इन्फोग्राफिक्स
भारतीय राजनीति
असम मुस्लिम विवाह अधिनियम का निरस्तीकरण
प्रिलिम्स के लिये:विशेष विवाह अधिनियम, 1954, असम मुस्लिम विवाह और विवाह-विच्छेद रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1935, समान नागरिक संहिता (UCC), तीन तलाक मामला मेन्स के लिये:मुस्लिम पर्सनल लॉ से संबंधित मुद्दे, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप एवं उनकी रूपरेखा तथा कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में असम सरकार ने असम मुस्लिम विवाह और विवाह-विच्छेद रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1935 को निरस्त करते हुए असम निरसन अध्यादेश (Assam Repealing Ordinance), 2024 को मंज़ूरी दी।
- इस निर्णय के बाद वर्तमान में अब मुस्लिम विवाह अथवा विवाह-विच्छेद का रजिस्ट्रीकरण केवल विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के माध्यम से ही किया जा सकता है।
असम मुस्लिम विवाह और विवाह-विच्छेद रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1935 क्या है?
- यह अधिनियम 1935 में अधिनियमित मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) के अनुरूप है। यह अधिनियम मुस्लिम विवाह और विवाह-विच्छेद के पंजीकरण की प्रक्रिया निर्धारित करता है।
- वर्ष 2010 में संशोधन के माध्यम से मूल अधिनियम में 'स्वैच्छिक' पद को 'अनिवार्य' से प्रतिस्थापित कर दिया गया जिससे असम राज्य में मुस्लिम विवाह और विवाह-विच्छेद का पंजीकरण अनिवार्य हो गया।
- यह अधिनियम राज्य को विवाह और विवाह-विच्छेद को पंजीकृत करने के लिये "किसी भी मुस्लिम व्यक्ति को" लाइसेंस प्रदान करने का अधिकार देता है। मुस्लिम रजिस्ट्रार को लोक सेवक की संज्ञा दी है।
- यह उस प्रक्रिया का वर्णन करता है जिसके माध्यम से विवाह और तलाक के आवेदन रजिस्ट्रार को किये जा सकते हैं तथा इसके साथ ही पंजीकरण की प्रक्रिया भी स्पष्ट की गई है।
असम मुस्लिम विवाह एवं विवाह-विच्छेद रजिस्ट्रीकरण अधिनियम को निरस्त करने के पीछे क्या कारण हैं?
- समसामयिक मानदंडों के साथ संरेखण:
- यह अधिनियम को पुराना है और साथ ही आधुनिक सामाजिक मानदंडों के अनुरूप भी नहीं है। इसमें विवाह के पंजीकरण की अनुमति दी गई थी यदि दूल्हा और दुल्हन क्रमशः 21 तथा 18 वर्ष की कानूनी विवाह योग्य आयु तक नहीं पहुँचे थे, जो विवाह योग्य आयु के संबंध में वर्तमान कानूनी मानकों का खंडन करता था।
- बाल विवाह पर रोक:
- यह निर्णय बाल विवाह को रोकने हेतु सरकार के निरंतर प्रयासों के संयोजन में किया गया था। सरकार द्वारा अधिनियम को निरस्त करके असम में बाल विवाह को समाप्त करने का प्रयास कर रही है, जिसमें बाल विवाह को रिकॉर्ड करने की अनुमति देने वाले प्रावधान शामिल थे।
- अनौपचारिकता एवं सत्ता का दुरुपयोग:
- इस अधिनियम ने विवाह पंजीकरण हेतु एक अनौपचारिक तंत्र प्रदान किया, जिसके कारण काज़ियों (विवाह आयोजित करने के लिये ज़िम्मेदार सरकार-पंजीकृत अधिकारी) द्वारा संभावित दुरुपयोग हुआ।
- सुधार की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए,बाल विवाह एवं उचित आधार के बिना तलाक की सुविधा दिये जाने के आरोप लगाए गए थे।
- समान नागरिक संहिता (UCC) की ओर बढ़ना:
- इस अधिनियम को निरस्त करने के निर्णय को उत्तराखंड के हालिया कदम के समान असम में समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में एक प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है।
- सरकार का लक्ष्य विभिन्न समुदायों में विवाह कानूनों को सुव्यवस्थित करना और साथ ही उन्हें एक सामान्य कानूनी ढाँचे के तहत लाना भी है।
अधिनियम के निरसन के विरुद्ध तर्क क्या हैं?
- अधिनियम द्वारा विवाह पंजीकरण के लिये एक सरल एवं विकेंद्रीकृत प्रक्रिया प्रदान की (राज्य के 94 काज़ियों के साथ), जबकि, विशेष विवाह अधिनियम की जटिलताएँ हैं, जो कुछ व्यक्तियों, विशेष रूप से गरीबों तथा अशिक्षितों के विवाह पंजीकरण को रोक सकती हैं।
- अन्य लोगों के साथ विभिन्न समूहों एवं अधिवक्ताओं ने इस अधिनियम की आलोचना की और साथ ही इसे न्यायालय में चुनौती भी दी।
- पूर्ण निरसन के निहितार्थों के बारे में चिंताएँ व्यक्त की गईं, जिनमें अपंजीकृत विवाहों की बढ़ती घटनाओं की संभावना भी शामिल थी।
हाल के वर्षों में मुस्लिम पर्सनल लॉ लोगों की नज़रों में क्यों रहा है?
- कानूनी सुधार एवं न्यायिक हस्तक्षेप:
- मुस्लिम पर्सनल लॉ से संबंधित मामलों में विशेष कानूनी सुधार एवं न्यायिक हस्तक्षेप हुए हैं।
- वर्ष 2017 में तीन तलाक मामला (शायरा बानो बनाम भारत संघ) जैसे ऐतिहासिक मामलों तथा उसके बाद के मामलों ने तात्कालिक तलाक, बहुविवाह एवं मुस्लिम विवाह में महिलाओं के अधिकारों जैसे मुद्दों को सुर्खियों में ला दिया है।
- इन मामलों द्वारा समानता के साथ-साथ न्याय के संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप मुस्लिम पर्सनल लॉ में सुधारों को उजागर किया है।
- मुस्लिम पर्सनल लॉ से संबंधित मामलों में विशेष कानूनी सुधार एवं न्यायिक हस्तक्षेप हुए हैं।
- लैंगिक न्याय एवं महिला अधिकार:
- महिलाओं के अधिकरों के साथ-साथ लैंगिक न्याय मुस्लिम पर्सनल लॉ में प्रमुख मुद्दे बन गए हैं।
- बहस तीन तलाक जैसे मुद्दों पर केंद्रित है, जो पतियों को कानूनी कार्यवाही के बिना अपनी पत्नियों को तात्कालिक तलाक देने की अनुमति प्रदान करता है और साथ ही निकाह हलाला की प्रथा जहाँ एक महिला को अपने पूर्व पति से दोबारा शादी करने से पहले किसी अन्य पुरुष से शादी करनी होती है उसे तलाक देना होता है।
- इन प्रथाओं को महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण एवं अन्यायपूर्ण होने के कारण आलोचना का सामना करना पड़ा है।
- महिलाओं के अधिकरों के साथ-साथ लैंगिक न्याय मुस्लिम पर्सनल लॉ में प्रमुख मुद्दे बन गए हैं।
- सामाजिक परिवर्तन एवं सक्रियता:
- लैंगिक समानता पर बढ़ती सक्रियता एवं परिवर्तित सामाजिक दृष्टिकोण के कारण मुस्लिम पर्सनल लॉ की गहन जाँच की गई है।
- महिला अधिकार कार्यकर्त्ताओं, विद्वानों एवं नागरिक समाज संगठनों द्वारा विवाह, तलाक, भरण-पोषण के साथ-साथ विरासत के मामलों में लैंगिक समानता तथा महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये मुस्लिम पर्सनल लॉ के भीतर सुधारों की वकालत की है।
- राजनीतिक गतिशीलता:
- मुस्लिम पर्सनल लॉ भी एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दल और हित समूह तीन तलाक एवं एक समान नागरिक संहिता जैसे मामलों पर विशेष ध्यान दे रहे हैं।
- इन मुद्दों पर होने वाली बहसें अमूमन व्यापक राजनीतिक एजेंडे से संबंधित होती हैं जिससे जनता का ध्यान आकर्षित होता है और यह चर्चा का विषय बन जाता है।
- सांविधानिक सिद्धांत:
- पर्सनल लॉ से संबंधित मामलों में समता, न्याय और भेदभाव रहित सांविधानिक सिद्धांतों को बनाए रखने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया जा रहा है।
- धार्मिक संबद्धता की परवाह किये बिना सांविधानिक अधिकारों और सभी नागरिकों के लिये समान व्यवहार सुनिश्चित करने की आवश्यकता के संदर्भ में मुस्लिम पर्सनल लॉ में सुधार की मांग की जाती है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ क्या है?
