निवास स्थान है।
आगे की राह
- रोग संचरण जोखिमों को संबोधित करना: बंदी जानवरों को बाघ के आवासों में लाने से पहले उनकी कड़ी स्वास्थ्य जाँच और संगरोध प्रोटोकॉल लागू करना।
- कल्याण तथा संरक्षण को संतुलित करना: दिशा-निर्देश एवं प्रबंधन योजनाओं को विकसित करना जो प्रजातियों के संरक्षण को प्राथमिकता दें और जानवरों के कल्याण पर विचार करते हुए प्राकृतिक आवासों में व्यवधान को कम करें।
- निरीक्षण तथा मूल्यांकन को बढ़ाना: वर्ष 2016 के दिशा-निर्देशों में उल्लिखित सतर्क दृष्टिकोण के आधार पर निगरानी एवं मूल्यांकन तंत्र को मज़बूत करना और साथ ही यह भी सुनिश्चित करना कि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) सफारी पार्कों में उनके प्लेसमेंट को मंज़ूरी देने से पहले प्रत्येक "संरक्षित एवं उपचारित जानवरों" का गहन मूल्यांकन करता है।
- संरक्षण लक्ष्यों के साथ संरेखित करना: संरक्षण संगठनों, सरकारी एजेंसियों तथा कानूनी अधिकारियों के बीच संवाद को बढ़ावा देना ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि नीतियाँ एवं प्रथाएँ नैतिक मानकों को बनाए रखते हुए दीर्घकालिक संरक्षण प्रयासों का समर्थन करती हैं।
- सतत् पर्यटन प्रबंधन: बाघ अभयारण्यों पर पर्यटकों की भीड़ के प्रभाव को कम करने के लिये स्थायी पर्यटन प्रथाओं को लागू करें। आगंतुक यातायात को अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने हेतु आगंतुक कोटा, विविध पर्यटक गतिविधियों और बेहतर बुनियादी ढाँचे जैसे विकल्पों का पता लगाएँ।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न.1 निम्नलिखित जोड़ियों पर विचार कीजिये: (2013) राष्ट्रीय उद्यान - उद्यान से होकर बहने वाली नदी
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? (a) 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न.2 निम्नलिखित बाघ आरक्षित क्षेत्रों में "क्रांतिक बाघ आवास (Critical Tiger Habitat)" के अंतर्गत सबसे बड़ा क्षेत्र किसके पास है? (2020) (a) कॉर्बेट उत्तर: C मेन्स:प्रश्न. "विभिन्न प्रतियोगी क्षेत्रों और साझेदारों के मध्य नीतिगत विरोधाभासों के परिणामस्वरूप पर्यावरण के 'संरक्षण तथा उसके निम्नीकरण की रोकथाम' अपर्याप्त रही है।" सुसंगत उदाहरणों सहित टिप्पणी कीजिये। (2018) |
सामाजिक न्याय
गर्भपात
प्रिलिम्स के लियेगर्भपात, फ्रांसीसी संविधान का अनुच्छेद 34, गर्भ का चिकित्सीय समापन (MTP) अधिनियम, 1971, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21। मेन्स के लिये:भारत में गर्भपात कानून, भारत में गर्भपात से संबंधित कानूनी प्रावधान। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में फ्रांसीसी सांसदों ने फ्रांस के संविधान में गर्भपात के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिये एक विधेयक को बहुमत से मंजूरी दे दी है, जिससे यह स्पष्ट रूप से एक महिला को स्वेच्छा से अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने के अधिकार की गारंटी देने वाला एकमात्र देश बन गया है।
- स्वीकृत विधेयक के तहत फ्रांसीसी संविधान के अनुच्छेद 34 में संशोधन हुआ है, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि "कानून में उन शर्तों को निर्धारित किया गया है जिनके द्वारा महिलाओं को गर्भपात का सहारा लेने की स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है।"
नोट:
- यह विधेयक वैश्विक स्तर पर गर्भपात के अधिकारों के हनन के बारे में चिंताओं की प्रतिक्रया में लाया गया था, इससे विशेष रूप से लंबे समय से चले आ रहे गर्भपात अधिकारों के संबंध में वर्ष 2022 के फैसला पलटने के रो वी वेड मामले में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रकाश पड़ा था।
