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सामाजिक न्याय

SC और ST समुदाय के विरुद्ध अपराध में बढ़ोतरी

  • 01 Oct 2020
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, SC/ST (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 1989

मेन्स के लिये

SC और ST समुदाय के विरुद्ध अपराध से संबंधित मामले, भारत में अपराध की समग्र स्थिति

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau-NCRB) द्वारा हाल ही में जारी ‘भारत में अपराध-2019’ (Crime in India-2019) रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018 की अपेक्षा वर्ष 2019 में अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के विरुद्ध होने वाले अपराधों में क्रमशः 7.3% और 26.5% की बढ़ोतरी देखने को मिली है।

प्रमुख बिंदु

अनुसूचित जाति के संबंध में-

  • ‘भारत में अपराध-2019’ रिपोर्ट के अनुसार, अनुसूचित जातियों (SC) के विरुद्ध होने वाले अपराधों के कुल 45,935 मामले दर्ज किये गए और वर्ष 2018 की अपेक्षा वर्ष 2019 में इस प्रकार के अपराधों में 7.3% की वृद्धि दर्ज हुई।
    • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 में अनुसूचित जातियों (SC) के विरुद्ध होने वाले अपराधों के कुल 42,793 मामले दर्ज किये गए थे।
  • अनुसूचित जातियों (SC) के विरुद्ध होने वाले अपराधों के सबसे अधिक मामले उत्तर प्रदेश (11,829) में दर्ज किये गए, जिसके बाद राजस्थान और बिहार का स्थान है, जहाँ क्रमशः 6,794 और 6,544 मामले सामने आए।
  • अनुसूचित जातियों (SC) से संबंधित महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मामलों में राजस्थान सबसे शीर्ष स्थान पर रहा और वहाँ ऐसे कुल 554 मामले दर्ज किये गए, इसके बाद उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का स्थान रहा जहाँ क्रमशः 537 और 510 मामले दर्ज किये गए।
  • अनुसूचित जाति की प्रति लाख जनसंख्या पर अपराध की दर वर्ष 2018 की 21.2 से बढ़कर वर्ष 2019 में 22.8 हो गई है। वर्ष 2019 में अनुसूचित जाति के खिलाफ हुए अपराध के कुल मामलों में से 28.9% मामले (13,273) साधारण चोटों से संबंधित थे। 

अनुसूचित जनजाति के संबंध में-

  • वहीं दूसरी ओर वर्ष 2019 में अनुसूचित जनजातियों (ST) के विरुद्ध होने वाले अपराधों के कुल 8,257 मामले दर्ज किये गए, जो कि वर्ष 2018 की तुलना में 26.5% की बढ़ोतरी है। 
    • वर्ष 2018 में अनुसूचित जनजातियों (ST) के विरुद्ध होने वाले अपराधों के कुल 6,528  मामले दर्ज किये गए थे। 
  • मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजातियों (ST) के विरुद्ध होने वाले अपराधों के सबसे अधिक मामले (1,922) दर्ज किये गए, इसके बाद राजस्थान और ओड़िशा का स्थान है, जहाँ क्रमशः 1,797 और 576 मामले दर्ज किये गए।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में अनुसूचित जनजातियों (ST) के विरुद्ध होने वाले अपराधों और अत्याचारों में सबसे बड़ी संख्या साधारण चोटों की थी, जिसके कुल 1,675 मामले दर्ज किये गए, जो कि अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध होने वाले अपराधों के कुल मामलों का 20.3 % है।
  • इसके बाद आदिवासी महिलाओं के साथ दुष्कर्म के 1,110 मामले सामने आए, जो कि कुल मामलों का 10.7 % है, वहीं वर्ष 2019 में महिलाओं पर हमले और मारपीट के 880 मामले दर्ज किये गए, जो कि कुल मामलों का 13.4 % है।
    • आदिवासी महिलाओं के साथ दुष्कर्म की सबसे अधिक 358 घटनाएँ मध्य प्रदेश में दर्ज की गईं, जिसके बाद इसके बाद छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र का स्थान था, जहाँ क्रमशः 180 और 114 घटनाएँ दर्ज हुईं।