- परिचय:
- मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) का आशय इस्लाम धर्म के अनुयायियों के वैयक्तिक मामलों को नियंत्रित करने वाले विधियों के समूह से है।
- ये कानून/विधि वैयक्तिक जीवन के विभिन्न पहलुओं से संबंधित होते हैं जिनमें विवाह, तलाक, विरासत/उत्तराधिकार और पारिवारिक नातेदारी शामिल हैं।
- मुस्लिम पर्सनल लॉ मुख्य रूप से कुरान, हदीस (पैगंबर मुहम्मद की उक्तियाँ और कार्य) और इस्लामी विधिशास्त्र पर आधारित है।
- मुस्लिम पर्सनल लॉ से संबंधित मुद्दे:
- शरिया अथवा मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार पुरुषों को बहुविवाह की अनुमति है जिसके तहत वे एक ही समय में एक से अधिक, कुल चार विवाह कर सकते हैं।
- 'निकाह हलाला' एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक मुस्लिम महिला को अपने विच्छिन्न विवाह पति से पुनः विवाह करने से पूर्व उसे किसी अन्य व्यक्ति से विवाह करना होता है और उससे तलाक लेना होता है।
- कोई भी मुस्लिम व्यक्ति तीन माह तक एक बार तलाक बोलकर अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है। इस प्रथा को तलाक-ए-हसन कहा जाता है।
- "तीन तलाक" के तहत कोई संबद्ध व्यक्ति ईमेल अथवा टेक्स्ट संदेश सहित किसी भी रूप में "तलाक" शब्द को तीन बार दोहराकर अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है।
- इस्लाम में तलाक और खुला क्रमशः पुरुषों तथा महिलाओं के लिये विवाह विच्छेद को संदर्भित किये जाने वाले दो शब्द हैं। एक पुरुष 'तलाक' के माध्यम से अपनी पति से अलग हो सकता है जबकि एक महिला 'खुला' के माध्यम से अपने पति से अलग हो सकती है।
- भारत में अनुप्रयोग:
- मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम वर्ष 1937 में पारित किया गया था जिसका उद्देश्य भारत में मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिये एक इस्लामिक विधि कूट तैयार करना था।
- अंग्रेज़ जो तत्कालीन समाय में शासन कर रहे थे यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे थे कि भारतीयों पर उनके अपने सांस्कृतिक मानदंडों के अनुसार शासन किया जाए।
- हिंदू धर्मं के लोगों और मुस्लिम समुदायों के लिये बनाए गए कानूनों के बीच भेद करते हुए उन्होंने बयान दिया कि हिंदुओं के मामले में "उपयोग का स्पष्ट प्रमाण विधि के लिखित पाठ से अधिक महत्त्वपूर्ण होगा" जबकि मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिये कुरान में उल्लिखित बातें सबसे महत्त्वपूर्ण होंगी।
- इसलिये वर्ष 1937 से, मुस्लिम स्वयीय विधि (शरीयत) अधिनियम मुस्लिम सामाजिक जीवन के पहलुओं जैसे- विवाह, तलाक, विरासत और पारिवारिक संबंधों को अनिवार्य बनाता है।
- अधिनियम में कहा गया है कि व्यक्तिगत विवाद के मामलों में राज्य हस्तक्षेप नहीं करेगा।
- अन्य धर्मों में व्यक्तिगत कानून:
- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 जो हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के बीच संपत्ति विरासत के लिये दिशा-निर्देश देता है।
- पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936 पारसियों द्वारा उनकी धार्मिक परंपराओं के अनुसार पालन किये जाने वाले नियमों को निर्धारित करता है।
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 ने हिंदुओं के बीच विवाह से संबंधित कानूनों को संहिताबद्ध किया था।
आगे की राह
- मुस्लिम पर्सनल लॉ सहित व्यक्तिगत कानूनों में सुधार के लिये एक क्रमिक दृष्टिकोण, उन्हें आधुनिक सामाजिक दृष्टिकोण के साथ संरेखित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है। इसमें व्यापक समीक्षा, हितधारकों के साथ परामर्श और जन जागरूकता पहल शामिल हैं।
- विधायी सुधारों में धार्मिक विविधता का सम्मान करते हुए संवैधानिक मूल्यों को कायम रखा जाना चाहिये।
- वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र को बढ़ावा देने के साथ-साथ महिलाओं को सशक्त बनाना और उनके प्रतिनिधित्व को बढ़ाव देना प्रमुख प्राथमिकताएँ हैं।
- संस्थागत क्षमता को मज़बूत करना और कार्यान्वयन की निगरानी करना प्रभावी सुधार सुनिश्चित करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत के संविधान का कौन-सा अनुच्छेद अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के किसी व्यक्ति के अधिकार को संरक्षण देता है? (2019) (a) अनुच्छेद 19 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही उत्तर है। मेन्स:प्रश्न.रीति-रिवाज़ और परंपराएँ तर्क को दबा देती हैं जिससे रूढ़िवादिता पैदा होती है। क्या आप सहमत हैं? (2020) |
शासन व्यवस्था
कर्नाटक मंदिर कर संशोधन विधेयक
प्रिलिम्स के लिये:राज्यपाल ,अनुच्छेद 25, अनुच्छेद 26 मेन्स के लिये:मंदिर प्रशासन, सरकारी नीतियाँ एवं हस्तक्षेप,पारदर्शिता एवं जवाबदेही |
स्रोत: इंडियन ऐक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती (संशोधन) विधेयक, 2024, राज्य विधानसभा एवं उसके बाद राज्य विधानपरिषद द्वारा पारित किया गया था, अब इसे मंज़ूरी के लिये राज्यपाल के पास भेजा जाएगा।
- वर्ष 1997 के विधेयक का उद्देश्य कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम (KHRI & CE), 1997 में कई प्रावधानों में संशोधन करना था।
विधेयक की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- कराधान प्रणाली में परिवर्तन:
- इस विधेयक का उद्देश्य हिंदू मंदिरों के कराधान में परिवर्तन करना था।
- इसमें मंदिरों से होने वाली 1 करोड़ रुपए से अधिक की सकल वार्षिक आय का 10% भाग मंदिर के रख-रखाव के लिये एक सामान्य प्रस्ताव पारित किया है।
- पूर्व में 10 लाख रुपए वार्षिक से अधिक आय वाले मंदिरों के लिये आवंटन शुद्ध आय का 10% था।
- शुद्ध आय की गणना मंदिर पर हुए व्यय का हिसाब-किताब करने के बाद उसके लाभ के आधार पर की जाती है, जबकि सकल आय का तात्पर्य मंदिर द्वारा अर्जित कुल धनराशि से है।
- विधेयक में 10 लाख रुपए से 1 करोड़ रुपए के बीच की आय वाले मंदिरों की आय का 5% आवंटित करने का भी सुझाव दिया गया है।
- इन परिवर्तनों से 1 करोड़ रुपए से अधिक आय वाले 87 मंदिरों एवं 10 लाख रुपए से अधिक आय वाले 311 मंदिरों से अतिरिक्त 60 करोड़ रुपए प्राप्त होंगे।
- सामान्य निधि का उपयोग:
- सामान्य निधि का उपयोग धार्मिक अध्ययन के साथ प्रचार-प्रसार, मंदिरों के रख-रखाव एवं अन्य धर्मार्थ कार्यों के लिये किया जा सकता है।
- वर्ष 1997 के अधिनियम में संशोधन करके, वर्ष 2011 में सामान्य निधि बनाई गई थी।
- प्रबंधन समिति की संरचना:
- विधेयक में मंदिरों और धार्मिक संस्थानों की "प्रबंधन समिति" में विश्वकर्मा हिंदू मंदिर वास्तुकला एवं मूर्तिकला में एक कुशल सदस्य को जोड़ने का सुझाव दिया गया है।
- मंदिरों एवं अन्य धार्मिक संस्थानों को KHRI&CE 1997 अधिनियम की धारा 25 के तहत एक "प्रबंधन समिति" स्थापित करने की आवश्यकता होती है, जिसमें नौ व्यक्ति शामिल होते हैं, जिसमें एक पुजारी, दो महिलाएँ, संस्थान के क्षेत्र का एक निवासी और साथ ही कम-से-कम एक अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति एक सदस्य शामिल होता है।
- विधेयक में मंदिरों और धार्मिक संस्थानों की "प्रबंधन समिति" में विश्वकर्मा हिंदू मंदिर वास्तुकला एवं मूर्तिकला में एक कुशल सदस्य को जोड़ने का सुझाव दिया गया है।
- राज्य धार्मिक परिषद:
- विधेयक द्वारा राज्य धार्मिक परिषद को समिति अध्यक्षों की नियुक्ति करने के साथ धार्मिक विवादों, मंदिर की स्थिति एवं ट्रस्टी नियुक्तियों को संभालने का अधिकार दिया। इसके अतिरिक्त, इसमें वार्षिक 25 लाख रुपए से अधिक आय वाले मंदिरों के लिये बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की निगरानी के लिये ज़िला एवं राज्य समितियों के निर्माण को अनिवार्य किया गया।
विधेयक के संबंध में क्या चिंताएँ हैं?
