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डेली न्यूज़

  • 03 Jan, 2025
  • 70 min read
कृषि

DILRMP एवं भू-अभिलेखों का डिजिटलीकरण

प्रिलिम्स के लिये: 

राष्ट्रीय भूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम (NLRMP), डिजिटल इंडिया भू-अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP), गाँवों का सर्वेक्षण एवं ग्रामीण क्षेत्रों में उन्नत तकनीक के साथ मानचित्रण (SVAMITVA) योजना

मेन्स के लिये: 

भू-अभिलेखों का डिजिटलीकरण, DILRMP योजना: लाभ, चुनौतियाँ एवं आगे की राह

 स्रोत: द प्रिंट

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2024 तक 98.5% ग्रामीण भू-अभिलेखों का डिजिटलीकरण कर दिया गया है, जिससे पारदर्शिता बढ़ने के साथ भूमि संबंधी समस्याओं का समाधान होगा।

  • यह उपलब्धि वर्ष 2008 में शुरू किए गए डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम का हिस्सा है जिसका उद्देश्य कृषि भूमि रिकॉर्ड को डिजिटल तथा आधुनिक बनाना है ताकि इसकी पहुँच में सुधार होने के साथ इससे संबंधित विवादों में कमी आ सके। 

 नोट: 

डिजिटल इंडिया भू-अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP) क्या है?

  • राष्ट्रीय भू-अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (NLRMP) को वर्ष 2016 में पुनः आरंभ किया गया और इसका नाम बदलकर डिजिटल इंडिया भू-अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP) कर दिया गया, जो केंद्र द्वारा 100% वित्तपोषण वाली एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना है।
    • NLRMP एक केंद्र प्रायोजित योजना थी जिसे वर्ष 2008 में देश में भूमि अभिलेख प्रणाली का आधुनिकीकरण करने तथा स्वामित्व गारंटी के साथ निर्णायक भूमि-स्वामित्व प्रणाली को लागू करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।

  • DILRMP के अंतर्गत प्रमुख पहल: 
    • विशिष्ट भूमि पार्सल पहचान संख्या (ULPIN): ULPIN या " भू-आधार "प्रत्येक भूमि पार्सल के लिये उसके भू-निर्देशांक के आधार पर 14 अंकों का अल्फान्यूमेरिक कोड है। 
      • 29 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में कार्यान्वित यह योजना रियल एस्टेट लेन-देन को सुव्यवस्थित करने, संपत्ति विवादों को सुलझाने एवं आपदा प्रबंधन प्रयासों में सुधार करने में सहायक है। 
  • राष्ट्रीय सामान्य दस्तावेज़ पंजीकरण प्रणाली (NGDRS): NGDRS या ई-पंजीकरण द्वारा देश भर में विलेख/दस्तावेज़ पंजीकरण के लिये एक समान प्रक्रिया प्रदान की गई है जिससे ऑनलाइन प्रविष्टि, भुगतान, नियुक्तियाँ एवं दस्तावेज़ खोज की सुविधा मिलती है।
    • अब तक 18 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने इसे अपनाया है तथा 12 अन्य ने राष्ट्रीय पोर्टल के साथ डेटा साझा किया है।
    • ई-न्यायालय एकीकरण: भू-अभिलेखों को ई-न्यायालय से जोड़ने का उद्देश्य न्यायपालिका को प्रामाणिक भूमि संबंधी जानकारी प्रदान करना, मामलों के त्वरित समाधान में सहायता करना और भूमि विवादों को कम करना है। 26 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में एकीकरण को मंजूरी दे दी गई है।
    • भू-अभिलेखों का लिप्यंतरण: भू-अभिलेखों तक पहुँचने में भाषा संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिये, यह कार्यक्रम भूमि दस्तावेज़ों को भारतीय संविधान की अनुसूची VIII में सूचीबद्ध 22 भाषाओं में से किसी एक में लिप्यंतरित कर रहा है।
    • यह योजना 17 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में पहले से ही प्रयोग में है।
    • भूमि सम्मान: इस पहल के तहत, 16 राज्यों के 168 ज़िलों ने भूमि रिकॉर्ड कंप्यूटरीकरण और मानचित्र डिजिटलीकरण सहित कार्यक्रम के 99% से अधिक मुख्य घटकों को पूरा करने के लिये "प्लैटिनम ग्रेडिंग" हासिल की है।

भारत को डिजिटल भूमि रिकॉर्ड प्रबंधन प्रणाली की आवश्यकता क्यों है?

  • परिचय:
    • भूमि भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है क्योंकि आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, भारत का 45% से अधिक कार्यबल कृषि में कार्यरत है, जिसके लिये एक आधुनिक और पारदर्शी भूमि रिकॉर्ड प्रबंधन प्रणाली की आवश्यकता है। 
      • वर्ष 2008 में सरकार ने NLRMP शुरू किया, जिसका नाम वर्ष 2016 में DILRMP रखा गया।
  • डिजिटल भू-अभिलेखों की आवश्यकता:
    • समानता सुनिश्चित करना: पारदर्शी भू-अभिलेखों से निष्पक्ष भूमि सुधार संभव होता है, जिससे भूमिहीनों और हाशिये पर पड़े लोगों को लाभ मिलता है। 
      • वे महिलाओं और कमज़ोर समूहों को उनके भूमि अधिकारों और संबंधित सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करके सशक्त बनाते हैं।
    • मुकदमेबाज़ी को कम करना: भारत में भूमि विवाद न्यायालयी मामलों में प्रमुख स्थान रखते हैं, जिनमें समय और धन दोनों खर्च होते है। पारदर्शी भूमि रिकॉर्ड प्रबंधन स्पष्ट, सरकार समर्थित स्वामित्व अधिकार सुनिश्चित करके विवादों को कम कर सकता है।
    • विकास को बढ़ावा देना: निवेश और विकास के लिये भूमि एक महत्त्वपूर्ण परिसंपत्ति है। सुव्यवस्थित भूमि अभिलेख प्रणालियाँ लेन-देन के जोखिम को कम करती हैं, निवेश को प्रोत्साहित करती हैं, तथा भूस्वामियों को ऋण और बीमा के लिये स्वामित्व का लाभ उठाने में सहायता करती हैं।
    • पारदर्शिता में सुधार: भारत के भू-अभिलेख प्रायः पुराने और बिखरे हुए हैं। उन्हें डिजिटल बनाने और स्थानिक तथा आधार जैसे अन्य डेटाबेस के साथ एकीकृत करने से सटीकता और पहुँच में वृद्धि हो सकती है, साथ ही बेनामी संपत्तियों की समस्या का समाधान भी हो सकता है।
  • DILRMP (भू-अभिलेखों का डिजिटलीकरण) के लाभ:
    • भू-अभिलेखों की गुणवत्ता में सुधार: DILRMP भूमि स्वामित्व और संव्यवहार अभिलेखों को डिजिटल बनाता है तथा उन्हें अद्यतन करता है, जिससे सटीकता, विश्वसनीयता एवं पारदर्शिता बढ़ाने के लिये उन्हें ऑनलाइन उपलब्ध कराया जा सके।
    • मुकदमेबाजी और धोखाधड़ी में कमी: DILRMP का उद्देश्य सरकार समर्थित गारंटी के साथ एक निर्णायक भूमि-शीर्षक प्रणाली स्थापित करना, निर्विवाद स्वामित्व सुनिश्चित करना, शीर्षक दोषों के विरुद्ध क्षतिपूर्ति, और भारत में भूमि विवादों एवं धोखाधड़ी में कमी लाना है।
    • वृद्धि एवं विकास को बढ़ावा देना: DILRMP कुशल भूमि बाज़ार की सुविधा प्रदान करता है, लेन-देन के जोखिम को कम करता है, भूमि स्वामित्व का उपयोग करके ऋण तक पहुँच को सक्षम बनाता है, साथ ही कृषि, बुनियादी ढाँचे और आवास में निवेश, औद्योगीकरण एवं क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देता है।

