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डेली न्यूज़

  • 08 Sep, 2021
  • 45 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

भारतीय शहरों की वायु गुणवत्ता में सुधार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री ने इंटरनेशनल डे ऑफ क्‍लीन एयर फॉर ब्‍लू स्‍काई के अवसर पर कहा कि बेहतर वायु गुणवत्ता वाले शहरों की संख्या में वृद्धि हुई है।

  • इस अवसर पर उन्होंने दिल्ली के आनंद विहार में पहले कार्यात्मक स्मॉग टॉवर (Smog Tower) का भी उद्घाटन किया तथा  वायु प्रदूषण या 'प्राण' (Prana) के नियमन के लिये पोर्टल का शुभारंभ किया।
  • इससे पूर्व दिल्ली के कनॉट प्लेस में एक स्मॉग टॉवर स्थापित किया गया था तथा चंडीगढ़ में भारत के सबसे ऊँचे वायु शोधक (Air Purifier) का भी उद्घाटन किया गया था।

प्रमुख बिंदु

  • वायु गुणवत्ता की स्थिति:
    • वर्ष 2020 में:
      • वर्ष 2020 में बेहतर वायु गुणवत्ता वाले शहरों की संख्या बढ़कर 104 हो गई है, जो वर्ष 2018 में 86 थी।
    • वर्ष 2015 से वर्ष 2019:
      • पार्टिकुलेट मैटर (PM) 10 स्तर: यह मापदंड 23 शहरों में "घटती प्रवृत्ति", 239 शहरों में "उतार-चढ़ाव की प्रवृत्ति" और 38 शहरों में "बढ़ती प्रवृत्ति" को प्रदर्शित करता है।
      • पीएम 2.5 का स्तर: यह मापदंड11 शहरों में "घटती प्रवृत्ति", 79 शहरों में "उतार-चढ़ाव की प्रवृत्ति" और 9 शहरों में "बढ़ती प्रवृत्ति" को प्रदर्शित करता है।
  • सुधार का कारण:
    • कोविड-19 के कारण हुए लॉकडाउन के परिणामस्वरूप कई शहरों में उद्योगों के बंद होने, वाहनों के कम चलने, निर्माण गतिविधियों में कमी आने और मानवीय गतिविधियों के अभाव के चलते वायु गुणवत्ता में “अस्थायी सुधार” हुआ था।
    • हाल के वर्षों में वायु प्रदूषण से निपटने के लिये सरकार की पहलों ने वायु गुणवत्ता में सुधार करने में भी मदद की है।
  • प्राण पोर्टल:
    • इसे 'नॉन एटेनमेंट सिटीज़' (Non-Attainment Cities- NAC) में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के तहत लॉन्च किया गया था, जो NCAP के तहत परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं करते थे।
    • इससे वर्ष  2024 तक देश भर में पार्टिकुलेट मैटर (PM10 और PM2.5) की सांद्रता में 20-30% की कमी करने का लक्ष्य है।
    • यह शहर की वायु कार्ययोजना के कार्यान्वयन की भौतिक और वित्तीय स्थिति पर नज़र रखने में सहायता करेगा और लोगों  में वायु गुणवत्ता के बारे में जानकारी प्रसारित करेगा। 
  • संबंधित पहल:
    • वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान तथा अनुसंधान प्रणाली:
      • इसे भारत के बड़े महानगरीय शहरों हेतु निकट वास्तविक समय में वायु गुणवत्ता पर स्थान विशिष्ट जानकारी प्रदान करने के लिये "सफर" के रूप में जाना जाता है।
    • वायु गुणवत्ता सूचकांक:
      • AQI लोगों को वायु गुणवत्ता की स्थिति के प्रभावी संचार के लिये एक उपकरण है, जिसे समझना आसान है।
        • विभिन्न AQI श्रेणियों के तहत कार्यान्वयन हेतु दिल्ली एनसीआर के लिये ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान तैयार किया गया है।
      • AQI को आठ प्रदूषकों के लिये विकसित किया गया है- PM2.5, PM10, अमोनिया, लेड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, ओज़ोन और कार्बन मोनोऑक्साइड।
    • वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने हेतु:
      • बीएस-VI वाहनों की शुरुआत, इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहन, एक आपातकालीन उपाय के रूप में सम-विषम और वाहनों के प्रदूषण को कम करने के लिये पूर्वी व पश्चिमी पेरिफेरल एक्सप्रेसवे का निर्माण।
    • वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिये नया आयोग:
      • यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता से संबंधित समस्याओं के बेहतर समन्वय, अनुसंधान, पहचान तथा समाधान के लिये बनाया गया है।
    • टर्बो हैप्पी सीडर (THS) खरीदने के लिये किसानों को सब्सिडी देना, यह ट्रैक्टर पर लगी एक मशीन होती है तथा पराली जलाने की घटनाओं में कमी लाने हेतु पराली को काटती और उखाड़ती है।

