शासन व्यवस्था
द बिग पिक्चर : विश्व खाद्य दिवस : ज़ीरो हंगर चैलेंज
- 22 Oct 2018
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संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
विश्व खाद्य दिवस 16 अक्तूबर को विश्व स्तर पर मनाया जाता है। इस वर्ष भी इसे विश्व भर में मनाया गया। विश्व खाद्य दिवस दुनिया में भूख से निपटने के कार्य के प्रति समर्पित एक दिवस है। एफएओ का दावा है कि विश्वव्यापी टिकाऊ जीवनशैली अपनाई जाने पर 'अवास्तविक' (unrealistic) लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। एफएओ की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में जहाँ एक ओर गरीबी के कारण हर दिन लाखों लोग भूखे सोने को मज़बूर हैं वहीँ, 672 मिलियन लोग मोटापे से पीड़ित हैं तथा निष्क्रिय जीवनशैली और खानपान की गलत आदतों के कारण 1.3 अरब लोग अधिक वजन (overweight) वाले हैं। विश्व खाद्य दिवस 2018 की थीम है ‘हमारा कार्य हमारा भविष्य-2030 तक दुनिया को भूख से मुक्त बनाना संभव’।
- मानव अधिकारों की वैश्विक घोषणा (1948) का अनुच्छेद 25(1) कहता है कि हर व्यक्ति को अपना और अपने परिवार का जीवन स्तर बेहतर बनाने, बेहतर स्वास्थ्य की स्थिति प्राप्त करने का अधिकार है जिसमें भोजन, कपड़े और आवास की सुरक्षा शामिल है।
- खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने 1965 में अपने संविधान की प्रस्तावना में घोषणा की कि मानवीय समाज की भूख से मुक्ति सुनिश्चित करना उनके बुनियादी उद्देश्यों में से एक है।
- 3 अरब से अधिक आबादी वाले भारत ने पिछले दो दशकों में ज़बरदस्त विकास देखा है।
- सकल घरेलू उत्पाद में 5 गुना वृद्धि हुई है और प्रति व्यक्ति खपत में 3 गुना वृद्धि हुई है। इसी तरह, अनाज उत्पादन लगभग 2 गुना बढ़ गया है।
- हालाँकि, असाधारण औद्योगिक और आर्थिक विकास के साथ-साथ भारत अपनी आबादी को खिलाने के लिये पर्याप्त भोजन पैदा करता है, किंतु अभी भी बड़ी संख्या में लोगों का भोजन तक पहुँच प्रदान करने में असमर्थ है।
क्या है भुखमरी (hunger)?
भुखमरी से हमारा आशय भोजन की अनुपलब्धता से होता है। किंतु खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) प्रतिदिन 1800 कैलोरी से कम ग्रहण करने वाले लोगों को भुखमरी का शिकार मानता है।
‘ज़ीरो हंगर’ चैलेंज
- 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की-मून ने ज़ीरो हंगर चैलेंज की शुरुआत की थी।
- ज़ीरो हंगर विज़न एसडीजी के अंतर्गत पाँच तत्त्वों को दर्शाता है, जिनके एक साथ मिलने पर भूख, कुपोषण के सभी रूपों को समाप्त किया जा सकता है तथा समावेशी और टिकाऊ खाद्य प्रणाली को सुदृढ़ किया जा सकता है।
- ZHC ने परिदृश्य को बदलने में योगदान दिया है। इसने देश स्तर पर कार्रवाई को प्रेरित किया है और यह सुनिश्चित करने में योगदान दिया है कि वैश्विक विकास एजेंडे में खाद्य और पोषण सुरक्षा तथा टिकाऊ कृषि उच्च बनी हुई है।
- इसने सभी देशों को हंगर खत्म करने की दिशा में एक साथ काम करने के लिये प्रोत्साहित किया है।
- 2030 एजेंडा के तहत अब शून्य भूख और कुपोषण के लिये कॉल टू एक्शन को नवीनीकृत करने का समय आ गया है और एक समावेशी, सुरक्षित, टिकाऊ तथा लचीला समाज बनाने के लिये कृषि और खाद्य प्रणालियों में आवश्यक परिवर्तन किये जाने की आवश्यकता है।
- ZHC एक ऐसा मंच प्रदान करता है जो खाद्य सुरक्षा, पोषण और टिकाऊ खाद्य प्रणाली के क्षेत्र में सामूहिक प्रभाव के लिये सरकारों, नागरिक समाज, निजी क्षेत्र, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली और अन्य लोगों को एक साथ लाता है।