टिप्पणी: 

उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने भू-अभिलेख पोर्टल, यूपी भूलेख पर एक सुविधा आरंभ की है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि के बदले लिये गए बैंक ऋण के बारे में जानकारी प्रदान करेगी।

भूमि रिकॉर्ड डिजिटलीकरण से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • भाषा और बोली संबंधी बाधाएँ: भारत की भाषाई विविधता ग्रामीण आबादी की डिजिटलीकरण की समझ में बाधा उत्पन्न कर सकती है, क्योंकि किसान और भूस्वामी अपनी मूल भाषाओं में उपलब्ध न होने वाली डिजिटल प्रणालियों से जूझते हैं, जिससे भ्रम और विरोध की भावना उत्पन्न होती है।
  • सामुदायिक शेयरधारिता: कई पूर्वोत्तर राज्यों में, समुदाय-आधारित भूमि स्वामित्व भू-अभिलेखों के डिजिटलीकरण और मानकीकरण को जटिल बना देता है, क्योंकि पारंपरिक प्रथाएँ अक्सर औपचारिक स्वामित्व प्रणालियों के साथ मतभेद उत्पन्न करती हैं, जिससे विवाद उत्पन्न होते हैं।
  • जागरूकता का अभाव: DILRMP भूमि मालिकों, खरीदारों, विक्रेताओं और किरायेदारों जैसे हितधारकों की सक्रिय भागीदारी पर निर्भर करता है, लेकिन इनके बीच इसके लाभों और प्रक्रियाओं के बारे में जागरूकता और संवेदनशीलता का अभाव है।
  • भू-अभिलेखों की गुणवत्ता: अस्पष्ट भूमि शीर्षक और पुराने भूकर मानचित्र सटीक अभिलेखों में बाधा डालते हैं, जिन पर नीति आयोग ज़ोर देता है, ये प्रभावी योजना और संपत्ति अधिकारों की स्पष्टता के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • भूकर मानचित्रों में प्रायः परिवारों या गाँवों के बीच भूमि का विभाजन नहीं दिखाया जाता, क्योंकि स्वामित्व में हुए परिवर्तनों को राजस्व अभिलेखों में अद्यतन नहीं किया जाता, जिससे व्यापक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  • भूमि प्रबंधन प्रणालियों की जटिलता: भारत की जटिल भूमि प्रबंधन प्रणालियाँ, जिसमें अनेक विभाग और विनियमन शामिल हैं, निर्बाध डिजिटलीकरण और हितधारकों के संरेखण में बाधा डालती हैं।
  • संसाधनों की कमी: DILRMP को अपर्याप्त धन, कर्मचारियों, बुनियादी ढाँचे के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, भू-अभिलेखों को प्रभावी ढंग से आधुनिक बनाने के लिये संसाधनों और क्षमता निर्माण में वृद्धि की आवश्यकता है।

 आगे की राह

  •  भू-अभिलेखों का एकीकरण: भूमि संबंधी सेवाओं तक निर्बाध पहुँच के लिये भू-अभिलेखों को संपत्ति पंजीकरण, कर भुगतान और सरकारी सब्सिडी से जोड़ने वाला एक एकीकृत मंच विकसित करना।
  • अभिलेखों का अद्यतनीकरण: नियमित ऑडिट और ड्रोन तथा उपग्रह इमेजरी के साथ प्रौद्योगिकी-संचालित मानचित्रण के माध्यम से सटीक और अद्यतन भूमि अभिलेख सुनिश्चित करना।
    • समुदाय-आधारित पहल के माध्यम से भू-अभिलेखों के सर्वेक्षण और अद्यतनीकरण में स्थानीय समुदायों को शामिल करना, जहाँ निवासी भूमि की सीमाओं और स्वामित्व को सत्यापित करने, सटीकता सुनिश्चित करने तथा विवादों को कम करने में योगदान करते हैं।
  • जन जागरूकता अभियान: स्थानीय मीडिया, सामुदायिक बैठकों और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का उपयोग करके किसानों और भूमि मालिकों को ULPIN लाभों और डिजिटल भूमि रिकॉर्ड तक पहुँच हेतु शिक्षित करना।
  • विवाद समाधान तंत्र: भारत में सभी दीवानी मामलों में से लगभग दो-तिहाई मामले भूमि और संपत्ति से संबंधित होते हैं।
  • समर्पित ऑनलाइन प्लेटफॉर्म स्थापित करके भूमि विवादों को कुशलतापूर्वक और पारदर्शी तरीके से हल करना, जहाँ प्रभावित पक्ष शिकायतें प्रस्तुत कर सकें और उनकी समाधान प्रक्रिया पर नज़र रख सकें।
  • नीतिगत ढाँचा: एक व्यापक नीतिगत ढाँचा विकसित करना, जो भूमि प्रबंधन में प्रौद्योगिकी के एकीकरण का समर्थन तथा स्थानीय आवश्यकताओं और राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ संरेखण सुनिश्चित करता हो।
    • डिजिटल प्लेटफॉर्म के डिज़ाइन में उपयोगकर्त्ता अनुभव पर ध्यान केंद्रित करना, जो महिलाओं और हाशिये के समुदायों सहित सभी जनसांख्यिकी के लिये सहज और सुलभ हों।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): प्रौद्योगिकी विकास और कार्यान्वयन में विशेषज्ञता का लाभ उठाने के लिये सरकारी एजेंसियों और निजी प्रौद्योगिकी कंपनियों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना।
    • भूमि डिजिटलीकरण के संबंध में आउटरीच और शिक्षा प्रयासों में सहायता के लिये ग्रामीण विकास पर ध्यान केंद्रित करने वाले गैर-सरकारी संगठनों के साथ साझेदारी करना।
  • अनुसंधान एवं विकास: नवीन प्रौद्योगिकियों (जैसे, सुरक्षित भूमि लेनदेन के लिये ब्लॉकचेन) की खोज हेतु अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना, जिससे भू-अभिलेखों की विश्वसनीयता एवं पारदर्शिता में वृद्धि हो सके।
    • डिजिटल उपकरणों और प्रौद्योगिकियों के उपयोग में प्रभावी दक्षता सुनिश्चित करने के लिये सरकारी अधिकारियों और भूमि अभिलेख अधिकारियों हेतु प्रशिक्षण कार्यशालाएँ आयोजित करना। 

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत में भू-अभिलेखों के डिजिटलीकरण से संबंधित लाभ और चुनौतियाँ क्या हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. स्वतंत्र भारत में भूमि सुधारों के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?

(a) हदबंदी कानून पारिवारिक जोत पर केंद्रित थे न कि व्यक्तिगत जोत पर।
(b) भूमि सुधारों का प्रमुख उद्देश्य सभी भूमिहीनों को कृषि भूमि प्रदान करना था।
(c) इसके परिणामस्वरूप नकदी फसलों की खेती, कृषि का प्रमुख रूप बन गई।
(d) भूमि सुधारों ने हदबंदी सीमाओं को किसी भी प्रकार की छूट की अनुमति नहीं दी।

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार, कृषि उत्पादकता और गरीबी उन्मूलन के बीच संबंध स्थापित कीजिये। भारत में कृषि अनुकूल भूमि सुधारों के रूपांकन व अनुपालन में कठिनाइयों की विवेचना कीजिये। (2013)


आंतरिक सुरक्षा

वर्ष 2025 को ‘सुधार वर्ष’ के रूप में मनाने का निर्णय

प्रिलिम्स के लिये:

एकीकृत थिएटर कमांड, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, हाइपरसोनिक्स, रोबोटिक्स, राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति, अग्निपथ योजना, साइबर युद्ध, सीडीएस, भारत-यूएस आईसीईटी पहल।  

मेन्स के लिये:

भारत के सशस्त्र बलों में सुधार की आवश्यकता है।  

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने बहु-क्षेत्रीय एकीकृत संचालन में सक्षम सशस्त्र बलों को तकनीकी रूप से उन्नत और युद्धक परिस्थितियों से निपटने के लिये तैयार बल में रूपांतरित करने हेतु वर्ष 2025 को 'सुधार वर्ष (Year of Reforms)' के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।

नोट:

भारतीय सेना वर्ष 2024 को ‘टेक्नोलॉजी ऐब्सॉर्प्शन ईयर’ के रूप में मना रही है।

वर्ष 2025 को ‘सुधार वर्ष’ के रूप कौन-से क्षेत्र चिन्हित किये गए हैं?