- विधेयक को भेदभाव के आधार पर भी चुनौती दी जा सकती है, क्योंकि यह केवल हिंदू मंदिरों पर लागू होता है, अन्य धार्मिक संस्थानों पर नहीं।
- इस विधेयक की संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत भी जाँच की जा सकती है जो विधि के समक्ष समता और कानूनों की समान सुरक्षा की गारंटी देता है तथा राज्य की मनमाना एवं अनुचित कार्रवाई पर रोक लगाता है।
- आलोचकों ने तर्क दिया कि इस प्रकार का हस्तक्षेप अनुच्छेद 25 के तहत प्रदत्त सांविधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
- अनुच्छेद 25 में उल्लिखित है कि लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन सभी व्यक्तियों को धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने तथा प्रचार करने का समान हक होगा।
- अनुच्छेद 25(2) (a) राज्य को किसी भी धार्मिक आचरण से संबद्ध किसी आर्थिक, वित्तीय, राजनैतिक अथवा अन्य लौकिक क्रियाकलाप का विनियमन अथवा प्रतिबंधित करने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 25 में उल्लिखित है कि लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन सभी व्यक्तियों को धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने तथा प्रचार करने का समान हक होगा।
- इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 26 के तहत गारंटीकृत अधिकारों के संभावित उल्लंघन के संबंध में चिंताएँ व्यक्त की गईं।
- अनुच्छेद 26 धार्मिक संप्रदायों को अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने और धार्मिक तथा धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये संस्थान स्थापित करने की स्वायत्तता प्रदान करता है।
- यह संभावना है कि इस विधेयक के माध्यम से सरकार द्वारा नियुक्त किये गए राज्य धार्मिक परिषद द्वारा मंदिर के धन और परिसंपत्तियों के संबंध में भ्रष्टाचार तथा कुप्रबंधन को बढ़ावा मिलेगा।
- विपक्ष के अनुसार यह विधेयक सरकारी अतिक्रमण और मंदिरों का वित्तीय शोषण दर्शाता है।
अन्य राज्यों में मंदिर राजस्व प्रबंधन:
- तेलंगाना की व्यवस्था:
- तेलंगाना मंदिर राजस्व के संबंध में कर्नाटक की ही भाँति एक प्रणाली का अनुपालन करता है जहाँ तेलंगाना धर्मार्थ और हिंदू धार्मिक संस्था तथा विन्यास अधिनियम, 1987 की धारा 70 के तहत एक "कॉमन गुड फंड" तैयार किया जाता है।
- वार्षिक रूप से 50,000 रुपए से अधिक आय वाले मंदिरों को अपनी कुल आय का 1.5% राज्य सरकार को प्रदान करना अनिवार्य है।
- इन निधियों का उपयोग मंदिर के रखरखाव, जीर्णोद्धार, वेद-पाठशालाओं (धार्मिक विद्यालयों) और नए मंदिरों की स्थापना के लिये किया जाता है।
- केरल की व्यवस्था:
- केरल संबद्ध विषय हेतु एक अलग दृष्टिकोण अपनाता है जहाँ मंदिरों का प्रबंधन मुख्य रूप से राज्य द्वारा संचालित देवस्वओम (मंदिर) बोर्डों द्वारा किया जाता है।
- केरल में पाँच स्वायत्त देवस्वोम बोर्ड मौजूद हैं जो 3,000 से अधिक मंदिरों की देख-रेख करते हैं। बोर्ड के सदस्यों को सामान्य तौर पर सत्तारूढ़ सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है, जो अमूमन राजनेता होते हैं।
- प्रत्येक देवस्वोम बोर्ड राज्य सरकार द्वारा आवंटित बजट के साथ कार्य करता है और राजस्व आँकड़ों का खुलासा करने के लिये बाध्य नहीं है। त्रावणकोर और कोचीन के अतिरिक्त प्रत्येक देवस्वोम बोर्ड के तहत मंदिरों का प्रशासन तथा प्रबंधन अलग-अलग कानून द्वारा नियंत्रित किया जाता है जो एक साझा अधिनियम (त्रावणकोर-कोचीन हिंदू धार्मिक संस्थान अधिनियम, 1950) द्वारा शासित होते हैं।
- केरल संबद्ध विषय हेतु एक अलग दृष्टिकोण अपनाता है जहाँ मंदिरों का प्रबंधन मुख्य रूप से राज्य द्वारा संचालित देवस्वओम (मंदिर) बोर्डों द्वारा किया जाता है।
राज्य द्वारा मंदिरों के विनियमन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है?
- ब्रिटिश सरकार के पूर्त विन्यास अधिनियम, 1863 का उद्देश्य स्थानीय समितियों को मंदिर के नियंत्रण के संबंध में अधिकार प्रदान कर मंदिर के प्रबंधन को पंथनिरपेक्ष बनाना था।
- वर्ष 1927 में जस्टिस पार्टी ने मद्रास हिंदू धार्मिक विन्यास अधिनियम कार्यान्वित किया जो मंदिरों को विनियमित करने के लिये एक निर्वाचित सरकार द्वारा किये गए शुरुआती प्रयासों में से एक था।
- वर्ष 1950 में भारत के विधि आयोग ने मंदिर के राजस्व के दुरुपयोग की रोकथाम करने के लिये कानून की अनुशंसा की जिसके परिणामस्वरूप तमिलनाडु हिंदू धार्मिक और पूर्त विन्यास (TN HR&CEई) अधिनियम, 1951 क्रियान्वित किया गया।
- यह मंदिरों और उनकी परिसंपत्तियों के प्रशासन, सुरक्षा और संरक्षण के लिये हिंदू धार्मिक और पूर्त विन्यास विभाग के गठन का प्रावधान करता है।
- TN HR&CE अधिनियम अधिनियमित किया गया था, लेकिन इसकी संवैधानिक वैधता को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई थी। ऐतिहासिक शिरूर मठ मामले (1954) में, न्यायालय ने समग्र कानून को बरकरार रखा, हालाँकि इसने कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया। वर्ष 1959 में एक संशोधित TN HR&CE अधिनियम बनाया गया था।
भारत में अन्य धार्मिक संस्थानों का प्रबंधन किस प्रकार किया जाता है?