पार्टिकुलेट मैटर/कणिका पदार्थ

  • परिचय:
    • ‘पार्टिकुलेट मैटर’, जिसे ‘कण प्रदूषण’ भी कहा जाता है, का आशय हवा में पाए जाने वाले ठोस कणों और तरल बूँदों के मिश्रण से है। यह श्वसन संबंधी समस्याओं का कारण बनता है और दृश्यता को भी कम करता है।
    • इसमें शामिल हैं:
      • PM10: श्वसन योग्य वे कण जिनका व्यास प्रायः 10 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है;
      • PM2.5: अतिसूक्ष्म श्वसन योग्य वे कण जिनका व्यास प्रायः 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है।
  • पार्टिकुलेट मैटर का स्रोत
    • ये प्रायः प्रत्यक्ष तौर पर निर्माण स्थल, कच्ची सड़कों, खेतों, धुएँ के ढेर या आग आदि से उत्सर्जित होते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

महिलाओं के प्रति अपराधों की बढ़ती शिकायतें : एनसीडब्ल्यू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने सूचित किया कि वर्ष 2021 के प्रारंभिक आठ महीनों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की शिकायतों में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 46% की वृद्धि हुई है।

  • राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन जनवरी 1992 में राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 के तहत एक सांविधिक निकाय के रूप में किया गया था। इसका उद्देश्य महिलाओं को जीवन के सभी क्षेत्रों में समानता और समान भागीदारी हासिल करने में सक्षम बनाने की दिशा में प्रयास करना है।
  • अक्तूबर 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को एक ‘कभी न खत्म होने वाले चक्र’ (Never-Ending Cycle) के रूप में परिभाषित किया।

प्रमुख बिंदु

महिलाओं के प्रति हिंसा:

  • परिचय:
    • संयुक्त राष्ट्र महिलाओं के खिलाफ हिंसा को "लिंग आधारित हिंसा के रूप में परिभाषित करता है, जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं को शारीरिक, यौन या मानसिक नुकसान या पीड़ा होती है, जिसमें इस तरह के कृत्यों की धमकी, ज़बरदस्ती या मनमाने ढंग से उनको स्वतंत्रता से वंचित (चाहे सार्वजनिक या निजी जीवन में हो) करना शामिल है।  
    • महिलाओं के खिलाफ हिंसा एक सामाजिक, आर्थिक, विकासात्मक, कानूनी, शैक्षिक, मानव अधिकार और स्वास्थ्य (शारीरिक और मानसिक) का मुद्दा है।
    • कोविड -19 के प्रकोप के बाद से सामने आए आँकड़ों और रिपोर्टों से पता चला है कि महिलाओं एवं बालिकाओं के खिलाफ सभी प्रकार की हिंसा, विशेष रूप से घरेलू हिंसा में वृद्धि हुई है।
  • कारण:
    • लैंगिक असमानता महिलाओं के खिलाफ हिंसा के बड़े कारणों में से एक है जो महिलाओं को कई प्रकार की हिंसा के जोखिम में डालती है।
    • उनके अधिकारों को व्यापक रूप से संबोधित करने वाले कानूनों की अनुपस्थिति और मौजूदा विधियों की अज्ञानता।
    • सामाजिक रवैये, कलंक और कंडीशनिंग ने भी महिलाओं को घरेलू हिंसा के प्रति संवेदनशील बना दिया है तथा ये मामलों की कम रिपोर्टिंग के मुख्य कारक हैं।
  • प्रभाव:
    • महिलाओं और लड़कियों के विरुद्ध हिंसा के प्रतिकूल मनोवैज्ञानिक, यौन और प्रजनन स्वास्थ्य परिणाम महिलाओं को उनके जीवन के सभी चरणों में प्रभावित करते हैं।
    • उदाहरण के लिये प्रारंभिक शैक्षिक नुकसान न केवल सार्वभौमिक स्कूली शिक्षा और लड़कियों के लिये शिक्षा के अधिकार हेतु प्राथमिक बाधा उत्पन्न करते हैं; बल्कि उच्च शिक्षा तक उनकी पहुँच को प्रतिबंधित करने और यहाँ तक ​​कि श्रम बाज़ार में महिलाओं के लिये सीमित अवसरों की उपलब्धता के लिये भी दोषी हैं।
  • वैश्विक प्रयास:
    • ‘स्पॉटलाइट’ इनिशिएटिव: यूरोपीय संघ (EU) और संयुक्त राष्ट्र (UN) ने महिलाओं एवं लड़कियों के विरुद्ध हिंसा के सभी रूपों को खत्म करने पर केंद्रित इस नई वैश्विक, बहु-वर्षीय पहल शुरू की है।
      • इसका यह नाम इसलिये रखा गया है, क्योंकि यह विभिन्न मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती है और उन्हें लैंगिक समानता एवं महिला सशक्तीकरण के प्रयासों के केंद्र में रखती है।
    • ‘महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के उन्मूलन हेतु अंतर्राष्ट्रीय दिवस- 25 नवंबर।
    • ‘यूएन वीमेन’ संयुक्त राष्ट्र की एक इकाई है, जो लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु समर्पित है।
  • भारतीय प्रयास