  • युक्तता एवं एकीकरण: सैन्य सेवाओं के बीच सहयोग को मज़बूत करना और एकीकृत थिएटर कमांड (ITC) की स्थापना को सुगम बनाना।
    • अंतर-सेवा सहयोग एवं प्रशिक्षण के माध्यम से परिचालन आवश्यकताओं और संयुक्त परिचालन क्षमताओं की साझा समझ विकसित करना।
    • इनमें तिरुवनंतपुरम स्थित समुद्री कमान, जयपुर स्थित पाकिस्तान-केंद्रित पश्चिमी कमान और लखनऊ स्थित चीन-केंद्रित उत्तरी कमान शामिल हैं।
  • उभरती हुई प्रौद्योगिकियाँ: सुधारों को साइबर व अंतरिक्ष जैसे नए क्षेत्रों तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग, हाइपरसोनिक्स और रोबोटिक्स जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों पर केंद्रित होना चाहिये। 
    • भविष्य के युद्धों को जीतने के लिये आवश्यक संबद्ध रणनीति, तकनीक और प्रक्रियाएँ भी विकसित की जानी चाहिये।
    • रक्षा क्षेत्र और असैन्य उद्योगों के बीच प्रौद्योगिकी हस्तांतरण व ज्ञान साझाकरण को सुविधाजनक बनाना तथा व्यापार को आसान बनाकर सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना।
  • अधिग्रहण को सरल बनाना: क्षमता विकास में तेजी लाने और उसे मज़बूत बनाने के लिये अधिग्रहण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित और समयबद्ध किया जाना चाहिये।
  • रक्षा निर्यातक: भारत को रक्षा उत्पादों के एक विश्वसनीय निर्यातक के रूप में स्थापित करना , भारतीय उद्योगों और विदेशी मूल उपकरण निर्माताओं के बीच अनुसंधान एवं विकास तथा साझेदारी को बढ़ावा देना।
    • भारत का रक्षा निर्यात वर्ष 2014 के 2,000 करोड़ रुपए से बढ़कर 21,000 करोड़ रुपए से अधिक हो गया।
  • वयोवृद्ध कल्याण और स्वदेशी संस्कृति: वयोवृद्धों की विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए उनके कल्याण को सुनिश्चित करना।
    • इसके अतिरिक्त, आधुनिक सेनाओं की सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाते हुए, स्वदेशी क्षमताओं के माध्यम से वैश्विक मानकों को प्राप्त करने में भारतीय संस्कृति पर गर्व और आत्मविश्वास को बढ़ावा देना।

भारत की डिफेंस मिलिट्री/रक्षा सेना की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • आयातक से निर्यातक: भारत सबसे बड़े शस्त्र आयातक से प्रमुख निर्यातक बन गया है, वर्ष 2023-24 में रक्षा निर्यात 210.83 बिलियन रुपए तक पहुँच गया है, जिसमें वर्ष 2028-29 तक 500 बिलियन रुपए का लक्ष्य रखा गया है।
  • रक्षा अधिग्रहण में सुधार: रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) घरेलू उद्योग को प्राथमिकता देती है, जिसके अंतर्गत भारतीय कंपनियों को प्रमुख प्रणालियों के विनिर्माण में अग्रणी भूमिका निभाने तथा रक्षा खरीद में स्वदेशी सामग्री (IC) को 50% या उससे अधिक तक बढ़ाने की आवश्यकता होती है।
  • निज़ी क्षेत्र की भागीदारी: वर्ष 2022-23 तक निज़ी कंपनियाँ भारत के रक्षा उत्पादन में 20% का योगदान देंगी
    • वडोदरा में टाटा एयरक्राफ्ट कॉम्प्लेक्स सैन्य विमानों के लिये भारत का पहला निज़ी क्षेत्र का कारखाना है, जो C-295 परिवहन विमान को समर्पित है
  • रक्षा औद्योगिक विकास: भारत का रक्षा उत्पादन कारोबार वर्ष 2016-17 में 740.54 बिलियन रुपए से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 1,086.84 बिलियन रुपए हो गया, जिसमें वर्ष 2023 तक 14,000 MSME और 329 स्टार्टअप रक्षा क्षेत्र में शामिल होंगे।

रक्षा बल में सुधार की आवश्यकता क्यों?

  • राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (NSS) का अभाव: NSS का अभाव राजनीतिक इरादों और सैन्य अभियानों के बीच अंतर उत्पन्न करता है, जिससे राष्ट्रीय नीतियों के साथ रक्षा रणनीतियों का संरेखण कमज़ोर होता है।
    • इसके परिणामस्वरूप चीन और पाकिस्तान जैसे उभरते खतरों के प्रति तैयारी में कमी आई है।
  • साइबर युद्ध का उदय: साइबरस्पेस युद्ध का पाँचवा क्षेत्र है, जिसमें राज्य प्रायोजित अभिकर्त्ता और स्वयं राज्य प्रमुख आर्थिक मापदंडों और सैन्य प्रतिष्ठानों को नुकसान पहुँचाते हैं।
  • आयात पर निर्भरता: भारत वर्ष 2019-23 की अवधि के लिये विश्व का शीर्ष हथियार आयातक बना हुआ है, जिसमें वर्ष 2014-18 की अवधि की तुलना में आयात में 4.7% की वृद्धि हुई है।
    • स्वदेशीकरण की धीमी गति और प्रतिस्पर्द्धी घरेलू रक्षा उद्योग के निर्माण में चुनौतियाँ रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता में बाधा डालती हैं।
  • संयुक्तता का सांस्कृतिक प्रतिरोध: भारतीय सेना के सेवा-विशिष्ट दृष्टिकोण, जिसमें प्रत्येक शाखा (सेना, नौसेना, वायु सेना) अपनी स्वायत्तता बनाए रखती है, के कारण एकीकृत मॉडल अपनाने में प्रतिरोध उत्पन्न हुआ है।
  • अपर्याप्त वित्तपोषण: निरपेक्ष रूप से पर्याप्त आवंटन के बावजूद, यह विशेष रूप से प्रौद्योगिकी, उपकरण और बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्रों में भारत के सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1.9% है, जो रक्षा बलों के आधुनिकीकरण को सीमित करता है। 
    • वर्ष 2020 में रक्षा क्षेत्र में FDI की सीमा को स्वचालित मार्ग से 74% तक और आधुनिक प्रौद्योगिकी तक पहुँच के लिये सरकारी मार्ग से 100% तक बढ़ा दिया गया।
  • तदर्थ खरीद प्रक्रियाएँ: वर्ष 2020 में गलवान संघर्ष के बाद, सशस्त्र बलों को महत्त्वपूर्ण क्षमता अंतराल को दूर करने के लिये आपातकालीन खरीद के लिये विशेष अधिकार दिये गए थे, जिससे सामरिक आवश्यकता के बावजूद रणनीतिक तत्परता की कमी उज़ागर हुई।
  • अल्पकालिक नीति: अग्निपथ योजना की आलोचना इसकी 6 महीने की छोटी प्रशिक्षण अवधि के लिये की गई है, जिससे वास्तविक युद्ध के लिये रंगरूटों की तत्परता के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
    • 4 वर्ष की सेवा अवधि में अनुभवी कार्मिकों को खोने का जोखिम रहता है, जिससे सेना की क्षमता और मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

रक्षा बलों में सुधार के लिये भारत की पहल क्या हैं?