गर्भपात:
- परिचय:
- गर्भपात का आशय जानबूझकर गर्भ की समाप्ति से है, जिसे आमतौर पर गर्भधारण के शुरुआती 28 सप्ताह के दौरान किया जाता है। ऐसा गर्भावस्था के चरण एवं गर्भपात चाहने वाले व्यक्ति की प्राथमिकताओं के आधार पर विभिन्न चिकित्सा प्रक्रियाओं या दवाओं के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
- गर्भपात एक अत्यधिक विवादास्पद और बहस का विषय हो सकता है, जिसमें अक्सर नैतिक, धार्मिक और कानूनी विचार शामिल होते हैं।
- समर्थक:
- गर्भपात अधिकार के समर्थकों का तर्क है कि यह एक मौलिक प्रजनन अधिकार है जो व्यक्तियों को अपने शरीर, स्वास्थ्य और भविष्य के बारे में विकल्प चुनने की अनुमति देता है।
- वे अवांछित गर्भधारण को रोकने, महिलाओं के स्वास्थ्य की रक्षा करने और प्रजनन स्वायत्तता का समर्थन करने के लिये सुरक्षित और कानूनी गर्भपात सेवाओं तक पहुँच के महत्त्व पर ज़ोर देते हैं।
- विरोध:
- गर्भपात के विरोधियों, जिन्हें अक्सर "जीवन के समर्थक (Pro-Life)" कहा जाता है, का मानना है कि गर्भपात नैतिक रूप से गलत है और इसे पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जाना चाहिये।
- वे आम तौर पर तर्क देते हैं कि जीवन गर्भधारण से शुरू होता है और गर्भावस्था को समाप्त करना मानव जीवन लेने के बराबर है, इस प्रकार अजन्मे भ्रूण के अधिकारों का उल्लंघन होता है।
- भारत में गर्भपात से संबंधित कानूनी प्रावधान:
- 1960 के दशक तक, भारत में गर्भपात प्रतिबंधित था और इसका उल्लंघन करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 312 के तहत कारावास या ज़ुर्माना लगाया जाता था।
- शांतिलाल शाह समिति की स्थापना वर्ष 1960 के दशक के मध्य में गर्भपात नियमों की आवश्यकता की जाँच के लिये की गई थी।
- इसके निष्कर्षों के आधार पर, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम, 1971 अधिनियमित किया गया, जिससे सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की अनुमति मिली, महिलाओं के स्वास्थ्य की सुरक्षा हुई और मातृ मृत्यु दर में कमी आई।
- उच्चतम न्यायालय ने महिलाओं के प्रजनन अधिकारों के लिये एक प्रगतिशील कदम में, वैवाहिक बलात्कार को गर्भपात के लिये एक आधार के रूप में मान्यता दी, हालाँकि वैवाहिक बलात्कार को मान्यता नहीं दी गई है।
- MTP अधिनियम, 1971, महिला की सहमति से और एक पंजीकृत चिकित्सक (RMP) की सिफारिश पर, गर्भावस्था के 20 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति देता है। हालाँकि, कानून को वर्ष 2002 और वर्ष 2021 में अद्यतन किया गया था।
- MTP संशोधन अधिनियम, 2021 बलात्कार पीड़िताओं जैसे विशिष्ट मामलों में दो डॉक्टरों की मंजूरी से 20 से 24 सप्ताह के गर्भ में गर्भपात की अनुमति देता है।
- यह तय करने के लिये राज्य स्तरीय मेडिकल बोर्ड का गठन करता है, कि भ्रूण में पर्याप्त असामान्यताओं के मामलों में 24 सप्ताह के बाद गर्भावस्था को समाप्त किया जा सकता है या नहीं।
- यह अविवाहित महिलाओं (शुरुआत में केवल विवाहित महिलाओं) के लिये गर्भनिरोधक प्रावधानों की विफलता को बढ़ाता है, जिससे उन्हें अपनी वैवाहिक स्थिति के बावजूद, अपनी पसंद के आधार पर गर्भपात सेवाएँ लेने की अनुमति मिलती है।
- उम्र और मानसिक स्थिति के आधार पर सहमति की आवश्यकताएँ अलग-अलग होती हैं, जिससे चिकित्सक की निगरानी सुनिश्चित होती है।