आगे की राह 

  • महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा समानता, विकास, शांति के साथ-साथ महिलाओं और लड़कियों के मानवाधिकारों की पूर्ति में एक बाधा बनी हुई है।
  • कुल मिलाकर सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs)  का वादा -’किसी को पीछे नहीं छोड़ना’ - महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा को समाप्त किये बिना पूरा नहीं किया जा सकता है।
  • महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध का समाधान केवल कानून के तहत अदालतों  में ही नहीं किया जा सकता है बल्कि इसके लिये एक समग्र दृष्टिकोण और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बदलना आवश्यक है।
  • इसके लिये कानून निर्माताओं, पुलिस अधिकारियों, फोरेंसिक विभाग, अभियोजकों, न्यायपालिका, चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग, गैर-सरकारी संगठनों, पुनर्वास केंद्रों सहित सभी हितधारकों को एक साथ मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


शासन व्यवस्था

बैठने का अधिकार

प्रिलिम्स के लिये

बैठने का अधिकार, राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत

मेन्स के लिये

बैठने के अधिकार का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तमिलनाडु सरकार ने तमिलनाडु दुकान और प्रतिष्ठान अधिनियम, 1947 में संशोधन के लिये एक विधेयक पेश किया है।

  • इस विधेयक में कर्मचारियों के लिये अनिवार्य रूप से बैठने की सुविधा प्रदान करने हेतु एक उपधारा जोड़ने की मांग की गई है।

प्रमुख बिंदु

  • विधेयक की मुख्य बातें:
    • प्रस्तावित संशोधन: अधिनियम की प्रस्तावित धारा 22-A में कहा गया है कि प्रत्येक प्रतिष्ठान के परिसर में सभी कर्मचारियों के बैठने की उपयुक्त व्यवस्था होगी ताकि वे अवसर पड़ने पर बैठने का लाभ उठा सकें।
    • विधेयक की आवश्यकता: दुकानों और प्रतिष्ठानों में कार्यरत कर्मचारियों को ड्यूटी के दौरान खड़े रहने के लिये मजबूर किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
    • महत्त्व: इससे बड़े और छोटे प्रतिष्ठानों के हज़ारों कर्मचारियों, विशेष रूप से कपड़ा और आभूषण शोरूम में काम करने वालों को लाभ होगा।
  • समान विधान: कुछ वर्ष पहले केरल में कपड़ा शोरूम के कर्मचारियों ने 'बैठने के अधिकार' की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया था।
    • इसने केरल सरकार को उनके लिये बैठने की व्यवस्था करने हेतु वर्ष 2018 में केरल दुकान और प्रतिष्ठान अधिनियम (Kerala Shops and Establishments Act) में संशोधन करने के लिये प्रेरित किया।

आगे की राह

  • बैठने का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 42 (राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों का हिस्सा) के अनुसरण में एक नया कदम है जो राज्य को कार्यस्थल पर न्यायसंगत और मानवीय परिस्थितियाँ प्रदान करने हेतु प्रावधान करने के लिये प्रेरित करता है।
  • इसलिये संसद को इसका संज्ञान लेकर बैठने के अधिकार को अखिल भारतीय आधार पर कानून बनाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

दीपोर बील: इको-सेंसिटिव ज़ोन

प्रिलिम्स के लिये: 

इको-सेंसिटिव ज़ोन, दीपोर बील वन्यजीव अभयारण्य, काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, ब्रह्मपुत्र नदी  

मेन्स के लिये:

इको-सेंसिटिव ज़ोन के निर्धारण हेतु मानदंड

चर्चा में क्यों?    

हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने दीपोर बील वन्यजीव अभयारण्य (असम) को पर्यावरण-संवेदी क्षेत्र/ इको-सेंसिटिव ज़ोन के रूप में अधिसूचित किया है।

