नई दिल्ली में 18वाँ G20 शिखर सम्मेलन
प्रिलिम्स के लिये:अफ्रीकी संघ, वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन, वित्तीय समावेशन दस्तावेज़, विश्व बैंक, भारत- मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा, GE F-414 जेट इंजन, भारत-मर्कोसुर तरजीही व्यापार समझौता, G20 मेन्स के लिये:भारत की विदेश नीति में G20 का महत्त्व, भारत से जुड़े और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समूह तथा समझौते |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
नई दिल्ली, भारत में 9 और 10 सितंबर, 2023 को 18वें G20 शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया। यह पहला शिखर सम्मेलन था जब भारत ने G20 देशों के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की।
- इस शिखर सम्मेलन का विषय "वसुधैव कुटुंबकम" था, जिसका अर्थ है "विश्व एक परिवार है"।
- G20 देशों की नई दिल्ली घोषणा में रूस-यूक्रेन तनाव से लेकर धारणीय विकास, खाद्य सुरक्षा और वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन शुरू करने जैसे विविध वैश्विक मुद्दों पर सर्वसम्मत सहमति बनी।
18वें G20 शिखर सम्मेलन के प्रमुख निष्कर्ष:
- अफ्रीकी संघ को स्वीकृति (अब G21):
- इस मंच में विकासशील देशों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में G20 देशों ने अफ्रीकी संघ (African Union- AU) को स्थायी सदस्य के रूप में शामिल करने का निर्णय लिया।
- अफ्रीकी संघ को G20 में शामिल किये जाने का प्रभाव:
- G20 में AU की सदस्यता वैश्विक व्यापार, वित्त और निवेश को नई दिशा देने का अवसर प्रदान करती है तथा G20 के भीतर ग्लोबल साउथ के प्रतिनिधित्व में वृद्धि करने में अहम भूमिका अदा करेगी।
- इससे G20 के भीतर अफ्रीकी संघ के हितों और दृष्टिकोणों पर विचार करना और उन पर ध्यान देना संभव हो सकेगा।
- वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (Global Biofuels Alliance- GBA):
- परिचय:
- यह भारत के नेतृत्व में एक पहल है जिसका उद्देश्य जैव ईंधन अपनाने को बढ़ावा देने के लिये सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों तथा उद्योगों का गठबंधन सुनिश्चित करना है।
- इस पहल का लक्ष्य जैव ईंधन को ऊर्जा संक्रमण के एक प्रमुख घटक के रूप में स्थापित करना तथा रोज़गार सृजन व आर्थिक विकास में योगदान देना है।
- यह भारत के मौजूदा PM-JIWAN योजना, SATAT और GOBAR DHAN योजना जैसे जैव ईंधन कार्यक्रमों को गति देने में मदद करेगा।
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, शुद्ध शून्य लक्ष्य के परिणामस्वरूप वर्ष 2050 तक जैव ईंधन क्षमता में साढ़े तीन से पाँच गुना वृद्धि की जाएगी।
- गठन और संस्थापक सदस्य:
- इस गठबंधन की शुरुआत नौ आरंभिक सदस्य देशों; भारत, अमेरिका, ब्राज़ील, अर्जेंटीना, बांग्लादेश, इटली, मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका और संयुक्त अरब अमीरात के साथ की गई थी।
- GBA के सदस्य देश जैव ईंधन के प्रमुख उत्पादक और उपभोक्ता हैं। इथेनॉल के उत्पादन में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा 52%, ब्राज़ील द्वारा 30% एवं भारत द्वारा 3% के साथ लगभग 85% के योगदान के साथ ही इन्हीं देशों में इसकी लगभग 81% खपत होती है।
- इसमें शामिल होने के लिये 19 देश और 12 अंतर्राष्ट्रीय संगठन पहले ही सहमति व्यक्त कर चुके हैं।
- वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन का समर्थन करने वाले देश जिन्हें G20 में आमंत्रित किया गया:
- बांग्लादेश, सिंगापुर, मॉरीशस, संयुक्त अरब अमीरात।
- वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन के गैर-समर्थक देश:
- आइसलैंड, केन्या, गुयाना, पैराग्वे, सेशेल्स, श्रीलंका, युगांडा और फिनलैंड।
- अंतर्राष्ट्रीय संगठन:
- विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक, विश्व आर्थिक मंच, विश्व एलपीजी संगठन, संयुक्त राष्ट्र-सभी के लिये ऊर्जा, UNIDO, बायोफ्यूचर्स प्लेटफाॅर्म, अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा मंच, अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी, विश्व बायोगैस एसोसिएशन।
- इस गठबंधन की शुरुआत नौ आरंभिक सदस्य देशों; भारत, अमेरिका, ब्राज़ील, अर्जेंटीना, बांग्लादेश, इटली, मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका और संयुक्त अरब अमीरात के साथ की गई थी।
- परिचय:
- भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC):
- भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) की स्थापना के लिये भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, यूरोपीय संघ, संयुक्त अरब अमीरात, फ्राँस, जर्मनी और इटली की सरकारों के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए।
- IMEC वैश्विक अवसंरचना और निवेश के लिये साझेदारी (Partnership for Global Infrastructure Investment- PGII) नामक एक व्यापक पहल का हिस्सा है।
- PGII को सबसे पहले जून 2021 में ब्रिटेन में आयोजित G7 शिखर सम्मेलन के दौरान पेश किया गया था।
- इसका लक्ष्य सार्वजनिक और निजी निवेश के संयोजन के माध्यम से विकासशील देशों में बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को वित्तपोषित करना है।
- PGII को सबसे पहले जून 2021 में ब्रिटेन में आयोजित G7 शिखर सम्मेलन के दौरान पेश किया गया था।
- IMEC भारत, मध्य-पूर्व और यूरोप को जोड़ने वाली एक महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचा परियोजना है।
- इस परियोजना का लक्ष्य रेलवे और समुद्री मार्गों सहित परिवहन गलियारों का एक नेटवर्क स्थापित करना है।
- इसे चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जाता है, यह एक वैकल्पिक बुनियादी ढाँचा नेटवर्क प्रदान करता है।
- वित्तीय समावेशन दस्तावेज़ के लिये G20 ग्लोबल पार्टनरशिप:
- विश्व बैंक द्वारा तैयार वित्तीय समावेशन दस्तावेज़ के लिये G20 ग्लोबल पार्टनरशिप ने केंद्र सरकार के तहत पिछले एक दशक में भारत के डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) के परिवर्तनकारी प्रभाव की सराहना की है।