- उपासना स्थल अधिनियम, 1991:
- यह किसी भी उपासना स्थल के रूपांतरण को प्रतिबंधित करने और उसकी स्थिति को स्थिर करने अर्थात् धार्मिक स्वरूप के रखरखाव तथा उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक मामलों के लिये एक अधिनियम के रूप में वर्णित किया गया है जैसा कि यह 15 अगस्त, 1947 के दौरान अस्तित्व में था।
- अधिनियम में प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों, पुरातात्त्विक स्थलों तथा अवशेषों को शामिल नहीं किया गया है, जो प्राचीन स्मारक और पुरातत्त्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 द्वारा शासित होते हैं।
- इसके कार्यान्वयन से पूर्व निपटाए गए मामले, सुलझाए गए विवाद या रूपांतरण भी इसमें शामिल नहीं हैं। विशेष रूप से, यह अधिनियम संबंधित कानूनी कार्यवाही सहित, अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के रूप में ज्ञात उपासना स्थल पर लागू नहीं होता है।
- यह किसी भी उपासना स्थल के रूपांतरण को प्रतिबंधित करने और उसकी स्थिति को स्थिर करने अर्थात् धार्मिक स्वरूप के रखरखाव तथा उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक मामलों के लिये एक अधिनियम के रूप में वर्णित किया गया है जैसा कि यह 15 अगस्त, 1947 के दौरान अस्तित्व में था।
- भारत का संविधान:
- अनुच्छेद 26 के तहत संविधान में कहा गया है कि धार्मिक समूहों को धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये संस्थानों की स्थापना व प्रबंधन करने, धार्मिक मामलों में अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करने तथा संपत्ति का स्वामित्व, अधिग्रहण व प्रशासन करने का अधिकार है।
- मुस्लिम, ईसाई, सिख और अन्य धार्मिक संप्रदाय इन संवैधानिक आश्वस्तियों का भरपूर उपयोग कर अपनी संस्थाओं का प्रबंधन करते हैं।
- शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (SGPC):
- SGPC सिख नेतृत्व वाली एक समिति है जो भारत और विदेशों में सिख गुरुद्वारों का प्रबंधन करती है।
- SGPC का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से सिख संगत द्वारा किया जाता है अर्थात् 18 वर्ष से अधिक उम्र के सिख पुरुष एवं महिला मतदाता जो सिख गुरुद्वारा अधिनियम, 1925 के प्रावधानों के तहत मतदाता के रूप में पंजीकृत हैं।
- SGPC सिख नेतृत्व वाली एक समिति है जो भारत और विदेशों में सिख गुरुद्वारों का प्रबंधन करती है।
- वक्फ अधिनियम 1954:
- के वक्फ अधिनियम, 1954 ने केंद्रीय वक्फ परिषद की स्थापना की, जो औकाफ (दान की गई संपत्ति) के प्रशासन और राज्य वक्फ बोर्डों के कामकाज पर केंद्र सरकार को सलाह देती है।
- राज्य वक्फ बोर्ड अपने राज्य में मस्जिदों, कब्रिस्तानों और धार्मिक वक्फों पर नियंत्रण रखते हैं। वक्फ बोर्ड का प्राथमिक कार्य यह सुनिश्चित करना है कि उसकी संपत्तियों और संप्राप्ति का उचित प्रबंधन तथा उपयोग किया जाए।
- वक्फ मुस्लिम कानून द्वारा मान्यता प्राप्त धार्मिक, पवित्र या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये चल या अचल संपत्तियों का एक स्थायी समर्पित गठन है।
- राज्य वक्फ बोर्ड अपने राज्य में मस्जिदों, कब्रिस्तानों और धार्मिक वक्फों पर नियंत्रण रखते हैं। वक्फ बोर्ड का प्राथमिक कार्य यह सुनिश्चित करना है कि उसकी संपत्तियों और संप्राप्ति का उचित प्रबंधन तथा उपयोग किया जाए।
- के वक्फ अधिनियम, 1954 ने केंद्रीय वक्फ परिषद की स्थापना की, जो औकाफ (दान की गई संपत्ति) के प्रशासन और राज्य वक्फ बोर्डों के कामकाज पर केंद्र सरकार को सलाह देती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:Q. धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा धर्मनिरपेक्षता के पश्चिमी मॉडल से किस प्रकार भिन्न है? विवेचना कीजिये। (2016) |
जैव विविधता और पर्यावरण
भारत में तेंदुओं की स्थिति 2022
प्रिलिम्स के लिये:इंटरनेशनल बिग कैट अलायंस, बाघ, शेर, तेंदुआ, हिम तेंदुआ, प्यूमा, जगुआर, सतत् विकास लक्ष्य (SDG) मेन्स के लिये:इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस, संरक्षण |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारत में तेंदुओं की स्थिति 2022 पर एक रिपोर्ट जारी की है। इसके अंतर्गत भारत के 20 राज्यों का सर्वेक्षण किया गया और यह तेंदुए के निवास स्थान की 70 प्रतिशत आबादी को दर्शाता है।
- हाल ही में केंद्र सरकार ने प्रोजेक्ट टाइगर की 50वीं वर्षगाँठ के अवसर पर वर्ष 2023-24 से वर्ष 2027-28 तक पाँच वर्ष की अवधि के लिये 150 करोड़ रुपए के एकमुश्त बजटीय समर्थन के साथ भारत में मुख्यालय के साथ इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस (IBCA) की स्थापना को मंज़ूरी दी।
रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- कुल संख्या:
- वर्ष 2018 में भारत में तेंदुओं की संख्या 12,852 थी जो वर्ष 2022 में 8% बढ़कर 13,874 हो गई।
- तेंदुए की लगभग 65% आबादी शिवालिक परिदृश्य में संरक्षित क्षेत्रों के बाहर मौजूद है। केवल एक तिहाई तेंदुए ही संरक्षित क्षेत्रों में हैं।
- शिवालिक परिदृश्य हिमालय की सबसे बाहरी शृंखला को संदर्भित करता है, जिसे शिवालिक पहाड़ियाँ या शिवालिक रेंज के रूप में जाना जाता है। यह सीमा उत्तर भारत के कई राज्यों तक फैली हुई है, जिनमें उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और जम्मू-कश्मीर तथा उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से शामिल हैं।
- क्षेत्रीय भिन्नता:
- मध्य भारत में तेंदुओं की संख्या में स्थिरता अथवा सामान्य वृद्धि हुई (वर्ष 2018: 8071, वर्ष 2022: 8820) जबकि शिवालिक पहाड़ियों और गंगा के मैदानी इलाकों में तेंदुओं की संख्या में कमी आई (वर्ष 2018: 1253, वर्ष 2022: 1109)।
- शिवालिक पहाड़ियों और गंगा के मैदानों में कुल संख्या में प्रति वर्ष 3.4% की गिरावट हुई जबकि मध्य भारत तथा पूर्वी घाट में सबसे अधिक वृद्धि दर, 1.5% हुई।
- मध्य भारत में तेंदुओं की संख्या में स्थिरता अथवा सामान्य वृद्धि हुई (वर्ष 2018: 8071, वर्ष 2022: 8820) जबकि शिवालिक पहाड़ियों और गंगा के मैदानी इलाकों में तेंदुओं की संख्या में कमी आई (वर्ष 2018: 1253, वर्ष 2022: 1109)।
- राज्य स्तरीय वितरण:
- मध्य प्रदेश में तेंदुओं की संख्या सबसे अधिक (3,907) है, इसके बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु हैं।
- ओडिशा में तेंदुओं की संख्या वर्ष 2018 में 760 से घटकर वर्ष 2022 में 562 हो गई और उत्तराखंड में, जीवसंख्या वर्ष 2018 में 839 से घटकर वर्ष 2022 में 652 हो गई।
- केरल, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, बिहार और गोवा में भी जीवसंख्या में गिरावट दर्ज की गई है।
- मध्य प्रदेश में तेंदुओं की संख्या सबसे अधिक (3,907) है, इसके बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु हैं।
- बाघ संरक्षण प्रयासों से लाभ:
- मध्य भारत और पूर्वी घाट का परिदृश्य तेंदुओं की सबसे बड़ी आबादी का निवास स्थान है, जो व्याघ्र संरक्षण के ढाँचे के भीतर सुरक्षात्मक उपायों के कारण बढ़ रही है।
- रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि तेंदुओं पर बाघों द्वारा डाले गए नियामक दबाव के बावजूद, संरक्षित क्षेत्रों के बाह्य क्षेत्रों की तुलना में टाइगर रिज़र्व में तेंदुओं का घनत्व अधिक है।
- सामान्य खतरे:
- आम खतरों में मांस के लिये इनका अवैध शिकार, बाघ और तेंदुए की खाल व शरीर के अंगों के लिये लक्षित अवैध शिकार एवं खनन तथा अन्य मानवीय गतिविधियों के कारण निवास स्थान का नुकसान शामिल है।
- ओडिशा में वर्ष 2018 और 2023 के दौरान वन्यजीव तस्करों से 59 तेंदुए की खालें ज़ब्त की गईं।
- इसके अतिरिक्त, सड़क दुर्घटनाएँ तेंदुओं की मौत का एक महत्त्वपूर्ण कारण हैं।
- आम खतरों में मांस के लिये इनका अवैध शिकार, बाघ और तेंदुए की खाल व शरीर के अंगों के लिये लक्षित अवैध शिकार एवं खनन तथा अन्य मानवीय गतिविधियों के कारण निवास स्थान का नुकसान शामिल है।
इंटरनेशनल बिग कैट अलायंस (IBCA) क्या है?