प्रमुख बिंदु 

  • दीपोर बील:
    • दीपोर बील के बारे में:
      • यह असम की सबसे बड़ी मीठे पानी की झीलों में से एक है और बर्डलाइफ इंटरनेशनल द्वारा एक महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र घोषित होने के अलावा राज्य का एकमात्र रामसर स्थल है।
      • यह असम के गुवाहाटी शहर के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है और ब्रह्मपुत्र नदी का पूर्ववर्ती जल चैनल है।
      • यह झील गर्मियों में 30 वर्ग किमी. तक फैलती है और सर्दियों में लगभग 10 वर्ग किमी. तक कम हो जाती है। वन्यजीव अभयारण्य इस आर्द्रभूमि (बील) के भीतर 4.1 वर्ग किमी. में स्थित है।
    • महत्त्व:
      • यह जलीय वनस्पतियों और एवियन जीवों (Avian Fauna) के लिये एक अद्वितीय/अनूठा आवास है।
      • गुवाहाटी शहर के लिये एकमात्र प्रमुख स्टॉर्म वाटर स्टोरेज (Storm-Water Storage Basin) होने के अलावा इसका जैविक और पर्यावरणीय दोनों महत्त्व है।
      • यह कई स्थानीय परिवारों के लिये आजीविका का साधन प्रदान करती है।
        • हाल ही में असम के मछुआरे समुदाय की छह युवा लड़कियों ने एक बायोडिग्रेडेबल और कम्पोस्टेबल योगा मैट (Biodegradable and Compostable Yoga Mat) विकसित किया है जिसे 'मूरहेन योगा मैट' (Moorhen Yoga Mat) कहा जाता है।
    • चिंताएँ:
      • इसका ( दीपोर बील) जल विषाक्त हो गया है जिस कारण कई जलीय पौधे जिन्हें हाथियों द्वारा खाद्य के रूप में प्रयोग किया जाता था, समाप्त हो गए हैं।
      •  यहाँ दशकों पुराना रेलवे ट्रैक है  जिसे बढ़ाकर दोगुना करने के साथ ही विद्युतीकृत भी किया जाना है। इसके दक्षिणी किनारे पर मानव निवास और वाणिज्यिक इकाइयों द्वारा अतिक्रमण के चलते अपशिष्ट पदार्थों की डंपिंग (Garbage Dump) होती है।

Deepor-Beel

  • इको-सेंसिटिव ज़ोन:
    • परिचय:
      • इको-सेंसिटिव जोन (ESZ) या पर्यावरण संवेदी क्षेत्र, संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास 10 किलोमीटर के भीतर के क्षेत्र हैं।
      • संवेदनशील गलियारे, संपर्क और पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण खंडों और प्राकृतिक संयोजन के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्र होने की स्थिति में 10 किमी. से अधिक क्षेत्र को भी इको-सेंसिटिव ज़ोन में शामिल किया जा सकता है।
      • ESZ को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा अधिसूचित किया जाता है।
      • इसका मूल उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आस-पास कुछ गतिविधियों को विनियमित करना है ताकि संरक्षित क्षेत्रों के निकटवर्ती संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र पर ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके
    • ESZ में गतिविधियों का विनियमन:
      • प्रतिबंधित गतिविधियाँ: वाणिज्यिक खनन, मिलों, उद्योगों के कारण होने वाला प्रदूषण (वायु, जल, मिट्टी, शोर आदि), प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं की स्थापना (HEP), लकड़ी का व्यावसायिक उपयोग, राष्ट्रीय उद्यान के ऊपर गर्म हवा के गुब्बारे जैसी पर्यटन गतिविधियाँ, निर्वहन अपशिष्ट या किसी भी ठोस अपशिष्ट या खतरनाक पदार्थों का उत्पादन जैसी गतिविधियाँ।
      • विनियमित गतिविधियाँ: वृक्षों की कटाई, होटल और रिसॉर्ट्स की स्थापना, प्राकृतिक जल संसाधनों का वाणिज्यिक उपयोग, बिजली के तारों का विस्तार, कृषि प्रणाली में व्यापक परिवर्तन आदि।
    • अनुमत गतिविधियाँ: इसके तहत कृषि या बागवानी प्रथाओं, वर्षा जल संचयन, जैविक खेती, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग, सभी गतिविधियों के लिये हरित प्रौद्योगिकी को अपनाने आदि की अनुमति होती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

एयर-लॉन्च्ड अनमैन्ड एरियल व्हीकल हेतु भारत-अमेरिका समझौता

प्रिलिम्स के लिये :

मानव रहित विमान अथवा  ड्रोन स्वार्म, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन

मेन्स के लिये :

भारत और अमेरिका के बीच रक्षा समझौता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और अमेरिका ने एक एयर-लॉन्च्ड अनमैन्ड एरियल व्हीकल (ALUAV) या ड्रोन को संयुक्त रूप से विकसित करने के लिये एक परियोजना समझौते (PA) पर हस्ताक्षर किये हैं जिसे विमान से लॉन्च किया जा सकता है।

  • भारत के रक्षा मंत्रालय (MoD) तथा अमेरिकी रक्षा विभाग (DoD) के बीच रक्षा प्रौद्योगिकी और व्यापार पहल (DTTI) को लेकर संयुक्त कार्य समूह वायु प्रणाली के तहत परियोजना समझौते (PA) पर हस्ताक्षर किये गए थे।