- यह दस्तावेज़ निम्नलिखित पहलों पर बल देता है जिन्होंने DPI परिदृश्य को आकार देने में बड़ी भूमिका निभाई:
- तीव्र वित्तीय समावेशन:
- भारत के DPI दृष्टिकोण ने केवल 6 वर्षों में 47 वर्षों की वित्तीय समावेशन प्रगति हासिल की।
- जन धन-आधार-मोबाइल (JAM) ट्रिनिटी की सहायता से वित्तीय समावेशन दर को वर्ष 2008 में 25% से बढ़ाकर 6 वर्षों के भीतर 80% से अधिक किया गया।
- विभिन्न विनियामक ढाँचे, राष्ट्रीय नीतियों और आधार-आधारित सत्यापन ने DPI की स्थापना में अहम योदगान दिया।
- प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) की सफलता:
- PMJDY खातों की संख्या 147.2 मिलियन (मार्च 2015) से तीन गुना बढ़कर 462 मिलियन (जून 2022) हो गई।
- इनमें से 56% खाताधारक महिलाएँ हैं, अर्थात् इनकी संख्या 260 मिलियन से अधिक है।
- अप्रैल 2023 तक 12 मिलियन से अधिक ग्राहकों को आकर्षित करते हुए PMJDY ने कम आय वाली महिलाओं की बचत को बढ़ावा दिया।
- सरकार से व्यक्ति (G2P) भुगतान:
- भारत के डिजिटल G2P आर्किटेक्चर ने 53 मंत्रालयों के 312 योजनाओं के माध्यम से लाभार्थियों को 361 बिलियन अमेरिकी डॉलर के अंतरण की सुविधा प्रदान की।
- इसके माध्यम से मार्च 2022 तक 33 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कुल बचत की गई, जो GDP के 1.14% के बराबर है।
- एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) के उपयोग में उत्तरोत्तर वृद्धि:
- मई 2023 में 9.41 बिलियन से अधिक UPI लेन-देन हुए, जिनकी कीमत 14.89 ट्रिलियन रुपए थी।
- वित्त वर्ष 2022-23 में UPI लेन-देन भारत की नॉमिनल GDP के 50% के करीब पहुँच गया।
- निजी क्षेत्र की दक्षता:
- DPI ने जटिलता, लागत और समय को कम करते हुए निजी संगठनों के संचालन को सुव्यवस्थित किया।
- कुछ NBFCs ने 8% अधिक SME ऋण रूपांतरण दर, मूल्यह्रास लागत में 65% बचत और धोखाधड़ी का पता लगाने में 66% लागत की कमी हासिल की।
- DPI उपयोग के साथ भारत में बैंकों की ग्राहक ऑनबोर्डिंग लागत 23 अमेरिकी डॉलर से घटकर 0.1 अमेरिकी डॉलर हो गई।
- KYC की अनुपालन लागत में कमी:
- अनुपालन लागत को 0.12 अमेरिकी डॉलर से घटाकर 0.06 अमेरिकी डॉलर किये जाने से कम आय वाले ग्राहक अधिक आकर्षित हुए।
- सीमा पार भुगतान:
- UPI-PayNow लिंकेज के कारण सिंगापुर के साथ सीमा पार से त्वरित और सस्ते भुगतान सुनिश्चित हुए।
- अकाउंट एग्रीगेटर फ्रेमवर्क:
- 13.46 मिलियन सहमति के साथ डेटा साझा करने के लिये 1.13 बिलियन खातों को सक्षम किया गया।
- डेटा एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन आर्किटेक्चर (DEPA):
- यह व्यक्तियों को उनके डेटा पर नियंत्रण प्रदान करता है, नवाचार और प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देता है।
- तीव्र वित्तीय समावेशन:
G20 शिखर सम्मेलन 2023 की अन्य मुख्य विशेषताएँ:
- वर्ष 2030 तक वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करना:
- G20 देशों ने वर्ष 2030 तक वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने की दिशा में काम करने का वादा किया।
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के एक आकलन के अनुसार, यदि इस लक्ष्य को पूरा किया जाता है तो वर्ष 2030 तक सात अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन से बचा जा सकता है।
- यह ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के वैश्विक प्रयासों के अनुरूप है।
- यह जीवाश्म ईंधन से स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों की ओर एक महत्त्वपूर्ण संक्रमण का प्रतिनिधित्व करता है।
- यह घोषणा स्वीकार करती है कि वर्तमान जलवायु कार्रवाई अपर्याप्त है और पेरिस समझौते के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये खरबों डॉलर के वित्तीय परिव्यय की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।
- निर्दिष्ट पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का विस्तार करने से वर्ष 2023 और वर्ष 2030 के बीच लगभग 7 बिलियन टन CO2 उत्सर्जन से बचा जा सकता है।
- G20 देशों ने वर्ष 2030 तक वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने की दिशा में काम करने का वादा किया।
- वैश्विक खाद्य सुरक्षा और पोषण के प्रति प्रतिबद्धता:
- G20 के नेतृत्वकर्ता खाद्य और ऊर्जा की कीमतों सहित बढ़ती कमोडिटी कीमतों, जो जीवन-यापन के दबाव में योगदान करते हैं, का समाधान करने के महत्त्व को समझते हैं।
- वैश्विक चुनौतियाँ कमज़ोर समूहों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती हैं, इसलिये उनका लक्ष्य भुखमरी और कुपोषण का उन्मूलन करना है।
- G20 घोषणापत्र में मानवीय पीड़ा और यूक्रेन युद्ध के चलते वैश्विक खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा, आपूर्ति शृंखला, मुद्रास्फीति तथा आर्थिक स्थिरता पर पड़ने वाले प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है।
- G20 देशों ने ब्लैक सी ग्रेन पहल के समयबद्ध और पूर्ण कार्यान्वयन का आह्वान किया।
- G20 की अध्यक्षता के दौरान कृषि कार्य समूह ने दो पहलुओं पर ऐतिहासिक सहमति प्राप्त की: खाद्य सुरक्षा और पोषण पर दक्कन G20 उच्च-स्तरीय सिद्धांत और महर्षि (MAHARISHI) नामक कदन्न पहल।
- खाद्य सुरक्षा और पोषण पर उच्च-स्तरीय सिद्धांतों के तहत सात सिद्धांतों के अंतर्गत मानवीय सहायता, खाद्य उत्पादन एवं खाद्य सुरक्षा नेट कार्यक्रम, जलवायु-स्मार्ट दृष्टिकोण, कृषि खाद्य प्रणालियों की समावेशिता, एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण, कृषि क्षेत्र का डिजिटलीकरण तथा कृषि में ज़िम्मेदार सार्वजनिक व निजी निवेश को बढ़ाना शामिल हैं।
- महर्षि (कदन्न और अन्य प्राचीन अनाज पर अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान पहल) का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय कदन्न वर्ष 2023 और उसके बाद के वर्षों के दौरान अनुसंधान सहयोग को बढ़ाना तथा कदन्न एवं अन्य प्राचीन अनाज के विषय में जागरूकता उत्पन्न करना है।