अमेरिका में गोल्डवाटर-निकोल्स सुधार

  • परिचय: गोल्डवाटर -निकोल्स रक्षा पुनर्गठन अधिनियम, 1986 ने सैन्य प्रभावशीलता और दक्षता को बढ़ाने के लिये अमेरिकी रक्षा विभाग का पुनर्गठन किया।
  • ये सुधार वियतनाम युद्ध (1955-1975) और ऑपरेशन ईगल क्लॉ (ईरान में बंधकों को बचाने का असफल अमेरिकी मिशन) के बाद चिन्हित गए मुद्दों को संबोधित करने के लिये तैयार किये गए थे।
  • लक्ष्य: प्राथमिक लक्ष्य संयुक्त सैन्य अभियानों में सुधार करना, नागरिक नियंत्रण को मज़बूत करना और रक्षा निर्णय लेने को सुव्यवस्थित करना था।
  • प्रमुख प्रावधान:
  • राष्ट्रपति को बेहतर सैन्य सलाह
  • एकीकृत लड़ाकू कमांडरों के लिये स्पष्ट ज़िम्मेदारियाँ
  • एकीकृत कमांडर के अधिकार और ज़िम्मेदारियाँ
  • रणनीति निर्माण और आकस्मिक योजना
  • संसाधनों का कुशल उपयोग
  • संयुक्त अधिकारी प्रबंधन
  • संयुक्त सैन्य अभियानों की प्रभावशीलता
  • रक्षा प्रबंधन और प्रशासन

आगे की राह

  • संस्थागत सुधार: चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) और सैन्य मामलों के विभाग (DMA) की स्थापना एक सकारात्मक कदम है लेकिन इनके बीच जिम्मेदारी वितरण को स्पष्ट करने की आवश्यकता है। 
  • CDS द्वारा सैन्य निर्णय लेने में नेतृत्व करने के साथ नागरिक-सैन्य अंतराल को कम करने पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • प्रौद्योगिकियों का एकीकरण: स्वायत्त प्रणालियों, साइबर युद्ध एवं AI पर ध्यान केंद्रित करने से भारत को चीन या पाकिस्तान के साथ संभावित संघर्षों में तकनीकी बढ़त मिल सकती है।
  • खुफिया जानकारी, निगरानी, टोही (ISR) एवं सटीक हमलों में ड्रोन क्षमताओं का विस्तार करने से परिचालन अनुकूलन में वृद्धि होगी।
  • घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देना: घरेलू रक्षा क्षेत्र को मज़बूत करने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी एवं विदेशी सहयोग को बढ़ावा देना चाहिये।
  • संसाधनों के अधिक कुशल आवंटन को महत्त्व दिये जाने के साथ विषम लाभ प्रदान करने वाली प्रौद्योगिकियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
  • रक्षा सहयोग को अधिकतम करना: भारत-अमेरिका iCET पहल जैसी क्षेत्रीय एवं वैश्विक शक्तियों के साथ रक्षा सहयोग का विस्तार करने से भारत की रणनीतिक स्वायत्तता तथा सुरक्षा को बढ़ावा मिल सकता है।
  • राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय (NDU): भारत को रणनीतिक विचारकों एवं योजनाकारों का एक मज़बूत कैडर विकसित करने के क्रम में रक्षा रणनीतियों, नीतियों और प्रौद्योगिकियों में उन्नत प्रशिक्षण तथा अनुसंधान हेतु NDU की स्थापना को प्राथमिकता देनी चाहिये।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: वर्ष 2025 के लिये भारतीय रक्षा बलों में प्रस्तावित सुधारों एवं संबंधित चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। 

  यूपीएससी  सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:  

प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला "टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस (THAAD)" क्या है? (2018)

(a) एक इज़रायली रडार प्रणाली
(b) भारत का स्वदेशी मिसाइल रोधी कार्यक्रम
(c) एक अमेरिकी मिसाइल रोधी प्रणाली
(d) जापान और दक्षिण कोरिया के मध्य एक रक्षा सहयोग

उत्तर:(c)

 मेन्स

प्रश्न:रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को अब उदार बनाया जाना तय है: इससे भारतीय रक्षा एवं अर्थव्यवस्था पर अल्पावधि तथा दीर्घावधि में क्या प्रभाव पड़ने का अनुमान है? (2014)


विश्व इतिहास

सोवियत संघ का विघटन

प्रिलिम्स के लिये:

सोवियत संघ, पंचवर्षीय योजनाएँ, नाटो, IMF, विश्व बैंक, यूरोपीय संघ,नागोर्नो-कराबाख, आसियान, ब्रह्मोस मिसाइल, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC)

मेन्स के लिये:

सोवियत संघ का विघटन और भारत एवं विश्व पर इसका प्रभाव। द्वितीय विश्व युद्ध, 1989 में बर्लिन की दीवार का गिरना, द्विध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था, शीत युद्ध, 1991 में उदारीकरण, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, परमाणु ऊर्जा

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, 25 दिसंबर को उस दिन की वर्षगाँठ मनाई गई जब क्रेमलिन (रूसी सरकार का 'सत्ता केंद्र') से सोवियत ध्वज उतार दिया गया था, जो सोवियत संघ के अंत का प्रतीक था।

  • सोवियत संघ, आधिकारिक तौर पर सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ (USSR) वर्ष 1922 से वर्ष 1991 तक एक समाजवादी संघ था, जिसमें कई गणराज्य शामिल थे, जो कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा शासित थे, और रूस प्रमुख शक्ति था।

सोवियत संघ के गठन का कारण क्या था?

  • इतिहास (जारवादी शासन और राजशाही): सोवियत संघ की जड़ें 1917 की रूसी क्रांति से जुड़ी हैं, जिसने रोमानोव राजवंश के 300 वर्ष के शासन (1613-1917) को समाप्त कर दिया। 
    • जार के पास शासन, सेना और समाज पर पूर्ण शक्ति थी।
    • बढ़ती असमानता और आर्थिक कठिनाई ने असंतोष को जन्म दिया, जिससे क्रांति का मंच तैयार हो गया।
  • फरवरी क्रांति 1917: विरोध प्रदर्शन और हड़ताल के परिणामस्वरूप जार निकोलस द्वितीय ने राजशाही को त्याग दिया।
    • जार के स्थान पर एक अनंतिम सरकार बनी, लेकिन उसे पेत्रोग्राद सोवियत के साथ सत्ता संघर्ष का सामना करना पड़ा, जिस पर बोल्शेविकों और मेंशेविकों जैसे समाजवादी गुटों का प्रभुत्त्व था।
  • अक्तूबर क्रांति 1917: लेनिन और ट्रॉट्स्की ने अक्तूबर क्रांति में बोल्शेविकों का नेतृत्व किया, अनंतिम सरकार को समाप्त किया और "सारी शक्ति सोवियतों को" घोषित कर दी। 
    • इसने सोवियत शासन की स्थापना और राष्ट्रीयकरण जैसी साम्यवादी नीतियों की शुरुआत को चिह्नित किया।
  • रूसी गृह युद्ध 1918-1922:  गृह युद्ध के दौरान रेड आर्मी ने बोल्शेविक विरोधी शक्तियों (व्हाइट गार्ड्स) से लड़ाई लड़ी।
    • बोल्शेविक विजयी हुए, उन्होंने अपनी शक्ति को मज़बूत किया और एकीकृत राज्य का मार्ग प्रशस्त किया।
  • USSR का गठन (30 दिसंबर 1922): सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ (USSR) की आधिकारिक घोषणा की गई, जो विश्व का पहला साम्यवादी राज्य बन गया। 
    • लेनिन के नेतृत्व में केंद्रीकृत आर्थिक नियोजन और साम्यवादी शासन की शुरुआत हुई।
    • सोवियत नेतृत्व लेनिन के बोल्शेविक एकीकरण से लेकर स्टालिन के केंद्रीकरण, वर्ष 1936 के महान शुद्धिकरण और नाज़ी जर्मनी पर सोवियत संघ की विजय, उसके बाद ख्रुश्चेव के सुधारों, ब्रेझनेव की स्थिरता और गोर्बाचेव के पुनर्गठन के प्रयासों तक विकसित हुआ।
  • द्वितीय विश्व युद्ध और लिथुआनिया- वर्ष 1940 का दशक: बाल्टिक राज्यों (एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया) को मोलोटोव-रिबेंट्रॉप संधि के बाद वर्ष 1940 (द्वितीय विश्व युद्ध) में जबरन सोवियत संघ में शामिल कर लिया गया था। 
    • इन बाल्टिक राज्यों को वर्ष 1918 में रूसी साम्राज्य के पतन के बाद स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी। 
    • युद्ध के पश्चात् USSR एक महाशक्ति (वारसॉ संधि) के रूप में उभरा, जिसने समाजवादी ब्लॉक का नेतृत्व किया और शीत युद्ध की भूराजनीति पर हावी रहा

विभिन्न चुनौतियों के कारण सोवियत संघ का विघटन कैसे हुआ?