प्रमुख बिंदु

  • परियोजना समझौते (PA) के बारे में: 
    • लक्ष्य: सहयोग के तहत दोनों देश ALUAV प्रोटोटाइप के सह-विकास के लिये सिस्टम के डिज़ाइन, विकास, प्रदर्शन, परीक्षण और मूल्यांकन की दिशा में काम करेंगे।
      • एयर-लॉन्च्ड अनमैन्ड एरियल व्हीकल (ALUAV) के लिये यह परियोजना समझौते (PA), भारत के रक्षा मंत्रालय (MoD) और अमेरिकी रक्षा विभाग (DoD) के बीच अनुसंधान, विकास, परीक्षण एवं मूल्यांकन (RDT&E) हेतु हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन का हिस्सा है।
        • इसे पहली बार जनवरी 2006 में हस्ताक्षरित किया गया था और जनवरी 2015 में इसे नवीनीकृत किया गया था। 
    • भारतीय प्रतिभागी: यह परियोजना समझौता (PA), वायु सेना अनुसंधान प्रयोगशाला, भारतीय वायु सेना तथा रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के बीच सहयोग हेतु रूपरेखा तैयार करता है।
    • निष्पादन: भारतीय और अमेरिकी वायु सेना के साथ परियोजना समझौता (PA) के निष्पादन के लिये डीआरडीओ में स्थापित वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान (ADE) तथा वायु सेना अनुसंधान प्रयोगशाला ( AFRL ) में स्थापित एयरोस्पेस सिस्टम निदेशालय प्रमुख संगठन हैं।
    • महत्त्व:  यह समझौता रक्षा उपकरणों के सह-विकास के माध्यम से दोनों राष्ट्रों के बीच रक्षा प्रौद्योगिकी सहयोग को मज़बूत करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
      • यह भविष्य में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस समर्थित ड्रोन स्वार्म (Drone Swarm) को संयुक्त निर्माण की ओर ले जा सकता है जो विमान से लॉन्च होने में सक्षम है ताकि विरोधी की वायु रक्षा प्रणालियों को नष्ट कर सके।
  • रक्षा व्यापार और प्रौद्योगिकी पहल (DTTI): 
    • गठन: ‘रक्षा व्यापार और प्रौद्योगिकी पहल’ (DTTI) को वर्ष 2012 में सैन्य प्रणालियों के सह-उत्पादन और सह-विकास के लिये एक महत्त्वाकांक्षी पहल के रूप में घोषित किया गया था, लेकिन कई प्रयासों के बावजूद इस पहल में वास्तव में कोई प्रगति नहीं की जा सकी है।
    • उद्देश्य: पारंपरिक ‘क्रेता-विक्रेता’ की धारणा के बजाय सहयोगी दृष्टिकोण की ओर आगे बढ़ते हुए अमेरिका और भारत के रक्षा औद्योगिक आधार को मज़बूत करना।
      • यह कार्य सह-विकास और सह-उत्पादन के माध्यम से तकनीकी सहयोग के नए क्षेत्रों की खोज कर किया जाएगा।
    • परियोजाएँ: DTTI के तहत परियोजनाओं की पहचान निकट, मध्यम और दीर्घकालिक के रूप में की गई है।
      • निकट अवधि की परियोजनाओं में ‘एयर-लॉन्च स्मॉल अनमैन्ड सिस्टम’ (ड्रोन स्वार्म), ‘लाइटवेट स्मॉल आर्म्स टेक्नोलॉजी’ और ‘इंटेलिजेंस-सर्विलांस-टारगेटिंग एंड रिकोनिसेंस’ (ISTAR) सिस्टम शामिल हैं।
      • मध्यम अवधि की परियोजनाओं में ‘समुद्री डोमेन जागरूकता समाधान’ और ‘वर्चुअल ऑगमेंटेड मिक्स्ड रियलिटी फॉर एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस’ (VAMRAM) शामिल हैं।
      • दीर्घकालिक परियोजनाओं में भारतीय सेना के लिये ‘टेरेन शेपिंग ऑब्सटेकल (लीथल एम्युनिशन) और काउंटर-यूएएस, रॉकेट, आर्टिलरी एवं मोर्टार (CURAM) प्रणाली नामक एंटी-ड्रोन तकनीक शामिल हैं।
    • संयुक्त कार्यसमूह: DTTI के तहत संबंधित डोमेन में पारस्परिक रूप से सहमत परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करने हेतु थल, नौ, वायु और विमान वाहक प्रौद्योगिकियों पर संयुक्त कार्य समूहों की स्थापना की गई है।

भारत और अमेरिका के बीच अन्य प्रमुख समझौते

  • मूलभूत विनिमय तथा सहयोग समझौता ( Basic Exchange and Cooperation Agreement - BECA) बड़े पैमाने पर भू-स्थानिक खुफिया जानकारी और रक्षा के लिये मानचित्रों एवं उपग्रह छवियों पर जानकारी साझा करने से संबंधित है।
    • भारत और अमेरिका के बीच वर्ष 2020 में इस पर हस्ताक्षर किये गए थे।
  • संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (Communications Compatibility and Security Agreement- COMCASA) पर वर्ष 2018 में हस्ताक्षर किये गए थे।
    • इसका उद्देश्य दो सशस्त्र बलों के हथियार प्लेटफाॅर्मों (Weapons Platforms) के बीच संचार की सुविधा प्रदान करना है।
  • लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) पर पूरे 14 साल बाद वर्ष 2016 में हस्ताक्षर किये गए थे।
    • इसका उद्देश्य विश्व भर में आपसी रसद सहायता प्रदान करना है।
  • वर्ष 2002 में सरकार द्वारा सैन्य सूचना समझौते की सामान्य सुरक्षा (GSOMIA) पर हस्ताक्षर किये गए थे।
    • इसका उद्देश्य अमेरिका द्वारा साझा की गई सैन्य जानकारी की रक्षा करना है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

