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भारतीय राजनीति

छठी अनुसूची एवं इनर लाइन परमिट प्रणाली

  • 11 Jan 2020
  • 13 min read

संदर्भ

हाल ही में इनर लाइन परमिट प्रणाली (Inner Line Permit- ILP) पर भ्रम की स्थिति के कारण नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को लेकर पूर्वोत्तर के राज्यों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ है। ज्ञातव्य है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के जनजातीय क्षेत्रों एवं इनर लाइन परमिट प्रणाली के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों के लिये लागू नहीं हुआ है।

  • 19 दिसंबर, 2019 को मेघालय विधानसभा ने राज्य में इनर लाइन परमिट को लागू करने के लिये केंद्र से आग्रह करने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया। इससे पहले 11 दिसंबर को राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर किये जाने के बाद इनर लाइन परमिट प्रणाली को मणिपुर तक बढ़ा दिया गया था।
  • इनर लाइन परमिट की अवधारणा औपनिवेशिक काल से उत्पन्न हुई। बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर नियमन अधिनियम, 1873 के तहत ब्रिटिश शासन ने बाहरी लोगों के प्रवेश निषेध एवं निर्दिष्ट क्षेत्रों में बाहरी लोगों के रहने को विनियमित किया।
  • चार पूर्वोत्तर राज्यों - अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम और मणिपुर में इनर लाइन परमिट प्रणाली लागू है। कोई भी भारतीय नागरिक इन राज्यों में से किसी में भी बिना परमिट के प्रवेश नहीं कर सकता है जब तक कि वह उस राज्य से संबंधित नहीं हो और न ही वह ILP में निर्दिष्ट अवधि से अधिक रह सकता है।

संविधान की छठी अनुसूची (Sixth Schedule)

  • संविधान की छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के लिये इन राज्यों में जनजातीय लोगों के अधिकारों की रक्षा का प्रावधान करती है। संविधान के अनुच्छेद 244 (2) और अनुच्छेद 275 (1) के तहत यह विशेष प्रावधान किया गया है।
  • 1949 में संविधान सभा द्वारा पारित छठी अनुसूची को पूर्वोत्तर के जनजातीय क्षेत्रों में सीमित स्वायत्तता प्रदान करने के लिये तैयार किया गया था।
  • यह संविधान सभा द्वारा गठित बारदोलोई समिति की रिपोर्टों पर आधारित थी।
  • समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रशासन की एक ऐसी प्रणाली की आवश्यकता थी जो जनजातीय क्षेत्रों को विकसित करने की अनुमति दे।
  • रिपोर्ट में मैदानी इलाकों के लोगों द्वारा इन जनजातीय क्षेत्रों के शोषण से सुरक्षा एवं इनके विशिष्ट सामाजिक रीति-रिवाजों को संरक्षित करने के लिये भी कहा गया है।
  • यह एक स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद और स्वायत्त ज़िला परिषदों (ADCs) के माध्यम से आदिवासियों को विधायी एवं कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करने की स्वतंत्रता देता है।
  • स्वायत्त ज़िला परिषद राज्य के अंदर ऐसे ज़िले हैं जिन्हें केंद्र सरकार ने राज्य विधानमंडल के अंतर्गत स्वायत्तता अलग-अलग रूप में प्रदान किया गया है।

छठी अनुसूची में निहित प्रशासन की विभिन्न विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