- G20 कृषि, खाद्य और उर्वरक में पारदर्शी, निष्पक्ष और नियम-आधारित व्यापार को बढ़ावा देने के लिये प्रतिबद्ध है। उन्होंने निर्यात प्रतिबंध नहीं लगाने, बाज़ार की विकृतियों को कम करने और WTO नियमों के साथ तालमेल बिठाने की प्रतिज्ञा की।
- G20 देशों ने पारदर्शिता में वृद्धि करने के लिये कृषि कदन्न सूचना प्रणाली (AMIS) और पृथ्वी अवलोकन वैश्विक कृषि निगरानी समूह (GEOGLAM) को मज़बूत करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
- इसके अंतर्गत वनस्पति तेलों को शामिल करने के लिये AMIS का विस्तार करना और खाद्य कीमतों में अस्थिरता से बचने हेतु प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों के साथ सहयोग बढ़ाना शामिल है।
- नोट:
- AMIS खाद्य बाज़ार पारदर्शिता और खाद्य सुरक्षा के लिये नीति प्रतिक्रिया को बढ़ाने हेतु एक अंतर-एजेंसी मंच है।
- इसकी शुरुआत वर्ष 2007-08 और 2010 में वैश्विक खाद्य कीमतों में बढ़ोतरी के बाद G20 के कृषि मंत्रियों द्वारा वर्ष 2011 में की गई थी।
- GEOGLAM पूरे विश्व में समय पर कृषि संबंधी सूचना प्रदान करके बाज़ार पारदर्शिता और खाद्य सुरक्षा को बढ़ाता है।
- वर्ष 2011 में फ्राँसीसी G20 अध्यक्षता के दौरान बीस (G20) कृषि मंत्रियों ने GEOGLAM नीति अधिदेश का समर्थन किया था।
- AMIS खाद्य बाज़ार पारदर्शिता और खाद्य सुरक्षा के लिये नीति प्रतिक्रिया को बढ़ाने हेतु एक अंतर-एजेंसी मंच है।
- छोटे हथियार और आतंकवादियों के सुरक्षित ठिकाने:
- वर्ष 2023 की नई दिल्ली घोषणा पिछली G20 घोषणाओं, विशेष रूप से वर्ष 2015 के तुर्किये घोषणा, पर आधारित है, जिसमें आतंकवाद की कड़ी निंदा की गई थी। वर्ष 2022 के G20 बाली नेतृत्वकर्ताओं की घोषणा (जो मुख्य रूप से आतंकवाद के वित्तपोषण और वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) को मज़बूत करने पर केंद्रित थी) के विपरीत नई दिल्ली घोषणा में आतंकवाद से संबंधित विभिन्न चिंताएँ शामिल हैं।
- नई दिल्ली घोषणा में G20 देशों ने स्पष्ट रूप से आतंकवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों की निंदा की है।
- यह घोषणापत्र वैश्विक परिसंपत्ति पुनर्प्राप्ति नेटवर्क को बढ़ाने और आपराधिक गतिविधियों से अर्जित धन की रिकवरी के लिये FATF के प्रयासों का समर्थन करता है।
- स्वास्थ्य देखभाल में लचीलापन और अनुसंधान:
- G20 नई दिल्ली नेतृत्वकर्ताओं की घोषणा में स्वास्थ्य देखभाल पर काफी बल दिया गया है और एक लचीली स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के निर्माण की आवश्यकता को प्राथमिकता दी गई है।
- यह अधिक लचीला, न्यायसंगत, सतत् और समावेशी स्वास्थ्य प्रणाली बनाने के लिये वैश्विक स्वास्थ्य व्यवस्था को मज़बूत करने हेतु प्रतिबद्ध है। इस प्रयास में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की केंद्रीय भूमिका है।
- इसका लक्ष्य आगामी दो से तीन वर्षों के अंदर प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्यबल और आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं को महामारी से पहले के स्तर से बेहतर स्तर तक बढ़ाना है।
- तपेदिक और AIDS जैसी मौजूदा महामारियों का समाधान करने के अतिरिक्त G20 विस्तारित कोविड पर शोध के महत्त्व को रेखांकित करता है।
- भारत की G20 अध्यक्षता ने आधुनिक चिकित्सा के साथ साक्ष्य-आधारित पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के एकीकरण पर भी ज़ोर दिया।
- इसमें वन हेल्थ दृष्टिकोण (जो रोगाणुरोधी प्रतिरोध से निपटने पर विशेष ध्यान देने के साथ एक ही तंत्र के अंदर पशुओं, पादपों और मनुष्यों में बीमारियों को ट्रैक करता है) अपनाने पर ज़ोर दिया गया है।
- वित्त ट्रैक (Finance Track) समझौते:
- भारत की G-20 की अध्यक्षता ने क्रिप्टोकरेंसी के लिये एक समन्वित और व्यापक नीति एवं नियामक ढाँचे की नींव रखी है।
- इसमें क्रिप्टो परिसंपत्ति विनियमन हेतु वैश्विक सहमति पर ज़ोर दिया गया।
- G-20 देशों ने विश्व स्तर पर उच्च विकासात्मक मांगों को पूरा करने के लिये अधिक मज़बूत और प्रभावी बहुपक्षीय विकास बैंकों (MDB) की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित किया।
- वित्तीय समावेशन के लिये डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे के इंडिया स्टैक मॉडल को एक आशाजनक दृष्टिकोण के रूप में स्वीकार किया गया है।
- G-20 देशों की नई दिल्ली घोषणा क्रिप्टो-परिसंपत्ति पारिस्थितिकी तंत्र के तेज़ी से विकास से जुड़े जोखिमों की निगरानी पर ज़ोर देती है।
- भारत-मर्कोसुर तरजीही व्यापार समझौता (Preferential Trade Agreement):
- भारत और ब्राज़ील ने आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिये भारत-मर्कोसुर PTA के विस्तार हेतु मिलकर कार्य करने पर सहमति जताई है।
- मर्कोसुर लैटिन अमेरिका में एक व्यापारिक समूह है, जिसमें ब्राज़ील, अर्जेंटीना, उरुग्वे और पैराग्वे शामिल हैं।
- भारत-मर्कोसुर PTA 1 जून, 2009 को प्रभाव में आया, इसका उद्देश्य उन चुनिंदा वस्तुओं पर सीमा शुल्क को खत्म करना था जिन पर भारत और मर्कोसुर ब्लॉक के बीच सहमति बनी थी।
- भारत और ब्राज़ील ने आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिये भारत-मर्कोसुर PTA के विस्तार हेतु मिलकर कार्य करने पर सहमति जताई है।
- जलवायु वित्तपोषण प्रतिबद्धता:
- इस घोषणापत्र में जलवायु वित्तपोषण में पर्याप्त वृद्धि पर ज़ोर दिया गया है, जिसमें बिलियन डॉलर से ट्रिलियन डॉलर के "क्वांटम जंप" अर्थात् काफी बड़े बदलाव का आह्वान किया गया है।
- यह विकासशील देशों के लिये वर्ष 2030 से पहले की अवधि में 5.8-5.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने हेतु स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिये प्रतिवर्ष 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की वित्तीय सहायता की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- भारत का सांस्कृतिक प्रदर्शन:
- भारत मंडपम (अनुभव मंडपम से प्रेरित)।
- भगवान नटराज की कांस्य प्रतिमा (चोल शैली)।