शिक्षक पर्व 2021

प्रिलिम्स के लिये:

नई शिक्षा नीति (NEP) 2020, नेशनल इनिसिएटिव फॉर स्कूल हेड्स एंड टीचर्स होलीस्टिक एडवांसमेंट, भारतीय सांकेतिक भाषा शब्दकोश, निपुण, CSR

मेन्स के लिये:

भारत में शिक्षा संबंधी प्रमुख पहलें

चर्चा में क्यों?

शिक्षकों के योगदान को मान्यता देने और नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 को एक कदम आगे ले जाने के लिये शिक्षा मंत्रालय द्वारा 5-17 सितंबर तक शिक्षक पर्व मनाया जा रहा है।

  • इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने शिक्षा क्षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण पहलों की शुरुआत की।

NEP

प्रमुख बिंदु

  • पाँच पहलों की शुरुआत:
    • भारतीय सांकेतिक भाषा शब्दकोश:
      • यह बच्चों और श्रवण बाधित व्यक्तियों के लिये शुरू किया गया था। इसमें 10,000 शब्द हैं।
    • बोलती किताबें:
      • ये दृष्टिबाधित लोगों के लिये ऑडियोबुक हैं।
    • स्कूल गुणवत्ता मूल्यांकन और प्रत्यायन ढाँचा (SQAA):
      • SQAA केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) द्वारा इससे संबद्ध स्कूलों में मानकों के रूप में उपलब्धि के वैश्विक मानदंड प्रदान करने के लिये प्रस्तावित एक गुणवत्ता पहल है।
      • यह पाठ्यक्रम, शिक्षाशास्त्र, मूल्यांकन, बुनियादी ढाँचे, समावेशी प्रथाओं और शासन प्रक्रिया जैसे आयामों के लिये एक सामान्य वैज्ञानिक ढाँचे की अनुपस्थिति की कमी को दूर करेगा।
    •  निपुण भारत हेतु निष्ठा शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम:
      • 'नेशनल इनिसिएटिव फॉर स्कूल हेड्स एंड टीचर्स होलीस्टिक एडवांसमेंट’ (NISHTHA) एकीकृत शिक्षक प्रशिक्षण के माध्यम से स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिये एक क्षमता निर्माण कार्यक्रम है।
      • निपुण (बेहतर समझ और संख्यात्मक ज्ञान के साथ पढ़ाई में प्रवीणता के लिये राष्ट्रीय पहल) भारत योजना को बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता के सार्वभौमिक अधिग्रहण को सुनिश्चित करने के लिये एक सक्षम वातावरण बनाने हेतु शुरू किया गया था, ताकि ग्रेड-3 तक का प्रत्येक बच्चा वर्ष 2026-27 के अंत तक पढ़ने, लिखने और अंकगणित में वांछित सीखने की क्षमता प्राप्त कर सके।
    • विद्यांजलि 2.0 पोर्टल:
      • इसे विद्यालय विकास हेतु शिक्षा स्वयंसेवकों, दाताओं और CSR (कॉरर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व) योगदानकर्ताओं की सहायता प्राप्त करने के लिये प्रारंभ किया गया था।
        • विद्यांजलि योजना उन अभिनव योजनाओं में से एक है जो सरकारी स्कूलों में स्वयंसेवी शिक्षकों की पेशकश करके साक्षरता में सुधार की ओर ध्यान केंद्रित करती है। इसे वर्ष 2017 में लॉन्च किया गया था।
  • अन्य संबंधित हालिया पहलें:
    • आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने वित्तीय वर्ष 2025-26 तक स्कूली शिक्षा कार्यक्रम, समग्र शिक्षा योजना 2.0 को मंज़ूरी दे दी है।
    • इससे पहले राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की पहली वर्षगांँठ को चिह्नित करने के लिये प्रधानमंत्री ने अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट को लॉन्च किया जो उच्च शिक्षा में छात्रों को प्रवेश और निकास के कई विकल्प प्रदान करने के साथ ही प्रथम वर्ष के इंजीनियरिंग कार्यक्रम और उच्च शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिये क्षेत्रीय भाषाओं में दिशा-निर्देश प्रदान करेगा।
      • शुरू की गई पहलों में विद्या प्रवेश (Vidya Pravesh) पहल भी शामिल है, जो ग्रेड 1 के छात्रों के लिये नाटक/प्ले आधारित तीन माह का स्कूल प्रिपरेशन मॉड्यूल (School Preparation Module) है, माध्यमिक स्तर पर एक विषय के रूप में भारतीय सांकेतिक भाषा,  NISHTHA 2.0, NCERT द्वारा डिज़ाइन किया गया शिक्षक प्रशिक्षण का एक एकीकृत कार्यक्रम है और SAFAL (सीखने के स्तर के विश्लेषण के लिये संरचित मूल्यांकन), जो कि सीबीएसई स्कूलों में ग्रेड 3, 5 और 8 के लिये एक योग्यता आधारित मूल्यांकन ढांँचा है।
      • इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय डिजिटल शिक्षा वास्तुकला (NDEAR) और राष्ट्रीय शिक्षा प्रौद्योगिकी फोरम (NETF) का शुभारंभ भी हुआ।