  • आर्थिक स्थिरता: वर्ष 1970 के दशक तक सोवियत अर्थव्यवस्था उत्पादकता और प्रौद्योगिकी के मामले में पिछड़ गई, तथा सैन्य और सैटेलाईट स्टेट्स पर अत्यधिक ज़ोर दिया जाने लगा, जिससे संसाधनों का दोहन हो रहा था।
    • न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित करने के लिये राज्य द्वारा दी जा रही सब्सिडी के बावज़ूद नागरिकों को उपभोक्ता कमी और बढ़ते असंतोष का सामना करना पड़ा।
  • गोर्बाचेव के सुधार: ग्लासनोस्त (खुलेपन) और पेरेस्त्रोइका (पुनर्गठन) जैसी गोर्बाचेव की नीतियों का उद्देश्य सुधार था लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी कमज़ोर हो गई।
    • वर्ष 1990 में बहुदलीय चुनावों और सेंसरशिप में कमी ने लिथुआनिया और यूक्रेन जैसे गणराज्यों में राष्ट्रवादी आंदोलनों को बढ़ावा दिया
  • शीत युद्ध के दबाव के कारण पतन: अमेरिका के साथ महंगी शस्त्रों की दौड़, अफगानिस्तान में हार और वर्ष 1989 में बर्लिन की दीवार के गिरने से सोवियत नियंत्रण कमज़ोर हो गया।
    • पश्चिमी आर्थिक मॉडलों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में सोवियत संघ की विफलता ने आंतरिक अक्षमताओं को बढ़ा दिया।
  • राष्ट्रवादी आंदोलन और अलगाव: येल्तसिन जैसे नेताओं के नेतृत्व में रूसी राष्ट्रवाद ने केंद्रीय नियंत्रण को कमज़ोर कर दिया, जबकि बाल्टिक देशों और यूक्रेन ने स्वतंत्रता की मांग की।

सोवियत संघ के पतन से वैश्विक शक्ति गतिशीलता को किस प्रकार नया आकार मिला?

  • एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था का उदय: सोवियत संघ के पतन के साथ शीत युद्ध समाप्त हो गया तथा अमेरिका एकमात्र महाशक्ति बन गया, जिससे वैश्विक गठबंधनों का स्वरूप परिवर्तित हुआ।
    • NATO ने पूर्व की ओर विस्तार करने के साथ पोलैंड और बाल्टिक राज्यों जैसे पूर्व सोवियत ब्लॉक के देशों को एकीकृत किया, जिससे रूसी प्रभाव में कमी आई।
  • वैश्विक स्तर पर पूंजीवाद का प्रभुत्व: IMF और विश्व बैंक जैसी पश्चिमी संस्थाओं ने पूर्व समाजवादी राज्यों में आर्थिक बदलावों को निर्देशित करने के साथ उदार लोकतंत्र एवं मुक्त बाज़ार पूंजीवाद को बढ़ावा देने में भूमिका निभाई।
    • पूर्वी यूरोप के यूरोपीय संघ में एकीकरण ने अमेरिका के नेतृत्व वाले वैश्विक आधिपत्य को मज़बूत किया।
  • क्षेत्रीय शक्ति परिवर्तन से बहुध्रुवीयता का मज़बूत होना: इस पतन से चीन एवं भारत को वैश्विक भूराजनीति में स्वयं को स्थापित करने का अवसर मिला।
    • मध्य एशियाई गणराज्य रूस, चीन एवं पश्चिम के साथ संबंधों को संतुलित करते हुए रणनीतिक हितधारक के रूप में उभरे।

सोवियत संघ के पतन की विरासत समकालीन संघर्षों को किस प्रकार प्रभावित करती है?

  • राष्ट्रवाद और अनसुलझे विवाद: विघटन के कारण क्रीमिया एवं पूर्वी यूक्रेन सहित क्षेत्रीय विवाद अनसुलझे रहने से अलगाववादी आंदोलनों को बढ़ावा मिला।
    • रूस द्वारा वर्ष 2014 में क्रीमिया पर कब्जा करना तथा यूक्रेन में चल रहा युद्ध, सोवियत युग के प्रभाव को पुनः प्राप्त करने के उसके प्रयास को दर्शाता है।
  • आर्मेनिया-अज़रबैजान संघर्ष: नागोर्नो-काराबाख पर आर्मेनिया-अज़रबैजान संघर्ष, स्टालिन के वर्ष 1923 के उस निर्णय से प्रेरित है जिसमें इस क्षेत्र को अज़रबैजान को हस्तांतरित कर दिया गया था जबकि वहाँ बहुसंख्यक आबादी अर्मेनियाई थी।
    • इस निर्णय से जातीय तनाव का आधार तैयार हुआ, जो सोवियत संघ के पतन के बाद संघर्ष में बदल गया, क्योंकि आर्मेनिया और अज़रबैजान नियंत्रण के लिये प्रतिस्पर्द्धा कर रहे थे।
  • कोसोवो-सर्बिया विवाद: कोसोवो ने वर्ष 2008 में सर्बिया से स्वतंत्रता की घोषणा की लेकिन सर्बिया एवं कई देश अभी भी इसे मान्यता नहीं दे रहे हैं। 
    • जातीय तनाव जारी (विशेष रूप से उत्तरी कोसोवो जैसे सर्ब-बहुल क्षेत्रों में) रहने से निरंतर अस्थिरता को बढ़ावा मिलने के साथ बाल्कन शांति प्रक्रिया में जटिलता आई।
  • नाटो के विस्तार से तनाव में वृद्धि: नाटो के पूर्व की ओर विस्तार को रूस प्रत्यक्ष खतरा मानता है, जिससे उसकी सुरक्षा चिंताओं में वृद्धि हुई।
    • इसके अलावा इससे अफगानिस्तान जैसे संघर्षों को बढ़ावा मिला और इसकी विरासत से पूर्वी यूरोप एवं उसके बाहर भू-राजनीतिक तनाव एवं अस्थिरता को बढ़ावा मिल रहा है।
    • रूस-यूक्रेन युद्ध पश्चिमी शक्तियों और रूसी महत्त्वाकांक्षाओं के बीच व्यापक प्रतिस्पर्द्धा का प्रतीक है।
  • ऊर्जा संसाधन एवं भूराजनीति का आपस में संबंध: साम्यवादी विचारधारा एवं यूएसएसआर की अनुपस्थिति में रूस अपने तेल, गैस और रक्षा उपकरणों का लाभ उठाकर, विशेष रूप से यूरोप पर प्रभाव डाल रहा है। 

सोवियत संघ के पतन का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?