- परिचय:
- IBCA एक बहु-देशीय, बहु-एजेंसी गठबंधन है जिसका उद्देश्य बड़ी बिल्लियों की प्रजातियों और उनके आवासों का संरक्षण करना है।
- यह 96 बड़ी बिल्ली श्रेणी के निवास स्थान वाले देशों, बड़ी बिल्ली संरक्षण में रुचि रखने वाले गैर-श्रेणी देशों, संरक्षण भागीदारों, वैज्ञानिक संगठनों और व्यवसायों को एक साथ लाता है।
- उद्देश्य:
- गठबंधन का प्राथमिक लक्ष्य बाघ, शेर, तेंदुआ, हिम तेंदुआ, प्यूमा, जगुआर और चीता सहित बड़ी बिल्लियों के भविष्य एवं उनके निवास स्थान को सुरक्षित करने के प्रयासों पर सहयोग करना है।
- IBCA जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने की दिशा में कार्य करेगा। यह उन नीतिगत पहलों का समर्थन करेगा जो जैवविविधता संरक्षण प्रयासों को स्थानीय आवश्यकताओं के साथ जोड़ते हैं और सदस्य देशों के भीतर संयुक्त राष्ट्र द्वारा अनिवार्य सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में योगदान करते हैं।
- संरचना:
- समूह की संरचना में सदस्यों की एक सभा, एक स्थायी समिति और एक सचिवालय शामिल होगा, जिसका मुख्यालय भारत में होगा।
- भारत के संरक्षण प्रयास:
- प्रोजेक्ट लायन
- प्रोजेक्ट तेंदुआ
- चीता पुनः वापसी परियोजना
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972
- हिम तेंदुआ संरक्षण:
- आवास की सुरक्षा, सामुदायिक भागीदारी, अनुसंधान एव अवैध शिकार विरोधी उपाय आदि सभी संरक्षण पहल का हिस्सा हैं।
- अन्य देशों तथा अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर काम करने से शीर्ष शिकारी की सुरक्षा में सहायता प्राप्त होती है।
तेंदुओं से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- वैज्ञानिक नाम: पेंथेरा पार्डस
- परिचय:
- पैंथेरा जीनस के सबसे छोटे सदस्य के रूप में बाघ, शेर (पैंथेरा लियो), जगुआर, तेंदुए तथा हिम तेंदुए आदि शामिल हैं, तेंदुए विभिन्न प्रकार के वातावरणों के लिये अपनी अनुकूलन क्षमता के लिये प्रसिद्ध है।
- यह एक रात्रिचर जानवर है जो जंगली सूअर, हॉग हिरण एवं चीतल सहित अपने क्षेत्र में छोटे शाकाहारी जानवरों को खाता है।
- तेंदुओं में मेलेनिज़्म एक आम घटना है, जिसमें जानवर की पूरी त्वचा काले रंग की होती है, जिसमें उसके धब्बे भी शामिल हैं।
- मेलेनिस्टिक तेंदुए को प्राय: ब्लैक पैंथर कहा जाता है और गलती से इसे एक अलग प्रजाति मान लिया जाता है।
- प्राकृतिक आवास:
- यह उप-सहारा अफ्रीका में पश्चिमी और मध्य एशिया के छोटे हिस्सों एवं भारतीय उपमहाद्वीप से लेकर दक्षिण-पूर्व तथा पूर्वी एशिया तक विस्तृत क्षेत्र में पाया जाता है।
- भारतीय तेंदुआ (पेंथेरा पार्डस फुस्का) भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापक रूप से पाया जाने वाला तेंदुआ है।
- यह उप-सहारा अफ्रीका में पश्चिमी और मध्य एशिया के छोटे हिस्सों एवं भारतीय उपमहाद्वीप से लेकर दक्षिण-पूर्व तथा पूर्वी एशिया तक विस्तृत क्षेत्र में पाया जाता है।
- खतरा:
- खाल एवं शरीर के अंगों के अवैध व्यापार के लिये अवैध शिकार।
- पर्यावास हानि एवं विखंडन
- मानव-तेंदुआ संघर्ष
- संरक्षण की स्थिति:
- IUCN रेड लिस्ट: सुभेध
- CITES: परिशिष्ट-I
- भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची-I
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2012)
उपर्युक्त में से कौन-से भारत में प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं? (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (b) |
जैव विविधता और पर्यावरण
एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं के विरुद्ध भारत की लड़ाई
प्रिलिम्स के लिये:एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं के विरुद्ध भारत की लड़ाई, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा, विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व मेन्स के लिये:एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं के विरुद्ध भारत की लड़ाई, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, संरक्षण |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2018 में भारत ने वर्ष 2022 तक एकल उपयोग वाले प्लास्टिक वस्तुओं (SUP) को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की प्रतिबद्धता जताई थी, तीन वर्ष बाद, 12 अगस्त, 2021 को, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MOEFCC) द्वारा प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021 के माध्यम से चिह्नित किये गए एकल-उपयोग प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध अधिसूचित किया गया था। इस संदर्भ में SUP पर लगाए गए प्रतिबंधों के साथ कुछ प्रगति हुई है, साथ ही, कुछ चुनौतियाँ वर्तमान में अभी भी बरकरार है।
छठी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (UNEA-6) के दौरान जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, पूरे भारत में तेज़ी से फलता-फूलता स्ट्रीट फूड क्षेत्र एकल उपयोग वाले प्लास्टिक पर बहुत अधिक निर्भर है।
SUP के संबंध में UNEA-6 में जारी रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- स्ट्रीट फूड क्षेत्र का एकल उपयोग वाले प्लास्टिक पर निर्भरता:
- भारत के स्ट्रीट फूड बाज़ार अथवा यूँ कहें कि इस क्षेत्र में प्रयोग में लाई जाने वाली प्लेट, कटोरे, कप और कंटेनर जैसे एकल-उपयोग प्लास्टिक का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। ये वस्तुएँ वहनीय होने के साथ-साथ देश की अपशिष्ट प्रबंधन को चुनौतीपूर्ण बनाती हैं।
- पुन: उपयोग प्रणाली के लाभ: रिपोर्ट से पता चलता है कि पुन: उपयोग प्रणाली के विभिन्न लाभ हो सकते हैं जिनमें व्यावसायिक लाभ भी शामिल हैं:
- कम लागत: इस प्रणाली का प्रयोग विक्रेताओं और ग्राहकों दोनों के लिये लाभकारी हो सकता है।
- अपशिष्ट में कमी आना: इस प्रणाली के प्रयोग से आवश्यक पैकेजिंग सामग्री की मात्रा काफी कम हो जाती है।
- वित्तीय दृष्टि से व्यवहार्य: रिपोर्ट के अनुसार इस प्रणाली में निवेश से 2-3 वर्ष की पेबैक अवधि के साथ संभावित 21% रिटर्न मिलने की अच्छी संभावना होती है।
- अन्य कारक: इस प्रणाली की प्रभावशीलता को अधिकतम करने के लिये सामग्री का चयन, प्रतिधारण समय, वापसी दर, जमा राशि और सरकारी प्रोत्साहन आदि महत्त्वपूर्ण कारक हैं।
- सुझाव:
- भारत के स्ट्रीट फूड क्षेत्र में पुन: प्रयोज्य पैकेजिंग प्रणाली के प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- यह आर्थिक रूप से व्यवहार्य और पर्यावरण की दृष्टि से एक सतत् समाधान हो सकता है, जो कि सभी हितधारकों के लाभ तथा भारतीय शहरों के लिये अधिक सुनम्य व धारणीय भविष्य का मार्ग प्रशस्त करता है।
एकल उपयोग वाली प्लास्टिक क्या है?