शिक्षक दिवस

  • 5 सितंबर को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती पर उनकी याद में प्रतिवर्ष पूरे भारत में शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
  • विश्व शिक्षक दिवस प्रतिवर्ष 5 अक्तूबर को शिक्षकों की स्थिति से संबंधित 1966 अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन/यूनेस्को अनुशंसा को अपनाने की वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
    • यह उपकरण शिक्षकों के अधिकारों तथा ज़िम्मेदारियों और उनकी प्रारंभिक तैयारी व आगे की शिक्षा, भर्ती, रोज़गार, शिक्षण एवं सीखने की स्थिति के मानकों को निर्धारित करता है।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन

  • उनका जन्म 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुट्टनी में हुआ था। वे एक शिक्षक, दार्शनिक, लेखक और राजनीतिज्ञ थे।
  • वह भारत के पहले उपराष्ट्रपति (1952-1962) और वर्ष 1962 से 1967 तक भारत के दूसरे राष्ट्रपति थे।
  • उन्हें 1931 में नाइटहुड से सम्मानित किया गया था। वर्ष 1954 में उन्हें भारत रत्न (भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार) से सम्मानित किया गया था। वर्ष 1963 में उन्हें ब्रिटिश रॉयल ऑर्डर ऑफ मेरिट की मानद सदस्यता मिली।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

संवहनीय खपत और उत्पादन: एसडीजी 12

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक खाद्य अपशिष्ट, सतत् विकास लक्ष्य, पारिस्थितिक पदचिह्न, प्लास्टिक अपशिष्ट

मेन्स के लिये:

सतत् विकास लक्ष्यों का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?   

सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 12 के मामले में विश्व में भारत की प्रगति काफी उचित गति से हुई है लेकिन यह प्रगति संतोषजनक नहीं है।

  • सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 12 का उद्देश्य विश्व में हर जगह संवहनीय/सतत् खपत और उत्पादन पैटर्न को सुनिश्चित करना है।
  • सतत् खपत और उत्पादन से तात्पर्य "सेवाओं एवं संबंधित उत्पादों के उपयोग से है, जो बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के साथ जीवन की  गुणवत्ता में सुधार लाते हैं तथा प्राकृतिक संसाधनों और  भावी पीढ़ियों की ज़रूरतों को खतरे में न डालते हुए विषाक्त पदार्थों के उपयोग में कमी के साथ-साथ जीवन चक्र पर अपशिष्ट और प्रदूषकों के उत्सर्जन के प्रभाव को कम करते हैं।

