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जैव विविधता और पर्यावरण

दीपोर बील

  • 24 Aug 2019
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal-NGT) ने असम सरकार को दीपोर बील (गुवाहाटी के पश्चिमी किनारे पर एक प्रमुख आर्द्रभूमि) के आस-पास के क्षेत्र को पर्यावरण-संवेदी क्षेत्र या इको-सेंसिटिव ज़ोन (Eco-Sensitive Zone-ESZ) घोषित करने का निर्देश दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • NGT ने अपने आदेश में सरकार को आर्द्र्भूमि पर मौजूदा अतिक्रमण को हटाने और भविष्य में किसी भी अतिक्रमण को रोकने के लिये कदम उठाने और दीपोर बील (Deepor Beel) के पारितंत्र में स्थित नगरपालिका ठोस अपशिष्ट डंपिंग ग्राउंड का प्रबंधन करने का निर्देश भी दिया।
  • दीपोर बील एक 'महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र' और एक रामसर साइट है, जिसके निकट एक आरक्षित वन भी है।
  • दीपोर बील ताज़े पानी की एक झील है तथा अतिक्रमण के कारण लंबे समय से इसके क्षेत्र में कमी हो रही है। कभी 4,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला यह क्षेत्र अब घटकर 500 हेक्टेयर में सिमट गया है।
  • दीपोर बील प्रवासी पक्षियों की 200 से अधिक प्रजातियों का वास स्थान है।
  • वर्ष 2018 में राष्‍ट्र स्‍तरीय विश्‍व आद्र भूमि दिवस का आयोजन दीपोर बील में ही किया गया था।

आवश्यकता

  • इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि झील प्रतिकूल मानवीय गतिविधियों (जैसे कि मानव बस्तियों के लिये आर्द्र भूमि को भरना, आर्द्र भूमि के किनारों को काटना, मछली पकड़ना, प्रवासी पक्षियों को मारना आदि) का खामियाजा भुगत रही है।
  • पर्यावरणविदों द्वारा अक्सर यह आरोप भी लगाया जाता है कि वेटलैंड क्षेत्र पर डंप किये गए कचरे ने झील के पानी को विषाक्त कर दिया है। हालाँकि असम सरकार का कहना है कि डंपिंग ग्राउंड वेटलैंड से लगभग 500 मीटर की दूरी पर है और इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि यह झील को प्रदूषित कर रहा है।
  • जल की गुणवत्ता में गिरावट, झील की सतह में अवसादन और जल निकाय और इसके आस-पास के क्षेत्रों में वनों की कटाई जैसी गतिविधियों को देखते हुए इसका संरक्षण आवश्यक है।

क्या है इको-सेंसिटिव ज़ोन या पर्यावरण संवेदी क्षेत्र?

  • इको-सेंसिटिव ज़ोन या पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) भारत सरकार द्वारा किसी संरक्षित क्षेत्र, राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य के आस-पास के अधिसूचित क्षेत्र हैं।
  • इको-सेंसिटिव ज़ोन में होने वाली गतिविधियाँ 1986 के पर्यावरण (संरक्षण अधिनियम) के तहत विनियमित होती हैं और ऐसे क्षेत्रों में प्रदूषणकारी उद्योग लगाने या खनन करने की अनुमति नहीं होती है।
  • सामान्य सिद्धांतों के अनुसार, इको-सेंसिटिव ज़ोन का विस्तार किसी संरक्षित क्षेत्र के आस-पास 10 किमी. तक के दायरे में हो सकता है। लेकिन संवेदनशील गलियारे, कनेक्टिविटी और पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण खंडों एवं प्राकृतिक संयोजन के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्र होने की स्थिति में 10 किमी. से भी अधिक क्षेत्र को इको-सेंसिटिव ज़ोन में शामिल किया जा सकता है।
  • राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आस-पास इको-सेंसिटिव ज़ोन के लिये घोषित दिशा-निर्देशों के तहत निषिद्ध उद्योगों को इन क्षेत्रों में काम करने की अनुमति नहीं है।
  • ये दिशा-निर्देश वाणिज्यिक खनन, जलाने योग्य लकड़ी के वाणिज्यिक उपयोग और प्रमुख जल-विद्युत परियोजनाओं जैसी गतिविधियों को प्रतिबंधित करते हैं।
  • कुछ गतिविधियों जैसे कि पेड़ गिराना, भूजल दोहन, होटल और रिसॉर्ट्स की स्थापना सहित प्राकृतिक जल संसाधनों का वाणिज्यिक उपयोग आदि को इन क्षेत्रों में नियंत्रित किया जाता है।
  • पर्यावरण संवेदी क्षेत्र घोषित करने का मूल उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आस-पास कुछ गतिविधियों को नियंत्रित करना है ताकि संरक्षित क्षेत्रों की निकटवर्ती संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र पर ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके।

पर्यावरण संवेदी क्षेत्र का महत्त्व

  • औद्योगीकरण, शहरीकरण और विकास की अन्य पहलों के दौरान भू-परिदृश्य में बहुत से परिवर्तन होते हैं जो कभी-कभी भूकंप, बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं का कारण बन सकते हैं। इसलिये इन गतिविधियों के प्रभाव को कम करने के लिये संरक्षित क्षेत्रों के निकटवर्ती क्षेत्रों को इको-सेंसिटिव ज़ोन घोषित किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू एवं द इंडियन एक्सप्रेस

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