समग्र अपराध के आँकड़े

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ‘भारत में अपराध-2019’ रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में कुल 51,56,172 संज्ञेय अपराध के मामले दर्ज किये गए, जिसमें से 32,25,701 मामले भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत थे, जबकि 19,30,471 मामले केंद्र और स्थानीय स्तर के विशेष कानूनों के तहत दर्ज किये गए थे।
    • इस प्रकार वर्ष 2019 में कुल अपराधों के मामले में 1.6 % की वृद्धि हुई है।
  • आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 के दौरान हत्या के कुल 28,918 मामले दर्ज किये गए, जबकि वर्ष 2018 में हत्या के कुल 29,019 मामले सामने आए थे, इस प्रकार वर्ष 2019 में वर्ष 2018 की अपेक्षा हत्या के मामलों में 0.3% की मामूली कमी देखने को मिली है।
  • वर्ष 2019 के दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 4,05,861 मामले दर्ज किये गए। यह संख्या वर्ष 2018 में दर्ज मामलों की संख्या (3,78,236) से 7.3% अधिक थी। प्रति लाख जनसंख्या पर महिलाओं के खिलाफ अपराधों की सर्वाधिक दर असम में दर्ज की गई। 
  • रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2019 में साइबर अपराध में कुल 63.5 % की वृद्धि देखने को मिली है। वर्ष 2019 में 2018 में साइबर अपराध के कुल 44,546 मामले दर्ज किये गए, जबकि वर्ष 2018 में इन मामलों की संख्या 27,248 थी। 

संबंधित मुद्दे

  • पुलिस सुधार की वकालत करने वाले समूह राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (CHRI) ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों के संबंध में कहा है कि पुलिस प्रशासन द्वारा अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के विरुद्ध भेदभावपूर्ण कार्रवाई से संबंधित काफी कम मामले दर्ज किये जा रहे हैं, जिससे स्पष्ट है कि SC और ST समुदाय के साथ होने वाला भेदभाव सही ढंग से इन आँकड़ों में नहीं दर्शाया गया है।
  • यह दर्शाता है कि पुलिस प्रशासन द्वारा अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के विरुद्ध होने वाले भेदभावपूर्ण व्यवहार को रोकने के लिये अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 का सही ढंग से प्रयोग नहीं किया जा रहा है।

क्या है SC/ST (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम?

  • अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) से संबंधित लोगों के उत्थान हेतु तमाम सामाजिक-आर्थिक प्रयासों के बावजूद इन वर्गों के लोगों की समस्याओं को सही ढंग से संबोधित कर पाना काफी चुनौतीपूर्ण हो रहा था।
  • ऐसी स्थिति में संसद ने वर्ष 1989 में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 पारित किया और फिर यह राष्ट्रपति की मंज़ूरी के साथ तत्कालीन जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू हो गया।
  • यदि गैर-अनुसूचित जाति और गैर-अनुसूचित जनजाति वर्ग का कोई भी व्यक्ति किसी भी तरह से किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति वर्ग से संबंध रखने वाले व्यक्ति को प्रताड़ित करता है, तो उस व्यक्ति के विरुद्ध यह कानून कार्य करता है।
  • साथ ही ऐसे मामलों के लिये इस कानून के तहत विशेष न्यायालय बनाए जाते हैं जो ऐसे प्रकरण में तुरंत निर्णय लेते हैं।

आगे की राह

  • यद्यपि स्वतंत्र भारत में विभिन्न सरकारों द्वारा सामाजिक-आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने और अत्याचार पर अंकुश लगाने हेतु कई उपाय किये गए हैं, किंतु प्रायः इनके परिणाम संतोषजनक नहीं रहे हैं।
  • सरकार द्वारा बनाए गए तमाम तरह के कानून इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि केवल कानून के निर्माण से इस प्रकार की सामाजिक बुराइयों को समाप्त नहीं किया जा सकता है। 
  • शिक्षा, रोज़गार और अन्य तमाम माध्यमों से अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय का सामाजिक-आर्थिक उत्थान कर समाज में उनका सार्थक एकीकरण सुनिश्चित किया जा सकता है। इसके अलावा कानूनों के सही ढंग से कार्यान्वयन पर भी ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है, ताकि इन कानूनों का उचित पालन सुनिश्चित किया जा सके।

स्रोत: द हिंदू

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