प्रमुख बिंदु 

  • SDG 12 के बारे में: 
    • प्रति व्यक्ति वैश्विक खाद्य अपशिष्ट को आधा करना और वर्ष 2030 तक प्राकृतिक संसाधनों के कुशल और टिकाऊ उपयोग को सुनिश्चित करना।
    • प्रदूषण को समाप्त करना, समग्र अपशिष्ट उत्पादन को कम करना और रसायनों एवं ज़हरीले कचरे के प्रबंधन में सुधार करना।
    • हरित बुनियादी ढांँचे और प्रथाओं को व्यवहार में लाने के लिये कंपनियों के बीच तालमेल का समर्थन करना।
    • यह सुनिश्चित करना कि हर जगह हर किसी को प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने के तरीकों से पूरी तरह से अवगत कराया जाए और अंततः उद्देश्यपूर्ण तरीकों को अपनाया जाए।
  • भारत की स्थिति:
    • लाइफस्टाइल मैटेरियल फुटप्रिंट: 
      • यह हमारी जीवनशैली से उत्पन्न संसाधन खपत की मात्रा को मापता है।
      • वर्ष 2015 के आँकड़ों के अनुसार, भारत की औसत ‘लाइफस्टाइल मैटेरियल फुटप्रिंट’  लगभग 8,400 किलोग्राम प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति है, जो कि प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति 8,000 किलोग्राम के स्थायी ‘लाइफस्टाइल मैटेरियल फुटप्रिंट’ की तुलना में काफी  हद तक स्वीकार्य है।
    • भोजन की बर्बादी:
      • संयुक्त राष्‍ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष लगभग 50 किलोग्राम भोजन बर्बाद होता है।
      • शेष नौ वर्षों (2030) में निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि किये बिना खाद्य अपशिष्ट या भोजन की बर्बादी को आधा करने के लक्ष्य को प्राप्त करना असंभव प्रतीत होता है।
      • मंदी के दौरान ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, भूख, प्रदूषण और धन की बचत पर खाद्य अपशिष्ट में कमी का महत्त्वपूर्ण प्रभाव हो सकता है।
    • पीढ़ी का नुकसान:
      • संयुक्त रूप से चीन और भारत की जनसंख्या वैश्विक जनसंख्या का 36% है, लेकिन यह वैश्विक नगरपालिका अपशिष्ट का केवल 27% उत्पन्न करती है।
        • जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका की आबादी वैश्विक आबादी का केवल 4% है और यह 12% कचरे का उत्पादन करती है। 
    • प्लास्टिक अपशिष्ट: 
      • वर्ष 2018 के आँकड़ों के अनुसार, भारत का ‘प्लास्टिक नीति सूचकांक’ राष्ट्रीय आवश्यकता से काफी नीचे है, लेकिन यह अंतर चीन की तुलना में काफी कम है।
      • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, भारत में एक दिन में करीब 26,000 टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है जबकि एक दिन में 10,000 टन से अधिक प्लास्टिक कचरा एकत्र नहीं हो पाता है।
      • भारत की प्रति व्यक्ति प्लास्टिक खपत 11 किलो से कम है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका (109 किलो) का लगभग दसवाँ हिस्सा है।
    • पुनर्चक्रण दर
      • वर्ष 2019 में भारत की घरेलू रीसाइक्लिंग दर लगभग 30% थी और निकट भविष्य में इसमें सुधार होने की उम्मीद है।
      • भारत अगले 10 वर्षों में आत्मनिर्भरता की स्थिति प्राप्त कर सकता है यदि राष्ट्रीय पुनर्चक्रण नीति को ठीक से लागू किया जाए तथा पुनर्चक्रण उद्योगों में स्क्रैप देखभाल तकनीकों को स्थानांतरित किया जाए।
    • जीवाश्म ईंधन सब्सिडी:
      • वर्ष 2020 में सरकार ने अपने सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.2% जीवाश्म ईंधन पर खर्च किया जो वर्ष 2019 की तुलना में थोड़ा अधिक है।
      • वर्ष 2019 में जीवाश्म ईंधन सब्सिडी में वृद्धि हुई थी जो वैकल्पिक ऊर्जा सब्सिडी से सात गुना अधिक थी।
      • वर्ष 2014 की तुलना में वर्ष 2017 में अक्षय ऊर्जा सब्सिडी में काफी वृद्धि हुई और कुल मात्रा में ऊर्जा सब्सिडी में भारी मात्रा में गिरावट आई।
      • लेकिन वर्ष 2017 के बाद कुल ऊर्जा सब्सिडी में मामूली वृद्धि हुई है।
      • जबकि अक्षय ऊर्जा सब्सिडी में वृद्धि सराहनीय है, इस क्षेत्र में अधिक संसाधनों को स्थानांतरित करने और जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने की आवश्यकता है।
    • सतत् पर्यटन: 
      • स्थायी अथवा सतत‍् पर्यटन (Sustainable Tourism) में आगंतुकों, उद्योग, पर्यावरण तथा मेज़बान समुदायों की आवश्यकताओं को पूरा करते हुए वर्तमान एवं भविष्य के आर्थिक, सामाजिक तथा पर्यावरणीय प्रभावों का पूरा ध्यान रखा जाता है।
      • यह पर्यटन का कोई विशेष रूप नहीं है बल्कि इसमें पर्यटन के सभी प्रकारों को और अधिक सतत् बनाने का प्रयास किया जाता है।
      • कुमारकोम (केरल) में 'ज़िम्मेदार पर्यटन' की परियोजना स्थानीय समुदाय को आतिथ्य उद्योग से जोड़कर और पर्यावरण के अनुकूल पर्यटन को बनाए रखने में मदद करती है।
      • हिमाचल प्रदेश ने प्राकृतिक, आरामदायक और बजट के अनुकूल आवास एवं भोजन के साथ पर्यटकों को ग्रामीण क्षेत्रों में आकर्षित करने के लिये एक 'होमस्टे योजना (Homestay Scheme)' शुरू की है।
      • नीति आयोग के SDG डैशबोर्ड 2020-21 के अनुसार, भारत के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में जम्मू-कश्मीर एवं नगालैंड SDG-12 के संबंध में अब तक शीर्ष प्रदर्शन कर रहे हैं।
    • पर्यावरण शिक्षा:
      • भारत सरकार ने 1960 के दशक में औपचारिक पाठ्यक्रम में पर्यावरण शिक्षा को अनिवार्य घटक के रूप में शामिल किया।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


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