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भारतीय राजव्यवस्था

राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत

  • 10 Jul 2021
  • 16 min read

परिचय

  • पृष्ठभूमि: राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों (डीपीएसपी) की अवधारणा का स्रोत स्पेनिश संविधान है जहाँ से यह आयरिश संविधान में आया था।
    • DPSP की अवधारणा आयरिश संविधान के अनुच्छेद 45 से आई है।
  • संवैधानिक प्रावधान: भारत के संविधान के भाग IV (अनुच्छेद 36-51) में राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (DPSP) शामिल हैं।
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 37 निदेशक सिद्धांतों के कार्यों के बारे में अवगत करता है।
    • इन सिद्धांतों का उद्देश्य लोगों के लिये सामाजिक-आर्थिक न्याय सुनिश्चित करना और भारत को एक कल्याणकारी राज्य के रूप में स्थापित करना है।
  • मौलिक अधिकार बनाम DPSP:
    • मौलिक अधिकारों (FRs) के विपरीत DPSP का दायरा असीम है और यह एक नागरिक के अधिकारों की रक्षा करता है और वृहद स्तर पर कार्य करता है।
    • DPSP में वे सभी आदर्श शामिल हैं जिनका पालन राज्य को देश के लिये नीतियाँ और कानून बनाते समय ध्यान में रखना चाहिये।
    • मौलिक अधिकार प्रकृति में नकारात्मक या निषेधात्मक हैं क्योंकि वे राज्य पर सीमाएँ आरोपित करते हैं।
    • दूसरी ओर निदेशक सिद्धांत सकारात्मक निर्देश हैं, DPSP कानून द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हैं।
    • यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि DPSP और मौलिक अधिकार साथ-साथ चलते हैं।
    • DPSP मौलिक अधिकार के अधीनस्थ नहीं है।
  • सिद्धांतों का वर्गीकरण: निदेशक सिद्धांतों को उनके वैचारिक स्रोत और उद्देश्यों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। ये निर्देश निम्नलिखित रूप में वर्गीकृत हैं:
    • समाजवादी सिद्धांत
    • गांधीवादी सिद्धांत
    • उदार और बौद्धिक सिद्धांत
  • समाजवादी सिद्धांतों पर आधारित निर्देश:
    • अनुच्छेद 38: राज्य सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित कर आय, स्थिति, सुविधाओं तथा अवसरों में असमानताओं को कम करके सामाजिक व्यवस्था को सुरक्षित एवं संरक्षित कर लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने का प्रयास करेगा।
    • अनुच्छेद 39: राज्य विशेष रूप से निम्नलिखित नीतियों को सुरक्षित करने की दिशा में कार्य करेगा:
      • सभी नागरिकों को आजीविका के पर्याप्त साधन का अधिकार।
      • भौतिक संसाधनों के स्वामित्व और नियंत्रण को सामान्य जन की भलाई के लिये व्यवस्थित करना।
      • कुछ ही व्यक्तियों के पास धन को संकेंद्रित होने से बचाना।
      • पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान कार्य के लिये समान वेतन।
      • श्रमिकों की शक्ति और स्वास्थ्य की सुरक्षा।
      • बच्चों के बचपन एवं युवाओं का शोषण न होने देना ।
  • अनुच्छेद 41: बेरोज़गारी, बुढ़ापा, बीमारी और विकलांगता के मामलों में कार्य करने, शिक्षा पाने और सार्वजनिक सहायता पाने का अधिकार सुरक्षित करना।
  • अनुच्छेद 42: राज्य काम की न्यायसंगत और मानवीय परिस्थितियों को सुनिश्चित करने एवं मातृत्व राहत के लिये प्रावधान करेगा।
  • अनुच्छेद 43: राज्य सभी कामगारों के लिये  निर्वाह योग्य मज़दूरी और एक उचित जीवन स्तर सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।
  • अनुच्छेद 43A: उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये राज्य कदम उठाएगा।
  • अनुच्छेद 47: लोगों के पोषण स्तर और जीवन स्तर को ऊपर उठाना और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करना।
  • गांधीवादी सिद्धांतों पर आधारित निर्देश:
    • अनुच्छेद 40: राज्य ग्राम पंचायतों को स्वशासन की इकाइयों के रूप में संगठित करने के लिये कदम उठाएगा।
    • अनुच्छेद 43: राज्य ग्रामीण क्षेत्रों में व्यक्तिगत या सहकारी आधार पर कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने का प्रयास करेगा।
    • अनुच्छेद 43B: सहकारी समितियों के स्वैच्छिक गठन, स्वायत्त कामकाज, लोकतांत्रिक नियंत्रण और पेशेवर प्रबंधन को बढ़ावा देना।
    • अनुच्छेद 46: राज्य समाज के कमज़ोर वर्गों, विशेषकर अनुसूचित जातियों (एससी), अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अन्य कमज़ोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देगा।
    • अनुच्छेद 47: राज्य सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के लिये कदम उठाएगा और नशीले पेय तथा स्वास्थ्य के लिये हानिकारक नशीले पदार्थों के सेवन पर रोक लगाएगा।
    • अनुच्छेद 48: गायों, बछड़ों और अन्य दुधारू पशुओं के वध पर रोक लगाने तथा मवेशियों को पालने एवं उनकी नस्लों में सुधार करने के लिये।
  • उदार-बौद्धिक सिद्धांतों पर आधारित निर्देश:
    • अनुच्छेद 44: भारत के राज्य क्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करना।
    • अनुच्छेद 45: सभी बच्चों को छह वर्ष की आयु पूरी करने तक प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा प्रदान करना।
    • अनुच्छेद 48: कृषि और पशुपालन को आधुनिक एवं वैज्ञानिक आधार पर संगठित करना।
    • अनुच्छेद 48A: पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना तथा देश के वनों एवं वन्यजीवों की रक्षा करना।
    • अनुच्छेद 49: राज्य की कलात्मक या ऐतिहासिक महत्त्व के प्रत्येक स्मारक या स्थान की रक्षा करना।
    • अनुच्छेद 50: राज्य की लोक सेवाओं में न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करने के लिये कदम उठाना।
    • अनुच्छेद 51: यह घोषणा करता है कि राज्य अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा स्थापित करने का प्रयास करेगा:
      • राष्ट्रों के साथ न्यायपूर्ण और सम्मानजनक संबंध बनाए रखना।
      • अंतर्राष्ट्रीय कानून और संधि दायित्वों के लिये सम्मान को बढ़ावा देना।
      • मध्यस्थता द्वारा अंतर्राष्ट्रीय विवादों के निपटारे को प्रोत्साहित करना।