  • चार राज्यों असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्त ज़िलों के रूप में गठित किया गया है लेकिन वे संबंधित राज्य के कार्यकारी प्राधिकरण से बाहर नहीं हैं।
  • राज्यपाल को स्वायत्त ज़िलों को गठित करने और पुनर्गठित करने का अधिकार है। अतः राज्यपाल इनके क्षेत्रों को बढ़ा या घटा सकता है या इनका नाम परिवर्तित कर सकता है अथवा सीमाएँ निर्धारित कर सकता है इत्यादि।
  • यदि एक स्वायत्त ज़िले में अलग-अलग जनजातियाँ हैं, तो राज्यपाल ज़िले को कई स्वायत्त क्षेत्रों में विभाजित कर सकता है।
  • प्रत्येक स्वायत्त ज़िले में एक ज़िला परिषद होती है जिसमें 30 सदस्य होते हैं, जिनमें से चार राज्यपाल द्वारा नामित किए जाते हैं और शेष 26 वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं। निर्वाचित सदस्य पाँच साल के कार्यकाल के लिये पद धारण करते हैं (यदि परिषद को इससे पूर्व भंग नहीं किया जाता है) और मनोनीत सदस्य राज्यपाल के इच्छानुसार समय तक पद पर बने रहते हैं। प्रत्येक स्वायत्त क्षेत्र में भी एक अलग क्षेत्रीय परिषद होती है।
  • ज़िला और क्षेत्रीय परिषदें अपने अधिकार क्षेत्र के तहत क्षेत्रों का प्रशासन करती हैं। वे भूमि,वन, नहर के जल, स्थानांतरित कृषि, ग्राम प्रशासन, संपत्ति का उत्तराधिकार, विवाह एवं तलाक, सामाजिक रीति-रिवाजों जैसे कुछ निर्दिष्ट मामलों पर कानून बना सकती हैं लेकिन ऐसे सभी कानूनों के लिये राज्यपाल की सहमति आवश्यक है।
  • अपने क्षेत्रीय न्यायालयों के अंतर्गत ज़िला और क्षेत्रीय परिषदें जनजातियों के मध्य मुकदमों एवं मामलों की सुनवाई के लिये ग्राम परिषदों या अदालतों का गठन कर सकती हैं। वे उनकी अपील सुनते हैं। इन मुकदमों और मामलों पर उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है।
  • ज़िला परिषद ज़िले में प्राथमिक स्कूलों, औषधालयों, बाज़ारों, मत्स्य पालन क्षेत्रों, सड़कों आदि की स्थापना, निर्माण या प्रबंधन कर सकती है। यह गैर आदिवासियों द्वारा ऋण एवं व्यापार के नियंत्रण के लिये नियम भी बना सकता है लेकिन ऐसे नियमों के लिये राज्यपाल की सहमति की आवश्यकता होती है।
  • ज़िला एवं क्षेत्रीय परिषदों के पास भू राजस्व का आकलन एवं संग्रहण करने एवं कुछ निर्दिष्ट कर लगाने का अधिकार है।
  • संसद या राज्य विधायिका के अधिनियम स्वायत्त ज़िलों और स्वायत्त क्षेत्रों पर लागू नहीं होते हैं या निर्दिष्ट संशोधनों और अपवादों के साथ लागू होते हैं।
  • राज्यपाल स्वायत्त ज़िलों या क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित किसी भी मामले की जाँच और रिपोर्ट करने के लिये एक आयोग नियुक्त कर सकते हैं। वह आयोग की सिफारिश पर ज़िला या क्षेत्रीय परिषद को भंग कर सकता है।

छठी अनुसूची के अंतर्गत शामिल राज्यों के स्वायत्त ज़िले

6 schedule

राज्य ज़िले
मेघालय खासी पहाड़ी स्वायत्त ज़िला परिषद, जयंतिया पहाड़ी ज़िला परिषद, गारो पहाड़ी ज़िला परिषद
मिज़ोरम चकमा स्वायत्त ज़िला परिषद, लाई स्वायत्त ज़िला परिषद, मारा स्वायत्त ज़िला परिषद
त्रिपुरा त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त ज़िला परिषद
असम दीमा हसाओ स्वायत्त ज़िला परिषद, कार्बी आंगलोंग स्वायत्त ज़िला परिषद, बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद

छठी अनुसूची से संबंधित समस्याएँ:

