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जैव विविधता और पर्यावरण

बन्नेरघट्टा पार्क के इको-सेंसिटिव ज़ोन में कमी (Bannerghatta Park’s Eco-Sensitive Zone Reduced)

  • 15 Nov 2018
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क के लिये एक नई अधिसूचना जारी की है। नई अधिसूचना के तहत बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क के इको-सेंसिटिव ज़ोन में कमी की गई है।

प्रमुख बिंदु

  • बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क के लिये पहली अधिसूचना लगभग ढाई साल पहले जारी की गई थी जिसमें नेशनल पार्क के 268.96 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को पर्यावरण संवेदी क्षेत्र या इको-सेंसिटिव ज़ोन (Eco-Sensitive Zones- ESZs) घोषित किया गया था।
  • नवीनतम अधिसूचना में पार्क के इको-सेंसिटिव ज़ोन को घटाकर 169 वर्ग किमी. कर दिया गया है।
  • इको-सेंसिटिव ज़ोन जो जंगल को नुकसान पहुँचाने वाली कुछ निश्चित गतिविधियों को नियंत्रित और प्रतिबंधित करता है, में कमी तेज़ी से शहरीकरण की ओर बढ़ रहे बंगलूरू शहर के आस-पास खनन तथा वाणिज्यिक विकास के लिये और अधिक क्षेत्र उपलब्ध करा सकता है।
  • वह क्षेत्र जहाँ ESZ में बहुत अधिक कमी की गई है, वहाँ या तो खनन किया जा रहा है या वे संभावित खनन क्षेत्र हैं। ESZ में कमी के चलते लाभ प्राप्त करने वाला एक अन्य क्षेत्र रियल एस्टेट भी है क्योंकि अब बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क के निकटवर्ती राजमार्गों के आस-पास की ज़मीन पर्यावरणीय बाधाओं से मुक्त हो गई है।

क्या है इको-सेंसिटिव ज़ोन?

  • इको-सेंसिटिव ज़ोन या पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा किसी संरक्षित क्षेत्र, राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य के आसपास के अधिसूचित क्षेत्र हैं।
  • इको-सेंसिटिव ज़ोन में होने वाली गतिविधियाँ 1986 के पर्यावरण (संरक्षण अधिनियम) के तहत विनियमित होती हैं और ऐसे क्षेत्रों में प्रदूषणकारी उद्योग लगाने या खनन करने की अनुमति नहीं होती है।
  • सामान्य सिद्धांतों के अनुसार, इको-सेंसिटिव ज़ोन का विस्तार किसी संरक्षित क्षेत्र के आसपास 10 किमी. तक के दायरे में हो सकता है। लेकिन संवेदनशील गलियारे, कनेक्टिविटी और पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण खंडों एवं प्राकृतिक संयोजन के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्र होने की स्थिति में 10 किमी. से भी अधिक क्षेत्र को इको-सेंसिटिव ज़ोन में शामिल किया जा सकता है।
  • राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आस-पास इको-सेंसिटिव ज़ोन के लिये घोषित दिशा-निर्देशों के तहत निषिद्ध उद्योगों को इन क्षेत्रों में काम करने की अनुमति नहीं है।
  • ये दिशा-निर्देश वाणिज्यिक खनन, जलाने योग्य लकड़ी के वाणिज्यिक उपयोग और प्रमुख जल-विद्युत परियोजनाओं जैसी गतिविधियों को प्रतिबंधित करते हैं।
  • कुछ गतिविधियों जैसे कि पेड़ गिराना, भूजल दोहन, होटल और रिसॉर्ट्स की स्थापना सहित प्राकृतिक जल संसाधनों का वाणिज्यिक उपयोग आदि को इन क्षेत्रों में नियंत्रित किया जाता है।
  • मूल उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास कुछ गतिविधियों को नियंत्रित करना है ताकि संरक्षित क्षेत्रों की निकटवर्ती संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र पर ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके।

पर्यावरण संवेदी क्षेत्र का महत्त्व

  • औद्योगीकरण, शहरीकरण और विकास की अन्य पहलों के दौरान भू-परिदृश्य में बहुत से परिवर्तन होते हैं जो कभी-कभी भूकंप, बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं का कारण बन सकते हैं।
  • विशिष्ट पौधों, जानवरों, भू-भागों वाले कुछ क्षेत्र/क्षेत्रों को संरक्षित करने के लिये सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य आदि के रूप में घोषित किया है।
  • उपरोक्त के अलावा, शहरीकरण और अन्य विकास गतिविधियों के प्रभाव को कम करने के लिये ऐसे संरक्षित क्षेत्रों के निकटवर्ती क्षेत्रों को इको-सेंसिटिव ज़ोन घोषित किया गया है।
  • राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य-योजना (National Wildlife Action Plan- NWAP) 2017-2031 जैव विविधता वाले खंडों के पृथक्करण/विनाश को रोकने के लिये संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क के बाहर के क्षेत्रों को सुरक्षित रखने प्रयास करती है।
  • इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) घोषित करने का उद्देश्य संरक्षित क्षेत्र और उसके आसपास के क्षेत्रों की गतिविधियों को विनियमित और प्रबंधित करके संभावित जोखिम को कम करना है।

बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क

  • बंगलूरू, कर्नाटक के पास बन्नेरघट्टा राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना 1970 में की गई थी और 1974 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था।
  • 2002 में उद्यान का एक हिस्सा, जैविक रिज़र्व बन गया जिसे बन्नेरघट्टा जैविक उद्यान कहा जाता है।
  • यह एक चिड़ियाघर, एक पालतू जानवरों का कार्नर, एक पशु बचाव केंद्र, एक तितली संलग्नक, एक मछलीघर, एक सांपघर और एक सफारी पार्क के साथ ही एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल भी है।
  • कर्नाटक का चिड़ियाघर प्राधिकरण, कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बंगलूरू और अशोक ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड एन्वायरमेंट (ATREE), बंगलूरू इसकी सहयोगी एजेंसियाँ हैं।
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