  • आर्थिक विविधीकरण और उदारीकरण: पतन ने USSR के साथ भारत के व्यापार को बाधित कर दिया, जिससे विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिये वर्ष 1991 में आर्थिक उदारीकरण की आवश्यकता पड़ी।
    • भारत ने आसियान देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करने हेतु लुक ईस्ट पॉलिसी (अब एक्ट ईस्ट पॉलिसी) और पश्चिमी देशों के साथ व्यापार और रणनीतिक संबंधों को बढ़ाने के लिये हाल ही में एक्ट वेस्ट पॉलिसी के माध्यम से अपनी साझेदारियों में विविधता लाई है।
  • रक्षा संबंधों को नई वास्तविकताओं के अनुकूल बनाना: आपसी रक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये भारत ने केवल रूसी सैन्य हार्डवेयर का आयात करने से आगे बढ़कर ब्रह्मोस मिसाइल जैसे संयुक्त उत्पादन समझौतों के माध्यम से अंतर को कम करना शुरू कर दिया है।
  • भारत ने किसी एक स्रोत पर निर्भरता को कम करने के लिये अमेरिका, फ्राँस और इज़रायल के साथ रक्षा सहयोग को भी बढ़ाया।
  • सामरिक स्वायत्तता के लिये भू-राजनीतिक पुनर्संरेखण: भारत ने अमेरिका और रूस के साथ अपने संबंधों में संतुलन स्थापित करते हुए क्वाड जैसी अमेरिकी नेतृत्व वाली परियोजनाओं में भाग लिया तथा मॉस्को के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखे।
    • भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को मज़बूत करने, बहुपक्षीय साझेदारी को बढ़ाने और अधिक संतुलित वैश्विक व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये ब्रिक्स और SCO जैसे अन्य संगठनों में भी शामिल हुआ।
    • मध्य एशियाई संसाधनों तक पहुँच, विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) जैसी पहलों के माध्यम से, प्राथमिकता बनी रही।
  • सांस्कृतिक और वैज्ञानिक सहयोग: सोवियत काल के दौरान सांस्कृतिक आदान-प्रदान के परिणामस्वरूप भारतीय साहित्य और फिल्मों का पूर्व सोवियत राज्यों में आकर्षण का एक लंबा इतिहास रहा है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न: सोवियत संघ के पतन ने वैश्विक शक्ति संरचना को एकध्रुवीय विश्व में कैसे बदल दिया? चर्चा कीजिये

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न      

प्रश्न.  निम्नलिखित में से कौन-सा देश मोल्दोवा के साथ सीमा साझा करता है? (2008) 

  1. यूक्रेन 
  2.  रोमानिया 
  3.  बेलारूस 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (a) 


मेन्स:

1. लेनिन की नव आर्थिक नीति- 1921 ने स्वतंत्रता के शीघ्र पश्चात् भारत द्वारा अपनाई गई नीतियों को प्रभावित किया था। मूल्यांकन कीजिये। (2014)

भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत-लैटिन अमेरिका व्यापार संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

LAC कार्यक्रम, मर्कोसुर देश के साथ भारत का मुक्त व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर।

मेन्स के लिये:

मर्कोसुर, लैटिन अमेरिकी देशों के साथ व्यापार समझौते, लैटिन अमेरिका के प्रति भारत की विदेश नीति का विकास, लैटिन अमेरिका के क्षेत्रीय एकीकरण से संबंधित चुनौतियाँ, जलवायु परिवर्तन, व्यापार नियम और आतंकवाद जैसे वैश्विक मुद्दों में लैटिन अमेरिका की भूमिका।

स्रोत: फाइनेंसियल एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

सभी 33 देशों में निरंतर विकास और विविध संबंधों के साथ, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन (LAC) क्षेत्र भारत की विदेश नीति का मुख्य केंद्र बन गया है, भारत चीन से पीछे है, जो अपनी प्रगति के बावजूद इस क्षेत्र में बहुत अधिक मज़बूत उपस्थिति है।

लैटिन अमेरिका के साथ भारत के संबंध कैसे हैं?

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: 
    • भारत-लैटिन अमेरिका संबंधों का एक समृद्ध इतिहास है, जिसमें पांडुरंग खानखोजे (एक कृषि वैज्ञानिक जिन्होंने मैक्सिको में कृषि पद्धतियों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई) और एम.एन रॉय (एक राजनीतिक कार्यकर्त्ता, जिन्होंने भारतीय और मैक्सिकन कम्युनिस्ट पार्टियों की स्थापना की) जैसी हस्तियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। 
      • ऑक्टेवियो पाज़, रवींद्रनाथ टैगोर और विक्टोरिया ओकैम्पो जैसे कवि-राजनयिकों और लेखकों के माध्यम से भारत और लैटिन अमेरिका के बीच एक समृद्ध साहित्यिक आदान-प्रदान हुआ जिसने दोनों देशों के दृष्टिकोण को आकार प्रदान किया।
      • भारत के कवि-राजनयिक अभय.के ने लैटिन अमेरिकी क्षेत्र पर कविता की पुस्तकें लिखी जिसमे द अल्फाबेट्स ऑफ लैटिन अमेरिका और द प्रोफेसी ऑफ ब्रासीलिया शामिल हैं। 
      • प्रारंभिक सहभागिता: उच्च स्तरीय सहभागिता वर्ष 1961 में प्रधानमंत्री नेहरू की मैक्सिको यात्रा के साथ शुरू हुई, जिसके बाद वर्ष 1968 में इंदिरा गांधी ने आठ लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई (LAC) देशों का दौरा किया।
    • हालिया घटनाक्रम: वर्ष 2014 में ब्राज़ील में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी की भागीदारी से संबंधों में तेज़ी आई।
    • आर्थिक उदारीकरण: वर्ष 1990 के बाद के आर्थिक उदारीकरण से व्यापार, निवेश और नवीकरणीय ऊर्जा सहयोग में मज़बूती आई। 
      • भारत ने सात LAC देशों के साथ व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किये तथा निर्यात और आर्थिक सहयोग को बढ़ाने हेतु वर्ष 1997 में फोकस LAC कार्यक्रम शुरू किया गया।
  • वर्तमान व्यापार परिदृश्य: 
    • व्यापार आँकड़ें: वर्ष 2023 में, लैटिन अमेरिका से भारत का आयात 22.93 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जबकि निर्यात 20.09 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, कुल व्यापार मात्रा 43.22 बिलियन अमेरिकी डॉलर रही तथा वर्ष 2028 तक 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का लक्ष्य रखा गया।
    • प्रमुख व्यापार साझेदार: ब्राज़ील, मैक्सिको और कोलंबिया देश इस क्षेत्र में भारत के प्राथमिक व्यापार साझेदार हैं।
    • आयात संरचना: प्रमुख आयातों में पेट्रोलियम तेल, सोना (प्लैटिनम चढ़ाया हुआ सोना सहित) और सोयाबीन तेल शामिल हैं।
    • निर्यात संरचना: प्रमुख निर्यातों में पेट्रोलियम तेल (कच्चे तेल को छोड़कर), मोटर कारें तथा परिवहन के लिये डिज़ाइन किये गए अन्य मोटर वाहन शामिल हैं।
    • आर्थिक स्थिति: लैटिन अमेरिका को भारत के लिये "गोल्डीलॉक्स क्षेत्र" में माना जाता है- जो अमेरिका और यूरोप जैसे अत्यधिक विनियमित बाज़ारों और अफ्रीका के कम प्रतिस्पर्द्धा बाज़ारों के बीच संतुलन प्रदान करता है।