- ओडिशा के सूर्य मंदिर का कोणार्क चक्र और नालंदा विश्वविद्यालय की छवि (प्रतिष्ठित पृष्ठभूमि के रूप में प्रयुक्त)।
- तंजावुर पेंटिंग और ढोकरा कला।
- बोधि वृक्ष के नीचे स्थापित भगवान बुद्ध की पीतल की मूर्ति।
- विविध संगीत विरासत (हिंदुस्तानी, लोक संगीत, कर्नाटक, भक्ति)।
- G20 अध्यक्षता में परिवर्तन:
- भारत के प्रधानमंत्री ने ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुइज़ इंसियो लूला दा सिल्वा को G20 अध्यक्ष का पारंपरिक उपहार सौंपा, जिन्हें 1 दिसंबर, 2023 को आधिकारिक तौर पर इसकी अध्यक्षता प्राप्त हो जाएगी।
G20 शिखर सम्मेलन 2023 में नवीनतम भारत-अमेरिका सहयोग:
- लचीली सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला और दूरसंचार बुनियादी ढाँचे पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका अपनी प्रौद्योगिकी साझेदारी को मज़बूत कर रहे हैं।
- भारत चीनी दूरसंचार उपकरणों के उपयोग को कम करने की प्रक्रिया के साथ तालमेल बिठाते हुए अमेरिका के 'रिप एंड रिप्लेस' पायलट प्रोजेक्ट का समर्थन करता है।
- भारत और अमेरिका ने अंतरिक्ष एवं कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसे नए तथा उभरते क्षेत्र में विस्तारित सहयोग के माध्यम से भारत-अमेरिका प्रमुख रक्षा साझेदारी को मज़बूत और विविधतापूर्ण बनाने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की।
- GE F-414 जेट इंजन समझौता:
- अमेरिका ने हाल ही में भारत में GE F-414 जेट इंजन निर्माण के लिये जनरल इलेक्ट्रिक एयरोस्पेस और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के बीच एक वाणिज्यिक समझौते हेतु अधिसूचना प्रक्रिया पूरी की।
- यह समझौता अमेरिका और भारत के बीच रक्षा सहयोग में एक बड़ा कदम है, जो अपनी घरेलू रक्षा विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाने के लिये भारत की प्रतिबद्धता को उजागर करता है।
https://www.youtube.com/watch?v=dbgGV5-TrdE&pp=ygUMRy0yMCBkcmlzaHRp
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से किस एक समूह में चारों देश G-20 के सदस्य हैं? (2020) (a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की उत्तर: (a) |
मराठा कोटा
प्रिलिम्स के लिये:सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (SEBC), मराठा आरक्षण, वर्ष 2018 का 102वाँ संशोधन अधिनियम मेन्स के लिये:राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग, आरक्षण से संबंधित संवैधानिक प्रावधान |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में महाराष्ट्र में मराठा समुदाय द्वारा एक बार फिर से शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नियुक्तियों में आरक्षण की मांग की गई है।
मराठा आरक्षण की मांग का इतिहास और स्थिति:
- इतिहास:
- मराठा जातियों का एक समूह है, जिसमें किसानों और ज़मींदारों के अलावा अन्य व्यक्ति शामिल हैं, जो राज्य की आबादी का लगभग 33% है।
- हालाँकि अधिकांश मराठा, मराठी भाषी हैं, किंतु सभी मराठी भाषी व्यक्ति मराठा समुदाय से नहीं हैं।
- ऐतिहासिक रूप से उनकी पहचान बड़ी भूमि जोत वाली 'योद्धा' जाति के रूप में की गई है।
- हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में भूमि विखंडन, कृषि संकट, बेरोज़गारी एवं शैक्षिक अवसरों की कमी जैसे कारकों के कारण कई मराठा लोगों को सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन का सामना करना पड़ा है। यह समुदाय अभी भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- इसलिये वे सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग (SEBC) की श्रेणी के तहत सरकारी नियुक्तियों तथा शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की मांग कर रहे हैं।
- मराठा जातियों का एक समूह है, जिसमें किसानों और ज़मींदारों के अलावा अन्य व्यक्ति शामिल हैं, जो राज्य की आबादी का लगभग 33% है।
- मराठा आरक्षण मांग की स्थिति:
- वर्ष 2017:
- सेवानिवृत्त न्यायाधीश एन जी गायकवाड़ की अध्यक्षता वाले 11 सदस्यीय आयोग ने सिफारिश की कि मराठों को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग (SEBC) के तहत आरक्षण दिया जाना चाहिये।
- वर्ष 2018:
- महाराष्ट्र विधानसभा ने मराठा समुदाय के लिये 16% आरक्षण का प्रस्ताव वाला विधेयक पारित किया।
- वर्ष 2018:
- बॉम्बे उच्च न्यायालय ने आरक्षण को बरकरार रखते हुए कहा कि इसे 16% के बजाय शिक्षा में 12% और नौकरियों में 13% किया जाना चाहिये।
- वर्ष 2020:
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इसके कार्यान्वयन पर रोक लगा दी और मामले को एक बड़ी पीठ के लिये भारत के मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया।
- वर्ष 2021:
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1992 में निर्धारित कुल आरक्षण पर 50% की सीमा का हवाला देते हुए वर्ष 2021 में मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया।
- 12% एवं 13% (क्रमशः शिक्षा और नौकरियों में) के मराठा आरक्षण ने कुल आरक्षण सीमा को क्रमशः 64% और 65% तक बढ़ा दिया था।
- इंदिरा साहनी फैसले, 1992 में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा था कि आरक्षण की सीमा 50% होगी केवल कुछ असामान्य और असाधारण स्थितियों में दूर-दराज़ के क्षेत्रों की आबादी को मुख्यधारा में लाने के लिये आरक्षण में 50% की छूट दी जा सकती है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि महाराष्ट्र में राज्य सरकार द्वारा सीमा का उल्लंघन करने की कोई "असाधारण परिस्थिति" या "असाधारण स्थिति" नहीं थी।
- इसके अलावा न्यायालय ने फैसला सुनाया कि राज्य के पास किसी समुदाय को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े का दर्जा देने का कोई अधिकार नहीं है। न्यायालय के अनुसार, केवल राष्ट्रपति ही सामाजिक और पिछड़े वर्गों की केंद्रीय सूची में बदलाव कर सकता है, राज्य केवल "सुझाव" दे सकते हैं।