- यह हर साल संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन के सम्मान में मनाया जाता है जिसे 1945 में स्थापित किया गया था।
- इसका उद्देश्य दुनिया भर से भुखमरी, कुपोषण तथा गरीबी के समूल खात्मे के प्रयास को मज़बूती देना व खाद्य सुरक्षा के प्रति लोगों में जागरुकता का प्रचार-प्रसार करना है।
- खाद्य एवं कृषि संगठन की ‘फसल पूर्वानुमान एवं खाद्य स्थिति’ रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में 34 देश ऐसे हैं जिनके पास अपनी आबादी को खिलाने के लिये पर्याप्त भोजन नहीं है।
- वहीं, संयुक्त राष्ट्र के आँकड़े बताते हैं कि दुनिया में हर नौ में से एक आदमी रोज़ भूखे पेट सोने को मज़बूर है।
- ऐसे वैश्विक हालात में इस दिवस की प्रासंगिकता बढ़ जाती है। दिनों-दिन बढ़ती जनसंख्या, घटते कृषिगत उत्पादन तथा अन्न की बर्बादी की वज़ह से दुनिया भर में भूख जनित समस्याएँ तेज़ी से बढ़ी हैं।
एजेंडा 2030 क्या है?
सहस्राब्दी विकास लक्ष्य
टीम दृष्टि इनपुट |
हंगर : वर्तमान स्थिति?
- ग्लोबल हंगर रिपोर्ट, 2018 के अनुसार, भारत को इस सूचकांक में 119 देशों में से 103वाँ स्थान दिया गया है तथा देश में भुखमरी के स्तर को ‘गंभीर’ श्रेणी के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष भारत की रैंकिंग में तीन स्थान की गिरावट आई है। सरकार ने वर्ष 2022 तक देश को भुखमरी व कुपोषण से निजात दिलाने का आह्वान किया है।
- हालाँकि भुखमरी से जंग के मामले में अभी भी भारत बहुत पीछे है।शिशुओं में भयावह कुपोषण, बच्चों के विकास में रुकावट और बाल मृत्यु दर जैसे कुल चार पैमानों पर मापे गए सूचकांक की रिपोर्ट में भारत को 4 स्कोर के साथ ‘गंभीर’ वर्ग में रखा गया।
- यह सूचकांक इस बात का अनुमान व्यक्त करता है कि प्रगति की वर्तमान दर पर विश्व के 50 देश वर्ष 2030 तक भुखमरी की ‘निम्न’ श्रेणी तक पहुँचने में असफल रहेंगे।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि यह संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्य 2 को खतरे में डालता है, जिसका उद्देश्य 2030 तक भुखमरी को समाप्त करना है।
- भारत ने तुलनात्मक रूप से संदर्भ वर्षों में तीन संकेतकों में सुधार किया है। जनसंख्या में अल्पपोषित लोगों का प्रतिशत वर्ष 2000 के 18.2% से घटकर वर्ष 2018 में 14.8% हो गया है।
- इसी अवधि में बाल मृत्यु दर 9.2% से घटकर लगभग आधी अर्थात् 4.3% हो गई है, जबकि बच्चों में बौनापन 54.2% से घटकर 38.4% हो गया।
- भारत में 196 मिलियन जनसंख्या अभी भी कुपोषण से ग्रसित है जो इस क्षेत्र में असफलता को दर्शाता है।
- दक्षिण एशिया काफी गंभीर स्थिति में हंगर के बोझ से प्रभावित है जहाँ 15 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या कुपोषित है।
- भोजन की बर्बादी को लेकर न केवल सरकारें बल्कि सामाजिक संगठन भी चिंतित हैं। दुनिया भर में हर साल जितना भोजन तैयार होता है उसका लगभग एक-तिहाई बर्बाद हो जाता है। बर्बाद किया जाने वाला खाना इतना होता है कि उससे दो अरब लोगों के भोजन की ज़रूरत पूरी हो सकती है।
- भारत में बढ़ती संपन्नता के साथ ही लोग खाने के प्रति असंवेदनशील हो रहे हैं। खर्च करने की क्षमता के साथ ही खाना फेंकने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। आज भी देश में विवाह स्थलों के पास रखे कूड़ाघरों में 40 प्रतिशत से अधिक खाना फेंका हुआ मिलता है। अगर इस बर्बादी को रोका जा सके तो कई लोगों का पेट भरा जा सकता है।
भारत में कुपोषण की समस्या क्यों?