- “इसका अर्थ प्लास्टिक की ऐसी वस्तुओं से है जिसके निपटान अथवा पुनर्चक्रण से पूर्व एक उद्देश्य के लिये एक ही बार उपयोग किया जाता है।"
- वस्तुओं की पैकेजिंग से लेकर शैंपू, डिटर्जेंट, सौंदर्य प्रसाधन की बोतलें, पॉलिथीन बैग, फेस मास्क, कॉफी कप, क्लिंग फिल्म, अपशिष्ट बैग, खाद्य पैकेजिंग आदि निर्मित और उपयोग किये जाने वाले प्लास्टिक में एकल उपयोग वाले प्लास्टिक की हिस्सेदारी सर्वाधिक है।
- उत्पादन की वर्तमान गति को देखते हुए यह अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2050 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में एकल उपयोग वाले प्लास्टिक का योगदान 5-10% तक हो सकता है।
एकल उपयोग वाले प्लास्टिक की वर्तमान स्थिति क्या है?
- प्रतिबंधित एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुएँ:
- भारत ने वर्ष 2021 में 19 चिह्नित एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध लगा दिया था, किंतु इसके प्रचलन पर पूरी तरह नियंत्रण प्राप्त करने में विफल रहा।
- प्रतिबंधित एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं की वार्षिक हिस्सेदारी लगभग 0.6 मिलियन टन प्रति वर्ष है।
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MOEFCC) ने वर्ष 2022 में विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (EPR) नीति लागू की, जो शेष एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं पर लागू होती है, जिसमें मुख्य रूप से पैकेजिंग उत्पाद शामिल हैं।
- EPR नीति मुख्यतः संग्रह और पुनर्चक्रण पर केंद्रित है।
- प्लास्टिक उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी:
- प्लास्टिक वेस्ट मेकर्स इंडेक्स 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, एकल उपयोग वाले प्लास्टिक पॉलिमर के उत्पादन में भारत वैश्विक स्तर पर 13वाँ सबसे बड़ा निवेशक था।
- 5.5 मिलियन टन एकल उपयोग वाले प्लास्टिक अपशिष्ट के उत्पादन के साथ भारत विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है तथा प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 4 किलोग्राम एकल उपयोग वाले प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन के साथ 94वें स्थान पर है, जो दर्शाता है कि भारत में एकल उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाकर इसे पूरी तरह नियंत्रित करने की दिशा में काफी कुछ शेष है।
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन और भारत:
- UNEP के देश-आधारित प्लास्टिक संबंधी डेटा से पता चला है कि प्लास्टिक अपशिष्ट के प्रबंधन के संदर्भ में भारत काफी पीछे है, जहाँ भारत अपने प्लास्टिक अपशिष्ट का मात्र 15% प्रबंधित करता है।
- सामान्यतया प्रयोग में लाया जाने वाला SUP अपशिष्ट सड़कों के किनारे फेंक दिया जाता है या फिर जला दिया जाता है, इससे कभी नालियाँ अवरुद्ध हो जाती हैं, कभी ये नदियों में बह जाती हैं, यह समुद्र में भी फैल जाता है, जिससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समुद्री जीवों को नुकसान पहुँचता है क्योंकि महीनों, वर्षों और दशकों में यह सूक्ष्म तथा नैनो-आकार के कणों में बदल जाता है।
एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के निपटने में क्या चुनौतियाँ हैं?
- विकल्प का अभाव:
- व्यवहार्य विकल्पों की सीमित उपलब्धता एकल उपयोग वाले प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की प्रक्रिया में प्रमुख बाधाओं में से एक है।
- हालाँकि कुछ विकल्प उपलब्ध हैं, किंतु वे लागत प्रभावी, सुविधाजनक अथवा व्यापक रूप से सुलभ नहीं हैं, जिस कारण उपभोक्ताओं और व्यवसायों के लिये एकल उपयोग वाले प्लास्टिक का प्रयोग बंद करना एक मुश्किल काम है।
- आर्थिक संदर्भ:
- वहनीय और सुविधाजनक होने के कारण एकल उपयोग वाले प्लास्टिक आमतौर पर प्रयोग में लाये जाने हेतु पसंदीदा विकल्प होते हैं। विकल्पों में बदलाव लाने के लिये अनुसंधान, विकास तथा बुनियादी ढाँचे में निवेश आवश्यक हो सकता है, जो व्यवसायों व सरकार दोनों के लिये महँगा हो सकता है।
- इसके अतिरिक्त, इस बात की भी काफी संभावना होती है कि उपभोक्ता वैकल्पिक उत्पादों के लिये अधिक कीमत चुकाने को तैयार न हों।
- अवसंरचना:
- प्लास्टिक के निपटान और पुनर्चक्रण के प्रबंधन के लिये पर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन बुनियादी ढाँचा आवश्यक है। हालाँकि विशेष रूप से विकासशील देशों में, उचित अपशिष्ट प्रबंधन के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे का अभाव है, जिसके परिणामस्वरूप प्लास्टिक प्रदूषण तथा पर्यावरणीय क्षरण हो रही है।
- नीति और विनियम:
- हालाँकि कुछ देशों ने एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के लिये कुछ नियम लागू किये हैं, किंतु उनका क्रियान्वयन और अनुपालन चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- कुछ मामलों में, यह एकल उपयोग वाले प्लास्टिक उद्योग जगत के लिये अहितकारी भी हो सकता है जो मुख्यतः इसी पर निर्भर हैं, साथ ही उन उपभोक्ताओं के लिये भी जो उनकी सुविधा के आदी हैं।
- उपभोक्ता अभिवृत्ति:
- एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के प्रति उपभोक्ता अभिवृत्ति तथा दृष्टिकोण को बदलना इसके उपयोग में कमी लाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है।
- हालाँकि यह एक कठिन कार्य है, क्योंकि इसका एक कारण यह है कि इसके उपयोगकर्त्ता इसके आदि हो चुके हैं और दूसरी बात कि उनमें इसके पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में जागरूकता की कमी हो सकती है।
- आजीविका पर प्रभाव:
- कुछ मामलों में, एकल उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध के आजीविका पर अनपेक्षित परिणाम हो सकते हैं, विशेष रूप से उन उद्योगों में कार्यरत लोगों के लिये जो एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के उत्पादन अथवा बिक्री पर निर्भर हैं।
- एकल उपयोग वाले प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के प्रयासों में सामाजिक-आर्थिक निहितार्थों पर विचार किया जाना आवश्यक है तथा साथ ही, प्रभावित व्यक्तियों एवं समुदायों को सहायता प्रदान भी की जानी चाहिये।
एकल उपयोग वाले प्लास्टिक की समस्या के निपटान के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- कानून लागू किया जाना:
