राज्यसभा
विशेष/इन-डेप्थ: मानव DNA प्रोफाइलिंग
- 05 May 2018
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संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
केंद्र सरकार संसद के आगामी मानसून सत्र में DNA प्रोफाइलिंग विधेयक को पेश करने पर विचार कर रही है। एक NGO द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में दायर एक याचिका के जवाब में सरकार ने यह जानकारी दी है। लोकनीति फाउंडेशन द्वारा दाखिल जनहित याचिका में मांग की गई थी कि लावारिस शवों की DNA प्रोफाइलिंग होनी चाहिये, ताकि गुमशुदा लोगों से उसका मिलान कराकर उनकी पहचान स्थापित की जा सके। याचिका में कहा गया कि लावारिस शवों को लेकर एक वैज्ञानिक तरीका विकसित करने की ज़रूरत है जिससे शवों की पहचान हो सके।
यदि इस पर कानून बन जाता है तो देशभर में प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में मिलने वाली लापता तथा लावारिस लाशों तथा प्राकृतिक आपदाओं में मारे जाने वाले हज़ारों लोगों की पहचान का काम आसान हो सकेगा और कई प्रकार की वैधानिक अनिवार्यताओं की पूर्ति करने में भी सरलता होगी। इसके अलावा आपराधिक मामलों की गुत्थी सुलझाने के काम में भी DNA प्रोफाइलिंग से मदद मिल सकती है
- 1953 में जेम्स वाटसन व फैंसिस क्रिक ने DNA संरचना की खोज की थी, जिसके लिये उन्हें 1962 में नोबेल पुरस्कार दिया गया।
- 1985 में ब्रिटिश वैज्ञानिक एलेक जेफ्रीज़ ने DNA प्रोफाइलिंग की खोज की थी।
- 1985 में ही भारत में पहली बार कानूनी कार्रवाई में DNA जाँच को मान्यता मिली थी, लेकिन तब से लेकर अब तक इसके लिये किसी ठोस कानूनी ढाँचे का विकास नहीं हो पाया।
- अब संसद के मानसून सत्र में सरकार DNA प्रोफाइलिंग पर एक विधेयक लाने की तैयारी कर रही है।
क्या है DNA?
पतले धागे तथा घुमावदार सीढ़ी जैसी संरचना वाला DNA (De-oxy-ribo-nucleic Acid- डी-ऑक्सी- राइबो-न्यूक्लिक एसिड) वह अणु है जो शरीर की क्रियाओं और आनुवंशिकी का नियंत्रण करता है। इस अणु में चार क्षार—अडेनिन (A=Adenine), थाएमिन (T=Thymine) साइटोसिन (C=Cytosine) और ग्वानिन (G= Guanine) विशिष्ट क्रम में जमे होते हैं। इन चार क्षारों A, T, C और G के क्रम से ही तय होता है कि DNA का कौन-सा खंड कौन-से प्रोटीन का निर्माण करेगा। प्रत्येक जीव में यह क्रम विशिष्ट अर्थात् अलग होता है। प्रायः गुणसूत्रों में होता है DNA
(टीम दृष्टि इनपुट) |
क्या है DNA प्रोफाइलिंग?
- सरलतम शब्दों में कहा जाए तो किसी व्यक्ति की फॉरेंसिक पहचान करने के काम को DNA प्रोफाइलिंग कहा जाता है।
- इसके लिये किसी व्यक्ति के त्वचा, लार, रक्त या बाल जैसे जैविक नमूने लेकर DNA प्रोफाइलिंग का काम किया जाता है।
- यह ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक व्यक्ति अथवा उसके ऊतक (Tissue) के नमूने से एक विशेष DNA पैटर्न (जिसे प्रोफाइल कहा जाता है) लिया जाता है।
- लगभग शत-प्रतिशत (99.9%) DNA अनुक्रम सभी व्यक्तियों में एक जैसा होता है।
- केवल 0.1% अंतर की वज़ह से प्रत्येक मनुष्य का DNA एक-दूसरे से अलग होता है और इसी आधार पर किसी व्यक्ति की पहचान की जा सकती है।
DNA प्रोफाइलिंग का उपयोग
- किसी व्यक्ति की वास्तविक जैविक पहचान प्राप्त करने के लिये DNA विश्लेषण एक अत्यंत उपयोगी एवं सटीक तकनीक है।