- भारत में भुखमरी की समस्या वास्तव में खाद्य की अनुउपलब्धता के कारण नहीं है। भारत में अनाज का उत्पादन काफी मात्रा में होता है। देश में मांग और आपूर्ति के बीच अंतराल मुख्य समस्या है।
- हंगर अनाज की अनुउपलब्धता के कारण नहीं है बल्कि पोषक तथा संतुलित आहार के अभाव के कारण है।
- जनसंख्या के कुछ वर्गों की खरीद क्षमता में कमी भी एक प्रमुख समस्या है क्योंकि ये वर्ग पोषक खाद्य पदार्थों जैसे- दूध, फल, माँस, मछली, अंडा आदि खरीदने में समर्थ नहीं हैं।
- सरकार जनसंख्या के कुछ विशेष वर्गों के लोगों को अनाज 2, 3 या 1 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर उपलब्ध करा रही है लेकिन पोषक खाद्य पदार्थों के संबंध में ऐसा नहीं है।
- जब तक मिड-डेमील या अन्य कार्यक्रमों के अंतर्गत पोषक खाद्य पदार्थों को शामिल नहीं किया जाता तब तक कुपोषण या भुखमरी की समस्या हल नहीं हो सकती। अभी भी जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा पोषण युक्त खाद्य पदार्थों से वंचित है।
- हमें समाज के गरीब तबके की आय में सुधार के साथ पर्याप्त मात्रा में पोषक पदार्थों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी।
- भारत में कुपोषण तथा भुखमरी के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिये कई प्रभावशाली योजनाएँ, जैसे-मिड-डेमील, रोजगार गारंटी स्कीम आदि शुरू की गई हैं लेकिन इन योजनाओं के सही क्रियान्वयन के लिये स्थानीय, इंफ्रास्ट्रक्चर तथा ट्रांसपोर्टेशन के स्तर पर नीतियों में बदलाव किये जाने की ज़रूरत है।
- इंडियन इंस्टीटूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल 23 करोड़ टन दाल, 12 करोड़ टन फल एवं 21 टन सब्जियाँ वितरण प्रणाली में खामियों के चलते खराब हो जाती हैं तथा उत्सव, समारोह, शादी−ब्याह आदि में बड़ी मात्रा में पका हुआ खाना बर्बाद कर दिया जाता है।
- देश में बड़े स्तर पर खाद्य पदार्थों की पर्याप्त उपलब्धता है लेकिन इसे प्रभावी ढंग से वितरण के लिये नीतिगत बदलाव किये जाने की आवश्यकता है। हमें वितरण व्यवस्था को बदलने की ज़रूरत है ताकि PDS सिस्टम अंतिम व्यक्ति तक पहुँच सके।
- विश्व के 27 प्रतिशत कुपोषित लोग भारत में रहते हैं, अभी भी भारत का 1/3 भाग गरीबी रेखा से नीचे है जो दो वक्त की रोटी के लिये मोहताज है लेकिन वहीँ गोदामों में रखा 5 करोड़ टन अनाज बिना गरीबों तक पहुँचे ही सड़ जाता है।
भुखमरी के कारण उत्पन्न समस्याएँ अल्पपोषण (Under Nutrition): स्वस्थ शरीर के लिये अपेक्षित पोषक पदार्थों की मात्रा जब किसी वज़ह से उपलब्ध नहीं हो पाती है तो व्यक्ति अल्पपोषण का शिकार हो जाता है। इसलिये भोजन की मात्रा के साथ-साथ उसमें गुणवत्ता का होना भी ज़रूरी है। इसका अर्थ है कि भोजन में आवश्यक कैलोरी की मात्रा के साथ-साथ प्रोटीन, विटामिन और खनिज भी पर्याप्त मात्रा में होने चाहिये। चाइल्ड वेस्टिंग (Child Wasting): 5 वर्ष तक की उम्र के ऐसे बच्चे जिनका वज़न उनकी लंबाई के अनुपात में काफी कम हो। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2018 के अनुसार, पाँच वर्ष से कम आयु के पाँच भारतीय बच्चों में से कम-से-कम एक बच्चा ऐसा है जिसकी लंबाई के अनुपात में उसका वज़न अत्यंत कम है। चाइल्ड स्टन्टिंग (Child Stunting): जिनकी लंबाई उनकी उम्र की तुलना में कम हो। बाल मृत्यु दर (Child Mortality Rate): 5 वर्ष तक की आयु में प्रति 1000 बच्चों में मृत्यु के शिकार बच्चों का अनुपात। टीम दृष्टि इनपुट |
नीतिगत बदलाव की ज़रूरत
- काफी मात्रा में अनाज सरकारी गोदामों में सड़ जाता है लेकिन जरूरतमंदों तक नहीं पहुँच पाता। इस समस्या के समाधान के लिये नीतिगत बदलाव किये जाने की ज़रूरत है।
- हालाँकि सरकार कई योजनाओं और नीतियों को अमल में लाई है लेकिन इनका क्रियान्वयन ग्राउंड लेवल पर उचित ढंग से नहीं हो सका है।
- खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता भी एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। खाद्य पदार्थों की गतिशीलता, सप्लाई चेन, कोल्ड चेन आदि की कमी मुख्य समस्या है जो खाद्य पदार्थों की गतिशीलता के लिये बेहद ज़रूरी है।
- वर्तमान में देश में मात्र 4 प्रतिशत खाद्य अनाज ही उचित रेफ्रिजरेशन के माध्यम से उपयोग के लिये भेजा जाता है, जबकि 30 प्रतिशत फल और सब्जियाँ रेफ्रिजरेशन के अभाव में बर्बाद हो जाती हैं।
- सरकार की ओर से महिला स्वयंसेवी समूहों को स्थानीय स्तर पर दूध की खरीदारी में लगाना चाहिये तथा स्थानीय स्तर पर सुगर मिश्रित दूध का वितरण किया जाना चाहिये।
- भूख तथा कुपोषण के लिये बनाए गए सभी कार्यक्रमों तथा योजनाओं का क्रियान्वयन राज्य सरकारों द्वारा किया जाना चाहिये। केंद्र द्वारा इन योजनाओं के लिये केवल तकनीकी सुझाव तथा आर्थिक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये।
- अगर हम अपने उत्पादन का लाभ गरीब तथा वंचित वर्ग तक पहुँचाना चाहते हैं तो हमें न केवल और अधिक न्यायसंगत वितरण की ज़रूरत होगी बल्कि सक्षम वितरण की आवश्यकता होगी।
- यह महत्त्वपूर्ण है कि 1951 से अब तक देश के खाद्यान्न उत्पादन में पाँच गुना बढ़ोतरी हुई है पर गरीब की खाद्य सुरक्षा अभी सुनिश्चित नहीं हो पाई है।
- अनाज की प्रति व्यक्ति उपलब्धता बढ़ी है पर साथ में कुपोषण एवं महिलाओं में अनीमिया की समस्या भी गंभीर होती जा रही है।
भोजन में पोषक पदार्थों की घटती गुणवत्ता
- खाद्य सुरक्षा का अर्थ देश के हर नागरिक तक भोजन उपलब्धता को समझा जाता है, जबकि खाद्य सुरक्षा केवल देश के नागरिकों तक भोजन पहुँचाना नहीं वरन भोजन द्वारा उचित मात्रा में पोषक तत्त्वों की उपलब्धता भी है।
- वैज्ञानिकों का कहना है कि कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की अधिकता से भोजन से पोषक तत्त्व नष्ट हो रहे हैं जिसके कारण चावल, गेहूँ, जौ जैसे प्रमुख खाद्यान्न में प्रोटीन की कमी होने लगी है।
- आँकड़ों के मुताबिक चावल में 6 प्रतिशत, जौ में 14.1 प्रतिशत, गेहूँ में 7.8 प्रतिशत और आलू में 6.4 प्रतिशत प्रोटीन की कमी दर्ज की गई है।
- एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक भारतीयों की प्रमुख खुराक से 3 प्रतिशत प्रोटीन गायब हो जाएगा। इस कारण 5.3 करोड़ भारतीय प्रोटीन की कमी से जूझेंगे।
- गौरतलब है कि प्रोटीन की कमी होने पर शरीर की कोशिकाएँ ऊतकों से ऊर्जा प्रदान करने लगती हैं।
- चूँकि कोशिकाओं में प्रोटीन भी नहीं बनता है लिहाज़ा इससे ऊतक नष्ट होने लगते हैं। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति धीरे-धीरे कमज़ोर होने लगता है और उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।
प्रमुख चुनौतियाँ
- पिछले कुछ वर्षों में भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर, फ़ूड चेन, भंडारण गृह, ट्रांसपोर्टेशन सुविधाओं का विकास हुआ है फिर भी इस दिशा में बहुत कुछ किये जाने की आवश्यकता है।
- पर्याप्त मात्रा में पोषक खाद्य पदार्थों के अतिरिक्त देश में पोषण संबंधी शिक्षा का अभाव है, विशेष रूप से मध्यम वर्ग के लोगों में। अतः पोषण संबंधी शिक्षा तथा जागरूकता के प्रचार-प्रसार की ज़रूरत है।
- हमें कृषि तथा कृषकों, विशेष रूप से भूमिहीन परिवारों, मजदूरों तथा छोटे एवं सीमांत किसानों पर भी ध्यान देने की जरूरत है जो प्रायः कुपोषण तथा भुखमरी के शिकार होते हैं।
- ऐसे लोग सिर्फ चावल, गेहूँ, ज्वार, बाजरा के उत्पादन तक ही सीमित रहते हैं और ये इससे आगे नहीं सोच पाते। अतः ऐसे किसानों को पोल्ट्री, बकरी, गाय पालने के अतिरिक्त फल तथा सब्जियों के उत्पादन हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- भूमिहीन मज़दूर भुखमरी की समस्या से अधिक प्रभावित होते देखे गए हैं। अतः सरकार को ऐसे मज़दूरों की पहचान कर उन्हें भूमि का वितरण किया जाना चाहिये। पश्चिम बंगाल सरकार भूमिहीन मजदूरों को पिछले 5-6 सालों से भूमि वितरण का काम कर रही है। अब तक राज्य के 2.6 लाख परिवार इसका लाभ उठा चुके हैं। अगर ऐसा ही देश के अन्य राज्य भी करें तो अनेक समस्याओं का समाधान हो सकता है।
- अनाज स्थानीय स्तर पर उत्पादित एवं वितरित किया जाना चाहिये। भारत अनाज का बहुत बड़ा निर्यातक नहीं है। हमें अपने देश की जनता की आवश्यकताओं पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
- भारत विश्व में केला उत्पादन में सबसे बड़ा देश है लेकिन वैश्विक बाज़ार में निर्यात के मामले में इसका हिस्सा मात्र 0.34 प्रतिशत है। किंतु काफी मात्रा में केला, वैगोन (vagon) के अभाव में रेलवे स्टेशनों पर ही रखे-रखे ख़राब हो जाता है।
- देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर लंबे समय से बात होती रही है लेकिन इसमें बागवानी, फल तथा सब्जियों को शामिल नहीं किया गया है। MSP का समुचित लाभ छोटे तथा सीमांत किसानों को नहीं मिल पाता। देश के लगभग 90 प्रतिशत किसान MSP के लाभ से वंचित रह जाते हैं।
आगे की राह