  • राजनीतिक और द्विपक्षीय सहयोग:
    • विदेश नीति प्राथमिकता: ऐतिहासिक रूप से, लैटिन अमेरिका अपने सीमित भू-राजनीतिक प्रभाव के कारण भारत की विदेश नीति में कम प्राथमिकता वाले देश की सूची में रहा है। हालाँकि, हाल के घटनाक्रम इस दृष्टिकोण में महत्त्वपूर्ण बदलाव का संकेत देते हैं। 
      • विशेष रूप से, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अप्रैल, 2023 में गुयाना, पनामा, कोलंबिया और डोमिनिकन गणराज्य की ऐतिहासिक यात्रा की, यह पहली बार है जब किसी भारतीय विदेश मंत्री ने इन देशों का दौरा किया है।
    • सहभागिता में वृद्धि: वर्ष 2022 में G20 सदस्य अर्जेंटीना, ब्राज़ील और मैक्सिको को कनिष्ठ मंत्री के बजाय भारत के विदेश मंत्री के अधिकार क्षेत्र में रखा गया।
    • ब्राज़ील की नेतृत्वकारी भूमिका: ब्राज़ील को ब्रिक्स, IBSA (भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका) और G-20 जैसे बहुपक्षीय मंचों में सक्रिय भागीदारी के कारण भारत के साथ सबसे अधिक राजनीतिक संबंध रखने वाला देश माना जाता है।
    • अधिमान्य व्यापार समझौते (PTA): भारत और चिली के साथ-साथ भारत और मर्कोसुर के बीच PTA पर हस्ताक्षर, भारत के साथ आर्थिक संबंधों को सुदृढ़ करने के लिये लैटिन अमेरिका की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
      • वर्ष 1991 में स्थापित लैटिन अमेरिकी व्यापार समूह मर्कोसुर में छह सदस्य हैं, अर्थात्  ब्राज़ील, अर्जेंटीना, उरुग्वे, पैराग्वे , वेनेज़ुएला और बोलीविया। 
      • प्रारंभ में इसका उद्देश्य वस्तुओं, सेवाओं, पूंजी और लोगों के मुक्त आवागमन को सुविधाजनक बनाना था, लेकिन वर्ष 1995 में यह एक सीमा शुल्क संघ बन गया और अब यह एक साझा बाज़ार की ओर अग्रसर है।
    • सामरिक स्वायत्तता: दोनों क्षेत्रों ने एक प्रकार की गुटनिरपेक्षता को अपनाया है, जिसे भारत द्वारा 'रणनीतिक स्वायत्तता' तथा लैटिन अमेरिकी देशों द्वारा 'सक्रिय गुटनिरपेक्षता' (ANA) कहा जाता है, जो विशेष रूप से यूक्रेन में युद्ध जैसे वैश्विक मुद्दों के संबंध में उनकी साझा स्थिति से स्पष्ट है।
    • सांस्कृतिक संबंध:
      • साहित्यिक प्रभाव: वर्ष 1924 में टैगोर की अर्जेंटीना यात्रा और उनके साहित्यिक योगदान ने मैक्सिकन दार्शनिक जोस वास्कोनसेलोस द्वारा अनुवाद के माध्यम से लैटिन अमेरिकी साहित्य पर एक अमिट छाप छोड़ी है।
      • गांधी की विरासत: महात्मा गांधी द्वारा दी गई अहिंसा संबंधी शिक्षा लैटिन अमेरिका में प्रबल रूप से प्रचलित हैं, जिसका पालन ब्राज़ील में पलास एथेनास जैसे संगठनों द्वारा किया जाता है।
  • LAC क्षेत्र के साथ व्यापार समझौते/समझौता ज्ञापन:
  • भारत – चिली PTA 
  • भारत – मर्कोसुर PTA 

  • भारत और अर्जेंटीना के बीच व्यापार समझौता

  • इक्वाडोर के साथ आर्थिक सहयोग पर समझौता ज्ञापन

  • भारत और क्यूबा के बीच व्यापार समझौता

भारत के लिये लैटिन अमेरिका का क्या महत्त्व है?

  • आर्थिक अवसर: लैटिन अमेरिका प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है, जिसमें ताँबा, लिथियम और लौह अयस्क जैसे खनिज़ शामिल हैं, जो भारत की बढ़ती औद्योगिक मांगों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। 
    • इस क्षेत्र का सामूहिक सकल घरेलू उत्पाद 6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है, जो भारतीय निर्यात और निवेश के लिये पर्याप्त बाज़ार उपलब्ध कराता है।
  • ऊर्जा सुरक्षा: ऊर्जा की बढ़ती मांग के साथ, लैटिन अमेरिका भारत के लिये कच्चे तेल का प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता बनकर उभरा है। 
    • हाल के वर्षों में वेनेज़ुएला, मैक्सिको और ब्राज़ील से कच्चे तेल का आयात LAC से भारत के कुल आयात का 30% रहा है।
    • सामरिक साझेदारियाँ: भू-राजनीतिक परिदृश्य परिवर्तित हो गया है, जिससे भारत को इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिये लैटिन अमेरिका के साथ अपने संबंधों को बढ़ाने की प्रेरणा मिली है।
  • सांस्कृतिक एवं शैक्षिक आदान-प्रदान: भारत और लैटिन अमेरिका के बीच सांस्कृतिक संबंधों को शैक्षिक आदान-प्रदान तथा सूचना प्रौद्योगिकी एवं फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में सहयोग के माध्यम से दृढ़ता मिली है। 
    • भारतीय IT कंपनियाँ इस क्षेत्र में 40,000 से अधिक स्थानीय पेशेवरों को रोज़गार देती हैं, जो रोज़गार सृजन और कौशल विकास में योगदान देती हैं।
  • खाद्य सुरक्षा: लैटिन अमेरिका का विशाल कृषि परिदृश्य भारत को खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करने के अवसर प्रदान करता है, विशेष रूप से दालों और तिलहनों में, जो खाद्य सुरक्षा के लिये आवश्यक हैं।   

वे कौन-से क्षेत्र हैं, जिनमें भारत लैटिन अमेरिकी देशों के साथ सहयोग कर रहा है?

  • फार्मास्यूटिकल्स और हेल्थकेयर: भारत को विश्व स्तर पर अपने फार्मास्यूटिकल उद्योग के लिये जाना जाता है, जो किफायती मूल्यों पर उच्च गुणवत्ता वाली दवाइयाँ उपलब्ध कराता है। 
    • इन निर्यातों के लिये शीर्ष पाँच गंतव्य अमेरिका, बेल्जियम, दक्षिण अफ्रीका, यूके और ब्राजील हैं
  • ऊर्जा सहयोग: भारत बोलीविया में लिथियम भंडार की खोज और निष्कर्षण कर रहा है। वर्ष 2023 में भारत की अल्टमिन प्राइवेट लिमिटेड ने बोलीविया की सरकारी स्वामित्व वाली लिथियम कंपनी के साथ रणनीतिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर किये।
  • कृषि और खाद्य सुरक्षा: LA क्षेत्र में विशाल कृषि संसाधन हैं जो भारत को अपनी खाद्य सुरक्षा चिंताओं को दूर करने में मदद करते हैं। 
    • दोनों क्षेत्रों में उत्पादकता और स्थिरता बढ़ाने के लिये खाद्य प्रसंस्करण और कृषि अनुसंधान में सहयोग की संभावनाएँ तलाशी जा रही हैं।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास: रेलवे, राजमार्ग और ऊर्जा मार्गों सहित एलए राष्ट्रों में आधुनिक बुनियादी ढाँचे के विकास में सहयोग।
    • भारत दक्षिण-दक्षिण सहयोग के तहत बोलीविया के साथ अपनी विकास साझेदारी को महत्त्व देता है और बोलीविया की पसंद के क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं का समर्थन करने के लिये 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर की ऋण सुविधा प्रदान की है।