- 1960 के दशक तक, भारत में गर्भपात प्रतिबंधित था और इसका उल्लंघन करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 312 के तहत कारावास या ज़ुर्माना लगाया जाता था।
- भारत का संविधान, जो अनुच्छेद 21 के तहत सभी नागरिकों को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। इस अधिकार की व्याख्या भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा महिलाओं के लिये प्रजनन विकल्प और स्वायत्तता के अधिकार को शामिल करने के लिये की गई है।
नोट:
- न्यायमूर्ति के.एस.पुट्टास्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत संघ मामले में, वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के एक हिस्से के रूप में प्रजनन विकल्प चुनने के महिलाओं के संवैधानिक अधिकार को मान्यता दी।
गर्भपात से जुड़ी चिंताएँ क्या हैं?
- असुरक्षित गर्भपात के मामले:
- संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की विश्व जनसंख्या रिपोर्ट 2022 के अनुसार असुरक्षित गर्भपात भारत में मातृ मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है, तथा प्रतिदिन असुरक्षित गर्भपात से संबंधित कारणों से लगभग 8 महिलाओं की मृत्यु हो जाती है।
- विवाहेतर तथा गरीब परिवारों की महिलाओं के पास अवांछित गर्भधारण को समाप्त करने के लिये असुरक्षित अथवा अवैध तरीकों का उपयोग करने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं बचता है।
- पुरुष संतान को प्राथमिकता:
- कन्या भ्रूण का चयनात्मक गर्भपात सबसे आम है जहाँ पुरुष बच्चें को कन्या बच्चें से अधिक महत्त्व दिया जाता है, विशेष रूप से पूर्वी एशिया तथा दक्षिण एशिया के कुछ हिस्सों में (विशेषकर चीन, भारत तथा पाकिस्तान जैसे देशों में)।
- ग्रामीण भारत में चिकित्सा विशेषज्ञ की कमी:
- लैंसेट में वर्ष 2018 के एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2015 तक भारत में प्रतिवर्ष 15.6 मिलियन गर्भपात हुए।
- MTP अधिनियम के अनुसार गर्भपात केवल स्त्री रोग या प्रसूति विज्ञान में विशेषज्ञता वाले डॉक्टरों द्वारा ही किया जाना आवश्यक है।
- हालाँकि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी, 2019-20 की रिपोर्ट की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण भारत में प्रसूति-स्त्री रोग विशेषज्ञों की 70% कमी है।
आगे की राह
- महिलाओं को अनावश्यक बाधाओं अथवा पूर्वधारणा का सामना किये बिना सुरक्षित और विधिपूर्ण गर्भपात सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित की जानी चाहिये।
- इसमें शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में गर्भपात सेवाओं की उपलब्धता का विस्तार करना, व्यापक प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने के लिये स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को प्रशिक्षण देना और MTP अधिनियम के तहत महिलाओं के अधिकारों के संबंध में जागरूकता बढ़ाना शामिल है।
- महिलाओं की सुरक्षित गर्भपात सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने में चिकित्सा व्यवसायी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- गर्भपात सेवाओं की मांग करने वाली महिलाओं को उच्च-गुणवत्ता तथा पूर्वधारणा रहित देखभाल प्रदान करने में स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं का समर्थन करने के साथ-साथ उनकी अन्य नैतिक अथवा कानूनी चिंताओं का समाधान करने के लिये नीतियाँ तैयार की जानी चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. भारत में समय और स्थान के विरुद्ध महिलाओं के लिये निरंतर चुनौतियाँ क्या हैं? (2019) |