- इसके अंतर्गत अपराध के स्थान से प्राप्त बाल के नमूने, खून के धब्बे की सहायता से उस अपराध से संबंधित व्यक्ति की पहचान की जा सकती है।
- DNA परीक्षण के माध्यम से किसी व्यक्ति की शारीरिक बनावट, उसकी आँखों के साथ-साथ त्वचा के रंग का भी पता लगाया जा सकता है।
- निकटतम पारिवारिक संबंधों (जैसे-माता-पिता अथवा संतान) की पहचान करना।
- आपदा पीड़ितों की पहचान करना।
- किसी व्यक्ति की बीमारी आदि के संबंध में भी जानकारी पता की जा सकती है।
DNA की रासायनिक प्रकृति
जैसा हमने ऊपर बताया है कि DNA का एक अणु चार अलग-अलग रासायनिक घटकों से मिलकर बना होता है, जिन्हें न्यूक्लियोटाइड कहते hain। नाइट्रोजन युक्त इन न्यूक्लियोटाइड्स में डिऑक्सीराइबोस नाम का एक शर्करा पाई जाती है। इन न्यूक्लियोटाइड्स को फॉस्फेट का एक अणु जोड़ता है। न्यूक्लियोटाइड्स के संबंध के अनुसार किसी कोशिका के लिये आवश्यक प्रोटीनों का निर्माण होता है। अतः प्रत्येक जीवित कोशिका के लिये DNA का होना अनिवार्य है। DNA प्रोफाइलिंग की नई तकनीक
सीरिया में मारे गए 39 भारतीयों की पहचान DNA प्रोफाइलिंग से हुई थी इराक के मोसुल से करीब चार साल पहले अगवा हुए 39 भारतीय मारे गए हैं, इसकी पुष्टि हाल ही में सरकार ने तब की जब उनके DNA नमूनों का मिलान उनके निकट परिवारीजनों के DNA से होने की पुष्टि हो गई। इसके लिये मोसुल के उत्तर-पश्चिम में बादोश गाँव के नज़दीक चार साल से सामूहिक कब्र में दफन भारतीयों के DNA नमूने रेतीली मिट्टी से लेकर परिवार वालों से उसका मिलान किया तो पता लगा कि IS के आतंकियों ने उनकी हत्या की है। (टीम दृष्टि इनपुट) |
प्रस्तावित DNA आधारित तकनीक (उपयोग एवं विनियमन) विधेयक
बेहद संवेदनशील मुद्दा होने के कारण देश में अब तक इससे जुड़ा कोई कानून नहीं है, जबकि विधि आयोग ने अपनी 271वीं रिपोर्ट में जुलाई 2017 में मानव DNA प्रोफाइलिंग के इस्तेमाल और विनियमन के लिये एक विधेयक (ह्यूमन DNA प्रोफाइलिंग विधेयक, 2017) तैयार करके सरकार को दिया हुआ है। विधि आयोग का कहना था कि लापता व्यक्तियों, आपदा पीड़ितों की पहचान करने के लिये भारत में कोई उचित कानूनी प्रक्रिया मौजूद नहीं है।
- यह विषय इतना पेचीदा है कि 2007, 2012, 2015, 2016 और 2017 में इस विधेयक के कई मसौदों में संशोधन हो चुके हैं, लेकिन अंतिम रूप अभी तक नहीं दिया जा सका है।
इस विधेयक को DNA आधारित तकनीक (उपयोग एवं विनियमन) विधेयक [DNA Based Technology (Use and Regulation) Bill] नाम दिया गया है। इस प्रस्तावित विधेयक के अंतर्गत DNA परीक्षण से संबंधित मानकों एवं विनियमों की स्थापना के साथ-साथ DNA परीक्षण से प्राप्त साक्ष्यों को संगृहीत एवं सुरक्षित रखने तथा इससे संबद्ध प्रयोगशालाओं में होने वाली सभी कार्यवाहियों का निरीक्षण करने संबंधी कार्यों को शामिल किया गया है।
नए विधेयक के महत्त्वपूर्ण प्रावधान
- इस DNA विधेयक का उद्देश्य DNA परीक्षण के लिये मानव की DNA प्रोफाइलिंग का नियमन तथा मानक प्रक्रियाओं को स्थापित करना है।
- इस मसौदा विधेयक में कई महत्त्वपूर्ण संशोधन किये गए हैं और इसमें जाँच के उद्देश्यों तथा लापता व्यक्ति की पहचान करने हेतु DNA के नमूनों का उपयोग करने के लिये भी विभिन्न उपाय सुझाए गए हैं।
- इस विधेयक में एक सांविधिक निकाय (जिसे DNA प्रोफाइलिंग बोर्ड कहा जाएगा) के स्थापना का भी प्रावधान किया गया है।
क्या करेगा DNA प्रोफाइलिंग बोर्ड?