- बेंच ने सर्वसम्मति से 102वें संविधान संशोधन की संवैधानिक वैधता को बनाए रखा, लेकिन इस सवाल पर मतभेद था कि क्या इससे SEBC की पहचान करने की राज्यों की शक्ति प्रभावित होगी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि मराठा समुदाय के लिये अलग आरक्षण अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (कानून की उचित प्रक्रिया) का उल्लंघन करता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1992 में निर्धारित कुल आरक्षण पर 50% की सीमा का हवाला देते हुए वर्ष 2021 में मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया।
- वर्ष 2022:
- नवंबर 2022 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिये 10% कोटा बनाए रखने के बाद राज्य सरकार ने कहा कि जब तक मराठा आरक्षण का मुद्दा हल नहीं हो जाता, तब तक समुदाय के आर्थिक रूप से कमज़ोर सदस्य EWS कोटा से लाभ उठा सकते हैं।
- वर्ष 2017:
2018 का 102वाँ संशोधन अधिनियम:
- इसने संविधान में अनुच्छेद 338B और 342A प्रस्तुत किया।
- अनुच्छेद 338B नव स्थापित राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग से संबंधित है।
- अनुच्छेद 342A राष्ट्रपति को किसी राज्य में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े समुदायों को निर्दिष्ट करने का अधिकार देता है।
- इसमें कहा गया है कि आरक्षण का लाभ देने हेतु सामाजिक और पिछड़े वर्गों के लिये किसी समुदाय को केंद्रीय सूची में शामिल करना संसद का कार्य है।
हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा कैनबिस की खेती को वैध बनाने पर विचार
प्रिलिम्स के लिये:कैनबिस की खेती, नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थ (NDPS) अधिनियम, 1985, भाँग, विश्व स्वास्थ्य संगठन मेन्स के लिये:कैनबिस की खेती के फायदे और नुकसान तथा भारत में संबंधित कानून |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हिमाचल प्रदेश सरकार कैनबिस की खेती पर प्रतिबंध हटाने की किसानों की लंबे समय से चली आ रही मांगों को देखते हुए इसकी (गाँजा) खेती को वैध बनाने की संभावना पर विचार कर रही है।
- नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (NDPS) अधिनियम, 1985 राज्यों को धारा 10 (a) (iii) के तहत फाइबर, बीज या बागवानी उद्देश्यों के लिये कैनबिस की खेती के संबंध में नियम बनाने की अनुमति देता है।
कैनबिस:
- परिचय:
- WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के अनुसार, कैनबिस एक सामान्य शब्द है जिसका उपयोग कैनबिस सैटिवा पौधे की कई मनो-सक्रिय सामग्री को दर्शाने के लिये किया जाता है।
- WHO के अनुसार, कैनबिस अब तक विश्व में सबसे व्यापक रूप से खेती, तस्करी और दुरुपयोग की जाने वाली अवैध ड्रग्स है।
- कैनबिस की अधिकांश प्रजातियाँ द्विअर्थी पौधे हैं जिन्हें नर या मादा के रूप में पहचाना जा सकता है। अपरागणित मादा पौधों को हशीश कहा जाता है।
- कैनबिस में प्रमुख मनो-सक्रिय घटक डेल्टा9 टेट्राहाइड्रोकैनाबिनोल (THC) है।
- WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के अनुसार, कैनबिस एक सामान्य शब्द है जिसका उपयोग कैनबिस सैटिवा पौधे की कई मनो-सक्रिय सामग्री को दर्शाने के लिये किया जाता है।
- NDPS अधिनियम, 1985 में दी गई परिभाषा:
- NDPS अधिनियम के अनुसार, "कैनबिस प्लांट" को कैनबिस जीनस (Genus) के किसी पौधे के रूप में परिभाषित किया गया है।
- 'चरस' कैनबिस के पौधे से निकाला गया या अलग किया हुआ रेसिन है। NDPS अधिनियम इसमें कैनबिस के पौधे से किसी भी रूप में प्राप्त कच्चा माल या शुद्ध, पृथक रेसिन को शामिल करता है, इसमें कैनबिस के तेल या तरल हैश के रूप में केंद्रित सामग्री एवं राल भी शामिल है।
- अधिनियम 'गाँजा' को कैनबिस के पौधे के फूल या फलने वाले शीर्ष के रूप में परिभाषित करता है लेकिन इसमें बीज और पत्तियों को स्पष्ट रूप से शामिल नहीं किया गया है।
- यह अधिनियम कैनबिस, चरस और गाँजे के दो रूपों में से किसी भी तटस्थ सामग्री के साथ या उसके बिना या उससे तैयार किसी भी पेय के मिश्रण को अवैध बनाता है।
- विधायिका ने कैनबिस के पौधे के बीज और पत्तियों को अधिनियम के दायरे से बाहर कर दिया, क्योंकि पौधे की दाँतेदार पत्तियों में THC की मात्रा नगण्य होती है।
- NDPS अधिनियम के अनुसार, "कैनबिस प्लांट" को कैनबिस जीनस (Genus) के किसी पौधे के रूप में परिभाषित किया गया है।
- हिमाचल प्रदेश में कैनबिस की खेती के लाभ:
- परिचय:
- हेम्प, औद्योगिक और औषधीय अनुप्रयोगों के लिये खेती की जाने वाली कैनबिस सैटिवा का एक प्रकार है, जो वर्तमान में हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में उगाया जाता है, हालाँकि वर्ष 1985 के NDPS अधिनियम के तहत इसे अवैध माना गया है।
- हिमाचल प्रदेश का पड़ोसी राज्य उत्तराखंड वर्ष 2017 में कैनबिस की खेती को वैध बनाने वाला भारत का पहला राज्य बन गया।
- गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ ज़िलों में भी इसकी नियंत्रित खेती होती है।
- हेम्प, औद्योगिक और औषधीय अनुप्रयोगों के लिये खेती की जाने वाली कैनबिस सैटिवा का एक प्रकार है, जो वर्तमान में हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में उगाया जाता है, हालाँकि वर्ष 1985 के NDPS अधिनियम के तहत इसे अवैध माना गया है।
- वैधीकरण के लिये समर्थन:
- विविध अनुप्रयोग:
- वैधीकरण के समर्थकों का कहना है कि मनोरंजक उपयोग से परे कैनबिस के विविध अनुप्रयोग हैं। इनमें फाइटोरेमेडिएशन, फाइबर और कपड़ा निर्माण, औषधीय प्रयोजन तथा पल्प एंड पेपर उद्योग शामिल हैं।
- वैकल्पिक आय:
- हेम्प की खेती हिमाचल प्रदेश के लिये राजस्व उत्पन्न कर सकती है और स्थानीय व्यक्तियों को वैकल्पिक आय का स्रोत प्रदान कर सकती है।
- पारंपरिक और औषधीय उपयोग:
- हिमाचल प्रदेश में कैनबिस का पारंपरिक उपयोग, जैसे- रस्सी बनाना (हेम्प के रेशों से), जूता बनाना और बीज का सेवन। खेती पर प्रतिबंध ने इन स्थानीय प्रथाओं को बाधित कर किया है।
- औषधीय (दर्द निवारण, सूजन-रोधी गुण), औद्योगिक और वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिये कैनबिस को वैध बनाने से इसके औषधीय गुणों का उपयोग होगा तथा राज्य के राजस्व में वृद्धि होगी।
- विविध अनुप्रयोग:
- परिचय:
भारत में कैनबिस की खेती से संबंधित चिंताएँ:
- ड्रग एडिक्शन:
- हिमाचल प्रदेश में लगभग 95% ड्रग एडिक्ट्स व्यक्ति कैनबिस और इसके डेरिवेटिव का उपयोग करते हैं। आलोचकों का तर्क है कि खेती को वैध बनाने से युवा कैनबिस के उपयोग की ओर आकर्षित हो सकते हैं तथा वे आजीवन ड्रग एडिक्ट बन सकते हैं, जिससे ड्रग एडिक्ट युवाओं के सामाजिक-आर्थिक योगदान में कमी देखी जा सकती है।
- स्वास्थ्य को खतरा:
- कैनबिस के उपयोग से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें संज्ञानात्मक कार्य में गिरावट, श्वसन संबंधी समस्याएँ (धूम्रपान की स्थिति में) और मानसिक स्वास्थ्य विकारों का खतरा बढ़ जाता है, विशेष रूप से आनुवंशिक प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों में। कैनबिस के बड़े पैमाने पर उपयोग के कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर सबसे अधिक चिंता देखी गई है।
- मनोरोग संबंधी मुद्दे:
- कैनबिस की विशेष रूप से उच्च मात्रा या लंबे समय तक उपयोग चिंता, अवसाद और मनोविकृति सहित मनोरोग संबंधी समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है। मानसिक स्वास्थ्य और शिक्षा को ध्यान रखे बिना इसकी खेती को वैध बनाने से समस्याएँ और बढ़ सकती हैं।
- अवैध बाज़ार:
- इसके वैधीकरण से अवैध कैनबिस बाज़ार को पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सकता है। ऐसी आशंका है कि वैधानिक खेती के साथ-साथ कैनबिस का अवैध उत्पादन और वितरण जारी रहेगा, जिससे संभावित आपराधिक गतिविधियों और कानून प्रवर्तन चुनौतियों में वृद्धि होगी।
- प्रवर्तन चुनौतियाँ:
- कैनबिस की खेती और उपयोग को विनियमित करना कानून प्रवर्तन एजेंसियों के समक्ष महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ खड़ी करता है। कानूनी सीमाएँ निर्धारित करने, आयु संबंधी प्रतिबंध लागू करने और अवैध बाज़ार में विचलन को रोकने के लिये एक मज़बूत एवं अच्छी तरह से वित्तपोषित नियामक तंत्र की आवश्यकता होती है।
नशीली दवाओं की लत से निपटने के लिये पहल:
- नार्को-समन्वय केंद्र (NCORD) का गठन वर्ष 2016 में किया गया था और "नारकोटिक्स नियंत्रण के लिये राज्यों को वित्तीय सहायता" की योजना को पुनर्जीवित किया गया था।
- ज़ब्ती सूचना प्रबंधन प्रणाली ने नशीली दवाओं से जुड़े अपराधों और अपराधियों का एक पूरा ऑनलाइन डेटाबेस तैयार किया है।
- एम्स के राष्ट्रीय औषधि निर्भरता उपचार केंद्र की मदद से सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के माध्यम से भारत में नशीली दवाओं के दुरुपयोग के रुझान को मापने के लिये राष्ट्रीय औषधि दुरुपयोग सर्वेक्षण।
- प्रोजेक्ट सनराइज़: इसे वर्ष 2016 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में बढ़ते HIV प्रसार से निपटने के लिये शुरू किया गया था, विशेषकर नशीली दवाओं का इंजेक्शन लगाने वाले लोगों के मामले में।
- 'नशा मुक्त भारत' या नशा मुक्त भारत अभियान
आगे की राह
- एक व्यापक नियामक ढाँचा तैयार करना जो दुरुपयोग की रोकथाम के साथ चिकित्सा पहुँच को संतुलित करता है, इस चर्चा में एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है।
- कैनबिस के औषधीय गुणों, संभावित आर्थिक लाभों और स्वास्थ्य जोखिमों सहित इसके विभिन्न पहलुओं पर व्यापक शोध करना आवश्यक है।
- एक मज़बूत नियामक ढाँचा विकसित किया जाना चाहिये जो नशीली दवाओं के दुरुपयोग, स्वास्थ्य जोखिम और आपराधिक गतिविधियों के बारे में चिंताओं का समाधान करे।
- इस ढाँचे में कैनबिस की खेती, उत्पादन और वितरण की लाइसेंसिंग और निगरानी के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश शामिल होने चाहिये। आयु प्रतिबंध, उत्पाद लेबलिंग और गुणवत्ता नियंत्रण उपाय ढाँचे का हिस्सा होने चाहिये।
भगवान शिव की नटराज कलात्मकता
प्रिलिम्स के लिये:नटराज, लुप्त मोम विधि मेन्स के लिये:भारतीय कला विरासत |
स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नई दिल्ली के भारत मंडपम में G-20 देशों के शिखर सम्मेलन में 27 फुट की नटराज की शानदार मूर्ति प्रदर्शित की गई, जो भगवान शिव के नृत्य रूप में विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति है।
भारत मंडपम में प्रदर्शित नटराज प्रतिमा की मुख्य विशेषताएँ:
- तमिलनाडु के कारीगरों द्वारा अष्टधातु (आठ धातु मिश्र धातुओं) से तैयार की गई नटराज की इस उल्लेखनीय मूर्ति का वज़न 18 टन है।
- इस मूर्ति को तमिलनाडु के प्रसिद्ध मूर्तिकार स्वामी मलाई के राधाकृष्णन स्टापति ने बनाया है।
- इस नटराज प्रतिमा के डिज़ाइन निर्माण में तीन प्रतिष्ठित नटराज मूर्तियों से प्रेरणा ली गई है: चिदंबरम में थिल्लई नटराज मंदिर, कोनेरीराजपुरम में उमा महेश्वर मंदिर और तंजावुर में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल, बृहदेश्वर (बड़ा) मंदिर। यह भगवान शिव के नृत्य रूप के इतिहास और धार्मिक प्रतीकवाद में गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
- भारत मंडपम में नटराज की मूर्ति लुप्त मोम विधि का उपयोग करके बनाई गई है।
भगवान शिव के नृत्य स्वरूप का इतिहास और धार्मिक प्रतीक:
- शिव की प्राचीन उत्पत्ति:
- हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक शिव की मान्यता प्राचीन यानी वैदिक काल से जुड़ी हैं।
- वैदिक ग्रंथों में शिव के अग्रदूत रुद्र हैं, जो प्राकृतिक तत्त्वों, विशेष रूप से तूफान, गड़गड़ाहट और प्रकृति की देवीय शक्तियों से जुड़े देवता हैं।
- रुद्र प्रारंभ में एक उग्र देवता थे, जो प्रकृति के विनाशकारी पहलुओं का प्रतीक थे।
- नटराज स्वरूप का प्रादुर्भाव:
- नर्तक के रूप में शिव, जिन्हें नटराज के नाम से जाना जाता है, की अवधारणा ने 5वीं शताब्दी ईस्वी के आसपास आकार लेना शुरू किया।
- शिव के नृत्य के शुरुआती चित्रणों ने नटराज रूप से जुड़े बहुआयामी प्रतीकवाद की नींव रखी।
- चोल साम्राज्य में शिव:
- चोल राजवंश (9वीं-11वीं शताब्दी) के शासनकाल के दौरान शिव के नटराज रूप का महत्त्वपूर्ण विकास हुआ।
- कला और संस्कृति के संरक्षण के लिये प्रसिद्ध, चोलों ने नटराज के सांस्कृतिक महत्त्व को आयाम देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- चोल कट्टर शैव थे, जो भगवान शिव की पूजा पर बल देते थे।