- निरीक्षण के दौरान ध्यान दी जाने वाली बातों के संबंध में अधिकारियों, विशेषकर चालान जारी करने वालों की क्षमता को उन्नत किये जाने की आवश्यकता है। निरीक्षण टीमों को गेज़ मीटर जैसे उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के साथ ही विभिन्न सुविधाओं में निरीक्षण पैमाने पर रिपोर्टिंग सुनिश्चित की जानी चाहिये।
- पर्यावरण अनुपालन का सार्वजनिक प्रकटीकरण अनिवार्य किया जाना चाहिये:
- CPCB (केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) और MOEFCC को आदेशित करना चाहिये कि स्थानीय सरकारें व राज्य अपनी वेबसाइटों पर त्रैमासिक अपडेट उपलब्ध करें, जिसमें पर्यावरणीय मुआवज़े, लगाए गए ज़ुर्माने की जानकारी शामिल हो।
- राज्यों को भी पाक्षिक रूप से CPCB को प्रवर्तन रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिये। CPCB को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि यह जानकारी प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार उसकी वार्षिक रिपोर्ट में शामिल की जाए तथा निजी अभिकर्त्ताओं व राज्य प्राधिकरणों से एकत्र किये गए डेटा को साझा किया जाए।
- माइक्राॅन व्यवसाय पर प्रतिबंध:
- कैरी बैग (चाहे इसकी मोटाई कुछ भी हो ) पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये। यह भारत की तुलना में कमज़ोर अर्थव्यवस्था वाले देशों में सफलतापूर्वक लागू किया गया है जैसे कि तंज़ानिया और रवांडा जैसे विभिन्न पूर्वी अफ्रीकी देश।
- भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश ने अपने गैर-बायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट नियंत्रण अधिनियम 1998 के माध्यम से कैरी बैग के उत्पादन, वितरण, भंडारण और उपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है।
- वैकल्पिक SUP बाज़ार में निवेश:
- विकल्पों की कमी के कारण SUP के प्रयोग को पूर्णतया बंद करना एक बड़ी समस्या है। लागत प्रभावी एवं सुविधाजनक विकल्प व्यापक रूप से उपलब्ध हो जाने के पश्चात बाज़ार में बदलाव आएगा।
- हालाँकि, मौज़ूदा विकल्प वर्तमान में काफी नहीं हैं। इसका प्रमुख कारण राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर प्रतिबंध लगाने के प्रयास के साथ ही पिछले काफी लंबे समय से सरकार द्वारा वैकल्पिक उद्योग को बढ़ावा देने में सरकार की उपेक्षा है।
अन्य देश SUP के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं?
- हस्ताक्षर संकल्प:
- भारत उन 124 देशों में शामिल था, जिन्होंने प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिये निर्माण से लेकर निपटान तक प्लास्टिक के संपूर्ण जीवन को संबोधित किया और साथ ही संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा के प्रस्ताव का मसौदा तैयार करने हेतु वर्ष 2022 में एक प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किये थे। यह समझौता अंततः हस्ताक्षरकर्त्ताओं के लिये कानूनी रूप से अनिवार्य हो जाएगा।
- जुलाई 2019 तक, 68 देशों में प्रवर्तन की अलग-अलग डिग्री के साथ प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध है।
- वे देश जहाँ प्लास्टिक प्रतिबंधित हैं:
- बांग्लादेश:
- वर्ष 2002 में बांग्लादेश पतली प्लास्टिक थैलियों पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला देश बना।
- न्यूज़ीलैंड:
- जुलाई 2019 में न्यूज़ीलैंड प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगाने वाला देश बन गया।
- चीन:
- चीन ने चरणबद्ध कार्यान्वयन के साथ वर्ष 2020 में प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध जारी किया।
- अमेरिका:
- अमेरिका के आठ राज्यों द्वारा एकल-उपयोग प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिसकी शुरुआत वर्ष 2014 में कैलिफोर्निया से हुई थी। सिएटल वर्ष 2018 में प्लास्टिक स्ट्रॉ पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला प्रमुख अमेरिकी शहर बन गया।
- यूरोपीय संघ:
- जुलाई, 2021 में एकल-उपयोग प्लास्टिक पर निर्देश यूरोपीय संघ (EU) में प्रभावी हुआ।
- निर्देश कुछ एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाता है जिसके लिये विकल्प उपलब्ध हैं, एकल-उपयोग प्लास्टिक प्लेटें, कटलरी, स्ट्रॉ, गुब्बारे की छड़ें तथा कपास की कलियाँ यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बाज़ारों में नहीं बेची जा सकती हैं।
- यही उपाय विस्तारित पॉलीस्टाइनिन से बने कप, खाद्य एवं पेय पदार्थों के कंटेनरों के साथ-साथ ऑक्सो-डिग्रेडेबल प्लास्टिक से बने सभी उत्पादों पर लागू होता है।
- बांग्लादेश:
निष्कर्ष
एकल-उपयोग प्लास्टिक के विरुद्ध भारत की लड़ाई नीति निर्माताओं, उद्योग हितधारकों एवं नागरिकों से समान रूप से ठोस प्रयास की मांग करती है। हालाँकि प्रगति हुई है, प्रवर्तन, जागरूकता तथा बुनियादी ढाँचे में खामियाँ बनी हुई हैं। स्थायी समाधानों को अपनाने के साथ-साथ सक्रिय उपायों को प्राथमिकता देकर, भारत एकल-उपयोग प्लास्टिक के प्रतिकूल प्रभावों को कम कर सकता है और एक स्वच्छ, हरित भविष्य का मार्ग भी प्रशस्त कर सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. पर्यावरण में मुक्त हो जाने वाली सूक्ष्म कणिकाओं (माइक्रोबीड्स) के विषय में अत्यधिक चिंता क्यों है? (2019) (a) ये समुद्री पारितंत्रों के लिये हानिकारक मानी जाती हैं। उत्तर: (a)
|
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
हीमोफीलिया A के लिये जीन थेरेपी
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय विज्ञान दिवस, हीमोफिलिया A, DNA प्रौद्योगिकी, रमन प्रभाव, ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स, माया OS, चंद्रयान- 3 मिशन, गगनयान मिशन मेन्स के लिये:हीमोफीलिया A के लिये जीन थेरेपी, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारत की उपलब्धियाँ। |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री ने राष्ट्रीय विज्ञान दिवस- 2024 कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि भारत ने क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (CMC) वेल्लोर में हीमोफिलिया A (FVIII की कमी) के लिये जीन थेरेपी का पहला मानव नैदानिक परीक्षण किया।
- इस कार्यक्रम में विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारत की प्रगति पर भी प्रकाश डाला गया।
हीमोफीलिया A क्या है?