  • इसने क्षेत्र में स्वायत्तता की वास्तविक प्रक्रिया लाने के बजाय कई शक्ति केंद्र निर्मित कर दिये हैं।
  • जिला परिषदों और राज्य विधानसभाओं के बीच अक्सर हितों के टकराव होते हैं। उदाहरण के लिये मेघालय में, राज्य के गठन के बावज़ूद राज्य सरकार के साथ लगातार विवाद के कारण पूरे राज्य में छठी अनुसूची जारी है।
  • अन्य वर्गों के लिये विशेष प्रावधानों की माँग।
  • विकास का अभाव: वित्तीय स्वायत्तता के संदर्भ में, अनुमोदित बजट एवं राज्य सरकार से प्राप्त धन के मध्य एक बड़ा अंतर होता है जिसका इन जनजातीय समुदायों के विकास पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।
  • फरवरी 2019 में वित्त आयोग (अनुच्छेद 280) और संविधान की छठी अनुसूची से संबंधित प्रावधानों में संशोधन करने के लिये संसद में 125 वाँ संवैधानिक संशोधन विधेयक पेश किया गया था।
  • यह पूर्वोत्तर क्षेत्र की छठी अनुसूची के तहत आने वाले 10 स्वायत्त परिषदों की वित्तीय एवं कार्यकारी शक्तियों में वृद्धि की माँग करता है।

इनर लाइन परमिट प्रणाली

  • इनर लाइन परमिट एक दस्तावेज़ है जो एक भारतीय नागरिक को ILP प्रणाली के तहत संरक्षित राज्य में जाने या रहने की अनुमति देता है।
  • इनर लाइन परमिट उन सभी के लिये अनिवार्य है जो संरक्षित राज्यों से बाहर रहते हैं।
  • यह सिर्फ यात्रा के प्रयोजनों के लिये संबंधित राज्य द्वारा ही जारी किया जाता है।
  • इनर लाइन परमिट की स्थापना ब्रिटिश सरकार ने बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के तहत बंगाल के पूर्वी हिस्से की जनजातियों की सुरक्षा के लिये की थी। इस 1873 विनियमन को ILR या ILP के रूप में भी जाना जाता है।
  • 1873 के विनियमन की धारा 2 के तहत ILP केवल तीन उत्तर पूर्वी राज्यों जैसे मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड पर लागू था। हाल ही में 11 दिसंबर को राष्ट्रपति ने ILP को मणिपुर में भी लागू किये जाने वाले आदेश पर हस्ताक्षर किए जो चौथा राज्य बना जहाँ ILP प्रणाली लागू होती है।
  • विदेशी पर्यटकों को उन पर्यटन स्थलों की यात्रा करने के लिये एक संरक्षित क्षेत्र परमिट (पीएपी) की आवश्यकता होती है जो घरेलू पर्यटकों द्वारा आवश्यक इनर लाइन परमिट से भिन्न होता है।
  • विदेशियों (संरक्षित क्षेत्रों) के आदेश, 1958 के तहत 'इनर लाइन' में पड़ने वाले सभी क्षेत्रों जैसा कि उक्त आदेश में परिभाषित किया गया है एवं राज्य की अंतर्राष्ट्रीय सीमा को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है।
  • वर्तमान में संरक्षित क्षेत्र निम्नलिखित राज्यों में स्थित हैं:
    • संपूर्ण अरुणाचल प्रदेश
    • हिमाचल प्रदेश के कुछ भाग
    • जम्मू और कश्मीर के कुछ भाग
    • संपूर्ण मणिपुर
    • संपूर्ण मिज़ोरम
    • संपूर्ण नागालैंड
    • राजस्थान के कुछ भाग
    • संपूर्ण सिक्किम (आंशिक रूप से संरक्षित क्षेत्र और आंशिक रूप से प्रतिबंधित क्षेत्र )
    • उत्तराखंड के कुछ भाग
  • एक विदेशी नागरिक को आमतौर पर एक संरक्षित/प्रतिबंधित क्षेत्र में जाने की अनुमति नहीं दी जाती है जब तक कि सरकार इस पर संतुष्ट न हो कि इस तरह की यात्रा को उचित ठहराने के लिये असाधारण कारण हैं।
  • प्रत्येक विदेशी नागरिक, भूटान के नागरिक को छोड़कर जो संरक्षित या प्रतिबंधित क्षेत्र में प्रवेश करने एवं रहने की इच्छा रखता है, को एक विदेशी के लिये विशेष अधिकार जारी करने के लिये शक्तियाँ रखती है, प्राधिकरण से आवेदन के ज़रिये विशेष अनुमति प्राप्त करने की आवश्यकता होती है।
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