- हमें MSP के माध्यम से किसानों की क्षमता बढ़ाने की ज़रूरत है। कृषि क्षेत्र में अधिक निवेश, कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे-कोल्ड स्टोरेज, मंडियों तक सड़क का निर्माण, कृषि बाज़ार तथा मंडियों के बीच आपसी संपर्क की ज़रूरत है।
- सप्लाई चेन तथा कोल्ड स्टोरेज में निवेश के लिये निजी कंपनियों को आगे आना चाहिये।
- सरकार द्वारा बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास ग्राउंड लेवल/रूरल लेवल/ब्लॉक लेवल तथा विलेज लेवल पर किया जाना चाहिये।
- खाद्य उत्पादन तथा वितरण प्रक्रिया के लिये पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों द्वारा अपनाए गए तरीकों को अन्य राज्यों द्वारा भी अपनाया जाना चाहिये।
- कृषि के 1300 बिलियन डॉलर की कुल वैश्विक बाज़ार में भारत का हिस्सा मात्र 30 बिलियन डॉलर है अर्थात् 1 प्रतिशत से भी कम जो कि साल-दर-साल और कम होता जा रहा है।
- ग्लोबल हंगर इंडेक्स में पिछले 10 वर्षों में सुधार नहीं हो पाने का मुख्य कारण हमारी वितरण व्यवस्था है। इसके पीछे तथ्य यह है कि पर्याप्त खाद्य उत्पादन के बावजूद हमारे देश की जनता निम्न आय के कारण पोषक खाद्य पदार्थों की खरीद में सक्षम नहीं है। यही कारण है कि भुखमरी की समस्या का समाधान लंबे समय से नहीं हो पा रहा है।
- भारत कृषि प्रधान देश है जहाँ 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या अभी भी कृषि पर निर्भर है। हमें युवाओं के लिये रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराने होंगे। इसलिये फूड प्रोसेसिंग सेक्टर, खाद्य पदार्थों के नुकसान तथा रोज़गार की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हो सकता है।
निष्कर्ष
खाद्य सुरक्षा का अर्थ देश के हर नागरिक तक भोजन की उपलब्धता को समझा जाता है, जबकि खाद्य सुरक्षा केवल देश के नागरिकों तक भोजन पहुँचाना नहीं वरन भोजन द्वारा उचित मात्रा में पोषक तत्त्वों की उपलब्धता भी है। खाद्य सुरक्षा की अवधारणा व्यक्ति के मूलभूत अधिकार को परिभाषित करती है। अपने जीवन के लिये हर किसी को निर्धारित पोषक तत्त्वों से परिपूर्ण भोजन की ज़रूरत होती है। महत्त्वपूर्ण यह भी है कि भोजन की ज़रूरत नियत समय पर पूरी हो।
बढ़ती आबादी हेतु पर्याप्त मात्रा में पोषाहार एवं खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये भारत के अनुसंधान क्षेत्र द्वारा प्रशंसनीय कार्य किया जा रहा है। वस्तुतः इस संदर्भ में यह कहना गलत न होगा कि पोषण को और अधिक बेहतर बनाने हेतु भोजन की मात्रा और गुणवत्ता बढ़ाने के साथ-साथ भारतीय अनुसंधान विभाग द्वारा नई खाद्य चुनौतियों का सामना करने हेतु आवश्यक नए विकल्पों के संबंध में भी उल्लेखनीय कार्य किया जा रहा है। वैश्विक समस्या का रूप धारण कर चुकी भोजन की समस्या के संदर्भ में दुनिया द्वारा प्रयोग, शोध, ज्ञान साझा करने और प्रभावी समाधान प्राप्त करने के लिये भारत के उत्कृष्ट शोध कार्यों का उपयोग किया जाना चाहिये, ताकि आने वाली पीढ़ियों को इस गंभीर संकट से सुरक्षित रखा जा सके।