- परिचय: हीमोफीलिया दुर्लभ रक्तस्राव विकारों का एक समूह है जो विशिष्ट थक्के कारकों में जन्मजात कमी के कारण होता है। सबसे प्रचलित रूप हीमोफीलिया A है।
- एक महत्त्वपूर्ण रक्त का थक्का बनाने वाले प्रोटीन, जिसे फैक्टर VIII के नाम से जाना जाता है, की कमी के कारण हीमोफीलिया A होता है।
- इस कमी के कारण, व्यक्तियों को चोट लगने के बाद लंबे समय तक रक्तस्राव का अनुभव होता है, क्योंकि उनका रक्त जमने में सामान्य से अधिक समय लगता है।
- कारण: यह मुख्य रूप से वंशागत (आनुवंशिक) विकार है और X-लिंक्ड रिसेसिव पैटर्न का अनुसरण करता है, जिसका अर्थ है कि फैक्टर VIII उत्पादन के लिये ज़िम्मेदार जीन X गुणसूत्र पर स्थित है।
- पुरुषों में एक X और एक Y गुणसूत्र होता है, जबकि महिलाओं में दो X गुणसूत्र होते हैं।
- यदि किसी पुरुष में अपनी माँ से दोषपूर्ण जीन वाले X गुणसूत्र की वंशागति है, तो उसे हीमोफीलिया A होगा।
- दोषपूर्ण प्रतिलिपीकरण वाली महिलाओं को आम तौर पर लक्षणों का अनुभव नहीं होता है क्योंकि अन्य X गुणसूत्र आमतौर पर पर्याप्त फैक्टर VIII प्रदान करते हैं।
- हालाँकि महिलाओं को हीमोफीलिया A हो सकता है यदि उन्हें प्रत्येक माता-पिता से एक की दो दोषपूर्ण प्रतिलिपीकरण की वंशागति (बहुत असामान्य) प्राप्त होती हैं।
- पुरुषों में एक X और एक Y गुणसूत्र होता है, जबकि महिलाओं में दो X गुणसूत्र होते हैं।
- लक्षण: हीमोफीलिया A की गंभीरता रक्त में फैक्टर VIII गतिविधि के स्तर के आधार पर भिन्न होती है। सामान्य लक्षणों में निम्नलिखित लक्ष्ण परिलक्षित हो सकते हैं:
- मामूली चोट (कटने, खरोंच लगने) में भी आघात और अत्यधिक रक्तस्राव होना।
- जोड़ों (विशेष रूप से घुटनों, कोहनी और टखनों) में रक्तस्राव, जिससे दर्द, सूजन और कठोरता होती है।
- सर्जरी या दंत प्रक्रियाओं के बाद रक्तस्राव।
- उपचार: उपचार में अदृश्य रक्त के थक्के जमने वाले कारक को बदलना भी शामिल है ताकि रक्त ठीक से जम सके। यह आमतौर पर किसी व्यक्ति की नस के उपचार उत्पादों को इंजेक्ट करके किया जाता है, जिसे क्लॉटिंग फैक्टर कॉन्संट्रेट कहा जाता है। उपलब्ध क्लॉटिंग कारक सांद्रण के दो मुख्य प्रकार का होता है:
- प्लाज़्मा-व्युत्पन्न कारक सांद्रण: मानव प्लाज़्मा से प्राप्त रक्त का तरल घटक है जिसमें क्लॉटिंग कारकों सहित विभिन्न प्रोटीन होते हैं।
- पुनः संयोजक कारक सांद्रण: वर्ष 1992 में प्रस्तुत, पुनर्योगज कारक सांद्रण आनुवंशिक रूप से DNA तकनीक का उपयोग करके निर्मित किये जाते हैं और साथ ही यह मानव प्लाज़्मा पर निर्भर नहीं होते हैं।
- वे प्लाज़्मा अथवा एल्बुमिन से मुक्त होते हैं, जिससे रक्तजनित वायरस फैलने का खतरा समाप्त हो जाता है।
- हालाँकि जीन थेरेपी अब प्रमुखता प्राप्त कर रही है।
- हाल के परीक्षणों में, उन्होंने एक नई विधि का उपयोग किया जिसमें एक विशेष प्रकार के वायरस का उपयोग करना शामिल है जिसे लेंटिवायरल वेक्टर कहा जाता है ताकि एक जीन डाला जा सके जो रोगी की स्वयं की स्टेम कोशिकाओं में FVIII उत्पन्न करती है।
- जब ये संशोधित स्टेम कोशिकाएँ विशिष्ट प्रकार की रक्त कोशिकाओं में विकसित होती हैं जो FVIII द्वारा उत्पन्न होती हैं।
- एक्वायर्ड हीमोफीलिया A: जबकि हेमोफिलिया A आमतौर पर विरासत में मिलता है, इसे जीवन में बाद में ऑटो-एंटीबॉडी लक्ष्यीकरण कारक VIII के परिणामस्वरूप भी प्राप्त किया जा सकता है।
- यह स्थिति जिसे एक्वायर्ड हीमोफिलिया A के रूप में जाना जाता है, यह दुर्लभ भी है और साथ ही इसकी शुरुआत एवं प्रगति भिन्न होती है।
नोट: विश्व हीमोफीलिया दिवस प्रतिवर्ष 17 अप्रैल को मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य हीमोफीलिया के साथ-साथ अन्य वंशानुगत रक्तस्राव विकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। यह दिन वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ हीमोफिलिया (WHF) के संस्थापक फ्रैंक श्नाबेल के सम्मान में मनाया जाता है।
राष्ट्रीय विज्ञान दिवस क्या है?
- सर चंद्रशेखर वेंकट रमन द्वारा वर्ष 1928 में 'रमन प्रभाव' की खोज की याद में प्रतिवर्ष 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है, जिसके लिये उन्हें वर्ष 1930 में नोबेल पुरस्कार दिया गया था।
- रमन प्रभाव सामग्रियों की पहचान करने की एक विधि है जो इस आधार पर होती है कि वे किस प्रकार प्रकाश फैलाते हैं।
- किसी पदार्थ पर प्रकाश डालकर, वैज्ञानिक उसके अणुओं के साथ संपर्क करने के अनूठे तरीके का विश्लेषण कर सकते हैं, जिससे उसकी रासायनिक संरचना का पता चलता है।
- इस दिवस का उद्देश्य विज्ञान आधारित सोच का वर्धन करना, विज्ञान को लोकप्रिय बनाना और लोगों में वैज्ञानिक सोच का सृजन कर नवीन गतिविधियों को प्रोत्साहित करना तथा एक सकारात्मक वैज्ञानिक अनुसंधान संस्कृति का निर्माण करना है।
- राष्ट्रीय विज्ञान दिवस 2024 की थीम: 'विकसित भारत के लिये स्वदेशी तकनीक'।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की हालिया प्रगति क्या हैं?
- विश्व में स्टार्टअप इकोसिस्टम में भारत का स्थान तीसरा है जिसमें 100 से अधिक यूनिकॉर्न हैं जो उल्लेखनीय उद्यमशीलता विकास का प्रदर्शन कर रहे हैं।
- भारत के जैव-अर्थव्यवस्था क्षेत्र में विगत दशक में 13 गुना की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई जिसका मूल्य वर्ष 2024 में लगभग 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
- भारत वैज्ञानिक अनुसंधान प्रकाशनों के लिये विश्व के शीर्ष पाँच देशों में शामिल है और ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में भारत का स्थान 40वाँ है जो नवाचार के प्रति इसकी प्रतिबद्धता को उजागर करता है।
- अरोमा मिशन और पर्पल रिवोल्यूशन जैसी नवीन पहलों ने कृषि क्षेत्र में उल्लेखनीय परिवर्तन किया है जिससे कृषि-स्टार्टअप के एक संपन्न समुदाय को प्रोत्साहन मिला है।
- भारतीय रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन द्वारा विकसित माया OS ने विदेशी संस्थाओं से ऑनलाइन खतरों से सुरक्षा प्रदान करते हुए साइबर सुरक्षा उपायों को सुदृढ़ किया है।
- भारत के बौद्धिक संपदा परिदृश्य में वृद्धि हुई है जिसके तहत पेटेंट फाइलिंग 90,000 से अधिक हो गई है जो दो दशकों में सबसे अधिक है।
- चंद्रयान-3 मिशन की सफलता ने अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की शक्ति को प्रदर्शित किया है जिससे ऐतिहासिक गगनयान मिशन का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
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