- उन्होंने अपने पूरे क्षेत्र में भव्य शिव मंदिरों का निर्माण कराया, जिसमें तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर एक प्रमुख उदाहरण है। उनकी मूर्तियों में शैव आकृतियों पर विशेष ध्यान दिया गया है।
- नटराज प्रतिमा का विकास:
- चोलों के शासनकाल में नटराज का प्रतीकवाद और अधिक जटिल हो गया।
- भगवान शिव पुराणों में एक असाधारण देवता हैं, जो विनाशकारी और तपस्वी दोनों गुणों के प्रतीक हैं।
- 'नृत्य के भगवान' नटराज को उनके 108 विविध नृत्यों के लिये पूजा जाता है। नृत्य करते हुए शिव जीवन के द्वंद्वों को मूर्त रूप देते हुए सृजन और विनाश दोनों से जुड़े हुए हैं।
- इस नृत्य को एक लौकिक नृत्य माना जाता है, जिसमें शिव लौकिक नर्तक के रूप में और संसार एक मंच के रूप में था।
- नटराज के प्रतिष्ठित तत्त्व:
- प्रतिष्ठित अभ्यावेदन में नटराज को एक ज्वलंत ऑरियोल या प्रभामंडल के भीतर चित्रित किया गया है, जो संसार के चक्र का प्रतीक है।
- उनकी लंबी, बिखरी हुई जटाएँ उनके नृत्य की ऊर्जा और गतिशीलता को दर्शाती हैं।
- नटराज को आमतौर पर चार भुजाओं के साथ दिखाया जाता है, प्रत्येक हाथ में प्रतीकात्मक वस्तुएँ होती हैं जिनका गहन अर्थ है।
- नटराज के गुणों में प्रतीकवाद:
- नटराज के ऊपरी दाहिने हाथ में एक डमरू है, जो सभी प्राणियों को अपनी लयबद्ध गति में खींचता है और ऊपरी बाईं भुजा में वह अग्नि को धारण करते हैं, जो ब्रह्मांड तक को नष्ट करने की उनकी शक्ति का प्रतीक है।
- नटराज के एक पैर के नीचे कुचली हुई बौनी जैसी आकृति है, जो भ्रम और सांसारिक विकर्षणों का प्रतिनिधित्व करती है।
- अलंकरण में शिव के एक कान में नर कुंडल है, जबकि दूसरे में नारी कुंडल है।
- यह नर और मादा के संगम का प्रतिनिधित्व करता है और इसे प्रायः अर्धनारीश्वर कहा जाता है।
- शिव की भुजा के चारों ओर एक साँप मुड़ा हुआ है। साँप कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक है, जो मानव रीढ़ में सुप्त अवस्था में रहती है। यदि कुंडलिनी शक्ति जाग्रत हो जाए तो व्यक्ति सच्ची चेतना प्राप्त कर सकता है।
- नटराज रक्षक और आश्वस्तकर्ता के रूप में:
- नटराज से जुड़े दुर्जेय प्रतीकवाद के बावजूद वह एक रक्षक के रूप में भी हैं।
- उनके अगले दाहिने हाथ से बनाई गई 'अभयमुद्रा' (भय-निवारण संकेत) भक्तों को आश्वस्त करती है, भय और संदेह से सुरक्षा प्रदान करती है।
- नटराज के उठे हुए पैर और उनके अगले बाएँ हाथ का संकेत उनके पैरों की ओर इशारा करते हुए भक्तों को उनकी शरण में आने के लिये प्रेरित करते हैं।
- नटराज की मुस्कान:
- नटराज की प्रतिमा की विशिष्ट विशेषताओं में से एक उनकी हमेशा से मौजूद व्यापक मुस्कान है।
- फ्राँसीसी इतिहासकार रेनी ग्राउसेट ने नटराज की मुस्कान को "मृत्यु और जीवन, खुशी तथा दर्द दोनों" का प्रतिनिधित्व करने वाले के रूप में खूबसूरती से वर्णित किया है।
लुप्त मोम विधि:
- नई दिल्ली के भारत मंडपम में रखी गई नटराज की मूर्ति जिन मूर्तिकारों ने बनाई, उनका वंश चोलों से 34 पीढ़ी पहले का है।
- इस्तेमाल की जाने वाली क्राफ्टिंग प्रक्रिया पारंपरिक 'लुप्त मोम' कास्टिंग विधि है, जो चोल युग की है।
- लुप्त मोम विधि कम-से-कम 6,000 वर्ष पुरानी है, मेहरगढ़, बलूचिस्तान (पाकिस्तान) में एक नवपाषाण स्थल पर इस विधि का उपयोग करके तैयार किया गया तांबे का ताबीज लगभग 4,000 ईसा पूर्व का है।
- विशेष रूप से मोहनजोदड़ो की डांसिंग गर्ल को भी इसी तकनीक का उपयोग करके तैयार किया गया था।
- लुप्त मोम विधि कम-से-कम 6,000 वर्ष पुरानी है, मेहरगढ़, बलूचिस्तान (पाकिस्तान) में एक नवपाषाण स्थल पर इस विधि का उपयोग करके तैयार किया गया तांबे का ताबीज लगभग 4,000 ईसा पूर्व का है।
- इस विधि में एक विस्तृत वैक्स मॉडल बनाना, उसे जलोढ़ मिट्टी से लेप करना, वैक्स को जलाने के लिये गर्म करना और साँचे को पिघली हुई धातु से भरना शामिल है।
- चोलों ने विस्तृत धातु की मूर्तियाँ बनाने के लिये लुप्त मोम विधि में उत्कृष्टता हासिल की।
- इस तकनीक का उपयोग सहस्राब्दियों से जटिल मूर्तियाँ बनाने के लिये किया जाता रहा है।
रसायन और स्थिरता पर दूसरा बर्लिन फोरम
प्रिलिम्स के लिये:रसायन और धारणीयता पर दूसरा बर्लिन फोरम, SAICM, UNEP, स्टॉकहोम कन्वेंशन, सीसा विषाक्तता, फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र, सतत् विकास लक्ष्य मेन्स के लिये:SAICM बियॉन्ड 2020, रसायन तथा अपशिष्ट के सुदृढ़ प्रबंधन की आवश्यकता |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री ने रसायन और धारणीयता पर दूसरे बर्लिन फोरम- प्रदूषण मुक्त पृथ्वी की दिशा में हरित अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के लाभ के अंतर्गत बुलाए गए 'मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर उच्चस्तरीय संवाद' में भाग लिया।
- शिखर सम्मेलन का उद्देश्य महत्त्वपूर्ण राजनीतिक दिशा प्रदान करते हुए रासायनिक और अपशिष्ट प्रबंधन के महत्त्वपूर्ण मुद्दों के संबंध में साझा वैश्विक समझ को बढ़ावा देना है।
रसायन तथा धारणीयता पर दूसरा बर्लिन फोरम:
- रसायन तथा धारणीयता पर दूसरा बर्लिन फोरम एक उच्च स्तरीय कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य रसायनों तथा अपशिष्ट के ठोस प्रबंधन के संबंध में प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों और प्राथमिकताओं पर राजनीतिक मार्गदर्शन एवं गति प्रदान करना है।
- इसका आयोजन पर्यावरण, प्रकृति संरक्षण, परमाणु सुरक्षा और उपभोक्ता संरक्षण (BMU) के लिये जर्मन संघीय मंत्रालय द्वारा किया गया था।
- इसका उद्देश्य रसायन प्रबंधन पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (ICCM5) की आगामी 5वीं बैठक के दौरान 'SAICM बियॉन्ड 2020' के लिये समर्थन जुटाना और उच्च स्तर की महत्त्वाकांक्षा सुनिश्चित करना भी है।
- रसायन और धारणीयता पर पहला बर्लिन फोरम ने रसायनों और अपशिष्ट पर विज्ञान-नीति इंटरफेस (SPI) की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
