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भारतीय राजनीति

EWS आरक्षण को सर्वोच्च न्यायालय ने सही माना

  • 08 Nov 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आरक्षण, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, सकारात्मक कार्रवाई, मूल संरचना सिद्धांत

मेन्स के लिये:

आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) कोटा के निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने 103वें संवैधानिक संशोधन की वैधता को बरकरार रखा, यह भारत भर में सरकारी नौकरियों और कॉलेजों में सवर्णों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिये 10% आरक्षण प्रदान करता है।

फैसला:

  • बहुमत का नज़रिया:
    • 103वें संविधान संशोधन को संविधान की आधारभूत संरचना को भंग करने वाला नहीं कहा जा सकता
    • ईडब्ल्यूएस कोटा समानता और संविधान के आधारभूत संरचना का उल्लंघन नहीं करता है। मौज़ूदा आरक्षण के अलावा यह आरक्षण संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करता है।
    • यह आरक्षण पिछड़े वर्गों को शामिल करने के लिये राज्य द्वारा सकारात्मक कार्रवाई का एक माध्यम है।
    • राज्य को शिक्षा के क्षेत्र में प्रावधान करने में सक्षम बनाकर आधारभूत संरचना का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है।
    • आरक्षण न केवल सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिये है बल्कि वंचित वर्ग हेतु भी महत्त्वपूर्ण है।
    • मंडल आयोग द्वारा निर्धारित 50% की अधिकतम सीमा के आधार पर ईडब्ल्यूएस के लिये आरक्षण का प्रावधान आधारभूत संरचना का खंडन नहीं है क्योंकि इसकी उच्चतम सीमा में लचीलापन है
      • वर्ष 1992 में इंदिरा साहनी फैसले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% की सीमा का नियम "लचीला" था। इसके अलावा इसे केवल एससी / एसटी / एसईबीसी / ओबीसी समुदायों के लिये लागू किया गया था न कि सामान्य वर्ग के लिये।
    • अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग जिनके लिये पहले से ही अनुच्छेद 15(4), 15(5) और 16(4) में विशेष प्रावधान किये गए हैं, सामान्य या अनारक्षित श्रेणी से अलग एक अलग श्रेणी में आते हैं।
  • अल्पमत का नज़रिया:
    • आरक्षण को एक समान पहुँच सुनिश्चित करने के लिये शक्तिशाली तंत्र के रूप में डिज़ाइन किया गया था। आर्थिक मानदंड को शामिल करना और एससी (अनुसूचित जाति), एसटी (अनुसूचित जनजाति), ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) को इस श्रेणी से बाहर करना तथा यह मानना कि ये लाभ उन्हें पहले से प्राप्त हैं, अन्याय है।
    • ईडब्ल्यूएस कोटे में एक समान अवसर देना एक पुनर्मूल्यांकन तंत्र हो सकता है और एससी, एसटी, ओबीसी का बहिष्कार समानता कोड के खिलाफ भेदभाव करता है तथा आधारभूत संरचना का उल्लंघन करता है।
    • 50% की अधिकतम सीमा के उल्लंघन की अनुमति देना "भविष्य में भी उल्लंघन के लिये एक कारक बन सकता है जिसका परिणाम कंपार्टमेंटलाइज़ेशन (खंडों में विभाजन) होगा।

आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) के लिये आरक्षण:

  • परिचय:
  • महत्त्व:
    • असमानता को संबोधित करता है:
      • 10% कोटे का विचार प्रगतिशील है और भारत में शैक्षिक तथा आय असमानता के मुद्दों को संबोधित कर सकता है क्योंकि नागरिकों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों को उनकी वित्तीय अक्षमता के कारण उच्च शिक्षण संस्थानों एवं सार्वजनिक रोज़गार में भाग लेने से बाहर रखा गया है।
    • आर्थिक पिछड़ों को मान्यता:
      • पिछड़े वर्ग के अलावा बहुत से लोग या वर्ग हैं जो भूख और गरीबी की परिस्थितियों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
      • संवैधानिक संशोधन के माध्यम से प्रस्तावित आरक्षण उच्च जातियों के गरीबों को संवैधानिक मान्यता प्रदान करेगा।
    • जाति आधारित भेदभाव में कमी:
      • इसके अलावा यह धीरे-धीरे आरक्षण से जुड़े कलंक को हटा देगा क्योंकि आरक्षण का ऐतिहासिक रूप से जाति से संबंध रहा है और उच्च जाति वाले इन लोगों को हेय दृष्टि से देखते हैं ।
  • चिंताएँ:
    • डेटा की अनुपलब्धता:
      • EWS कोटे में उद्देश्य और कारण के बारे में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि नागरिकों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों को आर्थिक रूप से अधिक विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्तियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये उनकी वित्तीय अक्षमता के कारण उच्च शिक्षण संस्थानों व सार्वजनिक रोज़गार में भाग लेने से बाहर रखा गया है।
      • इस प्रकार के तथ्य संदिग्ध हैं क्योंकि सरकार ने इस बात का समर्थन करने के लिये कोई डेटा तैयार नहीं किया है।
    • मनमाना मानदंड:
      • इस आरक्षण हेतु पात्रता तय करने के लिये सरकार द्वारा उपयोग किये जाने वाले मानदंड अस्पष्ट हैं और यह किसी डेटा या अध्ययन पर आधारित नहीं है।
      • यहाँ तक कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी सरकार से सवाल किया कि क्या राज्यों ने EWS आरक्षण देने के लिये मौद्रिक सीमा तय करते समय हर राज्य के लिये प्रति व्यक्ति जीडीपी की जाँच की है।
      • आँकड़े बताते हैं कि भारत के राज्यों में प्रति व्यक्ति आय व्यापक रूप से भिन्न है, जैसे गोवा की प्रति व्यक्ति आय 4 लाख है, जो कि सबसे अधिक है, वहीं बिहार की प्रति व्यक्ति आय 40,000 रुपए है।

आगे की राह

  • अब समय आ गया है कि चुनावी लाभ के लिये आरक्षण के दायरे का लगातार विस्तार करने की भारतीय राजनीतिक दलों की प्रवृत्ति को रोका जाए, साथ ही यह महसूस किया जाने लगा है कि आरक्षण सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का रामबाण इलाज़ नहीं है।
  • विभिन्न मानदंडों के आधार पर आरक्षण देने के बजाय सरकार को शिक्षा की गुणवत्ता और अन्य प्रभावी सामाजिक उत्थान के उपायों पर ध्यान देना चाहिये। इससे उद्यमिता की भावना पैदा होगी जो उन्हें नौकरी तलाशने के बजाय नौकरी प्रदाता की स्थिति प्रदान करेगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. भारत का संविधान संघवाद, धर्मनिरपेक्षता, मौलिक अधिकारों और लोकतंत्र के संदर्भ में 'मूल संरचना' को परिभाषित करता है।
  2. भारत का संविधान नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा और उन आदर्शों को संरक्षित करने के लिये 'न्यायिक समीक्षा' का प्रावधान करता है जिन पर संविधान आधारित है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • भारत का संविधान बुनियादी ढाँचे को परिभाषित नहीं करता है, यह एक न्यायिक नवाचार है।
  • केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले (वर्ष 1973) में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि संसद संविधान के किसी भी हिस्से में तब तक संशोधन कर सकती है जब तक कि वह संविधान की मूल संरचना या आवश्यक विशेषताओं में परिवर्तन या संशोधन नहीं करती है।
  • हालाँकि न्यायालय ने 'मूल संरचना' शब्द को परिभाषित नहीं किया, केवल कुछ सिद्धांतों जैसे संघवाद, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र को इसके हिस्से के रूप में सूचीबद्ध किया है।
  • मूल संरचना' सिद्धांत की व्याख्या संविधान की सर्वोच्चता, कानून के शासन, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत, संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य, सरकार की संसदीय प्रणाली, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों के सिद्धांत, कल्याणकारी राज्य आदि को शामिल करने के लिये की गई है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • संविधान में कोई प्रत्यक्ष और स्पष्ट प्रावधान नहीं है जो न्यायालय को कानूनों को अमान्य करने का अधिकार देता है, लेकिन संविधान ने प्रत्येक भाग पर निश्चित सीमाएँ लगाई हैं, जिसके उल्लंघन से कानून शून्य हो जाएगा। न्यायालय को यह तय करने का काम सौंपा गया है कि क्या किसी संवैधानिक सीमा का उल्लंघन किया गया है या नहीं। अतः कथन 2 सही नहीं है।

अतः विकल्प (d) सही है।

स्रोत: हिंदू

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