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जैव विविधता और पर्यावरण

पार्टिकुलेट मैटर उत्सर्जन व्यापार द्वारा प्रदूषण पर नियंत्रण

  • 26 Sep 2019
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गुजरात सरकार ने वायु प्रदूषण को कम करने के लिये पार्टिकुलेट मैटर उत्सर्जन में व्यापार के लिये विश्व का पहला ट्रेडिंग प्लेटफ़ॉर्म लॉन्च किया है।

ट्रेडिंग प्लेटफ़ॉर्म की आवश्यकता क्यों?

  • हालाँकि प्रदूषण नियंत्रण हेतु दुनिया के कई हिस्सों में व्यापार तंत्र मौजूद हैं, लेकिन इनमें से कोई भी पार्टिकुलेट मैटर उत्सर्जन के लिये नहीं है।

P M effects

  • उदाहरण के लिये, क्योटो प्रोटोकॉल के तहत कार्बन विकास तंत्र (Carbon Development Mechanism-CDM) ’कार्बन क्रेडिट’ में व्यापार की अनुमति देता है।
  • यूरोपीय संघ की उत्सर्जन व्यापार प्रणाली ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिये है और भारत में ऊर्जा दक्षता ब्यूरो द्वारा संचालित एक योजना है जो ऊर्जा इकाइयों (Energy Units) में व्यापार करने में सक्षम है।

योजना की कार्यप्रणाली

  • सूरत में लॉन्च की गई उत्सर्जन व्यापार योजना (Emissions Trading Scheme-ETS) एक विनियामक उपकरण है जिसका उद्देश्य किसी क्षेत्र में प्रदूषण भार को कम करना है और साथ ही उद्योगों के अनुपालन की लागत को कम करना है।
  • ETS एक ऐसा बाज़ार है जिसमें पार्टिकुलेट मैटर उत्सर्जन का व्यापार होता है।
  • इस प्रणाली में विनियामक द्वारा सभी उद्योगों के कुल उत्सर्जन की अधिकतम सीमा (Cap) तय कर दी जाती है और प्रत्येक औद्योगिक इकाई के लिये परमिट सृजित किया जाता है।
  • विभिन्न उद्योग निर्धारित अधिकतम सीमा के अंदर परमिट (किलोग्राम में) के व्यापार द्वारा पार्टिकुलेट मैटर के उत्सर्जन की क्षमता को खरीद और बेच सकते हैं।
  • इस कारण से, ETS को ‘कैप-एंड-ट्रेड’ मार्केट भी कहा जाता है।
  • राष्ट्रीय कमोडिटी और डेरिवेटिव्स एक्सचेंज ई-मार्केट लिमिटेड (NeML) द्वारा संचालित ETS-PM ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म पर इन परमिट्स की नीलामी की जाएगी।
  • सभी प्रतिभागियों को NeML के साथ एक ट्रेडिंग खाता पंजीकृत करना होगा।
  • अनुपालन अवधि के अंत में किसी ओद्योगिक इकाई द्वारा निर्धारित परमिट से अधिक उत्सर्जन की स्थिति में पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के रूप में 200 रुपए/किग्रा. का जुर्माना लगाया जाएगा।

क्या होते हैं पार्टिकुलेट मैटर?

पीएम-1.0:- इसका आकार एक माइक्रोमीटर से कम होता है। ये छोटे पार्टिकल बहुत खतरनाक होते हैं। इनके कण साँस के द्वारा शरीर के अंदर पहुँचकर रक्तकणिकाओं में मिल जाते हैं। इसे पार्टिकुलेट सैंपलर से मापा जाता है।

पीएम-2.5:- इसका आकार 2.5 माइक्रोमीटर से कम होता है। ये आसानी से साँस के साथ शरीर के अंदर प्रवेश कर गले में खराश, फेफड़ों को नुकसान, जकड़न पैदा करते हैं। इन्हें एम्बियंट फाइन डस्ट सैंपलर पीएम-2.5 से मापते हैं।

पीएम-10:- रिसपाइरेबल पार्टिकुलेट मैटर का आकार 10 माइक्रोमीटर से कम होता है। ये भी शरीर के अंदर पहुँचकर बहुत सारी बीमारियाँ फैलाते हैं।

ETS में कितनी औद्योगिक इकाइयाँ भाग ले रही हैं?

  • हाल ही में शुरू हुई लाइव ट्रेडिंग में ETS से जुड़ने वाले 155 में से 88 उद्योगों ने पहले दौर में भाग लिया जिसमें 2.78 लाख रुपए के उत्सर्जन परमिट का कारोबार किया गया।
  • ये इकाइयाँ कपड़ा, रसायन और चीनी उद्योग जैसे क्षेत्रों से हैं जो 50-30 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैले हुए हैं। प्रतिभागियों का चयन इकाईयों की चिमनियों के आकार (व्यास 24 इंच या उससे अधिक) के आधार पर किया गया, इसलिये अधिकांश प्रतिभागी बड़े उद्योग हैं।

सूरत को योजना के लिये क्यों चुना गया?

  • पिछले पाँच वर्षों में सूरत में हवा की गुणवत्ता अत्यधिक खराब हो गई और प्रदूषण का स्तर 120-220% के बीच बढ़ा है।
  • इसलिये सूरत के औद्योगिक संगठन इस पायलट योजना को चलाने के लिये सहमत थे।
  • इसके अलावा, सूरत में उद्योगों ने पहले ही कंटीन्यूअस एमिशन मॉनीटरिंग सिस्टम लगा रखा था, जिससे पार्टिकुलेट मैटर की उत्सर्जन मात्रा का पता लगाया जा सकता है।

ETS उत्सर्जन को कम करने में कैसे मदद करेगा?

  • इस क्षेत्र के उद्योग 362 टन प्रतिमाह के कैप से अधिक प्रदूषकों का उत्सर्जन कर रहे हैं। इस आंकडें को 280 टन तक लाने से प्र्दूषण में कमी आएगी।
  • ये परमिट उद्योगों को प्रदूषण फैलाने की अनुमति देने का तरीका नहीं हैं। परमिट का क्रय विक्रय केवल उन इकाइयों के लिये एक अंतरिम उपाय है, जो वायु प्रदूषण नियंत्रण उपायों को स्थापित करने के लिये वर्तमान में आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं।
  • इससे उद्योगों को उच्च लागत पर परमिट खरीदने के बजाय इस बात की प्रेरणा मिलेगी कि वायु प्रदूषण नियंत्रण उपायों को अपनाकर उत्सर्जन कम करना अधिक लाभकारी है।

स्रोत : द इंडियन एक्सप्रेस

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