DNA प्रयोगशालाओं को स्थापित करने की प्रक्रिया का निर्धारण करना और उनके लिये मानक तय करना तथा ऐसी प्रयोगशालाओं को मान्यता प्रदान करना।
- DNA प्रयोगशालाओं से संबंधित मुद्दों पर केंद्र और राज्य सरकारों के मंत्रालयों और विभागों को सलाह देना।
- प्रयोगशालाओं के पर्यवेक्षण, निगरानी, निरीक्षण की ज़िम्मेदारी भी इसी बोर्ड की होगी।
- यह बोर्ड DNA संबंधी मामलों का समाधान करने के लिये पुलिस और अन्य जाँच एजेंसियों को प्रशिक्षण देने हेतु दिशा-निर्देश भी जारी करेगा।
- अंतरराष्ट्रीय दिशा-निर्देशों के अनुरूप DNA परीक्षण से संबंधित मुद्दों पर नैतिक और मानवीय अधिकारों के संबंध में सलाह देना।
- यह बोर्ड DNA परीक्षण और संबंधित मुद्दों पर अनुसंधान और विकासात्मक गतिविधियों की भी सिफारिश करेगा।
इस विधेयक में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तरों पर DNA डेटा बैंकों के निर्माण की बात की गई है, जो मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं से प्राप्त DNA प्रोफाइल को संग्रहीत करने के लिये ज़िम्मेदार होंगे।
क्या होगा DNA डेटा बैंक में?
- यह मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं द्वारा भेजे गए DNA प्रोफाइल्स का संग्रहण करेगा और डाटा की विभिन्न श्रेणियों के लिये कुछ सूचकांकों, जैसे-अपराध स्थल सूचकांक, संदिग्ध सूचकांक, आपराधिक सूचकांक, गायब व्यक्ति सूचकांक और अज्ञात मृत व्यक्ति सूचकांक का प्रबंधन करेगा।
- इस प्रकार लापता व्यक्तियों के परिवारों को उनके शारीरिक नमूनों के आधार पर उनकी सूचना दी जा सकेगी ।
- DNA प्रोफाइल और उनके उपयोग के रिकॉर्ड के संबंध में विश्वनीयता बनाए रखना।
- DNA प्रोफाइल को विदेशी सरकारों अथवा सरकारी संगठनों अथवा एजेंसियों के साथ केवल अधिनियम में उल्लिखित उद्देश्यों के लिये ही साझा किया जाएगा।
- इन प्रावधानों के उल्लंघनकर्त्ताओं को 3 वर्ष तक की सज़ा तथा 2 लाख तक जुर्माना लगाया जा सकता है।
क्या व्यक्ति की निजता पर हमला है DNA प्रोफाइलिंग?
किसी व्यक्ति की निजी जानकारी, विशेषकर आनुवंशिक जानकारी को इकट्ठा करना या जमा करना ऐसी बातें हैं जिन्हें लेकर निजता में दखल के सवाल उठते रहे हैं, लेकिन DNA प्रोफ़ाइलिंग बिल से ऐसा नहीं होगा यह मानने की कई वज़हें हैं। 1. फ़िलहाल तो DNA प्रोफाइल केवल 17 जोड़ी अंकों का एक समूह है, जो जानकारी जमा होगी वो किसी व्यक्ति के बारे में कुछ नहीं बताती। 2. डेटा बैंक में देश के हर आदमी का DNA प्रोफाइल नहीं होगा, बल्कि कुछ विशेष श्रेणियों के ही लोगों का DNA प्रोफाइल रखा जाएगा। 3. DNA प्रोफाइल डेटा को लेकर निजता में दखल की चिंताएँ बेहद कम हैं और यह उन जैविक या DNA नमूनों पर लागू नहीं होतीं जो इकट्ठा किये गए हैं। 4. DNA जाँच प्रयोगशाला में पर्याप्त सुरक्षा उपाय अपनाए जाएंगे, लेकिन रक्त और अन्य जैविक नमूने जिस पैमाने पर पूरे देश में प्रयोगशालाओं में इकट्ठा हो रहे हैं, उन पर ये नियम लागू नहीं होंगे। 5. इसे और सुरक्षित बनाने के लिये अमेरिका में 2008 में पारित जेनेटिक इनफ़ॉर्मेशन नॉन डिसक्रिमिनेशन एक्ट के कुछ प्रावधान इस प्रस्तावित विधेयक में शामिल किये जा सकते हैं। विदित हो कि सरदार स्वर्ण सिंह समिति की अनुशंसा पर 1976 में संविधान के 42वें संशोधन के माध्यम से भाग-4A में कुछ मौलिक कर्त्तव्यों को जोड़ा गया था। इसे अनुच्छेद 51Aमें रखा गया और इसमें कहा गया है कि देश के सभी नागरिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करेंगे। (टीम दृष्टि इनपुट) |
DNA प्रोफाइलिंग से जुड़े अंतरराष्ट्रीय कानून
- आपराधिक मामलों में जाँच के लिये विश्व में लगभग 60 देशों में DNA प्रोफाइलिंग से जुड़े कानून मौजूद हैं।
- अर्जेंटीना, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, चीन आदि देशों में ऐसे कानून हैं और वहाँ इनसे किसी की निजता या सम्मान में दखल का कोई मामला सामने नहीं आया है।
- नीदरलैंड्स, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, फ्राँस आदि कुछ देशों में गंभीर मामलों में इसके इस्तेमाल की अनुमति दी गई है।
भारत में क्या है स्थिति?