व्यापार समझौतों के प्रकार

  • मुक्त व्यापार समझौता (FTA): FTA दो या दो से अधिक देशों के बीच एक व्यापक समझौता है जिसका उद्देश्य विभिन्न प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं पर टैरिफ और कोटा जैसी व्यापार बाधाओं को कम करना है।
    • भारत ने श्रीलंका और आसियान जैसे विभिन्न व्यापारिक समूहों सहित कई देशों के साथ FTA पर बातचीत की है।
  • अधिमान्य व्यापार समझौता (PTA): PTA एक ​​ऐसा समझौता है जिसमें साझेदार देश विशिष्ट वस्तुओं पर टैरिफ कम करके कुछ उत्पादों तक अधिमान्य पहुँच प्रदान करते हैं। कुछ टैरिफ को तो पूरी तरह से समाप्त भी किया जा सकता है।
    • FTA के विपरीत, PTA आम तौर पर कम व्यापक होते हैं और केवल सीमित संख्या में वस्तुओं को ही कवर कर सकते हैं। कुछ उत्पादों के लिये टैरिफ को शून्य तक भी कम किया जा सकता है।
    • भारत ने अफगानिस्तान के साथ एक PTA पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA): CEPA, FTA से अधिक व्यापक है, जिसमें सेवाओं में व्यापार, निवेश और व्यापक आर्थिक सहयोग शामिल है। भारत ने दक्षिण कोरिया और जापान के साथ CEPA स्थापित किया है।
  • व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA): CECA मुख्य रूप से व्यापार शुल्क और टैरिफ दर कोटा (TRQ) पर केंद्रित है, लेकिन CEPA की तुलना में कम व्यापक है। भारत ने मलेशिया के साथ CECA पर हस्ताक्षर किये हैं।

लैटिन अमेरिकी देशों के साथ संबंधों को गहरा करने में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • क्षेत्रीय तंत्रों का अभाव: भारत ने अभी तक लैटिन अमेरिका को एक क्षेत्र के रूप में या मध्य अमेरिकी एकीकरण प्रणाली (SICA), लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई राज्यों के समुदाय (CELAC), मर्कोसुर और प्रशांत गठबंधन जैसे उप-समूहों के साथ संलग्न करने के लिये एक रूपरेखा विकसित नहीं की है।
    • लैटिन अमेरिका के भीतर क्षेत्रीय एकीकरण अभी भी अधूरा है, जिससे अल्पावधि में द्विपक्षीय संबंध अधिक व्यवहार्य हो गए हैं।
  • सीमित व्यापार समझौते: मर्कोसुर और चिली के साथ मौजूदा अधिमान्य व्यापार समझौते (PTA) का दायरा दक्षिण कोरिया, जापान या आसियान के साथ भारत के FTA की तुलना में संकीर्ण है।
    • बढ़ते निर्यात के बावजूद, लैटिन अमेरिका को मुद्रास्फीति, राजनीतिक अस्थिरता और बुनियादी ढाँचे में कम निवेश जैसी आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे व्यापार प्रभावित हो रहा है।
  • चीन का प्रभुत्त्व: भारत को चीन की महत्त्वपूर्ण व्यापारिक उपस्थिति, रणनीतिक निवेश और प्रमुख लैटिन अमेरिकी देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) से प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है।
  • भौगोलिक बाधाएँ: व्यापार क्षेत्र और सांस्कृतिक संबंधों में सकारात्मक विकास के बावजूद, भौगोलिक दूरी और भाषा संबंधी बाधाएँ सामाजिक संपर्कों के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करती हैं, जिनमें उच्च यात्रा लागत और लैटिन अमेरिका की यात्रा करने वाले भारतीयों के लिये वीज़ा संबंधी कठिनाइयाँ शामिल हैं।
    • बहुत से भारतीय अभी भी लैटिन अमेरिकी देशों को पुरानी रूढ़ियों के माध्यम से देखते हैं, जैसे कि "बनाना रिपब्लिक" जो अस्थिरता और नशीली दवाओं की तस्करी की विशेषता रखते हैं। इसके विपरीत, लैटिन अमेरिकी प्रायः भारत को केवल अध्यात्म और गुरुओं की भूमि के रूप में देखते हैं।
  • द्विपक्षीय तालमेल: यह संबंध जलवायु परिवर्तन, व्यापार और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर द्विपक्षीय सहयोग से प्रेरित है, हालाँकि रक्षा और अंतरिक्ष जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में सीमित भागीदारी देखी गई है।

लैटिन अमेरिका के साथ अपने संबंध बेहतर करने के लिये भारत क्या रणनीति अपना सकता है?

  • "फोकस: LAC कार्यक्रम को पुनः सक्रिय करना: इस व्यापार संवर्द्धन कार्यक्रम से बाज़ार पहुँच को मज़बूती मिलने के साथ संस्थागत तंत्र में सुधार एवं आर्थिक बुनियादी ढाँचे का विकास हो सकता है जिससे व्यापार के लिये अनुकूल वातावरण तैयार हो सकेगा।
    • उन क्षेत्रों में चयनात्मक व्यापार को बढ़ावा देना चाहिये जहाँ भारत को प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ प्राप्त हों जैसे 
  • द्विपक्षीय समझौते एवं निवेश प्रोत्साहन: भारत को लैटिन अमेरिकी देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) एवं तरजीह व्यापार व्यवस्था को आगे बढ़ाना चाहिये जिसमें प्रौद्योगिकी, कृषि तथा स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
    • भारत एवं लैटिन अमेरिकी देशों के बीच पर्सन टू पर्सन (P2P) एवं बिज़नेस टू बिज़नेस (B2B) संबंधों को बढ़ावा देने से सांस्कृतिक आदान-प्रदान में सुविधा होगी और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।
  • राजनयिक समन्वय: उच्च स्तरीय यात्राओं, क्षेत्रीय व्यापार शिखर सम्मेलनों में भागीदारी तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के माध्यम से राजनयिक संबंधों को मज़बूत करने के साथ गहन आर्थिक सहयोग का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
  • उन्नत निर्यात संवर्द्धन: भारतीय निर्यातकों को लैटिन अमेरिकी बाज़ार में प्रवेश करने के लिये वित्तीय सहायता तथा लक्षित प्रयासों की आवश्यकता है। 
    • निर्यात संवर्द्धन परिषदें एवं उद्योग संघ इस संबंध में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  • लैटिन अमेरिकी हितों पर बल देना: भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर वेनेजुएला, अर्जेंटीना एवं हैती जैसे लैटिन अमेरिकी देशों के लिये सक्रिय रूप से समर्थन देना चाहिये।
    • ऐसा करके भारत अपने राजनयिक संबंधों को मज़बूत कर सकता है तथा इन देशों के साथ एकजुटता (विशेष रूप से आर्थिक अस्थिरता और राजनीतिक चुनौतियों जैसे मुद्दों पर ध्यान देने में) प्रदर्शित कर सकता है।
  • सेवा व्यापार संवर्द्धन: FTA साझेदारों के साथ संबंधित सेवा क्षेत्रों में गैर-टैरिफ बाधाओं का एक व्यापक डाटाबेस तैयार करना चाहिये।
    • प्राथमिकता के आधार पर व्यावसायिक योग्यताओं के क्रम में पारस्परिक मान्य समझौते स्थापित करने चाहिये।
    • सेवा प्रदाताओं के लिये बाजार पहुँच संबंधी मुद्दों की रिपोर्ट करने हेतु एक डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित करना चाहिये।
    • उदाहरण के लिये, यूरोपीय संघ की व्यापार बाधा रिपोर्टिंग प्रणाली के समान एक प्रणाली लागू करनी चाहिये । 
    • बाजार-विशिष्ट रणनीतियों के साथ समर्पित सेवा निर्यात संवर्द्धन परिषदों की स्थापना करनी चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न: लैटिन अमेरिका के साथ भारत के व्यापार संबंधों से जुड़ी चुनौतियों एवं अवसरों पर चर्चा कीजिये।

 

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

 प्रिलिम्स:  

प्रश्न. निम्नलिखित में से किस एक समूह में चारों देश G-20 के सदस्य हैं? (2020)

(a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की
(b) ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया और न्यूज़ीलैंड
(c) ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब और वियतनाम
(d) इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया

उत्तर: (a)

प्रश्न: निरपेक्ष और प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP की वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची दर का संकेत नहीं करती, यदि (2018)

(a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(b) कृषि उत्पादन औद्योगिक उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(c) निर्धनता और बेरोज़गारी में वृद्धि होती है।
(d) निर्यात की अपेक्षा आयात तेज़ी से बढ़ते हैं। 

उत्तर: C


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