DPSP में संशोधन:

  • 42वाँ संविधान संशोधन, 1976: इसमें नए निर्देश जोड़कर संविधान के भाग-IV में कुछ बदलाव किये गए:
  • अनुच्छेद 39A: गरीबों को निशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करना।
  • अनुच्छेद 43A: उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी। 
  • अनुच्छेद 48A: पर्यावरण की रक्षा और उसमें सुधार करना।
  • 44वाँ संविधान संशोधन, 1977: इसने धारा 2 को अनुच्छेद 38 में सम्मिलित किया जो घोषित करता है कि "राज्य विशेष रूप से आय में आर्थिक असमानताओं को कम करने और व्यक्तियों के बीच नहीं बल्कि समूहों के बीच स्थिति, सुविधाओं एवं अवसरों संबंधी असमानताओं को खत्म करने का प्रयास करेगा।"
    • इसने मौलिक अधिकारों की सूची से संपत्ति के अधिकार को भी समाप्त कर दिया।
  • वर्ष 2002 का 86वाँ संशोधन अधिनियम: इसने अनुच्छेद 45 की विषय-वस्तु को बदल दिया और प्रारंभिक शिक्षा को अनुच्छेद 21A के तहत मौलिक अधिकार बना दिया।

मौलिक अधिकारों और DPSP के मध्य संघर्ष: संबद्ध मामले

  • चंपकम दोरायराजन बनाम मद्रास राज्य (वर्ष 1951): इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि मौलिक अधिकारों और निदेशक सिद्धांतों के बीच किसी भी संघर्ष के मामले में मौलिक अधिकार मान्य होगा।
    • इसने घोषणा की कि निदेशक सिद्धांतों को मौलिक अधिकारों के अनुरूप होना चाहिये और उन्हें सहायक के रूप में कार्य करना चाहिये।
    • इसने यह भी माना कि संवैधानिक संशोधन अधिनियमों को लागू करके संसद द्वारा मौलिक अधिकारों में संशोधन किया जा सकता है।
  • गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (वर्ष 1967): इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने घोषणा की कि निदेशक सिद्धांतों के कार्यान्वयन के लिये भी संसद द्वारा मौलिक अधिकारों में संशोधन नहीं किया जा सकता है।
    • यह 'शंकरी प्रसाद मामले' में अपने स्वयं के निर्णय के विपरीत था।
  • केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (वर्ष 1973): इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने गोलकनाथ (1967) के अपने फैसले को खारिज़ कर दिया और घोषणा की कि संसद संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकती है, लेकिन वह अपनी "मूल संरचना" को बदल नहीं सकती है।
    • इस प्रकार, संपत्ति के अधिकार (अनुच्छेद 31) को मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया गया।
  • मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980): इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि संसद संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकती है लेकिन वह संविधान के "मूल ढाँचे" को नहीं बदल सकती है।