- भारत में आपराधिक मामलों में इसके उपयोग का प्रावधान पहले से है।
- आवश्यकता पड़ने पर न्यायिक मजिस्ट्रेट को जानकारी देकर कई अपराधों के मामलों में संदिग्धों की DNA प्रोफाइल बनाने के लिये जैविक नमूने लिये जा सकते हैं।
- कई प्रयोगशालाओं में DNA प्रोफाइल से जुड़ी जाँच करने की व्यवस्था है।
- इससे मिले प्रमाण अदालतों में स्वीकार भी किये जाते हैं।
- इसके बावजूद, भारत में अब तक DNA प्रोफाइलिंग कानून नहीं है।
वैसे 20 अगस्त, 2016 को अपराधियों की DNA प्रोफाइलिंग हेतु DNA डाटाबेस प्रणाली शुरू करने वाला आंध्र प्रदेश देश का पहला राज्य था।
उल्लेखनीय यह भी है कि वर्ष 2012 में केंद्र सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति और मसौदा विधेयक बनाया था जिसे विधेयक में शामिल निजता के मुद्दे पर विचार करना था, मगर आलोचना में घिरने के कारण तब से यह विचाराधीन स्थिति में ही पड़ा हुआ है।
ISFG द्वारा जारी दिशा-निर्देश
- इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर फॉरेंसिक जेनेटिक्स (ISFG) के दिशा-निर्देशों में यह स्पष्ट कहा गया है कि किसी आपातकालीन स्थिति में DNA प्रयोगशाला को पूर्व सूचना संबंधित अधिकारी को देनी होगी।
- घायल या मृत व्यक्ति का DNA लेने से पहले उससे या उसके परिवारीजनों की अनुमति लेना आवश्यक है।
- यदि किसी व्यक्ति का DNA लिया जाता है तो वहाँ मौजूद उस अधिकारी का नाम फॉर्म में स्पष्ट रूप से दर्ज होना चाहिये, जिसके सामने यह प्रक्रिया पूरी की गई है।
- जाँच या संग्रह के लिये एकत्र किये गए DNA को सुरक्षित रखने की गारंटी देने के साथ उसके उचित रख-रखाव का प्रबंध करना भी आवश्यक है।
- DNA पहचान को सुव्यवस्थित करने के लिये सटीक प्रणाली और रिपोर्ट तैयार करना महत्त्वपूर्ण है।
- एक से अधिक एजेंसियाँ होने की स्थिति में आँकड़ों की सुनिश्चितता होनी चाहिये, ताकि डेटा में किसी प्रकार की गड़बड़ी की आशंका न रहे।
- किसी भी लापता व्यक्ति का DNA परीक्षण ऐसी मान्यता-प्राप्त प्रयोगशाला में ही किया जाना चाहिये, जिसे इस क्षेत्र में काम करने का लंबा तथा प्रामाणिक अनुभव हो।
- DNA के सभी नमूनों को एकत्र करने के लिये एक केंद्रीकृत डाटाबेस का होना भी आवश्यक है।
निष्कर्ष: यदि यह विधेयक पारित हो जाता है तो देश के हर एक नागरिक का जीन आधारित कंप्यूटरीकृत डाटाबेस तैयार किया जाएगा। केवल एक क्लिक पर देश के किसी भी नागरिक की आंतरिक जैविक जानकारियाँ हासिल की सकेंगी। इसलिये इस विधेयक को भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 में आम नागरिक के मूल अधिकारों में उल्लेखित निजता के अधिकार का उल्लंघन माना जा रहा है। लेकिन इसके समर्थकों का तर्क है कि इससे अपराध पर नियंत्रण और बीमारी का उचित इलाज करने का काम बहुत आसान हो जाएगा। लेकिन सवा अरब से अधिक आबादी और विभिन्न जातियों और धर्मों को मानने वाले देश में निर्विवाद व आशंकाओं से परे डाटाबेस तैयार करना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि अब तक हम न तो विवादरहित मतदाता पहचान-पत्र बना पाए हैं और न ही देश के नागरिकों को विशिष्ट पहचान देने का दावा करने वाला आधार कार्ड। ऐसे में देश के सभी लोगों की जीन कुण्डली (DNA प्रोफाइलिंग) बना लेना एक दुष्कर कार्य लगता है, जिसके लिये भारी निवेश और अवसंरचना की भी आवश्यकता होगी।