शासन व्यवस्था
भारतीय सांकेतिक भाषा में NCERT की पुस्तकें
- 07 Oct 2020
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प्रिलिम्स के लियेनई शिक्षा नीति, ISLRT, NCERT मेन्स के लियेसांकेतिक भाषाएँ और उनका महत्त्व, नई शिक्षा नीति में भारतीय सांकेतिक भाषा |
चर्चा में क्यों?
श्रवण बाधित बच्चों के लिये भारतीय सांकेतिक भाषा (Indian Sign Language) में शिक्षण सामग्री तक पहुँच कायम करने के उद्देश्य से भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र (ISLRTC) और राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) के बीच एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
प्रमुख बिंदु
- इस समझौते के माध्यम से राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की शैक्षिक पुस्तकें और सामग्री अब भारतीय सांकेतिक भाषा (ISL) में भी उपलब्ध कराई जाएंगी, जिसका अर्थ है कि भारत के किसी भी हिस्से में रहने वाले श्रवण बाधित बच्चे एक ही भाषा में डिजिटल प्रारूप में शैक्षिक पुस्तकें पढ़ सकेंगे।
महत्त्व
- ध्यातव्य है कि बाल्यावस्था में बच्चों का संज्ञानात्मक विकास (Cognitive Development) होता है, इसलिये उन्हें उनकी सीखने की ज़रूरतों के अनुसार शैक्षिक सामग्री उपलब्ध कराना काफी महत्त्वपूर्ण होता है।
- अब इस समझौते के माध्यम से श्रवण बाधित बच्चों को उनकी आवश्यकता के अनुरूप भारतीय सांकेतिक भाषा में शैक्षिक पुस्तकें और सामग्री उपलब्ध कराई जा सकेंगी, जिससे उनके समग्र विकास में मदद मिलेगी।
- भारतीय सांकेतिक भाषा में NCERT की किताबों से न केवल श्रवण बाधित बच्चों के शब्दकोश में बढ़ोतरी होगी, बल्कि अवधारणाओं को समझने की उनकी क्षमता का भी विकास करेगा।
- अब तक श्रवण बाधित बच्चे केवल मौखिक या लिखित माध्यम से अध्ययन करते थे, लेकिन इस समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद वे भारतीय सांकेतिक भाषा के माध्यम से भी शैक्षिक पुस्तकों का अध्ययन करने में सक्षम होंगे।
भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र (ISLRTC)
- भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र (ISLRTC), सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग का एक स्वायत्त राष्ट्रीय संस्थान है, जो भारतीय सांकेतिक भाषा के उपयोग को लोकप्रिय बनाने और भारतीय सांकेतिक भाषा में शिक्षण तथा अनुसंधान हेतु मानव शक्ति के विकास की दिशा में कार्य कर रहा है।
- सर्वप्रथम 11वीं पंचवर्षीय योजना (वर्ष 2007-2012) में यह स्वीकार किया गया था कि अब तक श्रवण विकलांग लोगों की ज़रूरतों की उपेक्षा की गई है। साथ ही इस योजना में भारतीय सांकेतिक भाषा के विकास और इसे बढ़ावा देने के लिये एक सांकेतिक भाषा अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र के विकास की परिकल्पना की गई।
- इसके पश्चात् तत्कालीन वित्त मंत्री ने वर्ष 2011-12 के केंद्रीय बजट में भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र (ISLRTC) के गठन की घोषणा की।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT)
- राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) वर्ष 1961 में भारत सरकार द्वारा गठित एक स्वायत्त संगठन है, जो कि स्कूली शिक्षा से संबंधित मामलों पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को सहायता प्रदान करने तथा उन्हें सुझाव देने का कार्य करती है।
- NCERT और इसकी घटक इकाइयों का मुख्य उद्देश्य है:
- स्कूली शिक्षा से संबंधित क्षेत्रों में अनुसंधान करना, उसे बढ़ावा देना और समन्वय स्थापित करना;
- पाठ्यपुस्तक, संवादपत्र और अन्य शैक्षिक सामग्रियों का निर्माण करना और उन्हें प्रकाशित करना;
- शिक्षकों हेतु प्रशिक्षण का आयोजन करना।
- राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) का मुख्यालय दिल्ली में स्थित है, जबकि इसकी कई घटक इकाइयाँ देश के अन्य हिस्सों में स्थापित हैं।
सांकेतिक भाषा और उसका महत्त्व
- सांकेतिक भाषा संप्रेषण का एक माध्यम है, जहाँ हाथ के इशारों और शरीर तथा चेहरे के हाव-भावों का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार सांकेतिक भाषाएँ बोली जाने वाली भाषाओं से संरचनात्मक रूप से अलग होती हैं और इनका प्रयोग अधिकांशतः श्रवण बाधित लोगों द्वारा किया जाता है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2016 में तकरीबन 5 मिलियन भारतीय बच्चे श्रवण विकलांगता का सामना कर रहे हैं।
- सांकेतिक भाषाएँ, बोली जाने वाली अन्य भाषाओं की तरह ही जटिल व्याकरण युक्त भाषाएँ होती हैं। इनका स्वयं का व्याकरण तथा शब्दकोश होता है। उल्लेखनीय है कि सांकेतिक भाषा का कोई भी रूप सार्वभौमिक नहीं है।
- अलग-अलग देशों या क्षेत्रों में अलग-अलग सांकेतिक भाषाएँ प्रयोग की जाती हैं। जैसे- ब्रिटिश सांकेतिक भाषा (BSL), अमेरिकन सांकेतिक भाषा (ASL) और भारतीय सांकेतिक भाषा (ISL) आदि। इनके अलावा एक अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस भी है, जिसका प्रयोग अधिकांशतः अंतर्राष्ट्रीय और औपचारिक बैठकों के दौरान किया जाता है।
नई शिक्षा नीति और भारतीय सांकेतिक भाषा
- इसी वर्ष जुलाई माह में केंद्र सरकार ने ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020’ को मंज़ूरी दी थी, जिसने तकरीबन 34 वर्ष पुरानी वर्ष 1986 की ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ को प्रतिस्थापित किया था।
- देश की नई शिक्षा नीति के अनुसार, भारतीय सांकेतिक भाषा (ISL) को देश भर में मानकीकृत किया जाएगा, और इस भाषा में राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर की पाठ्यक्रम सामग्री विकसित की जाएगी, जो कि श्रवण बाधित विद्यार्थियों द्वारा उपयोग में लाई जाएगी।
- इसके अलावा नई शिक्षा नीति में स्थानीय सांकेतिक भाषाओं को यथासंभव महत्त्व देने और बढ़ावा देने की भी बात की गई है।
आगे की राह
- जानकार मानते हैं कि भारतीय सांकेतिक भाषाओं के मानकीकरण की प्रक्रिया अपेक्षाकृत काफी जटिल है और इसके लिये न केवल भारतीय सांकेतिक भाषा में निपुण शिक्षकों के प्रशिक्षण की आवश्यकता है बल्कि इस कार्य के लिये भारतीय शिक्षण सामग्री का अनुकूलन भी करना होगा।
- भारतीय सांकेतिक भाषा को मुख्यधारा से जोड़ने और इसे आम लोगों के बीच लोकप्रिय बनाने के लिये आवश्यक है कि आम लोगों तक इस भाषा की पहुँच सुनिश्चित की जाए।