SAICM बियॉन्ड 2020:
- अंतर्राष्ट्रीय रसायन प्रबंधन के लिये सामरिक दृष्टिकोण (SAICM), वर्ष 2006 में अपनाया गया, यह पूरे विश्व में रासायनिक सुरक्षा को बढ़ावा देने हेतु एक नीतिगत ढाँचा है।
- इसका प्रारंभिक उद्देश्य "उनके पूरे जीवन चक्र में रसायनों का सुदृढ़ प्रबंधन करना था ताकि वर्ष 2020 तक रसायनों का उत्पादन और उपयोग ऐसे तरीकों से किया जाए जो पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य पर कम प्रतिकूल प्रभावों डालें।
- SAICM का दायरा लगभग असीमित है, इसमें ज़हरीले रसायन और खतरनाक औद्योगिक गतिविधियाँ दोनों शामिल हैं। हालाँकि SAICM देशों पर कोई बाध्यकारी दायित्व नहीं थोपता है।
- चूँकि SAICM का जनादेश वर्ष 2020 में समाप्त हो गया और स्थायी रसायन प्रबंधन का लक्ष्य हासिल नहीं हो सका, इसलिये पार्टियाँ एक अनुवर्ती प्रक्रिया- SAICM बियॉन्ड 2020 विकसित करने पर सहमत हुईं, जिसे वर्ष 2020 में ICCM 5 में अपनाया जाना था।
- चूँकि कोविड-19 महामारी के कारण व्यक्तिगत बैठकें निलंबित कर दी गई हैं, जर्मनी सरकार की अध्यक्षता में UNEP द्वारा आयोजित ICCM5 का 5वाँ सत्र 25 से 29 सितंबर, 2023 तक विश्व सम्मेलन केंद्र बॉन (WCCB),जर्मनी में होगा।
रसायन और अपशिष्ट के सुदृढ़ प्रबंधन का महत्त्व:
- परिचय:
- रसायन अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों, जैसे- कृषि, उद्योग, स्वास्थ्य और उपभोक्ता वस्तुओं के लिये आवश्यक हैं। हालाँकि अगर ठीक से प्रबंधन न किया जाए तो ये मानव स्वास्थ्य तथा पर्यावरण के लिये जोखिम भी उत्पन्न करते हैं।
- WHO की वर्ष 2021 की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि चयनित रसायनों के संपर्क के कारण वर्ष 2019 में 2 मिलियन लोगों की जान जा चुकी है और 53 मिलियन विकलांगता-समायोजित जीवन-वर्ष खो गए।
- वर्ष 2019 में रासायनिक जोखिम के कारण होने वाली लगभग आधी मौतें सीसे के संपर्क में आने और उसके परिणामस्वरूप हृदय संबंधी बीमारियों के कारण हुईं।
- रसायन और अपशिष्ट का सुदृढ़ प्रबंधन निम्नलिखित के लिये महत्त्वपूर्ण है:
- मानव स्वास्थ्य सुरक्षा: उचित प्रबंधन खतरनाक रसायनों के जोखिम को कम करने में मदद करता है, जिससे तीव्र और पुरानी स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा कम हो जाता है।
- यह हानिकारक रसायनों के साथ हवा, पानी और मिट्टी जैसे प्रदूषण को रोकता है जो अंतर्ग्रहण, साँस लेने या त्वचा के संपर्क के माध्यम से मानव स्वास्थ्य को हानि पहुँचा सकते हैं।
- पर्यावरण संरक्षण: ग्रीनहाउस गैसों जैसे कुछ अपशिष्ट उत्पादों का उत्सर्जन, जलवायु परिवर्तन में योगदान कर सकती है, जिससे पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिये उचित अपशिष्ट प्रबंधन आवश्यक हो जाता है।
- संसाधन दक्षता: उचित अपशिष्ट प्रबंधन मूल्यवान सामग्रियों की पुनर्प्राप्ति और पुनर्चक्रण, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण एवं संसाधन निष्कर्षण की आवश्यकता को कम करने की अनुमति देता है।
- कच्चे संसाधनों से नई सामग्री के उत्पादन की तुलना में पुनर्चक्रण और उचित अपशिष्ट निपटान से ऊर्जा की बचत हो सकती है।
- आर्थिक लाभ: अपशिष्ट प्रबंधन और रीसाइक्लिंग उद्योग रोज़गार उत्पन्न करते हैं तथा आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करते हैं।
- उचित रासायनिक प्रबंधन खतरनाक पदार्थों के कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज की लागत को भी कम कर देता है।
- वैश्विक सहयोग: रसायन और अपशिष्ट सीमाएँ पार कर सकते हैं, जिससे वैश्विक चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता होती है।
- उदाहरण के लिये हाल ही में फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र से निकलने वाले अपशिष्ट जल (ट्रिटियम के अंश के साथ) ने विश्व में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
- वैश्विक स्तर पर रसायनों और अपशिष्ट के प्रबंधन के लिये साझा ज़िम्मेदारी को बढ़ावा देने हेतु सहयोगात्मक प्रयासों की आवश्यकता है।
- स्टॉकहोम कन्वेंशन एक प्रमुख उदाहरण के रूप में कार्य करता है।
- दीर्घकालिक स्थिरता: ज़िम्मेदार प्रबंधन, प्रदूषण को कम करके और पारिस्थितिक तंत्र पर रसायनों और अपशिष्ट के प्रभाव को कम कर भविष्य की पीढ़ियों के लिये एक स्वच्छ एवं सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करता है।
- यह सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने और ग्रह और इसके लोगों की सुरक्षा के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।
- मानव स्वास्थ्य सुरक्षा: उचित प्रबंधन खतरनाक रसायनों के जोखिम को कम करने में मदद करता है, जिससे तीव्र और पुरानी स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा कम हो जाता है।
नोट:
- स्टॉकहोम कन्वेंशन एक वैश्विक संधि है जिसका उद्देश्य दीर्घस्थायी कार्बनिक प्रदूषकों (POP), जो लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहने वाले व्यापक रसायन हैं और लोगों तथा वन्यजीवन दोनों के लिये जोखिम उत्पन्न करते हैं, से मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा करना है।
- भारत ने वर्ष 2006 में कन्वेंशन की पुष्टि की, जो इसे एक डिफॉल्ट "ऑप्ट-आउट" स्थिति बनाए रखने की अनुमति देता है, जिसका अर्थ है कि कन्वेंशन अनुबंध में संशोधन भारत पर लागू नहीं होता है, जब तक कि यह स्पष्ट रूप से संयुक्त राष्ट्र डिपॉज़िटरी के साथ अनुसमर्थन, स्वीकृति, अनुमोदन या परिग्रहण साधन जमा नहीं करता है।
- रसायनों से संबंधित अन्य सम्मेलन हैं: बेसल कन्वेंशन (खतरनाक अपशिष्टों और उनके निपटान के सीमा पार आंदोलनों के नियंत्रण पर), मिनामाटा कन्वेंशन (पारा), रॉटरडैम कन्वेंशन (अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में कुछ खतरनाक रसायनों और कीटनाशकों के लिये पूर्व सूचित सहमति प्रक्रिया पर)।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से भारत के कुछ भागों में पीने के जल में प्रदूषक के रूप में पाए जाते हैं?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: c |