डीपीएसपी का कार्यान्वयन: संबद्ध अधिनियम और संशोधन:

  • भूमि सुधार: समाज में परिवर्तन लाने और ग्रामीण जनता की स्थिति में सुधार लाने के लिये लगभग सभी राज्यों ने भूमि सुधार कानून पारित किये हैं। इन उपायों में शामिल हैं:
    • ज़मींदारों, जागीरदारों, इनामदारों जैसे बिचौलियों का उन्मूलन।
    • किरायेदारी व्यवस्था में सुधार जैसे- कार्यकाल की सुरक्षा, उचित किराया आदि।
    • भूमि जोत पर सीलिंग का अधिरोपण।
    • भूमिहीन मज़दूरों के बीच अधिशेष भूमि का वितरण। 
    • सहकारी खेती।
  • श्रम सुधार: समाज के श्रमिक वर्ग के हितों की रक्षा के लिये निम्नलिखित अधिनियम बनाए गए थे।
    • न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम (वर्ष 1948), श्रम संहिता, 2020
    • अनुबंध श्रम विनियमन और उन्मूलन अधिनियम (वर्ष 1970)
    • बाल श्रम निषेध और विनियमन अधिनियम (वर्ष 1986), वर्ष 2016 में बाल एवं किशोर श्रम निषेध व विनियमन अधिनियम, 1986 के रूप में पुनर्निर्मित।
    • बंधुआ मज़दूरी प्रणाली उन्मूलन अधिनियम (वर्ष 1976)
    • खनन और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957
    • महिला श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिये मातृत्व लाभ अधिनियम (वर्ष 1961) और समान पारिश्रमिक अधिनियम (वर्ष 1976) बनाया गया है।
  • पंचायती राज व्यवस्था: 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के माध्यम से सरकार ने अनुच्छेद 40 में वर्णित संवैधानिक दायित्व को पूरा किया।
    • देश के लगभग सभी हिस्सों में ग्राम, ब्लॉक और ज़िला स्तर पर त्रिस्तरीय 'पंचायती राज प्रणाली' शुरू की गई थी।
  • कुटीर उद्योग: अनुच्छेद 43 के अनुसार, कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये सरकार ने कई बोर्ड स्थापित किये हैं जैसे- ग्रामोद्योग बोर्ड, खादी और ग्रामोद्योग आयोग, अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड, रेशम बोर्ड, कॉयर बोर्ड आदि, जो कुटीर उद्योगों को वित्त एवं विपणन में आवश्यक सहायता प्रदान करते हैं। 
  • शिक्षा: सरकार ने अनुच्छेद 45 में दिये गए प्रावधान के अनुसार, निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा से संबंधित प्रावधानों को लागू किया है।
    • इसे 83वें संवैधानिक संशोधन द्वारा पेश किया गया एवं इसके पश्चात् शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 पारित किया गया। प्रारंभिक शिक्षा को 6 से 14 वर्ष की आयु के प्रत्येक बच्चे के मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया गया है।
  • ग्रामीण क्षेत्र का विकास: सामुदायिक विकास कार्यक्रम (वर्ष 1952), एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (वर्ष 1978-79) और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा- वर्ष 2006) जैसे कार्यक्रम विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन स्तर को बढ़ाने के लिये शुरू किये गए थे। जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 47 में कहा गया है।
  • स्वास्थ्य: केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाएँ जैसे- प्रधानमंत्री ग्राम स्वास्थ्य योजना (PMGSY) और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NHRM) को भारतीय राज्य के सामाजिक क्षेत्र की ज़िम्मेदारी को पूरा करने के लिये लागू किया जा रहा है।
  • पर्यावरण: वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972; वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 को क्रमशः वन्यजीवों एवं वनों की सुरक्षा के लिये अधिनियमित किया गया है।
    • जल और वायु प्रदूषण नियंत्रण अधिनियमों ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना के लिये प्रावधान किया है।
  • विरासत संरक्षण: प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक एवं पुरातत्त्व स्थल व अवशेष अधिनियम (वर्ष 1958) राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं की रक्षा के लिये अधिनियमित किया गया है।
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